2. कबीर के दोहे
माटी कहे कु म्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक ददन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
माला फे रत जुग गया, गया न मन का फे र ।
कर का मन का डारर दे, मन का मनका फे र॥
ततनका कबहुां ना तनांदए, जो पाांव तले होए।
कबहुां उड़ अांखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥
गुरु गोववांद दोऊां िड़े, काके लागूां पाांय।
बललहारी गुरु आपकी, गोववांद ददयो बताय॥
साईं इतना दीजजए, जा मे कु टुम समाय।
मैं भी भूिा न रहूां, साधु ना भूिा जाय॥
3. गुरुनानक के दोहे
* एक ओांकार सततनाम, करता पुरिु तनरभऊ।
तनरबैर, अकाल मूरतत, अजूनी, सैभां गुर प्रसादद ।।
हुकमी उत्तम नीचु हुकलम ललखित दुिसुि पाई अदह।
इकना हुकमी बक्शीस इकक हुकमी सदा भवाई अदह ॥
सालाही सालाही एती सुरतत न पाइया।
नददआ अते वाह पवदह समुांदद न जाणी अदह ॥
पवणु गुरु पानी वपता माता धरतत महतु।
ददवस रात दुई दाई दाइआ िेले सगलु जगतु ॥
4. तुलसीदास के दोहे
तुलसी अपने राम को, भजन करौ तनरसांक
आदद अन्त तनरबादहवो जैसे नौ को अांक ।।
आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!
तुलसी तहाां न जाइए कां चन बरसे मेह!!
तुलसी मीठे बचन ते सुि उपजत चहु ओर!
बसीकरण एक मांत्र है पररहरु बचन कठोर!!
बबना तेज के पुरूर्ष अवशी अवज्ञा होय!
आगग बुझे ज्यों रि की आप छु वे सब कोय!!
5. बबहारी के दोहे
सतसइया के दोहरा ज्यों नावक के तीर।
देिन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर।।
नदहां पराग नदहां मधुर मधु नदहां ववकास यदह काल।
अली कली में ही बबन््यो आगे कौन हवाल।।
घर घर तुरककतन दहन्दुनी देततां असीस सरादह।
पततनु रातत चादर चुरी तैं रािो जयसादह।।
मोर मुकु ट कदट काछनी कर मुरली उर माल।
यदह बातनक मो मन बसौ सदा बबहारीलाल।।
6. रसिान के दोहे
प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम ि जाित कोइ।
जो जि जािै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥
कमल तंतु सो छीि अरु, कठिि खड़ग की धार।
अनत सूधो टढ़ौ बहुरर, प्रेमपंथ अनिवार॥
काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सयय।
इि सबह ं ते प्रेम है, परे कहत मुनिवयय॥
बबि गुि जोबि रूप धि, बबि स्वारथ ठहत जानि।
सुद्ध कामिा ते रठहत, प्रेम सकल रसखानि॥
अनत सूक्ष्म कोमल अनतठह, अनत पतऱौ अनत दूर।
प्रेम कठिि सब ते सदा, नित इकरस भरपूर॥
7. रहीम के दोहे
नछमा बड़ि को चाठहये, छोटि को उतपात।
कह रह म हरर का घट्य़ौ, जो भृगु मार लात॥1॥
तरुवर फल िठहं खात है, सरवर पपयठह ि पाि।
कठह रह म पर काज ठहत, संपनत सँचठह सुजाि॥2॥
दुख में सुममरि सब करे, सुख में करे ि कोय।
जो सुख में सुममरि करे, तो दुख काहे होय॥3॥
खैर, खूि, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीनत, मदपाि।
रठहमि दाबे ि दबै, जाित सकल जहाि॥4॥
जो रह म ओछो बढै, त़ौ अनत ह इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढो टेढो जाय॥5॥