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समाज
अक्सर मेरे एक ममत्र श्री चन्द्रा जी से हमेशा मेरा बड़ा खुला और विस्तार से कई िार समाज
क
े विषय पर चचाा / बाते होती है , और मैंने हर िार यह महसूस ककया हैं की िह आज क
े
इस सामाजजक ढााँचे से िड़े विचमलत रहते हैं ! उनका एक प्रश्न हमेशा रहता हैं की इस
समाज को अगर सुधारना हैं , तो इसकी जड़ में जाना होगा !
मुझे आज लगा पहले मैं यह तो समझू आखखर समाज क्या हैं और उसकी जड़ कहााँ हैं ? यह
मेरे मलये अपने आप में भी एक बहुत बड़ा प्रश्न हैं !
समाज की पररभाषा हर व्यकती को मालूम हैं ! हर व्यकती अगर खुश हैं तो अपने अपने
समाज से और दुखी भी है तो अपने अंपने समाज से !
चमलये आज हम अपने आज क
े इस समाज को मेरे चश्मे से , मेरी ननघायों से देखते हैं !
क
ु दरत क
े मलये हम सब एक सामाजजक प्राणी हैं ! क्यों की हम सब एक समाज में रहते हैं !
हम जब क
ु दरत की ननघायों में एक सामाजजक प्राणी हैं तो क
ु दरत ककया है ? क
ु दरत की
क्या कोई सीमा हैं ? कोई देश है ? कोई भाषा हैं ? क
ु दरत में धरती,पानी,िायु ,आकाश और
अजनन क
े मलये क्या कोई अलग अलग कानून हैं ? नहीं
मेरे ख्याल से मेरी ननघायों में क
ु दरत का मतलब पूरी कायनात , ब्रमाण्ड , युननिसा !
मेरे ख्याल से जब मैं और आप जुडते चले जायेंगें तो अिश्य ही िह एक समाज ननमााण हह
कहलायेगा क
ु दरत की ननघायों में पूरी कायनात ही एक पररिार,एक समाज हैं !
हम सब क
ु दरत की ननघायों मेँ मसर्
ा और मसर्
ा एक सामाजजक प्राणी ही हैं !
जब क
ु दरत क
े मलये कोई भी सीमा नहीं हैं , तो आखखर यह सीमा मसर्
ा हमारे द्िारा ही
बनाई गयी हैं क्या ?
हमने इसे आज इसे महाखण्डो, दीपों, देशो, राज्यों, शहर,गााँि और तो और जाती, भाषा,
पहरािे, धमा ,काम, ख़ान वपन, विश्िास , अंध विश्िास , उंच नीच,गरीब अमीर, पढे मलखें ,
अनपढ़ , ताकतिर कमजोर , नौकरी मेँ होदों आहद आहद में इस समाज को बााँट हदया हैं !
मेरे जन्द्म से पहले कई सहदयों ,बषों पूबा इस जानतिादी प्रथा का चलन इस समाज मेँ था यह
मेरा पक्का दािा हैं !
कब से आई ? कौन लाया ? क्यों लाया ? ककसका र्ायदा ककसका नुकसान ? तो आप खुद
को तय करना होगा की इसकी खोज में आपको िैद काल में भी ममलेगी !
डडजजटल माधयम से मैंने आज समझा और देखा कक ! 2000 िषा पूिा ही यह प्रथा भारत मेँ
शुरू हो चुकी थी ! 19बीं शताब्दी मेँ भारत मे जाती िादी प्रथा का स्िरूप क
ु छ इस तरह
बताया जाता था ! हहन्द्दू = संगीतकर ,मुसलमान =व्यापारी, अरब=सैननक ,सीख=मुखखया !
ईसाई ममसनररयों क
े अनुसार सन 1837 मे भारत मेँ 72 जानत क
े नमूने थे ! उन्द्होने हहन्द्दू
, मुसलमान , सीख , अरब सबको अलग अलग जाती का बताया हैं !
यह भी ककसी को लगता हैं कक 19बीं शताब्दी की शुरुआत मेँ मनुस्मृनत और ऋनिेद जैसे
धमा ग्रंथो की मदद से ककया गया था !
जाती प्रथा का प्रचलन क
ै िल भारत मेँ नहीं बजकक ममस्श्र , यूरोप आहद मेँ भी अपेक्षाक
ृ त
क्षीण रूप मे विदयमान थी। 'जानत' शब्द का उदभि पुतागाली भाषा से हुआ है। पी ए
सोरोककन ने अपनी पुस्तक 'सोशल मोबबमलटी' मे मलखा है, " मानि जानत क
े इनतहास मे बबना
ककसी स्तर विभाजन क
े , उसने रह्ने िाले सदस्यो की समानता एक ककपना मात्र है।" तथा
सी एच र्
ू ले का कथन है "िगा - विभेद िशानुगत होता है, तो उसे जानत कह्ते है "। इस
विषय मे अनेक मत स्िीकार ककये गये है।
राजनैनतक मत क
े अनुसार जानत प्रथा उच्च ब्राह्मणो की चाल थी।
व्यािसानयक मत क
े अनुसार यह पाररिारीक व्यिसाय से उत्त्पन हुई है !
साम्प्प्रादानयक मत क
े अनुसार जब विमभन्द्न सम्प्प्रदाय संगहित होकर अपनी अलग जाती का
ननमााण करते हैं, तो इसे जानत प्रथा की उत्पवि कहते हैं। परम्प्परागत मत क
े अनुसार यह
प्रथा भगिान द्िारा विमभन्द्न कायों की दृजटट से ननमेत की गए है।
क
ु छ लोगो का यह सोचना है कक मनु ने "मनु स्मृनत" में मानि समाज को चार श्रेखणयों में
विभाजजत ककया है, ब्राहमण , क्षबत्रय , िेश्य और शुर।
विकास मसद्धान्द्त क
े अनुसार सामाजजक विकास क
े कारण जानत प्रथा की उत्पवि हुई है।
सभ्यता क
े लंबे और मन्द्द विकास क
े कारण जानत प्रथा मे क
ु छ दोष भी आते गये। इसका
सबसे बङा दोष छ
ु आछ
ु त की भािना है।
परन्द्तु आज यह मशक्षा क
े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
जानत प्रथा की क
ु छ विशेषताएाँ भी हैं। श्रम विभाजन पर आधाररत होने क
े कारण इससे श्रममक
िगा अपने काया मे ननपुण होता गया क्योकक श्रम विभाजन का यह कम पीहढयो तक चलता
रहा था। इससे भविटय - चुनाि की समस्या और बेरोजगारी की समस्या भी दूर हो गए।
जबकक जानत प्रथा मुख्यत: एक बुराई ही है। इसक
े कारण संकीणाना की भािना का प्रसार
होता है और सामाजजक , राजटिय एकता मे बाधा आती है ! जो कक राजटिय और आर्थाक
प्रगनत क
े मलए आिश्यक है। बङे पेमाने क
े उद्योग श्रममको क
े अभाि मे लाभ प्राप्त नही कर
सकते।
जानत प्रथा में बेटा वपता क
े व्यिसाय को अपनाता है , इस व्यिस्था मेँ पेशे क
े पररितान की
सन्द्भािना बहुत कम हो जाती है। जानत प्रथा से उच्च श्रेणी क
े मनुटयों में शारीररक श्रम को
ननम्प्न समझने की भािना आ गई है। विमशटटता की भािना उत्पन्द्न होने क
े कारण प्रगनत
कया धीमी गनत से होता है। यह खुशी की बात है कक इस व्यिस्था की जङे अब ढीली होती
जा रही है।
िषो से शोवषत अनुसूर्चत जानत क
े लोगो क
े उत्थान क
े मलए सरकार उच्च स्तर पर काया कर
रही है। संविधान द्िारा उनको विशेष अर्धकार हदए जा रहे है। उन्द्हे सरकारी पदो और
शैक्षखणक सनस्थानो मेँ प्रिेश प्राजप्त मेँ प्राथममकता और छ
ु ट दी जाती है।
आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है क्योकक इसक
े कारण
समाज मे असमानता , एकार्धकार , विद्िेष आदी दोष उत्पन्द्न हो जाते है। िगाहीन एिं
गनतहीन समाज की रचना क
े मलए अन्द्तजाातीय भोज और वििाह होने चाहहए। इससे भारत
की उन्द्ननत होगी और भारत ही समतािादी राटि क
े रूप मेँ उभर सक
े गा।
यह सब तो मैंने आपको डडजजटल इन्द्र्ॉमेशन कक मदद से हूबहू अिगत कराया है ! मुझे जब
यह समज़ नहीं आता है कक मेरा मामलक कौन है ? मेरा इस जीिन का गोल मकसद क्या हैं
? मुझे क
ु दरत ने जीिन भर जीने क
े मलये 100 % मुफ्त हिा, पानी
जमीन आकाश हदया हैं ! उस मामलक / क
ु दरत का हमे शुक्र गुजार होना चाहहये !
मैंने देखा पढ़ा सुना हैं कक हर इन्द्सान अपने आप मेँ युनीक हैं ! पूरे ब्रांहांड में हर इन्द्सान क
े
अगूिे कक रेखाएाँ भी एक जैसी नहीं है ! क
ु दरत ने हर इन्द्सान को अपनी तरह से तराशा हैं !
और तो और जंगली प्राणी जजरार् , शेर क
े बदन कक लाइने भी एक जैसी नहीं हैं !
आपक
े विचार अलग हो सकती हैं , आपकी परिररश अलग हो सकती हैं , आपकी कद काटी
बड़ी छोटी हो सकती है , आपका खान पान, भाषा ,पहराि , होदा ऊपर नीचे हो सकता हैं !
आपको और आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है ! परन्द्तु
मशक्षा क
े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
अगर अपने अच्छी मशक्षा ली हैं तो आपका कताव्य बनता है कक समाज में दूसरों को भी
मशक्षा प्रधान कराएाँ !
छ
ु आ छ
ू त , अंधविश्िास , को दूर करे ! दूसरों कक भलाई करे , दया, दान , मदद करे
जजतना आप खुश रहना चाहते हैं उतना दूसरों को भी खुश रखना हमारा सबसे बड़ा धमा हैं !
दया / दान / सेिा सबसे बड़े धमा हैं ! हर इन्द्सान कक इंसाननयता ही उसकी जाती हैं !
आपकी दया कक आिश्यकता हैं उन हजारो लाखों मुसीबत मेँ उलझे लोगो को हैं जो कहरा रहे
हैं हमे उनकी मदद मेँ बबना टाइम गिायें लग जाना चाहहये !
क
ु दरत जजंहदगी भर हर इन्द्सान को एक समान जज़ंदगी जीने क
े मलये मुफ्त में हर जीिन
जरूरी र्चजे मुफ्त प्रधान करती हैं !
जीिन भौनतकबाद चीजों क
े मलये नहीं है , खाली हाथ इन्द्सान आता हैं और क
ु दरत उसे क
ु छ
भी नहीं ले जाने देगी !
जज़ंदगी जीने का हक क
ु दरत ने हदया हैं तो हम कौन होते हैं अपने समाज को बाटने िाले ?
सबको एक समान जीने का हक क
ु दरत ने हदया हैं ! आप उसमे पूरा सहयोग करें और मानि
धमा एिं इंसाननयता से बड़कर समाज मेँ क
ु छ नहीं हैं !
दया धमा का मूल हैं ! पाप मूल अमभमान !
तुलसी दया ना छोडड़ए जब लगी घट प्राण !!
धन्द्यबाद
बीरेंर श्रीिास्ति / 16/09/2021

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2011 Census of India - complete information.pptx
 

समाज

  • 1. समाज अक्सर मेरे एक ममत्र श्री चन्द्रा जी से हमेशा मेरा बड़ा खुला और विस्तार से कई िार समाज क े विषय पर चचाा / बाते होती है , और मैंने हर िार यह महसूस ककया हैं की िह आज क े इस सामाजजक ढााँचे से िड़े विचमलत रहते हैं ! उनका एक प्रश्न हमेशा रहता हैं की इस समाज को अगर सुधारना हैं , तो इसकी जड़ में जाना होगा ! मुझे आज लगा पहले मैं यह तो समझू आखखर समाज क्या हैं और उसकी जड़ कहााँ हैं ? यह मेरे मलये अपने आप में भी एक बहुत बड़ा प्रश्न हैं ! समाज की पररभाषा हर व्यकती को मालूम हैं ! हर व्यकती अगर खुश हैं तो अपने अपने समाज से और दुखी भी है तो अपने अंपने समाज से ! चमलये आज हम अपने आज क े इस समाज को मेरे चश्मे से , मेरी ननघायों से देखते हैं ! क ु दरत क े मलये हम सब एक सामाजजक प्राणी हैं ! क्यों की हम सब एक समाज में रहते हैं ! हम जब क ु दरत की ननघायों में एक सामाजजक प्राणी हैं तो क ु दरत ककया है ? क ु दरत की क्या कोई सीमा हैं ? कोई देश है ? कोई भाषा हैं ? क ु दरत में धरती,पानी,िायु ,आकाश और अजनन क े मलये क्या कोई अलग अलग कानून हैं ? नहीं मेरे ख्याल से मेरी ननघायों में क ु दरत का मतलब पूरी कायनात , ब्रमाण्ड , युननिसा ! मेरे ख्याल से जब मैं और आप जुडते चले जायेंगें तो अिश्य ही िह एक समाज ननमााण हह कहलायेगा क ु दरत की ननघायों में पूरी कायनात ही एक पररिार,एक समाज हैं ! हम सब क ु दरत की ननघायों मेँ मसर् ा और मसर् ा एक सामाजजक प्राणी ही हैं ! जब क ु दरत क े मलये कोई भी सीमा नहीं हैं , तो आखखर यह सीमा मसर् ा हमारे द्िारा ही बनाई गयी हैं क्या ? हमने इसे आज इसे महाखण्डो, दीपों, देशो, राज्यों, शहर,गााँि और तो और जाती, भाषा, पहरािे, धमा ,काम, ख़ान वपन, विश्िास , अंध विश्िास , उंच नीच,गरीब अमीर, पढे मलखें , अनपढ़ , ताकतिर कमजोर , नौकरी मेँ होदों आहद आहद में इस समाज को बााँट हदया हैं ! मेरे जन्द्म से पहले कई सहदयों ,बषों पूबा इस जानतिादी प्रथा का चलन इस समाज मेँ था यह मेरा पक्का दािा हैं !
  • 2. कब से आई ? कौन लाया ? क्यों लाया ? ककसका र्ायदा ककसका नुकसान ? तो आप खुद को तय करना होगा की इसकी खोज में आपको िैद काल में भी ममलेगी ! डडजजटल माधयम से मैंने आज समझा और देखा कक ! 2000 िषा पूिा ही यह प्रथा भारत मेँ शुरू हो चुकी थी ! 19बीं शताब्दी मेँ भारत मे जाती िादी प्रथा का स्िरूप क ु छ इस तरह बताया जाता था ! हहन्द्दू = संगीतकर ,मुसलमान =व्यापारी, अरब=सैननक ,सीख=मुखखया ! ईसाई ममसनररयों क े अनुसार सन 1837 मे भारत मेँ 72 जानत क े नमूने थे ! उन्द्होने हहन्द्दू , मुसलमान , सीख , अरब सबको अलग अलग जाती का बताया हैं ! यह भी ककसी को लगता हैं कक 19बीं शताब्दी की शुरुआत मेँ मनुस्मृनत और ऋनिेद जैसे धमा ग्रंथो की मदद से ककया गया था ! जाती प्रथा का प्रचलन क ै िल भारत मेँ नहीं बजकक ममस्श्र , यूरोप आहद मेँ भी अपेक्षाक ृ त क्षीण रूप मे विदयमान थी। 'जानत' शब्द का उदभि पुतागाली भाषा से हुआ है। पी ए सोरोककन ने अपनी पुस्तक 'सोशल मोबबमलटी' मे मलखा है, " मानि जानत क े इनतहास मे बबना ककसी स्तर विभाजन क े , उसने रह्ने िाले सदस्यो की समानता एक ककपना मात्र है।" तथा सी एच र् ू ले का कथन है "िगा - विभेद िशानुगत होता है, तो उसे जानत कह्ते है "। इस विषय मे अनेक मत स्िीकार ककये गये है। राजनैनतक मत क े अनुसार जानत प्रथा उच्च ब्राह्मणो की चाल थी। व्यािसानयक मत क े अनुसार यह पाररिारीक व्यिसाय से उत्त्पन हुई है ! साम्प्प्रादानयक मत क े अनुसार जब विमभन्द्न सम्प्प्रदाय संगहित होकर अपनी अलग जाती का ननमााण करते हैं, तो इसे जानत प्रथा की उत्पवि कहते हैं। परम्प्परागत मत क े अनुसार यह प्रथा भगिान द्िारा विमभन्द्न कायों की दृजटट से ननमेत की गए है। क ु छ लोगो का यह सोचना है कक मनु ने "मनु स्मृनत" में मानि समाज को चार श्रेखणयों में विभाजजत ककया है, ब्राहमण , क्षबत्रय , िेश्य और शुर। विकास मसद्धान्द्त क े अनुसार सामाजजक विकास क े कारण जानत प्रथा की उत्पवि हुई है। सभ्यता क े लंबे और मन्द्द विकास क े कारण जानत प्रथा मे क ु छ दोष भी आते गये। इसका सबसे बङा दोष छ ु आछ ु त की भािना है। परन्द्तु आज यह मशक्षा क े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
  • 3. जानत प्रथा की क ु छ विशेषताएाँ भी हैं। श्रम विभाजन पर आधाररत होने क े कारण इससे श्रममक िगा अपने काया मे ननपुण होता गया क्योकक श्रम विभाजन का यह कम पीहढयो तक चलता रहा था। इससे भविटय - चुनाि की समस्या और बेरोजगारी की समस्या भी दूर हो गए। जबकक जानत प्रथा मुख्यत: एक बुराई ही है। इसक े कारण संकीणाना की भािना का प्रसार होता है और सामाजजक , राजटिय एकता मे बाधा आती है ! जो कक राजटिय और आर्थाक प्रगनत क े मलए आिश्यक है। बङे पेमाने क े उद्योग श्रममको क े अभाि मे लाभ प्राप्त नही कर सकते। जानत प्रथा में बेटा वपता क े व्यिसाय को अपनाता है , इस व्यिस्था मेँ पेशे क े पररितान की सन्द्भािना बहुत कम हो जाती है। जानत प्रथा से उच्च श्रेणी क े मनुटयों में शारीररक श्रम को ननम्प्न समझने की भािना आ गई है। विमशटटता की भािना उत्पन्द्न होने क े कारण प्रगनत कया धीमी गनत से होता है। यह खुशी की बात है कक इस व्यिस्था की जङे अब ढीली होती जा रही है। िषो से शोवषत अनुसूर्चत जानत क े लोगो क े उत्थान क े मलए सरकार उच्च स्तर पर काया कर रही है। संविधान द्िारा उनको विशेष अर्धकार हदए जा रहे है। उन्द्हे सरकारी पदो और शैक्षखणक सनस्थानो मेँ प्रिेश प्राजप्त मेँ प्राथममकता और छ ु ट दी जाती है। आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है क्योकक इसक े कारण समाज मे असमानता , एकार्धकार , विद्िेष आदी दोष उत्पन्द्न हो जाते है। िगाहीन एिं गनतहीन समाज की रचना क े मलए अन्द्तजाातीय भोज और वििाह होने चाहहए। इससे भारत की उन्द्ननत होगी और भारत ही समतािादी राटि क े रूप मेँ उभर सक े गा। यह सब तो मैंने आपको डडजजटल इन्द्र्ॉमेशन कक मदद से हूबहू अिगत कराया है ! मुझे जब यह समज़ नहीं आता है कक मेरा मामलक कौन है ? मेरा इस जीिन का गोल मकसद क्या हैं ? मुझे क ु दरत ने जीिन भर जीने क े मलये 100 % मुफ्त हिा, पानी जमीन आकाश हदया हैं ! उस मामलक / क ु दरत का हमे शुक्र गुजार होना चाहहये ! मैंने देखा पढ़ा सुना हैं कक हर इन्द्सान अपने आप मेँ युनीक हैं ! पूरे ब्रांहांड में हर इन्द्सान क े अगूिे कक रेखाएाँ भी एक जैसी नहीं है ! क ु दरत ने हर इन्द्सान को अपनी तरह से तराशा हैं ! और तो और जंगली प्राणी जजरार् , शेर क े बदन कक लाइने भी एक जैसी नहीं हैं ! आपक े विचार अलग हो सकती हैं , आपकी परिररश अलग हो सकती हैं , आपकी कद काटी बड़ी छोटी हो सकती है , आपका खान पान, भाषा ,पहराि , होदा ऊपर नीचे हो सकता हैं ! आपको और आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है ! परन्द्तु मशक्षा क े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
  • 4. अगर अपने अच्छी मशक्षा ली हैं तो आपका कताव्य बनता है कक समाज में दूसरों को भी मशक्षा प्रधान कराएाँ ! छ ु आ छ ू त , अंधविश्िास , को दूर करे ! दूसरों कक भलाई करे , दया, दान , मदद करे जजतना आप खुश रहना चाहते हैं उतना दूसरों को भी खुश रखना हमारा सबसे बड़ा धमा हैं ! दया / दान / सेिा सबसे बड़े धमा हैं ! हर इन्द्सान कक इंसाननयता ही उसकी जाती हैं ! आपकी दया कक आिश्यकता हैं उन हजारो लाखों मुसीबत मेँ उलझे लोगो को हैं जो कहरा रहे हैं हमे उनकी मदद मेँ बबना टाइम गिायें लग जाना चाहहये ! क ु दरत जजंहदगी भर हर इन्द्सान को एक समान जज़ंदगी जीने क े मलये मुफ्त में हर जीिन जरूरी र्चजे मुफ्त प्रधान करती हैं ! जीिन भौनतकबाद चीजों क े मलये नहीं है , खाली हाथ इन्द्सान आता हैं और क ु दरत उसे क ु छ भी नहीं ले जाने देगी ! जज़ंदगी जीने का हक क ु दरत ने हदया हैं तो हम कौन होते हैं अपने समाज को बाटने िाले ? सबको एक समान जीने का हक क ु दरत ने हदया हैं ! आप उसमे पूरा सहयोग करें और मानि धमा एिं इंसाननयता से बड़कर समाज मेँ क ु छ नहीं हैं ! दया धमा का मूल हैं ! पाप मूल अमभमान ! तुलसी दया ना छोडड़ए जब लगी घट प्राण !! धन्द्यबाद बीरेंर श्रीिास्ति / 16/09/2021