Approximately more than three thousand species of snakes are documented to date; among these, nearly two hundred and fifty are found in the Indian sub-continent, and approx. fifty of these are poisonous.
1. सर्प विष
Dr. Sunil Kumar
Assistant Professor
National College of Ayurveda,
Barwala
Cont. 9569023573
2. र्रिभाषा :
जाङ्गम प्राणियों में पाये जाने वाले ववष को जाङ्गम
ववष कहा जाता है
Visa found in the animals inhabiting in forests is
termed as Jangama visa.
सर्ाप: कीटोन्दुिा लूता िृश्चिका गृहगोधिकााः ।
जलौकामत्स्यमण्डूका: कणभााः सकृ कण्टकााः ।।
चिससिंहव्याघ्रगोमायुतिक्षुनक
ु लादयाः ।
दिंश्रिणो ये विषिं दिंरटिेत्सथिं जिंगमिं मतम् ।।
(ि.धि. 23/9-10)
5. सर्प विष
Though found world over, snakes habitat
more in hot and humid climates of tropical
regions and forest belts.
Approximately more than three thousand
species of snakes are documented till date;
among these nearly two hundred and fifty
are found in Indian sub-continent and
approx. fifty of these are poisonous.
India registers nearly one lakh cases of
snake bite per year and causing death of ten
thousand to twenty thousand people. Many
among these,die fearing of snake bite.
7. जीिनकाल
औसत आयु 120 वषष
ननववषष 44 दाढ़ें
14th ददन ववष प्रादुभाषव
7th ददन 4 दाढ़ें
कानतषक में 240 अण्डे देती है
मणण िाली आभा से नि
लिंबी एििं लाल िेखा िाले
से मादा
सशिीष र्ुरर् क
े समान
िाले से नर्ुिंसक
आषाढ़ में गभषधारि
ज्येष्ठ मास में ऋतुमती
10. दववषकर
• फण युक्त
• िक्र हल क्षत्र एििं ्िश््तक क
े धिन्ह होते है
• अश्नन एििं सूयप की तिह िमकने िाले होते है
• तीव्र गनत युक्त होते है
मण्डली
• फण मिंडलाकाि होता है
• मण्डल क
े धिन्ह युक्त होते है
• मिंद गनत िाले होते है
राजजमान
• श््ननि
• विविि िणप युक्त
• नतयपक िेखाओ से युक्त
11. विििण
काल
दोष
प्रकोर्
आयु ऋतु
दविपकि हदन में िात तरुणाि्था िषाप काल
मण्डली िात्रत्र क
े
प्रथम,
द्वितीय
एििं तृतीय
प्रहि में
वर्त्त िृद्िाि्था शीत काल
िाश्जमान िात्रत्र क
े
ितुथप प्रहि
में
कफ मध्यमाि्था ग्रीरम काल
13. ब्राह्मि
• पववत्र स्थानों पर ववचरि करने वाले
• फि पर यज्ञोपवीत धारि करने वाले
• मोती एविं चािंदी क
े समान प्रभा से युक्त
• कवपल विष
• चिंदन, बिल्व एविं कमल की सुगिंध युक्त
• आकवषषत
• क्रोधी
14. क्षबत्रय
• छत्र, चक्र अधषचिंद्र, शिंख क
े चचन्द्हों से युक्त
• पक
े जामुन, खजूर एविं द्राक्षा क
े समान विष वाले
• जस्नग्ध विष
• सूयष एविं चिंद्र की कािंनत से युक्त
• अत्यिंत क्रोधी
• लाल नेत्रो से युक्त
• चमेली, चम्पा, नागक
े शर, अगरू की गिंध से युक्त
15. वैश्य
• काले रिंग क
े वज्र क
े समान
• लोदहत विष
• शरीर पर बििंदु एविं मण्डल से युक्त
• धूम्र एविं कपोत क
े समान रिंग वाले
• िकरी, भेड़ क
े दुग्ध और घृत क
े समान
गन्द्ध युक्त
16. शुद्र
• बििंदु एविं रेखा से युक्त शरीर
• रुक्ष शरीर
• ववभभन्द्न रिंग युक्त
• भैंस, हाथी एविं कीचड़ क
े विष से युक्त
• मद्य एविं रक्त की गन्द्ध से युक्त
17. सलङ्ग भेद
नि मादा नर्ुिंसक
गोल एििं वि्तृत
फण युक्त
सूक्ष्म एििं सिंकीणप
फण युक्त
दोनो क
े सश्ममसलत
लक्षण
विशाल शिीि युक्त
्थूल शिीि से
युक्त
बड़े नेत्र सूक्ष्म नेत्र मिंद विष िाले
ऊर्ि की औि देखने
िाला
नीिे की औि देखने
िाला
नर्ुिंसक डिा हुआ
क्रोि िहहत
18. सर्प दिंश क
े हेतु
र्ादासभमृरटा दुरटा िा कृ द्िा ग्रासाधथपनोड्वर्
िा।
ते दशश्न्त महाक्रोिाश््त्रविििं भीमदशपनााः।
(सु.क. 4/13-14)
पैरों क
े नीचे दिने से
दुष्ट प्रकृ नत से
क्र
ु द्ध होने से
भोजन की इच्छा से
19. आहािाथूँ भयात्सर्ाद्र्शाूँदनतविषात्सकृ िाः।
र्ार्ित्ततया िैिादेिवषपयमिोदनात्।
दशश्न्त सर्ाप्तेषूत्सक
िं विषाधिक्यिं यथोत्तिम ्।।
(अ.स.उ. 41/27)
आहार क
े भलए
पैरों का स्पशष होने अथवा दि जाने से भय क
े
कारि
ववष की अचधकता से व्याक
ु ल होकर
क्र
ु द्ध होने से
पाप वृनत से
िदला लेने क
े भलए
देवता, ऋवष और यम क
े आदेश पर
21. • दिंश ्थान र्ि 1 या अधिक दािंतों क
े ननशान
होते है
• दिंश ्थान गहिे एििं िक्तयुक्त होते है
• सूक्ष्म एििं शोफयुक्त होते है
सवर्पत
• दिंश ्थान लोहहत, नील, र्ीत एििं चिेत िेखाओिं
से युक्त होते है
• अल्र् विषाक्ता युक्त होते है
िहदत
• दिंश ्थान एक या अनेक धिन्ह से युक्त होते
है
• दिंश ्थान शोथ िहहत होते है
• अल्र् प्रमाण में िक्तदृश्रट
ननविपष
22.
23. • दिंश ्थान ऊर्िी सतह र्ि होता है।
• दिंश ्थान र्ि दािंतों क
े धिन्ह नही होते।
• लाल्त्राि से दिंश ्थान र्ि गीलार्न
होता है।
तुण्डाहत
• यह दिंश भी सतही होता है।
• दिंश-्थान र्ि एक या दो दाूँतों क धिह्न
तो होते हैं, र्िन्तु उनसे िक्त नहीिं
आता।
• दिंश का िक्त समबन्ि नहीिं हो र्ाता।
व्यालीढ़
24.
25. • यह दिंश प्रथम दो दिंशों की अर्ेक्षा क
ु छ गहिा
होता है।
• इसमें दो दाूँतों क
े धिह्न औि िक्त का ककिं धित्
रिसाि र्ाया जाता है।
व्यालु
प्त
• यह दिंश व्यालुप्त की अर्ेक्षा गमभीि होता है।
• इसमें दिंश्थान र्ि तीन दािंतों क
े धिह्न तथा
मािंस क
े कट जाने क
े कािण िक्त का अनिित
रिसाि देखने को समलता है।
दरटक
• यह दिंश सिापधिक गमभीि होता है। इसमें िाि
दाूँतों क
े ननशान र्ाये जाते हैं।
• उनसे अनिित िक्तस्राि क
े लक्षण र्ाये जाते हैं।
दिंरिा
ननर्ीडडत
29. विसशरट लक्षण
दिीकि सर्पदिंश क
े लक्षण
दिंश्थान कछ
ु ए की र्ीठ क
े समान ऊर्ि को उठा हुआ
त्सििा, आूँखें, नाखून, दाूँत, मुख, मूत्र, र्ुिीष औि
दिंश(bite) का ििंग कृ रणिणप (blackish discoloration)
होना
काला, रूक्ष औि दिंरिाओिं क
े सूक्ष्म धिह्नों से युक्त होता
है।
शिीि में रूक्षता (dryness)
सशि में भािीर्न (heaviness)
सश्न्ियों में िेदना (arthralgia)
कमि, र्ीठ औि ग्रीिा में दुबपलता (weakness in waist,
back and neck)
जमभाइयाूँ आना (yawning)
शिीि में कमर् (tremors)
30. ्ििभिंग (hoarseness of voice)
गले में र्ुि-र्ुि शब्द होना (gurgling sound in
neck)
शिीि का जकड़ जाना (stiffness)
सूखे डकाि आना (dry belching)
कास (cough)
चिास (dyspnea)
हहक्का (hiccough)
िायु का ऊर्ि की ओि गमन (misperistalsis)
शूल क
े कािण ऐिंठन होना (cramps)
तृरणा (thirst)
लालाम्राि (salivation)
31. मण्डली सर्पदिंश क
े लक्षण-
1. दिंश्थान र्ीले-लाल िणपिाला
2. त्सििा आहद का ििंग र्ीला र्ड़ना (yellowish discoloration)
3. िोगी को सभी ि्तुएूँ र्ीली नजि आना (yellowish colored vision)
4. िर्टी औि फ
ै लने िाली सूजन
5. ठण्डी ि्तुओिं की असभलाषा (craving for cold articles)
6. सािे शिीि मेंजलन (generalized burning sensation)
7. दाह (burning sensation- localized)
8. तृरणा (thirst)
9. मद (intoxication)
10. मूछाप (fainting)
11. ज्िि (hyperpyrexia)
12. ऊध्िप औि अिो मागों से िक्तस्राि (hemorrhage)
13. मािंस का अिशातन (putrefaction of muscle tissues)
14. शोथ (edema)
15. दिंश्थान का गलना (putrefaction/gangrene at the site)
16. क्रोि शीघ्र आना (short temperedness)
17. ओष-िोषाहद वर्त्तजन्य िेदनाएूँ (pain with burning sensation etc.)
32. िाश्जमान सर्पदिंश क
े लक्षण
1. दिंशस्थान चचकना, जस्थर, वपजच्छल, और शोफयुक्त होता है।
2. त्वचा आदद का रिंग सफ
े द पड़ जाना (whitish
discoloration)
3. ठण्ड लगकर ज्वर होना (fever with chills)
4. रोमाञ्च (horripilation)
5. स्तब्धता (stiffness)
6. गाढ़े कफ का आना (thick mucus)
7. वमन (vomiting)
8. आणखों में िार-िार कण्डू होना (itching in eyes)
9. कण्ठ में सूजन (edema in throat region)
10. आवाज में घुघुराहट (hoarseness of voice)
11. उच््वास में रुकावट (difficulty in breathing)
12. अन्द्धकार से नघरने जैसी प्रतीनत होना (blackouts)
13. कण्डू आदद श्लैजष्मक वेदनाएण (itching etc.)
33.
34. सामान्य उर्िाि
दष्ट प्रािी को चादहए कक वह तुरन्द्त जजस सॉप ने उसे
काटा है उसे काटे।
भमट्टी क
े ढेले या भमट्टी अथवा कदलीफल, कमलनाल,
कोहड़ा आदद ककसी भी मृदुफल को काटे।
अववलम्ि मुख की लार या कान क
े मैल का दिंश-स्थान
परलेप करे।
दिंश-स्थान क
े चार अिंगुल ऊपर अररष्टा-िन्द्धन करे।
ममष या सजन्द्ध-स्थानों पर जहाण पर अररष्टा-िन्द्धन की
सम्भावना न हो, वहाण दिंशस्थान क
े चारों ओर से दिा-
दिाकर ववष को िाहर ननकालने का प्रयास करे।
अररष्ट क
े नीचे दिंश-स्थान का उत्कतषन कर आचूषि द्वारा
भी ववष को िाहर ननकालने का प्रयास करना चादहए।
मािंसल स्थानों में तो अवश्य ही चीरा लगाकर आचूषि
करना चादहए।
35. सम्पीड़न से ववष िाहर न ननकले तो मण्डली सपष क
े दिंश
को छोड़कर, अन्द्य सॉपों क
े दिंश-स्थान का स्विष आदद
धातुओिं को अजग्न में तपाकर अथवा जलती लकडी से उसका
दहन कर देना चादहए।
यदद ववष सम्पूिष शरीर में फ
ै ल गया हो तो भशरावेध
द्वारारक्तमोक्षि कराना चादहए।
ननकलने से िचा जो रक्त ववष की गमी से शरीर में लीन
हो गया हो उसको िार-िार अनत शीतल लेप, पररषेक
आददद्वारा ननजष्क्रय या उदासीन िनायें।
यदद ववष क
े वेग क
े कारि रक्तस्रवि न रुक रहा हो तो
शीतल लेप आदद िरते, पिंखा झले।
हृदय की रक्षाक
े भलए रोगी को घी वपलायें या घी और मधु
चटायें।
घी में पतला कर अगद वपलायें।
36. दिीकि
भसन्द्दुवार की जड़, श्वेता और
चगररकणिषका का पानी में पीसकर
भसन्द्दुवार की जड़ को भसन्द्दुवार क
े ही
स्वरस में पीसकर वपलायें।
क
ू ठ और मधु का नस्य दें।
दिंश-स्थान पर चारटी और नाक
ु ली का
लेप करे।
37. मण्डली
सुगन्द्धा, मृद्वीका, श्वेता, गजकणिषकातुलसी
पत्र, क
ै थ, बिल्व और अनारदाना उक्त द्रव्यों
का आधा-आधा भाग लेकर चूणिषत कर मधु
में भमलाकरचटायें।
पञ्चवल्कल, बत्रफला, मुलेठी, नागक
े सर,
एलवालुक,जीवक, ऋषभक, चन्द्दन, भसता,
कमल और पद्माख क
े चूिष को मधु क
े साथ
दें।
गम्भारी, िरगद क
े शुिंग, जीवक, ऋषभक,
भसता, मजीठ और मुलेठी का क्वाथ वपलायें।
38. िाश्जमान
चौलाई, गम्भारी, अपामागष, अपराजजता,
बिजौरा, भसताऔर लसोढ़े को पानी क
े साथ
पीसकर वपलायें।
इसी का नस्य दें और अञ्जन करें।
कडुवी तुम्िी, अतीस, क
ू ठ, घर का धुवाणसा,
हरेिु, बत्रकटु और तगर का चूिष मधु क
े
साथ दें।
40. सर्ाांगासभहत (TOUCH OF SNAKE)
आचायष वृद्धवाग्भट मतेन:
भीिोाः सर्ाूँगसिं्र्शापद् भयेन क
ु वर्तोड्ननलाः।
कदाधित्क
ु रूते शोफ
िं सर्ाूँगासभहतिं तु तत्।।
(अ.सिं.उ.41/36)
कभी-कभी ककसी डरपोक आदमी में सॉप क
े शरीर
क
े स्पशष मात्र से ही भय उत्पन्द्न हो जाता है।
उसकी वायु क
ु वपत हो जाती है और स्पशष-स्थान पर
शोथ हो जाता है।
इसे सािंगाभभहत (touch of snake) कहते हैं।
ये लक्षि भी पूिषत: मनोजन्द्य होते हैं।
41. सर्ाांगासभहत औि शिंकाविष की धिककत्ससा
ससता िैगश्न्िको द्राक्षा र्य्या मिुक
िं मिु।
र्ानिं समन्त्रर्ूतामबुप्रोक्षणिं सान्त्सिहषपणम ्।
सािंगासभहते युज्यात्तथा शिंकाविषाहदपते।।
(अ.सिं.उ. 42/54)
मनोवैज्ञाननक चचककत्सा
मुखसेव्य औषचध – भमश्री, वैगजन्द्धक, द्राक्षा, ववदारीकन्द्द,यष्टीमधु
और मधु को घोटकर वपलायें।
प्रेक्षि - अभभमजन्द्त्रत जल से प्रेक्षि (माजषन या जलनछड़क कर
पववत्र) करें।
मानस चचककत्सा –
रोगी को सान्द्त्वना दें।
उसे हवषषत करें।
सभी तरह से प्रसन्द्न रखने का प्रयास करें।