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Chapter 2 - तुलसीदास (प्रश्न अभ्यास)
Question 1:
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के ललए कौ
न-कौन से तकक ददए?
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने पर
ननम्नललखित तकक दिए -
(1) हमें तो यह असाधारण लशव धुनष साधारण धनुष की भााँनत
लगा।
(2) श्री राम को तो ये धनुष, नए धनुष के समान लगा।
(3) श्री राम ने इसे तोडा नह ीं बस उनके छू ते ह धनुष स्वत: टूट
गया।
(4) इस धनुष को तोडते हुए उन्होंने ककसी लाभ व हानन के ववषय में
नह ीं सोचा था।
(5) उन्होंने ऐसे अनेक धनुषों को बालपन में यूाँ ह तोड दिया था।
इसललए यह सोचकर उनसे यह कायक हो गया।
Question 2:
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रततक्रक्रयाएँ हुईं
उनके आधार पर दोनों के स्वभाव
की ववशेषताएँ अपने शब्दों में ललखिए।
परशुराम के क्रोध करने पर श्री राम ने धीरज से काम ललया। उन्होंने
नम्रता पूणक वचनों का सहारा लेकर परशुराम के क्रोध को शाींत करने
का प्रयास ककया। परशुराम जी क्रोधी स्वभाव के थे। श्री राम उनके
क्रोध पर शीतल जल के समान शब्िों व आचरण का आश्रय ले रहे
थे। यह कारण था कक उन्होंने स्वयीं को उनका सेवक बताया व
उनसे अपने ललए आज्ञा करने का ननवेिन ककया। उनकी भाषा
अत्यींत कोमल व मीठी थी और परशुराम के क्रोधधत होने पर भी वह
अपनी कोमलता को नह ीं छोडते थे। इसके ववपर त लक्ष्मण
परशुराम की भााँनत ह क्रोधी स्वभाव के हैं। ननडरता तो जैसे उनके
स्वभाव में कू ट-कू ट कर भर है। इसललए परशुराम का फरसा व
क्रोध उनमें भय उत्पन्न नह ीं कर पाता। लक्ष्मण परशुराम जी के
साथ व्यींग्यपूणक वचनों का सहारा लेकर अपनी बात को उनके समक्ष
प्रस्तुत करते हैं। तननक भी इस बात की परवाह ककए बबना कक
परशुराम कह ीं और क्रोधधत न हो जाएाँ। वे परशुराम के क्रोध को
न्यायपूणक नह ीं मानते। इसललए परशुराम के अन्याय के ववरोध में
िडे हो जाते हैं। जहााँ राम ववनम्र, धैयकवान, मृिुभाषी व बुद्धधमान
व्यक्तत हैं वह ीं िूसर ओर लक्ष्मण ननडर, साहसी, क्रोधी तथा
अन्याय ववरोधी स्वभाव के हैं। ये िोनों गुण इन्हें अपने-अपने स्थान
पर उच्च स्थान प्राप्त करवाते हैं।
Question 3:
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा
लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में ललखिए।
लक्ष्मण - हे मुनन! बचपन में हमने िेल-िेल में ऐसे बहुत से धनुष
तोडे हैं तब तो आप कभी क्रोधधत नह ीं हुए थे। कफर इस धनुष के
टूटने पर इतना क्रोध तयों कर रहे हैं?
परशुराम - अरे, राजपुत्र! तू काल के वश में आकर ऐसा बोल रहा है।
यह लशव जी का धनुष है।
Question 4:
परशुराम ने अपने ववषय में सभा में क्या-
क्या कहा, तनम्न पदयांश के आधार पर ललखिए -
बाल ब्रह्मचारी अतत कोही। बबस्वबबददत क्षबियकु ल द्रोही||
भुजबल भूलम भूप बबनु कीन्ही। बबपुल बार मदहदेवन्ह दीन्ही||
सहसबाहुभुज छेदतनहारा। परसु बबलोकु महीपकु मारा||
मातु वपतदह जतन सोचबस करलस महीसक्रकसोर।
गभकन्ह के अभकक दलन परसु मोर अतत घोर||
परशुराम ने अपने ववषय में ये कहा कक वे बाल ब्रह्मचार हैं और
क्रोधी स्वभाव के हैं। समस्त ववश्व में क्षबत्रय कु ल के ववद्रोह के रुप
में ववख्यात हैं। वे आगे, बढे अलभमान से अपने ववषय में बताते हुए
कहते हैं कक उन्होंने अनेकों बार पृथ्वी को क्षबत्रयों से ववह न कर इस
पृथ्वी को ब्राह्मणों को िान में दिया है और अपने हाथ में धारण इस
फरसे से सहस्त्रबाहु के बाहों को काट डाला है। इसललए हे नरेश पुत्र!
मेरे इस फरसे को भल भााँनत िेि ले।राजकु मार! तू तयों अपने
माता-वपता को सोचने पर वववश कर रहा है। मेरे इस फरसे की
भयानकता गभक में पल रहे लशशुओीं को भी नष्ट कर िेती है।
Question 5:
लक्ष्मण ने वीर योदधा की क्या-क्या ववशेषताएँ बताई?
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की ननम्नललखित ववशेषताएाँ बताई है -
(1) वीर पुरुष स्वयीं अपनी वीरता का बिान नह ीं करते अवपतु
वीरता पूणक कायक स्वयीं वीरों का बिान करते हैं।
(2) वीर पुरुष स्वयीं पर कभी अलभमान नह ीं करते। वीरता का व्रत
धारण करने वाले वीर पुरुष धैयकवान और क्षोभरदहत होते हैं।
(3) वीर पुरुष ककसी के ववरुद्ध गलत शब्िों का प्रयोग नह ीं करते।
अथाकत् िूसरों को सिैव समान रुप से आिर व सम्मान िेते हैं।
(4) वीर पुरुष ि न-ह न, ब्राह्मण व गायों, िुबकल व्यक्ततयों पर
अपनी वीरता का प्रिशकन नह ीं करते हैं। उनसे हारना व उनको
मारना वीर पुरुषों के ललए वीरता का प्रिशकन न होकर पाप का
भागीिार होना है।
(5) वीर पुरुषों को चादहए कक अन्याय के ववरुद्ध हमेशा ननडर भाव
से िडे रहे।
(6) ककसी के ललकारने पर वीर पुरुष कभी पीछे किम नह ीं रिते
अथाकत् वह यह नह ीं िेिते कक उनके आगे कौन है वह ननडरता पूवकक
उसका जवाब िेते हैं।
Question 6:
साहस और शक्क्त के साथ ववनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर
अपने ववचार ललखिए।
साहस और शक्तत ये िो गुण एक व्यक्तत को (वीर) श्रेष्ठ बनाते हैं।
यदि ककसी व्यक्तत में साहस ववद्यमान है तो शक्तत स्वयीं ह उसके
आचरण में आ जाएगी परन्तु जहााँ तक एक व्यक्तत को वीर बनाने
में सहायक गुण होते हैं वह ीं िूसर ओर इनकी अधधकता एक
व्यक्तत को अलभमानी व उद्िींड बना िेती है। कारणवश या अकारण
ह वे इनका प्रयोग करने लगते हैं। परन्तु यदि ववन्रमता इन गुणों के
साथ आकर लमल जाती है तो वह उस व्यक्तत को श्रेष्ठतम वीर की
श्रेणी में ला िेती है जो साहस और शक्तत में अहींकार का समावेश
करती है। ववनम्रता उसमें सिाचार व मधुरता भर िेती है,वह ककसी
भी क्स्थनत को सरलता पूवकक शाींत कर सकती है। जहााँ परशुराम जी
साहस व शक्तत का सींगम है। वह ीं राम ववनम्रता, साहस व शक्तत
का सींगम है। उनकी ववनम्रता के आगे परशुराम जी के अहींकार को
भी नतमस्तक होना पडा नह ीं तो लक्ष्मण जी के द्वारा परशुराम जी
को शाींत करना सम्भव नह ीं था।
Question 7:
भाव स्पष्ट कीक्जए -
(क) बबहलस लिनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||
पुतन पुतन मोदह देिाव कु ठारू। चहत उड़ावन फूँ क्रक पहारू||
(ि) इहाँ कु म्हड़बततया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरर जाहीं||
देखि कु ठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सदहत अलभमाना||
(ग) गाधधसू नु कह हृदय हलस मुतनदह हररयरे सूझ।
अयमय िाँड़ न ऊिमय अजहुँ न बूझ अबूझ||
(क) बबहलस लिनु बोले मृिु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||
पुनन पुनन मोदह िेिाव कु ठारू। चहत उडावन फूाँ कक पहारू||
प्रसंग - प्रस्तुत पींक्ततयााँ तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस
से ल गई हैं। उतत पींक्ततयों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के
बोले हुए अपशब्िों का प्रनतउत्तर दिया गया है।
भाव - भाव यह है कक लक्ष्मण जी मुस्कराते हुए मधुर वाणी में
परशुराम पर व्यींग्य कसते हुए कहते हैं कक हे मुनन आप अपने
अलभमान के वश में हैं। मैं इस सींसार का श्रेष्ठ योद्धा हूाँ। आप मुझे
बार-बार अपना फरसा दििाकर डरा रहे हैं। आपको िेिकर तो ऐसा
लगता है मानो फूाँ क से पहाड उडाने का प्रयास कर रहे हों। अथाकत्
क्जस तरह एक फूाँ क से पहाड नह ीं उड सकता उसी प्रकार मुझे
बालक समझने की भूल मत ककक्जए कक मैं आपके इस फरसे को
िेिकर डर जाऊाँ गा।
(ि) इहााँ कु म्हडबनतया कोउ नाह ीं। जे तरजनी िेखि मरर जाह ीं||
िेखि कु ठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सदहत अलभमाना||
प्रसंग - प्रस्तुत पींक्ततयााँ तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस
से ल गई हैं। उतत पींक्ततयों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के
बोले हुए अपशब्िों का प्रनतउत्तर दिया गया है।
भाव - भाव यह है कक लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अलभमान का
पररचय िेते हुए कहते हैं कक हम भी कोई कु म्हडबनतया नह ीं है जो
ककसी की भी तजकनी िेिकर मुरझा जाएाँ। मैंने फरसे और धनुष-
बाण को अच्छी तरह से िेि ललया है। इसललए ये सब आपसे
अलभमान सदहत कह रहा हूाँ। अथाकत् हम कोमल पुष्पों की भााँनत नह ीं
हैं जो ज़रा से छू ने मात्र से ह मुरझा जाते हैं। हम बालक अवश्य हैं
परन्तु फरसे और धनुष-बाण हमने भी बहुत िेिे हैं इसललए हमें
नािान बालक समझने का प्रयास न करें।
(ग) गाधधसू नु कह हृिय हलस मुननदह हररयरे सूझ।
अयमय िााँड न ऊिमय अजहुाँ न बूझ अबूझ||
प्रसंग - प्रस्तुत पींक्ततयााँ तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस
से ल गई हैं। उतत पींक्ततयााँ में परशुराम जी द्वारा बोले गए वचनों
को सुनकर ववश्वालमत्र मन ह मन परशुराम जी की बुद्धध और
समझ पर तरस िाते हैं।
भाव - भाव यह है कक ववश्वालमत्र अपने हृिय में मुस्कु राते हुए
परशुराम की बुद्धध पर तरस िाते हुए मन ह मन कहते हैं कक
गधध-पुत्र अथाकत् परशुराम जी को चारों ओर हरा ह हरा दििाई िे
रहा है तभी तो वह िशरथ पुत्रों को (राम व लक्ष्मण) साधारण क्षबत्रय
बालकों की तरह ह ले रहे हैं। क्जन्हें ये गन्ने की िााँड समझ रहे हैं वे
तो लोहे से बनी तलवार (िडग) की भााँनत हैं। अथाकत्वे भगवान
ववष्णु के रुप राम व लक्ष्मण को साधारण मानव बालकों की भााँनत
ले रहे हैं। वे ये नह ीं जानते कक क्जन्हें वह गन्ने की िााँड की तरह
कमज़ोर समझ रहे हैं पल भर में वे इनको अपने फरसे से काट
डालेंगे। यह नह ीं जानते कक ये लोहे से बनी तलवार की भााँनत हैं। इस
समय परशुराम की क्स्थनत सावन के अींधे की भााँनत हो गई है।
क्जन्हें चारों ओर हरा ह हरा दििाई िे रहा है अथाकत्उनकी समझ
अभी क्रोध व अहींकार के वश में है।
Question 8:
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदयक पर दस पंक्क्तयाँ ललखिए।
तुलसीिास द्वारा ललखित रामचररतमानस अवधी भाषा में ललिी
गई है। यह काव्याींश रामचररतमानस के बालकाींड से ल गई है।
इसमें अवधी भाषा का शुद्ध रुप में प्रयोग िेिने को लमलता है।
तुलसीिास ने इसमें िोहा, छींि, चौपाई का बहुत ह सुींिर प्रयोग
ककया है। क्जसके कारण काव्य के सौंियक तथा आनींि में वृद्धध हुई है
और भाषा में लयबद्धता बनी रह है। तुलसीिास जी ने अलींकारो के
सट क प्रयोग से इसकी भाषा को और भी सुींिर व सींगीतात्मक बना
दिया है। इसकी भाषा में अनुप्रास अलींकार, रुपक अलींकार,उत्प्रेक्षा
अलींकार, व पुनरुक्तत अलींकार की अधधकता लमलती है। इस
काव्यााँश की भाषा में व्यींग्यात्मकता का सुींिर सींयोजन हुआ है।
Question 9:
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदयक है। उदाहरण के साथ स्प
ष्ट कीक्जए।
तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस के इस काींव्यााँश में
तुलसीिास जी ने लक्ष्मण जी के माध्यम से स्थान-स्थान पर व्यींग्य
का अनूठा प्रयोग ककया है। उिाहरण के ललए -
(1) बहु धनुही तोरी लररकाईं। कबहुँ न अलस ररस कीक्न्ह गोसाईं||
लक्ष्मण जी परशुराम जी से धनुष को तोडने का व्यींग्य करते हुए
कहते हैं कक हमने अपने बालपन में ऐसे अनेकों धनुष तोडे हैं तब
हम पर कभी क्रोध नह ीं ककया।
(2) गाधधसू नु कह हृदय हलस मुतनदह हररयरे सूझ।
अयमय िाँड़ न ऊिमय अजहुँ न बूझ अबूझ||
यहााँ ववश्वालमत्र जी परशुराम की बुद्धध पर मन ह मन व्यींग्य
कसते हैं और मन ह मन कहते हैं कक परशुराम जी राम, लक्ष्मण को
साधारण बालक समझ रहे हैं। उन्हें तो चारों ओर हरा ह हरा सूझ
रहा है जो लोहे की तलवार को गन्ने की िााँड से तुलना कर रहे हैं।
Question 10:
तनम्नललखित पंक्क्तयों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर ललखिए -
(क) बालकु बोलल बधौं नदह तोही।
(ि) कोदट कु ललस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोदह लाधग बोलावा||
(घ) लिन उतर आहुतत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकु लभानु||
(क) बालकु बोलल बधौं नदह तोही।
अनुप्रास अलंकार - उतत पींक्तत में 'ब' वणक की एक से अधधक बार
आवृवत्त हुई है, इसललए यहााँ अनुप्रास अलींकार है।
(ि) कोदट कु ललस सम बचनु तुम्हारा।
(1) अनुप्रास अलंकार - उतत पींक्तत में 'क' वणक की एक से अधधक
बार आवृवत्त हुई है, इसललए यहााँ अनुप्रास अलींकार है।
(2) उपमा अलंकार - कोदट कु ललस सम बचनु में उपमा अलींकार है।
तयोंकक परशुराम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान बताया
गया है।
(ग)तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोदह लाधग बोलावा||
(1) उत्प्प्रेक्षा अलंकार - 'काल हााँक जनु लावा' में उत्प्रेक्षा अलींकार है।
यहााँ जनु उत्प्रेक्षा का वाचक शब्ि है।
(2) पुनरुक्क्त प्रकाश अलंकार - 'बार-बार' में पुनरुक्तत प्रकाश
अलींकार है। तयोंकक बार शब्ि की िो बार आवृवत्त हुई पर अथक
लभन्नता नह ीं है।
(घ)लिन उतर आहुतत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकु लभानु||
(1) उपमा अलंकार
(i) उतर आहुनत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु में उपमा अलींकार है
(ii) जल सम बचन में भी उपमा अलींकार है तयोंकक भगवान राम के
मधुर वचन जल के समान कायक रहे हैं।
(2) रुपक अलंकार - रघुकु लभानु में रुपक अलींकार है यहााँ श्री राम
को रघुकु ल का सूयक कहा गया है। श्री राम के गुणों की समानता सूयक
से की गई है।

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तुलसीदास

  • 1. Chapter 2 - तुलसीदास (प्रश्न अभ्यास) Question 1: परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के ललए कौ न-कौन से तकक ददए? परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने पर ननम्नललखित तकक दिए - (1) हमें तो यह असाधारण लशव धुनष साधारण धनुष की भााँनत लगा। (2) श्री राम को तो ये धनुष, नए धनुष के समान लगा। (3) श्री राम ने इसे तोडा नह ीं बस उनके छू ते ह धनुष स्वत: टूट गया। (4) इस धनुष को तोडते हुए उन्होंने ककसी लाभ व हानन के ववषय में नह ीं सोचा था। (5) उन्होंने ऐसे अनेक धनुषों को बालपन में यूाँ ह तोड दिया था। इसललए यह सोचकर उनसे यह कायक हो गया। Question 2: परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रततक्रक्रयाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की ववशेषताएँ अपने शब्दों में ललखिए। परशुराम के क्रोध करने पर श्री राम ने धीरज से काम ललया। उन्होंने नम्रता पूणक वचनों का सहारा लेकर परशुराम के क्रोध को शाींत करने
  • 2. का प्रयास ककया। परशुराम जी क्रोधी स्वभाव के थे। श्री राम उनके क्रोध पर शीतल जल के समान शब्िों व आचरण का आश्रय ले रहे थे। यह कारण था कक उन्होंने स्वयीं को उनका सेवक बताया व उनसे अपने ललए आज्ञा करने का ननवेिन ककया। उनकी भाषा अत्यींत कोमल व मीठी थी और परशुराम के क्रोधधत होने पर भी वह अपनी कोमलता को नह ीं छोडते थे। इसके ववपर त लक्ष्मण परशुराम की भााँनत ह क्रोधी स्वभाव के हैं। ननडरता तो जैसे उनके स्वभाव में कू ट-कू ट कर भर है। इसललए परशुराम का फरसा व क्रोध उनमें भय उत्पन्न नह ीं कर पाता। लक्ष्मण परशुराम जी के साथ व्यींग्यपूणक वचनों का सहारा लेकर अपनी बात को उनके समक्ष प्रस्तुत करते हैं। तननक भी इस बात की परवाह ककए बबना कक परशुराम कह ीं और क्रोधधत न हो जाएाँ। वे परशुराम के क्रोध को न्यायपूणक नह ीं मानते। इसललए परशुराम के अन्याय के ववरोध में िडे हो जाते हैं। जहााँ राम ववनम्र, धैयकवान, मृिुभाषी व बुद्धधमान व्यक्तत हैं वह ीं िूसर ओर लक्ष्मण ननडर, साहसी, क्रोधी तथा अन्याय ववरोधी स्वभाव के हैं। ये िोनों गुण इन्हें अपने-अपने स्थान पर उच्च स्थान प्राप्त करवाते हैं। Question 3: लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में ललखिए।
  • 3. लक्ष्मण - हे मुनन! बचपन में हमने िेल-िेल में ऐसे बहुत से धनुष तोडे हैं तब तो आप कभी क्रोधधत नह ीं हुए थे। कफर इस धनुष के टूटने पर इतना क्रोध तयों कर रहे हैं? परशुराम - अरे, राजपुत्र! तू काल के वश में आकर ऐसा बोल रहा है। यह लशव जी का धनुष है। Question 4: परशुराम ने अपने ववषय में सभा में क्या- क्या कहा, तनम्न पदयांश के आधार पर ललखिए - बाल ब्रह्मचारी अतत कोही। बबस्वबबददत क्षबियकु ल द्रोही|| भुजबल भूलम भूप बबनु कीन्ही। बबपुल बार मदहदेवन्ह दीन्ही|| सहसबाहुभुज छेदतनहारा। परसु बबलोकु महीपकु मारा|| मातु वपतदह जतन सोचबस करलस महीसक्रकसोर। गभकन्ह के अभकक दलन परसु मोर अतत घोर|| परशुराम ने अपने ववषय में ये कहा कक वे बाल ब्रह्मचार हैं और क्रोधी स्वभाव के हैं। समस्त ववश्व में क्षबत्रय कु ल के ववद्रोह के रुप में ववख्यात हैं। वे आगे, बढे अलभमान से अपने ववषय में बताते हुए कहते हैं कक उन्होंने अनेकों बार पृथ्वी को क्षबत्रयों से ववह न कर इस पृथ्वी को ब्राह्मणों को िान में दिया है और अपने हाथ में धारण इस फरसे से सहस्त्रबाहु के बाहों को काट डाला है। इसललए हे नरेश पुत्र! मेरे इस फरसे को भल भााँनत िेि ले।राजकु मार! तू तयों अपने माता-वपता को सोचने पर वववश कर रहा है। मेरे इस फरसे की
  • 4. भयानकता गभक में पल रहे लशशुओीं को भी नष्ट कर िेती है। Question 5: लक्ष्मण ने वीर योदधा की क्या-क्या ववशेषताएँ बताई? लक्ष्मण ने वीर योद्धा की ननम्नललखित ववशेषताएाँ बताई है - (1) वीर पुरुष स्वयीं अपनी वीरता का बिान नह ीं करते अवपतु वीरता पूणक कायक स्वयीं वीरों का बिान करते हैं। (2) वीर पुरुष स्वयीं पर कभी अलभमान नह ीं करते। वीरता का व्रत धारण करने वाले वीर पुरुष धैयकवान और क्षोभरदहत होते हैं। (3) वीर पुरुष ककसी के ववरुद्ध गलत शब्िों का प्रयोग नह ीं करते। अथाकत् िूसरों को सिैव समान रुप से आिर व सम्मान िेते हैं। (4) वीर पुरुष ि न-ह न, ब्राह्मण व गायों, िुबकल व्यक्ततयों पर अपनी वीरता का प्रिशकन नह ीं करते हैं। उनसे हारना व उनको मारना वीर पुरुषों के ललए वीरता का प्रिशकन न होकर पाप का भागीिार होना है। (5) वीर पुरुषों को चादहए कक अन्याय के ववरुद्ध हमेशा ननडर भाव से िडे रहे। (6) ककसी के ललकारने पर वीर पुरुष कभी पीछे किम नह ीं रिते अथाकत् वह यह नह ीं िेिते कक उनके आगे कौन है वह ननडरता पूवकक उसका जवाब िेते हैं। Question 6:
  • 5. साहस और शक्क्त के साथ ववनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने ववचार ललखिए। साहस और शक्तत ये िो गुण एक व्यक्तत को (वीर) श्रेष्ठ बनाते हैं। यदि ककसी व्यक्तत में साहस ववद्यमान है तो शक्तत स्वयीं ह उसके आचरण में आ जाएगी परन्तु जहााँ तक एक व्यक्तत को वीर बनाने में सहायक गुण होते हैं वह ीं िूसर ओर इनकी अधधकता एक व्यक्तत को अलभमानी व उद्िींड बना िेती है। कारणवश या अकारण ह वे इनका प्रयोग करने लगते हैं। परन्तु यदि ववन्रमता इन गुणों के साथ आकर लमल जाती है तो वह उस व्यक्तत को श्रेष्ठतम वीर की श्रेणी में ला िेती है जो साहस और शक्तत में अहींकार का समावेश करती है। ववनम्रता उसमें सिाचार व मधुरता भर िेती है,वह ककसी भी क्स्थनत को सरलता पूवकक शाींत कर सकती है। जहााँ परशुराम जी साहस व शक्तत का सींगम है। वह ीं राम ववनम्रता, साहस व शक्तत का सींगम है। उनकी ववनम्रता के आगे परशुराम जी के अहींकार को भी नतमस्तक होना पडा नह ीं तो लक्ष्मण जी के द्वारा परशुराम जी को शाींत करना सम्भव नह ीं था। Question 7: भाव स्पष्ट कीक्जए - (क) बबहलस लिनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी|| पुतन पुतन मोदह देिाव कु ठारू। चहत उड़ावन फूँ क्रक पहारू|| (ि) इहाँ कु म्हड़बततया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरर जाहीं|| देखि कु ठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सदहत अलभमाना||
  • 6. (ग) गाधधसू नु कह हृदय हलस मुतनदह हररयरे सूझ। अयमय िाँड़ न ऊिमय अजहुँ न बूझ अबूझ|| (क) बबहलस लिनु बोले मृिु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी|| पुनन पुनन मोदह िेिाव कु ठारू। चहत उडावन फूाँ कक पहारू|| प्रसंग - प्रस्तुत पींक्ततयााँ तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस से ल गई हैं। उतत पींक्ततयों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्िों का प्रनतउत्तर दिया गया है। भाव - भाव यह है कक लक्ष्मण जी मुस्कराते हुए मधुर वाणी में परशुराम पर व्यींग्य कसते हुए कहते हैं कक हे मुनन आप अपने अलभमान के वश में हैं। मैं इस सींसार का श्रेष्ठ योद्धा हूाँ। आप मुझे बार-बार अपना फरसा दििाकर डरा रहे हैं। आपको िेिकर तो ऐसा लगता है मानो फूाँ क से पहाड उडाने का प्रयास कर रहे हों। अथाकत् क्जस तरह एक फूाँ क से पहाड नह ीं उड सकता उसी प्रकार मुझे बालक समझने की भूल मत ककक्जए कक मैं आपके इस फरसे को िेिकर डर जाऊाँ गा। (ि) इहााँ कु म्हडबनतया कोउ नाह ीं। जे तरजनी िेखि मरर जाह ीं|| िेखि कु ठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सदहत अलभमाना|| प्रसंग - प्रस्तुत पींक्ततयााँ तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस से ल गई हैं। उतत पींक्ततयों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्िों का प्रनतउत्तर दिया गया है। भाव - भाव यह है कक लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अलभमान का पररचय िेते हुए कहते हैं कक हम भी कोई कु म्हडबनतया नह ीं है जो
  • 7. ककसी की भी तजकनी िेिकर मुरझा जाएाँ। मैंने फरसे और धनुष- बाण को अच्छी तरह से िेि ललया है। इसललए ये सब आपसे अलभमान सदहत कह रहा हूाँ। अथाकत् हम कोमल पुष्पों की भााँनत नह ीं हैं जो ज़रा से छू ने मात्र से ह मुरझा जाते हैं। हम बालक अवश्य हैं परन्तु फरसे और धनुष-बाण हमने भी बहुत िेिे हैं इसललए हमें नािान बालक समझने का प्रयास न करें। (ग) गाधधसू नु कह हृिय हलस मुननदह हररयरे सूझ। अयमय िााँड न ऊिमय अजहुाँ न बूझ अबूझ|| प्रसंग - प्रस्तुत पींक्ततयााँ तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस से ल गई हैं। उतत पींक्ततयााँ में परशुराम जी द्वारा बोले गए वचनों को सुनकर ववश्वालमत्र मन ह मन परशुराम जी की बुद्धध और समझ पर तरस िाते हैं। भाव - भाव यह है कक ववश्वालमत्र अपने हृिय में मुस्कु राते हुए परशुराम की बुद्धध पर तरस िाते हुए मन ह मन कहते हैं कक गधध-पुत्र अथाकत् परशुराम जी को चारों ओर हरा ह हरा दििाई िे रहा है तभी तो वह िशरथ पुत्रों को (राम व लक्ष्मण) साधारण क्षबत्रय बालकों की तरह ह ले रहे हैं। क्जन्हें ये गन्ने की िााँड समझ रहे हैं वे तो लोहे से बनी तलवार (िडग) की भााँनत हैं। अथाकत्वे भगवान ववष्णु के रुप राम व लक्ष्मण को साधारण मानव बालकों की भााँनत ले रहे हैं। वे ये नह ीं जानते कक क्जन्हें वह गन्ने की िााँड की तरह कमज़ोर समझ रहे हैं पल भर में वे इनको अपने फरसे से काट डालेंगे। यह नह ीं जानते कक ये लोहे से बनी तलवार की भााँनत हैं। इस समय परशुराम की क्स्थनत सावन के अींधे की भााँनत हो गई है।
  • 8. क्जन्हें चारों ओर हरा ह हरा दििाई िे रहा है अथाकत्उनकी समझ अभी क्रोध व अहींकार के वश में है। Question 8: पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदयक पर दस पंक्क्तयाँ ललखिए। तुलसीिास द्वारा ललखित रामचररतमानस अवधी भाषा में ललिी गई है। यह काव्याींश रामचररतमानस के बालकाींड से ल गई है। इसमें अवधी भाषा का शुद्ध रुप में प्रयोग िेिने को लमलता है। तुलसीिास ने इसमें िोहा, छींि, चौपाई का बहुत ह सुींिर प्रयोग ककया है। क्जसके कारण काव्य के सौंियक तथा आनींि में वृद्धध हुई है और भाषा में लयबद्धता बनी रह है। तुलसीिास जी ने अलींकारो के सट क प्रयोग से इसकी भाषा को और भी सुींिर व सींगीतात्मक बना दिया है। इसकी भाषा में अनुप्रास अलींकार, रुपक अलींकार,उत्प्रेक्षा अलींकार, व पुनरुक्तत अलींकार की अधधकता लमलती है। इस काव्यााँश की भाषा में व्यींग्यात्मकता का सुींिर सींयोजन हुआ है। Question 9: इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदयक है। उदाहरण के साथ स्प ष्ट कीक्जए। तुलसीिास द्वारा रधचत रामचररतमानस के इस काींव्यााँश में तुलसीिास जी ने लक्ष्मण जी के माध्यम से स्थान-स्थान पर व्यींग्य का अनूठा प्रयोग ककया है। उिाहरण के ललए - (1) बहु धनुही तोरी लररकाईं। कबहुँ न अलस ररस कीक्न्ह गोसाईं||
  • 9. लक्ष्मण जी परशुराम जी से धनुष को तोडने का व्यींग्य करते हुए कहते हैं कक हमने अपने बालपन में ऐसे अनेकों धनुष तोडे हैं तब हम पर कभी क्रोध नह ीं ककया। (2) गाधधसू नु कह हृदय हलस मुतनदह हररयरे सूझ। अयमय िाँड़ न ऊिमय अजहुँ न बूझ अबूझ|| यहााँ ववश्वालमत्र जी परशुराम की बुद्धध पर मन ह मन व्यींग्य कसते हैं और मन ह मन कहते हैं कक परशुराम जी राम, लक्ष्मण को साधारण बालक समझ रहे हैं। उन्हें तो चारों ओर हरा ह हरा सूझ रहा है जो लोहे की तलवार को गन्ने की िााँड से तुलना कर रहे हैं। Question 10: तनम्नललखित पंक्क्तयों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर ललखिए - (क) बालकु बोलल बधौं नदह तोही। (ि) कोदट कु ललस सम बचनु तुम्हारा। (ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोदह लाधग बोलावा|| (घ) लिन उतर आहुतत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकु लभानु|| (क) बालकु बोलल बधौं नदह तोही। अनुप्रास अलंकार - उतत पींक्तत में 'ब' वणक की एक से अधधक बार आवृवत्त हुई है, इसललए यहााँ अनुप्रास अलींकार है। (ि) कोदट कु ललस सम बचनु तुम्हारा। (1) अनुप्रास अलंकार - उतत पींक्तत में 'क' वणक की एक से अधधक
  • 10. बार आवृवत्त हुई है, इसललए यहााँ अनुप्रास अलींकार है। (2) उपमा अलंकार - कोदट कु ललस सम बचनु में उपमा अलींकार है। तयोंकक परशुराम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान बताया गया है। (ग)तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोदह लाधग बोलावा|| (1) उत्प्प्रेक्षा अलंकार - 'काल हााँक जनु लावा' में उत्प्रेक्षा अलींकार है। यहााँ जनु उत्प्रेक्षा का वाचक शब्ि है। (2) पुनरुक्क्त प्रकाश अलंकार - 'बार-बार' में पुनरुक्तत प्रकाश अलींकार है। तयोंकक बार शब्ि की िो बार आवृवत्त हुई पर अथक लभन्नता नह ीं है। (घ)लिन उतर आहुतत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकु लभानु|| (1) उपमा अलंकार (i) उतर आहुनत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु में उपमा अलींकार है (ii) जल सम बचन में भी उपमा अलींकार है तयोंकक भगवान राम के मधुर वचन जल के समान कायक रहे हैं। (2) रुपक अलंकार - रघुकु लभानु में रुपक अलींकार है यहााँ श्री राम को रघुकु ल का सूयक कहा गया है। श्री राम के गुणों की समानता सूयक से की गई है।