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खुरपका मुुंहपका बीमारी (एफएमडी) –
• एक उच्च सुंक्रामक विषाणु जनित रोग है।
• सुंपक
क , दूवषत जल, िायु और चारे क
े माध्यम से फ
ै लता है।
• ियस्क पशुओुं क
े ललए यह रोग यदा-कदा घातक होता है । परन्तु गायों में दूध उत्पादि ि प्रजिि क्षमता तथा बेलों में
भारिाहक क्षमता को स्िास््य लाभ क
े बाद भी हानि पहुुंचती है ।
• बछडा ि बछडडयों में यह सामान्यतः घातक होता है ।
• यह भेड ि बकरी (आमतौर पर उप-िैदानिक और अिुरक्षण मेजबाि है) और सुअर को भी प्रभावित करता है जो प्रिधकि
मेजबाि है। (जो विषाणु को लगभग 3000 गुणा तक बढाते हैं)
लक्षण:
1. दूध उत्पादि ि कायकक्षमता (भारिाहक पशु) में अत्यधधक कमी आती है ।
2. बुखार, िाक से पािी जैसा स्राि और अत्यधधक लार धगरिा ।
3. जीभ, दुंत उपधाि, होंठ और मसूढों इत्यादद में छाले होिा ।
4. पैर क
े खुर क
े बीच में छाले होिे से लुंगडापि हो सकता है ।
5. चूचुक में छाले होिे से थिैला हो सकता है ।* पशुओुं की खराब हालत स्िास््य लाभ क
े बाद भी
जारी रह सकती है ।
खुरपका मुुंहपका का प्रबुंधि
1. इसका क
े िल लाक्षणणक (लसुंप्टोमेदटक) उपचार सुंभि है ।
2. घािों क
े ददक को कम करिे क
े ललए उि पर इमोललएुंट लगाएुं ।
3. उपयुक्त सलाह क
े ललए पशु-धचककत्सक से सुंपक
क करें ।
आधथकक हानि से बचिे क
े ललए अपिे पशुओुं को नियलमत खुरपका-मुुंहपका का टीका लगिाएुं
थिैला (अक्यूट या क्क्लनिकल मस्टाइदटस)
यह धि की सूजि का गुंभीर है क्जसमें थि एिुं दूध में लक्षण अच्छे से ददखते हैं। ज्यादा दूध देिे िाले पशुओुं
में ये होिे की सुंभाििा ज्यादा होती है। मुख्यतः यह जीिाणु (100 से अधधक प्रकार क
े ) होते हैं । विषाणु और
कभी-कभी किक ि शैिाल से भी हो सकता है ।
इस रोग को फ
ै लािे िाले प्रमुख कारक:
1. गुंदे पशु/बाडा
2. गलत तरीक
े से दूध निकालिा
3. थि में चोट लगिा
प्रमुख लक्षण
प्रकट रूप थिैला में सूजा हुआ थि प्रकट रूप थिैला में दूध की भौनतक अिस्था में बदलाि
रोकथाम:
1. रोग को फ
ै लािे िाले प्रमुख कारक का सही तरीक
े से प्रबुंधि
2. दूध दुहिे से पहले साफ पािी से थि को साफ करिा, तत्पश्चात साफ तौललये से पोंछ कर सुखािा ।
प्रत्येक पशु क
े ललए अलग तौललया इस्तेमाल करें। डडस्पोजेबल पेपर तैललया भी एक विकल्प हो सकता है।
बार-बार गुंदे तौललया का प्रयोग भी थिैला का एक कारण है ।
3. दूध जल्दी, पूरा और स्िच्छ तरीक
े से निकालें।
4. क्स्थर रूप से ग्रलसत थिैला िाले पशु का दूध अुंत में निकाले ।
5. दुहिे क
े तुरुंत बाद टीट डडवपुंग या स्प्रे का इस्तेमाल करें।
6. दुहिे क
े पश्चात 30-45 लमिट तक पशु को बैठिे िहीुं देिा है ।
7. गुप्त प्रकार क
े थिैला क
े ललए निरुंतर जााँच ि उिका उपचार करिाएुं ।
8. पशुओुं क
े बाडे समतल एिुं सूखा रखें ।गाय क
े सूखिे (जब दूध देिा बुंद कर दे) 2 सप्ताह बाद और ब्यािे
क
े 2 सप्ताह पहले से टीट डडवपुंग/ स्प्रे का इस्तेमाल करें ।मक्खी रोकथाम की व्यिस्था करें ।
उपचार:
1. पशु धचककत्सक से जल्दी सुंपक
क करें, क्जससे जल्दी उपचार हो (2-3 घुंटे की भीतर हो जाए) और ठीक होिे
की सुंभाििा बढे । धचककत्सा में देरी करिे पर थि खराब हो सकता है और पशु की मृत्यु भी हो सकती है
।
2. थिैला ग्रलसत क्जस गाय का उपचार चल रहा हो, कम से कम 4 ददिों तक उसक
े दूध का इस्तेमाल ि
करें। जरूरत पडिे पर पशु धचककत्सक की भी सलाह ले ।
लुंगडा बुखार:

 गायों की जीिाणु जनित एक बीमारी है, क्जसमें माुंसपेलशयों में हिा भरिे क
े
साथ-साथ सूजि हो जाता है ।
 भेंस इस बीमारी से बहुत कम ग्रस्त होते हैं ।
 इस रोग क
े मुख्य स्रोत दूवषत चारागाह होते हैं ।
 सामान्यतः इस रोग से 6 माह से 2 साल क
े स्िस्थ पशु ज्यादातर प्रभावित होते
हैं ।
लक्षण:
1. अचािक तेज बुखार (107 108°F) और पशु खािा और जुगाली छोड देता है
2. विलशष्ट रूप से गमक और ददकयुक्त सूजि कमर और क
ू ल्हे में विकलसत होिे से
लुंगडापि आता है। कभी-कभी सूजि क
ुं धे, छाती और गले तक फ
ै ल जाता है।
सूजि िाली जगह को दबािेपर गैस जमा होिे क
े कारण चर चर की आिाज आती
है |
3. लक्षण उभरिे क
े 24-28 घुंटे क
े भीतर पशु मर जाता है । मृत्यु क
े तुरुंत पहले
सूजि ठुंडा ि ददक रदहत हो जाता है ।
रोकथाम:
 बीमारी विशेष क्षेत्र में बरसात क
े शुरू होिे से पूिक 6 माह ि उससे अधधक आयु क
े सभी पशुओुं का
टीकाकरण करिािाचादहए ।
 बीमारी विशेष क्षेत्र में लमट्टी क
े ऊपरी तह को भूसा क
े साथ जलािे से रोग क
े जीिाणुओुं का
निराकरण करिे में मदद लमलती है|
 शि को दबािे क
े समय उस पर चूिा डाल देिा चादहए ।
उपचार :
सुंक्रमण की शुरूआती अिस्था में उपचार प्रभािी हो सकता है। कफर भी अधधकाुंश मामलों में उपचार
साथकक लाभदायक) िहीुं होता ।
एन्रैक्स (धगलटी रोग)
 एक घातक जीिाणुजनित बीमारी है जो सभी खेनतहर पशुओुं को प्रभावित करती है ।
 उच्च बुखार, श्िसि में कदठिाई, प्राकृ नतक नछद्र से रक्त बहिा और अचािक मृत्यु इस
बीमारी क
े खास लक्षण हैं ।
 जीिाणु से दूवषत चारा ि दािा क
े खािे से यह रोग पिपता है । इस रोग क
े जीिाणु भूलम
में 30 साल तक जीवित रह सकते हैं।
 प्रारुंलभक अिस्था में इलाज ककया जाए तो प्रभािी होता है, अन्यथा पशु की मृत्यु हो सकती है
।
 मिुष्यों में सुंक्रमण बबिा पक
े माुंस क
े खािे से, सुंक्रलमत पशु क
े सुंपक
क में आिे या जीिाणुओुं
क
े श्िसि से होता है ।
रोकथाम:
1. विशेष क्षेत्र में पशुओुं क
े नियलमत िावषकक टीकाकरण से इस बीमारी को रोका जा सकता है ।
2. विशेष क्षेत्र में रोग होिे क
े कम से कम 1 माह पहले ही टीकाकरण करिा देिा चादहए ।•
धगलटी रोग से मरे हुए पशु क
े शि को काट कर कभी भी खोलिा या देखिा िहीुं चादहए ।
अचािक मृत्यु
िाक से रक्त बहिा
पैर का सडिा:
 यह एक जीिाणु जनित सुंक्रमण है क्जसका दुग्ध व्यिसाय में बहुत अधधक आधथकक
महत्ि है।
 इसकी व्यापकता दशा (काल), साल क
े मौसम, चारा चरिे का समय, गृह-प्रणाली,
फशक क
े प्रकार इत्यादद पर निभकर करता है ।
 पथरीली जमीि, िुकीले क
ुं कड, इत्यादद से इस रोग की सुंभाििा बढ जाती है ।
लक्षण
 बुखार और भूख में कमी|
 दुग्ध उत्पादि में कमी
 खुरों क
े बीच सूजि
 घाि से बदबू आिा
 लुंगडापि-पशु अपिे पैर को दबाि से मुक्क्त क
े ललए हिा में उठाता है ।
पैर सडिे से हुआ घाि
गुंभीर पर सडि
रोकथाम ि उपचार
1. चोट क
े स्रोत को हटा दें और पशु क
े पैरों को शुष्क ि
स्िच्छ रखें ।
2. जो पशु सकक्रय रूप से सुंक्रमण क
े जीिाणु को झाडते/बाहर
निकालते रहते हैं, उन्हें तब तक अलग रखें जब तक उसमें
लुंगडेपि क
े लक्षण अदृश्य ि हो जाएुं ।
3. पािी पीिे क
े स्थाि और प्रिेशद्िार ि अन्य रास्तों पर
पािी इकट्ठा ि होिे दें ।
4. 5% कॉपरसल्फ
े ट और 10% क्जुंक सल्फ
े ट क
े
रोगाणुिाशकघोल को पैर डुबकी में इस्तेमाल करिे से
अच्छा पररणाम आता
5. शारीररक प्रणालीगत उपचार स्थानिक उपचार से अधधक
महत्िपूणक है ।
6. रोग की पहचाि ि तुरुंत प्रनतजेविक का इुंजेक्शि जरूरी है
। यदद 3-4 ददि में क्स्थनत में सुधार ि ददखे तो इसका
अथक है सुंक्रमण निचले स्तर क
े ऊतकों तक पहुुंच चुका है ।
7. उपरोक्त लक्षण ददखिे पर तुरुंत पशुधचककत्सक से सुंपक
क
करें। नियलमत पैर डुबकी का इस्तेमालपैरकी सडि रोकिे
में उपयोगी है ।
हाइपोक
ै क्ल्शलमया (दुग्ध ज्िर):
 यह रोग रक्त में क
ै क्ल्शयम की मात्रा कम होिे क
े कारण होता है, जो कक िास्ति में
बुखार िहीुं है। इस रोग की िजह से कदठि प्रसि, जेर का िहीुं धगरिा (आर.ओ.पी)
और गभाकशय भ्रुंश (यूटेराइि प्रोलैप्स) हो सकता है।
 प्रसि क
े 72 घुंटे क
े अुंदर पाया जाता है। शुरूआती चरणों में कोख एिुं लॉयि क
े ऊपर
उत्तेजिा क
े साथ हल्क
े झटक
े काि झुक जाते हैं, एिुं लसर को दहलािा, लक्षण पाए
जाते हैं
 ब्यािे क
े 48 घुंटों क
े दौराि पूरा दूध निकालिा, दुग्ध ज्िर को बढािा देता है।
 पशु खडा होिे में असमथक होता है और बाद की अिस्था में सुस्त हो जाता है क्जसमें
पहले िो अपिा लसर एक तरफ मोड लेता है। और बाद में पाश्िक क्स्थनत से आगे की
ओर खीुंचकर भूलम पर रख) देता है। आुंखों की प्रनतकक्रया समाप्त हो जाती है।
 आणखरी क्षण में तापमाि सामान्य से कम होिे क
े साथ पशु बेहोशी की हालत में चला
जाता है
 ।छाइपोक
ै क्ल्शलमया (दुग्ध ज्िर), सब क्लीनिकल रूप में भी पाया जाता है क्जससे
पशुओुं में बुखार, गभाकशय में सूजि (मेट्राइदटस), में और शक
क रा की कमी (कीटोलसस)
होिे की सुंभाििा बढ जाती है जो कक िुकसाि का एक बडा कारण हो सकता है।
दुग्ध ज्िर की रोकथाम ि उपचार:
 गभाकिस्था क
े आणखरी काल में क
ै क्ल्शयम की खुराक ज्यादा िहीुं देिी चादहए ।
 दुग्ध ज्िर सुंभावित पशु में ब्यािे क
े 12-24 घुंटे पहले से ब्यािे क
े 48 घुंटे तक क
ै क्ल्शयम की 3-4
खुराक (40-50) ग्राम प्रनत खुराक देिे से लक्षण में कमी आती है
 ब्यािे क
े 3 सप्ताह पहले ऋणात्मक लिण जैसे कक अमोनियम क्लोराइड एिुं मैग्िेलशयम सल्फ
े ट या
अमोनियम सल्फ
े ट (50 100 ग्राम प्रनतददि) णखलािा चादहए ।
 लक्षण ददखाई देिे पर पशु धचककत्सक से तुरुंत सुंपक
क करें क्जसक
े तुरुंत उपचार से पशु ठीक हो
सकता है ।
 यदद कोई उपचार ि ककया जाए, तो पशु मर भी सकता है ।क
ु छ पशुओुं में 24-48 घुंटे क
े भीतर
पुि: उपचार करिे की आिश्यकता होती है ।
 प्रजिि क
े समय पशु क
े मूत्र का पी. एच. 6.5-7.0 क
े बीच होता है, पी.एच. ज्यादा बढिे पर दुग्ध
ज्िर होिे की सुंभाििा बढ जाती है

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  • 1.
  • 2. खुरपका मुुंहपका बीमारी (एफएमडी) – • एक उच्च सुंक्रामक विषाणु जनित रोग है। • सुंपक क , दूवषत जल, िायु और चारे क े माध्यम से फ ै लता है। • ियस्क पशुओुं क े ललए यह रोग यदा-कदा घातक होता है । परन्तु गायों में दूध उत्पादि ि प्रजिि क्षमता तथा बेलों में भारिाहक क्षमता को स्िास््य लाभ क े बाद भी हानि पहुुंचती है । • बछडा ि बछडडयों में यह सामान्यतः घातक होता है । • यह भेड ि बकरी (आमतौर पर उप-िैदानिक और अिुरक्षण मेजबाि है) और सुअर को भी प्रभावित करता है जो प्रिधकि मेजबाि है। (जो विषाणु को लगभग 3000 गुणा तक बढाते हैं)
  • 3. लक्षण: 1. दूध उत्पादि ि कायकक्षमता (भारिाहक पशु) में अत्यधधक कमी आती है । 2. बुखार, िाक से पािी जैसा स्राि और अत्यधधक लार धगरिा । 3. जीभ, दुंत उपधाि, होंठ और मसूढों इत्यादद में छाले होिा । 4. पैर क े खुर क े बीच में छाले होिे से लुंगडापि हो सकता है । 5. चूचुक में छाले होिे से थिैला हो सकता है ।* पशुओुं की खराब हालत स्िास््य लाभ क े बाद भी जारी रह सकती है । खुरपका मुुंहपका का प्रबुंधि 1. इसका क े िल लाक्षणणक (लसुंप्टोमेदटक) उपचार सुंभि है । 2. घािों क े ददक को कम करिे क े ललए उि पर इमोललएुंट लगाएुं । 3. उपयुक्त सलाह क े ललए पशु-धचककत्सक से सुंपक क करें । आधथकक हानि से बचिे क े ललए अपिे पशुओुं को नियलमत खुरपका-मुुंहपका का टीका लगिाएुं
  • 4. थिैला (अक्यूट या क्क्लनिकल मस्टाइदटस) यह धि की सूजि का गुंभीर है क्जसमें थि एिुं दूध में लक्षण अच्छे से ददखते हैं। ज्यादा दूध देिे िाले पशुओुं में ये होिे की सुंभाििा ज्यादा होती है। मुख्यतः यह जीिाणु (100 से अधधक प्रकार क े ) होते हैं । विषाणु और कभी-कभी किक ि शैिाल से भी हो सकता है । इस रोग को फ ै लािे िाले प्रमुख कारक: 1. गुंदे पशु/बाडा 2. गलत तरीक े से दूध निकालिा 3. थि में चोट लगिा प्रमुख लक्षण प्रकट रूप थिैला में सूजा हुआ थि प्रकट रूप थिैला में दूध की भौनतक अिस्था में बदलाि
  • 5. रोकथाम: 1. रोग को फ ै लािे िाले प्रमुख कारक का सही तरीक े से प्रबुंधि 2. दूध दुहिे से पहले साफ पािी से थि को साफ करिा, तत्पश्चात साफ तौललये से पोंछ कर सुखािा । प्रत्येक पशु क े ललए अलग तौललया इस्तेमाल करें। डडस्पोजेबल पेपर तैललया भी एक विकल्प हो सकता है। बार-बार गुंदे तौललया का प्रयोग भी थिैला का एक कारण है । 3. दूध जल्दी, पूरा और स्िच्छ तरीक े से निकालें। 4. क्स्थर रूप से ग्रलसत थिैला िाले पशु का दूध अुंत में निकाले । 5. दुहिे क े तुरुंत बाद टीट डडवपुंग या स्प्रे का इस्तेमाल करें। 6. दुहिे क े पश्चात 30-45 लमिट तक पशु को बैठिे िहीुं देिा है । 7. गुप्त प्रकार क े थिैला क े ललए निरुंतर जााँच ि उिका उपचार करिाएुं । 8. पशुओुं क े बाडे समतल एिुं सूखा रखें ।गाय क े सूखिे (जब दूध देिा बुंद कर दे) 2 सप्ताह बाद और ब्यािे क े 2 सप्ताह पहले से टीट डडवपुंग/ स्प्रे का इस्तेमाल करें ।मक्खी रोकथाम की व्यिस्था करें । उपचार: 1. पशु धचककत्सक से जल्दी सुंपक क करें, क्जससे जल्दी उपचार हो (2-3 घुंटे की भीतर हो जाए) और ठीक होिे की सुंभाििा बढे । धचककत्सा में देरी करिे पर थि खराब हो सकता है और पशु की मृत्यु भी हो सकती है । 2. थिैला ग्रलसत क्जस गाय का उपचार चल रहा हो, कम से कम 4 ददिों तक उसक े दूध का इस्तेमाल ि करें। जरूरत पडिे पर पशु धचककत्सक की भी सलाह ले ।
  • 6. लुंगडा बुखार:   गायों की जीिाणु जनित एक बीमारी है, क्जसमें माुंसपेलशयों में हिा भरिे क े साथ-साथ सूजि हो जाता है ।  भेंस इस बीमारी से बहुत कम ग्रस्त होते हैं ।  इस रोग क े मुख्य स्रोत दूवषत चारागाह होते हैं ।  सामान्यतः इस रोग से 6 माह से 2 साल क े स्िस्थ पशु ज्यादातर प्रभावित होते हैं । लक्षण: 1. अचािक तेज बुखार (107 108°F) और पशु खािा और जुगाली छोड देता है 2. विलशष्ट रूप से गमक और ददकयुक्त सूजि कमर और क ू ल्हे में विकलसत होिे से लुंगडापि आता है। कभी-कभी सूजि क ुं धे, छाती और गले तक फ ै ल जाता है। सूजि िाली जगह को दबािेपर गैस जमा होिे क े कारण चर चर की आिाज आती है | 3. लक्षण उभरिे क े 24-28 घुंटे क े भीतर पशु मर जाता है । मृत्यु क े तुरुंत पहले सूजि ठुंडा ि ददक रदहत हो जाता है ।
  • 7. रोकथाम:  बीमारी विशेष क्षेत्र में बरसात क े शुरू होिे से पूिक 6 माह ि उससे अधधक आयु क े सभी पशुओुं का टीकाकरण करिािाचादहए ।  बीमारी विशेष क्षेत्र में लमट्टी क े ऊपरी तह को भूसा क े साथ जलािे से रोग क े जीिाणुओुं का निराकरण करिे में मदद लमलती है|  शि को दबािे क े समय उस पर चूिा डाल देिा चादहए । उपचार : सुंक्रमण की शुरूआती अिस्था में उपचार प्रभािी हो सकता है। कफर भी अधधकाुंश मामलों में उपचार साथकक लाभदायक) िहीुं होता ।
  • 8. एन्रैक्स (धगलटी रोग)  एक घातक जीिाणुजनित बीमारी है जो सभी खेनतहर पशुओुं को प्रभावित करती है ।  उच्च बुखार, श्िसि में कदठिाई, प्राकृ नतक नछद्र से रक्त बहिा और अचािक मृत्यु इस बीमारी क े खास लक्षण हैं ।  जीिाणु से दूवषत चारा ि दािा क े खािे से यह रोग पिपता है । इस रोग क े जीिाणु भूलम में 30 साल तक जीवित रह सकते हैं।  प्रारुंलभक अिस्था में इलाज ककया जाए तो प्रभािी होता है, अन्यथा पशु की मृत्यु हो सकती है ।  मिुष्यों में सुंक्रमण बबिा पक े माुंस क े खािे से, सुंक्रलमत पशु क े सुंपक क में आिे या जीिाणुओुं क े श्िसि से होता है । रोकथाम: 1. विशेष क्षेत्र में पशुओुं क े नियलमत िावषकक टीकाकरण से इस बीमारी को रोका जा सकता है । 2. विशेष क्षेत्र में रोग होिे क े कम से कम 1 माह पहले ही टीकाकरण करिा देिा चादहए ।• धगलटी रोग से मरे हुए पशु क े शि को काट कर कभी भी खोलिा या देखिा िहीुं चादहए । अचािक मृत्यु िाक से रक्त बहिा
  • 9. पैर का सडिा:  यह एक जीिाणु जनित सुंक्रमण है क्जसका दुग्ध व्यिसाय में बहुत अधधक आधथकक महत्ि है।  इसकी व्यापकता दशा (काल), साल क े मौसम, चारा चरिे का समय, गृह-प्रणाली, फशक क े प्रकार इत्यादद पर निभकर करता है ।  पथरीली जमीि, िुकीले क ुं कड, इत्यादद से इस रोग की सुंभाििा बढ जाती है । लक्षण  बुखार और भूख में कमी|  दुग्ध उत्पादि में कमी  खुरों क े बीच सूजि  घाि से बदबू आिा  लुंगडापि-पशु अपिे पैर को दबाि से मुक्क्त क े ललए हिा में उठाता है । पैर सडिे से हुआ घाि गुंभीर पर सडि
  • 10. रोकथाम ि उपचार 1. चोट क े स्रोत को हटा दें और पशु क े पैरों को शुष्क ि स्िच्छ रखें । 2. जो पशु सकक्रय रूप से सुंक्रमण क े जीिाणु को झाडते/बाहर निकालते रहते हैं, उन्हें तब तक अलग रखें जब तक उसमें लुंगडेपि क े लक्षण अदृश्य ि हो जाएुं । 3. पािी पीिे क े स्थाि और प्रिेशद्िार ि अन्य रास्तों पर पािी इकट्ठा ि होिे दें । 4. 5% कॉपरसल्फ े ट और 10% क्जुंक सल्फ े ट क े रोगाणुिाशकघोल को पैर डुबकी में इस्तेमाल करिे से अच्छा पररणाम आता 5. शारीररक प्रणालीगत उपचार स्थानिक उपचार से अधधक महत्िपूणक है । 6. रोग की पहचाि ि तुरुंत प्रनतजेविक का इुंजेक्शि जरूरी है । यदद 3-4 ददि में क्स्थनत में सुधार ि ददखे तो इसका अथक है सुंक्रमण निचले स्तर क े ऊतकों तक पहुुंच चुका है । 7. उपरोक्त लक्षण ददखिे पर तुरुंत पशुधचककत्सक से सुंपक क करें। नियलमत पैर डुबकी का इस्तेमालपैरकी सडि रोकिे में उपयोगी है ।
  • 11. हाइपोक ै क्ल्शलमया (दुग्ध ज्िर):  यह रोग रक्त में क ै क्ल्शयम की मात्रा कम होिे क े कारण होता है, जो कक िास्ति में बुखार िहीुं है। इस रोग की िजह से कदठि प्रसि, जेर का िहीुं धगरिा (आर.ओ.पी) और गभाकशय भ्रुंश (यूटेराइि प्रोलैप्स) हो सकता है।  प्रसि क े 72 घुंटे क े अुंदर पाया जाता है। शुरूआती चरणों में कोख एिुं लॉयि क े ऊपर उत्तेजिा क े साथ हल्क े झटक े काि झुक जाते हैं, एिुं लसर को दहलािा, लक्षण पाए जाते हैं  ब्यािे क े 48 घुंटों क े दौराि पूरा दूध निकालिा, दुग्ध ज्िर को बढािा देता है।  पशु खडा होिे में असमथक होता है और बाद की अिस्था में सुस्त हो जाता है क्जसमें पहले िो अपिा लसर एक तरफ मोड लेता है। और बाद में पाश्िक क्स्थनत से आगे की ओर खीुंचकर भूलम पर रख) देता है। आुंखों की प्रनतकक्रया समाप्त हो जाती है।  आणखरी क्षण में तापमाि सामान्य से कम होिे क े साथ पशु बेहोशी की हालत में चला जाता है  ।छाइपोक ै क्ल्शलमया (दुग्ध ज्िर), सब क्लीनिकल रूप में भी पाया जाता है क्जससे पशुओुं में बुखार, गभाकशय में सूजि (मेट्राइदटस), में और शक क रा की कमी (कीटोलसस) होिे की सुंभाििा बढ जाती है जो कक िुकसाि का एक बडा कारण हो सकता है।
  • 12. दुग्ध ज्िर की रोकथाम ि उपचार:  गभाकिस्था क े आणखरी काल में क ै क्ल्शयम की खुराक ज्यादा िहीुं देिी चादहए ।  दुग्ध ज्िर सुंभावित पशु में ब्यािे क े 12-24 घुंटे पहले से ब्यािे क े 48 घुंटे तक क ै क्ल्शयम की 3-4 खुराक (40-50) ग्राम प्रनत खुराक देिे से लक्षण में कमी आती है  ब्यािे क े 3 सप्ताह पहले ऋणात्मक लिण जैसे कक अमोनियम क्लोराइड एिुं मैग्िेलशयम सल्फ े ट या अमोनियम सल्फ े ट (50 100 ग्राम प्रनतददि) णखलािा चादहए ।  लक्षण ददखाई देिे पर पशु धचककत्सक से तुरुंत सुंपक क करें क्जसक े तुरुंत उपचार से पशु ठीक हो सकता है ।  यदद कोई उपचार ि ककया जाए, तो पशु मर भी सकता है ।क ु छ पशुओुं में 24-48 घुंटे क े भीतर पुि: उपचार करिे की आिश्यकता होती है ।  प्रजिि क े समय पशु क े मूत्र का पी. एच. 6.5-7.0 क े बीच होता है, पी.एच. ज्यादा बढिे पर दुग्ध ज्िर होिे की सुंभाििा बढ जाती है