1. समाज
अक्सर मेरे एक ममत्र श्री चन्द्रा जी से हमेशा मेरा बड़ा खुला और विस्तार से कई िार समाज
क
े विषय पर चचाा / बाते होती है , और मैंने हर िार यह महसूस ककया हैं की िह आज क
े
इस सामाजजक ढााँचे से िड़े विचमलत रहते हैं ! उनका एक प्रश्न हमेशा रहता हैं की इस
समाज को अगर सुधारना हैं , तो इसकी जड़ में जाना होगा !
मुझे आज लगा पहले मैं यह तो समझू आखखर समाज क्या हैं और उसकी जड़ कहााँ हैं ? यह
मेरे मलये अपने आप में भी एक बहुत बड़ा प्रश्न हैं !
समाज की पररभाषा हर व्यकती को मालूम हैं ! हर व्यकती अगर खुश हैं तो अपने अपने
समाज से और दुखी भी है तो अपने अंपने समाज से !
चमलये आज हम अपने आज क
े इस समाज को मेरे चश्मे से , मेरी ननघायों से देखते हैं !
क
ु दरत क
े मलये हम सब एक सामाजजक प्राणी हैं ! क्यों की हम सब एक समाज में रहते हैं !
हम जब क
ु दरत की ननघायों में एक सामाजजक प्राणी हैं तो क
ु दरत ककया है ? क
ु दरत की
क्या कोई सीमा हैं ? कोई देश है ? कोई भाषा हैं ? क
ु दरत में धरती,पानी,िायु ,आकाश और
अजनन क
े मलये क्या कोई अलग अलग कानून हैं ? नहीं
मेरे ख्याल से मेरी ननघायों में क
ु दरत का मतलब पूरी कायनात , ब्रमाण्ड , युननिसा !
मेरे ख्याल से जब मैं और आप जुडते चले जायेंगें तो अिश्य ही िह एक समाज ननमााण हह
कहलायेगा क
ु दरत की ननघायों में पूरी कायनात ही एक पररिार,एक समाज हैं !
हम सब क
ु दरत की ननघायों मेँ मसर्
ा और मसर्
ा एक सामाजजक प्राणी ही हैं !
जब क
ु दरत क
े मलये कोई भी सीमा नहीं हैं , तो आखखर यह सीमा मसर्
ा हमारे द्िारा ही
बनाई गयी हैं क्या ?
हमने इसे आज इसे महाखण्डो, दीपों, देशो, राज्यों, शहर,गााँि और तो और जाती, भाषा,
पहरािे, धमा ,काम, ख़ान वपन, विश्िास , अंध विश्िास , उंच नीच,गरीब अमीर, पढे मलखें ,
अनपढ़ , ताकतिर कमजोर , नौकरी मेँ होदों आहद आहद में इस समाज को बााँट हदया हैं !
मेरे जन्द्म से पहले कई सहदयों ,बषों पूबा इस जानतिादी प्रथा का चलन इस समाज मेँ था यह
मेरा पक्का दािा हैं !
2. कब से आई ? कौन लाया ? क्यों लाया ? ककसका र्ायदा ककसका नुकसान ? तो आप खुद
को तय करना होगा की इसकी खोज में आपको िैद काल में भी ममलेगी !
डडजजटल माधयम से मैंने आज समझा और देखा कक ! 2000 िषा पूिा ही यह प्रथा भारत मेँ
शुरू हो चुकी थी ! 19बीं शताब्दी मेँ भारत मे जाती िादी प्रथा का स्िरूप क
ु छ इस तरह
बताया जाता था ! हहन्द्दू = संगीतकर ,मुसलमान =व्यापारी, अरब=सैननक ,सीख=मुखखया !
ईसाई ममसनररयों क
े अनुसार सन 1837 मे भारत मेँ 72 जानत क
े नमूने थे ! उन्द्होने हहन्द्दू
, मुसलमान , सीख , अरब सबको अलग अलग जाती का बताया हैं !
यह भी ककसी को लगता हैं कक 19बीं शताब्दी की शुरुआत मेँ मनुस्मृनत और ऋनिेद जैसे
धमा ग्रंथो की मदद से ककया गया था !
जाती प्रथा का प्रचलन क
ै िल भारत मेँ नहीं बजकक ममस्श्र , यूरोप आहद मेँ भी अपेक्षाक
ृ त
क्षीण रूप मे विदयमान थी। 'जानत' शब्द का उदभि पुतागाली भाषा से हुआ है। पी ए
सोरोककन ने अपनी पुस्तक 'सोशल मोबबमलटी' मे मलखा है, " मानि जानत क
े इनतहास मे बबना
ककसी स्तर विभाजन क
े , उसने रह्ने िाले सदस्यो की समानता एक ककपना मात्र है।" तथा
सी एच र्
ू ले का कथन है "िगा - विभेद िशानुगत होता है, तो उसे जानत कह्ते है "। इस
विषय मे अनेक मत स्िीकार ककये गये है।
राजनैनतक मत क
े अनुसार जानत प्रथा उच्च ब्राह्मणो की चाल थी।
व्यािसानयक मत क
े अनुसार यह पाररिारीक व्यिसाय से उत्त्पन हुई है !
साम्प्प्रादानयक मत क
े अनुसार जब विमभन्द्न सम्प्प्रदाय संगहित होकर अपनी अलग जाती का
ननमााण करते हैं, तो इसे जानत प्रथा की उत्पवि कहते हैं। परम्प्परागत मत क
े अनुसार यह
प्रथा भगिान द्िारा विमभन्द्न कायों की दृजटट से ननमेत की गए है।
क
ु छ लोगो का यह सोचना है कक मनु ने "मनु स्मृनत" में मानि समाज को चार श्रेखणयों में
विभाजजत ककया है, ब्राहमण , क्षबत्रय , िेश्य और शुर।
विकास मसद्धान्द्त क
े अनुसार सामाजजक विकास क
े कारण जानत प्रथा की उत्पवि हुई है।
सभ्यता क
े लंबे और मन्द्द विकास क
े कारण जानत प्रथा मे क
ु छ दोष भी आते गये। इसका
सबसे बङा दोष छ
ु आछ
ु त की भािना है।
परन्द्तु आज यह मशक्षा क
े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
3. जानत प्रथा की क
ु छ विशेषताएाँ भी हैं। श्रम विभाजन पर आधाररत होने क
े कारण इससे श्रममक
िगा अपने काया मे ननपुण होता गया क्योकक श्रम विभाजन का यह कम पीहढयो तक चलता
रहा था। इससे भविटय - चुनाि की समस्या और बेरोजगारी की समस्या भी दूर हो गए।
जबकक जानत प्रथा मुख्यत: एक बुराई ही है। इसक
े कारण संकीणाना की भािना का प्रसार
होता है और सामाजजक , राजटिय एकता मे बाधा आती है ! जो कक राजटिय और आर्थाक
प्रगनत क
े मलए आिश्यक है। बङे पेमाने क
े उद्योग श्रममको क
े अभाि मे लाभ प्राप्त नही कर
सकते।
जानत प्रथा में बेटा वपता क
े व्यिसाय को अपनाता है , इस व्यिस्था मेँ पेशे क
े पररितान की
सन्द्भािना बहुत कम हो जाती है। जानत प्रथा से उच्च श्रेणी क
े मनुटयों में शारीररक श्रम को
ननम्प्न समझने की भािना आ गई है। विमशटटता की भािना उत्पन्द्न होने क
े कारण प्रगनत
कया धीमी गनत से होता है। यह खुशी की बात है कक इस व्यिस्था की जङे अब ढीली होती
जा रही है।
िषो से शोवषत अनुसूर्चत जानत क
े लोगो क
े उत्थान क
े मलए सरकार उच्च स्तर पर काया कर
रही है। संविधान द्िारा उनको विशेष अर्धकार हदए जा रहे है। उन्द्हे सरकारी पदो और
शैक्षखणक सनस्थानो मेँ प्रिेश प्राजप्त मेँ प्राथममकता और छ
ु ट दी जाती है।
आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है क्योकक इसक
े कारण
समाज मे असमानता , एकार्धकार , विद्िेष आदी दोष उत्पन्द्न हो जाते है। िगाहीन एिं
गनतहीन समाज की रचना क
े मलए अन्द्तजाातीय भोज और वििाह होने चाहहए। इससे भारत
की उन्द्ननत होगी और भारत ही समतािादी राटि क
े रूप मेँ उभर सक
े गा।
यह सब तो मैंने आपको डडजजटल इन्द्र्ॉमेशन कक मदद से हूबहू अिगत कराया है ! मुझे जब
यह समज़ नहीं आता है कक मेरा मामलक कौन है ? मेरा इस जीिन का गोल मकसद क्या हैं
? मुझे क
ु दरत ने जीिन भर जीने क
े मलये 100 % मुफ्त हिा, पानी
जमीन आकाश हदया हैं ! उस मामलक / क
ु दरत का हमे शुक्र गुजार होना चाहहये !
मैंने देखा पढ़ा सुना हैं कक हर इन्द्सान अपने आप मेँ युनीक हैं ! पूरे ब्रांहांड में हर इन्द्सान क
े
अगूिे कक रेखाएाँ भी एक जैसी नहीं है ! क
ु दरत ने हर इन्द्सान को अपनी तरह से तराशा हैं !
और तो और जंगली प्राणी जजरार् , शेर क
े बदन कक लाइने भी एक जैसी नहीं हैं !
आपक
े विचार अलग हो सकती हैं , आपकी परिररश अलग हो सकती हैं , आपकी कद काटी
बड़ी छोटी हो सकती है , आपका खान पान, भाषा ,पहराि , होदा ऊपर नीचे हो सकता हैं !
आपको और आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है ! परन्द्तु
मशक्षा क
े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
4. अगर अपने अच्छी मशक्षा ली हैं तो आपका कताव्य बनता है कक समाज में दूसरों को भी
मशक्षा प्रधान कराएाँ !
छ
ु आ छ
ू त , अंधविश्िास , को दूर करे ! दूसरों कक भलाई करे , दया, दान , मदद करे
जजतना आप खुश रहना चाहते हैं उतना दूसरों को भी खुश रखना हमारा सबसे बड़ा धमा हैं !
दया / दान / सेिा सबसे बड़े धमा हैं ! हर इन्द्सान कक इंसाननयता ही उसकी जाती हैं !
आपकी दया कक आिश्यकता हैं उन हजारो लाखों मुसीबत मेँ उलझे लोगो को हैं जो कहरा रहे
हैं हमे उनकी मदद मेँ बबना टाइम गिायें लग जाना चाहहये !
क
ु दरत जजंहदगी भर हर इन्द्सान को एक समान जज़ंदगी जीने क
े मलये मुफ्त में हर जीिन
जरूरी र्चजे मुफ्त प्रधान करती हैं !
जीिन भौनतकबाद चीजों क
े मलये नहीं है , खाली हाथ इन्द्सान आता हैं और क
ु दरत उसे क
ु छ
भी नहीं ले जाने देगी !
जज़ंदगी जीने का हक क
ु दरत ने हदया हैं तो हम कौन होते हैं अपने समाज को बाटने िाले ?
सबको एक समान जीने का हक क
ु दरत ने हदया हैं ! आप उसमे पूरा सहयोग करें और मानि
धमा एिं इंसाननयता से बड़कर समाज मेँ क
ु छ नहीं हैं !
दया धमा का मूल हैं ! पाप मूल अमभमान !
तुलसी दया ना छोडड़ए जब लगी घट प्राण !!
धन्द्यबाद
बीरेंर श्रीिास्ति / 16/09/2021