2. गुलज़ार कȧ ǒऽवेǔणयाँ
१.मां ने ǔजस चांद सी दãहनु कȧ दआु दȣ थी मुझे
आज कȧ रात वह फ़ु टपाथ से देखा मɇने
रात भर रोटȣ नज़र आया है वो चांद मुझे
२.सारा Ǒदन बैठा,मɇ हाथ मɅ लेकर खा़ली कासा(िभ¢ापाऽ)
रात जो गुज़रȣ,चांद कȧ कौड़ȣ डाल गई उसमɅ
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।
३.सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी कȧ
मुःकराए भी,पुरानी Ǒकसी पहचान कȧ ख़ाितर
कल का अख़बार था,बस देख िलया,रख भी Ǒदया।
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3. ४.शोला सा गुज़रता है मेरे ǔजःम से होकर
Ǒकस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को
ितनकɉ का मेरा घर है,कभी आओ तो Èया हो?
५.ज़मीं भी उसकȧ,ज़मी कȧ नेमतɅ उसकȧ
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कǑहये,कभी वो भी अपने घर आयɅ!
६.लोग मेलɉ मɅ भी गुम हो कर िमले हɇ बारहा
दाःतानɉ के Ǒकसी Ǒदलचःप से इक मोड़ पर
यूँ हमेशा के िलये भी Èया ǒबछड़ता है कोई?
७.आप कȧ खा़ितर अगर हम लूट भी लɅ आसमाँ
Èया िमलेगा चंद चमकȧले से शीशे तोड़ के !
चाँद चुभ जायेगा उंगली मɅ तो खू़न आ जायेगा
८.पौ फू टȣ है और Ǒकरणɉ से काँच बजे हɇ
घर जाने का वÈत हआु है,पाँच बजे हɇ
सारȣ शब घǑड़याल ने चौकȧदारȣ कȧ है!
९.बे लगाम उड़ती हɇ कु छ ÉवाǑहशɅ ऐसे Ǒदल मɅ
‘मेÈसीकन’ Ǒफ़ãमɉ मɅ कु छ दौड़ते घोड़े जैसे।
थान पर बाँधी नहȣं जातीं सभी ÉवाǑहशɅ मुझ से।
१०.तमाम सफ़हे Ǒकताबɉ के फड़फडा़ने लगे
हवा धके ल के दरवाजा़ आ गई घर मɅ!
कभी हवा कȧ तरह तुम भी आया जाया करो!!
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4. ११.कभी कभी बाजा़र मɅ यूँ भी हो जाता है
क़ȧमत ठȤक थी,जेब मɅ इतने दाम नहȣं थे
ऐसे हȣ इक बार मɇ तुम को हार आया था।
१२. वह मेरे साथ हȣ था दरू तक मगर इक Ǒदन
जो मुड़ के देखा तो वह दोःत मेरे साथ न था
फटȣ हो जेब तो कु छ िसÈके खो भी जाते हɇ।
१३.वह ǔजस साँस का ǐरँता बंधा हआु था मेरा
दबा के दाँत तले साँस काट दȣ उसने
कटȣ पतंग का मांझा मुहãले भर मɅ लुटा!
१४. कु छ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा
कोई साथ आया था,उÛहɅ ले गया,Ǒफर नहȣं लौटे
शेãफ़ से िनकली Ǒकताबɉ कȧ जगह ख़ाली पड़ȣ है!
१५.इतनी लàबी अंगड़ाई ली लड़कȧ ने
शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा
छाले जैसा चांद पडा़ है उंगली पर!
१६. बुड़ बुड़ करते लÝज़ɉ को िचमटȣ से पकड़ो
फɅ को और मसल दो पैर कȧ ऐड़ȣ से ।
अफ़वाहɉ को खूँ पीने कȧ आदत है।
१७.चूड़ȣ के टकड़ेु थे,पैर मɅ चुभते हȣ खूँ बह िनकला
नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन मɅ
बाप ने कल दाǾ पी के माँ कȧ बाँह मरोड़ȣ थी!
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5. १८.चाँद के माथे पर बचपन कȧ चोट के दाग़ नज़र आते हɇ
रोड़े, प×थर और गु़ãलɉ से Ǒदन भर खेला करता था
बहतु कहा आवारा उãकाओं कȧ संगत ठȤक नहȣं!
१९.कोई सूरत भी मुझे पूरȣ नज़र आती नहȣं
आँख के शीशे मेरे चुटख़े हयेु हɇ कब से
टकड़ɉु टकड़ɉु मɅ सभी लोग िमले हɇ मुझ को!
२०.कोने वाली सीट पे अब दो और हȣ कोई बैठते हɇ
ǒपछले चÛद महȣनɉ से अब वो भी लड़ते रहते हɇ
Èलक[ हɇ दोनɉ,लगता है अब शादȣ करने वाले हɇ
२१. कु छ इस तरह Éयाल तेरा जल उठा Ǒक बस
जैसे दȣया-सलाई जली हो अँधेरे मɅ
अब फूं क भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!
२२.कांटे वाली तार पे Ǒकसने गीले कपड़े टांगे हɇ
ख़ून टपकता रहता है और नाली मɅ बह जाता है
Èयɉ इस फौ़जी कȧ बेवा हर रोज़ ये वदȹ धोती है।
२३. आओ ज़बानɅ बाँट लɅ अब अपनी अपनी हम
न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है।
दो अनपढ़ɉ Ǒक Ǒकतनी मोहÞबत है अदब से
२४.नाप के वÈत भरा जाता है ,रेत घड़ȣ मɅ-
इक तरफ़ खा़ली हो जबǑफर से उलट देते हɇ उसको
उॆ जब ख़×म हो ,Èया मुझ को वो उãटा नहȣं सकता?
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6. २५. तुàहारे हɉठ बहतु खु़ँक खु़ँक रहते हɇ
इÛहȣं लबɉ पे कभी ताज़ा शे’र िमलते थे
ये तुमने हɉठɉ पे अफसाने रख िलये कब से?
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