1. श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण
श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण श्री कृ ष्ण
Shikhar Mandloi
2. मीरा का पररचय
मीराबाई (१५०४-१५५८) कृ ष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवित्री हैं।
उनका जन्म १५०४ ईस्िी में जोधपुर के पास मेड्िा ग्राम मे हुआ
था। कु ड्की में मीरा बाई का नननहाल था। उनके वपिा का नाम
रत्नससिंह था। उनके पनि कुिं िर भोजराज उदयपुर के महाराणा
सािंगा के पुत्र थे। वििाह के कु छ समय बाद ही उनके पनि का
देहान्ि हो गया। पनि की मृत्यु के बाद उन्हे पनि के साथ सिी
करने का प्रयास ककया गया ककन्िु मीरािं इसके सलए िैयार नही हुई।
िे सिंसार की ओर से विरति हो गयीिं और साधु-सिंिों की सिंगनि में
हररकीितन करिे हुए अपना समय व्यिीि करने लगीिं। कु छ समय
बाद उन्होंने घर का त्याग कर ददया और िीथातटन को ननकल गईं।
िे बहुि ददनों िक िृन्दािन में रहीिं और किर द्िाररका चली गईं।
जहााँ सिंिि १५६० ईस्िी में िो भगिान कृ ष्ण कक मूनित मे समा गई
। मीरा बाई ने कृ ष्ण-भक्ति के स्िु ट पदों की रचना की है।
Shikhar Mandloi
3. मीरा के पद
• अब िो हरर नाम लो लागी
• दरद न जाणयािं कोय
• राम रिन धन पायो
• हरर बबन कछू न सुहािै
• झूठी जगमग जोनि
• अब िो मेरा राम
• म्हारे िो गगरधर गोपाल
Shikhar Mandloi
4. अब तो हरर नाम लो लागी
• सब जग को यह माखनचोर, नाम धयो बैरागी।
कहिं छोडी िह मोहन मुरली, कहिं छोडड सब गोपी।
मूिंड मुिंडाई डोरी कहिं बािंधी, माथे मोहन टोपी।
मािु जसुमनि माखन कारन, बािंध्यो जाको पािंि।
स्याम ककशोर भये नि गोरा, चैिन्य िािंको नािंि।
पीिाम्बर को भाि ददखािै, कदट कोपीन कसै।
दास भति की दासी मीरा, रसना कृ ष्ण रटे॥
Shikhar Mandloi
5. दरद न जाणयाां कोय
• हेरी म्हािं दरदे ददिाणी म्हारािं दरद न जाणयािं कोय।
घायल री गि घाइल जाणयािं, दहिडो अगण सिंजोय।
जौहर की गि जौहरी जाणै, तया जाणयािं क्जण खोय।
दरद की मायाां दर दर डोलयािं बैद समलया नदहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर समटािंगािं जब बैद सािंिरो होय॥
Shikhar Mandloi
6. राम रतन धन पायो
• पायो जी म्हे िो रामरिन धन पायो।
बस्िु अमोलक दी म्हारे सिगुरु, ककरपा को अपणायो।
जनम जनम की पूाँजी पाई, जग में सभी खोिायो।
खरचै नदहिं कोई चोर न लेिै, ददन-ददन बढि सिायो।
सि की नाि खेिदहया सिगुरु, भिसागर िर आयो।
मीरा के प्रभु गगरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥
Shikhar Mandloi
7. हरर बबन कछू न सुहावै
• परम सनेही राम की नीनि ओलूिंरी आिै।
राम म्हारे हम हैं राम के , हरर बबन कछू न सुहािै।
आिण कह गए अजहुिं न आये, क्जिडा अनि उकलािै।
िुम दरसण की आस रमैया, कब हरर दरस ददलािै।
चरण किं िल की लगनन लगी ननि, बबन दरसण दुख पािै।
मीरा कूिं प्रभु दरसण दीज्यौ, आिंणद बरणयूिं न जािै॥
Shikhar Mandloi
8. झूठी जगमग जोतत
• आिो सहेलया रली करािं हे, पर घर गािण ननिारर।
झूठा माणणक मोनिया री, झूठी जगमग जोनि।
झूठा सब आभूषण री, सािंगच वपयाजी री पोनि।
झूठा पाट पटिंबरारे, झूठा ददखणी चीर।
सािंची वपयाजी री गूदडी, जामे ननरमल रहे सरीर।
छप्प भोग बुहाई दे है, इन भोगगन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है, अपणो वपयाजी को साग।
देणख बबराणै ननिािंण कूिं हे, तयूिं उपजािै खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें ननपजै चीज।
छैल बबराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
िाके सिंग सीधारिािं हे, भला न कहसी कोइ।
िर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कु क्ष्ट कोइ।
जाके सिंग सीधारिािं है, भला कहै सब लोइ।
अबबनासी सूिं बालिािं हे, क्जपसूिं सािंची प्रीि।
मीरा कूिं प्रभु समलया हे, ऐदह भगनि की रीि॥
Shikhar Mandloi
9. अब तो मेरा राम
• अब िो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
मािा छोडी वपिा छोडे छोडे सगा भाई।
साधु सिंग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सििं देख दौड आई, जगि देख रोई।
प्रेम आिंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में िारग समले, सिंि राम दोई।
सिंि सदा शीश राखूिं, राम हृदय होई॥
अिंि में से ििंि काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीिि मस्ि होई॥
अब िो बाि िै ल गई, जानै सब कोई।
दास मीरा लाल गगरधर, होनी हो सो होई॥
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10. म्हारे तो गगरधर गोपाल
• म्हारे िो गगरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके ससर मोर मुगट मेरो पनि सोई।
िाि माि भ्राि बिंधु आपनो न कोई॥
छााँडड दई कु द्दकक कानन कहा कररहै कोई॥
सिंिन दढग बैदठ बैदठ लोकलाज खोई॥
चुनरीके ककये टूक ओढ लीन्हीिं लोई।
मोिी मूाँगे उिार बनमाला पोई॥
अिंसुिन जू सीिंगच सीिंगच प्रेम बेसल बोई।
अब िो बेल िै ल गई आणाँद िल होई॥
भगनि देणख राजी हुई जगि देणख रोई।
दासी मीरा लाल गगरधर िारो अब मोही॥
Shikhar Mandloi