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महाभारत के वो पात्र जिनके आस-पास घूमती है पूरी कहानी
कर्ण
जब प ांडवों की म त कां ती ब ल्य वस्थ में थी, उस समय उन्होंने ऋषि दव णस की सेव की थी। सेव से प्रसन्न होकर
ऋषि दव णस ने कां ती को एक मांत्र ददय जजससे वह ककसी भी देवत क आह्व न कर उससे पत्र प्र प्त कर सकती थीां।
षवव ह से पूवण इस मांत्र की शजतत देखने के लिए एक ददन कां ती ने सूयणदेव क आह्व न ककय , जजसके फिस्वरूप कर्ण
क जन्म हआ। ककां त िोक-ि ज के भय से कां ती ने कर्ण को नदी में बह ददय । कर्ण ददव्य कवच-कां डि के स थ ही
पैद हआ थ । कर्ण क प िन-पोिर् धृतर ष्ट्र के स रथी अधधरथ व उसकी पत्नी र ध ने ककय । र ध क पत्र समझे
ज ने के क रर् ही कर्ण र धेय न म से भी ज न ज ने िग । यद्ध के दौर न कर्ण ने कौरवों क स थ ददय । श्र प के
क रर् कर्ण के रथ क पदहय जमीन में धांस गय और उसे अपने ददव्य स्त्रों क ज्ञ न भी नहीां रह । इसी समय अजणन
ने कर्ण क वध कर ददय ।
इंद्र को दान कर ददए थे कवच-कं डल
देवर ज इांद्र क अजणन पर षवशेि स्नेह थ । इांद्र ज नते थे कक जब तक कर्ण के प स कवच-कां डि है, उससे कोई नहीां
जीत सकत । तब एक ददन इांद्र ब्र ह्मर् क रूप ध रर् कर कर्ण के प स आए और लभक्ष में कवच-कां डि म ांग लिए।
तब कर्ण ने ब्र ह्मर् से कह कक आप स्वयां देवर ज इांद्र हैं, ये ब त मैं ज नत हूां। आप स्वयां मझसे य चन कर रहे हैं।
इसलिए मैं आपको अपने कवच-कां डि अवश्य दूांग , िेककन इसके बदिे आप को भी मझे वह अमोघ शजतत देनी
होगी। देवर ज इांद्र ने कर्ण को वो अमोघ शजतत दे दी और कह कक इस शजतत क प्रयोग तम लसफण एक ही ब र कर
सकोगे। कर्ण ने देवर ज इांद्र की ब त म नकर वह अमोघ शजतत िे िी और कवच-कां डि इांद्र को दे ददए।
प ांडव
मह र ज प ांड के प ांचों पत्र प ांडव कहि ए। एक ब र र ज प ांड लशक र खेि रहे थे। उस समय ककां दम न मक ऋषि
अपनी पत्नी के स थ दहरन के रूप में सहव स कर रहे थे। उसी अवस्थ में र ज प ण्ड ने उन पर ब र् चि ददए।
मरने से पहिे ऋषि ककां दम ने र ज प ांड को श्र प ददय कक जब भी वे अपनी पत्नी के स थ सहव स करेंगे तो उसी
अवस्थ में उनकी मृत्य हो ज एगी। ऋषि ककां दम के श्र प से द:खी होकर र ज प ांड ने र ज-प ट क त्य ग कर ददय
और वनव सी हो गए।
कां ती और म द्री भी अपने पतत के स थ ही वन में रहने िगीां। जब प ांड को ऋषि दव णस द्व र कां ती को ददए गए मांत्र
के ब रे में पत चि तो उन्होंने कां ती से धमणर ज क आव हन करने के लिए कह जजसके फिस्वरूप धमणर ज
यधधजष्ट्िर क जन्म हआ। इसी प्रक र व यदेव के अांश से भीम और देवर ज इांद्र के अांश से अजणन क जन्म हआ। कां ती
ने यह मांत्र म द्री को बत य । तब म द्री ने अजश्वनकम रों क आव हन ककय , जजसके फिस्वरूप नकि व सहदेव क
जन्म हआ।
- यधधजष्ट्िर प ांडवों में सबसे बडे थे। ये धमण और नीतत के ज्ञ त थे। धमण क ज्ञ न होने के क रर् ही इन्हें धमणर ज भी
कह ज त थ । प ांडवों में लसफण यधधजष्ट्िर ही ऐसे थे जो सशरीर स्वगण गए थे।
- भीम यधधजष्ट्िर से छोटे थे। ये मह बिश िी थे। मह भ रत के अनस र यद्ध के दौर न भीम ने सबसे ज्य द कौरवों
क वध ककय थ । द:श सन व दयोधन क वध भी भीम ने ही ककय थ ।
- अजणन प ांडवों में तीसरे भ ई थे। ये देवर ज इांद्र के अांश थे। मह भ रत के अनस र ये पर तन ऋषि नर के अवत र थे।
भगव न श्रीकृ ष्ट्र् क इन पर षवशेि स्नेह थ । अजणन ने ही घोर तपस्य कर देवत ओां से ददव्य स्त्र प्र प्त ककए थे।
भीष्ट्म, कर्ण, जयद्रथ आदद क वध अजणन के ह थों ही हआ थ ।
- नकि व सहदेव प ांडवों में सबसे छोटे थे। ये अजश्वनकम र के अांश थे। सहदेव ने ही शकतन व उसके पत्र उिूक क
वध ककय थ ।
कौरव
एक ब र ग ांध री ने महषिण वेदव्य स की खूब सेव की। प्रसन्न होकर उन्होंने ग ांध री को सौ पत्रों की म त होने क
वरद न ददय । समय आने पर ग ांध री को गभण िहर , िेककन वह दो विण तक पेट में रुक रह । घबर कर ग ांध री ने
गभण धगर ददय । ग ांध री के पेट से िोहे के सम न म ांस क गोि तनकि । तब महषिण वेदव्य स वह ां पहांचे और उन्होंने
कह कक तम सौ कण्ड बनव कर उन्हें घी से भर दो और उनकी रक्ष के लिए प्रबांध करो।
इसके ब द महषिण वेदव्य स ने ग ांध री को उस म ांस के गोिे पर िांड जि तछडकने के लिए कह । जि तछडकते ही उस
म ांस के गोिे के 101 टकडे हो गए। महषिण की ब त म नकर ग ांध री ने उन सभी म ांस के टकडों को घी से भरे कां डों में
रख ददय । कफर महषिण ने कह कक इन कां डों को दो स ि के ब द खोिन । समय आने पर उन कां डों से पहिे दयोधन
क जन्म हआ और उसके ब द अन्य ग ांध री पत्रों क । ग ांध री के अन्य 99 पत्रों के न म इस प्रक र हैं-
2- द:श सन, 3- दस्सह, 4- दश्शि, 5- जिसांध, 6- सम, 7- सह, 8- षवांद, 9- अनषवांद, 10- दद्र्धिण, 11- सब ह, 12-
दष्ट्प्रधिणर्, 13- दमणिणर्, 14- दमणख, 15- दष्ट्कर्ण, 16- कर्ण, 17- षवषवांशतत, 18- षवकर्ण, 19- शि, 20- सत्व, 21-
सिोचन, 22- धचत्र, 23- उपधचत्र, 24- धचत्र क्ष, 25- च रुधचत्र, 26- शर सन, 27- दमणद, 28- दषवणग ह, 29- षवषवत्स,
30- षवकट नन, 31- ऊर्णन भ, 32- सन भ, 33- नांद, 34- उपनांद, 35- धचत्रब र्
36- धचत्रवम ण, 37- सवम ण, 38- दषवणमोचन, 39- आयोब ह, 40- मह ब ह 41- धचत्र ांग, 42- धचत्रकां डि, 43- भीमवेग,
44- भीमबि, 45- बि की, 46- बिवद्र्धन, 47- उग्र यध, 48- सिेर्, 49- कण्डध र, 50- महोदर, 51- धचत्र यध,
52- तनिांगी, 53- प शी, 54- वृांद रक, 55- दृढ़वम ण, 56- दृढ़क्षत्र, 57- सोमकीततण, 58- अनूदर, 59- दृढ़सांध, 60-
जर सांध,61- सत्यसांध, 62- सद:सव क, 63- उग्रश्रव , 64- उग्रसेन, 65- सेन नी, 66- दष्ट्पर जय, 67- अपर जजत,
68- कण्डश यी, 69- षवश ि क्ष, 70- दर धर
71- दृढ़हस्त, 72- सहस्त, 73- ब तवेग, 74- सवच ण, 75- आददत्यके त, 76- बह्व शी, 77- न गदत्त, 78- अग्रय यी,
79- कवची, 80- क्रथन, 81- कण्डी, 82- उग्र, 83- भीमरथ, 84- वीरब ह, 85- अिोिप, 86- अभय, 87- रौद्रकम ण,
88- दृढऱथ श्रय, 89- अन धृष्ट्य, 90- कण्डभेदी, 91- षवर वी, 92- प्रमथ, 93- प्रम थी, 94- दीघणरोम , 95- दीघणब ह,
96- मह ब ह, 97- व्यूढोरस्क, 98- कनकध्वज, 99- कण्ड शी, और 100-षवरज ।
- 100 पत्रों के अि व ग ांध री की एक पत्री भी थी जजसक न म दश्शि थ , इसक षवव ह र ज जयद्रथ के स थ हआ
थ ।
द्रौपदी व धृष्ट्टद्यम्न
प ांच ि देश के र ज द्रपद ने य ज न मक तपस्वी से यज्ञ करव य , जजससे एक ददव्य कम र उत्पन्न हआ। उसके
लसर पर मकट और शरीर पर कवच थ । तभी आक शव र्ी हई कक यह कम र द्रोर् च यण को म रने के लिए ही
उत्पन्न हआ है। इसके ब द उस यज्ञवेदी से एक सांदर कन्य उत्पन्न हई। तभी आक शव र्ी हई कक इस कन्य क
जन्म क्षत्रत्रयों के सांह र के लिए हआ है। इसके क रर् कौरवों को बहत भय होग ।
द्रपद ने इस कम र क न म धृष्ट्टद्यम्न रख और कन्य क न म द्रौपदी। द्रौपदी के षवव ह के लिए द्रपद ने स्वयांवर
क आयोजन ककय । अजणन ने स्वयांवर की शतण पूरी कर द्रौपदी से षवव ह कर लिय । जब प ांडव द्रौपदी को िेकर
अपनी म त कां ती के प स पहांचे तो उन्होंने त्रबन देखे ही कह ददय कक प ांचों भ ई आपस में ब ांट िो। तब द्रौपदी ने
प ांचों भ इयों से षवधधपूवणक षवव ह ककय ।
इसललए लमले पांच पतत
मह भ रत के अनस र द्रौपदी पूवण जन्म में ऋषि कन्य थी। षवव ह न होने से द:खी होकर वह तपस्य करने िगी।
उसकी तपस्य से भगव न शांकर प्रसन्न हो गए और उसे दशणन ददए तथ वर म ांगने को भी कह । भगव न के दशणन
प कर द्रौपदी बहत प्रसन्न हो गई और उसने अधीरत वश भगव न शांकर से प्र थणन की कक मैं सवणगर्यतत पतत
च हती हूां। ऐस उसने प ांच ब र कह । तब भगव न ने उसे वरद न ददय कक तूने मझसे प ांच ब र प्र थणन की है इसलिए
तझे प ांच भरतवांशी पतत प्र प्त होंगे।
धृष्टद्यम्न ने ककया था द्रोणाचायय का वध
श्रीकृ ष्ट्र् ने धृष्ट्टद्यम्न को प ांडवों की सेन क सेन पतत बन य थ । यद्ध के दौर न जब अपने पत्र की मृत्य को सच
म नकर गरु द्रोर् ने अपने अस्त्र नीचे रख ददए तब धृष्ट्टद्यम्न ने तिव र से गरु द्रोर् क वध कर ददय थ ।
अश्वत्थ म
मह भ रत के अनस र गरु द्रोर् च यण क षवव ह कृ प च यण की बहन कृ पी से हआ थ । कृ पी के गभण से अश्वत्थ म क
जन्म हआ। उसने जन्म िेते ही अच्चै:श्रव अश्व के सम न शब्द ककय , इसी क रर् उसक न म अश्वत्थ म हआ।
वह मह देव, यम, क ि और क्रोध के सजम्मलित अांश से उत्पन्न हआ थ । अश्वत्थ म मह पर क्रमी थ ।
यद्ध में उसने कौरवों क स थ ददय थ । मृत्य से पहिे दयोधन ने उसे अांततम सेन पतत बन य थ । र त के समय
अश्वत्थ म ने छि पूवणक द्रौपदी के प ांचों पत्रों, धृष्ट्टद्यम्न, लशखांडी आदद योद्ध ओां क वध कर ददय थ । म न्यत
है कक अश्वत्थ म आज भी जीषवत है। इनक न म अष्ट्ट धचरांजीषवयों में लिय ज त है।
श्रीकृ ष्ण ने ददया था श्राप
जब अश्वत्थ म ने सोते हए द्रौपदी के पत्रों क वध कर ददय , तब प ांडव क्रोधधत होकर उसे ढूांढने तनकिे। अश्वत्थ म
को ढूांढते हए वे महषिण वेदव्य स के आश्रम पहांचे। अश्वत्थ म ने देख कक प ांडव मेर वध करने के लिए यह ां आ गए हैं
तो उसने प ांडवों क न श करने के लिए ब्रह्म स्त्र क व र ककय । श्रीकृ ष्ट्र् के कहने पर अजणन ने भी ब्रह्म स्त्र
चि य । दोनों ब्रह्म स्त्रों की अजनन से सृजष्ट्ट जिने िगी। सृजष्ट्ट क सांह र होते देख महषिण वेदव्य स ने अजणन व
अश्वत्थ म से अपने-अपने ब्रह्म स्त्र िौट ने के लिए कह ।
अजणन ने तरांत अपन अस्त्र िौट लिय , िेककन अश्वत्थ म को ब्रह्म स्त्र िौट ने क ज्ञ न नहीां थ । इसलिए उसने
अपने ब्रह्म स्त्र की ददश बदि कर अलभमन्य की पत्नी उत्तर के गभण की ओर कर दी और कह कक मेरे इस अस्त्र के
प्रभ व से प ांडवों क वांश सम प्त हो ज एग । तब श्रीकृ ष्ट्र् ने अश्वत्थ म से कह कक तम्ह र अस्त्र अवश्य ही अचूक
है, ककां त उत्तर के गभण से उत्पन्न मृत लशश भी जीषवत हो ज एग ।
ऐस कहकर श्रीकृ ष्ट्र् ने अश्वत्थ म को श्र प ददय कक तम तीन हज र विण तक पृथ्वी पर भटकते रहोगे और ककसी
से ब त नहीां कर प ओगे। तम्ह रे शरीर से पीब व रतत बहत रहेग । इसके ब द अश्वत्थ म ने महषिण वेदव्य स के
कहने पर अपनी मणर् तनक ि कर प ांडवों को दे दी और स्वयां वन में चि गय । अश्वत्थ म से मणर् ि कर प ांडवों ने
द्रौपदी को दे दी और बत य कक गरु पत्र होने के क रर् उन्होंने अश्वत्थ म को जीषवत छोड ददय है।
षवदर
मह त्म षवदर क जन्म महषिण वेदव्य स के आशीव णद से द सी के गभण से हआ थ । मह भ रत के अनस र षवदर
धमणर ज (यमर ज) के अवत र थे। एक ऋषि के श्र प के क रर् धमणर ज को मनष्ट्य रूप से जन्म िेन पड । षवदर
नीततकशि थे। उन्होंने सदैव धमण क स थ ददय ।
यधधजष्िर में समा गए थे ववदर के प्राण
जब धृतर ष्ट्र, ग ांध री, कां ती व षवदर व नप्रस्थ आश्रम में रहते हए किोर तप कर रहे थे, तब एक ददन यधधजष्ट्िर
सभी प ांडवों के स थ उनसे लमिने पहांचे। धृतर ष्ट्र, ग ांध री व कां ती के स थ जब यधधजष्ट्िर ने षवदर को नहीां देख तो
धृतर ष्ट्र से उनके ब रे में पूछ । धृतर ष्ट्र ने बत य कक वे किोर तप कर रहे हैं।
तभी यधधजष्ट्िर को षवदर उसी ओर आते हए ददख ई ददए, िेककन आश्रम में इतने स रे िोगों को देखकर षवदरजी
पन: िौट गए। यधधजष्ट्िर उनसे लमिने के लिए पीछे-पीछे दौडे। तब वन में एक पेड के नीचे उन्हें षवदरजी खडे हए
ददख ई ददए। उसी समय षवदरजी के शरीर से प्र र् तनकिे और यधधजष्ट्िर में सम गए।
जब यधधजष्ट्िर ने देख कक षवदरजी के शरीर में प्र र् नहीां है तो उन्होंने उनक द ह सांस्क र करने क तनर्णय लिय ।
तभी आक शव र्ी हई कक षवदरजी सांन्य स धमण क प िन करते थे। इसलिए उनक द ह सांस्क र करन उधचत नहीां
है। यह ब त यधधजष्ट्िर ने आकर मह र ज धृतर ष्ट्र को बत ई। यधधजष्ट्िर के मख से यह ब त सनकर सभी को आश्चयण
हआ।
शकतन
शकतन ग ांध री क भ ई थ । धृतर ष्ट्र व ग ांध री के षवव ह के ब द शकतन हजस्तन पर में ही आकर बस गए। यह ां वे
कौरवों को सदैव प ांडवों के षवरुद्ध भडक ते रहते थे। प ांडवों क अांत करने के लिए शकतन ने कई योजन एां बन ई,
िेककन उनकी कोई च ि सफि नहीां हो प ई।
ऐसे हई मृत्य
यद्ध में सहदेव ने वीरत पूवणक यद्ध करते हए शकतन और उिूक (शकतन क पत्र) को घ यि कर ददय और देखते
ही देखते उिूक क वध ददय । अपने पत्र क शव देखकर शकतन को बहत द:ख हआ और वह यद्ध छोडकर भ गने
िग । सहदेव ने शकतन क पीछ ककय और उसे पकड लिय । घ यि होने पर भी शकतन ने बहत समय तक सहदेव
से यद्ध ककय और अांत में सहदेव के ह थों म र गय ।

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महाभारत के वो पात्र जिनके आस

  • 1. महाभारत के वो पात्र जिनके आस-पास घूमती है पूरी कहानी कर्ण जब प ांडवों की म त कां ती ब ल्य वस्थ में थी, उस समय उन्होंने ऋषि दव णस की सेव की थी। सेव से प्रसन्न होकर ऋषि दव णस ने कां ती को एक मांत्र ददय जजससे वह ककसी भी देवत क आह्व न कर उससे पत्र प्र प्त कर सकती थीां। षवव ह से पूवण इस मांत्र की शजतत देखने के लिए एक ददन कां ती ने सूयणदेव क आह्व न ककय , जजसके फिस्वरूप कर्ण क जन्म हआ। ककां त िोक-ि ज के भय से कां ती ने कर्ण को नदी में बह ददय । कर्ण ददव्य कवच-कां डि के स थ ही पैद हआ थ । कर्ण क प िन-पोिर् धृतर ष्ट्र के स रथी अधधरथ व उसकी पत्नी र ध ने ककय । र ध क पत्र समझे ज ने के क रर् ही कर्ण र धेय न म से भी ज न ज ने िग । यद्ध के दौर न कर्ण ने कौरवों क स थ ददय । श्र प के क रर् कर्ण के रथ क पदहय जमीन में धांस गय और उसे अपने ददव्य स्त्रों क ज्ञ न भी नहीां रह । इसी समय अजणन ने कर्ण क वध कर ददय । इंद्र को दान कर ददए थे कवच-कं डल देवर ज इांद्र क अजणन पर षवशेि स्नेह थ । इांद्र ज नते थे कक जब तक कर्ण के प स कवच-कां डि है, उससे कोई नहीां जीत सकत । तब एक ददन इांद्र ब्र ह्मर् क रूप ध रर् कर कर्ण के प स आए और लभक्ष में कवच-कां डि म ांग लिए। तब कर्ण ने ब्र ह्मर् से कह कक आप स्वयां देवर ज इांद्र हैं, ये ब त मैं ज नत हूां। आप स्वयां मझसे य चन कर रहे हैं। इसलिए मैं आपको अपने कवच-कां डि अवश्य दूांग , िेककन इसके बदिे आप को भी मझे वह अमोघ शजतत देनी होगी। देवर ज इांद्र ने कर्ण को वो अमोघ शजतत दे दी और कह कक इस शजतत क प्रयोग तम लसफण एक ही ब र कर सकोगे। कर्ण ने देवर ज इांद्र की ब त म नकर वह अमोघ शजतत िे िी और कवच-कां डि इांद्र को दे ददए। प ांडव मह र ज प ांड के प ांचों पत्र प ांडव कहि ए। एक ब र र ज प ांड लशक र खेि रहे थे। उस समय ककां दम न मक ऋषि अपनी पत्नी के स थ दहरन के रूप में सहव स कर रहे थे। उसी अवस्थ में र ज प ण्ड ने उन पर ब र् चि ददए। मरने से पहिे ऋषि ककां दम ने र ज प ांड को श्र प ददय कक जब भी वे अपनी पत्नी के स थ सहव स करेंगे तो उसी अवस्थ में उनकी मृत्य हो ज एगी। ऋषि ककां दम के श्र प से द:खी होकर र ज प ांड ने र ज-प ट क त्य ग कर ददय और वनव सी हो गए। कां ती और म द्री भी अपने पतत के स थ ही वन में रहने िगीां। जब प ांड को ऋषि दव णस द्व र कां ती को ददए गए मांत्र के ब रे में पत चि तो उन्होंने कां ती से धमणर ज क आव हन करने के लिए कह जजसके फिस्वरूप धमणर ज यधधजष्ट्िर क जन्म हआ। इसी प्रक र व यदेव के अांश से भीम और देवर ज इांद्र के अांश से अजणन क जन्म हआ। कां ती ने यह मांत्र म द्री को बत य । तब म द्री ने अजश्वनकम रों क आव हन ककय , जजसके फिस्वरूप नकि व सहदेव क जन्म हआ। - यधधजष्ट्िर प ांडवों में सबसे बडे थे। ये धमण और नीतत के ज्ञ त थे। धमण क ज्ञ न होने के क रर् ही इन्हें धमणर ज भी कह ज त थ । प ांडवों में लसफण यधधजष्ट्िर ही ऐसे थे जो सशरीर स्वगण गए थे। - भीम यधधजष्ट्िर से छोटे थे। ये मह बिश िी थे। मह भ रत के अनस र यद्ध के दौर न भीम ने सबसे ज्य द कौरवों क वध ककय थ । द:श सन व दयोधन क वध भी भीम ने ही ककय थ । - अजणन प ांडवों में तीसरे भ ई थे। ये देवर ज इांद्र के अांश थे। मह भ रत के अनस र ये पर तन ऋषि नर के अवत र थे। भगव न श्रीकृ ष्ट्र् क इन पर षवशेि स्नेह थ । अजणन ने ही घोर तपस्य कर देवत ओां से ददव्य स्त्र प्र प्त ककए थे। भीष्ट्म, कर्ण, जयद्रथ आदद क वध अजणन के ह थों ही हआ थ ।
  • 2. - नकि व सहदेव प ांडवों में सबसे छोटे थे। ये अजश्वनकम र के अांश थे। सहदेव ने ही शकतन व उसके पत्र उिूक क वध ककय थ । कौरव एक ब र ग ांध री ने महषिण वेदव्य स की खूब सेव की। प्रसन्न होकर उन्होंने ग ांध री को सौ पत्रों की म त होने क वरद न ददय । समय आने पर ग ांध री को गभण िहर , िेककन वह दो विण तक पेट में रुक रह । घबर कर ग ांध री ने गभण धगर ददय । ग ांध री के पेट से िोहे के सम न म ांस क गोि तनकि । तब महषिण वेदव्य स वह ां पहांचे और उन्होंने कह कक तम सौ कण्ड बनव कर उन्हें घी से भर दो और उनकी रक्ष के लिए प्रबांध करो। इसके ब द महषिण वेदव्य स ने ग ांध री को उस म ांस के गोिे पर िांड जि तछडकने के लिए कह । जि तछडकते ही उस म ांस के गोिे के 101 टकडे हो गए। महषिण की ब त म नकर ग ांध री ने उन सभी म ांस के टकडों को घी से भरे कां डों में रख ददय । कफर महषिण ने कह कक इन कां डों को दो स ि के ब द खोिन । समय आने पर उन कां डों से पहिे दयोधन क जन्म हआ और उसके ब द अन्य ग ांध री पत्रों क । ग ांध री के अन्य 99 पत्रों के न म इस प्रक र हैं- 2- द:श सन, 3- दस्सह, 4- दश्शि, 5- जिसांध, 6- सम, 7- सह, 8- षवांद, 9- अनषवांद, 10- दद्र्धिण, 11- सब ह, 12- दष्ट्प्रधिणर्, 13- दमणिणर्, 14- दमणख, 15- दष्ट्कर्ण, 16- कर्ण, 17- षवषवांशतत, 18- षवकर्ण, 19- शि, 20- सत्व, 21- सिोचन, 22- धचत्र, 23- उपधचत्र, 24- धचत्र क्ष, 25- च रुधचत्र, 26- शर सन, 27- दमणद, 28- दषवणग ह, 29- षवषवत्स, 30- षवकट नन, 31- ऊर्णन भ, 32- सन भ, 33- नांद, 34- उपनांद, 35- धचत्रब र् 36- धचत्रवम ण, 37- सवम ण, 38- दषवणमोचन, 39- आयोब ह, 40- मह ब ह 41- धचत्र ांग, 42- धचत्रकां डि, 43- भीमवेग, 44- भीमबि, 45- बि की, 46- बिवद्र्धन, 47- उग्र यध, 48- सिेर्, 49- कण्डध र, 50- महोदर, 51- धचत्र यध, 52- तनिांगी, 53- प शी, 54- वृांद रक, 55- दृढ़वम ण, 56- दृढ़क्षत्र, 57- सोमकीततण, 58- अनूदर, 59- दृढ़सांध, 60- जर सांध,61- सत्यसांध, 62- सद:सव क, 63- उग्रश्रव , 64- उग्रसेन, 65- सेन नी, 66- दष्ट्पर जय, 67- अपर जजत, 68- कण्डश यी, 69- षवश ि क्ष, 70- दर धर 71- दृढ़हस्त, 72- सहस्त, 73- ब तवेग, 74- सवच ण, 75- आददत्यके त, 76- बह्व शी, 77- न गदत्त, 78- अग्रय यी, 79- कवची, 80- क्रथन, 81- कण्डी, 82- उग्र, 83- भीमरथ, 84- वीरब ह, 85- अिोिप, 86- अभय, 87- रौद्रकम ण, 88- दृढऱथ श्रय, 89- अन धृष्ट्य, 90- कण्डभेदी, 91- षवर वी, 92- प्रमथ, 93- प्रम थी, 94- दीघणरोम , 95- दीघणब ह, 96- मह ब ह, 97- व्यूढोरस्क, 98- कनकध्वज, 99- कण्ड शी, और 100-षवरज । - 100 पत्रों के अि व ग ांध री की एक पत्री भी थी जजसक न म दश्शि थ , इसक षवव ह र ज जयद्रथ के स थ हआ थ । द्रौपदी व धृष्ट्टद्यम्न प ांच ि देश के र ज द्रपद ने य ज न मक तपस्वी से यज्ञ करव य , जजससे एक ददव्य कम र उत्पन्न हआ। उसके लसर पर मकट और शरीर पर कवच थ । तभी आक शव र्ी हई कक यह कम र द्रोर् च यण को म रने के लिए ही उत्पन्न हआ है। इसके ब द उस यज्ञवेदी से एक सांदर कन्य उत्पन्न हई। तभी आक शव र्ी हई कक इस कन्य क जन्म क्षत्रत्रयों के सांह र के लिए हआ है। इसके क रर् कौरवों को बहत भय होग । द्रपद ने इस कम र क न म धृष्ट्टद्यम्न रख और कन्य क न म द्रौपदी। द्रौपदी के षवव ह के लिए द्रपद ने स्वयांवर क आयोजन ककय । अजणन ने स्वयांवर की शतण पूरी कर द्रौपदी से षवव ह कर लिय । जब प ांडव द्रौपदी को िेकर अपनी म त कां ती के प स पहांचे तो उन्होंने त्रबन देखे ही कह ददय कक प ांचों भ ई आपस में ब ांट िो। तब द्रौपदी ने प ांचों भ इयों से षवधधपूवणक षवव ह ककय ।
  • 3. इसललए लमले पांच पतत मह भ रत के अनस र द्रौपदी पूवण जन्म में ऋषि कन्य थी। षवव ह न होने से द:खी होकर वह तपस्य करने िगी। उसकी तपस्य से भगव न शांकर प्रसन्न हो गए और उसे दशणन ददए तथ वर म ांगने को भी कह । भगव न के दशणन प कर द्रौपदी बहत प्रसन्न हो गई और उसने अधीरत वश भगव न शांकर से प्र थणन की कक मैं सवणगर्यतत पतत च हती हूां। ऐस उसने प ांच ब र कह । तब भगव न ने उसे वरद न ददय कक तूने मझसे प ांच ब र प्र थणन की है इसलिए तझे प ांच भरतवांशी पतत प्र प्त होंगे। धृष्टद्यम्न ने ककया था द्रोणाचायय का वध श्रीकृ ष्ट्र् ने धृष्ट्टद्यम्न को प ांडवों की सेन क सेन पतत बन य थ । यद्ध के दौर न जब अपने पत्र की मृत्य को सच म नकर गरु द्रोर् ने अपने अस्त्र नीचे रख ददए तब धृष्ट्टद्यम्न ने तिव र से गरु द्रोर् क वध कर ददय थ । अश्वत्थ म मह भ रत के अनस र गरु द्रोर् च यण क षवव ह कृ प च यण की बहन कृ पी से हआ थ । कृ पी के गभण से अश्वत्थ म क जन्म हआ। उसने जन्म िेते ही अच्चै:श्रव अश्व के सम न शब्द ककय , इसी क रर् उसक न म अश्वत्थ म हआ। वह मह देव, यम, क ि और क्रोध के सजम्मलित अांश से उत्पन्न हआ थ । अश्वत्थ म मह पर क्रमी थ । यद्ध में उसने कौरवों क स थ ददय थ । मृत्य से पहिे दयोधन ने उसे अांततम सेन पतत बन य थ । र त के समय अश्वत्थ म ने छि पूवणक द्रौपदी के प ांचों पत्रों, धृष्ट्टद्यम्न, लशखांडी आदद योद्ध ओां क वध कर ददय थ । म न्यत है कक अश्वत्थ म आज भी जीषवत है। इनक न म अष्ट्ट धचरांजीषवयों में लिय ज त है। श्रीकृ ष्ण ने ददया था श्राप जब अश्वत्थ म ने सोते हए द्रौपदी के पत्रों क वध कर ददय , तब प ांडव क्रोधधत होकर उसे ढूांढने तनकिे। अश्वत्थ म को ढूांढते हए वे महषिण वेदव्य स के आश्रम पहांचे। अश्वत्थ म ने देख कक प ांडव मेर वध करने के लिए यह ां आ गए हैं तो उसने प ांडवों क न श करने के लिए ब्रह्म स्त्र क व र ककय । श्रीकृ ष्ट्र् के कहने पर अजणन ने भी ब्रह्म स्त्र चि य । दोनों ब्रह्म स्त्रों की अजनन से सृजष्ट्ट जिने िगी। सृजष्ट्ट क सांह र होते देख महषिण वेदव्य स ने अजणन व अश्वत्थ म से अपने-अपने ब्रह्म स्त्र िौट ने के लिए कह । अजणन ने तरांत अपन अस्त्र िौट लिय , िेककन अश्वत्थ म को ब्रह्म स्त्र िौट ने क ज्ञ न नहीां थ । इसलिए उसने अपने ब्रह्म स्त्र की ददश बदि कर अलभमन्य की पत्नी उत्तर के गभण की ओर कर दी और कह कक मेरे इस अस्त्र के प्रभ व से प ांडवों क वांश सम प्त हो ज एग । तब श्रीकृ ष्ट्र् ने अश्वत्थ म से कह कक तम्ह र अस्त्र अवश्य ही अचूक है, ककां त उत्तर के गभण से उत्पन्न मृत लशश भी जीषवत हो ज एग । ऐस कहकर श्रीकृ ष्ट्र् ने अश्वत्थ म को श्र प ददय कक तम तीन हज र विण तक पृथ्वी पर भटकते रहोगे और ककसी से ब त नहीां कर प ओगे। तम्ह रे शरीर से पीब व रतत बहत रहेग । इसके ब द अश्वत्थ म ने महषिण वेदव्य स के कहने पर अपनी मणर् तनक ि कर प ांडवों को दे दी और स्वयां वन में चि गय । अश्वत्थ म से मणर् ि कर प ांडवों ने द्रौपदी को दे दी और बत य कक गरु पत्र होने के क रर् उन्होंने अश्वत्थ म को जीषवत छोड ददय है। षवदर मह त्म षवदर क जन्म महषिण वेदव्य स के आशीव णद से द सी के गभण से हआ थ । मह भ रत के अनस र षवदर धमणर ज (यमर ज) के अवत र थे। एक ऋषि के श्र प के क रर् धमणर ज को मनष्ट्य रूप से जन्म िेन पड । षवदर नीततकशि थे। उन्होंने सदैव धमण क स थ ददय ।
  • 4. यधधजष्िर में समा गए थे ववदर के प्राण जब धृतर ष्ट्र, ग ांध री, कां ती व षवदर व नप्रस्थ आश्रम में रहते हए किोर तप कर रहे थे, तब एक ददन यधधजष्ट्िर सभी प ांडवों के स थ उनसे लमिने पहांचे। धृतर ष्ट्र, ग ांध री व कां ती के स थ जब यधधजष्ट्िर ने षवदर को नहीां देख तो धृतर ष्ट्र से उनके ब रे में पूछ । धृतर ष्ट्र ने बत य कक वे किोर तप कर रहे हैं। तभी यधधजष्ट्िर को षवदर उसी ओर आते हए ददख ई ददए, िेककन आश्रम में इतने स रे िोगों को देखकर षवदरजी पन: िौट गए। यधधजष्ट्िर उनसे लमिने के लिए पीछे-पीछे दौडे। तब वन में एक पेड के नीचे उन्हें षवदरजी खडे हए ददख ई ददए। उसी समय षवदरजी के शरीर से प्र र् तनकिे और यधधजष्ट्िर में सम गए। जब यधधजष्ट्िर ने देख कक षवदरजी के शरीर में प्र र् नहीां है तो उन्होंने उनक द ह सांस्क र करने क तनर्णय लिय । तभी आक शव र्ी हई कक षवदरजी सांन्य स धमण क प िन करते थे। इसलिए उनक द ह सांस्क र करन उधचत नहीां है। यह ब त यधधजष्ट्िर ने आकर मह र ज धृतर ष्ट्र को बत ई। यधधजष्ट्िर के मख से यह ब त सनकर सभी को आश्चयण हआ। शकतन शकतन ग ांध री क भ ई थ । धृतर ष्ट्र व ग ांध री के षवव ह के ब द शकतन हजस्तन पर में ही आकर बस गए। यह ां वे कौरवों को सदैव प ांडवों के षवरुद्ध भडक ते रहते थे। प ांडवों क अांत करने के लिए शकतन ने कई योजन एां बन ई, िेककन उनकी कोई च ि सफि नहीां हो प ई। ऐसे हई मृत्य यद्ध में सहदेव ने वीरत पूवणक यद्ध करते हए शकतन और उिूक (शकतन क पत्र) को घ यि कर ददय और देखते ही देखते उिूक क वध ददय । अपने पत्र क शव देखकर शकतन को बहत द:ख हआ और वह यद्ध छोडकर भ गने िग । सहदेव ने शकतन क पीछ ककय और उसे पकड लिय । घ यि होने पर भी शकतन ने बहत समय तक सहदेव से यद्ध ककय और अांत में सहदेव के ह थों म र गय ।