1. हिन्दू धर्म क
े यि प्रहिद्ध बारि िंवाद, जानकर च ंक जाएं गे!!!!!
आओ जानते िैं हक हिन्दू धर्म र्ें दो लोगों क
े बीच िोने वाले ऐिे क न िे हवश्
व प्रहिद्ध िंवाद िै हजन्हें पढ़कर या िुनकर
लाखों लोगों का जीवन बदल गया िै और हजन्हें पढ़कर दुहनयभार क
े राजनीहतज्ञ, नीहतज्ञ, वैज्ञाहनक, आध्याहर्क और दार्महनकों ने
अपना एक अलग िी धर्म, दर्मन, नीहत और हवज्ञान का हिद्धांत गढ़ा।
यि तय िै हक इन्हें पढ़कर आपकी हजंदगी र्ें र्ांहत, दृढ़ता, हनहभमकता और बुद्धद्ध का हवकाि िोगा। िर् यिां आपक
े हलए ऐिी
जानकारी लाएं िैं हजन्हें जानकार आप हनश्
हचत िी िैरान रि जाएं गे।
पिला िंवाद,अष्टावक्र और जनक िंवाद !!!!!!!!!!
अष्टावक्र दुहनया क
े प्रथर् ऐिे व्यद्धि थे हजन्होंने ित्य को जैिा जाना वैिा कि हदया। न वे कहव थे और न िी दार्महनक।
चािे वे ब्राह्मणों क
े र्ास्त्र िों या श्रर्णों क
े , उन्हें दुहनया क
े हकिी भी र्ास्त्र र्ें कोई रुहच निीं थी। उनका र्ानना था हक
ित्य र्ास्त्रों र्ें निीं हलखा िै। र्ास्त्रों र्ें तो हिद्धांत और हनयर् िैं, ित्य निीं, ज्ञान निीं। ज्ञान तो तुम्हारे भीतर िै।
अष्टावक्र ने जो किा वि 'अष्टावक्र गीता' नार् िे प्रहिद्ध िै। राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु र्ाना था। राजा जनक
और अष्टावक्र क
े बीच जो िंवाद हुआ उिे 'अष्टावक्र गीता' क
े नार् िे जाना जाता िै।
दू िरा िंवाद,श्रीक
ृ ष्ण-अजुमन िंवाद!!!!!!!!!!
हिन्दू धर्म क
े एकर्ात्र धर्मग्रंथ िै वेद। वेदों क
े चार भाग िैं- ऋग, यजु, िार् और अथवम। वेदों क
े िार को उपहनषद किते िैं
और उपहनषदों का िार या हनचोड़ गीता र्ें िैं। उपहनषदों की िंख्या 1000 िे अहधक िै उिर्ें भी 108 प्रर्ुख िैं। गीता क
े
ज्ञान को भगवान श्रीक
ृ ष्ण ने अजुमन िे क
ु रुक्षेत्र र्ें खड़े िोकर हदया था। यि श्रीक
ृ ष्
ण-अजुमन िंवाद नार् िे हवख्
यात िै।
हकिी क
े पाि इतना िर्य निीं िै हक वि वेद या उपहनषद पढ़ें उनक
े हलए गीता िी िबिे उत्तर् धर्मग्रंथ िै। र्िाभारत क
े
18 अध्याय र्ें िे एक भीष्म पवम का हिस्सा िै गीता। गीता को अच्
छे िे िर्झने िे िी आपकी िर्झ र्ें बदलाव आ
जाएगा। धर्म, कर्म, योग, िृहष्ट, युद्ध, जीवन, िंिार आहद की जानकारी िो जाएगी। ििी और गलत की पिचान िोने लगेगी। तब
आपक
े हदर्ाग र्ें स्पष्टता िोगी द्वंद्व निीं। हजिने गीता निीं पढ़ी वि हिन्दू धर्म क
े बारे र्ें िर्ेर्ा गफलत र्ें िी रिेगा।
श्रीक
ृ ष्ण क
े गुरु घोर अंहगरि थे। घोर अंहगरि ने देवकी पुत्र क
ृ ष्ण को जो उपदेर् हदया था विी उपदेर् क
ृ ष्ण गीता र्ें
अजुमन को देते िैं। छांदोग्य उपहनषद र्ें उल्लेख हर्लता िै हक देवकी पुत्र क
ृ ष्
ण घोर अंहगरि क
े हर्ष्य िैं और वे गुरु िे
ऐिा ज्ञान अहजमत करते िैं हजििे हफर क
ु छ भी ज्ञातव्य निीं रि जाता िै।
तीिरा िंवाद,यक्ष-युद्धद्धहिर िंवाद !!!!!!!!
यक्ष और युद्धद्धहिर क
े बीच हुए िंवाद को यक्ष प्रश्न किा जाता िै। यक्ष और युहधहिर क
े बीच जो िंवाद हुआ िै उिे जानने
क
े बाद आप जरूर िैरान रि जाएं गे। यि अध्यात्म, दर्मन और धर्म िे जुड़े प्रश्न िी निीं िै, यि आपकी हजंदगी िे जुड़े प्रश्न
भी िै। आप भी अपने जीवन र्ें क
ु छ प्रश्नों क
े उत्तर ढ
ूंढ िी रिे िोंगे।
भारतीय इहतिाि ग्रंथ र्िाभारत र्ें ‘यक्ष-युहधहिर िंवाद’ नार् िे एक बहु चहचमत प्रकरण िै। िंवाद का हवस्तृत वणमन वनपवम
क
े अध्याय 312 एवं 313 र्ें हदया गया िै। यक्ष ने युद्धद्धहिर िे लगभग 124 िवाल हकए थे। यक्ष ने िवालों की झड़ी लगाकर
युहधहिर की परीक्षा ली। अनेकों प्रकार क
े प्रश्न उनक
े िार्ने रखे और उत्तरों िे िंतुष्ट हुए। अंत र्ें यक्ष ने चार प्रश्न युहधहिर
क
े िर्क्ष रखे हजनका उत्तर देने क
े बाद िी उन्होंने र्ृत पांडवों (अजुमन, भीर्, नक
ु ल और ििदेव) को हजंदा कर हदया था।
यि िवाल जीवन, िंिार, िृहष्ट, ईश्
वर, प्रक
ृ हत, नीहत, ज्ञान, धर्म, स्त्री, बुराई आहद अनेकों हवषयों क
े िंबंहधत थे।
च था िंवाद,लक्ष्मण और रावण िंवाद !!!!!!
प्रभु श्रीरार् क
े तीर िे जब रावण र्रणािन्न अवस्था र्ें िो गया, तब श्रीरार् ने लक्ष्मण िे उिक
े पाि जाकर हर्क्षा लेने को
किा। श्रीरार् की यि बात िुनकर लक्ष्मण चहकत रि गए।
भगवान श्रीरार् ने लक्ष्
र्ण िे किा हक इि िंिार र्ें नीहत, राजनीहत और र्द्धि का र्िान पंहडत रावण अब हवदा िो रिा िै,
तुर् उिक
े पाि जाओ और उििे जीवन की क
ु छ ऐिी हर्क्षा ले लो जो और कोई निीं दे िकता।
2. श्रीरार् की बात र्ानकर लक्ष्मण र्रणािन्न अवस्था र्ें पड़े रावण क
े नजदीक हिर क
े पाि जाकर खड़े िो गए, लेहकन रावण
ने क
ु छ निीं किा। लक्ष्मण ने ल टकर प्रभु श्रीरार् िे किा हक वे तो क
ु छ बोलते िी निीं। तब श्रीरार् ने किा यहद हकिी िे
ज्ञान प्राप्त करना िै तो उिक
े चरणों क
े पाि िाथ जोड़कर खड़े िोना चाहिए, न हक हिर क
े पाि। श्रीरार् ने लक्ष्मण िे
किा, जाओ और रावण क
े चरणों क
े पाि बैठो। यि बात िुनकर लक्ष्मण इि बार रावण क
े चरणों र्ें जाकर बैठ गए। रावण
ने लक्ष्मण को जो िीख दी उिे िभी जानते िैं।
पांचवां िंवाद, अंगद और रावण क
े बीच िंवाद!!!!!
गोस्वार्ी तुलिीदाि क
ृ त र्िाकाव्य श्रीरार्चररतर्ानि क
े लंकाकांड र्ें बाहल पुत्र अंगद रावण की िभा र्ें रावण को िीख देते
हुए बताते िैं हक क न-िे ऐिे 14 दुगुमण िै हजिक
े िोने िे र्नुष्य र्ृतक क
े िर्ान र्ाना जाता िै।
अंगद-रावण क
े बीच जो िंवाद हुआ था वि बहुत िी रोचक था उिे पढ़ने और उिकी व्याख्या जानेने िे व्यद्धि को अपने
जीवन की द्धस्थहत क
े बारे र्ें बहुत क
ु छ ज्ञान िो जाता िै।
छठा िंवाद, यर्राज-नहचक
े ता िंवाद !!!!!!!!!!
वाजश्रविपुत्र नहचक
े ता और र्ृत्यु क
े देवता यर्राज क
े बीच जो िंवाद िोता िै वि हवश्
व का प्रथर् दार्महनक िंवाद र्ाना जा
िकता िै। वाजश्रवि अपने पुत्र को क्रोधवा यर्राज को दान कर देते िैं। नहचक
े ता तब यर्लोक पहुंच जाते िैं।
यर्लोक र्ें उिे वि यर्दू त नहचक
े ता िे किते िैं हक यर्राज इि वि निीं िै। तब नहचक
े ता तीन हदन तक यर्राज की
प्रहतक्षा करते िैं। यर्पुरी क
े द्वार पर बैठा नहचक
े ता बीती बातें िोच रिा था। उिे इि बात का िंतोष था हक वि हपता की
आज्ञा का पालन कर रिा था। लगातार तीन हदन तक वि यर्पुरी क
े बािर बैठा यर्राज की प्रतीक्षा करता रिा। तीिरे हदन
जब यर्राज आए तो वे नहचक
े ता को देखकर च ंक
े ।
जब उन्हें उिक
े बारे र्ें र्ालूर् हुआ तो वे भी आश्चयमचहकत रि गए। अंत र्ें उन्होंने नहचक
े ता को अपने कक्ष र्ें बुला भेजा।
यर्राज क
े कक्ष र्ें पहुंचते िी नहचक
े ता ने उन्हें प्रणार् हकया। उि िर्य उिक
े चेिरे पर अपूवम तेज था। उिे देखकर
यर्राज बोले- 'वत्स, र्ैं तुम्हारी हपतृभद्धि और दृढ़ हनश्चय िे बहुत प्रिन्न हुआ। तुर् र्ुझिे कोई भी तीन वरदान र्ांग िकते
िो।'
िातवां िंवाद, हर्व-पावमती िंवाद !!!!!!!!!
रार्ायण या रार्चररत क
े बालकांड र्ें हर्व-पावमती िंवाद का वणमन हर्लता िै। 'गायत्री-र्ंजरी' र्ें भी 'हर्व-पावमती िंवाद' आता
िै। िर् इि िंवाद की बात निीं कर रिे िैं। भारत क
े कश्मीर राज्य र्ें अर्रनाथ नार्क गुफा िै जिां जून र्ाि र्ें बाबा
अर्रनाथ क
े दर्मन करने क
े हलए िजारों हिन्दू जाते िैं। दरअिल, यि गुफा हर्व और पावमती िंवाद की िाक्षी िै। यिां
भगवान हर्व ने र्ाता पावमती को 'रिस्यर्यी ज्ञान' की हर्क्षा दी थी। इि ज्ञान को हवज्ञान भैरव तंत्र र्ें िंग्रहित हकया गया िै।
हर्व ने अपनी अधाांहगनी पावमती को र्ोक्ष िेतु अर्रनाथ की गुफा र्ें जो ज्ञान हदया, उि ज्ञान की आज अनेकानेक र्ाखाएं िो
चली िैं। वि ज्ञानयोग और तंत्र क
े र्ूल िूत्रों र्ें र्ाहर्ल िै। ‘हवज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐिा ग्रंथ िै हजिर्ें भगवान हर्व द्वारा
पावमती को बताए गए 112 ध्यान िूत्रों का िंकलन िै।
अर्रनाथ क
े अर्ृत वचन :हर्व द्वारा र्ां पावमती को जो ज्ञान हदया गया, वि बहुत िी गूढ़-गंभीर तथा रिस्य िे भरा ज्ञान था।
उि ज्ञान की आज अनेकानेक र्ाखाएं िो चली िैं। वि ज्ञानयोग और तंत्र क
े र्ूल िूत्रों र्ें र्ाहर्ल िै। ‘हवज्ञान भैरव तंत्र’ एक
ऐिा ग्रंथ िै हजिर्ें भगवान हर्व द्वारा पावमती को बताए गए 112 ध्यान िूत्रों का िंकलन िै।
योगर्ास्त्र क
े प्रवतमक भगवान हर्व क
े ‘हवज्ञान भैरव तंत्र’ और ‘हर्व िंहिता’ र्ें उनकी िंपूणम हर्क्षा और दीक्षा िर्ाई हुई िै।
तंत्र क
े अनेक ग्रंथों र्ें उनकी हर्क्षा का हवस्तार हुआ िै। भगवान हर्व क
े योग को तंत्र या वार्योग किते िैं। इिी की एक
र्ाखा िठयोग की िै। भगवान हर्व किते िैं- ‘वार्ो र्ागम: परर्गिनो योहगतार्प्यगम्य:’ अथामत वार् र्ागम अत्यंत गिन िै और
योहगयों क
े हलए भी अगम्य िै। -र्ेरुतंत्र
आठवां िंवाद,याज्ञवल्क्यजी-गागी िंवाद!!!!!!!!!
वृिदारण्यक उपहनषद् र्ें दोनों क
े बीच हुए िंवाद का उल्लेख हर्लता िै। राजा जनक अपने राज्य र्ें र्ास्त्राथम का आयोजन
करते रिते थे। जो भी र्ास्त्राथम र्ें जीत जाता था वि िोने िे लदी गाएं ले जाता था। एक बार क
े आयोजन र्ें याज्ञवल्क्यजी
3. को भी हनर्ंत्रण हर्ला था। तब याज्ञवल्क्यजी ने र्ास्त्राथम िे पिले िी अपने एक हर्ष्य िे किा- बेटा! इन ग ओं को अपने
यिां िांक ले चलो।
ऐिे र्ें िभी ऋहष क्र
ु द्ध िोकर उनिे र्ास्त्राथम करने लगे। याज्ञवल्क्यजी ने िबक
े प्रश्नों का यथाहवहध उत्तर हदया और िभी को
िंतुष्ट कर हदया। उि िभा र्ें ब्रह्मवाहदनी गागी भी बुलायी गयी थी। िबक
े पश्चात् याज्ञवल्क्यजी िे र्ास्त्राथम करने वे उठी।
दोनों क
े बीच जो र्ास्त्राथम हुआ। गागी ने याज्ञवल्क्यजी िे कई प्रश्न हकए। अंत र्ें याज्ञवल्क्य ने किा- गागी! अब इििे आगे
र्त पूछो। इिक
े बाद र्िहषम याज्ञवक्ल्यजी ने यथाथम िुख वेदान्ततत्त्
व िर्झाया, हजिे िुनकर गागी परर् िन्तुष्ट हुई और िब
ऋहषयों िे बोली-भगवन्! याज्ञवल्क्य यथाथम र्ें िच्चे ब्रह्मज्ञानी िैं। ग एं ले जाने का जो उन्होंने िािि हकया वि उहचत िी था।
न वां िंवाद, काक भुर्ुण्डी-गरुड़जी िंवाद !!!!!!!!
काक भुर्ुण्
डी ने पक्षीराज गरुड़जी को रार् की कथा पिले िी िुना दी थी। इिका वणमन िर्ें रार्ायण और रार्चररत र्ानि
र्ें हर्लता िै। हर्वजी र्ाता पावमती िे किते िैं हक इििे पिले यि िुंदर कथा काक भुर्ुण्डी ने गरुड़जी िे किी थी।
रार्चररत र्ानि र्ें काकभुर्ुण्डी ने अपने जन्म की पूवमकथा और कहल र्हिर्ा का वणमन हकया िै। इिका उल्लेख रार्चररत
र्ानि र्ें हर्लता िै।
नारदजी की आज्ञा िे जब भगवान रार् को नागपार् िे छु ड़ाकर गरुड़जी पुन: अपने धार् ल ट रिे िोते िैं तब उनक
े र्न
र्ें र्ंका उत्पन्न िोती िै हक यि क
ै िे भगवान जो एक तुच्छ राक्षि द्वारा फ
ें क
े गए नागपार् िे िी बंध गए? इि र्ंका
िर्ाधान क
े हलए वे नारद िे पूछते िैं। नारदजी उन्हें ब्रह्मा क
े पाि भेज देते िैं। ब्रह्माजी उन्हें हर्वजी क
े पाि भेज देते िैं।
तब हर्वजी ने किा भगवान की र्ाया बताना र्ुश्
हकल िै। एक पक्षी िी एक पक्षी को िर्झा िकता िै अत: तुर् काक
हभर्ुण्डी क
े पाि जाओ। काक भुर्ुण्डी और गरुड़जी क
े बीच जो िंवाद िोता िै वि अतुलनीय िै।
दिवां िंवाद, युहधहिर-भीष्म िंवाद !!!!!!!!!
अंहतर् वि र्ें हपतार्ि भीष्म ने युहधहिर को िर्झाया धर्म का र्र्म। क्या किा भीष्म ने युहधहिर िे जब वे तीरों की र्ैया
पर लेटे हुए थे?
भीष्म यद्यहप र्रर्य्या पर पड़े हुए थे हफर भी उन्होंने श्रीक
ृ ष्ण क
े किने िे युद्ध क
े बाद युहधहिर का र्ोक दू र करने क
े
हलए राजधर्म, र्ोक्षधर्म और आपद्धर्म आहद का र्ूयवान उपदेर् बड़े हवस्तार क
े िाथ हदया। इि उपदेर् को िुनने िे युहधहिर
क
े र्न िे ग्लाहन और पश्
चाताप दू र िो जाता िै। यि उपदेर् र्िाभारत क
े भीष्मस्वगामरोिण पवम र्ें हर्लता िै।
ग्यारिवां िंवाद,धृतराष्टर -हवदुर िंवाद !!!!!!!
र्िाभारत’ की कथा क
े र्ित्वपूणम पात्र हवदुर को क रव-वंर् की गाथा र्ें हवर्ेष स्थान प्राप्त िै। हवदुर िद्धस्तनापुर राज्
य क
े
र्ीषम स््
तंभों र्ें िे एक अत्
यंत नीहतपूणम, न्यायोहचत िलाि देने वाले र्ाने गए िै।
हिन्दू ग्रंथों र्ें हदए जीवन-जगत क
े व्यविार र्ें राजा और प्रजा क
े दाहयत्वों की हवहधवत नीहत की व्याख्या करने वाले
र्िापुरुषों र्ें र्िात्मा हवदुर िुहवख्यात िैं। उनकी हवदुर-नीहत वास्तव र्ें र्िाभारत युद्ध िे पूवम युद्ध क
े पररणार् क
े प्रहत
र्ंहकत िद्धस्तनापुर क
े र्िाराज धृतराष्टर क
े िाथ उनका िंवाद िै।
वास्तव र्ें र्िहषम वेदव्याि रहचत ‘र्िाभारत’ का उद्योग पवम ‘हवदुर नीहत’ क
े रूप र्ें वहणमत िै। र्िाभारत र्ें एक और जिां
र्ित्वपूणम क
ृ ष्ण अजुमन िंवाद, यक्ष युहधष्
हठर िंवाद, धृतराष्टर िंजय िंवाद, भीष्म युद्धद्धहिर िंवाद िै तो दू िरी और धृतराष्ट और
हवदू र का र्ित्वपूणम िंवाद भी वहणमत िै। प्रत्येक हिन्दू को र्िाभारत पढ़ना चाहिए। इि घर र्ें भी रखना चाहिए। जो यि
किता िै हक र्िाभारत घर र्ें रखने िे र्िाभारत िोती िै वि र्ूखम, अज्ञानी या धूतम व्यद्धि हिन्दुओं को अपने धर्म िे दू र
रखना चािता िोगा।
बारिवां िंवाद,आहद र्ंकराचायम-र्ंडन हर्श्र िंवाद!!!!!!!!!!!
आहद र्ंकराचायम देर्भर क
े िाधु-िंतों और हवद्वानों िे र्ास्त्राथम करते करते अंत र्ें प्रहिद्ध हवद्वान र्ंडन हर्श्र क
े गांव पहुंचे
थे। यिां उन्होंने 42 हदनों तक लगातार हुए र्ास्त्राथम हकया हजिकी हनणामयक थीं र्ंडन हर्श्र की पत्नी भारती।
आहद र्ंकराचायम और र्ंडन हर्श्र क
े बीच जो िंवाद हुआ उि िंवाद की बहुत चचाम िोती िै। िालांहक आहद र्ंकराचायम ने
र्ंडन को पराहजत कर तो हदया, पर उनकी पत्नी क
े एक िवाल का जवाब निीं दे पाए और अपनी िार र्ान ली।
4. िालांहक उपरोि क
े अलावा भी और भी िैं लेहकन यिां क
ु छ प्रर्ुख िी प्रस्तुत हकए गए िैं। अगर आप इन बारि िम्वादों र्ें
हकिी िंवाद क
े बारे र्ें हवस्तार िे जानना चािते िैं, तो आप िर्ें िंदेर् क
े द्वारा अवगत करायें।