SlideShare una empresa de Scribd logo
1 de 140
पंचतन्त्र - आमुख
Page 1 of 140
पंचतन्त्र - आमुख
Page 2 of 140
आमुख
राजनीति एक बडा शास्त्र है जो सबको अत्यन्ि पररश्रम करने के पश्चाि भी समझ मेंनहीं आिा । महात्मा तिष्णु
शमाा ने इस शास्त्र का इस चिुराई से तििेचन तकया है तक सामान्य मनुष्य भी सरलिा से इस शास्त्र को आत्मसाि कर
सके ।
पंचिन्र संस्कृि सातहत्य की अनमोल कृति है । न केिल इस देश में तकन्िु अन्य देशों में भी कथा सातहत्य के
रूप में पंचिन्र का अनुिाद अनेक भाषाओंमें हो चुका है ।
यह कथाएंपशु – पतियों पर ढालकरनीति शास्त्र की अनेक जतिलिाओंको सरल ढंग से समझाई गई ंहैं। पशु
– पतियों के माध्यम से अपनी बाि को कहनेका सबसे पुराना कथा संग्रह जािककथाओंके रूप मेंतमलिा है। जािकों
की कहातनयांसीधी – सादी तिना सँिारी हुई अिस्था मेंतमलिी हैं । उन्हीं का जडाऊ रूप पंचिन्र में देखनेको तमलिा
है, जो एक महान कलाकार की पैनी बुति और उत्कृष्ट रचना शति का पूणा कलात्मक उदाहरण है ।
पंचिन्र के लेखक तिष्णु शमाा नामकब्राह्मण थे । पंचिन्र के कथा मुखप्रकरण मेंकेिल इिना आभास तमलिा
है तक िे भारिीय नीतिशास्त्र के पारङ्गि तिद्वान थे । कहा जािा है तक इस ग्रन्थ की रचना उन्होंनेअस्सी िषा की आयु
में की थी । तिशुि बुति ि तनमाल तचत्त के इस ब्राह्मण नेमनु, बृहस्पति, शुक्र, पराशर, व्यास चाणक्य आतद आचायों के
राज शास्त्र ि अथा शास्त्र आतद को आधार बनाकर लोकतहि के तलए इस ग्रन्थ की रचना की । यह िथ्य रचनाकार ने
स्ियं अपने मंगलाचरण में ही स्िीकार तकया है ।
कहा जािा है तक ईरानी सम्राि खुसरो के प्रमुख राज िैद्य ि मन्री िुजुाए को जब यह ज्ञाि हुआ तक भारििषा में
तकसी पहाड पर संजीिनी बूिी नामकऔषतध उपलब्ध है िो उसका पिा लगानेके तलए 550 ईस्िी मेंिह भारि आया
और संजीिनी की खोज में इधर-उधर भिकिा रहा । अन्ि में तनराश होकर उसने तकसी भारिीय तिद्वान से पूछा तक
संजीिनी कहां तमलिी है ॽ उसने उत्तर में बिाया तक – “िुमनेजैसा पढा था, ठीकपढा था । तिद्वान व्यति ही िह पिाि
है जहांज्ञान की बूिी होिी है और तजसके सेिन से मूखा रूपी मृि व्यति भी तिर से जी उठिा है । इस प्रकार का अमृि
हमारेयहां के पंचिन्र नामक ग्रन्थ में है ।”
िब िुजुाए पंचिन्र की एक प्रति ईरान ले गया और पहलिी भाषा मेंउसका अनुिादतकया । पंचिन्र का तकसी
तिदेशी भाषा में यह पहला अनुिाद है । इसके बाद िो सीररया, जमानी आतद देशों की भाषाओंमें अनेक अनुिाद तकये
गए।
पहलिी अनुिाद के आधार पर दूसरा अनुिाद आठिीं सदी में अब्दुल्ला-इब्न-उल-मुस्ििा ने अरबी भाषा में
तकया तजसका नाम क्लीलः ि तदमनः है । यह करिक ि दमनक – इन दो नामों के रूप हैं । अरबी भाषा में यह ग्रन्थ
सिाातधक लोकतप्रय है ।
ग्यारहिीं शिाब्दी में यूनानी भाषा में िथा उसके बाद रूस और पूिी यूरोप की स्लाि भाषा में अनेक अनुिाद
हुए। कालान्िर में लैतिन, इिैतलयन और जमान आतद भाषा में सोलहिीं शिाब्दी के आस पास अनेक अनुिाद हुए ।
1260 – 1270 के बीच “क्लीलः ि तदमनः की पुस्िक – मानिी जीिन का कोष” नामकलैतिन भाषा में जॉन
नामकयहूदी के पंचिन्र के अनुिाद नेसमूचे पतश्चमी यूरोप मेंधूम मचा तदया । 1644 ईस्िी मेंफ्रें न्च भाषा मेंपंचिन्र का
अनुिाद तपलतपली साहब की कहातनयों के नाम से तिख्याि हुआ । पंचिन्र के अनेक तिदेशी भाषाओंके अनुिाद के
तिषय में सम्पूणा जानकारी हेिु एबिान की तिख्याि पुस्िक Panchatantra Reconstructed का सन्दभा तलया जा
सकिा है ।
पंचतन्त्र की परम्परा का संक्षिप्त पररचय
पंचिन्र की परम्परा िो लम्बी है तकन्िुमूल ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है । तिर भी पंचिन्र के आधार पर रचे गए
कई अन्य संस्करण उपलब्ध हैं । ये प्राचीन पाठ परम्पराएंतगनिी में कुल आठ हैं ।
पंचतन्त्र - आमुख
Page 3 of 140
1. तन्त्राख्याययका यह पंचिन्र का कश्मीरी पाठ है । इसकी प्रतियां केिल कश्मीर में शारदा तलतप में तमलिी
है । सम्पादक डॉ० हिाल के मिानुसारइस ग्रन्थ मेंपंचिन्र के मूल पाठ के अतिररि कुछ
अँश अलग से जोडे गए हैं । इसीतलए इस ग्रन्थ को इिना महत्ि नहीं तमला । इस ग्रन्थ का
रचना काल संतदग्ध है ।
2. दयिण भारतीय
पंचतन्त्र
एबिान के तिचार से इसमें पंचिन्र के मूल गद्य भाग का िीन चौथाई िथा पद्य भाग का दो
तिहाईभागही सुरतिि है। कुछतिद्वानों के मिानुसारपंचिन्र की रचना मतहलारोप्यनामक
स्थान पर ही हुई होगी क्योंतक इस नगर का नाम पंचिन्र में अनेकों बार आया है ।
3. नेपाली पंचतन्त्र इस ग्रन्थ में तकसी समय गद्य ि पद्य दोनों थे । कालान्िर में तकसी ने पद्य भाग अलग कर
तलया जो आज भी उपलब्ध है । गद्य भाग लु्त  हो गया । इसके सभी ्ोक दतिण भारिीय
पंचिन्र से मेल खािे हैंतिर भी इसकी पाठ परम्परा दतिण भारिीय पंचिन्र से पृथक ही
रही ।
4. यितोपदेश संस्कृि सातहत्य मेंइस समय यह ग्रन्थपंचिन्र से भी अतधकलोकतप्रयहो गया है। रचतयिा
नारायण भट्ट ने पंचिन्र की ही परम्परा में इस ग्रन्थ की रचना की है यद्यतप गद्य और पद्य
के कुछ भाग में थोडा हेर िेर देखने को तमलिा है । पंचिन्र में कुल पाँच तिभाग हैं तकन्िु
तहिोपदेश में केिल चार भाग ही हैं – यथा तमर-लाभ, सुहृद-भेद, तिग्रह ि सतन्ध ।
पंचिन्र का प्रथम भाग तमर-भेद नामक िन्र तहिोपदेश में दूसरे स्थान पर है । तिग्रह ि
सतन्ध नामकतिभागों की कल्पना नारायण भट्ट नेनयेढंग से की है, इनमें कई कथाएँअलग
से जोड दी गई ंहैं ।
पंचिन्र का िीसरा िन्र काकोलूकीयअपनेमूल रूप में तहिोपदेशमेंनहीं तमलिा। पंचिन्र
के पांचिें िन्र अपररतििकारक की कथाएँ तहिोपदेश के िीसरे ि चौथे भाग में सतम्मतलि
कर ली गई हैं । इस ग्रन्थ की रचना में रचनाकार ने दतिण भारिीय पंचिन्र के पाठ से
सहायिा ली है, मूल पाठ के गद्यभाग का करीब-करीब िीन चौथाई से भी अतधकिथा पद्य
भाग का करीब एक तिहाई भाग ज्यों का त्यों तहिोपदेश में उिृि तकया गया है ।
5. सोमदेव रयचत
कथासररत्सागर
के अन्त्तगगत
पंचतन्त्र
इन दोनों ही ग्रन्थों के अन्िगाि शक्तियशालम्बक में पंचिन्र की कथा आिी है। तकन्िु मूल
ग्रन्थ पंचिन्र का कलात्मकरूप तिलु्त  हो गया है । बृहत्कथा के अनुसंधानकिाा लाकोिे
के अनुसार मूल बृहत्कथा में पंचिन्र का कोई स्थान नहीं था । संभििः ये कथाएं बाद में
जोडी गई हैं ।
िेमेन्र ने कश्मीर में प्रचतलि िन्राख्यातयका का भी सहारा तलया है क्योंतकमूल पंचिन्र
में अप्राप्य तकन्िु िेमेन्र में प्रा्त  पाँच कहातनयां ऐसी हैं जो िन्राख्यातयका में तमलिी हैं ।
6. िेमेन्त्र कृत
बृित्कथा– मंजरी
के अन्त्तगगत
पंचतन्त्र
7. पयिमी भारतीय
पंचतन्त्र
यह परम्परा तनणाय सागर प्रेस से मुतरि पंचिन्र के अनुसार है । इसी का दूसरा रूप बॉम्बे
संस्कृि सीरीज का संस्करण है । संभििः यह 1000 ईस्िी के आस-पास मुतरि हुई थी ।
8. पूणगभर कृत
पंचाख्यान
1199 ईस्िी में पूणाभरने इसकी रचना मूल पंचिन्र के तिस्िृि पाठ के रूप मेंतकया था ।
यही एकमार ग्रन्थ ऐसा है तजसके रचना काल में कोई तििाद नहीं है । लेखक ने स्ियं
स्िीकार तकया है तक उनके समय में पंचिन्र की मूल परम्परा तबखर चुकी थी । उन्होंने
अनेक सामतग्रयों की सहायिा से सब उपलब्ध सामग्री को एकर कर के इस ग्रन्थ का
जीणोिार तकया । लेखक ने सभी ्ोकों ि गद्यों का संशोधन भी तकया । इसीतलए इसका
एक नया नाम तदया – पंचाख्यान ।
अनेक उपलब्ध पाठों के कारण ग्रन्थ का मूल रूप क्या था यह जाननेकी तजज्ञासा िो स्िाभातिक है । डॉ०
पंचतन्त्र - आमुख
Page 4 of 140
एबिान नेसमस्ि उपलब्ध सामग्री को एकर करके सबकी िुलनात्मकतििेचना के पश्चाि पंचिन्र का एक नया संस्करण
िैयार तकया – Panchatantra Reconstructed – तजसकी भाषा शैली से लगिा है तक इस ग्रंथ की रचना गु्त  काल
की है ।
मूल रचनाकार तिष्णु शमाा ब्राह्मण ने तसंहनाद तकया था तक पंचिन्र की युति से छः महीनेके भीिर िह राज
कुमारों को नीति शास्त्र मेंपारंगि कर देंगे। उनके कथनानुसारपंचिन्र िह ग्रन्थहै तजसकी कहातनयों को आत्मसाि कर
लेने पर कोई भी व्यति जीिन की दौड में हार नहीं सकिा चाहे उसका िैरी इन्र ही क्यों न हो । यही प्रत्येक मनुष्य की
महत्िाकांिाहोिीहैतजसकी पूतिाहेिुपंचिन्र की चिुराई भरी पशुपतियों की कहातनयोंके माध्यमसेअत्यन्िकलात्मक
ढंग से इस ग्रंथ की रचना की गयी है ।
देश तिदेश की अनेक भाषाओंमेंअनूतदि संस्करणों को अप्रत्यातशि ख्याति तमलनेके बािजूदतहन्दी िालों ने
इस ग्रन्थ के प्रचार प्रसार हेिु कोई खास प्रयास नहीं तकया । तछिपुि रचनाएँपुरानी शैली मेंउपलब्ध हैं भी िो ऐसी तलतप
और भाषा में हैंजो आज के कम्प्यिराईज्ड युग के तलएअनुपयोगी ही सातबि हो रहे हैं । इन्हीं िथ्यों को ध्यान में रखकर
यह रूपान्िरण प्रस्िुि तकया जा रहा है । अनुिाद करिे समय मूल आशय को यथा सम्भि सुरतिि रखने का प्रयास
तकया गया है । आशा है सुधी पाठकों को यह प्रयास पसन्द आएगा ।
जैसा तक ऊपर कहा गया है पंचिन्र के कुल िन्र हैं –
1. तमर भेद या सुहृद भेद
2. तमर लाभ या तमर सम्प्रात्त 
3. काकोलूकीय
4. लब्धप्रणांश
5. अपररतििकारक
पंचतन्त्र - प्रस्तावना
Page 5 of 140
ब्रह्मा, तशि, कातिाकेय, तिष्णु, िरुण, यम, अतग्न, इन्र, कुबेर, चन्र, सूया, सरस्ििी, सागर, चारों युग, पिाि,
िायु, पृथ्िी, िासुतक आतद नाग, कतपल आतद तसि, नंदी, अतिनी कुमार, लक्ष्मी, तदति (कश्यप पत्नी), अतदति के पुर
(देि गण), चतडडका आतद मािाएँ, िेद (ऋग्िेद, यजुिेद, सामिेद िथा अथिा िेद), िीथा (पुडय िेर काशी आतद), यज्ञ,
गण (प्रमथातद), िसु (आठ देि), मुतन (व्यास आतद), ग्रह ( सूया आतद) तनत्य हमारी रिा करें।
स्िायम्भू मनु, बृहस्पति, शुक्र, सपुर (व्यास आतद), पराशर, पतडडि चाणक्य और नीति शास्त्र के महान
रचतयिाओंको नमस्कार ।
संसार के सभी अथा शास्त्रों के सार रूप इस मनोहर ग्रन्थ पंचिन्र का तनमााण तिष्णु शमाा ने तकया है ।
ऐसा सुना गया हैतकदतिण देश में मतहलारोप्य नामकएकनगर है। िहांतभखमंगों के तलएकल्प िृि के समान,
उत्तम राजाओंकी मुकुि मतणयों की आभा से प्रकातशि चरणों िाले, सकल कलाओंमें पारंगि अमर शति नामकराजा
राज करिे थे । उनके िीन परम मूखा पुर हुए – बहु शति, उग्र शति ि अनेक शति । उन्हें शास्त्र तिमुख देख राजा ने
अपने मंतरयों को बुलाकर कहा –
“आप लोगों को पिा है तक मेरे िीनों पुर शास्त्र तिमुख िथा बुति हीन हैं । इन्हें देखिे हुए मुझे यह बडा राज्य
भी सुख नहीं दे पािा । तकसी ने ठीक ही कहा है तक –
अजाि, मृि िथा मूखा पुरों में से अजाि ि मृि पुर ही अच्छे होिे हैं क्योंतकिे िो थोडा ही दुःख देिे हैं परन्िु
मूखा पुर िो जीिन पयान्ि दुःख ही देिा रहिा है ।
गभा पाि अच्छा है, ऋिु काल में स्त्री समागम न करना ही ठीक है, मृि संिान पैदा होना भी अच्छा है, कन्या
पैदा होना भी श्रेयस्कर है, स्त्री का बन्ध्या होना भी ठीक है और सन्िान गभा में ही पडी रहे िो भी ठीक है, पर धनिान,
रूपिान और गुणिान होिे हुए भी पुर मूखा हों यह ठीक नहीं ।
उस गाय का क्या तकया जाय जो न िो बच्चा देिी हो न दूध; उस पुर के पैदा होने का क्या लाभ जो न िो
तिद्वान हो न भिॽ
इस संसार में कुलीन पुर की मूखािा की अपेिा उसकी मृत्युभली तजसकी िजह से तिद्वानों के बीच मनुष्य को
उससे जारज सन्िान की िरह लज्जा करनी पडे ।
यतद मािा ऐसे पुर के कारण पुरििी कहलाए तजसका नाम गुतणयों की तगनिी करिे समय भूल से भी न तलया
जाय िो तिर कहो बन्ध्या कैसी होिी हैॽ
अिः आप लोग कोई ऐसा उपाय सोतचए तजससे इनकी बुति खुल सके । यहां पर पाँच सौ तिद्वान पतडडि बैठे
हैंतजनकी आजीतिका मुझसे ही चलिी है इसतलए आप लोगों का किाव्य है तकमेरी मनोकामना तसति हेिुउपाय कररए।”
एक पतडडि जी बोले – “व्याकरण का अध्ययन बारह िषा िक चलिा है । इसके बाद मनु आतद के धमा शास्त्र,
पंचतन्त्र - प्रस्तावना
Page 6 of 140
चाणक्य इत्यातदके अथा शास्त्र और िात्स्यायन के काम शास्त्र का अध्ययन होिा है। इस िरह धमा, अथा और काम शास्त्र
का ज्ञान प्रा्त  होिा है । इसी िरह बुति भी जागिी है ।”
इिनेमेंउनके बीच से सुमति नाम का एकमंरी बोला – “यह जीिन नाशिान है। शब्दशास्त्र बहुि तदनों मेंसीखे
जािे हैं । इसतलए राजकुमारों की तशिा के तलए तकसी छोिे शास्त्र का तिचार तकया जाना चातहए । कहा भी है तक –
शब्द शास्त्र अनन्ि है, आयुष्य थोडी हैऔर तिघ्न अनेकहैं, इस कारण सार को ग्रहण करना चातहए िथा असार
को उसी प्रकार त्याग देना चातहए जैसे हंस जल में से दूध तनकाल लेिे हैं ।
यहाँ पर तिष्णु शमाा नाम के सभी शास्त्रों में पारंगि िथा तिद्यातथायों में अत्यन्ि लोकतप्रय ब्राह्मण रहिे हैं । इन
राजकुमारों को ज्ञानिान बनाने हेिु उसी ब्राह्मण को तनयुि करना होगा ।”
इस प्रकार की बािें सुनकर राजा ने तिष्णु शमाा को बुलाकर कहा – “भगिन  मुझ पर कृपा कर मेरे इन पुरों
को अथाशास्त्र में शीघ्र ही प्रिीण कर दें । मैं आपको सौ संख्यक सम्पतत्त दूंगा ।”
तिष्णु शमाा बोले – “देि  मेरा सत्य िचन सुनो, मैं सम्पतत्त के लोभ में तिद्या का तिक्रय नहीं करिा । परन्िु
िुम्हारे इन पुरों को यतद मैं छः माह में नीतिशास्त्र में पारंगि न कर दूँ िो अपना नाम बदल दूंगा । मैं अतधक बोलने में
तििास नहीं करिा, मैं(आपके समि) तसंह गजाना (प्रतिज्ञा) करिा हूँ – सुनो, मैं धन की लालसा नहीं रखिा । मैं अस्सी
िषा का हो चुका हूँ, सभी इतन्रय सुखों से तनस्पृह हो चुका हूँ, अिः मुझे धन की कोई आिश्यकिा भी नहीं है । परन्िु
िुम्हारी प्राथाना तसति के तनतमत्त सरस्ििी तिनोद अिश्य करूं गा । अिः आज का तदन तलख लीतजए, जो मैंछः महीने
में िुम्हारेपुरों को तिद्या में अिुलनीय और असाधारण न बना दूँ िो जगदीिर मुझे देिमागा (स्िगा) न तदखािें ।”
राजा नेइस ब्राह्मण की असंभाव्य प्रतिज्ञा को सुनकर मतन्रयों सतहि अति प्रसन्निा का अनुभि तकया । ब्राह्मण
के समि आदर सतहि राजकुमारों को सौंप कर अिीि संिुष्ट हुआ । तिष्णु शमाा ने राजकुमारों को अपने साथ ले जाकर
उनके तलएतमर भेद, तमर सम्प्रात्त , काकोलूकीय, लब्धप्रणाश िथा अपररतििकारक नाम सेपाँच िन्रों का तनमााणतकया
िथा और राजकुमारों को पढाया । िे भी उनको पढकर छः महीनेमें ही जैसा कहा गया था िैसे ही हो गए । उसी समय
से यह पंचिन्र नामक नीतिशास्त्र बालकों के ज्ञान के तनतमत्त पृथ्िी पर तिख्याि हुआ । जो इस नीतिशास्त्र को पढिा
और सुनिा है िह कभी इन्र से भी नहीं हार सकिा ।
इयत पंचतन्त्र अन्त्तगगत आमुख समाप्त
पंचिन्र – तमर भेद
Page 7 of 140
अथ मित्र भेद
प्रथम तन्त्र
अब तमर भेद नामक प्रथम िन्र का प्रारम्भ तकया जािा है ।
तसंह और बैल के बीच िन में बढिा हुआ स्नेह लालची और चुगुलखोर तसयार द्वारा नष्ट कर तदया गया ।
सुना गया है तक दतिण देश में मतहलारोप्य नामक नगर में धमा से महाधन का उपाजान करने िाला िधामान
नामकएक सेठ रहिा था । एक समय रातर में लेिे हुए सोचने लगा तक – “बहुि धन हो जाने पर भी अतधक धन प्रात्त 
का सिि प्रयास करिे रहना चातहए क्योंतक ऐसी कोई िस्िु नहीं जो अथा से प्राप्य न हो । तजसके पास धन हो उसी के
तमर ि बन्धु – बान्धि भी होिे हैं, िही िास्ितिक रूप में पंतडि पुरुष है । तिद्या, दान, कला, कारीगरी ि धतनकों की
तस्थरिा आतद की प्रशंसा याचक लोग भी उिना नहीं करिे बतल्क धन का ही अतधक गुणगान करिे हैं । गैर लोग भी
धतनकों के स्िजन बननेके इच्छुक रहिे हैं तकन्िु तनधान के स्िजन भी दूर हो जािे हैं । जैसे पिािों से तनकल कर नतदयां
सब काया पूणा कर देिी हैं उसी प्रकार बढिे हुए और यर-िर एकतरि धन से सभी काया पूणा हो जािे हैं । धन के कारण
ही अपूज्य ि अिांछनीय भी पूज्य िथा िन्दनीय बन जािा है । धन के ही प्रभाि से दुगाम भी सुगम हो जािा है । तजस
प्रकार भोजन से शरीर और इतन्रयों की पुतष्ट होिी है उसी प्रकार धन से सम्पूणा काया तसि हो जािे हैं । धन ही सबका
साधन है । धन के तलए मनुष्य श्मशान मेंभी रहने को िैयार हो जािा है तकन्िु तनधान को िो उसके पुर भी छोड देिे हैं ।
धन पास रहने पर िृि भी िरुण बन जािा है तकन्िु धनहीन युिा एक िृि की िुलना में हीन ही रहिा है ।”
“धन मनुष्य को छः उपायों से प्रा्त  होिा है – यथा तभिा, राज सेिा, कृतष काया, तिद्या से उपातजाि, लेन देन
िथा िातणज्य । इन सब में िातणज्य सिाातधक लाभदायक है । धन लाभ के तनतमत्त साि प्रकार का िातणज्य कमा कहा
गया है – गंध रव्य का व्यिसाय, तनिेप अथााि रुपये के लेन-देन का व्यापार, गो सम्बन्धी काया, पररतचि ग्राहकके हाथ
माल बेचने का काम, तमथ्या दाम पर (कम दाम में खरीद कर अतधक दाम पर बेचना) माल बेचने का काम, खोिी नाप-
िौल रखना िथा अन्य देशों से माल मंगाना । बेचनेयोग्य माल मेंसुगंतधि रव्य ही उत्तम सौदा है जो एक में खरीदने पर
सौ में तबकिा है । तिर सोने इत्यातद के व्यापार का क्या काम ॽ धरोहर (तगरिी रखना) घर मेंआने पर सेठ अपने देििा
से मनौिी करिा है तकयतद तगरिी रखने िाला मर जाय िो िह देििा की पूजा मेंतिशेष चढािा चढाएगा । सोने चाँदी का
व्यापार करने िाला जौहरी सोचिा है तक पृथ्िी धन से भरी है तिर मुझे दूसरी िस्िुओंसे क्या काम ॽ पररतचि ग्राहक
पंचिन्र – तमर भेद
Page 8 of 140
को आिे देखिे ही उसे ठगनेकी जुगि सोचने में व्यापारी उसी प्रकार प्रसन्न होिा है मानो उसके पुर का जन्म हुआ
हो ।”
और भी –
“गलि नाप-िौल से तनत्य ही पररतचि ग्राहकों को ठगना तकरािों की प्रिृतत्त है, माल की खोिी कीमि बिाना
िो लुच्चे व्यापाररयों का धन्धा है । दूर देशान्िर में अपने माल को बेचने से दूना तिगुना लाभ होिा है ।”
इस प्रकार मन मेंसोच तिचार कर मथुरा के उपयोगी बिानों को लेकर, शुभ मुहूिा में गुरुजनों का आशीिााद प्रा्त 
कर रथ पर चढकर तनकला । अपने ही घर में पैदा हुए संजीिक और नन्दक नाम के भार ढोने िाले दो बैलों को उसने
अपने रथ में जोि तलया था । उनमें से एक संजीिक नाम िाले बैल का एक पैर यमुना तकनारे उिरिे हुए दलदल में
िंसकर िूि गया और िह जमीन पर बैठ गया । उसकी यह अिस्था देख िधामान को बडा दुःख हुआ । स्नेह से रतिि
होकर उसने िीन तदनों िक अपनी यारा रोके रखी । उसे दुःखी देखकर उसके सातथयों ने समझाया – “अरे सेठ क्यों
इस बैल के कारण िुम तसंह और व्याघ्र से भरेइस िन में अपने कारिां को जोतखम में डालिे हो ॽ कहा गया है तक –
बुतिमान पुरुष छोिी चीजों के तलए बडी िस्िुओंका नाश नहीं करिे, छोिी िस्िु छोडकर बडी िस्िुका रिण करना ही
बुतिमानी है ।”
इस पर उनकी बाि मानकर संजीिक के तलए रखिाले तनयुि कर बाकी सातथयों सतहि सेठ ने आगे प्रस्थान
तकया । उन रखिालों नेिन को अनेक खिरों से भरा जान संजीिकको िहीं छोड तदया और अगले तदन अपनेसाथा िाह
के पास पहुंचकर झूठ कह तदया तक – “संजीिक मर गया, और हमनेसाथा िाह का प्यारा जानकर उसका दाह संस्कार
भी कर तदया।” यह सुनकर प्रेम तिह्वल साथा िाह ने उसकी िृषोत्सगा आतद उत्तर तक्रयाएंसम्पन्न की ।
यमुना जल सेतसंतचि शीिल हिा से स्िस्थशरीर होकरसंजीिक अपनेशेष आयुष्य के कारण अपने िीन पैरों
के सहारे ही तकसी िरह उठकर यमुना िि के ऊपर पहुंचा । िहां मरकि मतण के समान हरी दूबों के अग्रभाग को चरिा
हुआ िह थोडे ही तदनों मेंमहादेि के नंदी समान हृष्ट – पुष्ट होकर बडे डील डौल िाला बलिान बन गया । अब िह तनत्य
अपनी सींगों से बांबी खोदिा हुआ हंकडने लगा । ठीक ही कहा गया है तक –
“तजसका कोई नहीं, भाग्यिश उसकी रिा ईिर करिा है । सुरतिि होनेपर भी भाग्यहीन प्राणी नष्ट ही हो जािा
है । िन में छोड तदये जाने पर अनाथ व्यति भी जीतिि बचा रहिा है पर घर में रहिे हुए लाखों प्रयास करने पर भी नष्ट
हो जािा है ।”
एक समय सब जानिरों से तघरा हुआ तपंगलकनाम का तसंह प्यास से व्याकुल हो पानी पीनेहेिु यमुना िि पर
आया और दूर से ही संजीिकका भयानकस्िरसुना । उसे सुनकर िह घबरा उठा, जल्दी से उसने अपनी हालि तछपािे
हुए बरगद के नीचे चिुमंडल – अथााि तसंह, तसंह के अनुयायी, काकरि और नौकरों की सभा बुलाई । करिक और
दमनकनाम के दो मन्री पुर तसयार अतधकारभ्रष्ट होनेपर भी उसके पीछे-पीछे लगेरहिेथे । िे दोनों यह देखकर आपस
में तिचार तिमशा करने लगे ।
दमनक बोला – “भर करिक यह अपना महान स्िामी, तपंगलकपानी पीने के तलये यमुना तकनारेपर आकर
खडा है । प्यास से व्याकुल होिे हुए भी िह तकस कारण से पीछे तिरकर व्यूह रचना करिे हुए उदास तचत्त हो इस िि
िृि के नीचे आकर बैठ गयाॽ”
करिक ने कहा – “इस बाि से अपने को क्या मिलब ॽ अपने काम के तसिा जो दूसरे के बारे में तसर मारने
लगिा है िह कील उखाडने िाले बन्दर की िरह ही मृत्यु को प्रा्त  हो जािा है ।”
दमनक ने आश्चया व्यि तकया – “यह कैसे ॽ” िब दमनक उसको पूरी कथा सुनाने लगा –
कथा – १ कील उखाड़ने वाले बन्त्दर की कथा
तकसी नगरके पास एक बाग़ मेंतकसी बतनयेने देि मतन्दरबनिाना प्रारम्भ तकया । िहांकाम करने िालेतशल्पी
पंचिन्र – तमर भेद
Page 9 of 140
बढई आतद दोपहर के भोजन हेिु नगर में चले जािे थे । एक तदन पास में ही रहने िाला बन्दरों एक का झुडड कूदिा
िांदिा उसी तनमााण स्थल पर आ धमका । िहां तकसी तशल्पी नेआधा तचरा हुआ साल िृि का एक मोिा सा बडा लट्ठा
बीच में खैर की कील (आम बोलचाल की भाषा में खीली या खूंिी) िंसाकर छोड तदया था । सभी बन्दर िो इधर-उधर
उछल कूद रहे थे, तकन्िु उनमेंसे एक बन्दर तजसका काल समीप आ गया था उत्सुकिा िश उसी अधतचरे लट्ठे पर बैठ
कर उसमें िंसे उस कील को खींचने लगा । उस बन्दर का अडडकोष उस लट्ठे के तचरेभाग मेंही लिक रहा था । बन्दर
के खींचने से कील तखसक गई और जो पररणाम हुआ उसके बारेमें मैंिुम्हें पहलेही बिा चुका हूँ । इसीतलए मैं कहिा हूँ
तक जो मनुष्य तनष्प्रयोजन ही दूसरों के काम में दखल देिे हैंिह खूंिी खींचने िाले बन्दर की िरह ही मृत्युको प्रा्त  होिे
हैं । तसंह के खाने से बचा हुआ भोजन िो अपने को तमल ही जािा है तिर इस खोद-तिनोद से क्या लाभ ॽ
दमनक को बाि कुछ जंची नहीं कहने लगा – “िो क्या िुम केिल भोजन मार की ही इच्छा रखिे हो ॽ यह
ठीक नहीं क्योंतक बुतिमान पुरुष तमरों पर उपकार करने के तलए अथिा शरुओंका अपकार करने के तलए राजाश्रय
चाहिा है । केिल पेि कौन नहीं भर लेिा ॽ और सुनो – तजसके जीनेसे बहुि से लोग जीिन पािे हैं िही इस संसार में
जीतिि कहलािा है। बाकी िो क्या पिी भी चोंच से अपना पेि नहीं भर लेिेॽ तिज्ञान, शौया, िैभि िथा सद्गुणों के साथ
ख्याति प्रा्त  करने िाला मनुष्य अल्पकाल िक ही जीतिि क्यों न रहे ज्ञानी लोग उसे ही जीतिि मानिेहैं। िैसे िो कौआ
भी बहुि तदनों िक जीतिि रहिा है तकन्िु बतल ही खािा रहिा है । जो अपने सेिकों, अन्य लोगों ि बन्धु-बान्धिों और
दीनों पर दया नहीं करिा उसका लोक में जीिन तनष्िल है । छोिी नदी जल्दी भर जािी है, चूहे का तबल भी जल्दी से
भर जािा है । सन्िोषी सद् पुरुष भी थोडी सी िस्िु मेंही प्रसन्न हो जािे हैं । मािा के यौिन का हरण करने िाले उस
पुरुष के जन्म से क्या लाभ जो अपने िंश में ऊँ ची ध्िजा के समान न तस्थि हो ॽ इस निर संसार में कौन मरिा नहीं
और कौन पैदा नहीं होिा ॽ पर सच्चे अथा मेंजन्मा िही तगना जािा है जो अपने िंश में सिाातधकख्याति लब्ध हो । इसी
प्रकार नदी के िीर पर उगने िाले उस िृण का जन्म सिल है जो पानी मेंडूबिे हुए व्याकुल मनुष्य के हाथ का सहारा
बने। धीरे-धीरेऊपर उठनेिालेऔर लोगों का दुःख हरण करने िाले सज्जन पुरुष संसार में तिरले ही होिे हैं । पतडडि
लोग इसीतलए मािा को अत्यतधकमहत्ि देिेहैं क्योंतकउसके गभा से जन्म लेनेिाला अपनेबडों का भी गुरु बन सकिा
है । तजस पुरुष की शति प्रगि न हुई हो ऐसा शतिशाली मनुष्य भी तिरस्कार ही पािा है । लकडी के अन्दर तछपी हुई
अतग्न को िो लांघ कर पार तकया जा सकिा है तकन्िु जलिी हुई को छू भी नहीं सकिे ।”
करिक ने अपना िका प्रस्िुि तकया – “मैं और िुम तकसी महत्िपूणा पद पर िो हैं नहीं तिर हमेंइस झंझि से
क्या लेना-देना ॽ तकसी ने ठीकही कहा हैतक – मामूली पदपर आसीन जो मूखा राजा के सामनेतिना पूछे ही बोलिा है
िह केिल अपमान का ही भागी नहीं बनिा बतल्क तिरस्कृि भी हो जािा है । अपनी िाणी का प्रयोग िहीं करना चातहए
जहां उसके कहने से िल तमले जैसे तक कोई भी रंग सिेद कपडे पर ही खूब पक्का बैठिा है ।”
दमनकिपाक से बोला – “ऐसा सोचना भी ठीकनही क्योंतकमामूली आदमी भी यतद राजा की सेिा में ित्पर
रहे िो प्रधान बन जािा है और प्रधान भी यतद सेिा में लापरिाही बरिे िो तनम्न स्िर पर तगर जािा है क्योंतकराजा भी
अपने पास रहने िाले का ही सम्मान करिा है चाहे िह तिद्या हीन, असंभ्रान्ि अथिा असंस्कृि ही क्यों न हो । राजा,
तस्त्रयां और लिाएँ, जो पास में होिा है, प्रायः उसी का सहारा लेिी हैं । इसी प्रकार जो सेिक स्िामी को क्रोतधि और
प्रसन्न करने िाली िस्िुओंपर ध्यान रखिा है, िह धीरे-धीरे भिकिे हुए राजा के ऊपर भी चढ जािा है । तिद्वान,
महत्िाकांिी, तशल्पी िथा सेिा िृतत्त में चिुर प्रयत्नशील पुरुषों के तलए राजा के तसिाय और कोई दूसरा आश्रय नहीं ।
जो अपनी जाति के अतभमान में मदान्ध राजा के पास नहीं जािा उसके तलए मरने िक तभिा रूपी प्रायतश्चत्त की ही
व्यिस्था शेष रह जािी है । जो दुरात्मा सोचिे हैं तक राजा कतठनाई से प्रसन्न होिे हैं िे सरासर अपना आलस्य और
नासमझी ही प्रकि करिे हैं । सपा, बाघ, हाथी और तसंहों जैसे जानिरों को उपाय से ही िश में तकया जा सकिा है ।
बुतिमान और समझदार के तलए राजा को िश में करना कौन सी बडी बाि है ॽ राजा का आश्रय पाकर ही तिद्वान परम
सुख प्रा्त  करिा है, तिना िायु के चन्दन की सुगंध भी कहीं और नहीं जािी । राजा के प्रसन्न होनेपर सदा सिेद छािे,
सुन्दर घोडे िथा मििाले हाथी तमलिे हैं ।”
करिक बोला – िो अब िुम्हारा मन क्या करने का है ॽ
पंचिन्र – तमर भेद
Page 10 of 140
दमनकने बिाया – अभी हमारा मातलकतपंगलक अपने पररिार के साथ भयग्रस्ि है । हम उसके पास जाकर,
उसके भय का कारण जानकर संतध, तिग्रह , यान, आसन, संशय और द्वैधीभाि में से तकसी एक से उसे साध लेंगे ।
करिक ने तजज्ञासा प्रकि की – स्िामी भयभीि है यह िुमने कैसे जाना ॽ
दमनकनेखुलासा तकया – “इसमेंजाननेकी क्या बाि हैॽ कहा गया हैतक कही हुई बाि िो पशुभी ग्रहण कर
लेिे हैं, घोडे और हाथी हांकनेसे ही चलिे हैं, पर पतडडि पुरुष तिना कही बाि का ममा समझ जािे हैं क्योंतक दूसरेकी
चेष्टा का ज्ञान ही बुति का िल है । जैसा मनु ने कहा है तक आकार, इशारे, गति, चेष्टा, भाषण िथा मुखके भािों से ही
अन्िगाि मन का अतभप्राय जाना जा सकिा है । आज इस भयभीि तपंगलकके पास जाकर उसे अपनी बुति के प्रभाि
से तनभाय बनाकर और बस में करके अपने तलए मन्री पद की जुगि लगाऊँ गा ।”
करिक ने कहा तक – “िुम सेिा धमा से अनतभज्ञ हो तिर कैसे उसे िश में कर सकिे हो ॽ”
दमनक ने कहा – “पांडि तजस समय तिराि नगर में पहुँचे उस समय धौम्य मुतन ने उनसे सेिक धमा की जो
व्याख्या की थी िह सब मैं जानिा हूँ । िह इस प्रकार है – सोने के िूलों से भरी इस पृथ्िी को िीन लोग चुनिे हैं यथा
शूरिीर, तिद्वान और सेिा धमा का ममाज्ञ । जो सेिा स्िामी के तहि की हो उसे ही जान बूझ कर ग्रहण करना चातहए और
उसी के द्वारा तिद्वान पुरुष को राजा का आश्रय ग्रहण करना चातहए तकसी दूसरे से नहीं । जो राजा पतडडि का गुण न
जानिा हो उसकी सेिा पतडडि को नहीं करनी चातहए क्योंतक तजस िरह अच्छी िरह से जोिी गई ऊसर जमीन से
िसल नहीं तमलिी उसी िरह राजा के पास से भी कोई िल नहीं तमलिा । धन और मतन्रयों से रतहि होनेपर भी अगर
राजा में सेिा लेने का गुण है िो उसकी सेिा करनी चातहए क्योंतक कालान्िर में उससे जीिन का िल तमलने की
सम्भािना बनी रहिी है। ठूंठे िृि की िरह पडा रहना और भूखसे देह भी सुखाना अच्छा है तकन्िुचिुर पुरुष ज्ञान शून्य
राजा से िृतत्त पाने की लालसा न करे । कृपण और अतप्रय बोलने िाले स्िामी के प्रति िो सेिक द्वेष रखिा है पर िह
अपने प्रति भी सेव्य और असेव्य का भेद जाननेपर द्वेष क्यों नहीं करिा ॽ तजसके आश्रय में तिश्राम नहीं तमलिा और
तजनके सेिक भूखे रहकर इधर-उधर भिकिे रहिे हैं ऐसे राजा का तनत्य िूलने – िलने िालेमदार की िरह त्याग कर
देना चातहए । राज मािा, देिी, राजकुमार, मुख्य मन्री, पुरोतहि और प्रतिहारी के प्रति राजा की ही िरह व्यिहार करना
चातहए । पुकारिेही जो आपकी जय जयकार करिे हुए उत्तर देिा हो और तजस काम मेंचिुराई की आिश्यकिा हो उसे
भी कु शलिा पूिाक करिा हो िही राजा का तप्रय-पार बनिा है । अपने मातलक की कृपा से तमले धन का उपयोग जो
सुपारों में करिा हो और अच्छे कपडे पहनिा हो िह राजा का तप्रय-पार होिा है। अन्िःपुरिातसयों िथा राज घराने की
तस्त्रयों के साथ जो गु्त  षड्यन्र नहीं करिा िह राजा का तप्रय-पार होिा है । द्यूि (जुआ) को जो यमदूि के समान मानिा
हो, मतदरा को भयंकर तिष के समान और तस्त्रयों को कुतत्सि आकार के समान देखिा हो िही राजा का तप्रय-पार बनिा
है । जो युि के समय राजा के आगे-आगे और नगर में राजा के पीछे-पीछे चलिा हो िथा रातर में महल के दरिाजे पर
बैठा रहे िही राजा का तप्रय-पार बनिा है। राजा की राय से सदा सहमति व्यि करिे हुए जो संकि मेंअपनी मयाादा का
उल्लंघन नहीं करिा िही राजा का तप्रय-पार बनिा है । जो द्वेतषयों से द्वेष करे िथा इष्टों का मनचाहा काम करे िही राजा
का तप्रय-पार बनिा है । जो मातलकको कभी उलिा जिाब न दे और न उसके सामनेजोर से हंसे िही राजा का तप्रय-
पार होिा है । जो भय रतहि होकर युि ि शरण को एक समान माने, परदेश मेंअपने नगरजैसा ही सुख का अनुभि करे
िही राजा का तप्रय-पार होिा है । जो राजा की तस्त्रयों के साथ तनंदा ि तििाद में संतल्त  न हो िही राजा का तप्रय-पार
होिा है ।”
करिक ने पूछा – “िुम राजा के पास जाकर पहले कहोगे क्या यह िो बिाओ ।”
दमनक ने कहा – “अच्छी िषाा के कारण जैसे एक बीज से अनेक बीज उत्पन्न होिे हैं उसी प्रकार बािचीि
करिे हुए क्रमशः नये िाक्य भी उत्पन्न होिे हैं । उलिे उपाय से प्रा्त  तिपतत्त और अनुकूल उपाय से प्रा्त  काया तसति
हेिु मेधािी पुरुष उतचि नीति का प्रयोग आसानी से कर लेिे हैं । कोई मन में कपि रखकर िोिे के समान मधुर िाणी
बोलिा है, कोई कपि शून्य होकर भी कठोर िाणी बोलिा है, कोई हृदय ि िाणी दोनों से समान रूप प्रकि होिा है । मैं
भी तिना उतचि अिसर के कोई बाि नहीं बोलूँगा । बहुि पहले तपिा की गोद में बैठकर मैंनेयह नीति शास्त्र सुना था ।
पंचिन्र – तमर भेद
Page 11 of 140
बृहस्पति भी यतद असमय में िचन बोलें िो उनकी बुति का भारी तनरादर होिा है ।”
करिक बोला – “राजा िक पहुँचना दुगाम ि तहंसक जीिों से भरेहुए पिाि के समान ही अत्यन्ि कतठन होिा है
क्योंतक राजा सदा दुष्ट चािुकारों से तघरा रहिा है । राजा सपों की िरह भोगी, कंचुकातिष्ट (तमथ्या आिरण से आतिष्ट
जैसे सपा की केंचुली), क्रूर, अत्यन्ि दुष्ट और मन्र साध्य (राजा के अथा मेंगु्त  मन्रणा िथा सपा के अथा में सपा को िश
में करने िाला मन्र) होिा है । राजा सपों की िरह दो जीभ िाला, क्रूर कमी, अतनष्टकारी, दूसरों में ही दोष ढूँढने िाला
होिा है और जो राजा के तकसी तहिैषी का अतहि करिा है िह आग में पतिंगे की भाँति जल मरिा है । सभी के तलए
आदरणीय राजपद का मागा अत्यन्ि कतठन होिा है। अल्प अपकार के कारण भी िह ब्रह्म िेज के समान दुःखदायी होिा
है । राज लक्ष्मी बहुि कतठनाई से प्रसन्न और प्राप्य होिी है तकन्िु एक बार तमल जाने पर जलाशय के जल के समान
कािी समय िक तिकी भी रहिी है ।”
दमनकनेकहा – “बाि िो ठीकहैतकन्िुतजसमनुष्य का जैसा भाि रहिा हैउस मनुष्यको उसी भाँतितमलकर
िश में तकया जा सकिा है । स्िामी के तिचार के अनुसार काम करना ही सेिक का परम धमा है । स्िामी की इच्छानुसार
चलने िाला रािसों को भी िश में कर सकिा है । क्रोतधि राजा की प्रशंसा िथा उसकी हाँ मेंहाँ तमलाना, उनके द्वेष में
द्वेष, उनके दान की प्रशंसा करना तिना िन्र मन्र के ही िशीकरण के साधन हैं ।”
करिक बोला – “अगर िेरी यही मंशा है िो िेरा रास्िा सुखकर हो । िूँ अपनी इच्छानुसार काम कर ।”
दमनक करिक को प्रणाम करके तपंगलककी ओर चल पडा । उसे आिे देखकर तपंगलकने द्वारपाल से कहा
– “अपनी छडी दूर हिाओ और मेरेपुराने तमर मन्री-पुर दमनकको तिना तकसी रोक िोक के आने दो । िह मेरेतद्विीय
मडडल में बैठने का अतधकारी और यथाथा िादी है ।”
द्वारपाल बोला – “जैसी आपकी आज्ञा ।”
दमनक ने जाकर राजा को प्रणाम तकया और तदये गए आसन पर बैठ गया । राजा अपने नख रूपी िज्र से
अलंकृि दातहने हाथ को उठाकर बोला – “आप कुशलपूिाक िो है ॽ बहुि तदनों बाद तदखे ॽ”
दमनक बोला – “श्रीमान् के चरणों को यद्यतप हमसे कोई प्रयोजन नहीं है तकन्िु आपसे समय-असमय िचन
कहना उतचि ही है कारण तकउत्तम, मध्यम ि अधम सभी से राजाओंका प्रयोजन तसि होिा है। तकसी नेठीकही कहा
है तक – तनत्य दाँिों को कुरेदने िाले अथिा कान को खुजाने िालेिृण से भी राजाओंका काया तसि हो सकिा है, अंग,
िाणी ि हाथ िालेमनुष्य से िो काया तसि होिा ही है। इसी प्रकार से हम स्िामी के चरणों के कुल क्रम से प्रा्त  हुए भृत्य
भी आपदाओंमें पीछे चलनेिालेहैं । यद्यतप अपने को अतधकार प्रा्त  नहीं है िो भी श्रीमान्के चरणों को ऐसा उतचि नहीं
है । कहा भी है तक – भृत्य और गहनेउतचि स्थान मेंतनयुि करने चातहए । मैं प्रभु हूँ ऐसा मानकर कोई चूडामतण (तसर
पर धारण करने िाला गहना) को पैर में नहीं धारण करिा क्योंतक गुणों से अनतभज्ञ स्िामी का भृत्य भी साथ नहीं देिे
चाहे िह धनाढ्य कुलीन और राजा ही क्यों न हो । कहा गया है तक जो भृत्य असमान होिे हुए भी समानिा के स्िर पर
रखे जाँय, समान भृत्यों से इिर को सम्मान तदया जाय िथा काया भार न सौंपा जाय ऐसे िीन प्रकार के भृत्य राजा का
त्याग कर देिे हैं । साथ ही जो अज्ञानिा से उत्तम पद के योग्य भृत्यों को हीन ि अधम स्थान में तनयुि करिा है उसके
भृत्य अपने स्थान पर रहिे ही नहीं, इसमें न िो राजा का दोष है न भृत्य का क्योंतकसोने के गहनों में लगाई जानेयोग्य
मतण यतद तनकृष्ट धािुमें लगा दी जाय िो िह मतण न िो रोिी है और न ही शोतभि होिी है । इससे केिल तनयोिा की
ही तनंदा होिी हैतक लगानेिालेको योग्य अयोग्य का ज्ञान नहीं है । बहुि काल में देखा – ऐसा कहनेिालेस्िामी के पास
सिार भ्रमण करने िाला भृत्य नहीं तिकिा । कांच में मतण और मतण में कांच का तिकल्प करने िाले स्िामी के पास भी
भृत्य जन नहीं तिकिे । जौहरी के अभाि में समुर से तनकली मतण रत्नों का भी कोई मोल नहीं होिा । आभीर देश में
चन्रकान्ि मतण को भी गोप लोग िीन कौडी में खरीदिे हैं । लोतहि मतण और पद्मराग मतण में अन्िर न समझने िाले
तकस प्रकार रत्नों का क्रय-तिक्रय कर सकिे हैं । जब स्िामी सभी भृत्यों मेंतिशेष रूप से समानिा का ही व्यिहार करने
लगेिो उद्यमी भृत्य तनरुत्सातहि हो जािेहैं । भृत्यों के तिना राजा नहीं और न राजा के तिना भृत्य रह सकिे हैं । भृत्यों
के तिना राजा िैसे ही तनस्िेज हो जािा हैजैसे तकरणों के तिना सूया । तजस प्रकार अरों में नातभ और नातभ में अरेतस्थि
पंचिन्र – तमर भेद
Page 12 of 140
रहिे हैं उसी प्रकार राजा – भृत्य का भी अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है । यतद तनत्य िेल से मातलश न की जाय िो तसर के
बाल भी रूखे हो जािे हैं िो भला भृत्य क्यों न हो जाएंगे ॽ राजा प्रसन्न होकर भृत्य को केिल अथा मार देिा है और
भृत्य मार सम्मान प्रात्त  के तलए अपनी जान की बाजी लगा देिे हैं । यह तिचार कर राजा को चिुर, कुलीन और सदा
ित्परभृत्य तनयुि करनेचातहए । जो सेिक राजा का दुष्कर काया सम्पादन करने के बादभी संकोच िश कुछ नहीं कहिा
राजा की कृपा उसे सदा प्रा्त  होिी रहिी है । ऐसा भृत्य तजसे कोई काम सौंप कर तनतश्चंि बैठा जा सके, िह राजा की
मानो दूसरी स्त्री के समान ही होिा है। राजाओंके योग्य सेिक िही है जो तिना बुलाए पास आए, सदा द्वार पर खडा रहे
िथा पूछने पर थोडी और सच्ची बाि ही करे । राजा के तलए अतहिकर िस्िुको देखिे ही जो उसे तबना राजा की आज्ञा
के ही नष्ट करने का प्रयास करे िही योग्य सेिक है । राजा की मार, दडड और गातलयां खाकर भी जो राजा का अतहि
तचंिन नहीं करिा िही राजा का तप्रय-पार होिा है । जो कभी भूख-नींद-सदी-गमी की परिाह नहीं करिा िही योग्य सेिक
है । तजसके तलए मान और अपमान दोनों समान हों िही योग्य सेिक है । भािी युि की बाि सुनकर जो राजा की ओर
प्रसन्न मुखसे देखिा है िही योग्य सेिक है । तजसके प्रयास से राज्य की सीमा तनरंिर शुक्ल-पि के चन्रमा की भाँति
बढिी ही जाय िही योग्य सेिक है । तजनकी देखरेख में राज्य की सीमा अतग्न मेंचमडे की भाँति तसकुडने लगेराजा को
ऐसे सेिक का त्याग कर देना चातहए । तसयार समझ कर स्िामी यतद मेरी अिहेलना करिे हैं िह भी ठीक नहीं क्योंतक
शास्त्र िचन हैतक रेशमी िस्त्र कीडेसे बनिा है, सोना तमट्टी-पत्थरसे तनकलिा है, दूब जमीन पर उगिी है, कमल कीचड
में पैदा होिा है, चन्रमा समुर में से तनकलिा है, नील कमल गोबर से तनकलिा है. आग काठ में होिी है, मतण सपा के
िन मेंहोिी है, तपउरी गाय के तपत्त से तनकलिी है, इसी प्रकार गुणी जन अपने गुणों से ऊपर उठिेऔर ख्याति पािेहैं,
इसमें जन्म का क्या सम्बन्धॽ नुकसान पहुंचाने िाली चुतहया भी मार देने योग्य होिी है परन्िु सहायक होनेके कारण
लोग तबल्ली को भोजन देकर भी प्रसन्निा पूिाकपालिे हैं। रेडी, तभंडनरकुल और मदार बडी िादादमें संग्रह करने पर
भी इमारिी लकडी का काम नहीं देिे । इसी प्रकार असंख्य अज्ञातनयों से भी कोई प्रयोजन तसि नहीं होिा । असमथा
भि तकस काम काॽ मुझे आप भि और समथा दोनों ही जातनये । मेरी अिज्ञा करना आपके तहि में नहीं है ।”
तपंगलकबोला – “ठीक है, असमथा हो या समथा, िू हमेशा के तलए मेरा मन्री-पुर ही है । इसतलए जो कुछ भी
कहना चाहिा है तनःशंक होकर कह ।”
दमनक ने कहा – “देि, आपसे कुछ तिनिी करनी है ।”
“जो कुछ कहना चाहिा है कह” तपंगलक ने कहा ।
उसने कहना शुरु तकया – “बृहस्पति का कथन है तक यतद राजा का बहुि मामूली सा भी काम हो िो भी उसे
सभा के बीच में नहीं कहना चातहए । इसतलए हे महाराज, आप मेरी तिनिी एकान्ि में ही सुतनए । कारण तक राजकीय
मन्रणा यतदछः कानों मेंजाय िो िह प्रकि हो जािी है परन्िु चार कानों से िह बाहर नहीं जािी । इसतलए बुतिमान इस
बाि की कोतशश करिे हैं तक यथा संभि छः कानों का त्याग ही हो ।”
तपंगलकके अतभप्राय को समझने िालेबाघ, चीिा, भेतडये आतद दमनककी यह बाि सुनिे ही ित्िण िहां से
दूर चले गए । इसके बाद दमनक बोला –
“देि  यतदयह बाि कहनेलायकन हो िो रहनेदीतजए। कहा भी है तककुछ बािेंतस्त्रयोंसे, कुछ बािेंररश्िेदारों
से, कु छ बािें तमरों से और कुछ बािें पुरों से भी तछपाने योग्य होिी हैं । बाि ठीक है अथिा नहीं इसका तिचार करके ही
तिद्वान पुरुष को बाि कहनी चातहए ।”
यह सुनकर तपंगलकनेसोचा तक यह योग्य मालूम पडिा है इसतलए इसके सामनेमैं अपना मन्िव्य बिाऊँ गा ।
ऐसा कहा गया है तक तितशष्ट गुणों को समझनेिाले स्िामी के पास, गुणिान सेिक के पास, अनुकूल पत्नी के पास और
अतभन्न तमर के पास अपना दुःख तनिेदन करके मनुष्य सुखी हो जािा है । ऐसा सोचकर तपंगलकबोला – “हे दमनक 
क्या िूं दूर से आिी हुई यह भयािनी आिाज सुन रहा है ॽ”
उसने कहा – “सुन िो रहा हूँ पर इससे क्या ॽ”
पंचिन्र – तमर भेद
Page 13 of 140
तपंगलक ने कहा – “भर,  मैं इस जंगल से भाग जाना चाहिा हूँ ।”
दमनक ने पूछा – “क्यों ॽ”
तपंगलकने कहा – “इसतलए तक मेरेइस िन मेंकोई अजीब जानिर घुस आया है तजसकी यह भयानकआिाज सुनायी
पड रही है । उसकी िाकि भी उसकी आिाज के समान ही होगी ।”
दमनकने कहा – “महाराज  आप केिल आिाज से ही भयभीि हो गये ॽ यह िो ठीकनहीं क्योंतक तजस प्रकार पानी
से मेंड िूि जािी है, गु्त  न रख पाने से तछपी बाि िूि जािी है, चुगली खाने से स्नेह िूि जािा है उसी प्रकार आिाज
से केिल कायर डरिे हैं । अपने पुरखों की िंश परम्परा के अनुसार प्रा्त  यह िन यकायक छोडना आपके तलए उतचि
नहीं, क्योंतक भेरी, बांसुरी, िीणा, मृदंग, िाल, पिह, शंख और काहल इत्यातद के बजाने से िरह-िरह की आिाजें
तनकलिी हैं । केिल आिाज से ही नहीं डरना चातहए । कहा गया है तक अति प्रबल और भयंकर शरु राजा के चढ जाने
पर भी तजसका धीरज नहीं िूििा िह राजा कभी नहीं हारिा । तिधािा के भय तदखाने पर भी धीर पुरुषों का धैया नाश
नहीं होिा । गरमी मेंिालाब भलेही सूख जाँय पर समुर बराबर उछलिा रहिा है । तरभुिन के तिलक रुप ऐसे तिरले ही
पुर को मािा जन्म देिी है तजन्हेंसंकि मेंदुःख नहीं, ऐिया मेंहषा नहीं और युि में कायरिा नहीं । शतिहीन होनेसे नम्र
बनेहुए, तनबाल होनेसे गौरिहीन बनेहुए िथा मानहीन प्राणी की और तिनके की गति एक जैसी होिी है । और भी, दूसरे
के प्रिाप का सहारा लेने पर भी तजनमें मजबूिी नहीं आिी ऐसे लाख के बने गहने के समान मनुष्य के रूप से क्या
प्रयोजनॽ यह जानकरआपको धैया रखना चातहएऔर केिल आिाज से डरना नहीं चातहए। कहा गया हैतक तजसे चरबी
से भरा समझा गया था अन्दर घुसने के बाद ठीक-ठीकसमझ मेंआ गया तक इसमें तकिनी लकडी और तकिना चमडा
है ।”
तपंगलक ने पूछा – “यह तकस िरह ॽ” दमनक ने एक कथा सुनानी प्रारम्भ की –
कथा २ क्षसयार और दुन्त्दुक्षि की कथा
गोमायुनाम के एक तसयार ने भूख-प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज मेंबन-िन भिकिे हुए दो सेनाओं
की लडाईका मैदान देखा । उसने िहांनगाडेके ऊपर हिा से तहलिी हुई िृि की तकसी शाखा की पिली िहनी की रगड
से पैदा होने िाली आिाज सुनी । घबराए मन से उसने सोचा – अरे मर गया  ऐसी बडी आिाज करने िालेजानिर की
नजर मेंपडने के पहलेही मुझेभाग जाना चातहए । लेतकन सहसा ऐसा करना उतचि भी नहीं । भय और खुशी के अिसर
पर जो सोच तिचार के पश्चाि काम करिा है, उिािली मेंकोई कदम नहीं उठािा उसे पछिाना नहीं पडिा । अिः पहले
मुझेयह पिा करना चातहए तक यह आिाज है तकसकी । बाद में धैया के साथ सोच तिचार करिा हुआ िह आगे बढा और
नगाडे को देखा । उसी में से आिाज आ रही है यह तनश्चय कर उसने पास जाकर तखलिाड के तलए उसे बजाया और
तिर खुशी से सोचने लगा तक बहुि तदनों के बादमुझे ऐसा बडा भोजन तमला है । तनश्चय ही यह भरपूर माँस, चरबी, और
लहू से भरा होगा । बाद में सख्ि चमडे से मढे हुए नगाडे को तकसी िरह चीरकर और एक भाग में छेद करके उसमें घुस
गया । चमडा चीरिे समय उसके दाँि भी िूि गये । केिल लकडी के नगाडे को देख तनराश होकर तसयार ने एक ्ोक
पढा –‘पहले मैंने जाना तक िह चरबी से भरा होगा, पर अन्दर घुसने के बाद उसमें तकिना चमडा और तकिनी लकडी
थी िह ठीक-ठीक समझ में आ गया’ ।
इसीतलए मैंने आपको सलाह दी तक केिल आिाज से नहीं डरना चातहए ।
तपंगलक बोला – “अरे भाई, जब मेरा सारा कुिुम्ब ही भय से व्याकुल होकर भाग जाना चाहिा है िो मैं भला कैसे धैया
धारण कर सकिा हूँ ॽ”
दमनकनेकहा – “स्िामी  इसमें आपका दोष नहीं है, क्योंतकसेिक स्िामी की िरह ही होिे हैं। कहा भी हैतक – घोडा,
शस्त्र, शास्त्र, िीणा, िाणी, पुरुष और स्त्री यह सब खास आदतमयों को पाकर ही लायकया नालायकहोिेहैं। इसतलए मैं
पंचिन्र – तमर भेद
Page 14 of 140
जब िक इस आिाज का स्िरूप जानकर न लौिूँिब िकआप धीरज के साथ यहीं हमारी प्रिीिा करें। इसके बादजैसा
होगा देखा जाएगा ।”
तपंगलक ने आश्चया से पूछा – “क्या िूँ अकेले ही िहाँ जाने का साहस रखिा है ॽ”
दमनकने कहा – “स्िामी की आज्ञा से अच्छे सेिक के तलए कोई भी काम न करने योग्य भी होिा है क्या ॽ कहा गया है
तक – स्िामी की आज्ञा हो जानेके बाद अच्छे सेिक को कहीं भी भय नहीं लगिा, िह सपा के मुख मेंऔर कतठनिा से
पार करने के योग्य समुर में भी घुस जािा है । स्िामी की आज्ञा तमलनेपर जो सेिक िेढे सीधे का तिचार करने लगिा है
उसे समृति चाहने िाला राजा को नहीं रखना चातहए ।”
तपंगलक ने कहा – “भर, यतद ऐसी बाि है िो िू जा । िेरा पथ कल्याणमय हो ।”
दमनक भी उसे प्रणाम करके संजीिक की आिाज का पीछा करिा हुआ चल पडा । दमनक के चले जाने के
पश्चाि भयािुर तपंगलक सोचने लगा – अहो मैंने उसका तििास करके अपना भेद बिा तदया, यह ठीक नहीं तकया ।
अपनेपद से हिाए जानेके कारण दमनकसम्भििः दूसरे पि से धन लेकर मेरेप्रति बुरा बरिाि करेिो ॽ कहा भी गया
है जो पहले राजा के सम्मातनि होिे हैं और पीछे अपमातनि, िे कुलीन होिे हुए भी सदा राजा को समा्त  करने का ही
प्रयत्न करिे हैं । इसतलए उसकी चाल को जाननेके तलए मुझे तकसी जगह जाकर उसकी राह देखनी चातहए, क्योंतक
दमनककदातचि उस प्राणी को लाकर मुझे मारनेकी इच्छा रखिा हो । कहा भी है तक तनबाल यतद तकसी का तििास न
करेिो िह भी बलिान द्वारा नहीं मारा जा सकिा, परन्िु सब पर तििास करने िाला बलिान भी तनबाल द्वारा परास्ि हो
जािा है। जो बुतिमान पुरुष अपनी बढिी आयुष्य और सुख की इच्छा रखिा है उसे बृहस्पति का भी तििास नहीं करना
चातहए । शपथ तदलाकर भी संतध करने िाले शरु का तििास नहीं करना चातहए । राज्य पानेकी अतभलाषा करने िाला
िृर भी इन्र द्वारा शपथलेकर ही मारा गया था । तििास के तिना िो शरु देििाओंके भी िश मेंनहीं आिे । इन्र ने तििास
का ही लाभ उठाकर तदति के गभा को चीर डाला था । – इस प्रकार तनश्चय करके दूसरी जगह जाकर तपंगलकअकेला ही
दमनक की बाि जोहने लगा ।
दमनक भी संजीिक के पास जाकर और उसे बैल जानकर प्रसन्न मन से सोचने लगा – यह िो बडा अच्छा
हुआ, इनके साथ मेल और लडाई कराने से तपंगलकमेरेिश मेंहो सकेगा । कहा भी है तक जब िक दुःख अथिा शोक
न आ पडे िब िक राजा केिल कुलीन अथिा तमर भाि होने से ही मतन्रयों की बाि नहीं मानिा । आिि में पड जाने
पर राजा सदा के तलएमतन्रयों के िश में हो जािा है । इसीतलए मन्रीगण चाहिेहैं तक राजा सदा तकसी न तकसी तिपतत्त
मेंही रहे । तजस िरह नीरोग मनुष्य अच्छे से अच्छे िैद्य की भी परिाह नहीं करिा उसी प्रकार तिना आिि में िँसे राजा
भी मतन्रयों की परिाह नहीं करिा ।
इस िरह सोचिा हुआ दमनक तपंगलक की ओर चला । तपंगलक भी उसे आिे देखकर अपने मनोभाि को
तछपािा हुआ पहले की िरह ही बना रहा । दमनक ने तपंगलक के पास जाकर उसे प्रणाम तकया और बैठ गया ।
तपंगलक ने पूछा – “क्यों आपने उस प्राणी को देखा ॽ”
दमनक ने बिाया – “स्िामी की कृपा से देखा ।”
तपंगलक ने तिर कहा – “क्या सचमुच देखा ॽ”
दमनकबोला – “क्या महाराज से झूठ कहा जा सकिा हैॽ कहा हैतक राजाओंऔर देििाओंके सामनेजो झूठ बोलिा
हैिह बडा आदमी होनेपर भी शीघ्र ही नष्ट हो जािा है। इसी क्रम मेंमनुका कथन हैतक राजा सिादेिमय होिा
है इसतलए कभी भी उसकी कपि सेिा नहीं करनी चातहए । सिादेिमय राजा की तिशेषिा यह है तक उसके पास
से शुभ और अशुभ का िल िुरन्ि ही तमल जािा है और देििा के पास से दूसरेजन्म में ।”
तपंगलकने कहा – “िुमने उसे जरूर देखा होगा । बडे लोग गरीबों पर नाराज नहीं होिे इसीतलए उसने िुम्हें मारा नहीं ।
कारण तक कोमल और नीचे झुके हुए तिनकों को बिंडर भी उखाड कर नहीं िेंकिा । उन्निचेत्ता व्यतियों का
यह स्िभाि ही है, बडे बडों पर ही अपना पराक्रम तदखािे हैं। मद जल युि गंडस्थल पर प्रेम से अंधे भौंरेद्वारा
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र

Más contenido relacionado

La actualidad más candente

Bhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhitaBhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhitaAshok Nene
 
Condition of Women before and after independence
Condition of Women before and after independenceCondition of Women before and after independence
Condition of Women before and after independencepragya tripathi
 
PPt on Ras Hindi grammer
PPt on Ras Hindi grammer PPt on Ras Hindi grammer
PPt on Ras Hindi grammer amarpraveen400
 
Vastu shaastra
Vastu shaastraVastu shaastra
Vastu shaastraAshok Nene
 
Shri ram katha किष्किन्धा kand
Shri ram katha किष्किन्धा kandShri ram katha किष्किन्धा kand
Shri ram katha किष्किन्धा kandshart sood
 
अमरकथा अमृत
अमरकथा अमृतअमरकथा अमृत
अमरकथा अमृतSudeep Rastogi
 
Shri krishnadarshan
Shri krishnadarshanShri krishnadarshan
Shri krishnadarshangurusewa
 
राम अवतार स्तोत्र
राम अवतार स्तोत्रराम अवतार स्तोत्र
राम अवतार स्तोत्रIndian Festival
 
Ram laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbadRam laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbadRethik Mukharjee
 
Town planning and Narad shilpashastra-a
Town planning and Narad shilpashastra-aTown planning and Narad shilpashastra-a
Town planning and Narad shilpashastra-aAshok Nene
 
Political History of Pushybhuti Dynasty
Political History of Pushybhuti DynastyPolitical History of Pushybhuti Dynasty
Political History of Pushybhuti DynastyVirag Sontakke
 
Vyas poornima
Vyas poornimaVyas poornima
Vyas poornimagurusewa
 
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....Prashant tiwari
 
Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)
Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)
Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)Dr. Deepti Bajpai
 

La actualidad más candente (20)

Bhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhitaBhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhita
 
रस,
रस,रस,
रस,
 
Condition of Women before and after independence
Condition of Women before and after independenceCondition of Women before and after independence
Condition of Women before and after independence
 
PPt on Ras Hindi grammer
PPt on Ras Hindi grammer PPt on Ras Hindi grammer
PPt on Ras Hindi grammer
 
Vastu shaastra
Vastu shaastraVastu shaastra
Vastu shaastra
 
Shri ram katha किष्किन्धा kand
Shri ram katha किष्किन्धा kandShri ram katha किष्किन्धा kand
Shri ram katha किष्किन्धा kand
 
Surdas ke pad by sazad
Surdas ke pad  by sazadSurdas ke pad  by sazad
Surdas ke pad by sazad
 
Magadh
MagadhMagadh
Magadh
 
अमरकथा अमृत
अमरकथा अमृतअमरकथा अमृत
अमरकथा अमृत
 
Shri krishnadarshan
Shri krishnadarshanShri krishnadarshan
Shri krishnadarshan
 
राम अवतार स्तोत्र
राम अवतार स्तोत्रराम अवतार स्तोत्र
राम अवतार स्तोत्र
 
Ram laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbadRam laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbad
 
Town planning and Narad shilpashastra-a
Town planning and Narad shilpashastra-aTown planning and Narad shilpashastra-a
Town planning and Narad shilpashastra-a
 
रस
रसरस
रस
 
Political History of Pushybhuti Dynasty
Political History of Pushybhuti DynastyPolitical History of Pushybhuti Dynasty
Political History of Pushybhuti Dynasty
 
Surdas Ke Pad
Surdas Ke PadSurdas Ke Pad
Surdas Ke Pad
 
Vyas poornima
Vyas poornimaVyas poornima
Vyas poornima
 
Hindi रस
Hindi रसHindi रस
Hindi रस
 
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
 
Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)
Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)
Kathopnishad Pratham Adhyaya (part-1)
 

Destacado

Concorde Livingston - ft2acres.com
Concorde Livingston  - ft2acres.comConcorde Livingston  - ft2acres.com
Concorde Livingston - ft2acres.comKin Housing
 
recommandation New York
recommandation New Yorkrecommandation New York
recommandation New YorkArnaud Colin
 
Curso gerentes tema3.1
Curso gerentes tema3.1Curso gerentes tema3.1
Curso gerentes tema3.1estefap9
 
Plenary session 5 intro merz 5 time use and well-being
Plenary session 5 intro   merz  5 time use and well-beingPlenary session 5 intro   merz  5 time use and well-being
Plenary session 5 intro merz 5 time use and well-beingIARIW 2014
 
การเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศ
การเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศการเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศ
การเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศSodavy Tong
 
Rol - Conferenza di start up IT
Rol - Conferenza di start up ITRol - Conferenza di start up IT
Rol - Conferenza di start up ITBertagniGeography
 
mohammad_khan (2)
mohammad_khan (2)mohammad_khan (2)
mohammad_khan (2)Feroz Khan
 
Genre presentation
Genre presentationGenre presentation
Genre presentationoliviamallon
 
CompTIA 5th Annual State of the Channel Study
CompTIA 5th Annual State of the Channel StudyCompTIA 5th Annual State of the Channel Study
CompTIA 5th Annual State of the Channel StudyCompTIA
 

Destacado (12)

Yoga Dog
Yoga DogYoga Dog
Yoga Dog
 
Concorde Livingston - ft2acres.com
Concorde Livingston  - ft2acres.comConcorde Livingston  - ft2acres.com
Concorde Livingston - ft2acres.com
 
Mohamed_Nabil_CV (1)
Mohamed_Nabil_CV (1)Mohamed_Nabil_CV (1)
Mohamed_Nabil_CV (1)
 
recommandation New York
recommandation New Yorkrecommandation New York
recommandation New York
 
Curso gerentes tema3.1
Curso gerentes tema3.1Curso gerentes tema3.1
Curso gerentes tema3.1
 
Plenary session 5 intro merz 5 time use and well-being
Plenary session 5 intro   merz  5 time use and well-beingPlenary session 5 intro   merz  5 time use and well-being
Plenary session 5 intro merz 5 time use and well-being
 
การเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศ
การเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศการเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศ
การเริ่มต้นโครงการพัฒนาระบบสารสนเทศ
 
Rol - Conferenza di start up IT
Rol - Conferenza di start up ITRol - Conferenza di start up IT
Rol - Conferenza di start up IT
 
derecho
derechoderecho
derecho
 
mohammad_khan (2)
mohammad_khan (2)mohammad_khan (2)
mohammad_khan (2)
 
Genre presentation
Genre presentationGenre presentation
Genre presentation
 
CompTIA 5th Annual State of the Channel Study
CompTIA 5th Annual State of the Channel StudyCompTIA 5th Annual State of the Channel Study
CompTIA 5th Annual State of the Channel Study
 

Similar a PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र

अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरणअठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरणKshtriya Panwar
 
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdf
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdfभीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdf
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdfSoulvedaHindi
 
Introduction Yug Parivartan
Introduction Yug ParivartanIntroduction Yug Parivartan
Introduction Yug ParivartanAnkur Saxena
 
वराह पुराण
वराह पुराणवराह पुराण
वराह पुराणSangiSathi
 
Narrative Technique in Midnight's Children
Narrative Technique in Midnight's ChildrenNarrative Technique in Midnight's Children
Narrative Technique in Midnight's ChildrenDilip Barad
 
CIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDI
CIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDICIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDI
CIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDISurya Pratap Singh Rajawat
 
Purusharth paramdev
Purusharth paramdevPurusharth paramdev
Purusharth paramdevgurusewa
 
हिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकें
हिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकेंहिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकें
हिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकेंराहुल खटे (Rahul Khate)
 
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...Kshtriya Powar
 

Similar a PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र (20)

Qci ved Upnishad Agam Puran
Qci ved Upnishad Agam PuranQci ved Upnishad Agam Puran
Qci ved Upnishad Agam Puran
 
अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरणअठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
 
Panchdevopasana
PanchdevopasanaPanchdevopasana
Panchdevopasana
 
Gita prasad
Gita prasadGita prasad
Gita prasad
 
Geeta prasad
Geeta prasadGeeta prasad
Geeta prasad
 
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdf
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdfभीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdf
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं.pdf
 
Introduction Yug Parivartan
Introduction Yug ParivartanIntroduction Yug Parivartan
Introduction Yug Parivartan
 
Bahd 06-block-04 (1)
Bahd 06-block-04 (1)Bahd 06-block-04 (1)
Bahd 06-block-04 (1)
 
SAANKHYA-4.odp
SAANKHYA-4.odpSAANKHYA-4.odp
SAANKHYA-4.odp
 
Kashyap ( kul ) from google.com
Kashyap (  kul ) from  google.comKashyap (  kul ) from  google.com
Kashyap ( kul ) from google.com
 
वराह पुराण
वराह पुराणवराह पुराण
वराह पुराण
 
Sutgaddi
SutgaddiSutgaddi
Sutgaddi
 
Narrative Technique in Midnight's Children
Narrative Technique in Midnight's ChildrenNarrative Technique in Midnight's Children
Narrative Technique in Midnight's Children
 
CIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDI
CIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDICIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDI
CIVILIZATION OF INDIA - IN LIGHT OF SRI AUROBINDO HINDI
 
ibn battuta
ibn battutaibn battuta
ibn battuta
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
PurusharthParamDev
PurusharthParamDevPurusharthParamDev
PurusharthParamDev
 
Purusharth paramdev
Purusharth paramdevPurusharth paramdev
Purusharth paramdev
 
हिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकें
हिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकेंहिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकें
हिंदी में उपलब्‍ध वि‍ज्ञान पुस्‍तकें
 
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...
 

PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र

  • 1.
  • 3. पंचतन्त्र - आमुख Page 2 of 140 आमुख राजनीति एक बडा शास्त्र है जो सबको अत्यन्ि पररश्रम करने के पश्चाि भी समझ मेंनहीं आिा । महात्मा तिष्णु शमाा ने इस शास्त्र का इस चिुराई से तििेचन तकया है तक सामान्य मनुष्य भी सरलिा से इस शास्त्र को आत्मसाि कर सके । पंचिन्र संस्कृि सातहत्य की अनमोल कृति है । न केिल इस देश में तकन्िु अन्य देशों में भी कथा सातहत्य के रूप में पंचिन्र का अनुिाद अनेक भाषाओंमें हो चुका है । यह कथाएंपशु – पतियों पर ढालकरनीति शास्त्र की अनेक जतिलिाओंको सरल ढंग से समझाई गई ंहैं। पशु – पतियों के माध्यम से अपनी बाि को कहनेका सबसे पुराना कथा संग्रह जािककथाओंके रूप मेंतमलिा है। जािकों की कहातनयांसीधी – सादी तिना सँिारी हुई अिस्था मेंतमलिी हैं । उन्हीं का जडाऊ रूप पंचिन्र में देखनेको तमलिा है, जो एक महान कलाकार की पैनी बुति और उत्कृष्ट रचना शति का पूणा कलात्मक उदाहरण है । पंचिन्र के लेखक तिष्णु शमाा नामकब्राह्मण थे । पंचिन्र के कथा मुखप्रकरण मेंकेिल इिना आभास तमलिा है तक िे भारिीय नीतिशास्त्र के पारङ्गि तिद्वान थे । कहा जािा है तक इस ग्रन्थ की रचना उन्होंनेअस्सी िषा की आयु में की थी । तिशुि बुति ि तनमाल तचत्त के इस ब्राह्मण नेमनु, बृहस्पति, शुक्र, पराशर, व्यास चाणक्य आतद आचायों के राज शास्त्र ि अथा शास्त्र आतद को आधार बनाकर लोकतहि के तलए इस ग्रन्थ की रचना की । यह िथ्य रचनाकार ने स्ियं अपने मंगलाचरण में ही स्िीकार तकया है । कहा जािा है तक ईरानी सम्राि खुसरो के प्रमुख राज िैद्य ि मन्री िुजुाए को जब यह ज्ञाि हुआ तक भारििषा में तकसी पहाड पर संजीिनी बूिी नामकऔषतध उपलब्ध है िो उसका पिा लगानेके तलए 550 ईस्िी मेंिह भारि आया और संजीिनी की खोज में इधर-उधर भिकिा रहा । अन्ि में तनराश होकर उसने तकसी भारिीय तिद्वान से पूछा तक संजीिनी कहां तमलिी है ॽ उसने उत्तर में बिाया तक – “िुमनेजैसा पढा था, ठीकपढा था । तिद्वान व्यति ही िह पिाि है जहांज्ञान की बूिी होिी है और तजसके सेिन से मूखा रूपी मृि व्यति भी तिर से जी उठिा है । इस प्रकार का अमृि हमारेयहां के पंचिन्र नामक ग्रन्थ में है ।” िब िुजुाए पंचिन्र की एक प्रति ईरान ले गया और पहलिी भाषा मेंउसका अनुिादतकया । पंचिन्र का तकसी तिदेशी भाषा में यह पहला अनुिाद है । इसके बाद िो सीररया, जमानी आतद देशों की भाषाओंमें अनेक अनुिाद तकये गए। पहलिी अनुिाद के आधार पर दूसरा अनुिाद आठिीं सदी में अब्दुल्ला-इब्न-उल-मुस्ििा ने अरबी भाषा में तकया तजसका नाम क्लीलः ि तदमनः है । यह करिक ि दमनक – इन दो नामों के रूप हैं । अरबी भाषा में यह ग्रन्थ सिाातधक लोकतप्रय है । ग्यारहिीं शिाब्दी में यूनानी भाषा में िथा उसके बाद रूस और पूिी यूरोप की स्लाि भाषा में अनेक अनुिाद हुए। कालान्िर में लैतिन, इिैतलयन और जमान आतद भाषा में सोलहिीं शिाब्दी के आस पास अनेक अनुिाद हुए । 1260 – 1270 के बीच “क्लीलः ि तदमनः की पुस्िक – मानिी जीिन का कोष” नामकलैतिन भाषा में जॉन नामकयहूदी के पंचिन्र के अनुिाद नेसमूचे पतश्चमी यूरोप मेंधूम मचा तदया । 1644 ईस्िी मेंफ्रें न्च भाषा मेंपंचिन्र का अनुिाद तपलतपली साहब की कहातनयों के नाम से तिख्याि हुआ । पंचिन्र के अनेक तिदेशी भाषाओंके अनुिाद के तिषय में सम्पूणा जानकारी हेिु एबिान की तिख्याि पुस्िक Panchatantra Reconstructed का सन्दभा तलया जा सकिा है । पंचतन्त्र की परम्परा का संक्षिप्त पररचय पंचिन्र की परम्परा िो लम्बी है तकन्िुमूल ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है । तिर भी पंचिन्र के आधार पर रचे गए कई अन्य संस्करण उपलब्ध हैं । ये प्राचीन पाठ परम्पराएंतगनिी में कुल आठ हैं ।
  • 4. पंचतन्त्र - आमुख Page 3 of 140 1. तन्त्राख्याययका यह पंचिन्र का कश्मीरी पाठ है । इसकी प्रतियां केिल कश्मीर में शारदा तलतप में तमलिी है । सम्पादक डॉ० हिाल के मिानुसारइस ग्रन्थ मेंपंचिन्र के मूल पाठ के अतिररि कुछ अँश अलग से जोडे गए हैं । इसीतलए इस ग्रन्थ को इिना महत्ि नहीं तमला । इस ग्रन्थ का रचना काल संतदग्ध है । 2. दयिण भारतीय पंचतन्त्र एबिान के तिचार से इसमें पंचिन्र के मूल गद्य भाग का िीन चौथाई िथा पद्य भाग का दो तिहाईभागही सुरतिि है। कुछतिद्वानों के मिानुसारपंचिन्र की रचना मतहलारोप्यनामक स्थान पर ही हुई होगी क्योंतक इस नगर का नाम पंचिन्र में अनेकों बार आया है । 3. नेपाली पंचतन्त्र इस ग्रन्थ में तकसी समय गद्य ि पद्य दोनों थे । कालान्िर में तकसी ने पद्य भाग अलग कर तलया जो आज भी उपलब्ध है । गद्य भाग लु्त हो गया । इसके सभी ्ोक दतिण भारिीय पंचिन्र से मेल खािे हैंतिर भी इसकी पाठ परम्परा दतिण भारिीय पंचिन्र से पृथक ही रही । 4. यितोपदेश संस्कृि सातहत्य मेंइस समय यह ग्रन्थपंचिन्र से भी अतधकलोकतप्रयहो गया है। रचतयिा नारायण भट्ट ने पंचिन्र की ही परम्परा में इस ग्रन्थ की रचना की है यद्यतप गद्य और पद्य के कुछ भाग में थोडा हेर िेर देखने को तमलिा है । पंचिन्र में कुल पाँच तिभाग हैं तकन्िु तहिोपदेश में केिल चार भाग ही हैं – यथा तमर-लाभ, सुहृद-भेद, तिग्रह ि सतन्ध । पंचिन्र का प्रथम भाग तमर-भेद नामक िन्र तहिोपदेश में दूसरे स्थान पर है । तिग्रह ि सतन्ध नामकतिभागों की कल्पना नारायण भट्ट नेनयेढंग से की है, इनमें कई कथाएँअलग से जोड दी गई ंहैं । पंचिन्र का िीसरा िन्र काकोलूकीयअपनेमूल रूप में तहिोपदेशमेंनहीं तमलिा। पंचिन्र के पांचिें िन्र अपररतििकारक की कथाएँ तहिोपदेश के िीसरे ि चौथे भाग में सतम्मतलि कर ली गई हैं । इस ग्रन्थ की रचना में रचनाकार ने दतिण भारिीय पंचिन्र के पाठ से सहायिा ली है, मूल पाठ के गद्यभाग का करीब-करीब िीन चौथाई से भी अतधकिथा पद्य भाग का करीब एक तिहाई भाग ज्यों का त्यों तहिोपदेश में उिृि तकया गया है । 5. सोमदेव रयचत कथासररत्सागर के अन्त्तगगत पंचतन्त्र इन दोनों ही ग्रन्थों के अन्िगाि शक्तियशालम्बक में पंचिन्र की कथा आिी है। तकन्िु मूल ग्रन्थ पंचिन्र का कलात्मकरूप तिलु्त हो गया है । बृहत्कथा के अनुसंधानकिाा लाकोिे के अनुसार मूल बृहत्कथा में पंचिन्र का कोई स्थान नहीं था । संभििः ये कथाएं बाद में जोडी गई हैं । िेमेन्र ने कश्मीर में प्रचतलि िन्राख्यातयका का भी सहारा तलया है क्योंतकमूल पंचिन्र में अप्राप्य तकन्िु िेमेन्र में प्रा्त पाँच कहातनयां ऐसी हैं जो िन्राख्यातयका में तमलिी हैं । 6. िेमेन्त्र कृत बृित्कथा– मंजरी के अन्त्तगगत पंचतन्त्र 7. पयिमी भारतीय पंचतन्त्र यह परम्परा तनणाय सागर प्रेस से मुतरि पंचिन्र के अनुसार है । इसी का दूसरा रूप बॉम्बे संस्कृि सीरीज का संस्करण है । संभििः यह 1000 ईस्िी के आस-पास मुतरि हुई थी । 8. पूणगभर कृत पंचाख्यान 1199 ईस्िी में पूणाभरने इसकी रचना मूल पंचिन्र के तिस्िृि पाठ के रूप मेंतकया था । यही एकमार ग्रन्थ ऐसा है तजसके रचना काल में कोई तििाद नहीं है । लेखक ने स्ियं स्िीकार तकया है तक उनके समय में पंचिन्र की मूल परम्परा तबखर चुकी थी । उन्होंने अनेक सामतग्रयों की सहायिा से सब उपलब्ध सामग्री को एकर कर के इस ग्रन्थ का जीणोिार तकया । लेखक ने सभी ्ोकों ि गद्यों का संशोधन भी तकया । इसीतलए इसका एक नया नाम तदया – पंचाख्यान । अनेक उपलब्ध पाठों के कारण ग्रन्थ का मूल रूप क्या था यह जाननेकी तजज्ञासा िो स्िाभातिक है । डॉ०
  • 5. पंचतन्त्र - आमुख Page 4 of 140 एबिान नेसमस्ि उपलब्ध सामग्री को एकर करके सबकी िुलनात्मकतििेचना के पश्चाि पंचिन्र का एक नया संस्करण िैयार तकया – Panchatantra Reconstructed – तजसकी भाषा शैली से लगिा है तक इस ग्रंथ की रचना गु्त काल की है । मूल रचनाकार तिष्णु शमाा ब्राह्मण ने तसंहनाद तकया था तक पंचिन्र की युति से छः महीनेके भीिर िह राज कुमारों को नीति शास्त्र मेंपारंगि कर देंगे। उनके कथनानुसारपंचिन्र िह ग्रन्थहै तजसकी कहातनयों को आत्मसाि कर लेने पर कोई भी व्यति जीिन की दौड में हार नहीं सकिा चाहे उसका िैरी इन्र ही क्यों न हो । यही प्रत्येक मनुष्य की महत्िाकांिाहोिीहैतजसकी पूतिाहेिुपंचिन्र की चिुराई भरी पशुपतियों की कहातनयोंके माध्यमसेअत्यन्िकलात्मक ढंग से इस ग्रंथ की रचना की गयी है । देश तिदेश की अनेक भाषाओंमेंअनूतदि संस्करणों को अप्रत्यातशि ख्याति तमलनेके बािजूदतहन्दी िालों ने इस ग्रन्थ के प्रचार प्रसार हेिु कोई खास प्रयास नहीं तकया । तछिपुि रचनाएँपुरानी शैली मेंउपलब्ध हैं भी िो ऐसी तलतप और भाषा में हैंजो आज के कम्प्यिराईज्ड युग के तलएअनुपयोगी ही सातबि हो रहे हैं । इन्हीं िथ्यों को ध्यान में रखकर यह रूपान्िरण प्रस्िुि तकया जा रहा है । अनुिाद करिे समय मूल आशय को यथा सम्भि सुरतिि रखने का प्रयास तकया गया है । आशा है सुधी पाठकों को यह प्रयास पसन्द आएगा । जैसा तक ऊपर कहा गया है पंचिन्र के कुल िन्र हैं – 1. तमर भेद या सुहृद भेद 2. तमर लाभ या तमर सम्प्रात्त 3. काकोलूकीय 4. लब्धप्रणांश 5. अपररतििकारक
  • 6. पंचतन्त्र - प्रस्तावना Page 5 of 140 ब्रह्मा, तशि, कातिाकेय, तिष्णु, िरुण, यम, अतग्न, इन्र, कुबेर, चन्र, सूया, सरस्ििी, सागर, चारों युग, पिाि, िायु, पृथ्िी, िासुतक आतद नाग, कतपल आतद तसि, नंदी, अतिनी कुमार, लक्ष्मी, तदति (कश्यप पत्नी), अतदति के पुर (देि गण), चतडडका आतद मािाएँ, िेद (ऋग्िेद, यजुिेद, सामिेद िथा अथिा िेद), िीथा (पुडय िेर काशी आतद), यज्ञ, गण (प्रमथातद), िसु (आठ देि), मुतन (व्यास आतद), ग्रह ( सूया आतद) तनत्य हमारी रिा करें। स्िायम्भू मनु, बृहस्पति, शुक्र, सपुर (व्यास आतद), पराशर, पतडडि चाणक्य और नीति शास्त्र के महान रचतयिाओंको नमस्कार । संसार के सभी अथा शास्त्रों के सार रूप इस मनोहर ग्रन्थ पंचिन्र का तनमााण तिष्णु शमाा ने तकया है । ऐसा सुना गया हैतकदतिण देश में मतहलारोप्य नामकएकनगर है। िहांतभखमंगों के तलएकल्प िृि के समान, उत्तम राजाओंकी मुकुि मतणयों की आभा से प्रकातशि चरणों िाले, सकल कलाओंमें पारंगि अमर शति नामकराजा राज करिे थे । उनके िीन परम मूखा पुर हुए – बहु शति, उग्र शति ि अनेक शति । उन्हें शास्त्र तिमुख देख राजा ने अपने मंतरयों को बुलाकर कहा – “आप लोगों को पिा है तक मेरे िीनों पुर शास्त्र तिमुख िथा बुति हीन हैं । इन्हें देखिे हुए मुझे यह बडा राज्य भी सुख नहीं दे पािा । तकसी ने ठीक ही कहा है तक – अजाि, मृि िथा मूखा पुरों में से अजाि ि मृि पुर ही अच्छे होिे हैं क्योंतकिे िो थोडा ही दुःख देिे हैं परन्िु मूखा पुर िो जीिन पयान्ि दुःख ही देिा रहिा है । गभा पाि अच्छा है, ऋिु काल में स्त्री समागम न करना ही ठीक है, मृि संिान पैदा होना भी अच्छा है, कन्या पैदा होना भी श्रेयस्कर है, स्त्री का बन्ध्या होना भी ठीक है और सन्िान गभा में ही पडी रहे िो भी ठीक है, पर धनिान, रूपिान और गुणिान होिे हुए भी पुर मूखा हों यह ठीक नहीं । उस गाय का क्या तकया जाय जो न िो बच्चा देिी हो न दूध; उस पुर के पैदा होने का क्या लाभ जो न िो तिद्वान हो न भिॽ इस संसार में कुलीन पुर की मूखािा की अपेिा उसकी मृत्युभली तजसकी िजह से तिद्वानों के बीच मनुष्य को उससे जारज सन्िान की िरह लज्जा करनी पडे । यतद मािा ऐसे पुर के कारण पुरििी कहलाए तजसका नाम गुतणयों की तगनिी करिे समय भूल से भी न तलया जाय िो तिर कहो बन्ध्या कैसी होिी हैॽ अिः आप लोग कोई ऐसा उपाय सोतचए तजससे इनकी बुति खुल सके । यहां पर पाँच सौ तिद्वान पतडडि बैठे हैंतजनकी आजीतिका मुझसे ही चलिी है इसतलए आप लोगों का किाव्य है तकमेरी मनोकामना तसति हेिुउपाय कररए।” एक पतडडि जी बोले – “व्याकरण का अध्ययन बारह िषा िक चलिा है । इसके बाद मनु आतद के धमा शास्त्र,
  • 7. पंचतन्त्र - प्रस्तावना Page 6 of 140 चाणक्य इत्यातदके अथा शास्त्र और िात्स्यायन के काम शास्त्र का अध्ययन होिा है। इस िरह धमा, अथा और काम शास्त्र का ज्ञान प्रा्त होिा है । इसी िरह बुति भी जागिी है ।” इिनेमेंउनके बीच से सुमति नाम का एकमंरी बोला – “यह जीिन नाशिान है। शब्दशास्त्र बहुि तदनों मेंसीखे जािे हैं । इसतलए राजकुमारों की तशिा के तलए तकसी छोिे शास्त्र का तिचार तकया जाना चातहए । कहा भी है तक – शब्द शास्त्र अनन्ि है, आयुष्य थोडी हैऔर तिघ्न अनेकहैं, इस कारण सार को ग्रहण करना चातहए िथा असार को उसी प्रकार त्याग देना चातहए जैसे हंस जल में से दूध तनकाल लेिे हैं । यहाँ पर तिष्णु शमाा नाम के सभी शास्त्रों में पारंगि िथा तिद्यातथायों में अत्यन्ि लोकतप्रय ब्राह्मण रहिे हैं । इन राजकुमारों को ज्ञानिान बनाने हेिु उसी ब्राह्मण को तनयुि करना होगा ।” इस प्रकार की बािें सुनकर राजा ने तिष्णु शमाा को बुलाकर कहा – “भगिन  मुझ पर कृपा कर मेरे इन पुरों को अथाशास्त्र में शीघ्र ही प्रिीण कर दें । मैं आपको सौ संख्यक सम्पतत्त दूंगा ।” तिष्णु शमाा बोले – “देि  मेरा सत्य िचन सुनो, मैं सम्पतत्त के लोभ में तिद्या का तिक्रय नहीं करिा । परन्िु िुम्हारे इन पुरों को यतद मैं छः माह में नीतिशास्त्र में पारंगि न कर दूँ िो अपना नाम बदल दूंगा । मैं अतधक बोलने में तििास नहीं करिा, मैं(आपके समि) तसंह गजाना (प्रतिज्ञा) करिा हूँ – सुनो, मैं धन की लालसा नहीं रखिा । मैं अस्सी िषा का हो चुका हूँ, सभी इतन्रय सुखों से तनस्पृह हो चुका हूँ, अिः मुझे धन की कोई आिश्यकिा भी नहीं है । परन्िु िुम्हारी प्राथाना तसति के तनतमत्त सरस्ििी तिनोद अिश्य करूं गा । अिः आज का तदन तलख लीतजए, जो मैंछः महीने में िुम्हारेपुरों को तिद्या में अिुलनीय और असाधारण न बना दूँ िो जगदीिर मुझे देिमागा (स्िगा) न तदखािें ।” राजा नेइस ब्राह्मण की असंभाव्य प्रतिज्ञा को सुनकर मतन्रयों सतहि अति प्रसन्निा का अनुभि तकया । ब्राह्मण के समि आदर सतहि राजकुमारों को सौंप कर अिीि संिुष्ट हुआ । तिष्णु शमाा ने राजकुमारों को अपने साथ ले जाकर उनके तलएतमर भेद, तमर सम्प्रात्त , काकोलूकीय, लब्धप्रणाश िथा अपररतििकारक नाम सेपाँच िन्रों का तनमााणतकया िथा और राजकुमारों को पढाया । िे भी उनको पढकर छः महीनेमें ही जैसा कहा गया था िैसे ही हो गए । उसी समय से यह पंचिन्र नामक नीतिशास्त्र बालकों के ज्ञान के तनतमत्त पृथ्िी पर तिख्याि हुआ । जो इस नीतिशास्त्र को पढिा और सुनिा है िह कभी इन्र से भी नहीं हार सकिा । इयत पंचतन्त्र अन्त्तगगत आमुख समाप्त
  • 8. पंचिन्र – तमर भेद Page 7 of 140 अथ मित्र भेद प्रथम तन्त्र अब तमर भेद नामक प्रथम िन्र का प्रारम्भ तकया जािा है । तसंह और बैल के बीच िन में बढिा हुआ स्नेह लालची और चुगुलखोर तसयार द्वारा नष्ट कर तदया गया । सुना गया है तक दतिण देश में मतहलारोप्य नामक नगर में धमा से महाधन का उपाजान करने िाला िधामान नामकएक सेठ रहिा था । एक समय रातर में लेिे हुए सोचने लगा तक – “बहुि धन हो जाने पर भी अतधक धन प्रात्त का सिि प्रयास करिे रहना चातहए क्योंतक ऐसी कोई िस्िु नहीं जो अथा से प्राप्य न हो । तजसके पास धन हो उसी के तमर ि बन्धु – बान्धि भी होिे हैं, िही िास्ितिक रूप में पंतडि पुरुष है । तिद्या, दान, कला, कारीगरी ि धतनकों की तस्थरिा आतद की प्रशंसा याचक लोग भी उिना नहीं करिे बतल्क धन का ही अतधक गुणगान करिे हैं । गैर लोग भी धतनकों के स्िजन बननेके इच्छुक रहिे हैं तकन्िु तनधान के स्िजन भी दूर हो जािे हैं । जैसे पिािों से तनकल कर नतदयां सब काया पूणा कर देिी हैं उसी प्रकार बढिे हुए और यर-िर एकतरि धन से सभी काया पूणा हो जािे हैं । धन के कारण ही अपूज्य ि अिांछनीय भी पूज्य िथा िन्दनीय बन जािा है । धन के ही प्रभाि से दुगाम भी सुगम हो जािा है । तजस प्रकार भोजन से शरीर और इतन्रयों की पुतष्ट होिी है उसी प्रकार धन से सम्पूणा काया तसि हो जािे हैं । धन ही सबका साधन है । धन के तलए मनुष्य श्मशान मेंभी रहने को िैयार हो जािा है तकन्िु तनधान को िो उसके पुर भी छोड देिे हैं । धन पास रहने पर िृि भी िरुण बन जािा है तकन्िु धनहीन युिा एक िृि की िुलना में हीन ही रहिा है ।” “धन मनुष्य को छः उपायों से प्रा्त होिा है – यथा तभिा, राज सेिा, कृतष काया, तिद्या से उपातजाि, लेन देन िथा िातणज्य । इन सब में िातणज्य सिाातधक लाभदायक है । धन लाभ के तनतमत्त साि प्रकार का िातणज्य कमा कहा गया है – गंध रव्य का व्यिसाय, तनिेप अथााि रुपये के लेन-देन का व्यापार, गो सम्बन्धी काया, पररतचि ग्राहकके हाथ माल बेचने का काम, तमथ्या दाम पर (कम दाम में खरीद कर अतधक दाम पर बेचना) माल बेचने का काम, खोिी नाप- िौल रखना िथा अन्य देशों से माल मंगाना । बेचनेयोग्य माल मेंसुगंतधि रव्य ही उत्तम सौदा है जो एक में खरीदने पर सौ में तबकिा है । तिर सोने इत्यातद के व्यापार का क्या काम ॽ धरोहर (तगरिी रखना) घर मेंआने पर सेठ अपने देििा से मनौिी करिा है तकयतद तगरिी रखने िाला मर जाय िो िह देििा की पूजा मेंतिशेष चढािा चढाएगा । सोने चाँदी का व्यापार करने िाला जौहरी सोचिा है तक पृथ्िी धन से भरी है तिर मुझे दूसरी िस्िुओंसे क्या काम ॽ पररतचि ग्राहक
  • 9. पंचिन्र – तमर भेद Page 8 of 140 को आिे देखिे ही उसे ठगनेकी जुगि सोचने में व्यापारी उसी प्रकार प्रसन्न होिा है मानो उसके पुर का जन्म हुआ हो ।” और भी – “गलि नाप-िौल से तनत्य ही पररतचि ग्राहकों को ठगना तकरािों की प्रिृतत्त है, माल की खोिी कीमि बिाना िो लुच्चे व्यापाररयों का धन्धा है । दूर देशान्िर में अपने माल को बेचने से दूना तिगुना लाभ होिा है ।” इस प्रकार मन मेंसोच तिचार कर मथुरा के उपयोगी बिानों को लेकर, शुभ मुहूिा में गुरुजनों का आशीिााद प्रा्त कर रथ पर चढकर तनकला । अपने ही घर में पैदा हुए संजीिक और नन्दक नाम के भार ढोने िाले दो बैलों को उसने अपने रथ में जोि तलया था । उनमें से एक संजीिक नाम िाले बैल का एक पैर यमुना तकनारे उिरिे हुए दलदल में िंसकर िूि गया और िह जमीन पर बैठ गया । उसकी यह अिस्था देख िधामान को बडा दुःख हुआ । स्नेह से रतिि होकर उसने िीन तदनों िक अपनी यारा रोके रखी । उसे दुःखी देखकर उसके सातथयों ने समझाया – “अरे सेठ क्यों इस बैल के कारण िुम तसंह और व्याघ्र से भरेइस िन में अपने कारिां को जोतखम में डालिे हो ॽ कहा गया है तक – बुतिमान पुरुष छोिी चीजों के तलए बडी िस्िुओंका नाश नहीं करिे, छोिी िस्िु छोडकर बडी िस्िुका रिण करना ही बुतिमानी है ।” इस पर उनकी बाि मानकर संजीिक के तलए रखिाले तनयुि कर बाकी सातथयों सतहि सेठ ने आगे प्रस्थान तकया । उन रखिालों नेिन को अनेक खिरों से भरा जान संजीिकको िहीं छोड तदया और अगले तदन अपनेसाथा िाह के पास पहुंचकर झूठ कह तदया तक – “संजीिक मर गया, और हमनेसाथा िाह का प्यारा जानकर उसका दाह संस्कार भी कर तदया।” यह सुनकर प्रेम तिह्वल साथा िाह ने उसकी िृषोत्सगा आतद उत्तर तक्रयाएंसम्पन्न की । यमुना जल सेतसंतचि शीिल हिा से स्िस्थशरीर होकरसंजीिक अपनेशेष आयुष्य के कारण अपने िीन पैरों के सहारे ही तकसी िरह उठकर यमुना िि के ऊपर पहुंचा । िहां मरकि मतण के समान हरी दूबों के अग्रभाग को चरिा हुआ िह थोडे ही तदनों मेंमहादेि के नंदी समान हृष्ट – पुष्ट होकर बडे डील डौल िाला बलिान बन गया । अब िह तनत्य अपनी सींगों से बांबी खोदिा हुआ हंकडने लगा । ठीक ही कहा गया है तक – “तजसका कोई नहीं, भाग्यिश उसकी रिा ईिर करिा है । सुरतिि होनेपर भी भाग्यहीन प्राणी नष्ट ही हो जािा है । िन में छोड तदये जाने पर अनाथ व्यति भी जीतिि बचा रहिा है पर घर में रहिे हुए लाखों प्रयास करने पर भी नष्ट हो जािा है ।” एक समय सब जानिरों से तघरा हुआ तपंगलकनाम का तसंह प्यास से व्याकुल हो पानी पीनेहेिु यमुना िि पर आया और दूर से ही संजीिकका भयानकस्िरसुना । उसे सुनकर िह घबरा उठा, जल्दी से उसने अपनी हालि तछपािे हुए बरगद के नीचे चिुमंडल – अथााि तसंह, तसंह के अनुयायी, काकरि और नौकरों की सभा बुलाई । करिक और दमनकनाम के दो मन्री पुर तसयार अतधकारभ्रष्ट होनेपर भी उसके पीछे-पीछे लगेरहिेथे । िे दोनों यह देखकर आपस में तिचार तिमशा करने लगे । दमनक बोला – “भर करिक यह अपना महान स्िामी, तपंगलकपानी पीने के तलये यमुना तकनारेपर आकर खडा है । प्यास से व्याकुल होिे हुए भी िह तकस कारण से पीछे तिरकर व्यूह रचना करिे हुए उदास तचत्त हो इस िि िृि के नीचे आकर बैठ गयाॽ” करिक ने कहा – “इस बाि से अपने को क्या मिलब ॽ अपने काम के तसिा जो दूसरे के बारे में तसर मारने लगिा है िह कील उखाडने िाले बन्दर की िरह ही मृत्यु को प्रा्त हो जािा है ।” दमनक ने आश्चया व्यि तकया – “यह कैसे ॽ” िब दमनक उसको पूरी कथा सुनाने लगा – कथा – १ कील उखाड़ने वाले बन्त्दर की कथा तकसी नगरके पास एक बाग़ मेंतकसी बतनयेने देि मतन्दरबनिाना प्रारम्भ तकया । िहांकाम करने िालेतशल्पी
  • 10. पंचिन्र – तमर भेद Page 9 of 140 बढई आतद दोपहर के भोजन हेिु नगर में चले जािे थे । एक तदन पास में ही रहने िाला बन्दरों एक का झुडड कूदिा िांदिा उसी तनमााण स्थल पर आ धमका । िहां तकसी तशल्पी नेआधा तचरा हुआ साल िृि का एक मोिा सा बडा लट्ठा बीच में खैर की कील (आम बोलचाल की भाषा में खीली या खूंिी) िंसाकर छोड तदया था । सभी बन्दर िो इधर-उधर उछल कूद रहे थे, तकन्िु उनमेंसे एक बन्दर तजसका काल समीप आ गया था उत्सुकिा िश उसी अधतचरे लट्ठे पर बैठ कर उसमें िंसे उस कील को खींचने लगा । उस बन्दर का अडडकोष उस लट्ठे के तचरेभाग मेंही लिक रहा था । बन्दर के खींचने से कील तखसक गई और जो पररणाम हुआ उसके बारेमें मैंिुम्हें पहलेही बिा चुका हूँ । इसीतलए मैं कहिा हूँ तक जो मनुष्य तनष्प्रयोजन ही दूसरों के काम में दखल देिे हैंिह खूंिी खींचने िाले बन्दर की िरह ही मृत्युको प्रा्त होिे हैं । तसंह के खाने से बचा हुआ भोजन िो अपने को तमल ही जािा है तिर इस खोद-तिनोद से क्या लाभ ॽ दमनक को बाि कुछ जंची नहीं कहने लगा – “िो क्या िुम केिल भोजन मार की ही इच्छा रखिे हो ॽ यह ठीक नहीं क्योंतक बुतिमान पुरुष तमरों पर उपकार करने के तलए अथिा शरुओंका अपकार करने के तलए राजाश्रय चाहिा है । केिल पेि कौन नहीं भर लेिा ॽ और सुनो – तजसके जीनेसे बहुि से लोग जीिन पािे हैं िही इस संसार में जीतिि कहलािा है। बाकी िो क्या पिी भी चोंच से अपना पेि नहीं भर लेिेॽ तिज्ञान, शौया, िैभि िथा सद्गुणों के साथ ख्याति प्रा्त करने िाला मनुष्य अल्पकाल िक ही जीतिि क्यों न रहे ज्ञानी लोग उसे ही जीतिि मानिेहैं। िैसे िो कौआ भी बहुि तदनों िक जीतिि रहिा है तकन्िु बतल ही खािा रहिा है । जो अपने सेिकों, अन्य लोगों ि बन्धु-बान्धिों और दीनों पर दया नहीं करिा उसका लोक में जीिन तनष्िल है । छोिी नदी जल्दी भर जािी है, चूहे का तबल भी जल्दी से भर जािा है । सन्िोषी सद् पुरुष भी थोडी सी िस्िु मेंही प्रसन्न हो जािे हैं । मािा के यौिन का हरण करने िाले उस पुरुष के जन्म से क्या लाभ जो अपने िंश में ऊँ ची ध्िजा के समान न तस्थि हो ॽ इस निर संसार में कौन मरिा नहीं और कौन पैदा नहीं होिा ॽ पर सच्चे अथा मेंजन्मा िही तगना जािा है जो अपने िंश में सिाातधकख्याति लब्ध हो । इसी प्रकार नदी के िीर पर उगने िाले उस िृण का जन्म सिल है जो पानी मेंडूबिे हुए व्याकुल मनुष्य के हाथ का सहारा बने। धीरे-धीरेऊपर उठनेिालेऔर लोगों का दुःख हरण करने िाले सज्जन पुरुष संसार में तिरले ही होिे हैं । पतडडि लोग इसीतलए मािा को अत्यतधकमहत्ि देिेहैं क्योंतकउसके गभा से जन्म लेनेिाला अपनेबडों का भी गुरु बन सकिा है । तजस पुरुष की शति प्रगि न हुई हो ऐसा शतिशाली मनुष्य भी तिरस्कार ही पािा है । लकडी के अन्दर तछपी हुई अतग्न को िो लांघ कर पार तकया जा सकिा है तकन्िु जलिी हुई को छू भी नहीं सकिे ।” करिक ने अपना िका प्रस्िुि तकया – “मैं और िुम तकसी महत्िपूणा पद पर िो हैं नहीं तिर हमेंइस झंझि से क्या लेना-देना ॽ तकसी ने ठीकही कहा हैतक – मामूली पदपर आसीन जो मूखा राजा के सामनेतिना पूछे ही बोलिा है िह केिल अपमान का ही भागी नहीं बनिा बतल्क तिरस्कृि भी हो जािा है । अपनी िाणी का प्रयोग िहीं करना चातहए जहां उसके कहने से िल तमले जैसे तक कोई भी रंग सिेद कपडे पर ही खूब पक्का बैठिा है ।” दमनकिपाक से बोला – “ऐसा सोचना भी ठीकनही क्योंतकमामूली आदमी भी यतद राजा की सेिा में ित्पर रहे िो प्रधान बन जािा है और प्रधान भी यतद सेिा में लापरिाही बरिे िो तनम्न स्िर पर तगर जािा है क्योंतकराजा भी अपने पास रहने िाले का ही सम्मान करिा है चाहे िह तिद्या हीन, असंभ्रान्ि अथिा असंस्कृि ही क्यों न हो । राजा, तस्त्रयां और लिाएँ, जो पास में होिा है, प्रायः उसी का सहारा लेिी हैं । इसी प्रकार जो सेिक स्िामी को क्रोतधि और प्रसन्न करने िाली िस्िुओंपर ध्यान रखिा है, िह धीरे-धीरे भिकिे हुए राजा के ऊपर भी चढ जािा है । तिद्वान, महत्िाकांिी, तशल्पी िथा सेिा िृतत्त में चिुर प्रयत्नशील पुरुषों के तलए राजा के तसिाय और कोई दूसरा आश्रय नहीं । जो अपनी जाति के अतभमान में मदान्ध राजा के पास नहीं जािा उसके तलए मरने िक तभिा रूपी प्रायतश्चत्त की ही व्यिस्था शेष रह जािी है । जो दुरात्मा सोचिे हैं तक राजा कतठनाई से प्रसन्न होिे हैं िे सरासर अपना आलस्य और नासमझी ही प्रकि करिे हैं । सपा, बाघ, हाथी और तसंहों जैसे जानिरों को उपाय से ही िश में तकया जा सकिा है । बुतिमान और समझदार के तलए राजा को िश में करना कौन सी बडी बाि है ॽ राजा का आश्रय पाकर ही तिद्वान परम सुख प्रा्त करिा है, तिना िायु के चन्दन की सुगंध भी कहीं और नहीं जािी । राजा के प्रसन्न होनेपर सदा सिेद छािे, सुन्दर घोडे िथा मििाले हाथी तमलिे हैं ।” करिक बोला – िो अब िुम्हारा मन क्या करने का है ॽ
  • 11. पंचिन्र – तमर भेद Page 10 of 140 दमनकने बिाया – अभी हमारा मातलकतपंगलक अपने पररिार के साथ भयग्रस्ि है । हम उसके पास जाकर, उसके भय का कारण जानकर संतध, तिग्रह , यान, आसन, संशय और द्वैधीभाि में से तकसी एक से उसे साध लेंगे । करिक ने तजज्ञासा प्रकि की – स्िामी भयभीि है यह िुमने कैसे जाना ॽ दमनकनेखुलासा तकया – “इसमेंजाननेकी क्या बाि हैॽ कहा गया हैतक कही हुई बाि िो पशुभी ग्रहण कर लेिे हैं, घोडे और हाथी हांकनेसे ही चलिे हैं, पर पतडडि पुरुष तिना कही बाि का ममा समझ जािे हैं क्योंतक दूसरेकी चेष्टा का ज्ञान ही बुति का िल है । जैसा मनु ने कहा है तक आकार, इशारे, गति, चेष्टा, भाषण िथा मुखके भािों से ही अन्िगाि मन का अतभप्राय जाना जा सकिा है । आज इस भयभीि तपंगलकके पास जाकर उसे अपनी बुति के प्रभाि से तनभाय बनाकर और बस में करके अपने तलए मन्री पद की जुगि लगाऊँ गा ।” करिक ने कहा तक – “िुम सेिा धमा से अनतभज्ञ हो तिर कैसे उसे िश में कर सकिे हो ॽ” दमनक ने कहा – “पांडि तजस समय तिराि नगर में पहुँचे उस समय धौम्य मुतन ने उनसे सेिक धमा की जो व्याख्या की थी िह सब मैं जानिा हूँ । िह इस प्रकार है – सोने के िूलों से भरी इस पृथ्िी को िीन लोग चुनिे हैं यथा शूरिीर, तिद्वान और सेिा धमा का ममाज्ञ । जो सेिा स्िामी के तहि की हो उसे ही जान बूझ कर ग्रहण करना चातहए और उसी के द्वारा तिद्वान पुरुष को राजा का आश्रय ग्रहण करना चातहए तकसी दूसरे से नहीं । जो राजा पतडडि का गुण न जानिा हो उसकी सेिा पतडडि को नहीं करनी चातहए क्योंतक तजस िरह अच्छी िरह से जोिी गई ऊसर जमीन से िसल नहीं तमलिी उसी िरह राजा के पास से भी कोई िल नहीं तमलिा । धन और मतन्रयों से रतहि होनेपर भी अगर राजा में सेिा लेने का गुण है िो उसकी सेिा करनी चातहए क्योंतक कालान्िर में उससे जीिन का िल तमलने की सम्भािना बनी रहिी है। ठूंठे िृि की िरह पडा रहना और भूखसे देह भी सुखाना अच्छा है तकन्िुचिुर पुरुष ज्ञान शून्य राजा से िृतत्त पाने की लालसा न करे । कृपण और अतप्रय बोलने िाले स्िामी के प्रति िो सेिक द्वेष रखिा है पर िह अपने प्रति भी सेव्य और असेव्य का भेद जाननेपर द्वेष क्यों नहीं करिा ॽ तजसके आश्रय में तिश्राम नहीं तमलिा और तजनके सेिक भूखे रहकर इधर-उधर भिकिे रहिे हैं ऐसे राजा का तनत्य िूलने – िलने िालेमदार की िरह त्याग कर देना चातहए । राज मािा, देिी, राजकुमार, मुख्य मन्री, पुरोतहि और प्रतिहारी के प्रति राजा की ही िरह व्यिहार करना चातहए । पुकारिेही जो आपकी जय जयकार करिे हुए उत्तर देिा हो और तजस काम मेंचिुराई की आिश्यकिा हो उसे भी कु शलिा पूिाक करिा हो िही राजा का तप्रय-पार बनिा है । अपने मातलक की कृपा से तमले धन का उपयोग जो सुपारों में करिा हो और अच्छे कपडे पहनिा हो िह राजा का तप्रय-पार होिा है। अन्िःपुरिातसयों िथा राज घराने की तस्त्रयों के साथ जो गु्त षड्यन्र नहीं करिा िह राजा का तप्रय-पार होिा है । द्यूि (जुआ) को जो यमदूि के समान मानिा हो, मतदरा को भयंकर तिष के समान और तस्त्रयों को कुतत्सि आकार के समान देखिा हो िही राजा का तप्रय-पार बनिा है । जो युि के समय राजा के आगे-आगे और नगर में राजा के पीछे-पीछे चलिा हो िथा रातर में महल के दरिाजे पर बैठा रहे िही राजा का तप्रय-पार बनिा है। राजा की राय से सदा सहमति व्यि करिे हुए जो संकि मेंअपनी मयाादा का उल्लंघन नहीं करिा िही राजा का तप्रय-पार बनिा है । जो द्वेतषयों से द्वेष करे िथा इष्टों का मनचाहा काम करे िही राजा का तप्रय-पार बनिा है । जो मातलकको कभी उलिा जिाब न दे और न उसके सामनेजोर से हंसे िही राजा का तप्रय- पार होिा है । जो भय रतहि होकर युि ि शरण को एक समान माने, परदेश मेंअपने नगरजैसा ही सुख का अनुभि करे िही राजा का तप्रय-पार होिा है । जो राजा की तस्त्रयों के साथ तनंदा ि तििाद में संतल्त न हो िही राजा का तप्रय-पार होिा है ।” करिक ने पूछा – “िुम राजा के पास जाकर पहले कहोगे क्या यह िो बिाओ ।” दमनक ने कहा – “अच्छी िषाा के कारण जैसे एक बीज से अनेक बीज उत्पन्न होिे हैं उसी प्रकार बािचीि करिे हुए क्रमशः नये िाक्य भी उत्पन्न होिे हैं । उलिे उपाय से प्रा्त तिपतत्त और अनुकूल उपाय से प्रा्त काया तसति हेिु मेधािी पुरुष उतचि नीति का प्रयोग आसानी से कर लेिे हैं । कोई मन में कपि रखकर िोिे के समान मधुर िाणी बोलिा है, कोई कपि शून्य होकर भी कठोर िाणी बोलिा है, कोई हृदय ि िाणी दोनों से समान रूप प्रकि होिा है । मैं भी तिना उतचि अिसर के कोई बाि नहीं बोलूँगा । बहुि पहले तपिा की गोद में बैठकर मैंनेयह नीति शास्त्र सुना था ।
  • 12. पंचिन्र – तमर भेद Page 11 of 140 बृहस्पति भी यतद असमय में िचन बोलें िो उनकी बुति का भारी तनरादर होिा है ।” करिक बोला – “राजा िक पहुँचना दुगाम ि तहंसक जीिों से भरेहुए पिाि के समान ही अत्यन्ि कतठन होिा है क्योंतक राजा सदा दुष्ट चािुकारों से तघरा रहिा है । राजा सपों की िरह भोगी, कंचुकातिष्ट (तमथ्या आिरण से आतिष्ट जैसे सपा की केंचुली), क्रूर, अत्यन्ि दुष्ट और मन्र साध्य (राजा के अथा मेंगु्त मन्रणा िथा सपा के अथा में सपा को िश में करने िाला मन्र) होिा है । राजा सपों की िरह दो जीभ िाला, क्रूर कमी, अतनष्टकारी, दूसरों में ही दोष ढूँढने िाला होिा है और जो राजा के तकसी तहिैषी का अतहि करिा है िह आग में पतिंगे की भाँति जल मरिा है । सभी के तलए आदरणीय राजपद का मागा अत्यन्ि कतठन होिा है। अल्प अपकार के कारण भी िह ब्रह्म िेज के समान दुःखदायी होिा है । राज लक्ष्मी बहुि कतठनाई से प्रसन्न और प्राप्य होिी है तकन्िु एक बार तमल जाने पर जलाशय के जल के समान कािी समय िक तिकी भी रहिी है ।” दमनकनेकहा – “बाि िो ठीकहैतकन्िुतजसमनुष्य का जैसा भाि रहिा हैउस मनुष्यको उसी भाँतितमलकर िश में तकया जा सकिा है । स्िामी के तिचार के अनुसार काम करना ही सेिक का परम धमा है । स्िामी की इच्छानुसार चलने िाला रािसों को भी िश में कर सकिा है । क्रोतधि राजा की प्रशंसा िथा उसकी हाँ मेंहाँ तमलाना, उनके द्वेष में द्वेष, उनके दान की प्रशंसा करना तिना िन्र मन्र के ही िशीकरण के साधन हैं ।” करिक बोला – “अगर िेरी यही मंशा है िो िेरा रास्िा सुखकर हो । िूँ अपनी इच्छानुसार काम कर ।” दमनक करिक को प्रणाम करके तपंगलककी ओर चल पडा । उसे आिे देखकर तपंगलकने द्वारपाल से कहा – “अपनी छडी दूर हिाओ और मेरेपुराने तमर मन्री-पुर दमनकको तिना तकसी रोक िोक के आने दो । िह मेरेतद्विीय मडडल में बैठने का अतधकारी और यथाथा िादी है ।” द्वारपाल बोला – “जैसी आपकी आज्ञा ।” दमनक ने जाकर राजा को प्रणाम तकया और तदये गए आसन पर बैठ गया । राजा अपने नख रूपी िज्र से अलंकृि दातहने हाथ को उठाकर बोला – “आप कुशलपूिाक िो है ॽ बहुि तदनों बाद तदखे ॽ” दमनक बोला – “श्रीमान् के चरणों को यद्यतप हमसे कोई प्रयोजन नहीं है तकन्िु आपसे समय-असमय िचन कहना उतचि ही है कारण तकउत्तम, मध्यम ि अधम सभी से राजाओंका प्रयोजन तसि होिा है। तकसी नेठीकही कहा है तक – तनत्य दाँिों को कुरेदने िाले अथिा कान को खुजाने िालेिृण से भी राजाओंका काया तसि हो सकिा है, अंग, िाणी ि हाथ िालेमनुष्य से िो काया तसि होिा ही है। इसी प्रकार से हम स्िामी के चरणों के कुल क्रम से प्रा्त हुए भृत्य भी आपदाओंमें पीछे चलनेिालेहैं । यद्यतप अपने को अतधकार प्रा्त नहीं है िो भी श्रीमान्के चरणों को ऐसा उतचि नहीं है । कहा भी है तक – भृत्य और गहनेउतचि स्थान मेंतनयुि करने चातहए । मैं प्रभु हूँ ऐसा मानकर कोई चूडामतण (तसर पर धारण करने िाला गहना) को पैर में नहीं धारण करिा क्योंतक गुणों से अनतभज्ञ स्िामी का भृत्य भी साथ नहीं देिे चाहे िह धनाढ्य कुलीन और राजा ही क्यों न हो । कहा गया है तक जो भृत्य असमान होिे हुए भी समानिा के स्िर पर रखे जाँय, समान भृत्यों से इिर को सम्मान तदया जाय िथा काया भार न सौंपा जाय ऐसे िीन प्रकार के भृत्य राजा का त्याग कर देिे हैं । साथ ही जो अज्ञानिा से उत्तम पद के योग्य भृत्यों को हीन ि अधम स्थान में तनयुि करिा है उसके भृत्य अपने स्थान पर रहिे ही नहीं, इसमें न िो राजा का दोष है न भृत्य का क्योंतकसोने के गहनों में लगाई जानेयोग्य मतण यतद तनकृष्ट धािुमें लगा दी जाय िो िह मतण न िो रोिी है और न ही शोतभि होिी है । इससे केिल तनयोिा की ही तनंदा होिी हैतक लगानेिालेको योग्य अयोग्य का ज्ञान नहीं है । बहुि काल में देखा – ऐसा कहनेिालेस्िामी के पास सिार भ्रमण करने िाला भृत्य नहीं तिकिा । कांच में मतण और मतण में कांच का तिकल्प करने िाले स्िामी के पास भी भृत्य जन नहीं तिकिे । जौहरी के अभाि में समुर से तनकली मतण रत्नों का भी कोई मोल नहीं होिा । आभीर देश में चन्रकान्ि मतण को भी गोप लोग िीन कौडी में खरीदिे हैं । लोतहि मतण और पद्मराग मतण में अन्िर न समझने िाले तकस प्रकार रत्नों का क्रय-तिक्रय कर सकिे हैं । जब स्िामी सभी भृत्यों मेंतिशेष रूप से समानिा का ही व्यिहार करने लगेिो उद्यमी भृत्य तनरुत्सातहि हो जािेहैं । भृत्यों के तिना राजा नहीं और न राजा के तिना भृत्य रह सकिे हैं । भृत्यों के तिना राजा िैसे ही तनस्िेज हो जािा हैजैसे तकरणों के तिना सूया । तजस प्रकार अरों में नातभ और नातभ में अरेतस्थि
  • 13. पंचिन्र – तमर भेद Page 12 of 140 रहिे हैं उसी प्रकार राजा – भृत्य का भी अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है । यतद तनत्य िेल से मातलश न की जाय िो तसर के बाल भी रूखे हो जािे हैं िो भला भृत्य क्यों न हो जाएंगे ॽ राजा प्रसन्न होकर भृत्य को केिल अथा मार देिा है और भृत्य मार सम्मान प्रात्त के तलए अपनी जान की बाजी लगा देिे हैं । यह तिचार कर राजा को चिुर, कुलीन और सदा ित्परभृत्य तनयुि करनेचातहए । जो सेिक राजा का दुष्कर काया सम्पादन करने के बादभी संकोच िश कुछ नहीं कहिा राजा की कृपा उसे सदा प्रा्त होिी रहिी है । ऐसा भृत्य तजसे कोई काम सौंप कर तनतश्चंि बैठा जा सके, िह राजा की मानो दूसरी स्त्री के समान ही होिा है। राजाओंके योग्य सेिक िही है जो तिना बुलाए पास आए, सदा द्वार पर खडा रहे िथा पूछने पर थोडी और सच्ची बाि ही करे । राजा के तलए अतहिकर िस्िुको देखिे ही जो उसे तबना राजा की आज्ञा के ही नष्ट करने का प्रयास करे िही योग्य सेिक है । राजा की मार, दडड और गातलयां खाकर भी जो राजा का अतहि तचंिन नहीं करिा िही राजा का तप्रय-पार होिा है । जो कभी भूख-नींद-सदी-गमी की परिाह नहीं करिा िही योग्य सेिक है । तजसके तलए मान और अपमान दोनों समान हों िही योग्य सेिक है । भािी युि की बाि सुनकर जो राजा की ओर प्रसन्न मुखसे देखिा है िही योग्य सेिक है । तजसके प्रयास से राज्य की सीमा तनरंिर शुक्ल-पि के चन्रमा की भाँति बढिी ही जाय िही योग्य सेिक है । तजनकी देखरेख में राज्य की सीमा अतग्न मेंचमडे की भाँति तसकुडने लगेराजा को ऐसे सेिक का त्याग कर देना चातहए । तसयार समझ कर स्िामी यतद मेरी अिहेलना करिे हैं िह भी ठीक नहीं क्योंतक शास्त्र िचन हैतक रेशमी िस्त्र कीडेसे बनिा है, सोना तमट्टी-पत्थरसे तनकलिा है, दूब जमीन पर उगिी है, कमल कीचड में पैदा होिा है, चन्रमा समुर में से तनकलिा है, नील कमल गोबर से तनकलिा है. आग काठ में होिी है, मतण सपा के िन मेंहोिी है, तपउरी गाय के तपत्त से तनकलिी है, इसी प्रकार गुणी जन अपने गुणों से ऊपर उठिेऔर ख्याति पािेहैं, इसमें जन्म का क्या सम्बन्धॽ नुकसान पहुंचाने िाली चुतहया भी मार देने योग्य होिी है परन्िु सहायक होनेके कारण लोग तबल्ली को भोजन देकर भी प्रसन्निा पूिाकपालिे हैं। रेडी, तभंडनरकुल और मदार बडी िादादमें संग्रह करने पर भी इमारिी लकडी का काम नहीं देिे । इसी प्रकार असंख्य अज्ञातनयों से भी कोई प्रयोजन तसि नहीं होिा । असमथा भि तकस काम काॽ मुझे आप भि और समथा दोनों ही जातनये । मेरी अिज्ञा करना आपके तहि में नहीं है ।” तपंगलकबोला – “ठीक है, असमथा हो या समथा, िू हमेशा के तलए मेरा मन्री-पुर ही है । इसतलए जो कुछ भी कहना चाहिा है तनःशंक होकर कह ।” दमनक ने कहा – “देि, आपसे कुछ तिनिी करनी है ।” “जो कुछ कहना चाहिा है कह” तपंगलक ने कहा । उसने कहना शुरु तकया – “बृहस्पति का कथन है तक यतद राजा का बहुि मामूली सा भी काम हो िो भी उसे सभा के बीच में नहीं कहना चातहए । इसतलए हे महाराज, आप मेरी तिनिी एकान्ि में ही सुतनए । कारण तक राजकीय मन्रणा यतदछः कानों मेंजाय िो िह प्रकि हो जािी है परन्िु चार कानों से िह बाहर नहीं जािी । इसतलए बुतिमान इस बाि की कोतशश करिे हैं तक यथा संभि छः कानों का त्याग ही हो ।” तपंगलकके अतभप्राय को समझने िालेबाघ, चीिा, भेतडये आतद दमनककी यह बाि सुनिे ही ित्िण िहां से दूर चले गए । इसके बाद दमनक बोला – “देि  यतदयह बाि कहनेलायकन हो िो रहनेदीतजए। कहा भी है तककुछ बािेंतस्त्रयोंसे, कुछ बािेंररश्िेदारों से, कु छ बािें तमरों से और कुछ बािें पुरों से भी तछपाने योग्य होिी हैं । बाि ठीक है अथिा नहीं इसका तिचार करके ही तिद्वान पुरुष को बाि कहनी चातहए ।” यह सुनकर तपंगलकनेसोचा तक यह योग्य मालूम पडिा है इसतलए इसके सामनेमैं अपना मन्िव्य बिाऊँ गा । ऐसा कहा गया है तक तितशष्ट गुणों को समझनेिाले स्िामी के पास, गुणिान सेिक के पास, अनुकूल पत्नी के पास और अतभन्न तमर के पास अपना दुःख तनिेदन करके मनुष्य सुखी हो जािा है । ऐसा सोचकर तपंगलकबोला – “हे दमनक  क्या िूं दूर से आिी हुई यह भयािनी आिाज सुन रहा है ॽ” उसने कहा – “सुन िो रहा हूँ पर इससे क्या ॽ”
  • 14. पंचिन्र – तमर भेद Page 13 of 140 तपंगलक ने कहा – “भर,  मैं इस जंगल से भाग जाना चाहिा हूँ ।” दमनक ने पूछा – “क्यों ॽ” तपंगलकने कहा – “इसतलए तक मेरेइस िन मेंकोई अजीब जानिर घुस आया है तजसकी यह भयानकआिाज सुनायी पड रही है । उसकी िाकि भी उसकी आिाज के समान ही होगी ।” दमनकने कहा – “महाराज  आप केिल आिाज से ही भयभीि हो गये ॽ यह िो ठीकनहीं क्योंतक तजस प्रकार पानी से मेंड िूि जािी है, गु्त न रख पाने से तछपी बाि िूि जािी है, चुगली खाने से स्नेह िूि जािा है उसी प्रकार आिाज से केिल कायर डरिे हैं । अपने पुरखों की िंश परम्परा के अनुसार प्रा्त यह िन यकायक छोडना आपके तलए उतचि नहीं, क्योंतक भेरी, बांसुरी, िीणा, मृदंग, िाल, पिह, शंख और काहल इत्यातद के बजाने से िरह-िरह की आिाजें तनकलिी हैं । केिल आिाज से ही नहीं डरना चातहए । कहा गया है तक अति प्रबल और भयंकर शरु राजा के चढ जाने पर भी तजसका धीरज नहीं िूििा िह राजा कभी नहीं हारिा । तिधािा के भय तदखाने पर भी धीर पुरुषों का धैया नाश नहीं होिा । गरमी मेंिालाब भलेही सूख जाँय पर समुर बराबर उछलिा रहिा है । तरभुिन के तिलक रुप ऐसे तिरले ही पुर को मािा जन्म देिी है तजन्हेंसंकि मेंदुःख नहीं, ऐिया मेंहषा नहीं और युि में कायरिा नहीं । शतिहीन होनेसे नम्र बनेहुए, तनबाल होनेसे गौरिहीन बनेहुए िथा मानहीन प्राणी की और तिनके की गति एक जैसी होिी है । और भी, दूसरे के प्रिाप का सहारा लेने पर भी तजनमें मजबूिी नहीं आिी ऐसे लाख के बने गहने के समान मनुष्य के रूप से क्या प्रयोजनॽ यह जानकरआपको धैया रखना चातहएऔर केिल आिाज से डरना नहीं चातहए। कहा गया हैतक तजसे चरबी से भरा समझा गया था अन्दर घुसने के बाद ठीक-ठीकसमझ मेंआ गया तक इसमें तकिनी लकडी और तकिना चमडा है ।” तपंगलक ने पूछा – “यह तकस िरह ॽ” दमनक ने एक कथा सुनानी प्रारम्भ की – कथा २ क्षसयार और दुन्त्दुक्षि की कथा गोमायुनाम के एक तसयार ने भूख-प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज मेंबन-िन भिकिे हुए दो सेनाओं की लडाईका मैदान देखा । उसने िहांनगाडेके ऊपर हिा से तहलिी हुई िृि की तकसी शाखा की पिली िहनी की रगड से पैदा होने िाली आिाज सुनी । घबराए मन से उसने सोचा – अरे मर गया  ऐसी बडी आिाज करने िालेजानिर की नजर मेंपडने के पहलेही मुझेभाग जाना चातहए । लेतकन सहसा ऐसा करना उतचि भी नहीं । भय और खुशी के अिसर पर जो सोच तिचार के पश्चाि काम करिा है, उिािली मेंकोई कदम नहीं उठािा उसे पछिाना नहीं पडिा । अिः पहले मुझेयह पिा करना चातहए तक यह आिाज है तकसकी । बाद में धैया के साथ सोच तिचार करिा हुआ िह आगे बढा और नगाडे को देखा । उसी में से आिाज आ रही है यह तनश्चय कर उसने पास जाकर तखलिाड के तलए उसे बजाया और तिर खुशी से सोचने लगा तक बहुि तदनों के बादमुझे ऐसा बडा भोजन तमला है । तनश्चय ही यह भरपूर माँस, चरबी, और लहू से भरा होगा । बाद में सख्ि चमडे से मढे हुए नगाडे को तकसी िरह चीरकर और एक भाग में छेद करके उसमें घुस गया । चमडा चीरिे समय उसके दाँि भी िूि गये । केिल लकडी के नगाडे को देख तनराश होकर तसयार ने एक ्ोक पढा –‘पहले मैंने जाना तक िह चरबी से भरा होगा, पर अन्दर घुसने के बाद उसमें तकिना चमडा और तकिनी लकडी थी िह ठीक-ठीक समझ में आ गया’ । इसीतलए मैंने आपको सलाह दी तक केिल आिाज से नहीं डरना चातहए । तपंगलक बोला – “अरे भाई, जब मेरा सारा कुिुम्ब ही भय से व्याकुल होकर भाग जाना चाहिा है िो मैं भला कैसे धैया धारण कर सकिा हूँ ॽ” दमनकनेकहा – “स्िामी  इसमें आपका दोष नहीं है, क्योंतकसेिक स्िामी की िरह ही होिे हैं। कहा भी हैतक – घोडा, शस्त्र, शास्त्र, िीणा, िाणी, पुरुष और स्त्री यह सब खास आदतमयों को पाकर ही लायकया नालायकहोिेहैं। इसतलए मैं
  • 15. पंचिन्र – तमर भेद Page 14 of 140 जब िक इस आिाज का स्िरूप जानकर न लौिूँिब िकआप धीरज के साथ यहीं हमारी प्रिीिा करें। इसके बादजैसा होगा देखा जाएगा ।” तपंगलक ने आश्चया से पूछा – “क्या िूँ अकेले ही िहाँ जाने का साहस रखिा है ॽ” दमनकने कहा – “स्िामी की आज्ञा से अच्छे सेिक के तलए कोई भी काम न करने योग्य भी होिा है क्या ॽ कहा गया है तक – स्िामी की आज्ञा हो जानेके बाद अच्छे सेिक को कहीं भी भय नहीं लगिा, िह सपा के मुख मेंऔर कतठनिा से पार करने के योग्य समुर में भी घुस जािा है । स्िामी की आज्ञा तमलनेपर जो सेिक िेढे सीधे का तिचार करने लगिा है उसे समृति चाहने िाला राजा को नहीं रखना चातहए ।” तपंगलक ने कहा – “भर, यतद ऐसी बाि है िो िू जा । िेरा पथ कल्याणमय हो ।” दमनक भी उसे प्रणाम करके संजीिक की आिाज का पीछा करिा हुआ चल पडा । दमनक के चले जाने के पश्चाि भयािुर तपंगलक सोचने लगा – अहो मैंने उसका तििास करके अपना भेद बिा तदया, यह ठीक नहीं तकया । अपनेपद से हिाए जानेके कारण दमनकसम्भििः दूसरे पि से धन लेकर मेरेप्रति बुरा बरिाि करेिो ॽ कहा भी गया है जो पहले राजा के सम्मातनि होिे हैं और पीछे अपमातनि, िे कुलीन होिे हुए भी सदा राजा को समा्त करने का ही प्रयत्न करिे हैं । इसतलए उसकी चाल को जाननेके तलए मुझे तकसी जगह जाकर उसकी राह देखनी चातहए, क्योंतक दमनककदातचि उस प्राणी को लाकर मुझे मारनेकी इच्छा रखिा हो । कहा भी है तक तनबाल यतद तकसी का तििास न करेिो िह भी बलिान द्वारा नहीं मारा जा सकिा, परन्िु सब पर तििास करने िाला बलिान भी तनबाल द्वारा परास्ि हो जािा है। जो बुतिमान पुरुष अपनी बढिी आयुष्य और सुख की इच्छा रखिा है उसे बृहस्पति का भी तििास नहीं करना चातहए । शपथ तदलाकर भी संतध करने िाले शरु का तििास नहीं करना चातहए । राज्य पानेकी अतभलाषा करने िाला िृर भी इन्र द्वारा शपथलेकर ही मारा गया था । तििास के तिना िो शरु देििाओंके भी िश मेंनहीं आिे । इन्र ने तििास का ही लाभ उठाकर तदति के गभा को चीर डाला था । – इस प्रकार तनश्चय करके दूसरी जगह जाकर तपंगलकअकेला ही दमनक की बाि जोहने लगा । दमनक भी संजीिक के पास जाकर और उसे बैल जानकर प्रसन्न मन से सोचने लगा – यह िो बडा अच्छा हुआ, इनके साथ मेल और लडाई कराने से तपंगलकमेरेिश मेंहो सकेगा । कहा भी है तक जब िक दुःख अथिा शोक न आ पडे िब िक राजा केिल कुलीन अथिा तमर भाि होने से ही मतन्रयों की बाि नहीं मानिा । आिि में पड जाने पर राजा सदा के तलएमतन्रयों के िश में हो जािा है । इसीतलए मन्रीगण चाहिेहैं तक राजा सदा तकसी न तकसी तिपतत्त मेंही रहे । तजस िरह नीरोग मनुष्य अच्छे से अच्छे िैद्य की भी परिाह नहीं करिा उसी प्रकार तिना आिि में िँसे राजा भी मतन्रयों की परिाह नहीं करिा । इस िरह सोचिा हुआ दमनक तपंगलक की ओर चला । तपंगलक भी उसे आिे देखकर अपने मनोभाि को तछपािा हुआ पहले की िरह ही बना रहा । दमनक ने तपंगलक के पास जाकर उसे प्रणाम तकया और बैठ गया । तपंगलक ने पूछा – “क्यों आपने उस प्राणी को देखा ॽ” दमनक ने बिाया – “स्िामी की कृपा से देखा ।” तपंगलक ने तिर कहा – “क्या सचमुच देखा ॽ” दमनकबोला – “क्या महाराज से झूठ कहा जा सकिा हैॽ कहा हैतक राजाओंऔर देििाओंके सामनेजो झूठ बोलिा हैिह बडा आदमी होनेपर भी शीघ्र ही नष्ट हो जािा है। इसी क्रम मेंमनुका कथन हैतक राजा सिादेिमय होिा है इसतलए कभी भी उसकी कपि सेिा नहीं करनी चातहए । सिादेिमय राजा की तिशेषिा यह है तक उसके पास से शुभ और अशुभ का िल िुरन्ि ही तमल जािा है और देििा के पास से दूसरेजन्म में ।” तपंगलकने कहा – “िुमने उसे जरूर देखा होगा । बडे लोग गरीबों पर नाराज नहीं होिे इसीतलए उसने िुम्हें मारा नहीं । कारण तक कोमल और नीचे झुके हुए तिनकों को बिंडर भी उखाड कर नहीं िेंकिा । उन्निचेत्ता व्यतियों का यह स्िभाि ही है, बडे बडों पर ही अपना पराक्रम तदखािे हैं। मद जल युि गंडस्थल पर प्रेम से अंधे भौंरेद्वारा