SlideShare una empresa de Scribd logo
1 de 41
सर्प विष
Dr. Sunil Kumar
Assistant Professor
National College of Ayurveda,
Barwala
Cont. 9569023573
र्रिभाषा :
जाङ्गम प्राणियों में पाये जाने वाले ववष को जाङ्गम
ववष कहा जाता है
Visa found in the animals inhabiting in forests is
termed as Jangama visa.
सर्ाप: कीटोन्दुिा लूता िृश्चिका गृहगोधिकााः ।
जलौकामत्स्यमण्डूका: कणभााः सकृ कण्टकााः ।।
चिससिंहव्याघ्रगोमायुतिक्षुनक
ु लादयाः ।
दिंश्रिणो ये विषिं दिंरटिेत्सथिं जिंगमिं मतम् ।।
(ि.धि. 23/9-10)
जाङ्गम विष क
े अधिरठान
दृश्रट ननाःचिास
दिंरिा नख
मूत्र र्ुिीष
शुक्र लाला्त्राि
आतपि मुखसिंदिंश
विशधिपत तुण्ड
अश््थ वर्त्त
शूक शि
सामान्य लक्षण
ननिंद्रा तन्द्द्रा क्लमिं दाहिं सपाक
िं लोमहषणिम।
शोफ
िं चौवानतसारिं च जनयेज्जिंगमिं ववषम।।
(ि.धि. 23/15)
 गनत
जिंगमिं स्यादधोभागमूध्वणभागिं तु मूलजम।
(ि.धि. 23/17)
सर्प विष
Though found world over, snakes habitat
more in hot and humid climates of tropical
regions and forest belts.
Approximately more than three thousand
species of snakes are documented till date;
among these nearly two hundred and fifty
are found in Indian sub-continent and
approx. fifty of these are poisonous.
India registers nearly one lakh cases of
snake bite per year and causing death of ten
thousand to twenty thousand people. Many
among these,die fearing of snake bite.
र्यापय
दविपकि िसल
नाग र्ातालननलय
विषिि क
ुिं डली
फणी र्न्नग
सर्प भुजिंग
अहह सिीसृर्
दीर्पर्ुच्छ
जीिनकाल
औसत आयु 120 वषष
ननववषष 44 दाढ़ें
14th ददन ववष प्रादुभाषव
7th ददन 4 दाढ़ें
कानतषक में 240 अण्डे देती है
मणण िाली आभा से नि
लिंबी एििं लाल िेखा िाले
से मादा
सशिीष र्ुरर् क
े समान
िाले से नर्ुिंसक
आषाढ़ में गभषधारि
ज्येष्ठ मास में ऋतुमती
नीिे िाम
र्ाचिप
ऊर्ि िाम
र्ाचिप
नीिे
दक्षक्षण
र्ाचिप
ऊर्ि िाम
र्ाचिप
काली र्ीली लाल चयाि
1 बूूँद 2 बूूँद 3 बूूँद 4 बूूँद
भेद
हदव्य
िासुकक
तक्षक
शेषनाग
आहद
भौम
दववषकर 26
मण्डली 22 +4
राजजमान 10 +3
ननववषष 12
वैकरञ्ज 3
दववषकर
• फण युक्त
• िक्र हल क्षत्र एििं ्िश््तक क
े धिन्ह होते है
• अश्नन एििं सूयप की तिह िमकने िाले होते है
• तीव्र गनत युक्त होते है
मण्डली
• फण मिंडलाकाि होता है
• मण्डल क
े धिन्ह युक्त होते है
• मिंद गनत िाले होते है
राजजमान
• श््ननि
• विविि िणप युक्त
• नतयपक िेखाओ से युक्त
विििण
काल
दोष
प्रकोर्
आयु ऋतु
दविपकि हदन में िात तरुणाि्था िषाप काल
मण्डली िात्रत्र क
े
प्रथम,
द्वितीय
एििं तृतीय
प्रहि में
वर्त्त िृद्िाि्था शीत काल
िाश्जमान िात्रत्र क
े
ितुथप प्रहि
में
कफ मध्यमाि्था ग्रीरम काल
ब्राह्मण
क्षत्रत्रय
िैचय
शुद्र
िणप भेद
ब्राह्मि
• पववत्र स्थानों पर ववचरि करने वाले
• फि पर यज्ञोपवीत धारि करने वाले
• मोती एविं चािंदी क
े समान प्रभा से युक्त
• कवपल विष
• चिंदन, बिल्व एविं कमल की सुगिंध युक्त
• आकवषषत
• क्रोधी
क्षबत्रय
• छत्र, चक्र अधषचिंद्र, शिंख क
े चचन्द्हों से युक्त
• पक
े जामुन, खजूर एविं द्राक्षा क
े समान विष वाले
• जस्नग्ध विष
• सूयष एविं चिंद्र की कािंनत से युक्त
• अत्यिंत क्रोधी
• लाल नेत्रो से युक्त
• चमेली, चम्पा, नागक
े शर, अगरू की गिंध से युक्त
वैश्य
• काले रिंग क
े वज्र क
े समान
• लोदहत विष
• शरीर पर बििंदु एविं मण्डल से युक्त
• धूम्र एविं कपोत क
े समान रिंग वाले
• िकरी, भेड़ क
े दुग्ध और घृत क
े समान
गन्द्ध युक्त
शुद्र
• बििंदु एविं रेखा से युक्त शरीर
• रुक्ष शरीर
• ववभभन्द्न रिंग युक्त
• भैंस, हाथी एविं कीचड़ क
े विष से युक्त
• मद्य एविं रक्त की गन्द्ध से युक्त
सलङ्ग भेद
नि मादा नर्ुिंसक
गोल एििं वि्तृत
फण युक्त
सूक्ष्म एििं सिंकीणप
फण युक्त
दोनो क
े सश्ममसलत
लक्षण
विशाल शिीि युक्त
्थूल शिीि से
युक्त
बड़े नेत्र सूक्ष्म नेत्र मिंद विष िाले
ऊर्ि की औि देखने
िाला
नीिे की औि देखने
िाला
नर्ुिंसक डिा हुआ
क्रोि िहहत
सर्प दिंश क
े हेतु
र्ादासभमृरटा दुरटा िा कृ द्िा ग्रासाधथपनोड्वर्
िा।
ते दशश्न्त महाक्रोिाश््त्रविििं भीमदशपनााः।
(सु.क. 4/13-14)
पैरों क
े नीचे दिने से
दुष्ट प्रकृ नत से
क्र
ु द्ध होने से
भोजन की इच्छा से
आहािाथूँ भयात्सर्ाद्र्शाूँदनतविषात्सकृ िाः।
र्ार्ित्ततया िैिादेिवषपयमिोदनात्।
दशश्न्त सर्ाप्तेषूत्सक
िं विषाधिक्यिं यथोत्तिम ्।।
(अ.स.उ. 41/27)
 आहार क
े भलए
 पैरों का स्पशष होने अथवा दि जाने से भय क
े
कारि
 ववष की अचधकता से व्याक
ु ल होकर
 क्र
ु द्ध होने से
 पाप वृनत से
 िदला लेने क
े भलए
 देवता, ऋवष और यम क
े आदेश पर
सर्प दिंश क
े भेद
सवर्पतिं िहदतिं िावर् तृतीयमथ ननविपषम्
सर्ाांगासभहतिं क
े धिहदच्छश्न्त खलु तद्विदाः
सुश्रुत
• सवर्पत (Deep Bite)
• िहदत (Superficial Bite)
• ननविपष (Non Venomous Bite)
वाग्भट्ट
• तुण्डाहत
• व्यालीढ़
• व्यालुप्त
• दरटक
• दिंरिाननर्ीडडत
• दिंश ्थान र्ि 1 या अधिक दािंतों क
े ननशान
होते है
• दिंश ्थान गहिे एििं िक्तयुक्त होते है
• सूक्ष्म एििं शोफयुक्त होते है
सवर्पत
• दिंश ्थान लोहहत, नील, र्ीत एििं चिेत िेखाओिं
से युक्त होते है
• अल्र् विषाक्ता युक्त होते है
िहदत
• दिंश ्थान एक या अनेक धिन्ह से युक्त होते
है
• दिंश ्थान शोथ िहहत होते है
• अल्र् प्रमाण में िक्तदृश्रट
ननविपष
• दिंश ्थान ऊर्िी सतह र्ि होता है।
• दिंश ्थान र्ि दािंतों क
े धिन्ह नही होते।
• लाल्त्राि से दिंश ्थान र्ि गीलार्न
होता है।
तुण्डाहत
• यह दिंश भी सतही होता है।
• दिंश-्थान र्ि एक या दो दाूँतों क धिह्न
तो होते हैं, र्िन्तु उनसे िक्त नहीिं
आता।
• दिंश का िक्त समबन्ि नहीिं हो र्ाता।
व्यालीढ़
• यह दिंश प्रथम दो दिंशों की अर्ेक्षा क
ु छ गहिा
होता है।
• इसमें दो दाूँतों क
े धिह्न औि िक्त का ककिं धित्
रिसाि र्ाया जाता है।
व्यालु
प्त
• यह दिंश व्यालुप्त की अर्ेक्षा गमभीि होता है।
• इसमें दिंश्थान र्ि तीन दािंतों क
े धिह्न तथा
मािंस क
े कट जाने क
े कािण िक्त का अनिित
रिसाि देखने को समलता है।
दरटक
• यह दिंश सिापधिक गमभीि होता है। इसमें िाि
दाूँतों क
े ननशान र्ाये जाते हैं।
• उनसे अनिित िक्तस्राि क
े लक्षण र्ाये जाते हैं।
दिंरिा
ननर्ीडडत
सर्पदिंश क
े सामान्य लक्षण
दिंश्तु सविषाः सिपाः सशोफो िेदनाश्न्िताः।
तुद्यते ग्रधथताः ककश्चित् कण्डूमान् दह्यते भृशम्।।
(अ.सिं.उ. 41/35)
दिंश्थान र्ि शोथ (edema at site)
िेदना (pain)
िुभन (pricking sensation)
गाूँठ (swellings)
खुजली (itching)
अत्सयधिक तीव्र दाह (profuse burning
sensation)
विसशरट लक्षण
 दिीकि सर्पदिंश क
े लक्षण
 दिंश्थान कछ
ु ए की र्ीठ क
े समान ऊर्ि को उठा हुआ
 त्सििा, आूँखें, नाखून, दाूँत, मुख, मूत्र, र्ुिीष औि
दिंश(bite) का ििंग कृ रणिणप (blackish discoloration)
होना
 काला, रूक्ष औि दिंरिाओिं क
े सूक्ष्म धिह्नों से युक्त होता
है।
 शिीि में रूक्षता (dryness)
 सशि में भािीर्न (heaviness)
 सश्न्ियों में िेदना (arthralgia)
 कमि, र्ीठ औि ग्रीिा में दुबपलता (weakness in waist,
back and neck)
 जमभाइयाूँ आना (yawning)
 शिीि में कमर् (tremors)
्ििभिंग (hoarseness of voice)
गले में र्ुि-र्ुि शब्द होना (gurgling sound in
neck)
शिीि का जकड़ जाना (stiffness)
सूखे डकाि आना (dry belching)
कास (cough)
चिास (dyspnea)
हहक्का (hiccough)
िायु का ऊर्ि की ओि गमन (misperistalsis)
शूल क
े कािण ऐिंठन होना (cramps)
तृरणा (thirst)
लालाम्राि (salivation)
 मण्डली सर्पदिंश क
े लक्षण-
1. दिंश्थान र्ीले-लाल िणपिाला
2. त्सििा आहद का ििंग र्ीला र्ड़ना (yellowish discoloration)
3. िोगी को सभी ि्तुएूँ र्ीली नजि आना (yellowish colored vision)
4. िर्टी औि फ
ै लने िाली सूजन
5. ठण्डी ि्तुओिं की असभलाषा (craving for cold articles)
6. सािे शिीि मेंजलन (generalized burning sensation)
7. दाह (burning sensation- localized)
8. तृरणा (thirst)
9. मद (intoxication)
10. मूछाप (fainting)
11. ज्िि (hyperpyrexia)
12. ऊध्िप औि अिो मागों से िक्तस्राि (hemorrhage)
13. मािंस का अिशातन (putrefaction of muscle tissues)
14. शोथ (edema)
15. दिंश्थान का गलना (putrefaction/gangrene at the site)
16. क्रोि शीघ्र आना (short temperedness)
17. ओष-िोषाहद वर्त्तजन्य िेदनाएूँ (pain with burning sensation etc.)
िाश्जमान सर्पदिंश क
े लक्षण
1. दिंशस्थान चचकना, जस्थर, वपजच्छल, और शोफयुक्त होता है।
2. त्वचा आदद का रिंग सफ
े द पड़ जाना (whitish
discoloration)
3. ठण्ड लगकर ज्वर होना (fever with chills)
4. रोमाञ्च (horripilation)
5. स्तब्धता (stiffness)
6. गाढ़े कफ का आना (thick mucus)
7. वमन (vomiting)
8. आणखों में िार-िार कण्डू होना (itching in eyes)
9. कण्ठ में सूजन (edema in throat region)
10. आवाज में घुघुराहट (hoarseness of voice)
11. उच््वास में रुकावट (difficulty in breathing)
12. अन्द्धकार से नघरने जैसी प्रतीनत होना (blackouts)
13. कण्डू आदद श्लैजष्मक वेदनाएण (itching etc.)
सामान्य उर्िाि
 दष्ट प्रािी को चादहए कक वह तुरन्द्त जजस सॉप ने उसे
काटा है उसे काटे।
 भमट्टी क
े ढेले या भमट्टी अथवा कदलीफल, कमलनाल,
कोहड़ा आदद ककसी भी मृदुफल को काटे।
 अववलम्ि मुख की लार या कान क
े मैल का दिंश-स्थान
परलेप करे।
 दिंश-स्थान क
े चार अिंगुल ऊपर अररष्टा-िन्द्धन करे।
 ममष या सजन्द्ध-स्थानों पर जहाण पर अररष्टा-िन्द्धन की
सम्भावना न हो, वहाण दिंशस्थान क
े चारों ओर से दिा-
दिाकर ववष को िाहर ननकालने का प्रयास करे।
 अररष्ट क
े नीचे दिंश-स्थान का उत्कतषन कर आचूषि द्वारा
भी ववष को िाहर ननकालने का प्रयास करना चादहए।
 मािंसल स्थानों में तो अवश्य ही चीरा लगाकर आचूषि
करना चादहए।
 सम्पीड़न से ववष िाहर न ननकले तो मण्डली सपष क
े दिंश
को छोड़कर, अन्द्य सॉपों क
े दिंश-स्थान का स्विष आदद
धातुओिं को अजग्न में तपाकर अथवा जलती लकडी से उसका
दहन कर देना चादहए।
 यदद ववष सम्पूिष शरीर में फ
ै ल गया हो तो भशरावेध
द्वारारक्तमोक्षि कराना चादहए।
 ननकलने से िचा जो रक्त ववष की गमी से शरीर में लीन
हो गया हो उसको िार-िार अनत शीतल लेप, पररषेक
आददद्वारा ननजष्क्रय या उदासीन िनायें।
 यदद ववष क
े वेग क
े कारि रक्तस्रवि न रुक रहा हो तो
शीतल लेप आदद िरते, पिंखा झले।
 हृदय की रक्षाक
े भलए रोगी को घी वपलायें या घी और मधु
चटायें।
 घी में पतला कर अगद वपलायें।
दिीकि
भसन्द्दुवार की जड़, श्वेता और
चगररकणिषका का पानी में पीसकर
भसन्द्दुवार की जड़ को भसन्द्दुवार क
े ही
स्वरस में पीसकर वपलायें।
क
ू ठ और मधु का नस्य दें।
दिंश-स्थान पर चारटी और नाक
ु ली का
लेप करे।
मण्डली
सुगन्द्धा, मृद्वीका, श्वेता, गजकणिषकातुलसी
पत्र, क
ै थ, बिल्व और अनारदाना उक्त द्रव्यों
का आधा-आधा भाग लेकर चूणिषत कर मधु
में भमलाकरचटायें।
पञ्चवल्कल, बत्रफला, मुलेठी, नागक
े सर,
एलवालुक,जीवक, ऋषभक, चन्द्दन, भसता,
कमल और पद्माख क
े चूिष को मधु क
े साथ
दें।
गम्भारी, िरगद क
े शुिंग, जीवक, ऋषभक,
भसता, मजीठ और मुलेठी का क्वाथ वपलायें।
िाश्जमान
चौलाई, गम्भारी, अपामागष, अपराजजता,
बिजौरा, भसताऔर लसोढ़े को पानी क
े साथ
पीसकर वपलायें।
इसी का नस्य दें और अञ्जन करें।
कडुवी तुम्िी, अतीस, क
ू ठ, घर का धुवाणसा,
हरेिु, बत्रकटु और तगर का चूिष मधु क
े
साथ दें।
शिंका विष
 आचायष चरक क
े अनुसार :
दुिन्िकािे विद्ि्य क
े नधिद्विषशिंकया।
विषाद्िेगाज्ििचछहदपमूपच्छा दाहोड्वर् िा भिेत्।।
नलाननमोहोड्नतसािचिाप्येतच्छिंकाविषिं मतम्।
(च.चच. 23/221-222)
 ज्वर (fever)
 वमन (vomiting)
 दाह (burning sensation)
 ग्लानन (anxiety)
 मोह (stupor)
 अनतसार (diarrhea)
 पूिषत: सिंवेगात्मक मनोववकृ नतजन्द्य (psychogenic)
सर्ाांगासभहत (TOUCH OF SNAKE)
 आचायष वृद्धवाग्भट मतेन:
भीिोाः सर्ाूँगसिं्र्शापद् भयेन क
ु वर्तोड्ननलाः।
कदाधित्क
ु रूते शोफ
िं सर्ाूँगासभहतिं तु तत्।।
(अ.सिं.उ.41/36)
 कभी-कभी ककसी डरपोक आदमी में सॉप क
े शरीर
क
े स्पशष मात्र से ही भय उत्पन्द्न हो जाता है।
 उसकी वायु क
ु वपत हो जाती है और स्पशष-स्थान पर
शोथ हो जाता है।
 इसे सािंगाभभहत (touch of snake) कहते हैं।
 ये लक्षि भी पूिषत: मनोजन्द्य होते हैं।
सर्ाांगासभहत औि शिंकाविष की धिककत्ससा
ससता िैगश्न्िको द्राक्षा र्य्या मिुक
िं मिु।
र्ानिं समन्त्रर्ूतामबुप्रोक्षणिं सान्त्सिहषपणम ्।
सािंगासभहते युज्यात्तथा शिंकाविषाहदपते।।
(अ.सिं.उ. 42/54)
 मनोवैज्ञाननक चचककत्सा
 मुखसेव्य औषचध – भमश्री, वैगजन्द्धक, द्राक्षा, ववदारीकन्द्द,यष्टीमधु
और मधु को घोटकर वपलायें।
 प्रेक्षि - अभभमजन्द्त्रत जल से प्रेक्षि (माजषन या जलनछड़क कर
पववत्र) करें।
 मानस चचककत्सा –
 रोगी को सान्द्त्वना दें।
 उसे हवषषत करें।
 सभी तरह से प्रसन्द्न रखने का प्रयास करें।

Más contenido relacionado

La actualidad más candente

Viruddhahara dr.smitha jain
Viruddhahara   dr.smitha jainViruddhahara   dr.smitha jain
Viruddhahara dr.smitha jain
dr smitha Jain
 

La actualidad más candente (20)

Luta Visha.pptx
Luta Visha.pptxLuta Visha.pptx
Luta Visha.pptx
 
Application of Dwadasha Ashana Pravicharana as Therapeutic Diet in Major NCDs...
Application of Dwadasha Ashana Pravicharana as Therapeutic Diet in Major NCDs...Application of Dwadasha Ashana Pravicharana as Therapeutic Diet in Major NCDs...
Application of Dwadasha Ashana Pravicharana as Therapeutic Diet in Major NCDs...
 
Darvekara sarpa and its contemaporary
Darvekara sarpa and its contemaporaryDarvekara sarpa and its contemaporary
Darvekara sarpa and its contemaporary
 
Clinical understanding of graha roga in present day practice
Clinical understanding of graha roga in present day practiceClinical understanding of graha roga in present day practice
Clinical understanding of graha roga in present day practice
 
Panchakarma in Agada Tantra
Panchakarma in Agada TantraPanchakarma in Agada Tantra
Panchakarma in Agada Tantra
 
Rakta pitta
Rakta pittaRakta pitta
Rakta pitta
 
Viruddhahara dr.smitha jain
Viruddhahara   dr.smitha jainViruddhahara   dr.smitha jain
Viruddhahara dr.smitha jain
 
kusta chikitsa.pptx
kusta chikitsa.pptxkusta chikitsa.pptx
kusta chikitsa.pptx
 
Ajeerna
AjeernaAjeerna
Ajeerna
 
Ayurvedic approach to Bandhyatva (Infertility )
Ayurvedic approach to  Bandhyatva (Infertility )Ayurvedic approach to  Bandhyatva (Infertility )
Ayurvedic approach to Bandhyatva (Infertility )
 
Dr.Lavanya S.A - pathya kalpana
Dr.Lavanya S.A -  pathya kalpanaDr.Lavanya S.A -  pathya kalpana
Dr.Lavanya S.A - pathya kalpana
 
VRISCHIKA VISHA
VRISCHIKA VISHAVRISCHIKA VISHA
VRISCHIKA VISHA
 
Importance of Shodhana in Swastha Purusha
Importance of Shodhana in Swastha PurushaImportance of Shodhana in Swastha Purusha
Importance of Shodhana in Swastha Purusha
 
BASTI IN AYURVEDA
BASTI IN AYURVEDA BASTI IN AYURVEDA
BASTI IN AYURVEDA
 
Kshira basti
Kshira bastiKshira basti
Kshira basti
 
Abhyantara Snehana (internal oleation)
Abhyantara Snehana (internal oleation)Abhyantara Snehana (internal oleation)
Abhyantara Snehana (internal oleation)
 
Jvara ppt
Jvara pptJvara ppt
Jvara ppt
 
Charak chikitsa short note in chikitsa sutra
Charak chikitsa short note in chikitsa sutraCharak chikitsa short note in chikitsa sutra
Charak chikitsa short note in chikitsa sutra
 
Sandhana kalpana by Dr.shrilata
Sandhana kalpana by Dr.shrilataSandhana kalpana by Dr.shrilata
Sandhana kalpana by Dr.shrilata
 
Rasayana
RasayanaRasayana
Rasayana
 

Similar a सर्प विष (Sarp visha)

agad tantra01.pptx. It is a detailed description about
agad tantra01.pptx. It is a detailed description aboutagad tantra01.pptx. It is a detailed description about
agad tantra01.pptx. It is a detailed description about
UtkarshTiwari969355
 
agadtantra vish ke veg according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptx
agadtantra vish ke veg  according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptxagadtantra vish ke veg  according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptx
agadtantra vish ke veg according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptx
MohitThakur205066
 
Ashish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptx
Ashish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptxAshish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptx
Ashish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptx
PrashantRaikwar4
 
नाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptxनाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptx
VeenaMoondra
 

Similar a सर्प विष (Sarp visha) (20)

Chikitsa siddhnt and management of mans evam medo vaha strotas
Chikitsa siddhnt and management of mans evam medo vaha strotasChikitsa siddhnt and management of mans evam medo vaha strotas
Chikitsa siddhnt and management of mans evam medo vaha strotas
 
Visarp chikitsa
Visarp chikitsaVisarp chikitsa
Visarp chikitsa
 
agad tantra01.pptx. It is a detailed description about
agad tantra01.pptx. It is a detailed description aboutagad tantra01.pptx. It is a detailed description about
agad tantra01.pptx. It is a detailed description about
 
agadtantra vish ke veg according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptx
agadtantra vish ke veg  according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptxagadtantra vish ke veg  according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptx
agadtantra vish ke veg according to charaka vagbhatta and sushuruta final.pptx
 
Kamala (jaundice) by Dr. Shruthi Panambur
Kamala (jaundice) by Dr. Shruthi PanamburKamala (jaundice) by Dr. Shruthi Panambur
Kamala (jaundice) by Dr. Shruthi Panambur
 
Unmad short
Unmad shortUnmad short
Unmad short
 
Ethno Medicine in Gond Tribe of Chhattisgarh by Shubham Singh Rajput Anthropo...
Ethno Medicine in Gond Tribe of Chhattisgarh by Shubham Singh Rajput Anthropo...Ethno Medicine in Gond Tribe of Chhattisgarh by Shubham Singh Rajput Anthropo...
Ethno Medicine in Gond Tribe of Chhattisgarh by Shubham Singh Rajput Anthropo...
 
auto shsuahv.pptx
auto shsuahv.pptxauto shsuahv.pptx
auto shsuahv.pptx
 
Yonivyapd chikitsa ch chi
Yonivyapd chikitsa ch chiYonivyapd chikitsa ch chi
Yonivyapd chikitsa ch chi
 
index astang.pdf
index astang.pdfindex astang.pdf
index astang.pdf
 
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptxGherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
 
वृश्चिक विष (Scorpian bite)
वृश्चिक विष (Scorpian bite)वृश्चिक विष (Scorpian bite)
वृश्चिक विष (Scorpian bite)
 
Ayurveda and Covid19
Ayurveda and Covid19Ayurveda and Covid19
Ayurveda and Covid19
 
Ayurveda and covid19
Ayurveda and covid19Ayurveda and covid19
Ayurveda and covid19
 
Indriya Margna
Indriya MargnaIndriya Margna
Indriya Margna
 
Jwara vivechana
Jwara vivechanaJwara vivechana
Jwara vivechana
 
Leshaya Margna
Leshaya MargnaLeshaya Margna
Leshaya Margna
 
Ashish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptx
Ashish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptxAshish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptx
Ashish makwana गृध्रसी^J अष्टविध परीक्षा.pptx
 
Sutra 26-33
Sutra 26-33Sutra 26-33
Sutra 26-33
 
नाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptxनाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptx
 

Más de DR. SUNIL KUMAR (7)

ECG
ECGECG
ECG
 
Gandhak
GandhakGandhak
Gandhak
 
Ankylosing spondylitis
Ankylosing spondylitisAnkylosing spondylitis
Ankylosing spondylitis
 
Parkinson
ParkinsonParkinson
Parkinson
 
Torticollis
TorticollisTorticollis
Torticollis
 
Rh incompatibility
Rh incompatibilityRh incompatibility
Rh incompatibility
 
Induced abortion
Induced abortionInduced abortion
Induced abortion
 

सर्प विष (Sarp visha)

  • 1. सर्प विष Dr. Sunil Kumar Assistant Professor National College of Ayurveda, Barwala Cont. 9569023573
  • 2. र्रिभाषा : जाङ्गम प्राणियों में पाये जाने वाले ववष को जाङ्गम ववष कहा जाता है Visa found in the animals inhabiting in forests is termed as Jangama visa. सर्ाप: कीटोन्दुिा लूता िृश्चिका गृहगोधिकााः । जलौकामत्स्यमण्डूका: कणभााः सकृ कण्टकााः ।। चिससिंहव्याघ्रगोमायुतिक्षुनक ु लादयाः । दिंश्रिणो ये विषिं दिंरटिेत्सथिं जिंगमिं मतम् ।। (ि.धि. 23/9-10)
  • 3. जाङ्गम विष क े अधिरठान दृश्रट ननाःचिास दिंरिा नख मूत्र र्ुिीष शुक्र लाला्त्राि आतपि मुखसिंदिंश विशधिपत तुण्ड अश््थ वर्त्त शूक शि
  • 4. सामान्य लक्षण ननिंद्रा तन्द्द्रा क्लमिं दाहिं सपाक िं लोमहषणिम। शोफ िं चौवानतसारिं च जनयेज्जिंगमिं ववषम।। (ि.धि. 23/15)  गनत जिंगमिं स्यादधोभागमूध्वणभागिं तु मूलजम। (ि.धि. 23/17)
  • 5. सर्प विष Though found world over, snakes habitat more in hot and humid climates of tropical regions and forest belts. Approximately more than three thousand species of snakes are documented till date; among these nearly two hundred and fifty are found in Indian sub-continent and approx. fifty of these are poisonous. India registers nearly one lakh cases of snake bite per year and causing death of ten thousand to twenty thousand people. Many among these,die fearing of snake bite.
  • 6. र्यापय दविपकि िसल नाग र्ातालननलय विषिि क ुिं डली फणी र्न्नग सर्प भुजिंग अहह सिीसृर् दीर्पर्ुच्छ
  • 7. जीिनकाल औसत आयु 120 वषष ननववषष 44 दाढ़ें 14th ददन ववष प्रादुभाषव 7th ददन 4 दाढ़ें कानतषक में 240 अण्डे देती है मणण िाली आभा से नि लिंबी एििं लाल िेखा िाले से मादा सशिीष र्ुरर् क े समान िाले से नर्ुिंसक आषाढ़ में गभषधारि ज्येष्ठ मास में ऋतुमती
  • 8. नीिे िाम र्ाचिप ऊर्ि िाम र्ाचिप नीिे दक्षक्षण र्ाचिप ऊर्ि िाम र्ाचिप काली र्ीली लाल चयाि 1 बूूँद 2 बूूँद 3 बूूँद 4 बूूँद
  • 10. दववषकर • फण युक्त • िक्र हल क्षत्र एििं ्िश््तक क े धिन्ह होते है • अश्नन एििं सूयप की तिह िमकने िाले होते है • तीव्र गनत युक्त होते है मण्डली • फण मिंडलाकाि होता है • मण्डल क े धिन्ह युक्त होते है • मिंद गनत िाले होते है राजजमान • श््ननि • विविि िणप युक्त • नतयपक िेखाओ से युक्त
  • 11. विििण काल दोष प्रकोर् आयु ऋतु दविपकि हदन में िात तरुणाि्था िषाप काल मण्डली िात्रत्र क े प्रथम, द्वितीय एििं तृतीय प्रहि में वर्त्त िृद्िाि्था शीत काल िाश्जमान िात्रत्र क े ितुथप प्रहि में कफ मध्यमाि्था ग्रीरम काल
  • 13. ब्राह्मि • पववत्र स्थानों पर ववचरि करने वाले • फि पर यज्ञोपवीत धारि करने वाले • मोती एविं चािंदी क े समान प्रभा से युक्त • कवपल विष • चिंदन, बिल्व एविं कमल की सुगिंध युक्त • आकवषषत • क्रोधी
  • 14. क्षबत्रय • छत्र, चक्र अधषचिंद्र, शिंख क े चचन्द्हों से युक्त • पक े जामुन, खजूर एविं द्राक्षा क े समान विष वाले • जस्नग्ध विष • सूयष एविं चिंद्र की कािंनत से युक्त • अत्यिंत क्रोधी • लाल नेत्रो से युक्त • चमेली, चम्पा, नागक े शर, अगरू की गिंध से युक्त
  • 15. वैश्य • काले रिंग क े वज्र क े समान • लोदहत विष • शरीर पर बििंदु एविं मण्डल से युक्त • धूम्र एविं कपोत क े समान रिंग वाले • िकरी, भेड़ क े दुग्ध और घृत क े समान गन्द्ध युक्त
  • 16. शुद्र • बििंदु एविं रेखा से युक्त शरीर • रुक्ष शरीर • ववभभन्द्न रिंग युक्त • भैंस, हाथी एविं कीचड़ क े विष से युक्त • मद्य एविं रक्त की गन्द्ध से युक्त
  • 17. सलङ्ग भेद नि मादा नर्ुिंसक गोल एििं वि्तृत फण युक्त सूक्ष्म एििं सिंकीणप फण युक्त दोनो क े सश्ममसलत लक्षण विशाल शिीि युक्त ्थूल शिीि से युक्त बड़े नेत्र सूक्ष्म नेत्र मिंद विष िाले ऊर्ि की औि देखने िाला नीिे की औि देखने िाला नर्ुिंसक डिा हुआ क्रोि िहहत
  • 18. सर्प दिंश क े हेतु र्ादासभमृरटा दुरटा िा कृ द्िा ग्रासाधथपनोड्वर् िा। ते दशश्न्त महाक्रोिाश््त्रविििं भीमदशपनााः। (सु.क. 4/13-14) पैरों क े नीचे दिने से दुष्ट प्रकृ नत से क्र ु द्ध होने से भोजन की इच्छा से
  • 19. आहािाथूँ भयात्सर्ाद्र्शाूँदनतविषात्सकृ िाः। र्ार्ित्ततया िैिादेिवषपयमिोदनात्। दशश्न्त सर्ाप्तेषूत्सक िं विषाधिक्यिं यथोत्तिम ्।। (अ.स.उ. 41/27)  आहार क े भलए  पैरों का स्पशष होने अथवा दि जाने से भय क े कारि  ववष की अचधकता से व्याक ु ल होकर  क्र ु द्ध होने से  पाप वृनत से  िदला लेने क े भलए  देवता, ऋवष और यम क े आदेश पर
  • 20. सर्प दिंश क े भेद सवर्पतिं िहदतिं िावर् तृतीयमथ ननविपषम् सर्ाांगासभहतिं क े धिहदच्छश्न्त खलु तद्विदाः सुश्रुत • सवर्पत (Deep Bite) • िहदत (Superficial Bite) • ननविपष (Non Venomous Bite) वाग्भट्ट • तुण्डाहत • व्यालीढ़ • व्यालुप्त • दरटक • दिंरिाननर्ीडडत
  • 21. • दिंश ्थान र्ि 1 या अधिक दािंतों क े ननशान होते है • दिंश ्थान गहिे एििं िक्तयुक्त होते है • सूक्ष्म एििं शोफयुक्त होते है सवर्पत • दिंश ्थान लोहहत, नील, र्ीत एििं चिेत िेखाओिं से युक्त होते है • अल्र् विषाक्ता युक्त होते है िहदत • दिंश ्थान एक या अनेक धिन्ह से युक्त होते है • दिंश ्थान शोथ िहहत होते है • अल्र् प्रमाण में िक्तदृश्रट ननविपष
  • 22.
  • 23. • दिंश ्थान ऊर्िी सतह र्ि होता है। • दिंश ्थान र्ि दािंतों क े धिन्ह नही होते। • लाल्त्राि से दिंश ्थान र्ि गीलार्न होता है। तुण्डाहत • यह दिंश भी सतही होता है। • दिंश-्थान र्ि एक या दो दाूँतों क धिह्न तो होते हैं, र्िन्तु उनसे िक्त नहीिं आता। • दिंश का िक्त समबन्ि नहीिं हो र्ाता। व्यालीढ़
  • 24.
  • 25. • यह दिंश प्रथम दो दिंशों की अर्ेक्षा क ु छ गहिा होता है। • इसमें दो दाूँतों क े धिह्न औि िक्त का ककिं धित् रिसाि र्ाया जाता है। व्यालु प्त • यह दिंश व्यालुप्त की अर्ेक्षा गमभीि होता है। • इसमें दिंश्थान र्ि तीन दािंतों क े धिह्न तथा मािंस क े कट जाने क े कािण िक्त का अनिित रिसाि देखने को समलता है। दरटक • यह दिंश सिापधिक गमभीि होता है। इसमें िाि दाूँतों क े ननशान र्ाये जाते हैं। • उनसे अनिित िक्तस्राि क े लक्षण र्ाये जाते हैं। दिंरिा ननर्ीडडत
  • 26.
  • 27.
  • 28. सर्पदिंश क े सामान्य लक्षण दिंश्तु सविषाः सिपाः सशोफो िेदनाश्न्िताः। तुद्यते ग्रधथताः ककश्चित् कण्डूमान् दह्यते भृशम्।। (अ.सिं.उ. 41/35) दिंश्थान र्ि शोथ (edema at site) िेदना (pain) िुभन (pricking sensation) गाूँठ (swellings) खुजली (itching) अत्सयधिक तीव्र दाह (profuse burning sensation)
  • 29. विसशरट लक्षण  दिीकि सर्पदिंश क े लक्षण  दिंश्थान कछ ु ए की र्ीठ क े समान ऊर्ि को उठा हुआ  त्सििा, आूँखें, नाखून, दाूँत, मुख, मूत्र, र्ुिीष औि दिंश(bite) का ििंग कृ रणिणप (blackish discoloration) होना  काला, रूक्ष औि दिंरिाओिं क े सूक्ष्म धिह्नों से युक्त होता है।  शिीि में रूक्षता (dryness)  सशि में भािीर्न (heaviness)  सश्न्ियों में िेदना (arthralgia)  कमि, र्ीठ औि ग्रीिा में दुबपलता (weakness in waist, back and neck)  जमभाइयाूँ आना (yawning)  शिीि में कमर् (tremors)
  • 30. ्ििभिंग (hoarseness of voice) गले में र्ुि-र्ुि शब्द होना (gurgling sound in neck) शिीि का जकड़ जाना (stiffness) सूखे डकाि आना (dry belching) कास (cough) चिास (dyspnea) हहक्का (hiccough) िायु का ऊर्ि की ओि गमन (misperistalsis) शूल क े कािण ऐिंठन होना (cramps) तृरणा (thirst) लालाम्राि (salivation)
  • 31.  मण्डली सर्पदिंश क े लक्षण- 1. दिंश्थान र्ीले-लाल िणपिाला 2. त्सििा आहद का ििंग र्ीला र्ड़ना (yellowish discoloration) 3. िोगी को सभी ि्तुएूँ र्ीली नजि आना (yellowish colored vision) 4. िर्टी औि फ ै लने िाली सूजन 5. ठण्डी ि्तुओिं की असभलाषा (craving for cold articles) 6. सािे शिीि मेंजलन (generalized burning sensation) 7. दाह (burning sensation- localized) 8. तृरणा (thirst) 9. मद (intoxication) 10. मूछाप (fainting) 11. ज्िि (hyperpyrexia) 12. ऊध्िप औि अिो मागों से िक्तस्राि (hemorrhage) 13. मािंस का अिशातन (putrefaction of muscle tissues) 14. शोथ (edema) 15. दिंश्थान का गलना (putrefaction/gangrene at the site) 16. क्रोि शीघ्र आना (short temperedness) 17. ओष-िोषाहद वर्त्तजन्य िेदनाएूँ (pain with burning sensation etc.)
  • 32. िाश्जमान सर्पदिंश क े लक्षण 1. दिंशस्थान चचकना, जस्थर, वपजच्छल, और शोफयुक्त होता है। 2. त्वचा आदद का रिंग सफ े द पड़ जाना (whitish discoloration) 3. ठण्ड लगकर ज्वर होना (fever with chills) 4. रोमाञ्च (horripilation) 5. स्तब्धता (stiffness) 6. गाढ़े कफ का आना (thick mucus) 7. वमन (vomiting) 8. आणखों में िार-िार कण्डू होना (itching in eyes) 9. कण्ठ में सूजन (edema in throat region) 10. आवाज में घुघुराहट (hoarseness of voice) 11. उच््वास में रुकावट (difficulty in breathing) 12. अन्द्धकार से नघरने जैसी प्रतीनत होना (blackouts) 13. कण्डू आदद श्लैजष्मक वेदनाएण (itching etc.)
  • 33.
  • 34. सामान्य उर्िाि  दष्ट प्रािी को चादहए कक वह तुरन्द्त जजस सॉप ने उसे काटा है उसे काटे।  भमट्टी क े ढेले या भमट्टी अथवा कदलीफल, कमलनाल, कोहड़ा आदद ककसी भी मृदुफल को काटे।  अववलम्ि मुख की लार या कान क े मैल का दिंश-स्थान परलेप करे।  दिंश-स्थान क े चार अिंगुल ऊपर अररष्टा-िन्द्धन करे।  ममष या सजन्द्ध-स्थानों पर जहाण पर अररष्टा-िन्द्धन की सम्भावना न हो, वहाण दिंशस्थान क े चारों ओर से दिा- दिाकर ववष को िाहर ननकालने का प्रयास करे।  अररष्ट क े नीचे दिंश-स्थान का उत्कतषन कर आचूषि द्वारा भी ववष को िाहर ननकालने का प्रयास करना चादहए।  मािंसल स्थानों में तो अवश्य ही चीरा लगाकर आचूषि करना चादहए।
  • 35.  सम्पीड़न से ववष िाहर न ननकले तो मण्डली सपष क े दिंश को छोड़कर, अन्द्य सॉपों क े दिंश-स्थान का स्विष आदद धातुओिं को अजग्न में तपाकर अथवा जलती लकडी से उसका दहन कर देना चादहए।  यदद ववष सम्पूिष शरीर में फ ै ल गया हो तो भशरावेध द्वारारक्तमोक्षि कराना चादहए।  ननकलने से िचा जो रक्त ववष की गमी से शरीर में लीन हो गया हो उसको िार-िार अनत शीतल लेप, पररषेक आददद्वारा ननजष्क्रय या उदासीन िनायें।  यदद ववष क े वेग क े कारि रक्तस्रवि न रुक रहा हो तो शीतल लेप आदद िरते, पिंखा झले।  हृदय की रक्षाक े भलए रोगी को घी वपलायें या घी और मधु चटायें।  घी में पतला कर अगद वपलायें।
  • 36. दिीकि भसन्द्दुवार की जड़, श्वेता और चगररकणिषका का पानी में पीसकर भसन्द्दुवार की जड़ को भसन्द्दुवार क े ही स्वरस में पीसकर वपलायें। क ू ठ और मधु का नस्य दें। दिंश-स्थान पर चारटी और नाक ु ली का लेप करे।
  • 37. मण्डली सुगन्द्धा, मृद्वीका, श्वेता, गजकणिषकातुलसी पत्र, क ै थ, बिल्व और अनारदाना उक्त द्रव्यों का आधा-आधा भाग लेकर चूणिषत कर मधु में भमलाकरचटायें। पञ्चवल्कल, बत्रफला, मुलेठी, नागक े सर, एलवालुक,जीवक, ऋषभक, चन्द्दन, भसता, कमल और पद्माख क े चूिष को मधु क े साथ दें। गम्भारी, िरगद क े शुिंग, जीवक, ऋषभक, भसता, मजीठ और मुलेठी का क्वाथ वपलायें।
  • 38. िाश्जमान चौलाई, गम्भारी, अपामागष, अपराजजता, बिजौरा, भसताऔर लसोढ़े को पानी क े साथ पीसकर वपलायें। इसी का नस्य दें और अञ्जन करें। कडुवी तुम्िी, अतीस, क ू ठ, घर का धुवाणसा, हरेिु, बत्रकटु और तगर का चूिष मधु क े साथ दें।
  • 39. शिंका विष  आचायष चरक क े अनुसार : दुिन्िकािे विद्ि्य क े नधिद्विषशिंकया। विषाद्िेगाज्ििचछहदपमूपच्छा दाहोड्वर् िा भिेत्।। नलाननमोहोड्नतसािचिाप्येतच्छिंकाविषिं मतम्। (च.चच. 23/221-222)  ज्वर (fever)  वमन (vomiting)  दाह (burning sensation)  ग्लानन (anxiety)  मोह (stupor)  अनतसार (diarrhea)  पूिषत: सिंवेगात्मक मनोववकृ नतजन्द्य (psychogenic)
  • 40. सर्ाांगासभहत (TOUCH OF SNAKE)  आचायष वृद्धवाग्भट मतेन: भीिोाः सर्ाूँगसिं्र्शापद् भयेन क ु वर्तोड्ननलाः। कदाधित्क ु रूते शोफ िं सर्ाूँगासभहतिं तु तत्।। (अ.सिं.उ.41/36)  कभी-कभी ककसी डरपोक आदमी में सॉप क े शरीर क े स्पशष मात्र से ही भय उत्पन्द्न हो जाता है।  उसकी वायु क ु वपत हो जाती है और स्पशष-स्थान पर शोथ हो जाता है।  इसे सािंगाभभहत (touch of snake) कहते हैं।  ये लक्षि भी पूिषत: मनोजन्द्य होते हैं।
  • 41. सर्ाांगासभहत औि शिंकाविष की धिककत्ससा ससता िैगश्न्िको द्राक्षा र्य्या मिुक िं मिु। र्ानिं समन्त्रर्ूतामबुप्रोक्षणिं सान्त्सिहषपणम ्। सािंगासभहते युज्यात्तथा शिंकाविषाहदपते।। (अ.सिं.उ. 42/54)  मनोवैज्ञाननक चचककत्सा  मुखसेव्य औषचध – भमश्री, वैगजन्द्धक, द्राक्षा, ववदारीकन्द्द,यष्टीमधु और मधु को घोटकर वपलायें।  प्रेक्षि - अभभमजन्द्त्रत जल से प्रेक्षि (माजषन या जलनछड़क कर पववत्र) करें।  मानस चचककत्सा –  रोगी को सान्द्त्वना दें।  उसे हवषषत करें।  सभी तरह से प्रसन्द्न रखने का प्रयास करें।