2. अखंड भारत का आध्यात्मिक और सांस्कृ ततक िानचित्र
तिाि लम्हों क
े
बावजूद यह सच्िे
भारत का नक्शा है,
और यह हिेशा
सच्िे भारत का
नक्शा बना रहेगा,
िाहे लोग इसक
े बारे
िें क
ु छ भी सोिे.
29 जुलाई 1964
3. श्रीअरववन्द
श्रीअरववन्द ने पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता की िांग रखी थी।
श्रीअरववन्द भारत देश को जड़ पदाथण-िात्र खेत, िैदान, जंगल, पवणत, नददयां नहीं सिझते
थे। देश को भारत िाता क
े रूप िें देखते थे।
श्रीअरववन्द को अंग्रेजी हुक
ु ित भारत का सबसे खतरनाक व्यत्क्त िानती थी। श्रीअरववन्द
की सशक्त क्ांततकारी की योजना ‘भवानी िंददर’ िें मिलती है।
श्रीअरववन्द की राष्ट्रीय मशक्षर् नीतत सिग्र व्यत्क्तमव ववकास, राष्ट्रीय चिंतन एवं वैत्ववक
वविार पर आधाररत है।
श्रीअरववन्द का उत्तरपाड़ा भाषर् सनातन धिण को सबसे सरल भाषा िें सिझने क
े मलये
िागणदशणन देता है।
श्रीअरववन्द का 15 अगस्त का भाषर् आज भी प्रासंचगक है त्जसिें श्रीअरववन्द पांि
संकल्पों क
े बारे िें बताते है 1. भारत ववभाजन का ववरोध 2. एमशया का उमथान 3. संयुक्त
राष्ट्र की भूमिका 4. भारत का वववव को अध्यात्मिक देन 5. ववकास क्ि की प्रक्रक्या िें
योग की िहमवपूर्ण भूमिका त्जसिें भारत की अग्रर्ीय भूमिका अपेक्षक्षत होगी।
श्रीअरववन्द अततिानमसक पररवतणन क
े िाध्यि से ददव्य जीवन क
े आधार पर ववकासवादी
संकट क
े बीि िानव जातत को आशा की क्रकरर् प्रदान करते है।
श्रीअरववन्द क
े अनुसार ववकासक्ि सिाप्त नहीं हुआ है, तक
ण अंतति शब्द नहीं है और तक
ण
करने वाला पशु ईववर की सवोच्ि कृ तत है। पशु से िानव प्रकट हुआ है। उसी प्रकार िानव
से िहािानव का आववभाणव होगा।
श्रीअरववन्द क
े दशणन, चिंतन एवं सादहमय से प्रेरर्ा लेकर संववधान सभा िें वववव िें भारत
की भूमिका पर ििाण की गई थी।
सादहमय - ददव्य जीवन, साववत्री, भारतीय संस्कृ तत क
े आधार, गीता प्रबंध, योग सिन्वय,
श्रीअरववन्द क
े पत्र, िानव िक्, वेद रहस्य, हिारा योग और उसक
े उद्देवय,
4. उत्तरयोगी श्रीअरविन्ि
• उत्तरयोगी श्रीअरविन्ि (Sri Aurobindo also known
as Uttaryogi)
• यह नाि श्रीअरववन्द को तमिल क
े प्रमसद्ध योगी
की भववष्ट्यवार्ी क
े आधार पर ददया गया है।
दक्षक्षर् क
े प्रमसद्ध योगी नगाईजप्ता ने यह
भववष्ट्यवार्ी की थी क्रक तीस वषण बाद उत्तर से
एक योगी दक्षक्षर् िें आयेगा और यहां दक्षक्षर् िें
पूर्ण योग का अभ्यास करेगा। उन्होंने उस योगी
की पहिान कर सकने क
े मलये लक्षर् क
े रूप िें
तीन विन (पागलपन) कहे।
5. श्रीअरविन्ि
तीन पागलपन
1- उनकी सिस्त योग्यता ईववर की देन है और
यह योग्यता क
े वल राष्ट्र क
े मलये है।
• 2- ईववर की खोज
• 3- भारत को स्वतंत्र कराने का लक्ष्य।
6. भारत िाता
• "राष्ट्र क्या है? हिारी जन्िभूमि क्या है? यह
जिीन का एक टुकड़ा नहीं है, न तो एक
शात्ब्दक नाि है न तो िन की कपोल
कल्पना है। यह एक ववराट शत्क्त है जो
लाखों लाख लोगों की शत्क्तयों का, त्जनसे
राष्ट्र बनता है, सिुच्िय है जैसे
िदहषासुरिददणतन भवानी लाखों लाख देवताओं
की सत्म्िमलत शत्क्त से उदभूत हुई। वह
शत्क्त त्जसे हि भवानी भारती कहते हैं वह
तीस करोड़ व्यत्क्तयों की सत्म्िमलत शत्क्त
का जीवंतरूप है, पर वह तनत्ष्ट्क्य तिस क
े
जादुई िक् िें आबद्ध तथा अपने ही पुत्रों क
े
स्वतः पसंद अज्ञान और जड़ता िें क
ै द है।
इस सिस्या से छ
ु टकारा पाने क
े मलए हिें
अपने भीतर क
े ब्रह्ि को जागृत करना है"
7. आध्यात्मिक राष्ट्रवाद
• श्री अरववन्द बताते है क्रक हर राष्ट्र की एक सािूदहक आमिा
होती है, जो क्रक ददव्य ववधान क
े अनुसार तनयत कायों को
सम्पाददत करने क
े मलए आदेमशत है। श्री अरववन्द िेतावनी
देते है क्रक त्जस प्रकार व्यत्क्त क
े अहंकार िें दोष होते है,
जबक्रक व्यत्क्त की आमिा ददव्य होती है, उसी प्रकार राष्ट्रीय
अहंकार क
े अपने दुणगुर् है, त्जससे सावधान रहने की
आववयकता है। व्यत्क्त की ववमशष्ट्टता को अनुशासन क
े
मलए नहीं दबाया जाना िादहए बत्ल्क सािात्जक स्वर संगतत
िें बहुत ही सजनता से उसे गोथने की जरूरत है। इसी
प्रकार राष्ट्रीय सािूदहक ववमशष्ट्टता को संजोना एवं पल्लववत
करना होगा त्जससे वह िानव जातत क
े ववरोधी न हो।
प्रमयेक िानव सिूह की पृथक सांस्कृ ततक ववशेषताऐं होती है
जो क्रक िूल्यवान होती है। वे तब तक उभर नहीं सकती जब
तक की उन्हें अलग से ववकमसत होने का िौका नहीं मिले।
8. आध्यात्मिक राष्ट्रवाद
• अनेकता िें एकता क
े सूत्र िें संसार का अत्स्तमव है। अतः िात्र एकरूपता उतनी ही
असंगत है त्जतना क्रक बहीिुखीता से एकता क
े अत्स्तमव को स्वीकार नहीं करता।
अतएव राष्ट्रवाद िानवता क
े मलए अमयंत आववयक है। श्री अरववन्द मलखते है क्रक
राष्ट्रवाद, अन्तराणष्ट्रवाद एक-दूसरे क
े ववरोधी नहीं बत्ल्क पूरक है। क्योंक्रक
अन्तराणष्ट्रवाद िें हर राष्ट्र अपनी अद्ववतीयता से दूसरे को सिृद्ध कर सकता है।
परन्तु इसक
े मलए यह तनतान्त आववयक है क्रक सवणप्रथि हर राष्ट्र वह प्रवीर्ता
प्राप्त करें त्जसक
े मलए उसकी सािूदहक िेतना उन्नीमलत होकर वववव िें अवतररत
हो।
• भारत - आध्यात्मिकता,
• अिररका - वाणर्ज्य ऊजाण,
• इंग्लैण्ड - व्यवहाररक बौचधकता,
• फ्ांस - स्पष्ट्ट ताक्रक
ण कता,
• जिणनी - मििांसामिक प्रवीर्ता,
• रूस को भावनामिक प्रिण्डता आदद को िानव जातत की कल्यार्, सिृद्चध और
प्रगतत क
े मलए ववकमसत करने की आववयकता है। सार यह है क्रक धरती िाता
ववमभन्न राष्ट्रों क
े रूप िें स्वयं को उत्तरोतर अमभव्यक्त कर रही है। संयुक्त राष्ट्र
क
े गठन को वववव सरकार क
े रूप िें उसी ददशा िें बढ़ता कदि देखा जाना िादहए।
10. Time line
• 30 िािण 1942, प्रसारर्
• 31 िािण, श्री अरबबंदो- टेलीग्राि वास्तववक वाताण
मशव राव-िहामिा गांधी, नेहरू, राजगोपालािारी
• 1 अप्रैल 1942, टेलीग्राि का उत्तर दें
• 1 अप्रैल, 1942- स्टेट्सिैन
• 11 अप्रैल 1942 - भारत ने एक अवसर गंवाया
• 30 अप्रैल 1942 सी राजगोपालािारी ने इस्तीफा
ददया- छोटी बुराई
• 29 मसतंबर, 1942- टाइम्स ऑफ इंडडया-
कॉम्प्लेक्स ऑफ डडपेंडेंसी
11. Sri Maa
Mother, I was asking... (laughter) You said that
India was free in 1915, but was she free as
she is free now? Because India is not free as
one whole. She is broken up.
Oh! Oh! that’s what you wanted to know.
That... the details were not there. No, there must
have been a possibility of its being
otherwise, for, when Sri Aurobindo told
them to do a certain thing, sent them his
message, he knew very well that it was
possible to avoid what happened later. If
they had listened to him at that time, there
would have been no division.
Consequently, the division was not decreed, it
was a human deformation. It is beyond
question a human deformation.
CWM 1956
12. 14 अगस्त 1947
{5 DREAMS}
• 1- भारत ववभाजन का ववरोध
• 2- एमशया का उमथान
• 3- संयुक्त राष्ट्र की भूमिका
• 4- भारत का वववव को अध्यात्मिक देन
• 5- ववकास क्ि की प्रक्रक्या िें योग की
िहमवपूर्ण भूमिका त्जसिें भारत की अग्रर्ीय
भूमिका अपेक्षक्षत होगी।
13. 14 अगस्त 1947 श्रीअरविन्ि
• "यह आशा करनी िादहए क्रक इस तय क्रकए गए
ववभाजन को पमथर की लकीर नहीं िान मलया
जाएगा और इसे एक काि िलाउ और अस्थाई रूप
से बढ़कर और क
ु छ ना िाना जाएगा क्योंक्रक यदद
यह कायि रहे तो भारत भयानक रूप से दुबणल और
अपंग तक हो सकता है। गृह कलह का होना सदा ही
संभव बना रह सकता है। नए आक्िर् और ववदेशी
राज का हो जाना तक संभव हो सकता है। भारत की
आंतररक उन्नतत और सिृद्चध रुक सकती है। राष्ट्र
क
े बीि उसकी ततचथ दुबणल हो सकती है। उसका
भववष्ट्य क
ुं दठत यहां तक क्रक व्यथण भी हो सकता है।
यह नहीं होना िादहए। देश का ववभाजन अववय दूर
होना िादहए हिें आशा है क्रक यह कायण स्वाभाववक
रूप से ही हो जाएगा। न क
े वल शांतत और िेल
मिलाप की बत्ल्क मिलजुल कर काि करने की भी
आववयकता को उत्तोत्तर सिझ लेने तथा मिलजुल
कर काि करने क
े अभ्यास और उनक
े मलए साधनों
को उमपन्न करने से संपन्न हो जाएगा। इस प्रकार
अंत िें एकता िाहे क्रकसी भी रूप िें आ सकती है।
उस उसक
े ठीक-ठाक रूप का व्यवहाररक िहमव भले
ही हूं पर कोई प्रधान िहमव नहीं परंतु िाहे क्रकसी
भी उपाय से हो िाहे क्रकसी भी प्रकार से हो ववभाजन
अववय हटना िादहए। एकता अववय स्थावपत होनी
िादहए और स्थावपत होगी ही क्योंक्रक भारत क
े
भववष्ट्य की िहानता क
े मलए यह आववयक है"
14. 15 अगस्त 1947
डॉ राजेंद्र प्रसाद
'भगवान और प्रकृ तत ने जो
देश बनाया, वह आज बंटा
हुआ है। अपनों से
बबछड़ना, यहााँ तक क्रक
क्रकसी संग क
े बाद
अजनबबयों से भी, हिेशा
दुखदायी होता है। िैं
अपने आप से असमय हो
जाऊ
ं गा यदद िैं इस सिय
दुख की भावना को
स्वीकार नहीं करता, तो
यह अलगाव है ”
15. 15 अगस्त 1947
एस राधाकृ ष्ट्र्न
"अब जब भारत ववभात्जत हो गया है, तो यह हिारा
कतणव्य नहीं है" क्ोध क
े शब्दों िें मलप्त। वे हिें कहीं
नहीं ले जाते। हिें जुनूनी जुनून से बिना िादहए,
और ज्ञान कभी भी एक साथ नहीं जाना िादहए।
राजनीततक शरीर ववभात्जत हो सकता है लेक्रकन
शरीर ऐततहामसक रहता है। (सुनो, सुनो।) राजनीततक
ववभाजन, भौततक ववभाजन, बाहरी हैं लेक्रकन
िनोवैज्ञातनक ववभाजन गहरे हैं। सांस्कृ ततक दरारें
अचधक खतरनाक हैं। हिें उन्हें बढ़ने नहीं देना
िादहए। हिें क्या करना िादहए उन सांस्कृ ततक
संबंधों, उन आध्यात्मिक बंधनों को बनाए रखना है
जो हिारे लोगों को एक साथ एक जैववक पूरे िें
बांधते हैं। रोगी वविार, मशक्षा की धीिी प्रक्रक्या, एक-
दूसरे की जरूरतों क
े मलए सिायोजन, ऐसे
दृत्ष्ट्टकोर्ों की खोज जो संिार, रक्षा, ववदेश िािलों
क
े िािले िें दोनों प्रभुमवों क
े मलए सिान हैं, ये ऐसी
िीजें हैं त्जन्हें बढ़ने ददया जाना िादहए जीवन और
प्रशासन का दैतनक व्यवसाय। ऐसी िनोवृवत्त
ववकमसत करक
े ही हि एक बार क्रफर इस देश की
खोई हुई एकता क
े तनकट आ सकते हैं और प्राप्त
कर सकते हैं। इसका एकिात्र तरीका यही है।"
17. भारत क
े संववधान िें नोआखली क्यों?
• नोआखली - दहंदू
िुत्स्लि एकता/ववघटन
• बंटवारे की भयावहता
तस्वीर
18. वीर सावरकर और ववभाजन
टू नेशन थ्योरी का
ितलब यह नहीं है-
पाक्रकस्तान की िांग
एक राज्य - दो राष्ट्र
एक आदिी एक वोट
अल्पसंख्यक को कोई
ववशेषाचधकार नहीं
बहुित क
े मलए कोई दंड
नहीं
19. डॉ अम्बेडकर और ववभाजन
• दो राष्ट्र मसद्धांत का
तामपयण जनसंख्या क
े
हस्तांतरर् क
े साथ
भारत क
े ववभाजन से है
• चधक्कार है - गौरव
• नेहरू जनसंख्या क
े
हस्तांतरर् क
े मलए
सहित नहीं थे
20. त्जन्ना और ववभाजन
• टू नेशन थ्योरी -
पाक्रकस्तान का वैध
आधार?
• क्या सांप्रदातयक
ववभाजन की सिस्या
का सिाधान पाक्रकस्तान
कर रहा है? या बेिैनी
बढ़ जाती है
• पाक्रकस्तान की नींव की
ववफलता की िुहर ---
बांग्लादेश
21. रािधारी मसंह ददनकरी
• शेख अहिद सरदहंदी ,
• शेख सैफ
ु द्िीन
• “औरंगजेब की वसीयत
थी क्रक उसक
े िरने क
े
बाद उसका राज्य तीन
बेटो िें बांट ददया
जाए।”
• इकबाल
23. दहंदू-िुत्स्लि संबंध पर श्रीअरविन्ि
• ‘‘ िुत्स्लि ववजय द्वारा प्रस्तुत वास्तववक सिस्या यह नहीं थी क्रक
ववदेशी शासन क
े आगे अधीनस्थ होना तथा स्वतंत्रता की पुनः
प्रात्प्त की योग्यता, बत्ल्क दो सभ्यताओं क
े बीि की थी, एक प्रािीन
तथा अंतदेशीय, दूसरी िध्यकालीन तथा बाहर से अंदर लाई गई। वह
त्जसने सिस्या क
े सिाधान को ववलयहीन कर ददया वह था हरेक
का एक शत्क्तशाली धिण क
े साथ जुड़े होना, एक युद्धक तथा
आक्ािक, िूसरा आध्यात्मिक तौर पर वास्तव िें सहनशील तथा
लिीला, लेक्रकन अपने मसद्धांत क
े अनुशासन क
े प्रतत त्जद की हद
तक तनष्ट्ठावान तथा सािात्जक ढांिों क
े अवरोध क
े पीछे प्रततरोध
करता हुआ। िो ही कल्पनीय समाधान थे, एक उच्ितर आध्यात्ममक
मसद्धांत तथा रिना का पैदा होना जो दोनों का सिझौता करता या
एक राजनैतिक िेशभत्ति जो धामिणक संघषण को लांघती तथा दोनों
सिुदायों की एकता करवाती।’’ (CWSA 20)
24. Voice of the Constituent Assembly
• 1 Historical process of assimilation.8
Dec1948
• The Indians owned Babar, Humayun
and Akbar to the extent they
indentified themselves with India –(
21 July 1947)
• The lands of our country have
witnessed invasions and dissensions.
Yet they have assimilated into the
idea of India everyone who sought
their providence, whether they came
as merchants, travellers or as
conquerors. (Ayodhya Judgement )
• दारा मसखों की आमिा का पुनजणन्ि
और औरंगजेब क
े त्जन्न को बोतल िें
बंद करना अखंड भारत की िांग
है। भारत बोध िें दारा मसखों का
सम्िान और औरंगजेब का तनष्ट्कासन
बहुत िहमवपूर्ण है।
26. भारत िें अखंड भारत
क
े नीततगत उपाय
1 राष्ट्रीय आदशण वाक्य - समयिेव जयते
2 भारत क
े सवोच्ि न्यायालय का आदशण वाक्य- यतो धिणस्तो जय
3 आयण आक्िर् मसद्धांत की अस्वीकृ तत (आयण का वास्तववक अथण)
4 संवैधातनक नैततकता का सिथणन - कोई पृथक तनवाणिक 5िंडल नहीं
धिणतनरपेक्षता क
े बारे िें भारतीय दृत्ष्ट्टकोर् "एकि सद ववप्र बहुदा
वदंती" (भगवान क
े नाि पर शपथ) वववव क
े मलए आववयकता
6 सकारामिक कारणवाई "ईडब्ल्यूएस अच्छा संक
े त है"
7 भाषा नीतत - क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा ददया जाए
8 जनसंख्या अनुपात- यथात्स्थतत
9 कोई जातत व्यवस्था नहीं
10 डॉ पी वी क
े न – भारत रमन
27. भारत िें अखंड भारत
क
े नीततगत उपाय
11 राष्ट्रीय ध्वज की भारतीय व्याख्या
(राधाकृ ष्ट्र्न)
12 राष्ट्रीय गीत (िौमलक कतणव्यों िें)
13 यूसीसी (अखंड भारत की नींव)
14 एनआरसी (सुरक्षा िुद्दा - अवैध आव्रजन को
रोक
ें )