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स्निग्ध
- 1. स्निग्ध-नपर्श
प्रणाम / नमस्ते – शान्ता शमाा
उदित रवि-किरण िा स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
हो मुदित शतिल बिखेरता मंि-मधुर मुस्िान |
ढ़ाते ही सााँझ शशश िा स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
सलज्ज िु मुदिनी खोलती पलिें हो अतत पुलकित |
हल्िे झोंिों िा, चञ्चल पिन िे , स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
पीलाभ लाली ले नि किसलय उल्लशसत हो झूमता |
दहम-बिन्िु िा, रजनी िे , स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
िोमल पत्ते हररत घास िे , चमिते हीरों से |
िािल िी िौछारों िा अतत स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
उल्लशसत होता तन-मन सहज धरती माता िा |
मधुर गुञ्जन िा, षट्पि िे , स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
स्ििश खो िु सुमािली बिखेरती सुगंधधत िे सर-िण |
हर मौसम िे आितान िा स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
िनता सुगदित हो िषा, चलता सुचारु मनोहर |
िात्सल्यमयी माता िा अत्यन्त स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
होता शशशु में स्फू ततामय हषा िा अद्भुत संचार |
सुसंस्िृ त संतान िा, िृद्धािस्था में, स्स्नग्ध स्पशा पा (िर)
स्िजीिन सफल-सा लगता जग में जनि-जननी िा |
अनुपम भेषज है, एि मात्र, सुव्यिहार- स्स्नग्ध स्पशा ही,
धचरायु, स्िस्थ, सुखमय, संतृप्त जीिन िा आधार ||
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