1. Chapter 7 - गिरिजाकु माि माथुि (प्रश्न अभ्यास)
Question 1:
कवि ने कठिन यथाथथ के पूजन की बात क्यों कही है?
यथाथथ मनुष्य जीवन के संघर्षों का कड़वा सच है। हम यदि जीवन
की कदिनाइयों व िु:खों का सामना न कर उनको अनिेखा करने का
प्रयास करेंगे तो हम स्वयं ककसी मंजजल को प्राप्त नह ं कर सकते।
बीते पलों की स्मृततयों को अपने से चचपकाके रखना और अपने
वतथमान से अंजान हो जाना मनुष्य के ललए मात्र समय की बबाथि के
अलावा और कु छ नह ं है। अपने जीवन में घट रहे कड़वे अनुभवों व
मुजककलों से दृढ़तापूवथक लड़ना ह मनुष्य का प्रथम कर्त्थव्य है अथाथत्
जीवन की कदिनाइयों को यथाथथ भाव से स्वीकार उनसे मुुँह न
मोड़कर उसके प्रतत सकारात्मक भाव से उसका सामना करना
चादहए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक किम उिाया जा सकता
है, नह ं तो सब लमथ्या ह है। इसललए कवव ने यथाथथ के पूजन की
बात कह है।
Question 2:
भाि स्पष्ट कीजजए -
प्रभुता का शिण-बबिंब के िल मृितृष्णा है,
हि चिंठिका में छिपी एक िात कृ ष्णा है।
प्रसिंि - प्रस्तुत पंजतत प्रलसद्ध कवव चगररजाकु मार माथुर द्वारा
रचचत ‘िाया मत िू ना’ नामक कववता से ल गई है।
2. भाि - भाव यह है कक मनुष्य सिैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण
अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता है,उसका मन ववचललत हो
जाता है। जजससे हजारों शंकाओ का जन्म होता है। इसललए उसे इन
प्रभुता के फे रे में न पड़कर स्वयं के ललए उचचत मागथ का चयन
करना चादहए। हर प्रकाशमयी (चाुँिनी) रात के अंिर काल घनेर
रात छु पी होती है। अथाथत् सुख के बाि िुख का आना तय है। इस
सत्य को जानकर स्वयं को तैयार रखना चादहए। िोनों भावों को
समान रुप से जीकर ह हम मागथिशथन कर सकते हैं न कक प्रभुता की
मृगतृष्णा में फुँ सकर।
Question 3:
'िाया' शब्द यहााँ ककस सिंदभथ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे िू ने
के ललए मना क्यों ककया है?
छाया शब्ि से तात्पयथ जीवन की बीती मधुर स्मृततयाुँ हैं। कवव के
अनुसार हमारे जीवन में सुख व िुख कभी एक समान नह ं रहता
परन्तु उनकी मधुर व कड़वी यािें हमारे मजस्तष्क (दिमाग) में
स्मृतत के रुप में हमेशा सुरक्षित रहती हैं। अपने वतथमान के कदिन
पलों को बीते हुए पलों की स्मृतत के साथ जोड़ना हमारे ललए बहुत
कष्टपूणथ हो सकता है। वह मधुर स्मृतत हमें कमजोर बनाकर हमारे
िुख को और भी कष्टिायक बना िेती है। इसललए हमें चादहए कक
उन स्मृततयों को भूलकर अपने वतथमान की सच्चाई को यथाथथ भाव
से स्वीकार कर वतथमान को भूतकाल से अलग रखें।
3. Question 4:
कविता में विशेषण के प्रयोि से शब्दों के अथथ में विशेष प्रभाि पड़ता
है, जैसे कठिन यथाथथ।
कविता मेंआए ऐसे अन्य उदाहिण िााँटकि ललखिए औि यह भी लल
खिए कक इससे शब्दों के अथथ में क्या विलशष्टता पैदा हुई?
(1) िुख िूना
(2) जीववत िण
(3) सुरंग-सुचधयाुँ
(4) एक रात कृ ष्णा
(1) दुि दूना - यहाुँ िुख िूना में िूना (ववशेर्षण) शब्ि के द्वारा िुख
की अचधकता व्यतत की गई है।
(2) जीवित क्षण - जीववत (ववशेर्षण) शब्ि के द्वारा िण को
चलयमान अथाथत् उसके जीवंत होने को दिखाया गया है।
(3) सुििंि-सुगियााँ - सुरंग (ववशेर्षण) शब्ि के द्वारा सुचध (यािों) का
रंग-बबरंगा होना िशाथया गया है।
(4) एक िात कृ ष्णा - एक कृ ष्णा (ववशेर्षण) शब्ि द्वारा रात की
काललमा अथाथत्अंधकार को िशाथया गया है।
Question 5:
'मृितृष्णा' ककसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोि ककस अथथ में हु
आ है?
मृगतृष्णा िो शब्िों से लमलकर बना है मृग व तृष्णा। इसका तात्पयथ
है आुँखों का भ्रम अथाथत् जब कोई चीज वास्तव में न होकर भ्रम की
4. जस्थतत बनाए, उसे मृगतृष्णा कहते हैं। इसका प्रयोग कववता में
प्रभुता की खोज में भटकने के संिभथ में हुआ है। इस तृष्णा में
फुँ सकर मनुष्य दहरन की भाुँतत भ्रम में पड़ा हुआ भटकता रहता है।
Question 6:
'बीती ताठह बबसाि दे आिे की सुगि ले' यह भाि कविता की ककस पिं
जक्त में झलकता है?
क्या हुआ जो खिला फू ल िस-बसिंत जाने पि?
जो न लमला भूल उसे कि तू भविष्य ििण,
इन पंजततयों में 'बीती तादह बबसार िे आगे की सुचध ले' का भाव
झलकता है।
Question 7:
कविता में व्यक्त दुि के कािणों को स्पष्ट कीजजए।
(1) बीती स्मृछतयों का स्मिण - मनुष्य बीते सुखों के पलों में खोया
रहता है। इससे उसके वतथमान में चल रहे संघर्षथ के िणों को काटना
िुखिाई होता है तयोंकक वह इसकी तुलना अपनी सुखि स्मृततयों से
करता है। जो मनुष्य के ललए कष्टकार है और िुख का कारण भी।
(2) यश, िन एििं सम्मान की चाह - मनुष्य अपने जीवन में
यश, धन व सम्मान को पाने के ललए प्रयत्नशील रहता है। यदि वह
यह सब प्राप्त नह ं कर पाता तो िुखी होकर भटकता रहता है। इन
सब की चाह भी उसके िुख का कारण है।
5. (3) प्रभुता की इच्िा - व्यजतत प्रभुता या बड़प्पन में उलझकर स्वयं
को िुखी करता है।