पर्यावरण एवं सतत विकास || Paryawaran || Shanti shiksha || Akhil

Akhil
पर्यावरण एवं सतत् ववकयस
अखिल प्रतयप ससंह भदौररर्य
रोहहत गुप्तय
सवेश्वर कु मयर
जर्करन ससंह
हदलीप कु मयर
ववषर्- शयंतत सशक्षय एवं सतत् ववकयस
बी.टी.सी-2014 चतुर्ा सेमेस्टर
(डयइट, कयनपूर नगर)
प्रस्तयवनय
 सतत् ववकयस सयमयजजक-आर्र्ाक ववकयस की वह प्रक्रिर्य है जजसमें पृथ्वी की सहनशजतत के
अनुसयर ववकयस की बयत की जयती है |
 र्ह अवधयरणय 1960 के दशक में तक ववकससत हुई लोग औद्र्ोर्गकीकरण के पर्यावरण प्र
हयतनकयरक प्रभयवों से अवगत हुए | सतत ववकयस कय उद्भव प्रयकृ ततक संसयधनों की
समयजप्त तर्य उसके कयरण आर्र्ाक क्रिर्यओं तर्य उत्पयदन प्रणयली के धीमे होने र्य उनके
बंद होने के भर् से हुआ |
 र्ह अवधयरणय उत्पयदन-प्रणयसलर्ों प्र तनर्ंत्रण करने वयले कु छ लोगों द्वयरय प्रकृ तत के
बहुमूल्र् तर्य सससमत संसयधनों के लयलचपूणा दुरूपर्ोग कय पररणयम है सतत ववकयस
कोर्लय,तेल तर्य जल जैसे संसयधनों के दोहन क सलए उत्पयदन तकनीकों,औद्र्ोर्गक
प्रक्रिर्यओं तर्य ववकयस की र्यर्ोर्चत नीततर्ों के सम्बन्ध में दीर्ाकयलीन र्ोजनय प्रस्तुत
करतय है |
सतत् ववकयस कय अर्ा
 अर्थ- ‘सतत विकास’ अर्ाथत् Sustainable Development अंग्रेजी के दो शब्दों "Sustain" +
"Development" से समलकर बनय है। sustain कय अर्ा है संभयलनय (Support) र्य पोवषत
करनय (nourish) और (Development) कय अर्ा है ववकयस र्य जीवन की गुणवत्तय में सुधयर।
सतत ववकयस की संकल्पनय ववश्व पर्यावरण एवं ववकयस आर्ोग (ब्रंटलैण्ड आर्ोग 1987)
द्वयरय ववकससत की गई, जजसमें सतत ववकयस को इस प्रकयर से पररभयवषत क्रकर्य गर्य-
‘‘र्ह एक गततशीत (Dynamic) प्रक्रिर्य है जजसमें वतामयन पीढ़ी की आवश्र्तयओं को भयवी
पीढ़ी की आवश्र्कतयओं से समझौतय क्रकए बबनय पूरय क्रकर्य जयतय है।
 सतत् ववकयस कय असभप्रयर् आर्र्ाक ववकयस को सुरक्षक्षत करनय है | इसकय उद्देश्र् वतामयन
और भववष्र् की पीहढ़र्ों के सलए प्रयकृ ततक संसयधन सुरक्षक्षत रिनय है |
सतत् ववकयस की आवश्र्कतय
 वतामयन समर् में मनुष्र् ने अत्र्यर्धक तकनीक्रक प्रगतत की है और सुि-सुववधयओं के
ववववध सयधनों के उपभोग में वृद्र्ध हुर्ी है, परन्तु जहयाँ एक ओर जीवन स्तर के उन्नर्न
हेतु ववववध उपभोग की वस्तुओं की प्रचुरतय हुई है वहीं दूसरी ओर बढ़ती हुई जनसंख्र्य के
मरणपोषण हेतु ियद्र्यन्न उत्पयदन, शुद्ध पेर् जल आपूतता व शुद्ध वयर्ु के अभयव की
समस्र्यएं भी उत्पन्न हुई है। वैजश्वक स्तर पर भी औसत तयपमयप में वृद्र्ध के कयरण
द्वीपीर् एवं समुद्रतटीर् क्षेत्रों के जलमग्न होने कय ितरय, प्रयकृ ततक आपदय एवं ववसभनन
बीमयररर्ों कय प्रकोप भी बढ़ गर्य है।
 अतः ऐसी दशय में तनरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्र्य के जीवन की गुणवत्तय को बनयए रिने के
सलए उसकी मूलभूत आवश्र्कतय रोटी, कपड़य और मकयन तर्य आधयरभूत ढयाँचय व सशक्षय,
स्वयस्थ्र्, सुरक्षय तर्य आत्मसम्मयन सभी को उपलब्ध करयनय आवश्र्क है परन्तु ववकयस
और प्रगतत के नयम पर संसयधनों कय अन्धयधुन्ध दोहन पर्यावरण को क्षतत पहुाँचय रहय है
जजससे भूमण्डलीर् तयपन, ओजोन परत क्षरण, पर्यावरण प्रदूषण जलवयर्ु पररवतान आहद
समस्र्यएं उत्पन्न हो गई है जबक्रक ववकयस करते समर् पर्यावरण और पयररजस्र्तत की
संतुलन को ध्र्यन में रिय जयनय चयहहए।
 ववकयसशील देशों में जनसंख्र्य वृद्र्ध की उच्च दर और ऐसी प्रौद्र्ोर्गक्रकर्ों कय प्रर्ोग
जजनमें ऊजया और संसयधनों कय दुरूपर्ोग होतय है अब स्वीकयर्ा नहीं होगय, तर्ों क्रक र्े
पररजस्र्ततर्ों आधयरणीर् हैं। जजस रूप में आर्र्ाक ववकयस हो रहय है उससे के वल
‘‘उपभोततयवयद’’ को ही बढ़यवय समलेगय। प्रततहदन बहुत अर्धक संख्र्य में वस्तुएं ववतनसमात
की जयती है और सयर् ही अर्धकयर्धक पैके जजंग सयमर्ग्रर्ों के उपर्ोग से भी बचें, तर्ों क्रक
ऐसय करके हम बहुत अर्धक मयत्रय में फोम और प्लयजस्टक कचरय उत्पन्न करने से और
सयर् ही उनके तनबटयन की समस्र्य से भी बच सकते है।
 पर्यावरण के महत्व को ध्र्यन में रिने कय र्ह अर्ा नहीं है क्रक हमें ितनज पदयर्ों र्य
वनोत्र्यदों कय प्रर्ोग बंद कर देनय चयहहए तयक्रक वे भयवी पीहढ़र्ों के सलए संरक्षतत रहें।
इसकय एकमयत्र अर्ा र्ही है क्रक हमें संसयधनों कय धयरणीर् उपर्ोग करनय चयहहए। उदयहरण
के सलए धयतुओं कय बयर-बयर िदयनों से तनष्कवषात करने के बजयर् उपलब्ध धयतुओं को
पुनचािण द्वयरय दुबयरय प्रर्ोग में लयनय चयहहए तर्य आहद क्रकसी स्र्यन से पेड़ों की कटयई
की जयती है तो आस-पयस के स्र्यनों में कम से कम उतनी ही संख्र्य में र्य उससे अर्धक
संख्र्य में पेड़ लगय हदए जयने चयहहए।
सतत् ववकयस की अवधयरणय कय उदर्
 सतत ववकयस की अवधयरणय की शुरूआत 1962 में हुई जब वैज्ञयतनक रॉकल कयरसन ने
‘दी सयइलेंट जस्प्रंग’ नयमक पुस्तक सलिी। इस पुस्तक ने कीटनयशक डी.डी.टी. के प्रर्ोग से
वन्र् जीवन को होने वयले नुकसयन की ओरे जनतय कय ध्र्यन आकवषात क्रकर्य | र्ह पुस्तक
पर्यावरण ,अर्ाव्र्वस्र्य तर्य सयमजजक पक्षों के मध्र् परस्पर संबंधों के अध्र्र्न में मील
कय पत्र्र सयबबत हुई |
सतत् ववकयस के उद्देश्र्
 सतत र्य संपोषणीर् ववकयस मुख्र्तः तीन तथ्र्ों पर आधयररत है-
 1. ववकयस हमेशय दीर्ा उद्देश्र्ों र्य दीर्ा अवर्ध के सलए होनय चयहहए।
 2. पर्यावरण और ववकयस एक दूसरे से सम्बद्ध ओर सयमंजस्र्पूणा होने चयहहए।
 3. ववकयस को समयनतय के तनर्म कय पयलन करनय चयहहए र्य एक पीढ़ी में समयनतय
(अवसर की समयनतय, लोगों कय सशततीकरण करके उन्हें ववकयस में सहभयगी बनयनय,
गरीबी व आर्र्ाक वृद्र्ध के असमयन ववतरण को रोक कर समयनतय लयनय) तर्य अगली
पीढ़ी में समयनतय (एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच समयनतय- संसयधनों के अत्र्र्धक दोहन
व प्रदूषण को रोक कर संसयधनों कय वववेकपूणा उपर्ोग करके ) लयने के उद्देश्र् के सयर्
होनय चयहहए।
पर्यावरणीर् आर्यम
 इसके अन्तगात पर्यावरण कय संरक्षण, स्वच्छ पेर् जल की उपलब्धतय, जैव ववववधतय व
संरक्षण, प्रदूषण की रोकर्यम आहद शयसमल है। सतत ववकयस र्ह पहचयन करयतय है क्रक
संसयधन सीसमत है, अतः हमें संसयधनों के बुद्र्धमत्तयपूणा उपर्ोग के सयर् उनकी क्षमतय
बढ़यनय, वैकजल्पक संसयधनों की िोज, अपसशष्ट पदयर्ों को फें कने के बजयर् उनकय
पुनरूपर्ोग एवं पुनचािण पौधरोपण के सयर् सयमयजजक, आर्र्ाक एवं प्रयकृ ततक पूंजी पर
ध्र्यन के जन्द्रत करनय है।
 पर्यावरण उस वयस्तववक जगत को कहते हैं जो भूसम जल, वयर्ु, पेड़, पौधे और जयनवरों के
रूप में हमयरे चयरों ओर पयर्य जयतय है और जो हमयरे अजस्तत्व एवं ववकयस कय आधयर है।
 भयरतीर् परम्परय के अनुसयर पयाँच तत्व (वयर्ु, भूसम, जल, वनस्पतत और जीव-जन्तु)
परस्पर सम्बर्धत और परस्पर आर्ित हैं। इन पयाँच तत्वों में से एक में भी गड़बड़ होने पर
दूसरों में असंतुलन उत्पन्न हो जयतय है। अतः इनके बीच संतुलन बनयए रिनय आवश्र्क
है।
पर्यावरणीर् अविमण
 पर्यावरणीर् अविमण से आशर् उत्पयदन और उपभोग के प्रयकृ ततक संसयधनों की मयत्रय एवं
गुणवत्तय में कमी से है। इस प्रकयर इसमें प्रदूषण और संसयधनों कय अविमण शयसमल है।
 1. वयर्ु प्रदूषण 2. जलप्रदूषण 3. भूसम प्रदूषण 4. जैव-ववववधतय की हयतन।
 जैव-ववववधतय कय धयरणीर् उपर्ोग स्र्यर्ी ववकयस कय आधयरभूत तत्व है। भयरत संसयर के
वृहत जैव ववववधतय वयले 12 देशों में से एक है क्रकन्तु, वपछले कु छ दशकों के दौरयन
औद्र्ोगीकरण ने पररजस्र्ततकीर् प्रणयली पर दबयव डयलय है। इसने इसे पररवततात, र्हयाँ तब
क्रक नष्ट भी क्रकर्य है। जैव ववववधतय की हयतन, अर्धवयस, कृ वष के ववस्तयर, वेटलैंड को
भरने, समृद्ध जैव ववववधतय वयले स्र्लों कय मयनवीर् प्रबंधन तर्य औद्र्ोर्गक ववकयस के
सलए रूपयंरण, तटीर् क्षेत्रों के ववनयश तर्य अतनर्ंबत्रत वयखणजयर्क दोहन से उत्पनन होती
है।
संसयधनों कय अविमण
 प्रयकृ ततक संसयधनों कय अविमण भी एक अर्ाव्र्वस्र्य के सलए गम्भीर समस्र्यएं पैदय कर
देतय है। र्ह अर्ाव्र्वस्र्य की उत्पयदन क्षमतय को कम करतय है और इस प्रकयर ववकयस के
आधयर को कम कर देतय है। र्ह अविमण दो प्रकयर से होतय है।
 1. वनों कय अविमण अर्वय वनों की कटयई
 2. भूसम कय अविमण
 पर्यावरण व अर्ाव्र्वस्र्य को धयरणीर् बनयए रिने में वनो की बहुत महत्वपूणा भूसमकय
होती है। वन बहुत सी वस्तुएं व सेवयएाँ प्रदयन करते है और जीवन व धरती के सलए
आवश्र्क है।
 भयरत वन कटयई कय सयमनय कर रहय है। वन क्षेत्र में बड़े पैमयने पर होने वयली कमी को
वनों कय अविमण अर्वय वन कटयई कहय जयतय है। वनों की कटयई के मुख्र् कयरण है-
 ईधन और औद्र्ोर्गक कयर्ों के सलए
 सर्न िेती के सलए
 नदी र्यटी पररर्ोजनयओं कय तनमयाण
 सड़के तर्य औद्र्ोर्गक पररर्ोजनयएं
वनों की कटयई के दुष्पररणयम
 भूसम और जल स्रोतों कय ह्रयस।
 पौधों एवं जीव-जन्तुओं पर प्रततकू ल प्रभयव।
 वन क्षेत्रों अर्वय उसके आस-पयस के क्षेत्रों में रहने वयले लोगों
के जीवन और आर्र्ाक क्रिर्यकलयपों पर ववपरीत प्रभयव।
 देश के प्रयकृ ततक पर्यावरण कय ह्रयस।
पर्यावरण एवं सतत विकास || Paryawaran || Shanti shiksha || Akhil
भयरत में पर्यावरण के अविमण के कयरण
 प्रयकृ ततक संसयधनों कय अत्र्यर्धक शोषण।
 जनसंख्र्य में लगयतयर हो रही वृद्र्ध।
 शहरीकरण।
 पुनः प्रर्ोग होने वयले संसयधनों कय कु प्रबंध।
 वन संसयधनों एवं भू.जल कय अत्र्र्धक दोहन और भू.क्षरण।
 वयहनों और उद्र्ोगों से तनकलने वयलय धुाँआ इत्र्यहद।
 कृ वष आधयररत औद्र्ोर्गकरण।
 वनों की कटयई में वृद्र्ध।
 नहदर्ोंए नयलों एवं जल के अन्र् स्रोतों में औद्र्ोर्गक कचरों कय डयलनय।
 कृ वष में अंधयधुंध रयसयर्तनक उवारकों एवं कीट नयशकों कय प्रर्ोग।
 ववलयससतयपूणा उपभोग शैली कय दबयव।
 र्रेलूए शहरी और औद्र्र्गक कू ड़े.कचरे कय बढ़तय ढे
े़
र और भूसम की क्षमतय से अर्धक प्रदूषण।
 जैव ववववधतय की हयतन।
सम्पोषणीर् र्य सतत् ववकयस के सलए
भूमंडलीर् प्रर्यस
 स्टॉकहोम सम्मेलन (1972) स्वीडन।
 पृथ्वी सशिर सम्मेलन (1992) (ररर्ो-डड-जेनेरो, ब्रयजील)।
 तर्ोटो प्रोटोकॉल (1997) (तर्ोटो, जयपयन)।
 जोहयंसबगा सम्मेलन (2002) द0 अफ्रीकय।
 मयंहिर्ल सम्मेलन (2005) कनयडय।
 बयली सम्मेलन (2007) इंडोनेसशर्य।
 कोपेनहेगेन सम्मेलन (2009) डेनमयका ।
 कयनकु न सम्मेलन (2010) मैजतसको
 डरबन जलवयर्ु पररवतान सम्मेलन (2011) दक्षक्षण अफ्रीकय।
 ररर्ो $ 20 सम्मेलन (2012)
भयरत में पर्यावरण संरक्षण के उपयर्
 पर्यावरण की रक्षय करनय हमयरय रयष्िीर् कताव्र् है। हयल के वषों में पर्यावरण के ववषर् के
प्रतत जयगरूकतय बढ़ी है। इस जयगरूकतय की झलक जून 1992 में ररडनो-डड जनेरो में हुए
पृथ्वी सम्मेलन में हदियई दी र्ी। इसमें एजेंडय-21 नयमक ववश्व कयर्ार्ोजनय स्वीकयर की
गई र्ी। इसकय उद्देश्र् पर्यावरण सम्बंधी आवश्र्कतयओं को ववकयस की आकयंक्षयओं के
सयर् एकीकृ त करनय र्य। संर्ुतत रयष्ि महयसभय ने भी जून 1997 के अपने ववशेष सत्र में
इसी बयत को क्रफर दोहरयर्य र्य। भयरत में भी वपछले कु छ वषों से पर्यावरण की सुरक्षय और
प्रयकृ ततक सयधनों के संरक्षण के सलए ववधयन, नीततर्याँ और कयर्ािम बनयए गए है।
पर्यावरण के प्रतत भयरत सरकयर की नीतत ऐजेंडय-21 ससद्धयन्तों पर ही आधयररत है।
 देश में पर्यावरण सम्बंधी अनेक कयर्ािमों की र्ोजनय प्रोत्सयहन, समन्वर्न एवं
क्रिर्यन्वर्न के सलए एक अलग से पर्यावरण एवं वन मंत्रयलर् कय गठन क्रकर्य गर्य है।
 पर्यावरण की समस्र्य से व्र्यपक रूप से तनबटने के सलए भयरत सरकयर ने जैव-ववधतय पर
एक रयष्िीर् नीतत और कयर्ा र्ोजनय रयष्िीर् वन नीतत, रयष्िीर् संरक्षण, नीतत, पर्यावरण
और ववकयस पर नीततगत सम्बंधी कयर्ािम अपनयर्े है।
भयरत सरकयर द्वयरय पर्यावरण संरक्षण के सलए
उपयर्
तनष्कषा
 अतः ववकयस के अवधयरणय में वयतयवरण, मयनव एवं प्रयकृ ततक संसयधनों के समुर्चत
उपर्ोग क्रकए जयने की आवश्र्कतय है | इस अवधयरणय के अंतगात एक ऐसय तंत्र ववकससत
करने की आवश्र्कतय है, जजसमें तेज गतत से उपर्ोग क्रकए जयने वयले पदयर्ों कय
पुनर्रात्त्पयदन हो | पर्यावरणववदों ने ववकयस की सीमयओं क्रकओ र्चंतय व्र्तत करते हुए एक
वैकजल्पक तनर्समत अर्ाव्र्वस्र्य तनमयाण करने की वकयलत करते हुए कहय क्रक प्रत्र्ेक
कयर्ाकलयपों में पर्यावरण की र्चंतयओं को सवोच्च महत्व हदर्य जयए |
संदभा एवं ग्रन्र् सूची
 sol.du.ac.in /mod/book/view.php
 google.co.in
 abhinav-pahal.blogspot.in /2014/07/sustainable-development.html
 project-syndicate.org
 dharmendrakumarshahi.wordpress.com
 archive.india.gov.in /hindi/sectors/environment/index.php
 amarujala.com/columns/opinion/sustainable-development-goal-and-india
 wikipedia.org
 शाांतत शशक्षा एिां सतत् विकास पुस्तक (बी.टी.सी. चतुर्थ सेमेस्टर)
पर्यावरण एवं सतत विकास || Paryawaran || Shanti shiksha || Akhil
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पर्यावरण एवं सतत विकास || Paryawaran || Shanti shiksha || Akhil

  • 1. पर्यावरण एवं सतत् ववकयस अखिल प्रतयप ससंह भदौररर्य रोहहत गुप्तय सवेश्वर कु मयर जर्करन ससंह हदलीप कु मयर ववषर्- शयंतत सशक्षय एवं सतत् ववकयस बी.टी.सी-2014 चतुर्ा सेमेस्टर (डयइट, कयनपूर नगर)
  • 2. प्रस्तयवनय  सतत् ववकयस सयमयजजक-आर्र्ाक ववकयस की वह प्रक्रिर्य है जजसमें पृथ्वी की सहनशजतत के अनुसयर ववकयस की बयत की जयती है |  र्ह अवधयरणय 1960 के दशक में तक ववकससत हुई लोग औद्र्ोर्गकीकरण के पर्यावरण प्र हयतनकयरक प्रभयवों से अवगत हुए | सतत ववकयस कय उद्भव प्रयकृ ततक संसयधनों की समयजप्त तर्य उसके कयरण आर्र्ाक क्रिर्यओं तर्य उत्पयदन प्रणयली के धीमे होने र्य उनके बंद होने के भर् से हुआ |  र्ह अवधयरणय उत्पयदन-प्रणयसलर्ों प्र तनर्ंत्रण करने वयले कु छ लोगों द्वयरय प्रकृ तत के बहुमूल्र् तर्य सससमत संसयधनों के लयलचपूणा दुरूपर्ोग कय पररणयम है सतत ववकयस कोर्लय,तेल तर्य जल जैसे संसयधनों के दोहन क सलए उत्पयदन तकनीकों,औद्र्ोर्गक प्रक्रिर्यओं तर्य ववकयस की र्यर्ोर्चत नीततर्ों के सम्बन्ध में दीर्ाकयलीन र्ोजनय प्रस्तुत करतय है |
  • 3. सतत् ववकयस कय अर्ा  अर्थ- ‘सतत विकास’ अर्ाथत् Sustainable Development अंग्रेजी के दो शब्दों "Sustain" + "Development" से समलकर बनय है। sustain कय अर्ा है संभयलनय (Support) र्य पोवषत करनय (nourish) और (Development) कय अर्ा है ववकयस र्य जीवन की गुणवत्तय में सुधयर। सतत ववकयस की संकल्पनय ववश्व पर्यावरण एवं ववकयस आर्ोग (ब्रंटलैण्ड आर्ोग 1987) द्वयरय ववकससत की गई, जजसमें सतत ववकयस को इस प्रकयर से पररभयवषत क्रकर्य गर्य- ‘‘र्ह एक गततशीत (Dynamic) प्रक्रिर्य है जजसमें वतामयन पीढ़ी की आवश्र्तयओं को भयवी पीढ़ी की आवश्र्कतयओं से समझौतय क्रकए बबनय पूरय क्रकर्य जयतय है।  सतत् ववकयस कय असभप्रयर् आर्र्ाक ववकयस को सुरक्षक्षत करनय है | इसकय उद्देश्र् वतामयन और भववष्र् की पीहढ़र्ों के सलए प्रयकृ ततक संसयधन सुरक्षक्षत रिनय है |
  • 4. सतत् ववकयस की आवश्र्कतय  वतामयन समर् में मनुष्र् ने अत्र्यर्धक तकनीक्रक प्रगतत की है और सुि-सुववधयओं के ववववध सयधनों के उपभोग में वृद्र्ध हुर्ी है, परन्तु जहयाँ एक ओर जीवन स्तर के उन्नर्न हेतु ववववध उपभोग की वस्तुओं की प्रचुरतय हुई है वहीं दूसरी ओर बढ़ती हुई जनसंख्र्य के मरणपोषण हेतु ियद्र्यन्न उत्पयदन, शुद्ध पेर् जल आपूतता व शुद्ध वयर्ु के अभयव की समस्र्यएं भी उत्पन्न हुई है। वैजश्वक स्तर पर भी औसत तयपमयप में वृद्र्ध के कयरण द्वीपीर् एवं समुद्रतटीर् क्षेत्रों के जलमग्न होने कय ितरय, प्रयकृ ततक आपदय एवं ववसभनन बीमयररर्ों कय प्रकोप भी बढ़ गर्य है।  अतः ऐसी दशय में तनरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्र्य के जीवन की गुणवत्तय को बनयए रिने के सलए उसकी मूलभूत आवश्र्कतय रोटी, कपड़य और मकयन तर्य आधयरभूत ढयाँचय व सशक्षय, स्वयस्थ्र्, सुरक्षय तर्य आत्मसम्मयन सभी को उपलब्ध करयनय आवश्र्क है परन्तु ववकयस और प्रगतत के नयम पर संसयधनों कय अन्धयधुन्ध दोहन पर्यावरण को क्षतत पहुाँचय रहय है जजससे भूमण्डलीर् तयपन, ओजोन परत क्षरण, पर्यावरण प्रदूषण जलवयर्ु पररवतान आहद समस्र्यएं उत्पन्न हो गई है जबक्रक ववकयस करते समर् पर्यावरण और पयररजस्र्तत की संतुलन को ध्र्यन में रिय जयनय चयहहए।
  • 5.  ववकयसशील देशों में जनसंख्र्य वृद्र्ध की उच्च दर और ऐसी प्रौद्र्ोर्गक्रकर्ों कय प्रर्ोग जजनमें ऊजया और संसयधनों कय दुरूपर्ोग होतय है अब स्वीकयर्ा नहीं होगय, तर्ों क्रक र्े पररजस्र्ततर्ों आधयरणीर् हैं। जजस रूप में आर्र्ाक ववकयस हो रहय है उससे के वल ‘‘उपभोततयवयद’’ को ही बढ़यवय समलेगय। प्रततहदन बहुत अर्धक संख्र्य में वस्तुएं ववतनसमात की जयती है और सयर् ही अर्धकयर्धक पैके जजंग सयमर्ग्रर्ों के उपर्ोग से भी बचें, तर्ों क्रक ऐसय करके हम बहुत अर्धक मयत्रय में फोम और प्लयजस्टक कचरय उत्पन्न करने से और सयर् ही उनके तनबटयन की समस्र्य से भी बच सकते है।  पर्यावरण के महत्व को ध्र्यन में रिने कय र्ह अर्ा नहीं है क्रक हमें ितनज पदयर्ों र्य वनोत्र्यदों कय प्रर्ोग बंद कर देनय चयहहए तयक्रक वे भयवी पीहढ़र्ों के सलए संरक्षतत रहें। इसकय एकमयत्र अर्ा र्ही है क्रक हमें संसयधनों कय धयरणीर् उपर्ोग करनय चयहहए। उदयहरण के सलए धयतुओं कय बयर-बयर िदयनों से तनष्कवषात करने के बजयर् उपलब्ध धयतुओं को पुनचािण द्वयरय दुबयरय प्रर्ोग में लयनय चयहहए तर्य आहद क्रकसी स्र्यन से पेड़ों की कटयई की जयती है तो आस-पयस के स्र्यनों में कम से कम उतनी ही संख्र्य में र्य उससे अर्धक संख्र्य में पेड़ लगय हदए जयने चयहहए।
  • 6. सतत् ववकयस की अवधयरणय कय उदर्  सतत ववकयस की अवधयरणय की शुरूआत 1962 में हुई जब वैज्ञयतनक रॉकल कयरसन ने ‘दी सयइलेंट जस्प्रंग’ नयमक पुस्तक सलिी। इस पुस्तक ने कीटनयशक डी.डी.टी. के प्रर्ोग से वन्र् जीवन को होने वयले नुकसयन की ओरे जनतय कय ध्र्यन आकवषात क्रकर्य | र्ह पुस्तक पर्यावरण ,अर्ाव्र्वस्र्य तर्य सयमजजक पक्षों के मध्र् परस्पर संबंधों के अध्र्र्न में मील कय पत्र्र सयबबत हुई |
  • 7. सतत् ववकयस के उद्देश्र्  सतत र्य संपोषणीर् ववकयस मुख्र्तः तीन तथ्र्ों पर आधयररत है-  1. ववकयस हमेशय दीर्ा उद्देश्र्ों र्य दीर्ा अवर्ध के सलए होनय चयहहए।  2. पर्यावरण और ववकयस एक दूसरे से सम्बद्ध ओर सयमंजस्र्पूणा होने चयहहए।  3. ववकयस को समयनतय के तनर्म कय पयलन करनय चयहहए र्य एक पीढ़ी में समयनतय (अवसर की समयनतय, लोगों कय सशततीकरण करके उन्हें ववकयस में सहभयगी बनयनय, गरीबी व आर्र्ाक वृद्र्ध के असमयन ववतरण को रोक कर समयनतय लयनय) तर्य अगली पीढ़ी में समयनतय (एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच समयनतय- संसयधनों के अत्र्र्धक दोहन व प्रदूषण को रोक कर संसयधनों कय वववेकपूणा उपर्ोग करके ) लयने के उद्देश्र् के सयर् होनय चयहहए।
  • 8. पर्यावरणीर् आर्यम  इसके अन्तगात पर्यावरण कय संरक्षण, स्वच्छ पेर् जल की उपलब्धतय, जैव ववववधतय व संरक्षण, प्रदूषण की रोकर्यम आहद शयसमल है। सतत ववकयस र्ह पहचयन करयतय है क्रक संसयधन सीसमत है, अतः हमें संसयधनों के बुद्र्धमत्तयपूणा उपर्ोग के सयर् उनकी क्षमतय बढ़यनय, वैकजल्पक संसयधनों की िोज, अपसशष्ट पदयर्ों को फें कने के बजयर् उनकय पुनरूपर्ोग एवं पुनचािण पौधरोपण के सयर् सयमयजजक, आर्र्ाक एवं प्रयकृ ततक पूंजी पर ध्र्यन के जन्द्रत करनय है।  पर्यावरण उस वयस्तववक जगत को कहते हैं जो भूसम जल, वयर्ु, पेड़, पौधे और जयनवरों के रूप में हमयरे चयरों ओर पयर्य जयतय है और जो हमयरे अजस्तत्व एवं ववकयस कय आधयर है।  भयरतीर् परम्परय के अनुसयर पयाँच तत्व (वयर्ु, भूसम, जल, वनस्पतत और जीव-जन्तु) परस्पर सम्बर्धत और परस्पर आर्ित हैं। इन पयाँच तत्वों में से एक में भी गड़बड़ होने पर दूसरों में असंतुलन उत्पन्न हो जयतय है। अतः इनके बीच संतुलन बनयए रिनय आवश्र्क है।
  • 9. पर्यावरणीर् अविमण  पर्यावरणीर् अविमण से आशर् उत्पयदन और उपभोग के प्रयकृ ततक संसयधनों की मयत्रय एवं गुणवत्तय में कमी से है। इस प्रकयर इसमें प्रदूषण और संसयधनों कय अविमण शयसमल है।  1. वयर्ु प्रदूषण 2. जलप्रदूषण 3. भूसम प्रदूषण 4. जैव-ववववधतय की हयतन।  जैव-ववववधतय कय धयरणीर् उपर्ोग स्र्यर्ी ववकयस कय आधयरभूत तत्व है। भयरत संसयर के वृहत जैव ववववधतय वयले 12 देशों में से एक है क्रकन्तु, वपछले कु छ दशकों के दौरयन औद्र्ोगीकरण ने पररजस्र्ततकीर् प्रणयली पर दबयव डयलय है। इसने इसे पररवततात, र्हयाँ तब क्रक नष्ट भी क्रकर्य है। जैव ववववधतय की हयतन, अर्धवयस, कृ वष के ववस्तयर, वेटलैंड को भरने, समृद्ध जैव ववववधतय वयले स्र्लों कय मयनवीर् प्रबंधन तर्य औद्र्ोर्गक ववकयस के सलए रूपयंरण, तटीर् क्षेत्रों के ववनयश तर्य अतनर्ंबत्रत वयखणजयर्क दोहन से उत्पनन होती है।
  • 10. संसयधनों कय अविमण  प्रयकृ ततक संसयधनों कय अविमण भी एक अर्ाव्र्वस्र्य के सलए गम्भीर समस्र्यएं पैदय कर देतय है। र्ह अर्ाव्र्वस्र्य की उत्पयदन क्षमतय को कम करतय है और इस प्रकयर ववकयस के आधयर को कम कर देतय है। र्ह अविमण दो प्रकयर से होतय है।  1. वनों कय अविमण अर्वय वनों की कटयई  2. भूसम कय अविमण  पर्यावरण व अर्ाव्र्वस्र्य को धयरणीर् बनयए रिने में वनो की बहुत महत्वपूणा भूसमकय होती है। वन बहुत सी वस्तुएं व सेवयएाँ प्रदयन करते है और जीवन व धरती के सलए आवश्र्क है।
  • 11.  भयरत वन कटयई कय सयमनय कर रहय है। वन क्षेत्र में बड़े पैमयने पर होने वयली कमी को वनों कय अविमण अर्वय वन कटयई कहय जयतय है। वनों की कटयई के मुख्र् कयरण है-  ईधन और औद्र्ोर्गक कयर्ों के सलए  सर्न िेती के सलए  नदी र्यटी पररर्ोजनयओं कय तनमयाण  सड़के तर्य औद्र्ोर्गक पररर्ोजनयएं
  • 12. वनों की कटयई के दुष्पररणयम  भूसम और जल स्रोतों कय ह्रयस।  पौधों एवं जीव-जन्तुओं पर प्रततकू ल प्रभयव।  वन क्षेत्रों अर्वय उसके आस-पयस के क्षेत्रों में रहने वयले लोगों के जीवन और आर्र्ाक क्रिर्यकलयपों पर ववपरीत प्रभयव।  देश के प्रयकृ ततक पर्यावरण कय ह्रयस।
  • 14. भयरत में पर्यावरण के अविमण के कयरण  प्रयकृ ततक संसयधनों कय अत्र्यर्धक शोषण।  जनसंख्र्य में लगयतयर हो रही वृद्र्ध।  शहरीकरण।  पुनः प्रर्ोग होने वयले संसयधनों कय कु प्रबंध।  वन संसयधनों एवं भू.जल कय अत्र्र्धक दोहन और भू.क्षरण।  वयहनों और उद्र्ोगों से तनकलने वयलय धुाँआ इत्र्यहद।  कृ वष आधयररत औद्र्ोर्गकरण।  वनों की कटयई में वृद्र्ध।  नहदर्ोंए नयलों एवं जल के अन्र् स्रोतों में औद्र्ोर्गक कचरों कय डयलनय।  कृ वष में अंधयधुंध रयसयर्तनक उवारकों एवं कीट नयशकों कय प्रर्ोग।  ववलयससतयपूणा उपभोग शैली कय दबयव।  र्रेलूए शहरी और औद्र्र्गक कू ड़े.कचरे कय बढ़तय ढे े़ र और भूसम की क्षमतय से अर्धक प्रदूषण।  जैव ववववधतय की हयतन।
  • 15. सम्पोषणीर् र्य सतत् ववकयस के सलए भूमंडलीर् प्रर्यस  स्टॉकहोम सम्मेलन (1972) स्वीडन।  पृथ्वी सशिर सम्मेलन (1992) (ररर्ो-डड-जेनेरो, ब्रयजील)।  तर्ोटो प्रोटोकॉल (1997) (तर्ोटो, जयपयन)।  जोहयंसबगा सम्मेलन (2002) द0 अफ्रीकय।  मयंहिर्ल सम्मेलन (2005) कनयडय।  बयली सम्मेलन (2007) इंडोनेसशर्य।  कोपेनहेगेन सम्मेलन (2009) डेनमयका ।  कयनकु न सम्मेलन (2010) मैजतसको  डरबन जलवयर्ु पररवतान सम्मेलन (2011) दक्षक्षण अफ्रीकय।  ररर्ो $ 20 सम्मेलन (2012)
  • 16. भयरत में पर्यावरण संरक्षण के उपयर्  पर्यावरण की रक्षय करनय हमयरय रयष्िीर् कताव्र् है। हयल के वषों में पर्यावरण के ववषर् के प्रतत जयगरूकतय बढ़ी है। इस जयगरूकतय की झलक जून 1992 में ररडनो-डड जनेरो में हुए पृथ्वी सम्मेलन में हदियई दी र्ी। इसमें एजेंडय-21 नयमक ववश्व कयर्ार्ोजनय स्वीकयर की गई र्ी। इसकय उद्देश्र् पर्यावरण सम्बंधी आवश्र्कतयओं को ववकयस की आकयंक्षयओं के सयर् एकीकृ त करनय र्य। संर्ुतत रयष्ि महयसभय ने भी जून 1997 के अपने ववशेष सत्र में इसी बयत को क्रफर दोहरयर्य र्य। भयरत में भी वपछले कु छ वषों से पर्यावरण की सुरक्षय और प्रयकृ ततक सयधनों के संरक्षण के सलए ववधयन, नीततर्याँ और कयर्ािम बनयए गए है। पर्यावरण के प्रतत भयरत सरकयर की नीतत ऐजेंडय-21 ससद्धयन्तों पर ही आधयररत है।
  • 17.  देश में पर्यावरण सम्बंधी अनेक कयर्ािमों की र्ोजनय प्रोत्सयहन, समन्वर्न एवं क्रिर्यन्वर्न के सलए एक अलग से पर्यावरण एवं वन मंत्रयलर् कय गठन क्रकर्य गर्य है।  पर्यावरण की समस्र्य से व्र्यपक रूप से तनबटने के सलए भयरत सरकयर ने जैव-ववधतय पर एक रयष्िीर् नीतत और कयर्ा र्ोजनय रयष्िीर् वन नीतत, रयष्िीर् संरक्षण, नीतत, पर्यावरण और ववकयस पर नीततगत सम्बंधी कयर्ािम अपनयर्े है। भयरत सरकयर द्वयरय पर्यावरण संरक्षण के सलए उपयर्
  • 18. तनष्कषा  अतः ववकयस के अवधयरणय में वयतयवरण, मयनव एवं प्रयकृ ततक संसयधनों के समुर्चत उपर्ोग क्रकए जयने की आवश्र्कतय है | इस अवधयरणय के अंतगात एक ऐसय तंत्र ववकससत करने की आवश्र्कतय है, जजसमें तेज गतत से उपर्ोग क्रकए जयने वयले पदयर्ों कय पुनर्रात्त्पयदन हो | पर्यावरणववदों ने ववकयस की सीमयओं क्रकओ र्चंतय व्र्तत करते हुए एक वैकजल्पक तनर्समत अर्ाव्र्वस्र्य तनमयाण करने की वकयलत करते हुए कहय क्रक प्रत्र्ेक कयर्ाकलयपों में पर्यावरण की र्चंतयओं को सवोच्च महत्व हदर्य जयए |
  • 19. संदभा एवं ग्रन्र् सूची  sol.du.ac.in /mod/book/view.php  google.co.in  abhinav-pahal.blogspot.in /2014/07/sustainable-development.html  project-syndicate.org  dharmendrakumarshahi.wordpress.com  archive.india.gov.in /hindi/sectors/environment/index.php  amarujala.com/columns/opinion/sustainable-development-goal-and-india  wikipedia.org  शाांतत शशक्षा एिां सतत् विकास पुस्तक (बी.टी.सी. चतुर्थ सेमेस्टर)