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गंगा के से आई धरती पर
• रघु कु ल में बहुत ही प्रतापी राजाओ ने जन्म ललया है | उस समय रजा
महाराजा अपना सामाज्य बढाने के ललए अशव्मेघ यग्य ककया करते थे |
इसमें एक घोडा छोड़ा जाता था|और वो घोडा जजस राज्य सी हो जाता था
और ककसी ने बबच में वो घोडा पकड़ ललया और उसे अश्वमेघ यज्ञ करने
वाले राजा से युद्ध करना होता था|
• एक बार रजा सागर ने ववशाल अश्वमेघ यज्ञ ककया और आश्वामेघ का
घोडा छोड़ दिया | रजा इंद्रा को भय था कहीं अश्वामेघ घोडा अगर स्वगग में
आ गया तो स्वगग पर राजा सागर का कब्ज़ा हो जायेगा और रजा सागर से
लड़ पाना कतई संभव नहीं है|
• यही सोचकर इंद्रा भेष बिल के गये और घोडा पकड़ कर चुपचाप कवपल
मुनन के आश्रम में बांध दिया| कवपल मुनन उस समय ध्यान मुद्रा मैं थे
किर जव गंगा अपने प्रचंड वेग मैं धरती पर उतरी तो भायंकर गजगना
हुआ तव भगवन लशव ने गंगा को अपनी जाता में बंधा और अपनी जटा
से एक पतली धरा के के रूप में गंगा को धरती पर जाने दिया
गंगा निी का इनतहास
• गंगा निी हमारे िेश की सबसे पववत्र निी है
लोग गंगा को “गंगा माता “, “गंगा मैया “
आदि नाम से पुकारते है | हमारे भारत वषग में
गंगा के प्रनत लोगों के मन में बहुत श्रद्धा है ,
लोग गंगा को भगवान की तरह पूजनीय मानते
है | लोग गंगा के जल को अपने में रखते हे
और हर पववत्र कायग में गंगा जल का प्रयोग
करते हे |गंगा का पानी इतना पववत्र हे की ये
सालो तक रखे रहने के वावजूि सड़ता नही हे
गंगा के तीथग
• गंगा के ककनारे अनेक तीथग हैं- गंगोत्री, जहां भागीरथी का
उद्गम हुआ, बिरीनाथ, जहां नर-नारायण की तपस्या हुई।
िेव-प्रयाग, जजस स्थल पर भागीरथी और अलकनंिा िोनों के
संगम से गंगा बनी। ऋवषके श, जजस स्थान पर वह वपता श्री
दहमवान से अनुमनत लेकर पधारी तथा हररद्वार जजसे गंगा
का द्वार कहा जाता है। तिुपरांत गंगा का तीथग है-कनखल,
जजस स्थान पर सती ने िक्ष यज्ञ में आत्मिाह ककया और
लशव ने िक्ष के यज्ञ का ववध्वंस कर डाला था, गढ़मुक्तेश्वर
और सोरों, जजन स्थलों पर स्नान करने से मुजक्त लमलती
है, प्रयाग जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम
होता है, काशी जो लशव भगवान की पुत्री है। गंगा सागर,
सागर के पुत्रों का उद्धार करने वाली तीथग स्थली है।
काशी क्या हैं
प्रलसद्ध धालमगक नगरी काशी (अब वाराणसी) गंगा के तट
पर ही सुशोलभत है। कशा यानी चमकने वाला से इसका
नाम काशी रखा गया होगा, क्योंकक ‘वरुणा’ और ‘असी’
नामक िो नदियों के आधार पर ही आज इसे वाराणसी
संज्ञा प्रिान की गई है। बनारस भी शायि उसी का
बबगड़ा रूप है।
4,800 िु ट की ऊं चाई पर भटवारी में शेषनाग का छोटा
सा भग्नावस्था में मंदिर है। उनके चरणों से एक छोटी
सी निी नवला ननकलती है और यहीं गंगा में ववलय हो
जाती है। इस स्थान को भास्करपुरी कहा जाता है। यह
भी कहा जाता है कक सूयग ने लशव की उपासना यहीं की
थी।
भारतीय संस्कृ नत में गंगा का जन्म
कै से हुआ
• भारतीय संस्कृ नत की गंगा का जन्म कै से भी हुआ हो, पर मनुष्य
की पहली बस्ती उसकी तट पर आबाि हुई। पामीर के पठारों में
गौरवणीय सुनहरे बालों वाली आयग जानत का इष्ट िेवता था वरुण।
इस जानत की ववशेषता थी अमूतग का चचंतन और खोज। अजग्नहोत्र
के प्रचलन वाली इस जानत के अनुयायी नरबलल की पद्धनत को
अपनाते थे। उनके नेता राजा पुरूरवा ने गंगा संगम पर एक बस्ती
बसायी जजसे प्रनतष्ठान का नाम दिया उसी के समय में एक और
गंधवग नामक िोनों शाखाएं मीलकर एक हो गई। तभी भारतीय
संस्कृ नत की नींव पड़ी। एलों ने नरबलल छोड़कर अजग्नहोत्र को अपना
ललया। गंगा की पावन धारा में स्नान कर वह पववत्र हो गये। ब्रह्म
ऋवष वलशष्ठ से संघषग करने वाले ववश्वालमत्र की पुत्री शकु न्तला का
वववाह चन्द्रवंशी राजा िुष्यंत से हुआ और उनके पुत्र भरत ने पहली
बार इस िेश को भारत नाम िेकर एक सूत्र में बांधा। सूयगवंशी
भगीरथ ने गंगा के आदि और अंत की खोज की थी````````````````
गंगा निी का उिम स्थल
• गंगा निी का उद्गम स्थल के िारनाथ चोटी के उत्तर में गऊमुख
नामक स्थान पर 6600 मीटर की ऊॅ चाई पर हमानी से है
• यह निी उत्तर प्रिेश (Uttar Pradesh), उत्तराखंड
(Uttarakhand), बबहार (Bihar), पजश्चम बंगाल (West Bengal),
बांग्लािेश अदि प्रिेशों से होकर गुजरती है
• गंगा निी की कु ल लम्बाई 2525 ककमी है
• इस निी का अंंंत ग्वालन्िों के ननकट ब्रह्मपुत्र के साथ लमलकर
बंगाल की खाडी में होता है
• इस निी की सहायक निीयां अलकनन्िा, भागीरथी, रामगंगा, यमुना
(Yamuna), गोमती, घाघरा, गण्डक,और कोसी है
• इस निी के ककनारे बसे नगर हररद्वार, कानपुर, हलाहाबाि, पटना,
भागलपुर, वाराणसी, कोलकत्ता, आदि हैं
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  • 3. गंगा निी का इनतहास • गंगा निी हमारे िेश की सबसे पववत्र निी है लोग गंगा को “गंगा माता “, “गंगा मैया “ आदि नाम से पुकारते है | हमारे भारत वषग में गंगा के प्रनत लोगों के मन में बहुत श्रद्धा है , लोग गंगा को भगवान की तरह पूजनीय मानते है | लोग गंगा के जल को अपने में रखते हे और हर पववत्र कायग में गंगा जल का प्रयोग करते हे |गंगा का पानी इतना पववत्र हे की ये सालो तक रखे रहने के वावजूि सड़ता नही हे
  • 4. गंगा के तीथग • गंगा के ककनारे अनेक तीथग हैं- गंगोत्री, जहां भागीरथी का उद्गम हुआ, बिरीनाथ, जहां नर-नारायण की तपस्या हुई। िेव-प्रयाग, जजस स्थल पर भागीरथी और अलकनंिा िोनों के संगम से गंगा बनी। ऋवषके श, जजस स्थान पर वह वपता श्री दहमवान से अनुमनत लेकर पधारी तथा हररद्वार जजसे गंगा का द्वार कहा जाता है। तिुपरांत गंगा का तीथग है-कनखल, जजस स्थान पर सती ने िक्ष यज्ञ में आत्मिाह ककया और लशव ने िक्ष के यज्ञ का ववध्वंस कर डाला था, गढ़मुक्तेश्वर और सोरों, जजन स्थलों पर स्नान करने से मुजक्त लमलती है, प्रयाग जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम होता है, काशी जो लशव भगवान की पुत्री है। गंगा सागर, सागर के पुत्रों का उद्धार करने वाली तीथग स्थली है।
  • 5. काशी क्या हैं प्रलसद्ध धालमगक नगरी काशी (अब वाराणसी) गंगा के तट पर ही सुशोलभत है। कशा यानी चमकने वाला से इसका नाम काशी रखा गया होगा, क्योंकक ‘वरुणा’ और ‘असी’ नामक िो नदियों के आधार पर ही आज इसे वाराणसी संज्ञा प्रिान की गई है। बनारस भी शायि उसी का बबगड़ा रूप है। 4,800 िु ट की ऊं चाई पर भटवारी में शेषनाग का छोटा सा भग्नावस्था में मंदिर है। उनके चरणों से एक छोटी सी निी नवला ननकलती है और यहीं गंगा में ववलय हो जाती है। इस स्थान को भास्करपुरी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कक सूयग ने लशव की उपासना यहीं की थी।
  • 6. भारतीय संस्कृ नत में गंगा का जन्म कै से हुआ • भारतीय संस्कृ नत की गंगा का जन्म कै से भी हुआ हो, पर मनुष्य की पहली बस्ती उसकी तट पर आबाि हुई। पामीर के पठारों में गौरवणीय सुनहरे बालों वाली आयग जानत का इष्ट िेवता था वरुण। इस जानत की ववशेषता थी अमूतग का चचंतन और खोज। अजग्नहोत्र के प्रचलन वाली इस जानत के अनुयायी नरबलल की पद्धनत को अपनाते थे। उनके नेता राजा पुरूरवा ने गंगा संगम पर एक बस्ती बसायी जजसे प्रनतष्ठान का नाम दिया उसी के समय में एक और गंधवग नामक िोनों शाखाएं मीलकर एक हो गई। तभी भारतीय संस्कृ नत की नींव पड़ी। एलों ने नरबलल छोड़कर अजग्नहोत्र को अपना ललया। गंगा की पावन धारा में स्नान कर वह पववत्र हो गये। ब्रह्म ऋवष वलशष्ठ से संघषग करने वाले ववश्वालमत्र की पुत्री शकु न्तला का वववाह चन्द्रवंशी राजा िुष्यंत से हुआ और उनके पुत्र भरत ने पहली बार इस िेश को भारत नाम िेकर एक सूत्र में बांधा। सूयगवंशी भगीरथ ने गंगा के आदि और अंत की खोज की थी````````````````
  • 7. गंगा निी का उिम स्थल • गंगा निी का उद्गम स्थल के िारनाथ चोटी के उत्तर में गऊमुख नामक स्थान पर 6600 मीटर की ऊॅ चाई पर हमानी से है • यह निी उत्तर प्रिेश (Uttar Pradesh), उत्तराखंड (Uttarakhand), बबहार (Bihar), पजश्चम बंगाल (West Bengal), बांग्लािेश अदि प्रिेशों से होकर गुजरती है • गंगा निी की कु ल लम्बाई 2525 ककमी है • इस निी का अंंंत ग्वालन्िों के ननकट ब्रह्मपुत्र के साथ लमलकर बंगाल की खाडी में होता है • इस निी की सहायक निीयां अलकनन्िा, भागीरथी, रामगंगा, यमुना (Yamuna), गोमती, घाघरा, गण्डक,और कोसी है • इस निी के ककनारे बसे नगर हररद्वार, कानपुर, हलाहाबाि, पटना, भागलपुर, वाराणसी, कोलकत्ता, आदि हैं