Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
Alankar
1.
2. अलंकार :-
मानव समाज सौन्दर्योपासक है ,उसकी इसी
प्रवृत्ति ने अलंकारों को जन्म त्तदर्या है। शरीर की
सुन्दरता को बढाने के त्तलए त्तजस प्रकार मनुष्र्य
ने त्तिन्न -त्तिन्न प्रकार के आिूषण का प्रर्योग
त्तकर्या ,उसी प्रकार उसने िाषा को सुंदर बनाने
के त्तलए अलंकारों का सृजन त्तकर्या।
3. काव्र्य की शोिा बढाने वाले शब्दों को अलंकार
कहते है। त्तजस प्रकार नारी के सौन्दर्यय को
बढाने के त्तलए आिूषण होते है,उसी प्रकार
िाषा के सौन्दर्यय के उपकरणों को अलंकार
कहते है। इसीत्तलए कहा गर्या है - 'िूषण त्तबना
न सोहई -कत्तवता ,बत्तनता त्तमि।'
4. अलंकार के िेद - इसके तीन िेद होते है -
१.शब्दालंकार
२.अर्ाालंकार
३.उभयालंकार
5. 1.शब्दालंकार :-
त्तजस अलंकार में शब्दों के प्रर्योग
के कारण कोई चमत्कार उपत्तथित हो जाता है और
उन शब्दों के थिान पर समानािी दूसरे शब्दों के
रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है,वह पर
शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख
िेद है - १.अनुप्रास
२.र्यमक
३.शेष
6. १.अनुप्रास :- अनुप्रास शब्द 'अनु' तर्ा 'प्रास' शब्दों के
योग से बना है । 'अनु' का अर्ा है :- बार- बार तर्ा 'प्रास' का अर्ा
है - वर्ा । जहााँ स्वर की समानता के बबना भी वर्ों की बार -बार आवृबि होती है
,वहााँ अनुप्रास अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वर्ा का बार -बार प्रयोग
बकया जाता है । जैसे -
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर िूप ।
त्तवश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।
7. २.र्यमक अलंकार :- जहााँ एक ही शब्द अबिक बार प्रयुक्त हो
,लेबकन अर्ा हर बार बभन्न हो ,वहााँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरर् -
कनक कनक ते सौगुनी ,मादकता अबिकाय ।
वा खाये बौराय नर ,वा पाये बौराय। ।
३.श्लेष अलंकार :- जहााँ पर ऐसे शब्दों का प्रयोग हो ,बजनसे
एक से अबिक अर्ा बनलकते हो ,वहााँ पर श्लेष अलंकार होता है ।
जैसे -
बिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घबि ये वृष भानुजा ,वे हलिर के बीर। ।
8. 2. अर्थालंकथर :-
जहााँ अर्ा के माध्यम से काव्य में
िमत्कार उत्पन्न होता है ,वहााँ अर्ाालंकार होता है । इसके
प्रमुख भेद है - १.उपमा २.रूपक ३.उत्प्रेक्षा ४.दृष्टान्त
५.संदेह ६.अबतशयोबक्त
१.उपमथ अलंकथर :- जहााँ दो वस्तुओंमें अन्तर रहते हुए भी
आकृ बत एवं गुर् की समता बदखाई जाय ,वहााँ उपमा अलंकार
होता है ।
उदाहरर् -
सागर -सा गंभीर ह्रदय हो ,
बगरी -सा ऊाँ िा हो बजसका मन।
9. २.रूपक अलंकार :- जहााँ उपमेय पर उपमान का आरोप बकया जाय ,वहााँ रूपक
अलंकार होता है , यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न बदखाई पडे । उदाहरर्
-
बीती बवभावरी जाग री।
अम्बर -पनघि में डु बों रही ,तारा -घि उषा नागरी ।'
३.उत्प्रेक्षा अलंकार :- जहााँ उपमेय को ही उपमान मान बलया जाता है यानी अप्रस्तुत
को प्रस्तुत मानकर वर्ान बकया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहााँ
बभन्नता में अबभन्नता बदखाई जाती है। उदाहरर् -
सबख सोहत गोपाल के ,उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु बपये,दावानल की ज्वाल । ।
10. ४.अतिशयोक्ति अलंकथर :- जहााँ पर लोक -सीमा का अबतक्रमर् करके बकसी
बवषय का वर्ान होता है । वहााँ पर अबतशयोबक्त अलंकार होता है। उदाहरर् -
हनुमान की पंछ में लगन न पायी आबग ।
सगरी लंका जल गई ,गये बनसािर भाबग। ।
५.संदेह अलंकथर :- जहााँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत का संशयपर्ा वर्ान हो ,वहााँ संदेह
अलंकार होता है। जैसे -
'सारी बबि नारी है बक नारी बबि सारी है ।
बक सारी हीकी नारी है बक नारी हीकी सारी है । '
11. ६.दृष्टथन्ि अलंकथर :- जहााँ दो सामान्य या दोनों बवशेष
वाक्य में बबम्ब -प्रबतबबम्ब भाव होता है ,वहााँ पर दृष्टान्त
अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से बमलती -जुलती
बात उपमान रूप में दसरे वाक्य में होती है। उदाहरर् :-
'एक म्यान में दो तलवारें ,
कभी नही रह सकती है ।
बकसी और पर प्रेम नाररयााँ,
पबत का क्या सह सकती है । । '
12. 3. उभयथलंकथर
जहााँ काव्य में शब्द और अर्ा दोनों का िमत्कार एक
सार् उत्पन्न होता है ,वहााँ उभयालंकार होता है । उदाहरर् - 'कजरारी अंत्तखर्यन
में कजरारी न लखार्य।'
इस अलंकार में शब्द और अर्ा दोनों है।