Publicidad
मेरें बचपन का पहला दशक मेरें रतलाम में
मेरें बचपन का पहला दशक मेरें रतलाम में
मेरें बचपन का पहला दशक मेरें रतलाम में
मेरें बचपन का पहला दशक मेरें रतलाम में
Próximo SlideShare
माँमाँ
Cargando en ... 3
1 de 4
Publicidad

Más contenido relacionado

Publicidad

मेरें बचपन का पहला दशक मेरें रतलाम में

  1. मेरें बचपन का पहला दशक मेरें रतलाम में मैं उस परवर दिघा का बड़ा उपकार मानता हूँ , कक आज भी मुझे मेरें बचपन कक हर याि िाश्त ऐसी ताज़ी है ! कक लगता ही नहीीं कब मेंने अपने जीवन क े 58 साल पार कर दिये ! मुझे तो ज़रा भी ववश्वास नहीीं हो रहा है कक क ै से लोग अपने बचपन को अपनी िुींधली याि बना लेते है ! खैर मुझे अभी तो ससर्फ अपने सन 1962 से 1972 का एक िसक कक िास्तान ही सुनाना हैं ! मुझे तो लग रहा है कक आज क े िुपहर कक ही एक झपकी क े बाि अभी अभी नीींि खुली हैं ! झपकी थी कक नीींि यह भी नहीीं कह सकता हूँ ! क्यों ककसी को जीवन का सर्र बड़ा , छोटा , कष्ट वाला , आनींि वाला , उतार चड़ाव वाला अमीरी गरीबी वाला , माूँ बाप क े साथ वाला , बबना माूँ बाप वाला , बुढ़ापा जवानी या बचपन वाला लगता होगा ? मेरीीं नजरों में जैसे क ु िरत ने कभी भी , ककसी से , कहीीं भी, कोई भी, तेरी मेरी नहीीं की हैं ! सबको जीने क े सलये क ु िरत ने हर चीज़ 100 % मुफ़त / फ्री में िी हैं ! और तो और इस सींसार में कोई भी इींसान /जीव/जन्तु/पक्षी क ु छ भी नहीीं लेकर आया है और ना ही क ु छ लेकर जायेगा ! क ु िरत क े सलये हम सब एक है और वह भी सबको एक जैसा ही समझतत है ! क ु िरत / मासलक / कायनात क े रचेता ने कभी भी ककसी से क ु छ नहीीं माींगा है ! इींसान को क ु िरत ने हमेशा बबना माींगे सब क ु छ समय क े दहसाब से अवश्य समय पर सब क ु छ दिया है ! जजन्होने अपने मासलक / गुरु / क ु िरत पर परा 100% ववश्वास रखा उसका जीवन सर्र एक सपने की तरह ही बबता होगा यह मेंरा िावा है ! जीवन में क ु छ भी कर्क्स नहीीं है जीवन पररवतफन का िसरा नाम है ! और मैं भी उन नसीब वालों में से एक हूँ ! यह जीवन मासलक / क ु िरत ने इतना खब सरत बनाया है की जजसकी खबसरती का वर्फन में नहीीं कर सकता हूँ अपने शब्िो में ! जीवन जीने क े सलये कभी ककसी बुद्धध जीव ने ऑक्सीज़न / वायु / जल / आकाश / भसम / अजनन क े बबना क्या जीवन सींभव है कभी सोचा ? खैर चलो अब में सीधे सीधे अपने उन सुनहरे बचपन क े ख्यालों में चलते हैं ! मेंरा बचपन रतलाम में कक्षा 3 तक गुजरा था ! मेरें वपता रेल्वे स्कल में लायब्रेयन क े पि पर थे ! एक बड़ा भाई और एक छोदट बहन थी माूँ घर कायफ ही करती और िेखती थी ! रतलाम में हम लोग ककराय क े मकान में रहते थे ! जजसका पता था पैलेस रोड , श्री माली महोल्ला , नई क ु ये क े सामने , डालुमोती बाजार रोड , रतलाम ! पर हमारा मकान पहेली मींजजल पर था ! उस मींजजल मे टोटल िो ककरायिार नीचे और तीन ककरायिार पहेली मींजजल पर रहते थे ! नीचे एक महराजष्िन र् े समली आई रहती थी और उनका पररवार भी बड़ा था एक लड़का सशवाजी ,लल्ल ,और िो लड़की क े साथ रहती थी ! उसी क े बगल में नसफ बाई अपने पररवार क े साथ रहती थी ! ऊपर क े मजजल पर सबसे पहेले श्री बींसीलाल अग्रवाल और बहन जी ,रहते थे जजनक े िो बेटे अशोक बड़ा और हरीश छोटा एवीं पुत्री साधना हम सब एक ही उम्र क े ही थे ! बीच में हमारा मकान था और उसक े बगल में क ीं पाउींडर साहब अपने पररवार क े साथ रहते थे , उनका एक लड़का कनदहया और चार लडकीया लच्छ ु मनु शाींतत पुष्पा थी !
  2. मकान मासलक इींिौर में रहते थे ! मकान पुराना मट्टी और पतरे का बना हुआ था ! उसी क े साथ जीजी बाई का वाडा था , उनका भी एक लड़का बब्ब हुआ करता था ! उनक े ऊपर माताजी अपने परे पररवार क े साथ रहती थी उनक े भी तीन लड़क े मुींशी प्रभात और गुड्ड और िो लडकीय थी इींद्रा और गुड्डी ! उन्ही क े ऊपर गोयल मास्टर साहब रहते थे उनका एक लड़का मेरें बराबर का था राज और बड़ा दिनेश , उसी क े बगल मे सतीश और शेलु भी रहते थे ! हमारे मकान क े सामने वाले मकान में बाल भैया और ववष्र्ु िो भाई अपने पररवार क े साथ रहते थे ! उनक े छोटा लड़का छोदटया मेरा िोस्त था और बब्ब बड़ा था और बबली एक लड़की थी ! उसी क े बगल मे अवस्थी वकील का पररवार रहता था जजनका बड़ा लड़का मेरा िोस्त था आशु और वह तीन भाई एक बहन थे ! बाककलतन जजया कक अच्छी िोस्त थी ! थोड़ी ही िर गडगोले साहब अपने पररवार क े साथ रहते थे , िो लड्कीया और अक लड़का कवपल था ! उनकी बड़ी लड़की मीता और में एक ही साथ एक ही स्कल में साथ साथ गए थे ! मेरा स्कल का नाम था राष्िीय ववध्या पीठ , जजनक े वप्रजन्सपल गेंिा लाल नाहर जी थे ! घर से थोड़ी िरी पर घास बाजार में था ! मेरर एक बुआ भी थाऊररया बाजार रोड, पेलेस क े पीछे रहती थी , र् ु र्जी कोटफ में थे ! उनकी भी िो लड्कीया और एक लड़का था ! मैं आपको अपने बचपन में अपने पापा क े साथ रतलाम में कहाूँ कहाूँ घमने जाता था वह स्थान थे ! बड़बड़ हनमाूँजी जी का मींदिर , बत्रवेर्ी पानी की वावड़ी वही डब्बा बाींध कर मैं तैरना सीखा था पापा क े साथ , काल्का मता मींदिर और झाली तलाब ! नगरपासलका क े बगीचे में खेलना क ु श्ती लड़ना और कसरत करना यह रोज शाम का काम था ! एक हािसा सुनता हूँ आपको एक दिन में और राज क ु श्ती लड़ रहे थे ! और राज को जब मैंने धचत बोलने को कहाूँ तो वह नहीीं बोला में समझा की वह कोई और िाव की सोच रहा हैं ! मेनें भी आव न ताव िेखा और कर्र ज़ोर से एक वार उसे उठा कर पटक दिया ! इस वार उसक े मुूँह से कर्र क ु छ भी नही तनकाला तो में डर गया क्याीं बात है ! यह क ु छ भी नहीीं बोलता है ! जब आस पास क े लोगो ने िेखा तो िोड़ते , धचल्लाते हुये आये अरे यह तो बहोश हो गया है लगता है ! लोगो ने उसक े मुूँह पर पानी का तछड़काव चाल कर दिया यह सब िेख कर मैं और मेरें साथ क े सभी िोस्त बगीचे से भाग गये ! िसरे दिन मालम पड़ा की राज का हाथ टट गया था और उसे 30 दिनों का प्लास्टर डाक्टर ने लगा दिया था ! रतलाम को मैंने बचपन में कई वार परा पैिल घमा होगा ! मेरीीं आित थी कक में करीब करीब रोज ही स्कल से भाग जाता था ! और मेरीीं माूँ जजया बहुत ज्यािा परेशान रहती थी मेरे इस कारर् ! अींटी खेलना , होली क े सलये लकड़ी चुराना और जन्म अष्टमी को िदह हींडी र्ोड़ना यह सब मैंने बचपन से ही शुरू कर दिया था , और आज भी यह सब शोक रखता हूँ ! सामने वाले बाल भैया जी कमतनस्ट पाटी क े नेता थे ! बचपन से ही नारे लगाने का शौक वहीीं से शुरू हो गया था ! और आज भी राजनीतत मैं रुधच रखता हूँ ! मेरें परे रतलाम में लाइट भी मेरें बचपन में आई थी और रतलाम छोड़ने से पहले पहले हमारे घर भी लाइट आ गई थी ! कमला एवीं उनकी माताजी जी हमारे महोल्ले क े एक पररवार में थे !
  3. पानी क े सलये ससर्फ क ु आ एवीं हैंड पम्प का ही प्रावधान नगरपासलका से था ! थोड़ा पानी क ीं धो पर कावड़ से भी मागवा सलया जाता ! और कभी कभी चमड़े कक मश्क़ वाले से भी पानी खरीिा जाता था ! कर्र भी क ु छ पानी लेने रोज मेरीीं जजया माूँ गली क े बहार एक हैंड पम्प से पानी लेने जाना ही पड़ता था ! शाम होते ही लेम्प और लालटेन तैयार रखना पड़ता था ! घासलेट का तेल लेने भी कभी कभी लाइन में खड़े होते थे ! सारे महुल्ले वालों क े बीच तीन लेदिन ही थी और वहाूँ भी लाइन लगाना पड़ता था ! गसमफयों में घर क े िरवाजे खोल कर या गेलरी में बबस्तर लगता था , या कमला जी कक छत पर हम लोगो का बबस्तर लगता था ! बचपन से मालवा का मौसम और गेहीं कक तारीर् सुनी और िेखी थी ! रोज शाम को रतलाम का सेव बेचने वाला ठेला आ जाता था और हम भी 5 या 10 पैसो का सेव अक्सर लेते थे और खाने क े साथ खाते थे ! और वही आित आज क े दिन भी बनी हुई है ! मुझे खाने क े साथ रतलामी सेव कक या कोई भी नमकीन अवशय चादहये ! बचपन में कभी हमें अपने पररवार और पड़ोसी क े पररवार में कोई भी र्कफ ही नजर नहीीं आया था ! अग्रवाल भाई साहब और बहन जी अशोक हरीश एवीं साधना हम सब एक साथ बड़े हुये ! भाई साहब भी रेल्वे में डी एस ऑकर्स में कायफ करते थे ! उनक े हर पररवार वालों को भी हम मामा बुआ से ही पुकारते थे ! उनका परा पररवार धचतोड़ / मलहारगढ़ में ही बसा था ! आज करीब करीब 60 सालों से ऊपर का समय तनकल गया परींतु आज भी उनक े परे पररवार को हम अपना ही पररवार मानते हैं ! अक्सर जजया भाई साहब याने अशोक क े पापा कक मित लेती थी ! अगर मैं स्कल से भाग कर आया और उनक े हत्ते चड़ गया तो जम क े मेरीीं ठु काई करते थे ! पढ़ाई में करीब करीब सभी ठीक ठाक थे मुझे छोड़ कर ! परींतु अशोक भाई साहब सबसे बड़े थे और मेरे दहसाब से पड़ने मे भी तेज थे ! मुझे यह भी मालम है की हर साल का अनाज भी भाई साहब हमारे सलये भी खरीि िेते थे ! मेरें कक्षा तीन तक क े खास िोस्त थे दिनेश अग्रवाल , सुरेश जमकलाल ! और महोल्ले क े सारे िोस्तों का तो मैं आपको ऊपर पररचय करा चुका हूँ ! मुझे एक और चीज़ याि है कक पापा जब भी नाई कक िुकान पर बाल कदटींग ले जाते थे ! तो मुझे उसक े उस्त्रे और क ै ची से बड़ा डर लगता था ! एक नाई का गवफड़ा और िुकान तो हमारे घर क े नीचे ही थी ! बाि में पापा ने हमारे डर क े कारर् धनमींडी क े पास ले जाने लगे ! परींतु वह नाई तो पहले वाले से भी ज्यािा डरावना दिखता था ! और जब तक वह मेरीीं कदटींग करता था मैं नीचे िेख कर ससर्फ रोता रहता था ! िोस्तों कब जजन्िगी क े पहले िस साल तनकल गये आज भी मैं उस बचपन को अपना अनुभव , अपनी जजन्िगी कक सुहावनी शुरुआत मानता हूँ ! और आने वाली हर पीढ़ी को बस एक छोटा सा सींिेश िे सकता हूँ ! कक हर क्षर् का मजा लो ! क ु िरत को धन्यबाि िो जजसने अपनी गोिी में आपको जन्म दिया हैं ! ससर्फ कमफ करो और उस मासलक परमात्मा क ु िरत पर परा जीवन छोड़ िो ! मैं आपको 100 % गारींटी िेता हूँ उसक े ससवा हम क ु छ भी नहीीं कर सकते है ! वीरेंद्र श्रीवास्तव
  4. 6/8/2021
Publicidad