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प्रात् स्भयणीम ऩूज्मऩाद वॊत श्री आवायाभजी फाऩू के
                                         वत्वॊग-प्रलचन




                        अनन्म मोग
                             ऩूज्म फाऩू का ऩालन वन्दे ळ
       शभ धनलान शोगे मा नश , चनाल जीतें गे मा नश ॊ इवभें ळॊका शो वकती शै ऩयॊ तु बैमा !
                           ॊ ु
शभ भयें गे मा नश ॊ, इवभें कोई ळॊका शै ? वलभान उड़ने का वभम ननश्चित शोता शै , फव चरने का
वभम ननश्चित शोता शै , गाड़ी छटने का वभम ननश्चित शोता शै ऩयॊ तु इव जीलन की गाड़ी छटने
                             ू                                                   ू
का कोई ननश्चित वभम शै ?
       आज तक आऩने जगत भें जो कछ जाना शै , जो कछ प्राप्त ककमा शै .... आज क फाद जो
                              ु               ु                          े
जानोगे औय प्राप्त कयोगे, प्माये बैमा ! लश वफ भत्मु क एक श झटक भें छट जामेगा, जाना
                                              ृ     े        े     ू
अनजाना शो जामेगा, प्रानप्त अप्रानप्त भें फदर जामेगी।
       अत् वालधान शो जाओ। अन्तभुख शोकय अऩने अवलचर आत्भा को, ननजस्लरूऩ के
अगाध आनन्द को, ळाश्वत ळाॊनत को प्राप्त कय रो। कपय तो आऩ श अवलनाळी आत्भा शो।
       जागो.... उठो.... अऩने बीतय वोमे शुए ननिमफर को जगाओ। वलुदेळ, वलुकार भें
वलोत्तभ आत्भफर को अश्चजत कयो। आत्भा भें अथाश वाभर्थमु शै । अऩने को द न-श न भान फैठे
                          ु
तो वलश्व भें ऐवी कोई वत्ता नश ॊ जो तुम्शें ऊऩय उठा वक। अऩने आत्भस्लरूऩ भें प्रनतवित शो गमे
                                                     े
तो त्रिरोकी भें ऐवी कोई शस्ती नश ॊ जो तुम्शें दफा वक।
                                                    े
       वदा स्भयण यशे कक इधय-उधय बटकती लवत्तमों क वाथ तुम्शाय ळक्ति बी त्रफखयती यशती
                                       ृ        े
शै । अत् लवत्तमों को फशकाओ नश ॊ। तभाभ लवत्तमों को एकत्रित कयक वाधना-कार भें
          ृ                            ृ                     े
आत्भचचन्तन भें रगाओ औय व्मलशाय-कार भें जो कामु कयते शो उवभें रगाओ। दत्तचचत्त शोकय
शय कोई कामु कयो। वदा ळान्त लवत्त धायण कयने का अभ्माव कयो। वलचायलन्त एलॊ प्रवन्न यशो।
                            ृ
जीलभाि को अऩना स्लरूऩ वभझो। वफवे स्नेश यखो। ददर को व्माऩक यखो। आत्भननि भें जगे
शुए भशाऩरुऴों क वत्वॊग एलॊ वत्वादशत्म वे जीलन को बक्ति एलॊ लेदान्त वे ऩष्ट एलॊ ऩरककत
        ु      े                                                       ु        ु
कयो।
                                            अनक्रभ
                                              ु
                  ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
ननलेदन
           शजायों-शजायों बिजनों, श्चजसावु वाधकों क लरमे प्रात् स्भयणीम ऩज्मऩाद वॊत श्री
                                                  े                     ू
आवायाभजी फाऩू की जीलन-उद्धायक अभतलाणी ननत्म ननयन्तय फशा कयती शै । रृदम की गशयाई वे
                                ृ
उठने लार उनकी मोगलाणी श्रोताजनों क रृदमों भें उतय जाती शै , उन्शें ईश्वय म आह्लाद वे भधय
                                  े                                                    ु
फना दे ती शै । ऩज्म श्री की वशज फोर-चार भें ताश्चवलक अनबल, जीलन की भीभाॊवा, लेदान्त क
                ू                                      ु                             े
अनबनतभरक भभु प्रकट शो जामा कयते शैं। उनका ऩालन दळुन औय वाश्चन्नध्म ऩाकय शजायों-
  ु ू ू
शजायों भनुष्मों क जीलन-उद्यान नलऩल्रवलत-ऩुश्चष्ऩत शो जाते शैं। उनकी अगाध सानगॊगा वे कछ
                 े                                                                   ु
आचभन रेकय प्रस्तुत ऩुस्तक भें वॊकलरत कयक आऩकी वेला भें उऩश्चस्थत कयते शुए शभ
                                        े
आनन्दनत शो यशे शैं.....।
                                                                                                                                           वलनीत,
                                                                                                         श्री मोग लेदान्त वेला वलभनत
                                    ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

                                                                        अनुक्रभ

ऩूज्म फाऩू का ऩालन वन्दे ळ ............................................................................................................ 2
ननलेदन ............................................................................................................................................. 3
अनन्म मोग ..................................................................................................................................... 4
रूचच औय आलश्मकता ...................................................................................................................... 8
प्रानप्त औय प्रतीनत ........................................................................................................................... 17
जीलन-भीभाॊवा ................................................................................................................................ 29
आश्चस्तक का जीलन-दळुन .............................................................................................................. 37
भधु वॊचम ...................................................................................................................................... 42
   असान को लभटाओ..................................................................................................................... 42
   करयए ननत वत्वॊग को.... .......................................................................................................... 42
   वालधान.....! ............................................................................................................................... 42
   तर्कमुताभ ्.... भा कतर्कमाुताभ ..................................................................................................... 43
                       ु          ्
   आश्चस्तक औय नाश्चस्तक .............................................................................................................. 48
   वख-द्ख वे राब उठाओ .......................................................................................................... 49
    ु  ु
   अनन्म मोग वाधो...................................................................................................................... 49
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ


                                      अनन्म मोग
                               भनम चानन्ममोगेन बक्तियव्मलबचारयणी।
                                   वललिदे ळवेवलत्लयनतजुनवॊवदद।।
       "भझ ऩयभेश्वय भें अनन्म मोग क द्वाया अव्मलबचारयणी बक्ति तथा एकान्त औय ळद्ध दे ळ
         ु                         े                                         ु
भें यशने का स्लबाल औय वलऴमावि भनष्मों क वभदाम भें प्रेभ का न शोना (मश सान शै )।"
                                ु      े  ु
                                                                       (बगलद् गीता् 13.19)
       अनन्म बक्ति औय अव्मलबचारयणी बक्ति अगय बगलान भें शो जाम, तो बगलत्प्रानप्त कदठन
नश ॊ शै । बगलान प्राणणभाि का अऩना आऩा शै । जैवे ऩनतव्रता स्त्री अऩने ऩनत क लवलाम अन्म
                                                                          े
ऩुरूऴ भें ऩनतबाल नश ॊ यखती, ऐवे श श्चजवको बगलत्प्रानप्त क लवलाम औय कोई वाय लस्तु नश
                                                         े
ददखती, ऐवा श्चजवका वललेक जाग गमा शै , उवक लरए बगलत्प्रानप्त वुगभ शो जाती शै । लास्तल
                                         े
भें , बगलत्प्रानप्त श वाय शै । भाॉ आनन्दभमी कशा कयती थीॊ- "शरयकथा श कथा...... फाकी वफ
जग की व्मथा।"
       भेये प्रनत अनन्म मोग द्वाया अव्मलबचारयणी बक्ति का शोना, एकान्त स्थान भें यशने का
स्लबाल शोना औय जन वभुदाम भें प्रीनत न शोना.... इव प्रकाय की श्चजवकी बक्ति शोती शै , उवे
सान भें रूचच शोती शै । ऐवा वाधक अध्मात्भसान भें ननत्म यभण कयता शै । तवलसान के
अथुस्लरूऩ ऩयभात्भा को वफ जगश दे खता शै । इव प्रकाय जो शै , लश सान शै । इववे जो वलऩय त
शै , लश असान शै ।
       शरययव को, शरयसान को, शरयवलश्राश्चन्त को ऩामे त्रफना श्चजवको फाकी वफ व्मथु व्मथा
रगती शै , ऐवे वाधक की अनन्म बक्ति जगती शै । श्चजवकी अनन्म बक्ति शै बगलान भें , श्चजवका
अनन्म मोग शो गमा शै बगलान वे, उवको जनवॊऩक भें रूचच नश ॊ यशती। वाभान्म इच्छाओॊ को
                                         ु
ऩूणु कयने भें , वाभान्म बोगों को बोगने भें जीलन नष्ट कयते शै , ऐवे रोगों भें वच्चे बि को
रूचच नश ॊ शोती। ऩशरे रूचच शुई तफ शुई, ककन्तु जफ अनन्म बक्ति लभर तो कपय उऩयाभता आ
जामेगी। व्मलशाय चराने क लरए रोगों क वाथ 'शू ॉ ...शाॉ...' कय रेगा, ऩय बीतय वे भशवूव कये गा
                         े            े
कक मश वफ जल्द ननऩट जाम तो अच्छा।
       अनन्म बक्ति जफ रृदम भें प्रकट शोती शै , तफ ऩशरे का जो कछ ककमा शोता शै , लश
                                                              ु
फेगाय वा रगता शै । एकान्त दे ळ भें यशने की रूचच शोती शै । जनवॊऩक वे लश दय बागता शै ।
                                                                ु       ू
आश्रभ भें वत्वॊग कामुक्रभ, वाधना लळवलयें आदद को जनवॊवगु नश ॊ कशा जा वकता। जो रोग
वाधन बजन क वलऩय त ददळा भें जा यशे शैं, दे शाध्माव फढा यशे शैं, उनका वॊवगु वाधक क लरए
          े                                                                     े
फाधक शै । श्चजववे आत्भसान लभरता शै , लश जनवॊऩक तो वाधन भागु का ऩोऴक शै ।
                                              ु
जनवाधायण क फीच वाधक यशता शै तो दे श की माद आती शै , दे शाध्माव फढता शै , दे शालबभान
          े
फढता शै । दे शालबभान फढने ऩय वाधक ऩयभाथु तवल वे च्मुत शो जाता शै, ऩयभ तवल भें ळीघ्र
गनत नश ॊ कय वकता। श्चजतना दे शालबभान, दे शाध्माव गरता शै , उतना लश आत्भलैबल को ऩाता
शै । मश फात श्रीभद् आद्य ळॊकयाचामु ने कश ्
                               गलरते दे शाध्मावे वलसाते ऩयभात्भनन।
                              मि मि भनो मानत ति ति वभाधम्।।
       जफ दे शाध्माव गलरत शोता शै , ऩयभात्भा का सान शो जाता शै , तफ जशाॉ-जशाॉ भन जाता
शै , लशाॉ-लशाॉ वभाचध का अनबल शोता शै , वभाचध का आनन्द आता शै ।
                          ु
       दे शाध्माव गराने क लरए श वाय वाधनाएॉ शैं। ऩयभात्भा-प्रानप्त क लरमे श्चजवको तड़ऩ
                         े                                          े
शोती शै , जो अनन्म बाल वे बगलान को बजता शै , 'ऩयभात्भा वे शभ ऩयभात्भा श चाशते शैं....
औय कछ नश ॊ चाशते.....' ऐवी अव्मलबचारयणी बक्ति श्चजवक रृदम भें शोती शै , उवक रृदम भें
    ु                                               े                      े
बगलान सान का प्रकाळ बय दे ते शैं।
       जो धन वे वुख चाशते शैं, लैबल वे वुख चाशते शै , ले रोग वाधना ऩरयश्रभ कयक, वाधना
                                                                              े
औय ऩरयश्रभ क फर ऩय यशते शैं रेककन जो बगलान क फर ऩय बी बगलान को ऩाना चाशते शैं,
            े                               े
बगलान की कृऩा वे श बगलान को ऩाना चाशते शैं, ऐवे बि अनन्म बि शैं।
       गोया कम्शाय बगलान का कीतुन कयते थे। कीतुन कयते-कयते दे शाध्माव बूर गमे। लभट्टी
             ु
यौंदते-यौंदते लभट्टी क वाथ फारक बी यौंदा गमा। ऩता नश ॊ चरा। ऩत्नी की ननगाश ऩड़ी। लश फोर
                      े
उठ ्
       "आज क भुझे स्ऩळु भत कयना।"
            े
       "अच्छा ठ क शै ....।"
       बगलान भें अनन्म बाल था तो ऩत्नी नायाज शो गई, कपय बी ददर को ठे व नश ॊ ऩशुॉची।
स्ऩळु नश ॊ कयना... तो नश ॊ कयें गे। ऩत्नी को फड़ा ऩिाताऩ शुआ कक गरती शो गई। अफ लॊळ कवे
                                                                                    ै
चरेगा ? अऩने वऩता वे कशकय अऩनी फशन की ळाद कयलाई। वफ वलचध वम्ऩन्न कयक जफ        े
लश-लधू वलदा शो यशे थे, तफ वऩता ने अऩने दाभाद गोया कम्शाय वे कशा्
                                                   ु
       "भेय ऩशर फेट को जैवे यखा शै , ऐवे श इवको बी यखना।"
       "शाॉ.. जो आसा।"
       बगलान वे श्चजवका अनन्म मोग शै , लश तो स्लीकाय श कय रेगा। गोया कम्शाय दोनों
                                                                      ु
ऩलत्नमों को वभान बाल वे दे खने रगे। दोनों ऩलत्नमाॉ द्खी शोने रगीॊ। अफ इनको कवे वभझाएॉ ?
                                                    ु                       ै
तक वलतक दे कय ऩनत को वॊवाय भें राना चाशती थीॊ रेककन गोया कम्शाय का अनन्म बाल
  ु    ु                                                  ु
बगलान भें जड़ चका था।
           ु   ु
       आणखय दोनों फशनों ने एक यात्रि को अऩने ऩनत का शाथ ऩकड़कय जफयदस्ती अऩने ळय य
तक रामा। गोया कम्शाय ने वोचा कक भेया शाथ अऩवलि शो गमा। उन्शोंने शाथ को वजा कय द ।
               ु
बगलान ने अनन्म बाल शोना चादशए। अनन्म बाल भाने जैवे ऩनतव्रता स्त्री औय ककवी
ऩुरूऴ को ऩनत बाल वे नश ॊ दे खती, ऐवे श बि मा वाधक बी औय ककवी वाधना वे अऩना
कल्माण शोगा औय ककवी व्मक्ति क फर वे अऩना भोष शोगा, ऐवा नश ॊ वोचता। 'शभें तो
                             े
बगलान की कृऩा वे बगलान क स्लरूऩ का सान शोगा, तबी शभाया कल्माण शोगा। बगलान की
                        े
कृऩा श एकभाि वशाया शै , इवक अराला औय ककवी वाधना भें शभ नश ॊ रूकगे.... शे प्रबु ! शभें
                           े                                   ें
तो कलर तेय कृऩा औय तेये स्लरूऩ की प्रानप्त चादशए.... औय कछ नश ॊ चादशए।' बगलान ऩय जफ
    े                                                    ु
ऐवा अनन्म बाल शोता शै, तफ बगलान कृऩा कयक बि क अन्त्कयण की ऩतें शटाने रगते शैं।
                                        े    े
      शभाया अऩना आऩा कोई गैय नश ॊ शै , दय नश ॊ शै , ऩयामा नश ॊ शै औय बवलष्म भें लभरेगा
                                        ू
ऐवा बी नश ॊ शै । लश अऩना याभ, अऩना आऩा अबी शै , अऩना श शै । इव प्रकाय का फोध वनने
                                                                              ु
की औय इव फोध भें ठशयने की रूचच शो जामेगी। अनन्म बाल वे बगलान का बजन मश
ऩरयणाभ राता शै ।
      अनन्म बाल भाने अन्म-अन्म को दे खे, ऩय बीतय वे वभझे कक इन वफका अश्चस्तवल एक
बगलान ऩय श आधारयत शै । आॉख अन्म को दे खती शै , कान अन्म को वुनते शैं, श्चजह्वा अन्म को
चखती शै , नालवका अन्म को वॉूघती शै , त्लचा अन्म को स्ऩळु कयती शै । उवक वाषी दृष्टा भन
                                                                      े
को जोड़ दो, तो भन एक शै । भन क बी अन्म-अन्म वलचाय शैं। उनभें बी भन का अचधिान,
                              े
आधायबूत अनन्म चैतन्म आत्भा शै । उवी आत्भा ऩयभात्भा को ऩाना शै । न भन की चार भें
आना शै , न इश्चन्िमों क आकऴुण भें आना शै ।
                       े
      इव प्रकाय की तयतीव्र श्चजसावालारा बि, अनन्म मोग कयने लारा वाधक शल्की रूचचमों
औय शल्की आवक्तिमोंलारे रोगों वे अऩनी तुरना नश ॊ कयता।
      चैतन्म भशाप्रबु को ककवी ने ऩूछा् "शरय का नाभ एक फाय रेने वे र्कमा राब शोता शै ?"
      "एक फाय अनन्म बाल वे शरय का नाभ रे रेंगे तो वाये ऩातक नष्ट शो जामेंगे।"
      "दवय फाय रें तो ?"
        ू
      "दवय फाय रेंगे तो शरय का आनन्द प्रकट शोने रगेगा। नाभ रो तो अनन्म बाल वे रो।
        ू
लैवे तो लबखभॊगे रोग वाया ददन शरय का नाभ रेते शैं, ऐवों की फात नश ॊ शै । अनन्म बाल वे
कलर एक फाय बी शरय का नाभ रे लरमा जामे तो वाये ऩातक नष्ट शो जाएॉ।
 े
      रोग वोचते शैं कक शभ बगलान की बक्ति कयते शैं, कपय बी शभाया फेटा ठ क नश ॊ शोता
शै । अन्तमाुभी बगलान दे ख यशे शैं कक मश तो फेटे का बगत शै ।
      'शे बगलान ! भेये इतने राख रूऩमे शो जामें तो उन्शें कपर्कव कयक आयाभ वे बजन
                                                                   े
करूगा.....' अथला 'भेया इतना ऩेन्ळन शो जाम, कपय भैं बजन करूगा...' तो आश्रम कपर्कव
  ॉ                                                      ॉ
क्तडऩोश्चजट का शुआ अथला ऩेन्ळन का शुआ। बगलान ऩय तो आचश्रत नश ॊ शुआ। मश अनन्म बक्ति
नश ॊ शै । नयलवॊश भेशता ने कशा्
                              बोंम वुलाडुॊ बूखे भारू उऩयथी भारू भाय।
                                                   ॉ          ॉ
एटरु कयताॊ शरय बजे तो कय नाखुॊ ननशार।।
       जीलन भें कछ अवुवलधा आ जाती शै तो बगलान वे प्राथुना कयते शैं- 'मश द्ख दय को
                 ु                                                       ु   ू
दो प्रबु !' शभ बगलान क नश ॊ वुवलधा क बगत शैं। बगलान का उऩमोग बी अवुवलधा शटाने क
                      े             े                                          े
लरए कयते शैं। अवुवलधा शट गई, वुवलधा शो गई तो उवभें रेऩामभान शो जाते शैं। वोचते शैं, फाद
भें बजन कयें गे। मश बगलान की अनन्म बक्ति नश ॊ शै । बगलान की बक्ति अनन्म बाल वे की
जाम तो तवलसान का दळुन शोने रगे। आत्भसान प्राप्त कयने की श्चजसावा जाग उठे । जन-वॊवगु
वे वलयक्ति शोने रगे।
                         एकान्तलावो रघुबोजनादद। भौनॊ ननयाळा कयणालयोध्।।
                          भुनेयवो् वॊमभनॊ ऴडेते। चचत्तप्रवादॊ जनमश्चन्त ळीघ्रभ ्।।
       'एकान्त भें यशना, अल्ऩाशाय, भौन, कोई आळा न यखना, इश्चन्िम-वॊमभ औय प्राणामाभ, मे
छ् भनन को ळीघ्र श चचत्तप्रवाद की प्रानप्त कयाते शैं।'
    ु
       एकान्तलाव, इश्चन्िमों को अल्ऩ आशाय, भौन, वाधना भें तत्ऩयता, आत्भवलचाय भें प्रलवत्त...
                                                                                     ृ
इववे कछ श ददनों भें आत्भप्रवाद की प्रानप्त शो जाती शै ।
      ु
       शभाय बक्ति अनन्म नश ॊ शोती, इवलरए वभम ज्मादा रग जाता शै । कछ मश कय रॉ ू...
                                                                  ु
कछ मश दे ख रॉ ू... कछ मश ऩा रॉ .... इव प्रकाय जीलन-ळक्ति त्रफखय जाती शै ।
 ु                  ु          ू
       स्लाभी याभतीथु एक कशानी वुनामा कयते थे्
       एटरान्टा नाभ की एक वलदे ळी रड़की दौड़ रगाने भें फड़ी तेज थी। उवने घोऴणा की थी
कक जो मुलक भुझे दौड़ भें शया दे गा, भैं अऩनी वॊऩवत्त क वाथ उवकी शो जाऊगी। उवक वाथ
                                                      े               ॉ      े
स्ऩधाु भें कई मुलक उतये , रेककन वफ शाय गमे। वफ रोग शायकय रौट जाते थे।
       एक मुलक ने अऩने इष्टदे ल जवऩटय को प्राथुना की। इष्टदे ल ने उवे मुक्ति फता द । दौड़ने
                                 ु
का ददन ननश्चित ककमा गमा। एटरान्टा फड़ी तेजी वे दौड़नेलार रड़की थी। मश मुलक स्लप्न भें
बी उवकी फयाफय नश ॊ कय वकता था, कपय बी दे ल ने कछ मुक्ति फता द थी।
                                               ु
        दौड़ का प्रायॊ ब शुआ। घड़ी बय भें एटरान्टा कश ॊ दय ननकर गई। मुलक ऩीछे यश गमा।
                                                         ू
एटरान्टा कछ आगे गई तो भागु भें वुलणुभुिाएॉ त्रफखय शुई थीॊ। वोचा कक मुलक ऩीछे यश गमा
            ु
शै । लश आले, तफ तक भुिाएॉ फटोय रॉ ू। लश रूकी... भुिाएॉ इकट्ठी की। तफ तक मुलक नजद क आ
गमा। लश झट वे आगे दौड़ी। उवको ऩीछे कय ददमा। कछ आगे गई तो भागु भें औय वुलणुभुिाएॉ
                                             ु
दे खी। लश बी रे र । उवक ऩाव लजन फढ गमा। मुलक बी तफ तक नजद क आ गमा था। कपय
                       े
रड़की ने तेज दौड़ रगाई। आगे गई तो औय वुलणुभुिाएॉ ददखी। उवने उवे बी रे र । इव प्रकाय
एटरान्टा क ऩाव फोझा फढ गमा। दौड़ की यफ्ताय कभ शो गई। आणखय लश मुलक उववे आगे
          े
ननकर गमा। वाय वॊऩवत्त औय यास्ते भें फटोय शुई वुलणुभुिाओॊ क वाथ एटरान्टा को उवने जीत
                                                          े
लरमा।
एटरान्टा तेज दौड़ने लार रड़की थी, ऩय उवका ध्मान वुलणुभुिाओॊ भें अटकता यशा।
वलजेता शोने की मोग्मता शोते शुए बी अनन्म बाल वे नश ॊ दौड़ ऩामी, इववे लश शाय गई।
       ऐवे श भनुष्म भाि भें ऩयब्रह्म ऩयभात्भा को ऩाने की मोग्मता शै । ऩयभात्भा ने भनुष्म को
ऐवी फुवद्ध इवीलरए दे यखी शै कक उवको आत्भा-ऩयभात्भा क सान की श्चजसावा जाग जाम,
                                                    े
आत्भवाषात्काय शो जाम। योट कभाने की औय फच्चों को ऩारने की फुवद्ध तो ऩळु-ऩक्षषमों को बी
द शै । भनुष्म की फुवद्ध वाये ऩळु-ऩषी-प्राणी जगत वे वलळेऴ शै , ताकक लश फुवद्धदाता का
वाषात्काय कय वक। फवद्ध जशाॉ वे वत्ता-स्पनतु राती शै , उव ऩयब्रह्म-ऩयभात्भा का वाषात्काय
               े  ु                     ू
कयक जील ब्रह्म शो जाम। कलर कवी-टे फर ऩय फैठकय करभ चराने क लरए श फवद्ध नश ॊ लभर
   े                    े   ु                            े       ु
शै । फवद्धऩलक करभ तो बरे चराओ, ऩयॊ तु फवद्ध का उऩमोग कलर योट कभाकय ऩेट बयना श
      ु    ू ु                         ु              े
नश ॊ शै । करभ बी चराओ तो ऩयभात्भा को रयझाने क लरमे औय कदार चराओ तो बी उवको
                                             े         ु
रयझाने क लरए।
        े
                                           अनक्रभ
                                             ु
                        ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ


                               रूचच औय आलश्मकता
       ऐवा कोई भनुष्म नश ॊ लभरेगा, श्चजवक ऩाव कछ बी मोग्मता न शो, जो ककवी को
                                         े     ु
भानता न शो। शय भनुष्म जरूय ककवी न ककवी को भानता शै । ऐवा कोई भनुष्म नश ॊ श्चजवभें
जानने की श्चजसावा न शो। लश कछ न कछ जानने की कोलळळ तो कयता श शै । कयने की,
                            ु    ु
भानने की औय जानने की मश स्लत् लवद्ध ऩॉूजी शै शभ वफक ऩाव। ककवी क ऩाव थोड़ी शै तो
                                                   े           े
ककवी क ऩाव ज्मादा शै , रेककन शै जरूय। खार कोई बी नश ॊ।
      े
       शभ रोग जो कछ कयते शैं, अऩनी रूचच क अनुवाय कयते शैं। गरती र्कमा शोती शै कक शभ
                  ु                      े
आलश्मकता क अनुवाय नश ॊ कयते। रूचच क अनुवाय भानते शैं, आलश्मकता क अनुवाय नश ॊ
          े                        े                            े
जानते। फव मश एक गरती कयते शैं। इवे अगय शभ वुधाय रें तो ककवी बी षेि भें आयाभ वे,
त्रफल्कर भजे वे वपर शो वकते शैं। कलर मश एक फात कृऩा कयक जान रो।
       ु                          े                    े
       एक शोती शै रूचच औय दवय शोती शै आलश्मकता। ळय य को बोजन कयने की आलश्मकता
                           ू
शै । लश तन्दरूस्त कवे यशे गा, इवकी आलश्मकता वभझकय आऩ बोजन कयें तो आऩकी फुवद्ध ळुद्ध
            ु      ै
यशे गी। रूचच क अनवाय बोजन कयें गे तो फीभाय शोगी। अगय रूचच क अनवाय बोजन नश ॊ
              े  ु                                         े  ु
लभरेगा औय मदद बोजन लभरेगा तो रूचच नश ॊ शोगी। श्चजवको रूचच शो औय लस्तु न शो तो
ककतना द्ख ! लस्तु शो औय रूचच न शो तो ककतनी व्मथा !
       ु
       खफ ध्मान दे ना कक शभाये ऩाव जानने की, भानने की औय कयने की ळक्ति शै । इवको
        ू
आलश्मकता क अनवाय रगा दें तो शभ आयाभ वे भि शो वकते शैं औय रूचच क अनवाय रगा
          े  ु                          ु                      े  ु
दें तो एक जन्भ नश ॊ, कयोड़ों जन्भों भें बी काभ नश ॊ फनता। कीट, ऩतॊग, वाधायण भनुष्मों भें
औय भशाऩुरूऴों भें इतना श पक शै कक भशाऩुरूऴ भाॉग क अनुवाय कभु कयते शैं जफकक वाधायण
                           ु                     े
भनुष्म रूचच क अनुवाय कभु कयते शैं।
             े
       जीलन की भाॉग शै मोग। जीलन की भाॉग शै ळाश्वत वुख। जीलन की भाॉग शै अखण्डता।
जीलन की भाॉग शै ऩूणता।
                   ु
       आऩ भयना नश ॊ चाशते, मश जीलन की भाॉग शै । आऩ अऩभान नश ॊ चाशते। बरे वश रेते
शैं, ऩय चाशते नश ॊ। मश जीलन की भाॉग शै । तो अऩभान श्चजवका न शो वक, लश ब्रह्म शै । अत्
                                                                 े
लास्तल भें आऩको ब्रह्म शोने की भाॉग शै । आऩ भक्ति चाशते शैं। जो भिस्लरूऩ शै , उवभें अड़चन
                                             ु                   ु
आती शै काभ, क्रोध आदद वलकायों वे।
                               काभ एऴ क्रोध एऴ यजोगुणवभुदबल्।
                              भशाळनो भशाऩाप्भा वलद्धमेनलभशलैरयणभ ्।।
     'यजोगण वे उत्ऩन्न शुआ मश काभ श क्रोध शै । मश फशुत खानेलारा अथाुत ् बोगों वे कबी
           ु
न अघाने लारा औय फड़ा ऩाऩी शै , इवको श तू इव वलऴम भें लैय जान।'
                                                                        (बगलद् गीता् 3.37)
       काभ औय क्रोध भशाळिु शैं औय इवभें स्भनतभ्रभ शोता शै , स्भनतभ्रभ वे फुवद्धनाळ शोता शै ।
                                           ृ                   ृ
फुवद्धनाळ वे वलुनाळ शो जाता शै । अगय रूचच को ऩोवते शैं तो स्भनत षीण शोती शै । स्भनत षीण
                                                             ृ                   ृ
शुई तो वलुनाळ।
       एक रड़क की ननगाश ऩड़ोव की ककवी रड़की ऩय गई औय रड़की की ननगाश रड़क ऩय
               े                                                        े
गई। अफ उनकी एक दवये क प्रनत रूचच शुई। वललाश मोग्म उम्र शै तो भाॉग बी शुई ळाद की।
                   ू    े
अगय शभने भाॉग की ककन्तु कर लळष्टाचाय की ओय ध्मान नश ॊ ददमा औय रड़का रड़की को रे
                          ु
बागा अथला रड़की रड़क को रे बागी तो भॉुश ददखाने क कात्रफर नश ॊ यशे । ककवी शोटर भें यशे ,
                    े                           े
कबी कशाॉ यशे – अखफायों भें नाभ छऩा गमा, 'ऩुलरव ऩीछे ऩड़ेगी,' डय रग गमा। इव प्रकाय रूचच
भें अन्धे शोकय कदे तो ऩये ळान शुए। अगय वललाश मोग्म उम्र शो गई शै , गशस्थ जीलन की भाॉग
                ू                                                   ृ
शै , एक दवये का स्लबाल लभरता शै तो भाॉ-फाऩ वे कश ददमा औय भाॉ-फाऩ ने खळी वे वभझौता
          ू                                                              ु
कयक दोनों की ळाद कया द । मश शो गई भाॉग की ऩूनतु औय लश थी रूचच की ऩूनतु। रूनत की
   े
ऩूनतु भें जफ अन्धी दौड़ रगती शै तो ऩये ळानी शोती शै , अऩनी औय अऩने रयश्तेदायों की फदनाभी
शोती शै । ...तो ळाद कयने भें फुवद्ध चादशए कक रूचच की ऩूनतु क वाथ भाॉग की ऩूनतु शो।
                                                            े
       भाॉग आवानी वे ऩूय शो वकती शै औय रूचच जल्द ऩूय शोती नश ॊ। जफ शोती शै तफ
ननलवत्त नश ॊ शोती, अवऩतु औय गशय उतयती शै अथला उफान औय वलऴाद भें फदरती शै । रूचच क
   ृ                                                                             े
अनुवाय वदा वफ चीजें शोंगी नश ॊ, रूचच क अनुवाय वफ रोग तुम्शाय फात भानेंगी नश ॊ। रूचच क
                                      े                                              े
अनुवाय वदा तुम्शाया ळय य दटकगा नश ॊ। अन्त भें रूचच फच जामेगी, ळय य चरा जामगा। रूचच
                            े
फच गई तो काभना फच गई। जातीम वख की काभना, धन की काभना, वत्ता की काभना,
                             ु
वौन्दमु की काभना, लाशलाश की काभना, इन काभनाओॊ वे वम्भोश शोता शै । वम्भोश वे फुवद्धभ्रभ
शोता शै , फुवद्धभ्रभ वे वलनाळ शोता शै ।
       कयने की, भानने की औय जानने की ळक्ति को अगय रूचच क अनुवाय रगाते शैं तो कयने
                                                        े
का अॊत नश ॊ शोगा, भानने का अॊत नश ॊ शोगा, जानने का अॊत नश ॊ शोगा। इन तीनों मोग्मताओॊ
को आऩ अगय मथामोग्म जगश ऩय रगा दें गे तो आऩका जीलन वपर शो जामगा।
       अत् मश फात लवद्ध शै कक आलश्मकता ऩूय कयने भें ळास्त्र, गुरू वभाज औय बगलान
आऩका वशमोग कयें गे। आऩकी आलश्मकता ऩय कयने भें प्रकृनत बी वशमोग दे ती शै । फेटा भाॉ की
                                   ू
गोद भें आता शै , उवकी आलश्मकता शोती शै दध की। प्रकृनत वशमोग दे कय दध तैमाय कय दे ती
                                        ू                          ू
शै । फेटा फड़ा शोता शै औय उवकी आलश्मकता शोती शै दाॉतों की तो दाॉत आ जाते शैं।
       भनष्म की आलश्मकता शै शला की, जर की, अन्न की। मश आलश्मकता आवानी वे
         ु
मथामोग्म ऩय शो जाती शै । आऩको अगय रूचच शै ळयाफ की, अगय उव रूचच ऩनतु भें रगे तो लश
          ू                                                     ू
जीलन का वलनाळ कयती शै । ळय य क लरए ळयाफ की आलश्मकता नश ॊ शै । रूचच की ऩनतु
                              े                                        ू
कष्टवाध्म शै औय आलश्मकता की ऩूनतु वशजवाध्म शै ।
       आऩक ऩाव जो कयने की ळक्ति शै , उवे रूचच क अनुवाय न रगाकय वभाज क लरए रगा
          े                                    े                     े
दो। अथाुत ् तन को, भन को, धन को, अन्न को, अथला कछ बी कयने की ळक्ति को 'फशु जन
                                                ु
दशताम, फशुजन वुखाम' भें रगा दो।
       आऩको शोगा कक अगय शभ अऩना जो कछ शै , लश वभाज क लरए रगा दें तो कपय
                                    ु               े
शभाय आलश्मकताएॉ कवे ऩूय शोंगी?
                 ै
       आऩ वभाज क काभ भें आओगे तो आऩकी वेला भें वाया वभाज तत्ऩय शोकय रगा
                े
यशे गा। एक भोटयवाइकर काभ भें आती शै तो उवको वॊबारने लारे शोते शैं कक नश ॊ ? घोड़ा-गधा
काभ भें आते शैं तो उवको बी णखराने लारे शोते शैं। आऩ तो भनुष्म शो। आऩ अगय रोगों के
काभ आओगे तो शजाय-शजाय रोग आऩकी आलश्मकता ऩूय कयने क लरए रारानमत शो जामेंगे।
                                                  े
आऩ श्चजतना-श्चजतना अऩनी रूचच को छोड़ोगे, उतनी उतनी उन्ननत कयते जाओगे।
       जो रोग रूचच क अनुवाय वेला कयना चाशते शैं, उनक जीलन भे फयकत नश ॊ आती।
                    े                               े
ककन्तु जो आलश्मकता क अनुवाय वेला कयते शैं, उनकी वेला रूचच लभटाकय मोग फन जाती शै ।
                    े
ऩनतव्रता स्त्री जॊगर भें नश ॊ जाती, गुपा भें नश ॊ फैठती। लश अऩनी रूचच ऩनत की वेला भें रगा
दे ती शै । उवकी अऩनी रूचच फचती श नश ॊ शै । अत् उवका चचत्त स्लमभेल मोग भें आ जाता शै ।
लश जो फोरती शै , ऐवा प्रकृनत कयने रगती शै ।
       तोटकाचामु, ऩूयणऩोडा, वरूका-भरूका, फारा-भयदाना जैवे वश्चत्ळष्मों ने गुरू की वेला भें ,
गुरू की दै ली कामों भें अऩने कयने की, भानने की औय जानने की ळक्ति रगा द तो उनको वशज
भें भुक्तिपर लभर गमा। गुरूओॊ की बी ऐवा वशज भें नश ॊ लभरा था जैवे इन लळष्मों को लभर
गमा। श्रीभद् आद्य ळॊकयाचामु को गरूप्रानप्त क लरए ककतना-ककतना ऩरयश्रभ कयना ऩड़ा ! कशाॉ वे
                                ु           े
ऩैदर मािा कयनी ऩड़ी ! सानप्रानप्त क लरए बी कवी-कवी वाधनाएॉ कयनी ऩड़ी ! जफकी उनक
                                   े        ै   ै                              े
लळष्म तोटकाचामु ने तो कलर अऩने गुरूदे ल क फतुन भाॉजते-भाॉजते श प्राप्तव्म ऩा लरमा।
                       े                 े
       अऩनी कयने की ळक्ति को स्लाथु भें नश ॊ अवऩतु ऩयदशत भें रगाओ तो कयना तुम्शाया मोग
शो जामेगा। भानने की ळक्ति शै तो वलश्वननमॊता को भानो। लश ऩयभवुरृद शै औय वलुि शै , अऩना
आऩा बी शै औय प्राणणभाि का आधाय बी शै । जो रोग अऩने को अनाथ भानते शैं, लश ऩयभात्भा
का अनादय कयते शैं।      जो फशन अऩने को वलधला भानती शै , लश ऩयभात्भा का अनादय कयती शै ।
अये ! जगतऩनत ऩयभात्भा वलद्यभान शोते शुए तू वलधला कवे शो वकती शै ? वलश्व का नाथ वाथ
                                                  ै
भें शोते शुए तभ अनाथ कवे शो वकते शो ? अगय तभ अऩने को अनाथ, अवशाम, वलधला
              ु       ै                       ु
इत्मादद भानते शो तो तभने अऩने भानने की ळक्ति का दरूऩमोग ककमा। वलश्वऩनत वदा भौजद शै
                     ु                           ु                            ू
औय तभ आॉवू फशाते शो ?
    ु
       "भेये वऩता जी स्लगुलाव शो गमे.... भैं अनाथ शो गमा.........।"
       "गरुजी आऩ चरे जामेंगे... शभ अनाथ शो जाएॉगे....।"
         ु
       नश ॊ नश ॊ....। तू लीय वऩता का ऩुि शै । ननबुम गुरू का चेरा शै । तू तो लीयता वे कश दे
कक, 'आऩ आयाभ वे अऩनी मािा कयो। शभ आऩकी उत्तयकक्रमा कयें गे औय आऩक आदळों को,
                                                                 े
आऩक वलचायों को वभाज की वेला भें रगाएॉगे ताकक आऩकी वेला शो जाम।' मश वुऩुि औय
   े
वश्चत्ळष्म का कत्तुव्म शोता शै । अऩने स्लाथु क लरमे योना, मश न ऩत्नी क लरए ठ क शै न ऩनत क
                                              े                       े                  े
लरए ठ क शै , न ऩुि क लरए ठ क शै न लळष्म क लरए ठ क शै औय न लभि क लरए ठ क शै ।
                    े                    े                     े
       ऩैगॊफय भुशम्भद ऩयभात्भा को अऩना दोस्त भानते थे, जीवव ऩयभात्भा को अऩना वऩता
भानते थे औय भीया ऩयभात्भा को अऩना ऩनत भानती थी। ऩयभात्भा को चाशे ऩनत भानो चाशे
दोस्त भानो, चाशे वऩता भानो चाशे फेटा भानो, लश शै भौजद औय तुभ फोरते शो कक भेये ऩाव
                                                    ू
फेटा नश ॊ शै .... भेय गोद खार शै । तो तुभ ईश्वय का अनादय कयते शो। तुम्शाये रृदम की गोद भें
ऩयभात्भा फैठा शै , तुम्शाय इश्चन्िमों की गोद भें ऩयभात्भा भें फैठा शै ।
       तुभ भानते तो शो रेककन अऩनी रूचच क अनुवाय भानते शो, इवलरए योते यशते शो। भाॉग
                                        े
क अनुवाय भानते शो तो आयाभ ऩाते शो। भदशरा आॉवू फशा यश शै कक रूचच क अनुवाय फेटा
 े                                                               े
अऩने ऩाव नश ॊ यशा। उवकी जशाॉ आलश्मकता थी, ऩयभात्भा ने उवको लशाॉ यख लरमा र्कमोंकक
उवकी दृवष्ट कलर उव भदशरा की गोद मा उवका घय श नश ॊ शै । वाय ववष्ट, वाया ब्रह्माण्ड उव
             े                                              ृ
ऩयभात्भा की गोद भें शै । तो लश फेटा कश ॊ बी शो, लश ऩयभात्भा की गोद भें श शै । अगय शभ
रूचच क अनुवाय भन को फशने दे ते शैं तो द्ख फना यशता शै ।
      े                                ु
       रूचच क अनुवाय तुभ कयते यशोगे तो वभम फीत जामगा, रूचच नश ॊ लभटे गी। मश रूचच शै
             े
कक जया-वा ऩा रें ..... जया वा बोग रें तो रूचच ऩूय शो जाम। ककन्तु ऐवा नश ॊ शै । बोगने वे
रूचच गशय उतय जामगी। जगत का ऐवा कोई ऩदाथु नश ॊ जो रूचचकय शो औय लभरता बी यशे ।
मा तो ऩदाथु नष्ट शो जाएगा मा उवभें उफान आ जाएगी।
रूचच को ऩोवना नश ॊ शै , ननलत्त कयना शै । रूचच ननलत्त शो गई तो काभ फन गमा, कपय
                                  ृ                     ृ
ईश्वय दय नश ॊ यशे गा। शभ गरती मश कयते शैं कक रूचच क अनुवाय वफ कयते यशते शैं। ऩाॉच-दव
       ू                                           े
व्मक्ति श नश ॊ, ऩूया वभाज इवी ढाॉचे भें चर यशा शै । अऩनी आलश्मकता को ठ क वे वभझते
नश ॊ औय रूचच ऩूय कयने भें रगे यशते शैं। ईश्वय तो अऩना आऩा शै , अऩना स्लरूऩ शै । ललळिजी
भशायाज कशते शैं-
       "शे याभजी ! पर, ऩत्ते औय टशनी तोड़ने भें तो ऩरयश्रभ शै , ककन्तु अऩने आत्भा-ऩयभात्भा
                    ू
को जानने भें र्कमा ऩरयश्रभ शै ? जो अवलचाय वे चरते शैं, उनक लरए वॊवाय वागय तयना भशा
                                                          े
कदठन शै , अगम्म शै । तभ वय खे जो फवद्धभान शैं उनक लरए वॊवाय वागय गोऩद की तयश तयना
                      ु           ु              े
आवान शै । लळष्म भें जो वदगण शोने चादशए ले तभ भें शैं औय गरू भें जो वाभर्थमु शोना चादशए
                          ु                ु             ु
लश शभभें शै । अफ थोड़ा वा वलचाय कयो, तयन्त फेड़ा ऩाय शो जामगा।"
                                      ु
       शभाय आलश्मकता शै मोग की औय जीते शैं रूचच क अनवाय। कोई शभाय फात नश ॊ
                                                 े  ु
भानता तो शभ गभु शो जाते शैं, रड़ने-झगड़ने रगते शैं। शभाय रूचच शै अशॊ ऩोवने की औय
आलश्मकता शै अशॊ को वलवश्चजुत कयने की। रूचच शै अनुळावन कयने की, कछ वलळेऴ शुर्कभ
                                                                ु
चराने की औय आलश्मकता शै वफभें छऩे शुए वलळेऴ को ऩाने की।
                                  ु
       आऩ अऩनी आलश्मकताएॉ ऩूय कयो, रूचच को ऩूय भत कयो। जफ आलश्मकताएॉ ऩूय कयने
भें रगोगे तो रूचच लभटने रगेगी। रूचच लभट जामगी तो ळशॊ ळाश शो जाओगे। आऩभें कयने की,
भानने की, जानने की ळक्ति शै । रूचच क अनुवाय उवका उऩमोग कयते शो तो वत्मानाळ शोता शै ।
                                    े
आलश्मकता क अनुवाय उवका उऩमोग कयोगे तो फेड़ा ऩाय शोगा।
          े
     आलश्मकता शै अऩने को जानने की औय रूचच शै रॊदन, न्मूमाक, भास्को भें र्कमा शुआ,
                                                          ु
मश जानने की।
       'इवने र्कमा ककमा... उवने र्कमा ककमा.... पराने की फायात भें ककतने रोग थे.... उवकी
फशू कवी आमी....' मश वफ जानने की आलश्मकता नश ॊ शै । मश तुम्शाय रूचच शै । अगय रूचच क
     ै                                                                            े
अनुवाय भन को बटकाते यशोगे तो भन जीवलत यशे गा औय आलश्मकता क अनुवाय भन का
                                                               े
उऩमोग कयोगे तो भन अभनीबाल को प्राप्त शोगा। उवक वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ कभ शोंगे। फुवद्ध को
                                              े
ऩरयश्रभ कभ शोगा तो लश भेधाली शोगी। रूचच शै आरस्म भें औय आलश्मकता शै स्पनतु की। रूचच
                                                                       ू
शै थोड़ा कयक ज्मादा राब रेने भें औय आलश्मकता शै ज्मादा कयक कछ बी न रेने की। जो बी
            े                                             े ु
लभरेगा लश नाळलान शोगा, कछ बी नश ॊ रोगे तो अऩना आऩा प्रकट शो जामगा।
                        ु
       कछ ऩाने की, कछ बोगने की जो रूचच शै , लश शभें वलेश्वय की प्रानप्त वे लॊचचत कय दे ती
        ु           ु
शै । आलश्मकता शै 'नेकी कय कएॉ भें पक'। रेककन रूचच शोती शै , 'नेकी थोड़ी करू औय चभक
                           ु       ें                                     ॉ       ॉू
ज्मादा। फद फशुत करू औय छऩाकय यख।' इवीलरए यास्ता कदठन शो गमा शै । लास्तल भें ईश्वय-
                         ॉ     ु             ूॉ
प्रानप्त का यास्ता यास्ता श नश ॊ शै , र्कमोंकक यास्ता तफ शोता शै जफ कोई चीज लशाॉ औय शभ मशाॉ
शों, दोनों क फीच भें दय शो। शकीकत भें ईश्वय ऐवा नश ॊ शै कक शभ मशाॉ शों औय ईश्वय कश ॊ दय
            े         ू                                                               ू
शो। आऩक औय ईश्वय क फीच एक इॊच का बी पावरा नश ॊ, एक फार श्चजतना बी अॊतय नश ॊ
       े          े
रेककन अबागी रूचच ने आऩको औय ईश्वय को ऩयामा कय ददमा शै । जो ऩयामा वॊवाय शै , लभटने
लारा ळय य शै , उवको अऩना भशवूव कयामा। मश ळय य ऩयामा शै , आऩका नश ॊ शै । ऩयामा ळय य
अऩना रगता शै । भकान शै ईंच-चने-रर्ककड़-ऩत्थय का औय ऩयामा शै रेककन रूचच कशती शै कक
                            ू
भकान भेया शै ।
       स्लाभी याभतीथु कशते शैं-
       "शे भखु भनष्मों ! अऩना धन, फर ल ळक्ति फड़े-फड़े बलन फनाने भें भत खचो, रूचच को
            ू    ु
ऩनतु भें भत खचो। अऩनी आलश्मकता क अनवाय वीधा वादा ननलाव स्थान फनाओ औय फाकी
 ू                              े  ु
का अभल्म वभम जो आऩकी अवर आलश्मकता शै मोग की, उवभें रगाओ। ढे य वाय क्तडजाइनों
     ू
क लस्त्रों की कतायें अऩनी अरभाय भें भत यखो। अऩने ददर की अरभाय भें आने का वभम
 े
फचा रो। श्चजतनी आलश्मकता शो उतने श लस्त्र यखो, फाकी का वभम मोग भें रग जामगा। मोग
श तम्शाय आलश्मकता शै । वलश्राश्चन्त तम्शाय आलश्मकता शै । अऩने आऩको जानना तम्शाय
   ु                                 ु                                    ु
आलश्मकता शै । जगत की वेला कयना तुम्शाय आलश्मकता शै र्कमोंकक जगत वे ळय य फना शै तो
जगत क लरए कयोगे तो तुम्शाय आलश्मकता अऩने आऩ ऩूय शो जामगी।
     े
       ईश्वय को आलश्मकता शै तुम्शाये प्माय की, जगत को आलश्मकता शै तुम्शाय वेला की औय
तुम्शें आलश्मकता शै अऩने आऩको जानने की।
       ळय य को जगत की वेला भें रगा दो, ददर भें ऩयभात्भा का प्माय बय दो औय फुवद्ध को
अऩना स्लरूऩ जानने भें रगा दो। आऩका फेड़ा ऩाय शो जामगा। मश वीधा गणणत शै ।
       भानना, कयना औय जानना रूचच क अनुवाय नश ॊ फश्चल्क, आलश्मकता क अनुवाय श शो
                                  े                               े
जाना चादशए। आलश्मकता ऩूय कयने भें नश ॊ कोई ऩाऩ, नश ॊ कोई दोऴ। रूचच ऩूय कयने भें तो
शभें कई शथकडे अऩनाने ऩड़ते शैं। जीलन खऩ जाता शै ककन्तु रूचच खत्भ नश ॊ शोती, फदरती
           ॊ
यशती शै । रूचचकय ऩदाथु आऩ बोगते यशें तो बोगने का वाभर्थमु कभ शो जामगा औय रूचच यश
जामगी। दे खने की ळक्ति खत्भ शो जाम औय दे खने की इच्छा फनी यशे तो ककतना द्ख शोगा !
                                                                        ु
वुनने की ळक्ति खत्भ शो जाम औय वुनने की इच्छा फनी यशे तो ककतना दबाुग्म ! जीने की
                                                               ु
ळक्ति षीण शो जाम औय जीने की रूचच फनी यशे तो ककतना द्ख शोगा ! इवलरए भयते वभम
                                                   ु
द्ख शोता शै । श्चजनकी रूचच नश ॊ शोती उन आत्भयाभी ऩुरूऴों को र्कमा द्ख ? श्रीकृष्ण को दे खते-
 ु                                                                 ु
दे खते बीष्भ वऩताभश ने प्राण ऊऩय चढा ददमे। उन्शें भयने का कोई द्ख नश ॊ।
                                                               ु
       वॉूघने की रूचच फनी यशे औय नाक काभ न कये तो ? मािा की रूचच फनी यशे औय ऩैय
जलाफ दे दें तो ? ऩैवों की रूचच फनी यशे औय ऩैवे न शों तो ककतना द्ख ? लाशलाश की रूचच शै
                                                               ु
औय लाशलाश न लभर तो ?
       अगय रूचच क अनुवाय लाशलाश लभर बी जाम तो र्कमा रूचच ऩूय शो जामगी ? नश , औय
                 े                                                         ॊ
ज्मादा लाशलाश की इच्छा शोगी। शभ जानते श शैं कक श्चजवकी लाशलाश शोती शै उवकी ननन्दा बी
शोती शै । अत् लाशलाश वे रूचचऩूनतु का वुख लभरता शै तो ननन्दा वे उतना श द्ख शोगा। औय
                                                                       ु
इतने श ननन्दा कयने लारों क प्रनत अन्मामकाय वलचाय उठें गे। अन्मामकाय वलचाय श्चजव रृदम भें
                          े
उठें गे, उवी रृदम को ऩशरे खयाफ कयें गे। अत् शभ अऩना श नुकवान कयें गे।
        एक शोता शै अनुळावन, दवया शोता शै क्रोध। श्चजन्शें अऩने वुख की कोई रूचच नश , जो
                             ू                                                    ॊ
वुख दे ना चाशते शैं, श्चजन्शें अऩने बोग की कोई इच्छा नश ॊ शै , उनकी आलश्मकता वशज भें ऩूय
शोती शै । जो दवयों की आलश्मकता ऩूय कयने भें रगे शैं, ले अगय डाॉटते बी शैं तो लश अनुळावन
              ू
शो जाता शै । जो रूचचऩनतु क लरए डाॉटते शैं, लश क्रोध शो जाता शै । आलश्मकताऩनतु क लरए अगय
                     ू    े                                               ू    े
वऩटाई बी कय द जाम तो बी प्रवाद फन जाता शै ।
        भाॉ को आलश्मकता शै फेटे को दलाई वऩराने की तो भाॉ थप्ऩड़ बी भायती शै , झठ बी
                                                                               ू
फोरती शै , गार बी दे ती शै कपय बी उवे कोई ऩाऩ नश ॊ रगता। दवया कोई आदभी अऩनी रूचच
                                                          ू
ऩनतु क लरए ऐवा श व्मलशाय उवक फेटे वे कये तो दे खो, भाॉ मा दवये रोग बी उवकी कवी
 ू    े                     े                              ू                ै
खफय रे रेते शैं ! ककवी की आलश्मकताऩनतु क लरए ककमा शुआ क्रोध बी अनळावन फन जाता
                                      ू   े                         ु
शै । रूचच ऩूनतु क लरए ककमा शुआ क्रोध कई भुवीफतें खड़ी कय दे ता शै ।
                 े
        एक वलनोद फात शै । ककवी जाट ने एक वूदखोय फननमे वे वौ रूऩमे उधाय लरमे थे।
कापी वभम फीत जाने ऩय बी जफ उवने ऩैवे नश ॊ रौटामे तो फननमा अकराकय उवक ऩाव
                                                            ु       े
लवूर क लरए गमा।
      े
        "बाई ! तू ब्माज भत दे , भूर यकभ वौ रूऩमे तो दे दे । ककतना वभम शो गमा ?"
        जाट गुयाुकय फोरा् "तुभ भुझे जानते शो न ? भैं कौन शूॉ?"
        "इवीलरए तो कशता शूॉ कक ब्माज भत दो। कलर वौ रूऩमे दे दो।"
                                             े
        "वौ लौ नश ॊ लभरेंगे। भेया कशना भानो तो कछ लभरेगा।"
                                                ु
        फननमे ने वोचा कक खार शाथ रौटने वे फेशतय शै , जो कछ लभरे लश रे रॉ ू।
                                                         ु
        जाट ने कशा् "दे खो, भगय आऩको ऩैवे रेने शो तो भेय इतनी वी फात भानो। आऩक वौ
                                                                              े
रूऩमें शैं ?"
        "शाॉ"।
        "तो वौ क कय दो वाठ।"
                े
        "ठ क शै , वाठ दे दो।"
        "ठशयो, भुझे फात ऩूय कय रेने दो। वौ क कय दो वाठ.... आधा कय दो काट.. दव दें गे...
                                            े
दव छड़ामेंगे औय दव क जोड़ेंगे शाथ। अबी दकान ऩय ऩशुॉच जाओ।"
    ु                े                  ु
      लभरा र्कमा ? फननमा खार शाथ रौट गमा।
        ऐवे श भन की जो इच्छाएॉ शोती शैं, उवको कशें गे कक बाई ! इच्छाएॉ ऩूय कयें गे रेककन
अबी तो वौ की वाठ कय दे , औय उवभें वे आधा काट कय दे । दव इच्छाएॉ तेय ऩूय कयें गे
धभाुनुवाय, आलश्मकता क अनुवाय। दव इच्छाओॊ की तो कोई आलश्मकता श नश ॊ शै औय ळेऴ
                     े
दव वे जोड़ेंगे शाथ। अबी तो बजन भें रगें गे, औयों की आलश्मकता ऩूय कयने भें रगें गे।
      जो दवयों की आलश्मकता ऩूय कयने भें रगता शै , उवकी रूचच अऩने आऩ लभटती शै औय
          ू
आलश्मकता ऩूय शोने रगती शै । आऩको ऩता शै कक जफ वेठ का नौकय वेठ की आलश्मकताएॉ
ऩूय कयने रगता शै तो उवक यशने की आलश्मकता की ऩूनतु वेठ क घय भें शो जाती शै । उवकी
                       े                               े
अन्न-लस्त्रादद की आलश्मकताएॉ ऩूय शोने रगती शैं। ड्रामलय अऩने भालरक की आलश्मकता ऩूय
कयता शै तो उवकी घय चराने की आलश्मकताऩनतु भालरक कयता श शै । कपय लश आलश्मकता
                                     ू
फढा दे औय वलरावी जीलन जीना चाशे तो गड़फड़ शो जामगी, अन्मथा उवकी आलश्मकता जो शै
उवकी ऩनतु तो शो श जाती शै । आलश्मकता ऩनतु भें औय रूचच की ननलवत्त भें रग जाम तो
      ू                               ू                     ृ
ड्रामलय बी भि शो वकता शै , वेठ बी भि शो वकता शै , अनऩढ बी भि शो वकता शै , लळक्षषत
            ु                      ु                       ु
बी भि शो वकता, ननधुन बी भि शो वकता शै , धनलान बी भि शो वकता शै , दे ळी बी भि शो
    ु                    ु                        ु                        ु
वकता शै , ऩयदे ळी बी भि शो वकता शै । अये , डाक बी भि शो वकता शै ।
                      ु                       ू    ु
      आऩक ऩाव सान शै , उव सान का आदय कयो। कपय चाशे गॊगा क ककनाये फैठकय आदय
         े                                               े
कयो मा मभुना क ककनाये फैठकय आदय कयो मा वभाज भें यशकय आदय कयो। सान का उऩमोग
              े
कयने की करा का नाभ शै वत्वॊग।
      वफक ऩाव सान शै । लश सानस्लरूऩ चैतन्म श वफका अऩना आऩा शै । रेककन फुवद्ध क
         े                                                                    े
वलकाव का पक शै । सान तो भच्छय क ऩाव बी शै । फुवद्ध की भॊदता क कायण रूचचऩूनतु भें श
           ु                   े                             े
शभ जीलन खचु ककमे जाते शैं। श्चजवको शभ जीलन कशते शैं, लश ळय य शभाया जीलन नश ॊ शै ।
लास्तल भें सान श शभाया जीलन शै , चैतन्म आत्भा श शभाया जीलन शै ।
      ॐकाय का जऩ कयने वे आऩकी आलश्मकताऩूनतु की मोग्मता फढती शै औय रूचच की
ननलवत्त भें भदद लभरती शै । इवलरए ॐकाय (प्रणल) भॊि वलोऩरय भाना जाता शै । शाराॉकक वॊवाय
   ृ
दृवष्ट वे दे खा जाम तो भदशराओॊ को एलॊ गशश्चस्थमों को अकरा ॐकाय का जऩ नश ॊ कयना
                                       ृ               े
चादशए, र्कमोंकक उन्शोंने रूचचमों को आलश्मकता का जाभा ऩशनाकय ऐवा वलस्ताय कय यखा शै कक
एकाएक अगय लश वफ टूटने रगेगा तो ले रोग घफया उठें गे। एक तयप अऩनी ऩुयानी रूचच
खीॊचगी औय दवय तयप अऩनी भूरबूत आलश्मकता – एकाॊत की, आत्भवाषात्काय की इच्छा
    े      ू
आकवऴुत कये गी। प्रणल क अचधक जऩ वे भुक्ति की इच्छा जोय भाये गी। इववे गशस्थी क इदु -
                      े                                              ृ      े
चगदु जो रूचच ऩूनतु कयने लारे भॊडयाते यशते शैं, उन वफको धर्कका रगेगा। इवलरए गशश्चस्थमों को
                                                                            ृ
कशते शैं कक अकरे ॐ का जऩ भत कयो। ऋवऴमों ने ककतना वूक्ष्भ अध्ममन ककमा शै ।
              े
      वभाज को आऩक प्रेभ की, वान्तलना की, स्नेश की औय ननष्काभ कभु की आलश्मकता
                 े
शै । आऩक ऩाव कयने की ळक्ति शै तो उवे वभाज की आलश्मकताऩूनतु भें रगा दो। आऩकी
        े
आलश्मकता भाॉ, फाऩ, गुरू औय बगलान ऩूय कय दें गे। अन्न, जर औय लस्त्र आवानी वे लभर
जामेंगे। ऩय टै य कोटन कऩड़ा चादशए, ऩप-ऩालडय चादशए तो मश रूचच शै । रूचच क अनवाय जो
                                                                        े  ु
चीजें लभरती शैं, ले शभाय शानन कयती शैं। आलश्मकतानुवाय चीजें शभाय तन्दरूस्ती की बी यषा
                                                                     ु
कयती शै । जो आदभी ज्मादा फीभाय शै , उवकी फुवद्ध वुभनत नश ॊ शै ।
       चयक-वॊदशता क यचनमता ने अऩने लळष्म को कशा कक तॊदरूस्ती क लरए बी फुवद्ध चादशए।
                   े                                          े
वाभाश्चजक जीलन जीने क लरए बी फुवद्ध चादशए औय भयने क लरम बी फुवद्ध चादशए। भयते वभम
                     े                             े
बी अगय फुवद्ध का उऩमोग ककमा जाम कक, 'भौत शो यश शै इव दे श की, भैं तो चैतन्म व्माऩक
आत्भा शूॉ।' ॐकाय का जऩ कयक भौत का बी वाषी फन जामें। जो भत्मु को बी दे खता शै उवकी
                               े                                 ृ
भत्मु नश ॊ शोती। क्रोध को दे खने लारे शो जाओ तो क्रोध ळाॊत शो जामेगा। मश फवद्ध का उऩमोग
 ृ                                                                        ु
शै । जैवे आऩ गाड़ी चराते शो औय दे खते शुए चराते शो तो खड्डे भें नश ॊ चगयती औय आॉख फन्द
कयक चराते शो तो फचती बी नश ॊ। ऐवे श क्रोध आमा औय शभने फवद्ध का उऩमोग नश ॊ ककमा
     े                                                          ु
तो फश जामेंगे। काभ, रोब औय भोशादद आमें औय वतक यशकय फवद्ध वे काभ नश ॊ लरमा तो मे
                                             ु      ु
वलकाय शभें फशा रे जामेंगे।
       रोब आमे तो वलचायों कक आणखय कफ तक इन ऩद-ऩदाथों को वॊबारते यशोगे।
आलश्मकता तो मश शै कक फशुजनदशताम, फशुजनवुखाम इनका उऩमोग ककमा जामे औय रूचच शै
इनका अम्फाय रगाने की। अगय रूचच क अनुवाय ककमा तो भुवीफतें ऩैदा कय रोगे। ऐवे श
                                े
आलश्मकता शै कश ॊ ऩय अनुळावन की औय आऩने क्रोध की पपकाय भाय द तो जाॉच कयो कक
                                                 ु
उव वभम आऩका रृदम तऩता तो नश ॊ। वाभने लारे का अदशत शो जामे तो शो जामे ककन्तु
आऩकी फात अक्तडग यशे – मश क्रोध शै । वाभने लारा का दशत शो, अदशत तननक बी न शो, अगय
मश बालना गशयाई भें शो तो कपय लश क्रोध नश , अनुळावन शै । अगय जरन भशवूव शोती शै तो
                                         ॊ
क्रोध घुव गमा। काभ फुया नश ॊ शै , क्रोध फुया नश ॊ शै , रोब-भोश औय अशॊ काय फुया नश ॊ शै ।
धभाुनुकर वफकी आलश्मकता शै । अगय फुया शोता तो ववष्टकताु फनाता श र्कमों ? जीलन-वलकाव
       ू                                      ृ
क लरए इनकी आलश्मकता शै । द्ख फुया नश ॊ शै । ननन्दा, अऩभान, योग फुया नश ॊ शै । योग आता
 े                        ु
शै तो वालधान कयता शै कक रूचचमाॉ भत फढाओ। फेऩयलाश भत कयो। अऩभान बी लवखाता शै कक
भान की इच्छा शै , इवलरए द्ख शोता शै । ळुकदे ल जी को भान भें रूचच नश ॊ शै , इवलरए कोई
                         ु
रोग अऩभान कय यशे शैं कपय बी उन्शें द्ख नश ॊ शोता। यशुगण याजा ककतना अऩभान कयते शैं,
                                    ु
ककन्तु जड़बयत ळाॊतचचत्त यशते शैं।
       अऩभान का द्ख फताता शै कक आऩको भान भें रूचच शै । द्ख का बाल फताता शै कक
                 ु                                      ु
वुख भें रूचच शै । कृऩा कयक अऩनी रूचच ऩयभात्भा भें श यखो।
                          े
       वुख, भान औय मळ भें नश ॊ पवोगे तो आऩ त्रफल्कर स्लतॊि शो जाओगे। मोगी का मोग
                                ॉ                 ु
लवद्ध शो जामगा, तऩी का तऩ औय बि की बक्ति वपर शो जामगी। फात अगय जॉ चती शै तो
इवे अऩनी फना रेना। तुभ दवया कछ नश ॊ तो कभ वे कभ अऩने अनुबल का तो आदय कयो।
                        ू    ु
आऩको रूचच अनुवाय बोग लभरते शैं तो बोग बोगते-बोगते आऩ थक जाते शैं कक नश ॊ ? ऊफान
शै कक नश ॊ ? ... इव सान का आदय कयो। 'फशु जनदशताम-फशुजनवखाम' काभ कयते शो तो
                                                       ु
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  • 3. ननलेदन शजायों-शजायों बिजनों, श्चजसावु वाधकों क लरमे प्रात् स्भयणीम ऩज्मऩाद वॊत श्री े ू आवायाभजी फाऩू की जीलन-उद्धायक अभतलाणी ननत्म ननयन्तय फशा कयती शै । रृदम की गशयाई वे ृ उठने लार उनकी मोगलाणी श्रोताजनों क रृदमों भें उतय जाती शै , उन्शें ईश्वय म आह्लाद वे भधय े ु फना दे ती शै । ऩज्म श्री की वशज फोर-चार भें ताश्चवलक अनबल, जीलन की भीभाॊवा, लेदान्त क ू ु े अनबनतभरक भभु प्रकट शो जामा कयते शैं। उनका ऩालन दळुन औय वाश्चन्नध्म ऩाकय शजायों- ु ू ू शजायों भनुष्मों क जीलन-उद्यान नलऩल्रवलत-ऩुश्चष्ऩत शो जाते शैं। उनकी अगाध सानगॊगा वे कछ े ु आचभन रेकय प्रस्तुत ऩुस्तक भें वॊकलरत कयक आऩकी वेला भें उऩश्चस्थत कयते शुए शभ े आनन्दनत शो यशे शैं.....। वलनीत, श्री मोग लेदान्त वेला वलभनत ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अनुक्रभ ऩूज्म फाऩू का ऩालन वन्दे ळ ............................................................................................................ 2 ननलेदन ............................................................................................................................................. 3 अनन्म मोग ..................................................................................................................................... 4 रूचच औय आलश्मकता ...................................................................................................................... 8 प्रानप्त औय प्रतीनत ........................................................................................................................... 17 जीलन-भीभाॊवा ................................................................................................................................ 29 आश्चस्तक का जीलन-दळुन .............................................................................................................. 37 भधु वॊचम ...................................................................................................................................... 42 असान को लभटाओ..................................................................................................................... 42 करयए ननत वत्वॊग को.... .......................................................................................................... 42 वालधान.....! ............................................................................................................................... 42 तर्कमुताभ ्.... भा कतर्कमाुताभ ..................................................................................................... 43 ु ् आश्चस्तक औय नाश्चस्तक .............................................................................................................. 48 वख-द्ख वे राब उठाओ .......................................................................................................... 49 ु ु अनन्म मोग वाधो...................................................................................................................... 49
  • 4. ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अनन्म मोग भनम चानन्ममोगेन बक्तियव्मलबचारयणी। वललिदे ळवेवलत्लयनतजुनवॊवदद।। "भझ ऩयभेश्वय भें अनन्म मोग क द्वाया अव्मलबचारयणी बक्ति तथा एकान्त औय ळद्ध दे ळ ु े ु भें यशने का स्लबाल औय वलऴमावि भनष्मों क वभदाम भें प्रेभ का न शोना (मश सान शै )।" ु े ु (बगलद् गीता् 13.19) अनन्म बक्ति औय अव्मलबचारयणी बक्ति अगय बगलान भें शो जाम, तो बगलत्प्रानप्त कदठन नश ॊ शै । बगलान प्राणणभाि का अऩना आऩा शै । जैवे ऩनतव्रता स्त्री अऩने ऩनत क लवलाम अन्म े ऩुरूऴ भें ऩनतबाल नश ॊ यखती, ऐवे श श्चजवको बगलत्प्रानप्त क लवलाम औय कोई वाय लस्तु नश े ददखती, ऐवा श्चजवका वललेक जाग गमा शै , उवक लरए बगलत्प्रानप्त वुगभ शो जाती शै । लास्तल े भें , बगलत्प्रानप्त श वाय शै । भाॉ आनन्दभमी कशा कयती थीॊ- "शरयकथा श कथा...... फाकी वफ जग की व्मथा।" भेये प्रनत अनन्म मोग द्वाया अव्मलबचारयणी बक्ति का शोना, एकान्त स्थान भें यशने का स्लबाल शोना औय जन वभुदाम भें प्रीनत न शोना.... इव प्रकाय की श्चजवकी बक्ति शोती शै , उवे सान भें रूचच शोती शै । ऐवा वाधक अध्मात्भसान भें ननत्म यभण कयता शै । तवलसान के अथुस्लरूऩ ऩयभात्भा को वफ जगश दे खता शै । इव प्रकाय जो शै , लश सान शै । इववे जो वलऩय त शै , लश असान शै । शरययव को, शरयसान को, शरयवलश्राश्चन्त को ऩामे त्रफना श्चजवको फाकी वफ व्मथु व्मथा रगती शै , ऐवे वाधक की अनन्म बक्ति जगती शै । श्चजवकी अनन्म बक्ति शै बगलान भें , श्चजवका अनन्म मोग शो गमा शै बगलान वे, उवको जनवॊऩक भें रूचच नश ॊ यशती। वाभान्म इच्छाओॊ को ु ऩूणु कयने भें , वाभान्म बोगों को बोगने भें जीलन नष्ट कयते शै , ऐवे रोगों भें वच्चे बि को रूचच नश ॊ शोती। ऩशरे रूचच शुई तफ शुई, ककन्तु जफ अनन्म बक्ति लभर तो कपय उऩयाभता आ जामेगी। व्मलशाय चराने क लरए रोगों क वाथ 'शू ॉ ...शाॉ...' कय रेगा, ऩय बीतय वे भशवूव कये गा े े कक मश वफ जल्द ननऩट जाम तो अच्छा। अनन्म बक्ति जफ रृदम भें प्रकट शोती शै , तफ ऩशरे का जो कछ ककमा शोता शै , लश ु फेगाय वा रगता शै । एकान्त दे ळ भें यशने की रूचच शोती शै । जनवॊऩक वे लश दय बागता शै । ु ू आश्रभ भें वत्वॊग कामुक्रभ, वाधना लळवलयें आदद को जनवॊवगु नश ॊ कशा जा वकता। जो रोग वाधन बजन क वलऩय त ददळा भें जा यशे शैं, दे शाध्माव फढा यशे शैं, उनका वॊवगु वाधक क लरए े े फाधक शै । श्चजववे आत्भसान लभरता शै , लश जनवॊऩक तो वाधन भागु का ऩोऴक शै । ु
  • 5. जनवाधायण क फीच वाधक यशता शै तो दे श की माद आती शै , दे शाध्माव फढता शै , दे शालबभान े फढता शै । दे शालबभान फढने ऩय वाधक ऩयभाथु तवल वे च्मुत शो जाता शै, ऩयभ तवल भें ळीघ्र गनत नश ॊ कय वकता। श्चजतना दे शालबभान, दे शाध्माव गरता शै , उतना लश आत्भलैबल को ऩाता शै । मश फात श्रीभद् आद्य ळॊकयाचामु ने कश ् गलरते दे शाध्मावे वलसाते ऩयभात्भनन। मि मि भनो मानत ति ति वभाधम्।। जफ दे शाध्माव गलरत शोता शै , ऩयभात्भा का सान शो जाता शै , तफ जशाॉ-जशाॉ भन जाता शै , लशाॉ-लशाॉ वभाचध का अनबल शोता शै , वभाचध का आनन्द आता शै । ु दे शाध्माव गराने क लरए श वाय वाधनाएॉ शैं। ऩयभात्भा-प्रानप्त क लरमे श्चजवको तड़ऩ े े शोती शै , जो अनन्म बाल वे बगलान को बजता शै , 'ऩयभात्भा वे शभ ऩयभात्भा श चाशते शैं.... औय कछ नश ॊ चाशते.....' ऐवी अव्मलबचारयणी बक्ति श्चजवक रृदम भें शोती शै , उवक रृदम भें ु े े बगलान सान का प्रकाळ बय दे ते शैं। जो धन वे वुख चाशते शैं, लैबल वे वुख चाशते शै , ले रोग वाधना ऩरयश्रभ कयक, वाधना े औय ऩरयश्रभ क फर ऩय यशते शैं रेककन जो बगलान क फर ऩय बी बगलान को ऩाना चाशते शैं, े े बगलान की कृऩा वे श बगलान को ऩाना चाशते शैं, ऐवे बि अनन्म बि शैं। गोया कम्शाय बगलान का कीतुन कयते थे। कीतुन कयते-कयते दे शाध्माव बूर गमे। लभट्टी ु यौंदते-यौंदते लभट्टी क वाथ फारक बी यौंदा गमा। ऩता नश ॊ चरा। ऩत्नी की ननगाश ऩड़ी। लश फोर े उठ ् "आज क भुझे स्ऩळु भत कयना।" े "अच्छा ठ क शै ....।" बगलान भें अनन्म बाल था तो ऩत्नी नायाज शो गई, कपय बी ददर को ठे व नश ॊ ऩशुॉची। स्ऩळु नश ॊ कयना... तो नश ॊ कयें गे। ऩत्नी को फड़ा ऩिाताऩ शुआ कक गरती शो गई। अफ लॊळ कवे ै चरेगा ? अऩने वऩता वे कशकय अऩनी फशन की ळाद कयलाई। वफ वलचध वम्ऩन्न कयक जफ े लश-लधू वलदा शो यशे थे, तफ वऩता ने अऩने दाभाद गोया कम्शाय वे कशा् ु "भेय ऩशर फेट को जैवे यखा शै , ऐवे श इवको बी यखना।" "शाॉ.. जो आसा।" बगलान वे श्चजवका अनन्म मोग शै , लश तो स्लीकाय श कय रेगा। गोया कम्शाय दोनों ु ऩलत्नमों को वभान बाल वे दे खने रगे। दोनों ऩलत्नमाॉ द्खी शोने रगीॊ। अफ इनको कवे वभझाएॉ ? ु ै तक वलतक दे कय ऩनत को वॊवाय भें राना चाशती थीॊ रेककन गोया कम्शाय का अनन्म बाल ु ु ु बगलान भें जड़ चका था। ु ु आणखय दोनों फशनों ने एक यात्रि को अऩने ऩनत का शाथ ऩकड़कय जफयदस्ती अऩने ळय य तक रामा। गोया कम्शाय ने वोचा कक भेया शाथ अऩवलि शो गमा। उन्शोंने शाथ को वजा कय द । ु
  • 6. बगलान ने अनन्म बाल शोना चादशए। अनन्म बाल भाने जैवे ऩनतव्रता स्त्री औय ककवी ऩुरूऴ को ऩनत बाल वे नश ॊ दे खती, ऐवे श बि मा वाधक बी औय ककवी वाधना वे अऩना कल्माण शोगा औय ककवी व्मक्ति क फर वे अऩना भोष शोगा, ऐवा नश ॊ वोचता। 'शभें तो े बगलान की कृऩा वे बगलान क स्लरूऩ का सान शोगा, तबी शभाया कल्माण शोगा। बगलान की े कृऩा श एकभाि वशाया शै , इवक अराला औय ककवी वाधना भें शभ नश ॊ रूकगे.... शे प्रबु ! शभें े ें तो कलर तेय कृऩा औय तेये स्लरूऩ की प्रानप्त चादशए.... औय कछ नश ॊ चादशए।' बगलान ऩय जफ े ु ऐवा अनन्म बाल शोता शै, तफ बगलान कृऩा कयक बि क अन्त्कयण की ऩतें शटाने रगते शैं। े े शभाया अऩना आऩा कोई गैय नश ॊ शै , दय नश ॊ शै , ऩयामा नश ॊ शै औय बवलष्म भें लभरेगा ू ऐवा बी नश ॊ शै । लश अऩना याभ, अऩना आऩा अबी शै , अऩना श शै । इव प्रकाय का फोध वनने ु की औय इव फोध भें ठशयने की रूचच शो जामेगी। अनन्म बाल वे बगलान का बजन मश ऩरयणाभ राता शै । अनन्म बाल भाने अन्म-अन्म को दे खे, ऩय बीतय वे वभझे कक इन वफका अश्चस्तवल एक बगलान ऩय श आधारयत शै । आॉख अन्म को दे खती शै , कान अन्म को वुनते शैं, श्चजह्वा अन्म को चखती शै , नालवका अन्म को वॉूघती शै , त्लचा अन्म को स्ऩळु कयती शै । उवक वाषी दृष्टा भन े को जोड़ दो, तो भन एक शै । भन क बी अन्म-अन्म वलचाय शैं। उनभें बी भन का अचधिान, े आधायबूत अनन्म चैतन्म आत्भा शै । उवी आत्भा ऩयभात्भा को ऩाना शै । न भन की चार भें आना शै , न इश्चन्िमों क आकऴुण भें आना शै । े इव प्रकाय की तयतीव्र श्चजसावालारा बि, अनन्म मोग कयने लारा वाधक शल्की रूचचमों औय शल्की आवक्तिमोंलारे रोगों वे अऩनी तुरना नश ॊ कयता। चैतन्म भशाप्रबु को ककवी ने ऩूछा् "शरय का नाभ एक फाय रेने वे र्कमा राब शोता शै ?" "एक फाय अनन्म बाल वे शरय का नाभ रे रेंगे तो वाये ऩातक नष्ट शो जामेंगे।" "दवय फाय रें तो ?" ू "दवय फाय रेंगे तो शरय का आनन्द प्रकट शोने रगेगा। नाभ रो तो अनन्म बाल वे रो। ू लैवे तो लबखभॊगे रोग वाया ददन शरय का नाभ रेते शैं, ऐवों की फात नश ॊ शै । अनन्म बाल वे कलर एक फाय बी शरय का नाभ रे लरमा जामे तो वाये ऩातक नष्ट शो जाएॉ। े रोग वोचते शैं कक शभ बगलान की बक्ति कयते शैं, कपय बी शभाया फेटा ठ क नश ॊ शोता शै । अन्तमाुभी बगलान दे ख यशे शैं कक मश तो फेटे का बगत शै । 'शे बगलान ! भेये इतने राख रूऩमे शो जामें तो उन्शें कपर्कव कयक आयाभ वे बजन े करूगा.....' अथला 'भेया इतना ऩेन्ळन शो जाम, कपय भैं बजन करूगा...' तो आश्रम कपर्कव ॉ ॉ क्तडऩोश्चजट का शुआ अथला ऩेन्ळन का शुआ। बगलान ऩय तो आचश्रत नश ॊ शुआ। मश अनन्म बक्ति नश ॊ शै । नयलवॊश भेशता ने कशा् बोंम वुलाडुॊ बूखे भारू उऩयथी भारू भाय। ॉ ॉ
  • 7. एटरु कयताॊ शरय बजे तो कय नाखुॊ ननशार।। जीलन भें कछ अवुवलधा आ जाती शै तो बगलान वे प्राथुना कयते शैं- 'मश द्ख दय को ु ु ू दो प्रबु !' शभ बगलान क नश ॊ वुवलधा क बगत शैं। बगलान का उऩमोग बी अवुवलधा शटाने क े े े लरए कयते शैं। अवुवलधा शट गई, वुवलधा शो गई तो उवभें रेऩामभान शो जाते शैं। वोचते शैं, फाद भें बजन कयें गे। मश बगलान की अनन्म बक्ति नश ॊ शै । बगलान की बक्ति अनन्म बाल वे की जाम तो तवलसान का दळुन शोने रगे। आत्भसान प्राप्त कयने की श्चजसावा जाग उठे । जन-वॊवगु वे वलयक्ति शोने रगे। एकान्तलावो रघुबोजनादद। भौनॊ ननयाळा कयणालयोध्।। भुनेयवो् वॊमभनॊ ऴडेते। चचत्तप्रवादॊ जनमश्चन्त ळीघ्रभ ्।। 'एकान्त भें यशना, अल्ऩाशाय, भौन, कोई आळा न यखना, इश्चन्िम-वॊमभ औय प्राणामाभ, मे छ् भनन को ळीघ्र श चचत्तप्रवाद की प्रानप्त कयाते शैं।' ु एकान्तलाव, इश्चन्िमों को अल्ऩ आशाय, भौन, वाधना भें तत्ऩयता, आत्भवलचाय भें प्रलवत्त... ृ इववे कछ श ददनों भें आत्भप्रवाद की प्रानप्त शो जाती शै । ु शभाय बक्ति अनन्म नश ॊ शोती, इवलरए वभम ज्मादा रग जाता शै । कछ मश कय रॉ ू... ु कछ मश दे ख रॉ ू... कछ मश ऩा रॉ .... इव प्रकाय जीलन-ळक्ति त्रफखय जाती शै । ु ु ू स्लाभी याभतीथु एक कशानी वुनामा कयते थे् एटरान्टा नाभ की एक वलदे ळी रड़की दौड़ रगाने भें फड़ी तेज थी। उवने घोऴणा की थी कक जो मुलक भुझे दौड़ भें शया दे गा, भैं अऩनी वॊऩवत्त क वाथ उवकी शो जाऊगी। उवक वाथ े ॉ े स्ऩधाु भें कई मुलक उतये , रेककन वफ शाय गमे। वफ रोग शायकय रौट जाते थे। एक मुलक ने अऩने इष्टदे ल जवऩटय को प्राथुना की। इष्टदे ल ने उवे मुक्ति फता द । दौड़ने ु का ददन ननश्चित ककमा गमा। एटरान्टा फड़ी तेजी वे दौड़नेलार रड़की थी। मश मुलक स्लप्न भें बी उवकी फयाफय नश ॊ कय वकता था, कपय बी दे ल ने कछ मुक्ति फता द थी। ु दौड़ का प्रायॊ ब शुआ। घड़ी बय भें एटरान्टा कश ॊ दय ननकर गई। मुलक ऩीछे यश गमा। ू एटरान्टा कछ आगे गई तो भागु भें वुलणुभुिाएॉ त्रफखय शुई थीॊ। वोचा कक मुलक ऩीछे यश गमा ु शै । लश आले, तफ तक भुिाएॉ फटोय रॉ ू। लश रूकी... भुिाएॉ इकट्ठी की। तफ तक मुलक नजद क आ गमा। लश झट वे आगे दौड़ी। उवको ऩीछे कय ददमा। कछ आगे गई तो भागु भें औय वुलणुभुिाएॉ ु दे खी। लश बी रे र । उवक ऩाव लजन फढ गमा। मुलक बी तफ तक नजद क आ गमा था। कपय े रड़की ने तेज दौड़ रगाई। आगे गई तो औय वुलणुभुिाएॉ ददखी। उवने उवे बी रे र । इव प्रकाय एटरान्टा क ऩाव फोझा फढ गमा। दौड़ की यफ्ताय कभ शो गई। आणखय लश मुलक उववे आगे े ननकर गमा। वाय वॊऩवत्त औय यास्ते भें फटोय शुई वुलणुभुिाओॊ क वाथ एटरान्टा को उवने जीत े लरमा।
  • 8. एटरान्टा तेज दौड़ने लार रड़की थी, ऩय उवका ध्मान वुलणुभुिाओॊ भें अटकता यशा। वलजेता शोने की मोग्मता शोते शुए बी अनन्म बाल वे नश ॊ दौड़ ऩामी, इववे लश शाय गई। ऐवे श भनुष्म भाि भें ऩयब्रह्म ऩयभात्भा को ऩाने की मोग्मता शै । ऩयभात्भा ने भनुष्म को ऐवी फुवद्ध इवीलरए दे यखी शै कक उवको आत्भा-ऩयभात्भा क सान की श्चजसावा जाग जाम, े आत्भवाषात्काय शो जाम। योट कभाने की औय फच्चों को ऩारने की फुवद्ध तो ऩळु-ऩक्षषमों को बी द शै । भनुष्म की फुवद्ध वाये ऩळु-ऩषी-प्राणी जगत वे वलळेऴ शै , ताकक लश फुवद्धदाता का वाषात्काय कय वक। फवद्ध जशाॉ वे वत्ता-स्पनतु राती शै , उव ऩयब्रह्म-ऩयभात्भा का वाषात्काय े ु ू कयक जील ब्रह्म शो जाम। कलर कवी-टे फर ऩय फैठकय करभ चराने क लरए श फवद्ध नश ॊ लभर े े ु े ु शै । फवद्धऩलक करभ तो बरे चराओ, ऩयॊ तु फवद्ध का उऩमोग कलर योट कभाकय ऩेट बयना श ु ू ु ु े नश ॊ शै । करभ बी चराओ तो ऩयभात्भा को रयझाने क लरमे औय कदार चराओ तो बी उवको े ु रयझाने क लरए। े अनक्रभ ु ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ रूचच औय आलश्मकता ऐवा कोई भनुष्म नश ॊ लभरेगा, श्चजवक ऩाव कछ बी मोग्मता न शो, जो ककवी को े ु भानता न शो। शय भनुष्म जरूय ककवी न ककवी को भानता शै । ऐवा कोई भनुष्म नश ॊ श्चजवभें जानने की श्चजसावा न शो। लश कछ न कछ जानने की कोलळळ तो कयता श शै । कयने की, ु ु भानने की औय जानने की मश स्लत् लवद्ध ऩॉूजी शै शभ वफक ऩाव। ककवी क ऩाव थोड़ी शै तो े े ककवी क ऩाव ज्मादा शै , रेककन शै जरूय। खार कोई बी नश ॊ। े शभ रोग जो कछ कयते शैं, अऩनी रूचच क अनुवाय कयते शैं। गरती र्कमा शोती शै कक शभ ु े आलश्मकता क अनुवाय नश ॊ कयते। रूचच क अनुवाय भानते शैं, आलश्मकता क अनुवाय नश ॊ े े े जानते। फव मश एक गरती कयते शैं। इवे अगय शभ वुधाय रें तो ककवी बी षेि भें आयाभ वे, त्रफल्कर भजे वे वपर शो वकते शैं। कलर मश एक फात कृऩा कयक जान रो। ु े े एक शोती शै रूचच औय दवय शोती शै आलश्मकता। ळय य को बोजन कयने की आलश्मकता ू शै । लश तन्दरूस्त कवे यशे गा, इवकी आलश्मकता वभझकय आऩ बोजन कयें तो आऩकी फुवद्ध ळुद्ध ु ै यशे गी। रूचच क अनवाय बोजन कयें गे तो फीभाय शोगी। अगय रूचच क अनवाय बोजन नश ॊ े ु े ु लभरेगा औय मदद बोजन लभरेगा तो रूचच नश ॊ शोगी। श्चजवको रूचच शो औय लस्तु न शो तो ककतना द्ख ! लस्तु शो औय रूचच न शो तो ककतनी व्मथा ! ु खफ ध्मान दे ना कक शभाये ऩाव जानने की, भानने की औय कयने की ळक्ति शै । इवको ू आलश्मकता क अनवाय रगा दें तो शभ आयाभ वे भि शो वकते शैं औय रूचच क अनवाय रगा े ु ु े ु
  • 9. दें तो एक जन्भ नश ॊ, कयोड़ों जन्भों भें बी काभ नश ॊ फनता। कीट, ऩतॊग, वाधायण भनुष्मों भें औय भशाऩुरूऴों भें इतना श पक शै कक भशाऩुरूऴ भाॉग क अनुवाय कभु कयते शैं जफकक वाधायण ु े भनुष्म रूचच क अनुवाय कभु कयते शैं। े जीलन की भाॉग शै मोग। जीलन की भाॉग शै ळाश्वत वुख। जीलन की भाॉग शै अखण्डता। जीलन की भाॉग शै ऩूणता। ु आऩ भयना नश ॊ चाशते, मश जीलन की भाॉग शै । आऩ अऩभान नश ॊ चाशते। बरे वश रेते शैं, ऩय चाशते नश ॊ। मश जीलन की भाॉग शै । तो अऩभान श्चजवका न शो वक, लश ब्रह्म शै । अत् े लास्तल भें आऩको ब्रह्म शोने की भाॉग शै । आऩ भक्ति चाशते शैं। जो भिस्लरूऩ शै , उवभें अड़चन ु ु आती शै काभ, क्रोध आदद वलकायों वे। काभ एऴ क्रोध एऴ यजोगुणवभुदबल्। भशाळनो भशाऩाप्भा वलद्धमेनलभशलैरयणभ ्।। 'यजोगण वे उत्ऩन्न शुआ मश काभ श क्रोध शै । मश फशुत खानेलारा अथाुत ् बोगों वे कबी ु न अघाने लारा औय फड़ा ऩाऩी शै , इवको श तू इव वलऴम भें लैय जान।' (बगलद् गीता् 3.37) काभ औय क्रोध भशाळिु शैं औय इवभें स्भनतभ्रभ शोता शै , स्भनतभ्रभ वे फुवद्धनाळ शोता शै । ृ ृ फुवद्धनाळ वे वलुनाळ शो जाता शै । अगय रूचच को ऩोवते शैं तो स्भनत षीण शोती शै । स्भनत षीण ृ ृ शुई तो वलुनाळ। एक रड़क की ननगाश ऩड़ोव की ककवी रड़की ऩय गई औय रड़की की ननगाश रड़क ऩय े े गई। अफ उनकी एक दवये क प्रनत रूचच शुई। वललाश मोग्म उम्र शै तो भाॉग बी शुई ळाद की। ू े अगय शभने भाॉग की ककन्तु कर लळष्टाचाय की ओय ध्मान नश ॊ ददमा औय रड़का रड़की को रे ु बागा अथला रड़की रड़क को रे बागी तो भॉुश ददखाने क कात्रफर नश ॊ यशे । ककवी शोटर भें यशे , े े कबी कशाॉ यशे – अखफायों भें नाभ छऩा गमा, 'ऩुलरव ऩीछे ऩड़ेगी,' डय रग गमा। इव प्रकाय रूचच भें अन्धे शोकय कदे तो ऩये ळान शुए। अगय वललाश मोग्म उम्र शो गई शै , गशस्थ जीलन की भाॉग ू ृ शै , एक दवये का स्लबाल लभरता शै तो भाॉ-फाऩ वे कश ददमा औय भाॉ-फाऩ ने खळी वे वभझौता ू ु कयक दोनों की ळाद कया द । मश शो गई भाॉग की ऩूनतु औय लश थी रूचच की ऩूनतु। रूनत की े ऩूनतु भें जफ अन्धी दौड़ रगती शै तो ऩये ळानी शोती शै , अऩनी औय अऩने रयश्तेदायों की फदनाभी शोती शै । ...तो ळाद कयने भें फुवद्ध चादशए कक रूचच की ऩूनतु क वाथ भाॉग की ऩूनतु शो। े भाॉग आवानी वे ऩूय शो वकती शै औय रूचच जल्द ऩूय शोती नश ॊ। जफ शोती शै तफ ननलवत्त नश ॊ शोती, अवऩतु औय गशय उतयती शै अथला उफान औय वलऴाद भें फदरती शै । रूचच क ृ े अनुवाय वदा वफ चीजें शोंगी नश ॊ, रूचच क अनुवाय वफ रोग तुम्शाय फात भानेंगी नश ॊ। रूचच क े े अनुवाय वदा तुम्शाया ळय य दटकगा नश ॊ। अन्त भें रूचच फच जामेगी, ळय य चरा जामगा। रूचच े फच गई तो काभना फच गई। जातीम वख की काभना, धन की काभना, वत्ता की काभना, ु
  • 10. वौन्दमु की काभना, लाशलाश की काभना, इन काभनाओॊ वे वम्भोश शोता शै । वम्भोश वे फुवद्धभ्रभ शोता शै , फुवद्धभ्रभ वे वलनाळ शोता शै । कयने की, भानने की औय जानने की ळक्ति को अगय रूचच क अनुवाय रगाते शैं तो कयने े का अॊत नश ॊ शोगा, भानने का अॊत नश ॊ शोगा, जानने का अॊत नश ॊ शोगा। इन तीनों मोग्मताओॊ को आऩ अगय मथामोग्म जगश ऩय रगा दें गे तो आऩका जीलन वपर शो जामगा। अत् मश फात लवद्ध शै कक आलश्मकता ऩूय कयने भें ळास्त्र, गुरू वभाज औय बगलान आऩका वशमोग कयें गे। आऩकी आलश्मकता ऩय कयने भें प्रकृनत बी वशमोग दे ती शै । फेटा भाॉ की ू गोद भें आता शै , उवकी आलश्मकता शोती शै दध की। प्रकृनत वशमोग दे कय दध तैमाय कय दे ती ू ू शै । फेटा फड़ा शोता शै औय उवकी आलश्मकता शोती शै दाॉतों की तो दाॉत आ जाते शैं। भनष्म की आलश्मकता शै शला की, जर की, अन्न की। मश आलश्मकता आवानी वे ु मथामोग्म ऩय शो जाती शै । आऩको अगय रूचच शै ळयाफ की, अगय उव रूचच ऩनतु भें रगे तो लश ू ू जीलन का वलनाळ कयती शै । ळय य क लरए ळयाफ की आलश्मकता नश ॊ शै । रूचच की ऩनतु े ू कष्टवाध्म शै औय आलश्मकता की ऩूनतु वशजवाध्म शै । आऩक ऩाव जो कयने की ळक्ति शै , उवे रूचच क अनुवाय न रगाकय वभाज क लरए रगा े े े दो। अथाुत ् तन को, भन को, धन को, अन्न को, अथला कछ बी कयने की ळक्ति को 'फशु जन ु दशताम, फशुजन वुखाम' भें रगा दो। आऩको शोगा कक अगय शभ अऩना जो कछ शै , लश वभाज क लरए रगा दें तो कपय ु े शभाय आलश्मकताएॉ कवे ऩूय शोंगी? ै आऩ वभाज क काभ भें आओगे तो आऩकी वेला भें वाया वभाज तत्ऩय शोकय रगा े यशे गा। एक भोटयवाइकर काभ भें आती शै तो उवको वॊबारने लारे शोते शैं कक नश ॊ ? घोड़ा-गधा काभ भें आते शैं तो उवको बी णखराने लारे शोते शैं। आऩ तो भनुष्म शो। आऩ अगय रोगों के काभ आओगे तो शजाय-शजाय रोग आऩकी आलश्मकता ऩूय कयने क लरए रारानमत शो जामेंगे। े आऩ श्चजतना-श्चजतना अऩनी रूचच को छोड़ोगे, उतनी उतनी उन्ननत कयते जाओगे। जो रोग रूचच क अनुवाय वेला कयना चाशते शैं, उनक जीलन भे फयकत नश ॊ आती। े े ककन्तु जो आलश्मकता क अनुवाय वेला कयते शैं, उनकी वेला रूचच लभटाकय मोग फन जाती शै । े ऩनतव्रता स्त्री जॊगर भें नश ॊ जाती, गुपा भें नश ॊ फैठती। लश अऩनी रूचच ऩनत की वेला भें रगा दे ती शै । उवकी अऩनी रूचच फचती श नश ॊ शै । अत् उवका चचत्त स्लमभेल मोग भें आ जाता शै । लश जो फोरती शै , ऐवा प्रकृनत कयने रगती शै । तोटकाचामु, ऩूयणऩोडा, वरूका-भरूका, फारा-भयदाना जैवे वश्चत्ळष्मों ने गुरू की वेला भें , गुरू की दै ली कामों भें अऩने कयने की, भानने की औय जानने की ळक्ति रगा द तो उनको वशज भें भुक्तिपर लभर गमा। गुरूओॊ की बी ऐवा वशज भें नश ॊ लभरा था जैवे इन लळष्मों को लभर गमा। श्रीभद् आद्य ळॊकयाचामु को गरूप्रानप्त क लरए ककतना-ककतना ऩरयश्रभ कयना ऩड़ा ! कशाॉ वे ु े
  • 11. ऩैदर मािा कयनी ऩड़ी ! सानप्रानप्त क लरए बी कवी-कवी वाधनाएॉ कयनी ऩड़ी ! जफकी उनक े ै ै े लळष्म तोटकाचामु ने तो कलर अऩने गुरूदे ल क फतुन भाॉजते-भाॉजते श प्राप्तव्म ऩा लरमा। े े अऩनी कयने की ळक्ति को स्लाथु भें नश ॊ अवऩतु ऩयदशत भें रगाओ तो कयना तुम्शाया मोग शो जामेगा। भानने की ळक्ति शै तो वलश्वननमॊता को भानो। लश ऩयभवुरृद शै औय वलुि शै , अऩना आऩा बी शै औय प्राणणभाि का आधाय बी शै । जो रोग अऩने को अनाथ भानते शैं, लश ऩयभात्भा का अनादय कयते शैं। जो फशन अऩने को वलधला भानती शै , लश ऩयभात्भा का अनादय कयती शै । अये ! जगतऩनत ऩयभात्भा वलद्यभान शोते शुए तू वलधला कवे शो वकती शै ? वलश्व का नाथ वाथ ै भें शोते शुए तभ अनाथ कवे शो वकते शो ? अगय तभ अऩने को अनाथ, अवशाम, वलधला ु ै ु इत्मादद भानते शो तो तभने अऩने भानने की ळक्ति का दरूऩमोग ककमा। वलश्वऩनत वदा भौजद शै ु ु ू औय तभ आॉवू फशाते शो ? ु "भेये वऩता जी स्लगुलाव शो गमे.... भैं अनाथ शो गमा.........।" "गरुजी आऩ चरे जामेंगे... शभ अनाथ शो जाएॉगे....।" ु नश ॊ नश ॊ....। तू लीय वऩता का ऩुि शै । ननबुम गुरू का चेरा शै । तू तो लीयता वे कश दे कक, 'आऩ आयाभ वे अऩनी मािा कयो। शभ आऩकी उत्तयकक्रमा कयें गे औय आऩक आदळों को, े आऩक वलचायों को वभाज की वेला भें रगाएॉगे ताकक आऩकी वेला शो जाम।' मश वुऩुि औय े वश्चत्ळष्म का कत्तुव्म शोता शै । अऩने स्लाथु क लरमे योना, मश न ऩत्नी क लरए ठ क शै न ऩनत क े े े लरए ठ क शै , न ऩुि क लरए ठ क शै न लळष्म क लरए ठ क शै औय न लभि क लरए ठ क शै । े े े ऩैगॊफय भुशम्भद ऩयभात्भा को अऩना दोस्त भानते थे, जीवव ऩयभात्भा को अऩना वऩता भानते थे औय भीया ऩयभात्भा को अऩना ऩनत भानती थी। ऩयभात्भा को चाशे ऩनत भानो चाशे दोस्त भानो, चाशे वऩता भानो चाशे फेटा भानो, लश शै भौजद औय तुभ फोरते शो कक भेये ऩाव ू फेटा नश ॊ शै .... भेय गोद खार शै । तो तुभ ईश्वय का अनादय कयते शो। तुम्शाये रृदम की गोद भें ऩयभात्भा फैठा शै , तुम्शाय इश्चन्िमों की गोद भें ऩयभात्भा भें फैठा शै । तुभ भानते तो शो रेककन अऩनी रूचच क अनुवाय भानते शो, इवलरए योते यशते शो। भाॉग े क अनुवाय भानते शो तो आयाभ ऩाते शो। भदशरा आॉवू फशा यश शै कक रूचच क अनुवाय फेटा े े अऩने ऩाव नश ॊ यशा। उवकी जशाॉ आलश्मकता थी, ऩयभात्भा ने उवको लशाॉ यख लरमा र्कमोंकक उवकी दृवष्ट कलर उव भदशरा की गोद मा उवका घय श नश ॊ शै । वाय ववष्ट, वाया ब्रह्माण्ड उव े ृ ऩयभात्भा की गोद भें शै । तो लश फेटा कश ॊ बी शो, लश ऩयभात्भा की गोद भें श शै । अगय शभ रूचच क अनुवाय भन को फशने दे ते शैं तो द्ख फना यशता शै । े ु रूचच क अनुवाय तुभ कयते यशोगे तो वभम फीत जामगा, रूचच नश ॊ लभटे गी। मश रूचच शै े कक जया-वा ऩा रें ..... जया वा बोग रें तो रूचच ऩूय शो जाम। ककन्तु ऐवा नश ॊ शै । बोगने वे रूचच गशय उतय जामगी। जगत का ऐवा कोई ऩदाथु नश ॊ जो रूचचकय शो औय लभरता बी यशे । मा तो ऩदाथु नष्ट शो जाएगा मा उवभें उफान आ जाएगी।
  • 12. रूचच को ऩोवना नश ॊ शै , ननलत्त कयना शै । रूचच ननलत्त शो गई तो काभ फन गमा, कपय ृ ृ ईश्वय दय नश ॊ यशे गा। शभ गरती मश कयते शैं कक रूचच क अनुवाय वफ कयते यशते शैं। ऩाॉच-दव ू े व्मक्ति श नश ॊ, ऩूया वभाज इवी ढाॉचे भें चर यशा शै । अऩनी आलश्मकता को ठ क वे वभझते नश ॊ औय रूचच ऩूय कयने भें रगे यशते शैं। ईश्वय तो अऩना आऩा शै , अऩना स्लरूऩ शै । ललळिजी भशायाज कशते शैं- "शे याभजी ! पर, ऩत्ते औय टशनी तोड़ने भें तो ऩरयश्रभ शै , ककन्तु अऩने आत्भा-ऩयभात्भा ू को जानने भें र्कमा ऩरयश्रभ शै ? जो अवलचाय वे चरते शैं, उनक लरए वॊवाय वागय तयना भशा े कदठन शै , अगम्म शै । तभ वय खे जो फवद्धभान शैं उनक लरए वॊवाय वागय गोऩद की तयश तयना ु ु े आवान शै । लळष्म भें जो वदगण शोने चादशए ले तभ भें शैं औय गरू भें जो वाभर्थमु शोना चादशए ु ु ु लश शभभें शै । अफ थोड़ा वा वलचाय कयो, तयन्त फेड़ा ऩाय शो जामगा।" ु शभाय आलश्मकता शै मोग की औय जीते शैं रूचच क अनवाय। कोई शभाय फात नश ॊ े ु भानता तो शभ गभु शो जाते शैं, रड़ने-झगड़ने रगते शैं। शभाय रूचच शै अशॊ ऩोवने की औय आलश्मकता शै अशॊ को वलवश्चजुत कयने की। रूचच शै अनुळावन कयने की, कछ वलळेऴ शुर्कभ ु चराने की औय आलश्मकता शै वफभें छऩे शुए वलळेऴ को ऩाने की। ु आऩ अऩनी आलश्मकताएॉ ऩूय कयो, रूचच को ऩूय भत कयो। जफ आलश्मकताएॉ ऩूय कयने भें रगोगे तो रूचच लभटने रगेगी। रूचच लभट जामगी तो ळशॊ ळाश शो जाओगे। आऩभें कयने की, भानने की, जानने की ळक्ति शै । रूचच क अनुवाय उवका उऩमोग कयते शो तो वत्मानाळ शोता शै । े आलश्मकता क अनुवाय उवका उऩमोग कयोगे तो फेड़ा ऩाय शोगा। े आलश्मकता शै अऩने को जानने की औय रूचच शै रॊदन, न्मूमाक, भास्को भें र्कमा शुआ, ु मश जानने की। 'इवने र्कमा ककमा... उवने र्कमा ककमा.... पराने की फायात भें ककतने रोग थे.... उवकी फशू कवी आमी....' मश वफ जानने की आलश्मकता नश ॊ शै । मश तुम्शाय रूचच शै । अगय रूचच क ै े अनुवाय भन को बटकाते यशोगे तो भन जीवलत यशे गा औय आलश्मकता क अनुवाय भन का े उऩमोग कयोगे तो भन अभनीबाल को प्राप्त शोगा। उवक वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ कभ शोंगे। फुवद्ध को े ऩरयश्रभ कभ शोगा तो लश भेधाली शोगी। रूचच शै आरस्म भें औय आलश्मकता शै स्पनतु की। रूचच ू शै थोड़ा कयक ज्मादा राब रेने भें औय आलश्मकता शै ज्मादा कयक कछ बी न रेने की। जो बी े े ु लभरेगा लश नाळलान शोगा, कछ बी नश ॊ रोगे तो अऩना आऩा प्रकट शो जामगा। ु कछ ऩाने की, कछ बोगने की जो रूचच शै , लश शभें वलेश्वय की प्रानप्त वे लॊचचत कय दे ती ु ु शै । आलश्मकता शै 'नेकी कय कएॉ भें पक'। रेककन रूचच शोती शै , 'नेकी थोड़ी करू औय चभक ु ें ॉ ॉू ज्मादा। फद फशुत करू औय छऩाकय यख।' इवीलरए यास्ता कदठन शो गमा शै । लास्तल भें ईश्वय- ॉ ु ूॉ प्रानप्त का यास्ता यास्ता श नश ॊ शै , र्कमोंकक यास्ता तफ शोता शै जफ कोई चीज लशाॉ औय शभ मशाॉ शों, दोनों क फीच भें दय शो। शकीकत भें ईश्वय ऐवा नश ॊ शै कक शभ मशाॉ शों औय ईश्वय कश ॊ दय े ू ू
  • 13. शो। आऩक औय ईश्वय क फीच एक इॊच का बी पावरा नश ॊ, एक फार श्चजतना बी अॊतय नश ॊ े े रेककन अबागी रूचच ने आऩको औय ईश्वय को ऩयामा कय ददमा शै । जो ऩयामा वॊवाय शै , लभटने लारा ळय य शै , उवको अऩना भशवूव कयामा। मश ळय य ऩयामा शै , आऩका नश ॊ शै । ऩयामा ळय य अऩना रगता शै । भकान शै ईंच-चने-रर्ककड़-ऩत्थय का औय ऩयामा शै रेककन रूचच कशती शै कक ू भकान भेया शै । स्लाभी याभतीथु कशते शैं- "शे भखु भनष्मों ! अऩना धन, फर ल ळक्ति फड़े-फड़े बलन फनाने भें भत खचो, रूचच को ू ु ऩनतु भें भत खचो। अऩनी आलश्मकता क अनवाय वीधा वादा ननलाव स्थान फनाओ औय फाकी ू े ु का अभल्म वभम जो आऩकी अवर आलश्मकता शै मोग की, उवभें रगाओ। ढे य वाय क्तडजाइनों ू क लस्त्रों की कतायें अऩनी अरभाय भें भत यखो। अऩने ददर की अरभाय भें आने का वभम े फचा रो। श्चजतनी आलश्मकता शो उतने श लस्त्र यखो, फाकी का वभम मोग भें रग जामगा। मोग श तम्शाय आलश्मकता शै । वलश्राश्चन्त तम्शाय आलश्मकता शै । अऩने आऩको जानना तम्शाय ु ु ु आलश्मकता शै । जगत की वेला कयना तुम्शाय आलश्मकता शै र्कमोंकक जगत वे ळय य फना शै तो जगत क लरए कयोगे तो तुम्शाय आलश्मकता अऩने आऩ ऩूय शो जामगी। े ईश्वय को आलश्मकता शै तुम्शाये प्माय की, जगत को आलश्मकता शै तुम्शाय वेला की औय तुम्शें आलश्मकता शै अऩने आऩको जानने की। ळय य को जगत की वेला भें रगा दो, ददर भें ऩयभात्भा का प्माय बय दो औय फुवद्ध को अऩना स्लरूऩ जानने भें रगा दो। आऩका फेड़ा ऩाय शो जामगा। मश वीधा गणणत शै । भानना, कयना औय जानना रूचच क अनुवाय नश ॊ फश्चल्क, आलश्मकता क अनुवाय श शो े े जाना चादशए। आलश्मकता ऩूय कयने भें नश ॊ कोई ऩाऩ, नश ॊ कोई दोऴ। रूचच ऩूय कयने भें तो शभें कई शथकडे अऩनाने ऩड़ते शैं। जीलन खऩ जाता शै ककन्तु रूचच खत्भ नश ॊ शोती, फदरती ॊ यशती शै । रूचचकय ऩदाथु आऩ बोगते यशें तो बोगने का वाभर्थमु कभ शो जामगा औय रूचच यश जामगी। दे खने की ळक्ति खत्भ शो जाम औय दे खने की इच्छा फनी यशे तो ककतना द्ख शोगा ! ु वुनने की ळक्ति खत्भ शो जाम औय वुनने की इच्छा फनी यशे तो ककतना दबाुग्म ! जीने की ु ळक्ति षीण शो जाम औय जीने की रूचच फनी यशे तो ककतना द्ख शोगा ! इवलरए भयते वभम ु द्ख शोता शै । श्चजनकी रूचच नश ॊ शोती उन आत्भयाभी ऩुरूऴों को र्कमा द्ख ? श्रीकृष्ण को दे खते- ु ु दे खते बीष्भ वऩताभश ने प्राण ऊऩय चढा ददमे। उन्शें भयने का कोई द्ख नश ॊ। ु वॉूघने की रूचच फनी यशे औय नाक काभ न कये तो ? मािा की रूचच फनी यशे औय ऩैय जलाफ दे दें तो ? ऩैवों की रूचच फनी यशे औय ऩैवे न शों तो ककतना द्ख ? लाशलाश की रूचच शै ु औय लाशलाश न लभर तो ? अगय रूचच क अनुवाय लाशलाश लभर बी जाम तो र्कमा रूचच ऩूय शो जामगी ? नश , औय े ॊ ज्मादा लाशलाश की इच्छा शोगी। शभ जानते श शैं कक श्चजवकी लाशलाश शोती शै उवकी ननन्दा बी
  • 14. शोती शै । अत् लाशलाश वे रूचचऩूनतु का वुख लभरता शै तो ननन्दा वे उतना श द्ख शोगा। औय ु इतने श ननन्दा कयने लारों क प्रनत अन्मामकाय वलचाय उठें गे। अन्मामकाय वलचाय श्चजव रृदम भें े उठें गे, उवी रृदम को ऩशरे खयाफ कयें गे। अत् शभ अऩना श नुकवान कयें गे। एक शोता शै अनुळावन, दवया शोता शै क्रोध। श्चजन्शें अऩने वुख की कोई रूचच नश , जो ू ॊ वुख दे ना चाशते शैं, श्चजन्शें अऩने बोग की कोई इच्छा नश ॊ शै , उनकी आलश्मकता वशज भें ऩूय शोती शै । जो दवयों की आलश्मकता ऩूय कयने भें रगे शैं, ले अगय डाॉटते बी शैं तो लश अनुळावन ू शो जाता शै । जो रूचचऩनतु क लरए डाॉटते शैं, लश क्रोध शो जाता शै । आलश्मकताऩनतु क लरए अगय ू े ू े वऩटाई बी कय द जाम तो बी प्रवाद फन जाता शै । भाॉ को आलश्मकता शै फेटे को दलाई वऩराने की तो भाॉ थप्ऩड़ बी भायती शै , झठ बी ू फोरती शै , गार बी दे ती शै कपय बी उवे कोई ऩाऩ नश ॊ रगता। दवया कोई आदभी अऩनी रूचच ू ऩनतु क लरए ऐवा श व्मलशाय उवक फेटे वे कये तो दे खो, भाॉ मा दवये रोग बी उवकी कवी ू े े ू ै खफय रे रेते शैं ! ककवी की आलश्मकताऩनतु क लरए ककमा शुआ क्रोध बी अनळावन फन जाता ू े ु शै । रूचच ऩूनतु क लरए ककमा शुआ क्रोध कई भुवीफतें खड़ी कय दे ता शै । े एक वलनोद फात शै । ककवी जाट ने एक वूदखोय फननमे वे वौ रूऩमे उधाय लरमे थे। कापी वभम फीत जाने ऩय बी जफ उवने ऩैवे नश ॊ रौटामे तो फननमा अकराकय उवक ऩाव ु े लवूर क लरए गमा। े "बाई ! तू ब्माज भत दे , भूर यकभ वौ रूऩमे तो दे दे । ककतना वभम शो गमा ?" जाट गुयाुकय फोरा् "तुभ भुझे जानते शो न ? भैं कौन शूॉ?" "इवीलरए तो कशता शूॉ कक ब्माज भत दो। कलर वौ रूऩमे दे दो।" े "वौ लौ नश ॊ लभरेंगे। भेया कशना भानो तो कछ लभरेगा।" ु फननमे ने वोचा कक खार शाथ रौटने वे फेशतय शै , जो कछ लभरे लश रे रॉ ू। ु जाट ने कशा् "दे खो, भगय आऩको ऩैवे रेने शो तो भेय इतनी वी फात भानो। आऩक वौ े रूऩमें शैं ?" "शाॉ"। "तो वौ क कय दो वाठ।" े "ठ क शै , वाठ दे दो।" "ठशयो, भुझे फात ऩूय कय रेने दो। वौ क कय दो वाठ.... आधा कय दो काट.. दव दें गे... े दव छड़ामेंगे औय दव क जोड़ेंगे शाथ। अबी दकान ऩय ऩशुॉच जाओ।" ु े ु लभरा र्कमा ? फननमा खार शाथ रौट गमा। ऐवे श भन की जो इच्छाएॉ शोती शैं, उवको कशें गे कक बाई ! इच्छाएॉ ऩूय कयें गे रेककन अबी तो वौ की वाठ कय दे , औय उवभें वे आधा काट कय दे । दव इच्छाएॉ तेय ऩूय कयें गे
  • 15. धभाुनुवाय, आलश्मकता क अनुवाय। दव इच्छाओॊ की तो कोई आलश्मकता श नश ॊ शै औय ळेऴ े दव वे जोड़ेंगे शाथ। अबी तो बजन भें रगें गे, औयों की आलश्मकता ऩूय कयने भें रगें गे। जो दवयों की आलश्मकता ऩूय कयने भें रगता शै , उवकी रूचच अऩने आऩ लभटती शै औय ू आलश्मकता ऩूय शोने रगती शै । आऩको ऩता शै कक जफ वेठ का नौकय वेठ की आलश्मकताएॉ ऩूय कयने रगता शै तो उवक यशने की आलश्मकता की ऩूनतु वेठ क घय भें शो जाती शै । उवकी े े अन्न-लस्त्रादद की आलश्मकताएॉ ऩूय शोने रगती शैं। ड्रामलय अऩने भालरक की आलश्मकता ऩूय कयता शै तो उवकी घय चराने की आलश्मकताऩनतु भालरक कयता श शै । कपय लश आलश्मकता ू फढा दे औय वलरावी जीलन जीना चाशे तो गड़फड़ शो जामगी, अन्मथा उवकी आलश्मकता जो शै उवकी ऩनतु तो शो श जाती शै । आलश्मकता ऩनतु भें औय रूचच की ननलवत्त भें रग जाम तो ू ू ृ ड्रामलय बी भि शो वकता शै , वेठ बी भि शो वकता शै , अनऩढ बी भि शो वकता शै , लळक्षषत ु ु ु बी भि शो वकता, ननधुन बी भि शो वकता शै , धनलान बी भि शो वकता शै , दे ळी बी भि शो ु ु ु ु वकता शै , ऩयदे ळी बी भि शो वकता शै । अये , डाक बी भि शो वकता शै । ु ू ु आऩक ऩाव सान शै , उव सान का आदय कयो। कपय चाशे गॊगा क ककनाये फैठकय आदय े े कयो मा मभुना क ककनाये फैठकय आदय कयो मा वभाज भें यशकय आदय कयो। सान का उऩमोग े कयने की करा का नाभ शै वत्वॊग। वफक ऩाव सान शै । लश सानस्लरूऩ चैतन्म श वफका अऩना आऩा शै । रेककन फुवद्ध क े े वलकाव का पक शै । सान तो भच्छय क ऩाव बी शै । फुवद्ध की भॊदता क कायण रूचचऩूनतु भें श ु े े शभ जीलन खचु ककमे जाते शैं। श्चजवको शभ जीलन कशते शैं, लश ळय य शभाया जीलन नश ॊ शै । लास्तल भें सान श शभाया जीलन शै , चैतन्म आत्भा श शभाया जीलन शै । ॐकाय का जऩ कयने वे आऩकी आलश्मकताऩूनतु की मोग्मता फढती शै औय रूचच की ननलवत्त भें भदद लभरती शै । इवलरए ॐकाय (प्रणल) भॊि वलोऩरय भाना जाता शै । शाराॉकक वॊवाय ृ दृवष्ट वे दे खा जाम तो भदशराओॊ को एलॊ गशश्चस्थमों को अकरा ॐकाय का जऩ नश ॊ कयना ृ े चादशए, र्कमोंकक उन्शोंने रूचचमों को आलश्मकता का जाभा ऩशनाकय ऐवा वलस्ताय कय यखा शै कक एकाएक अगय लश वफ टूटने रगेगा तो ले रोग घफया उठें गे। एक तयप अऩनी ऩुयानी रूचच खीॊचगी औय दवय तयप अऩनी भूरबूत आलश्मकता – एकाॊत की, आत्भवाषात्काय की इच्छा े ू आकवऴुत कये गी। प्रणल क अचधक जऩ वे भुक्ति की इच्छा जोय भाये गी। इववे गशस्थी क इदु - े ृ े चगदु जो रूचच ऩूनतु कयने लारे भॊडयाते यशते शैं, उन वफको धर्कका रगेगा। इवलरए गशश्चस्थमों को ृ कशते शैं कक अकरे ॐ का जऩ भत कयो। ऋवऴमों ने ककतना वूक्ष्भ अध्ममन ककमा शै । े वभाज को आऩक प्रेभ की, वान्तलना की, स्नेश की औय ननष्काभ कभु की आलश्मकता े शै । आऩक ऩाव कयने की ळक्ति शै तो उवे वभाज की आलश्मकताऩूनतु भें रगा दो। आऩकी े आलश्मकता भाॉ, फाऩ, गुरू औय बगलान ऩूय कय दें गे। अन्न, जर औय लस्त्र आवानी वे लभर जामेंगे। ऩय टै य कोटन कऩड़ा चादशए, ऩप-ऩालडय चादशए तो मश रूचच शै । रूचच क अनवाय जो े ु
  • 16. चीजें लभरती शैं, ले शभाय शानन कयती शैं। आलश्मकतानुवाय चीजें शभाय तन्दरूस्ती की बी यषा ु कयती शै । जो आदभी ज्मादा फीभाय शै , उवकी फुवद्ध वुभनत नश ॊ शै । चयक-वॊदशता क यचनमता ने अऩने लळष्म को कशा कक तॊदरूस्ती क लरए बी फुवद्ध चादशए। े े वाभाश्चजक जीलन जीने क लरए बी फुवद्ध चादशए औय भयने क लरम बी फुवद्ध चादशए। भयते वभम े े बी अगय फुवद्ध का उऩमोग ककमा जाम कक, 'भौत शो यश शै इव दे श की, भैं तो चैतन्म व्माऩक आत्भा शूॉ।' ॐकाय का जऩ कयक भौत का बी वाषी फन जामें। जो भत्मु को बी दे खता शै उवकी े ृ भत्मु नश ॊ शोती। क्रोध को दे खने लारे शो जाओ तो क्रोध ळाॊत शो जामेगा। मश फवद्ध का उऩमोग ृ ु शै । जैवे आऩ गाड़ी चराते शो औय दे खते शुए चराते शो तो खड्डे भें नश ॊ चगयती औय आॉख फन्द कयक चराते शो तो फचती बी नश ॊ। ऐवे श क्रोध आमा औय शभने फवद्ध का उऩमोग नश ॊ ककमा े ु तो फश जामेंगे। काभ, रोब औय भोशादद आमें औय वतक यशकय फवद्ध वे काभ नश ॊ लरमा तो मे ु ु वलकाय शभें फशा रे जामेंगे। रोब आमे तो वलचायों कक आणखय कफ तक इन ऩद-ऩदाथों को वॊबारते यशोगे। आलश्मकता तो मश शै कक फशुजनदशताम, फशुजनवुखाम इनका उऩमोग ककमा जामे औय रूचच शै इनका अम्फाय रगाने की। अगय रूचच क अनुवाय ककमा तो भुवीफतें ऩैदा कय रोगे। ऐवे श े आलश्मकता शै कश ॊ ऩय अनुळावन की औय आऩने क्रोध की पपकाय भाय द तो जाॉच कयो कक ु उव वभम आऩका रृदम तऩता तो नश ॊ। वाभने लारे का अदशत शो जामे तो शो जामे ककन्तु आऩकी फात अक्तडग यशे – मश क्रोध शै । वाभने लारा का दशत शो, अदशत तननक बी न शो, अगय मश बालना गशयाई भें शो तो कपय लश क्रोध नश , अनुळावन शै । अगय जरन भशवूव शोती शै तो ॊ क्रोध घुव गमा। काभ फुया नश ॊ शै , क्रोध फुया नश ॊ शै , रोब-भोश औय अशॊ काय फुया नश ॊ शै । धभाुनुकर वफकी आलश्मकता शै । अगय फुया शोता तो ववष्टकताु फनाता श र्कमों ? जीलन-वलकाव ू ृ क लरए इनकी आलश्मकता शै । द्ख फुया नश ॊ शै । ननन्दा, अऩभान, योग फुया नश ॊ शै । योग आता े ु शै तो वालधान कयता शै कक रूचचमाॉ भत फढाओ। फेऩयलाश भत कयो। अऩभान बी लवखाता शै कक भान की इच्छा शै , इवलरए द्ख शोता शै । ळुकदे ल जी को भान भें रूचच नश ॊ शै , इवलरए कोई ु रोग अऩभान कय यशे शैं कपय बी उन्शें द्ख नश ॊ शोता। यशुगण याजा ककतना अऩभान कयते शैं, ु ककन्तु जड़बयत ळाॊतचचत्त यशते शैं। अऩभान का द्ख फताता शै कक आऩको भान भें रूचच शै । द्ख का बाल फताता शै कक ु ु वुख भें रूचच शै । कृऩा कयक अऩनी रूचच ऩयभात्भा भें श यखो। े वुख, भान औय मळ भें नश ॊ पवोगे तो आऩ त्रफल्कर स्लतॊि शो जाओगे। मोगी का मोग ॉ ु लवद्ध शो जामगा, तऩी का तऩ औय बि की बक्ति वपर शो जामगी। फात अगय जॉ चती शै तो इवे अऩनी फना रेना। तुभ दवया कछ नश ॊ तो कभ वे कभ अऩने अनुबल का तो आदय कयो। ू ु आऩको रूचच अनुवाय बोग लभरते शैं तो बोग बोगते-बोगते आऩ थक जाते शैं कक नश ॊ ? ऊफान शै कक नश ॊ ? ... इव सान का आदय कयो। 'फशु जनदशताम-फशुजनवखाम' काभ कयते शो तो ु