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जुलाई-िसत बर 2021
foHkkse&Loj
1
संर क एवं
मुख संपादक
सुधा ओम ढ गरा
संपादक
पंकज सुबीर
क़ानूनी सलाहकार
शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट)
तकनीक सहयोग
पा ल िसंह, सनी गो वामी
िडज़ायिनंग
सुनील सूयवंशी, िशवम गो वामी
संपादक य एवं यव थापक य कायालय
पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7
स ाट कॉ लै स बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001
दूरभाष : +91-7562405545
मोबाइल : +91-9806162184
ईमेल : vibhomswar@gmail.com
ऑनलाइन 'िवभोम- वर'
http://www.vibhom.com/vibhomswar.html
फसबुक पर 'िवभोम वर’
https://www.facebook.com/vibhomswar
एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)
सद यता शु क
1500 पये (पाँच वष), 3000 पये (आजीवन)
बक खाते का िववरण-
Name: Vibhom Swar
Bank Name: Bank Of Baroda,
Branch: Sehore (M.P.)
Account Number: 30010200000312
IFSC Code: BARB0SEHORE
संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यवसाियक।
पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक
तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म
कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर
होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत
होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा।
Dhingra Family Foundation
101 Guymon Court, Morrisville
NC-27560, USA
Ph. +1-919-801-0672
Email: sudhadrishti@gmail.com
वै क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का
वष : 6, अंक : 22, ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2021
RNI NUMBER : MPHIN/2016/70609
ISSN NUMBER : 2455-9814
आवरण िच
राजे शमा
रखािच
मािटन जॉन
जुलाई-िसत बर 2021
foHkkse&Loj
2
संपादक य 3
िम नामा 5
िव मृित क ार
िश बन लाल क बहन, रोती नह
उषा ि य वदा 6
कथा कहानी
जूठा सेब
ा पा डय 12
उसक मौत
िवकश िनझावन 17
अँधेर क बीच
अ णा स बरवाल 20
कौन सुने ?
काद बरी मेहरा 26
िमशन - एन.पी.ए.
डॉ. रमेश यादव 30
सेहर का सगुन
कामे र 34
वािभमान
सेवक नैयर 39
देवता
अ ण अणव खर 45
स ाटा
छाया ीवा तव 48
भाषांतर
यथाथ क र च (मलयालम कहानी)
लेिखका - कमला दास
अनुवादक - अनािमका अनु 52
शंख घोष क किवताएँ
अनुवादक - रोिहत साद पिथक 85
यं य
लोकापण
ीकांत आ ट 54
सं मरण
हम भी कमीने, तुम भी कमीने
ज़ेबा अ वी 56
रामरतन अव थी जी मेर पहले सािह यक गु
वीर जैन 64
याद क झरोखे से
रिडयो का देशी इलाज करते िपता
गोिव द सेन 66
ज मा मी
शोभा र तोगी 69
समाचार
िव णु भाकर रा ीय ो साहन स मान 68
पहली कहानी
आिख़री ख़त
अिदित िसंह भदौ रया 72
लघुकथा
खेती
डॉ. वीर कमार भार ाज 74
िल यांतरण
ग़ािलब अंड गोएट
मूल रचना – हाजी लक़ लक़
अनुवाद – अखतर अली 75
किवताएँ
खेमकरण 'सोमन' 77
एकता कानूनगो ब ी 78
काश मनु 79
ितभा चौहान 80
चंचला ि यदिशनी 82
दीपक शमा 'दीप' 83
ग़ज़ल
दौलतराम जापित 85
धम गु 86
सुभाष पाठक 'िज़या' 87
आिख़री प ा 88
िवभोम- वर सद यता प
यिद आप िवभोम- वर क सद यता लेना चाहते ह, तो सद यता शु क इस कार ह :
1500 पये (पाँच वष), 3000 पये (आजीवन)। सद यता शु क आप चैक / ा ट ारा िवभोम वर (VIBHOM SWAR) क
नाम से भेज सकते ह। आप सद यता शु क को िवभोम- वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरण-
Name of Account : Vibhom Swar, Account Number : 30010200000312, Type : Current Account, Bank :
Bank Of Baroda, Branch : Sehore (M.P.), IFSC Code : BARB0SEHORE (Fifth Character is “Zero”)
(िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा कर टर अं ेज़ी का अ र 'ओ' नह ह ब क अंक 'ज़ीरो' ह।)
सद यता शु क क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पि का भेजी जा सकः
1- नाम, 2- डाक का पता, 3- सद यता शु क, 4- चैक/ ा ट नंबर, 5- ांज़े शन कोड (यिद ऑनलाइन ां फ़र ह), 6-िदनांक
(यिद सद यता शु क बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।)
संपादक य एवं यव थापक य कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क
सामने, सीहोर, म. . 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com
इस अंक म
वै क िह दी िचंतन क
अंतरा ीय पि का
वष : 6, अंक : 22,
ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2021
जुलाई-िसत बर 2021
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3
सुधा ओम ढ गरा
101, गाईमन कोट, मो र वल
नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए.
मोबाइल- +1-919-801-0672
ईमेल- sudhadrishti@gmail.com
संपादक य
अ य श ु कोिवड-19 से जूझते ए, आिथक संकट का सामना करते ए, अमे रका तेज़ी
से इन चुनौितय और आपि य से उभर आया ह। अब हालत यह ह िक नौ िमिलयन नौक रयाँ
उपल ध ह, और उ मीदवार नह िमल रह। ये नौक रयाँ सरकार ने नह िनकाल । यह सब ग़ैर-
सरकारी े क देन ह। सरकार इतनी नौक रयाँ िनकाल भी नह सकती। हर काम ऑन लाइन
होने से सरकारी े म नौक रयाँ कम हो गई ह।
अमे रका सबसे बड़ा लोकतांि क देश ह। इसे पूँजीवादी कह कर भड़ास िनकाली जा
सकती ह, पर इसक काय- णाली उदाहरण ह, िवचारणीय ह।
यहाँ ाइवेट कपिनय और िनजी े को बढ़ावा िदया जाता ह तािक देश को सुचा प से
चलाया जा सक।
साठ साल पहले नासा ने अंत र म उड़ान भरी थी। 11 जुलाई 2021 म एक उ ोगपित
रचड ेनसन ने स ह वष क प र म क बाद अंत र पयटन क शु आत क ह। पहली उड़ान
म एक भारतीय मिहला इजीिनयर ीशा भी थी। छह सौ पचास लोग ने अंत र म जाने क िलए
अि म बुिकग भी करवा ली ह। सामा य जीवन जीने का य न िकया जा रहा ह...
कोिवड-19 क पहली लहर क दौरान पूरा िव यही समझता था, िक इसक समा होते
ही जन जीवन िफर से सामा य हो जाएगा। सामा य तो हो रहा ह, लेिकन अलग तरीक से। पहली
लहर क नुक़सान क बाद दूसरी लहर जो ित प चा रही ह, िव अभी उसका सामना कर रहा
ह, तीसरी लहर का डर बना आ ह। ऐसे म कोिवड से पहले जैसी थित होनी संभव नह ह।
जान-माल क जो हािन ई ह, उसक पूित तो कभी संभव ही नह ।
यह माना जा रहा ह, कोिवड वायरस हर साल लू क तरह कट होगा। जहाँ अिधकतर
लोग ने वै सीन लगवा ली होगी, वहाँ इसे मैनेज करना आसान होगा।
जीवन जीने क एक
िभ शैली सामने
आने वाली ह
जुलाई-िसत बर 2021
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4
संपादक य
ब क अंदर क िन छलता क कारण
ही जानवर उनक ब त ज दी िम बन
जाते ह। जैसे-जैसे हम बड़ होते ह, वैसे-
वैसे यह िन छलता हमार अंदर से समा
होती जाती ह। मासूिमयत को भी कित
पहचानती ह और रता को भी। कित
क पास बने रहने क िलए आव यक ह
अंदर से ब ा बने रहना।
हाँ, लोग ने अब इस श ु क साथ जीना सीख िलया ह, पर इसका व प पहले से ब त
अलग होगा। हर े म आक मक प रवतन आए ह, िजनसे सामंज य थािपत करने म समय
लग रहा ह।
तकनीक और बड़ी-छोटी िजन कपिनय ने अमे रका म अपने कमचा रय को घर से यानी
ऑनलाइन क यूटर पर काम करने का िवक प दे कर े रत िकया ह, वे कमचारी महगे शहर म
रहने क बजाए अब गाँव, छोट शहर या क ब क ओर मुड़ रह ह। जहाँ रहन-सहन स ता ह
और वातावरण व छ। ाकितक थान म लोग थानांत रत हो रह ह।
कभी-कभार मीिटग क िलए हवाई या ा कर िलया करगे। पर काम घर से हो रह ह, इसिलए
या ाएँ कम हो गई ह।
कल और कॉलेज क िश ा म भी ब त अंतर आ गया ह। ऑनलाइन िश ा िदए जाने से
कल और कॉलेज शु होने क बावजूद भी कछ िवषय ऑनलाइन पढ़ाए जाएँगे।
ल बे लॉकडाउन म कई िव िव ालय ने अलग-अलग े म ऑनलाइन कोसज़,
ऑनलाइन िड ी क िलए दािखला देकर पढ़ाना शु कर िदया था; य िक वे समझ गए ह िक
कोरोना जैसे अ य श ु अब पैदा होते रहगे और जीवन पहले जैसा कभी भी नह हो पाएगा।
ऑनलाइन िश ा का चलन ब त बढ़ गया ह। घर बैठ कई मिहला-पु ष ने ऑनलाइन
यावसाियक िश ण लेकर अपने काम शु कर िदए ह। अनिगनत घरलू मिहला ने इस
समय का सदुपयोग िकया ह, और अपने छोट-छोट धंधे शु कर िलए ह; िजनक िब
ऑनलाइन ही होती ह।
ब क कल और अब कॉलेज खुलने क बाद ही पता चलेगा िक लोग का जीवन िकस
िदशा क ओर मुड़ता ह; य िक पूरी सावधािनयाँ बरती जाएँगी, पूर ोटोकॉल फॉलो िकए
जाएँगे पर अभी भी कोरोना का डर तो ह, देखते ह ऊट िकस करवट बदलता ह...िजन लोग ने
वै सीन नह ली, वे यहाँ ड टा न क िशकार हो रह ह। मृ यु दर क आँकड़ बढ़ रह ह।
जीवन जीने क एक िभ शैली सामने आने वाली ह। तकनीक और ऑनलाइन सिवसेज़
जीवन म एक अ यािशत प रवतन लाने वाली ह। खेती-बाड़ी और किषकम ोन से संप
करवाए जाएँगे। पयावरण म घनघोर प रवतन आएगा, य िक आवाजाही कम हो जाएगी।
बैटरी से चलने वाली कार और वचािलत कार को बनाने क होड़ लगी ई ह, तािक
पयावरण क र ा क जा सक। पयावरण क बार म नह सोचा जाएगा तो कित बार-बार सबक
िसखाएगी।
कोरोना ने एक बात प कर दी ह, िव क हर य को तरह-तरह क चुनौितय क
िलए तैयार रहना पड़गा। भिव य म कोरोना जैसे कई श ु आ मण कर सकते ह। अगर देश
और जनता तैयार नह ह गे तो इससे भी अिधक किठनाइय का सामना करना पड़ सकता ह।
िवभोम- वर और िशवना सािह यक प रवार क ओर से सािह यकार रमेश उपा याय,
नर कोहली, रामरतन अव थी, मुशरफ़ आलम जौक़ , ज़हीर करशी, शंख घोष, मं र
एहतेशाम, याम मुंशी, मह गगन, कवर बेचैन, भु जोशी, चंडीद शु , युगेश शमा,
िदवाकर भ , राजेश झरपुर, राजकमार कसरवानी को भावभीनी ांजिल!!
आपक ,
सुधा ओम ढ गरा
जुलाई-िसत बर 2021
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5
जून क धूप म शीतल हवा
'िवभोम- वर' जून क धूप म शीतल हवा
ह जो मुझ मानुष मन को ब त सकन दान
करती ह। कभी लगता ह िक आप पेड़ क
भाँित चुपक-चुपक अपना काय कर रह ह या
नदी बन, बहते ए अपने मुकाम पर प चने-
प चाने क तैयारी म ह। आपक सबसे
अ छी बात यह ह िक आप नए लेखक को
छापते ब त ह। इस मानिसकता क पि काएँ
ब त कम होती ह। बहरहाल... जनवरी-माच
2021 अंक िमला। एक साथ ब त कहािनयाँ
और नए लेखक को पढ़ने का अवसर पा रहा
। व थ जीवन क शुभकामनाएँ और
लाख-लाख दुआ क साथ।
-खेमकरण 'सोमन', ारा बुलक साहनी,
थम कज, अ बका िवहार, भूरारानी, वाड-
3 2 , पुर, िजला- ऊधम िसंह नगर,
उ राख ड-263153,
मोबाइल: 09045022156
000
िदलकश सं मरण
अफ़रोज़ ताज का 'च मे क खोज' लेख
पढ़ा। िदल बाग-बाग हो गया। बेहद खूबसूरत
अंदाज़े-बयाँ। च मा छीनकर अ मी गायब हो
गई, वे िकताब पढ़कर नह दुिनयावाल को
देखकर िलखते थे, इस बंदे ने दो श द क
अथ ही बदल डाले। पहला 'बकवास' और
दूसरा 'समझदार', प पर चूरन रखकर खा
चुक ह गे। सबसे आिख़र म िकताब का
िमलना।
ऐसा िदलकश सं मरण कम ही देखने म
आता ह। मुबारकबाद !
- ीकांत आ ट, जी-1/81, गुलमोहर
कालोनी, भोपाल, 462039
000
ब त पठनीय सं मरण
अफ़रोज़ ताज का िलखा सं मरण 'च मे
क खोज' िवभोम- वर पि का म आज ही
पढ़ा। आपने च मे क बहाने अपनी अ मी को
तो अंतरमन से याद िकया ही लेिकन च मे क
िकतने, कसे-कसे योग होते ह, आलेख क
बहाने उनका भी रोचक अनुसंधान आपने
तुत िकया ह। आपक लेखन म हा य यं य
का भी अ छा खासा पुट ह जो इसे ब त
पठनीय बनाता ह।
िलखते समय आपने अ मी को अपनी
याद म कछ ऐसे िज़ंदा िकया, जैसे च मा
िकताब नह , आपको आपक अ मी ही िमल
गई। सच क तो आपक इस भाषाई योग ने
माँ को याद करते ए मेरी आँख से भी
आँसु क कछ बूँद िनकाली, कछ धाराएँ
बहा ।
-रितभान ि पाठी, लखनऊ
7905252032/9415225285
000
अगले अंक का इतज़ार
यह तो जानती थी िक उषा ि य वदा
अमे रका म ही कह रहती ह, पर उ ह ढढ़ने
क कोिशश नह क , हालाँिक उनक लेखन
क शंसक । पचपन ख भे लाल दीवार,
कोगी नह रािधका, अंतवशी उप यास और
वािपसी कहानी कौन भूल सकता ह। िवभोम-
वर का अ ैल-जून 2021 अंक खोला और
खोलते ही संपादक य क बाद अपनी ि य
लेिखका को देख कर हरान रह गई।
िव मृितय क ार पढ़ कर उषा जी क बार म
ब त कछ जानने को िमला। अंत म जब
मशः(अगले अंक म जारी रहगा) पढ़ा, तो
िदल ब य उछला। अब अगले अंक का
इतज़ार ह....
-सरोज ीवा तव, 1105 Sunset
Hits,Columbus,Ohio43202
000
उषा ि य वदा का सं मरण बोनस
िवभोम- वर का अ ैल-जून 2021 अंक
िमला। कहािनयाँ एक से बढ़कर एक। उषा
ि य वदा का सं मरण ऐसा बोनस िनकला,
िजसक उ मीद शायद िकसी पाठक को नह
थी। इसक पहले से कोई प लिसटी भी नह
क गई थी। नई पीढ़ी जो पुराने लेखक को
भूलती जा रही ह, ऐसे िसलिसले से उ ह नए
लेखक क साथ पुराने लेखक का भी पता
रहगा। अगले अंक क ती ा ह...
- ती ा माथुर, िवकासपुरी, िद ी
000
'आिख़री प ा' पढ़ कर िदल श
महोदय,
'िवभोम- वर' का अ ैल-जून २१ अंक
िमला। आपका 'आिख़री प ा' पढ़ कर िदल
श आ। आभारी िक आपने मेर ही नह ,
मेर जैसे अनेक लेखक क मन क बात कह
दी। धमयुग, सा ािहक िह दु तान, सा रका
आिद पि काएँ बंद , समाचार प ने भी
सािह य से जी चुराना शु कर िदया। अब तो
काद बनी और नया ानोदय भी बंद हो गए।
ि ंट मीिडया ने तो सािह य को लंगड़ा घोड़ा
समझ ताँग म जुतने को छोड़ िदया। कभी
सािह यकार, संपादक बनते थे, अब
एम.बी.ए. मैनेजर या प कार। आपने सही
कहा- "यही तो म पूछ रहा िक जो िलख
नह रहा, उसका यहाँ या काम ? मगर काम
को तो छोिड़ये वह तो यहाँ सवसवा बना बैठा
ह।" संभवतः आप पहले थािपत लेखक ह,
िजसने इस कट स य को इस कार उजागर
िकया ह।
अंक का संपादक य ानवधक ह। और
'धीर र खुले िकवाड़' रोचक था। ' म',
'मा टरनी का जादूमंतर' और 'िच ा वीदू'
कहािनयाँ ी िवमश से अिभ े रत तीत होती
ह। 'छतरी', 'अनछआ' और 'क ज़े का
मकान' सामािजक िवसंगितय को वर दान
करती ह। 'पानी क परत' िकशोर मन और
'फटा आ ब ता' बालमन क कोमल
भावना क मम पश कहािनयाँ ह।
लघुकथाएँ और किवताएँ गागर म सागर
समान ह।
कल िमलाकर अंक सराहनीय व
सं हणीय था।
सादर
-योगे शमा, 86, खि यान, िबजनौर
उ 246701, मोबाइल 989741032
000
िम नामा
जुलाई-िसत बर 2021
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6
उषा ि य वदा
1219 शोर वुड बुलेवाड,
मैिडसन , िव कॉ सन, 53705, यू एस ए
मोबाइल-608-238-3681
ईमेल- unilsson@facstaff.wisc.edu
िव मृित क ार
उ ीस सौ सतालीस म दादा भी अ य राजनीितक क़िदय क तरह जेल से छट- पाँच साल,
फाँसी क सज़ा, िफर उसे बदल कर आज म क़द पर उसम सैिलटरी क फ़ाइनमट; या- या
नह झेला होगा पर शायद उन साल ने और क यिन और कमठ बना िदया।
जेल से छटकर कानपुर आए, िश बन लाल का वागत करने क िलए हज़ार क भीड़
उमड़ी। मने साल से दादा को देखा भी न था, उनक मुखाकित भी मृित म धुँधली पड़ गई थी।
घर म उ साह का माहौल था- माँ ने चू ह पर दादा क िलए खीर बनाई और जाली क
अलमारी म ठडी होने क िलए रख दी। मने भी अपनी खादी क सािड़य म सबसे पसंदीदा
फालसई रग क साड़ी पहन ली, िजस पर पहला बॉडर था। माँ ने थाली सजा ली और छोटी
दादी ने िनणय सुना िदया, िश बन लाल जब ऊपर क खंड म आएँगे तब म उनका रोली अ त
से टीका क गी, बाद म अ य लड़िकयाँ और याँ। छोटी दादी का यह ताव भी सवस मित
से पास हो गया और इस अवसर क मह ा समझते ए इ दो बुआ भी अपने स प नगर क
बंगले से हमार घर परड आ ग ।
शायद दोपहर क तीन बज गए थे, सारा प रवार िबना खाए-िपये दादा क ती ा कर रहा
था। तभी छोट चाचा, जो दादा क घर प चने क सूचना देने क िलए अि म ूटी पर तैनात
िकए गए थे -बदहवास से घर म घुसे-और ब त नाटक य ढग से अनाउस करते ए बोले-
''िश बन लाल ने गोिवंद को गले लगा कर भट िलया....''
यह सुनकर घर क सभी याँ त ध रह ग ।
चाचा ने आगे बताया, ''जब िश बन लाल रल गाड़ी से उतर तो हम सब ने उ ह मालाएँ
पहना । उनक गोिवंद और बनवारी पर पड़ी जो सबसे अलग, दूर माला िलये खड़ थे। वह
आगे बढ़ और गोिवंद को गले लगा िलया, वह तो फट- फट कर रोने लगा। बनवारी तो भाग
खड़ा आ िक कह उसे भी गले न लगा ल- बनवारी और उसका प रवार हमार घर का
िश बन लाल क
बहन, रोती नह
उषा ि य वदा
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शौचालय साफ़ करता था। इस सूचना म
अंतिनिहत संकत था िक ह रजन गोिवंद को
गले लगा कर दादा अपिव हो गए थे। यह
महा मा गाँधी क िनयम का पालन करने वाले
दादा से कौन कहगा िक पहले नहाओ िफर
घर म घुसो-
छोटी दादी ब त पसो पेश म थ , बाक़
सार लोग मौन और त ध थे।
तभी दादा घर म घुसे और बेिझझक हमार
आगे आकर खड़ हो गए। मने थाली उठा ली,
िफर दादी को देखा-वह अभी असमंजस म ही
थ - मने माँ क ओर डाली उ ह ने आँख
क इशार से कहा िक टीका करो।
मने कई साल क र ा बंधन और भाई दूज
क कसर िनकालते ए उनक श त ललाट
पर रोली का ल बा सा टीका लगाया लगा
िदया- िफर उसक ऊपर चावल िछड़क।
दादा, चाचा क साथ चारपाई पर बैठ गए,
मालाएँ उतार कर अलग रख द और ध
से ि यजन का मुआयना िकया। मुंशी
चाचा क ब े माला क िलए आपस म
ख चतानी करने लगे- माँ ने जाली क
अलमारी से ही खीर का कटोरा िनकालकर
उ ह पकड़ा िदया, और उस ण म बरस से
चली आई छआछत, जूठी, सकरी, क ी-
प क रसोई और ऊच- नीच, ह रजन और
सवण पर परा ढह गई। मुझे महसूस हो रहा था
िक अब हम सारी देह रय को पार कर एक
नए समय म वेश कर रह ह, हमने नई,
िव तृत, खुली ई दुिनया म क़दम रख िदया
ह।
000
उस छह साल, नह साढ़ पाँच साल क
लड़क को कोई य बताएगा िक यह सब
या हो रहा ह। ढाई साल पहले पापा मर चुक
ह, अब घर ख़ाली करना पड़ रहा ह। बड़-बड़
त त, िजस पर िपता क मुव कल आकर
बैठते थे, पड़ोस क वक ल जगदीश माथुर
उठवा कर ले जा रह ह। उनक लॉ क िकताब
भी, िजनक लाल, एक सार िज द थ , शायद
उ ह क घर जा रही ह। नीचे वाला कमरा
ब त बड़ा ह, िजसम शीशे क ऊची-ऊची
शीशम क आलमा रयाँ ह, एक म आदमक़द
शीशा ह। पास ही ऊपर जाने क सीिढ़याँ ह,
िजन पर वह अँधेर से डरती ई लड़क साँस
रोक कर ऊपर चढ़ने लगती ह। चार ओर
िवघटन ह, पर उसे या मालूम, उसे कोई
कछ य बताएगा। ब को ये बात नह
बताई जात । पर वह देख रही ह क़तार क
क़तार लोग कछ न कछ उठाकर ले ही जा रह
ह, यहाँ तक िक वह नया चमचमाता सूटकस,
जो उसका था, जो उसे लॉटरी क िटकट पर
िमला था। बड़ मकान क इ दो बुआ का मुँह
लगा नौकर बंसी कधे पर उठाकर ले जाता
िदखाई देता ह- िखलौन वाला कमरा सब वैसे
ही छोड़ िदया जाता ह।
परड क रामलीला क दशहर क िदन एक
चाँदी क पये म ख़रीदा िम ी का चू हा-
च क , तवा, करछी- और िसर पर मटक
िलये लाल लहगे और हरी चुनरी वाली
गुज रया, कधे पर काँवर उठाए ए वण
कमार और दो डिलय म दो पुतले- उसक
बाद क़तार क क़तार िम ी क गणेश,
ल मी; िपछली कई िदवािलय क- यह सब
उसने, उस पाँच, साढ़ पाँच साल क लड़क ,
ने सहज कर रखा ह, वह घंट उस छोट से,
कोने वाले कमर म अपने इ ह िखलौन से
खेलती रहती ह। कभी-कभी रमेश आ जाता
ह, पड़ोस क बुिटयर बाबू का बेटा, उससे कई
वष बड़ा, पर छोटी बहन ारा नीचे धकल
िदए जाने क कारण वह थायी प से िदमाग़ी
चोट से त ह, पर उसक मु कान िकतनी
सरल ह, वह जब भी आता ह तो कमर क
आगे खड़ा होकर उसका नाम लेता ह,
िझझकती आवाज़ म, असमंजस म-- और
जब उसक पुकार सुनकर लड़क बाहर
िनकलती ह, तो रमेश का चेहरा उसे पहचान
कर एक मीठी, ध मु कान से भर उठता
ह- ऊऽऽऽ षाऽऽऽ वह िझझकते ए कहता ह
जैसे अपने को िव ास िदलाना चाहता हो िक
वह सही जगह ह और यह लड़क वही ह जो
उसक खेल क सािथन ह।
वह घंट उन िम ी क िखलौन से खेलते
ह। रमेश को चू हा-च क पसंद ह। वह
चू ह म क पत आग जलाता ह, बटलोई
रखता ह, िफर तवा, िफर त तरी म खाना
परोस कर कहता ह-- लो -- िबलकल वैसे ही
जैसे वह रोज़ अपनी माँ को देखता ह--
लड़क चुप रहती ह, उसने शंसा करना या
अिधक बात करना नह सीखा ह। दोन
अलग-अलग त त रय म झूठमूठ का भोजन
करते ह, बतन धोते ह और वापस रख देते ह।
उसे कब, कहाँ, िकसक साथ खाना िमलता
था, यह सब याद नह ह। ऊपर क खंड म न
बैठक थी, न डाइिनंग म, बस एक क़तार म
चार कमर थे, और सामने बरामदा, िफर खुला
आँगन, उसक बाद घर का दूसरा दरवाज़ा,
िजससे नौकर चाकर और बनवारी या उसक
ब सफ़ाई करने आती थी, उस दरवाज़े से
उतरो तो सामने खुला आ गैरज था िजसम
ट पर पापा क हर रग क फ़ोड मोटर खड़ी
रहती थी- उनक मरने क कई बरस बाद भी-
सबसे पहले जो कमरा था वह सबसे बड़ी
बहन कमला का था, उसक बाद क दो कमर
म माँ, म और मेरी मझली बहन क मन, चौथा
कमरा सबसे बड़ा था, रसोई क पास, उसम
दादी रहती थ , अपनी िदवंगत बेटी क सौत
क साथ- उसक बाद रसोई थी और उसम भी
एक दरवाज़ा पड़ोसी जगदीश बाबू क छत
पर खुलता था- उसी दरवाज़े से हम ब े उन
खुली -खुली छत पर खेलने जाते थे। उसी से
पड़ोस क याँ अंदर आती थ -उसी
दरवाज़े क चौखट पर िगरने से मेरा िसर फटा
था और उसी दरवाज़े से माँ ने मरी ई
महरािजन का भूत कमर म लु होते देखा था
पर तब घर म िकसी को मालूम नह था िक
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गाँव गई ई महरािजन मर चुक ह। उस घर म
िसफ़ माँ को ही भूत ेत िदखाई देते थे, कभी
छत पर, कभी अपने कमर म घुसते ए जो
तुरत बड़- बड़ काले क म बदल जाते थे।
अगर सामने से आना चाहो, उस दरवाज़े
से मद ही आते थे, सीिढ़याँ चढ़कर छ े से
गुज़र कर दरवाज़े क अंदर! और मद भी
कौन? मामा जी या उनक बेट काश या
ल ू, िजनसे र ता या था उस लड़क को
ब त बरस तक पता नह चला, या खु ख
या भैया होरीलाल, दादा, िश बन लाल कभी
कभार; य िक वह वतं ता सेनानी होने क
कारण अिधकतर जेल म रहते थे।
बस, उसे वह िदन याद ह जबिक
यामलाल क हाते म भयंकर सफ़ाई ई थी,
त त बाहर िनकाले गए थे, यह जगदीश माथुर
क घर जाने से पहले क बात रही होगी,
िछड़काव आ था- लड़क को ख र क
छ टदार नई ॉक पहनाई गई थी और कहा
गया था िक जवाहर-लाल नेह को झुककर
नम ते करना और तब माला पहनाना। ख र
क उस मोटी खुरदुरी, छ टदार ॉक क
मृित कभी उसक वचा से अलग नह ई-
कभी भी।
रल क पिहय क खटर-खटर से वह जाग
गई। हाथ म पैसा था- रल कानपुर छोड़कर
गंगा क पुल से गुज़र रही थी। उसने हाथ से
पैसा उछाल कर गंगा जी म फक िदया। उसे
मालूम नह था िक यह उसक जीवन या ा
का पहला चरण था और घर से बेघर होने का
भी।
000
लखनऊ म हीबेट रोड, लाटश रोड, सुंदर
बाग़ क घर बार-बार बदलने क बाद अब हम
पाक रोड म थे, घर नए बने ए थे- सामने क
सड़क अभी ठीक से बनी नह थी, क ी
प क ग वाली- बरसात म घर क आगे
काफ़ पानी भर जाता था और मुह े क ब े
उसने कदते-फाँदते रहते थे, िसंह साहब क
तीन लड़िकयाँ डज़ी, पै ज़ी और िडिलया-
उसक साथ प ा, िजसे दूसर ब े िचढ़ाने क
िलए प कह कर पुकारते थे।
हमार घर क आगे लोह का जँगला था,
उसक बाद एक लंबी चौड़ी बारादरी, जँगले
क साथ या रयाँ थ िजनम हरिसंगार और
मधुमालती समय-समय पर फलती रहती थ -
उन िदन बड़ भाई िश बन लाल जेल से
छटकर घर पर थे और चीनी िमल पर रपोट
िलख रह थे। वह इलाहाबाद से एम.ए करक
गोरखपुर ोफ़सर हो गए थे; वह उनक भट
महा मा गाँधी से ई और उ ह ने दादा को
महाराजगंज क िपछले इलाक़ और वहाँ चीनी
िमल म काम करने वाले मज़दूर क दुखद
थित को सुधारने का आदेश िदया। दादा
उसी काम म लीन हो गए, वतं ता सं ाम म
एक दम समिपत। घर म जो बात होती थ - हम
ब े सुनते थे और जान गए थे िक हम पराधीन
ह - अं ेज़ हमार शासक और शोषक ह- हम
पड़ोस क िसंह साहब या प ा क ठकदार
िपता क तरह उनक चाकरी नह करनी
चािहए- हम छ टदार खादी क ॉक म ही
स रहना चािहए, डज़ी या पै ज़ी क तरह
मुलायम नरम मख़मल म नह ।
दादा ायः बाहर बरामदे क आगे खुली
ज़मीन पर बैठ-बैठ रपोट िलखने म लीन रहते
थे। कभी-कभी हरिसंगार क फल िगरकर
उनक बाल म उलझ जाते थे पर उ ह पता ही
नह चलता। तप यारत एक साधक क तरह।
हम ब े चुप रहते थे, शोर नह मचाते थे, न
हम, न हमार साथी। दादा का य व ही
ऐसा था, उनक पूरी भावमु ा ब त सहज
और ेिहल होती थी, उनक ने म मेधा और
एक वैचा रक य क आँख म होने वाला
तेज रहता था-- कभी-कभी वह िलखना रोक
कर, सर उठाकर सड़क पर खेलते हम ब
को देखने लगते; तब उनक चेहर पर एक
ब त ेिहल मु कान आ जाती थी।
पाक रोड क घर म जो बात मुझे ब त
अ छी लगती थी, वह थी उसक लखनऊ
क िनकटता। िदन-रात समय- असमय हम
हािथय क िचंघाड़ और शेर क दहाड़ सुनाई
देती रहती थ । शायद उसी समय से मुझे पशु-
पि य से लगाव ारभ हो गया। िश बन लाल
से छोट भाई होरी लाल, िज ह हम तीन बहन
'भैया' कहती थी, रोज़ सुबह हम क सैर
कराने ले जाते थे हम- यानी मुझे, और मँझली
बहन क मन। हम लोग िजस पगडडी से
घुसते उसक समा होते ही पि य का घेरा
आता था, सबसे पहले मोर, िजनम एक सफ़द
मोर हमेशा पंख फलाए नाचता िमलता था, म
देर तक वह क ई उसे देखती रहती थी,
िजस व तु को न पा सको पर यार करते रहो,
ऐसा ही कछ संबंध मेर और सफ़द मोर म बन
गया था- वह हमार पास आते ही और घेर क
बाहर खड़ होते ही पूर पंख फलाकर नाचने
लगता था- और मुझे लगता था िक इतने आने
वाल म शायद िविश - तभी तो मेर पास
आते ही वह नाचने लगता ह। मोर क बाद रग
िबरगे काकातुआ, तोते और तरह-तरह क
प ी कलरव िकया करते थे, उसक बाद
लकड़ब घे और ऊदिबलाव।
इतना सब पार करने क बाद वह घेरा
आता था जहाँ राजसी मु ा म बबर शेर बैठा
रहता था, पास म दो शेरिनयाँ और उछलते
कदते उनक ब े। शेर कभी-कभी मुँह खोल
कर दहाड़ देता था- तब हमारा पूरा शरीर
दहल जाता था और हम उस दहाड़ क ती ा
करते रहते थे।
आस-पास हर उ ान थे, मोर पंखी क
झाड़ और रग िबरगे फल, जब कभी हमारी
छोटी मौसी सौभा यवती, जो लखनऊ म ही
रहती थ , ब सिहत माँ क पास आत तो
हमारा जाना अिनवाय होता था। उनक बड़
बेट सुधीर से जो मुझसे तीन साल छोटा था,
मेरी ब त पटती थी, जब तक घास पर चादर
और बैड कवर िबछते, िटिफ़न क रयर से
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पू रयाँ, आलू क कचौिड़याँ और तरकारी
िनकलती हम दोन मोर पंख क झुरमुट क
आस-पास दौड़ते, भागते, खेलते, हसते,
िखलिखलाते रहते। कभी-कभी ब त बड़ पन
से सुधीर का हाथ पकड़ कर हम शेर क बाड़
क ओर चले जाते। बाड़ क चार ओर ब
गहरी और चौड़ी नहर थी, उसक बाद जंगले;
यानी दशक सुरि त रहते थे- हम लोग खड़-
खड़ उस प रवार को देखते रहते जहाँ शेर क
ब े उछलते, कदते- भागते, दौड़ते िदखाई
देते थे। कभी-कभी शेर धूप से उठकर अपने
कटघर क ओर चल देता तो हम उसक
मंथर, शाही चाल को िबना पलक झपकाए
देखते रहते- ब त वष बाद, डिनश लेिखका,
इसाक डिनसन क 'आउट ऑफ़ अ का'
पढ़ते ए मुझे अपने बचपन क उस बबर शेर
क याद आ गई और जब मने उनका बंदूक
लेकर अपने घोड़ क बाड़ म आए अ का
क शेर को मारना पढ़ा तो मुझे ब त दुःख
लगा पर जब उ ह ने अपने ेमी क क़ पर
दो शेर को िनयिमत प से आते-जाते और
रहते देखा, तो उस समय उ ह ने जो महसूस
िकया, िबलकल वैसा ही उनक श द पढ़ते
ए मने अनुभव करते पाया, यह उनक
लेखनी का जादू था -इसी वष, िकतने वष
बाद लखनऊ जाने का अवसर िमला- मेरी
िसफ़ दो वािहश थ , पाक रोड का घर
देखना और जाना। िजस िदन हम जाना
था उस िदन बंद था और तुषार क िववाह
समारोह क यव था म अगले िदन कोई
साथी नह िमला -पाक रोड क उस घर क
तलाश म हम इधर-उधर च कर लगाते रह पर
वह सड़क नह िमली और पता मुझे याद नह
था। पर पाक रोड क उस घर म िबताया
बचपन कभी नह भुला पाई -और भुलाना भी
नह , य िक वह तो -तारा भाभी ने मुझे वह
महामं िदया था, िजसे संजोये मने पूरा जीवन
काट िदया।
तारा भाभी यार लाल अ वाल क दूसरी
प नी थ , गोरी, हसमुख, वातालाप वीण!
यार लाल अ वाल, मेर भाइय क िम थे,
और कानपुर क कां ेस पाट क से टरी-
तारा भाभी ायः लखनऊ आती रहती थ और
उनक ारा भी हमार बा यजीवन म िकतनी
नई-नई िखड़िकयाँ खुलती रहत , उनक
क मीर म अमरनाथ या ा, दि ण म कां ेस
पाट का अिधवेशन मगर सबसे रोचक वृ ा त
होता था चं शेखर आज़ाद को पुिलस छापे से
बचाने क साहसपूण रोमांचक कहानी, िजसे
बार-बार सुनने पर भी हमारा जी नह भरता
था- िकस कार इस नाट क़द क , एक दम
गोरी, ी ने अं ेज़ क पुिलस को चकमा
िदया- वह कहानी कभी बाद म--
तो तारा भाभी हमार यहाँ लखनऊ आई ई
थ - उस िदन शायद रिववार था- कल क
छ ी थी, सार ब े िमल कर सड़क पर खेल
रह थे, भाग-दौड़, ध का-मु क , शोरगुल
करते ए- मने उस िदन एक नई ॉक पहनी
थी, जो न जाने य खादी क नह थी, ॉक
पर हर रग क नाव म छपी ई थ , आड़ी-
ितरछी,उ टी-सीधी -उस कपड़ का नम-नम
िचकनापन मेरा शरीर सहला रहा था -तभी
िकसी ने मुझे ध का िदया और म सड़क पर
िगर पड़ी -मेर घुटने िछल गए और तेज़ दद
आ, उठकर खड़ होते ए मने देखा, मेरी
ाक फट गई थी, उसम ए छद क पीछ से
मेरा खून बहता घुटना िदखाई दे रहा था -मने
दुख भरी चीख मारी, मेरी फ़वरट ॉक फट
गई, घुटन म दद था वह अलग, उसक ऊपर
से मेरा रोना सुन कर भाई होरी लाल हाथ म
िटचर आयोडीन क शीशी और फरहरी लेकर
आते िदखाई िदए -िटचर क छरछराहट और
दद का यान आते ही मेरी चीख और बढ़ ग -
उनक पीछ-पीछ तारा भाभी भ - पास आकर
उ ह ने शांत वर म, मेरा हाथ पकड़कर कहा
‘'िश बन लाल क बहन रोती नह ---''
मेरा रोना बंद होने म कछ समय लगा,
य िक भाई तो ज़ मी घुटन पर िटचर लगाने
लगे थे, मेरी आवाज़ बंद हो गई थी, मगर
िहचिकयाँ आ रही थ - तारा भाभी ने इस बार
पुचकारते ए कहा, '' ांितका रय क घर
क लड़िकयाँ रोती नह ।'' मने ह ठ भ च िलए,
ा तकारी च शेखर आज़ाद - वतं ता
सेनानी, िश बन लाल!
000
फा ट फॉरवड -बरस -बरस बाद, म
अ पताल म , मृ यु और जीवन क बीच
झूलती ई, मेर दय क िझ ी म पानी भर
गया ह, िकसी समय हाट अटक हो सकता ह,
दय धड़कना बंद कर सकता ह। तब ओपन
हाट सजरी ने इतनी गित नह क थी-काफ़
र क थी, डॉ टर पानी धीर-धीर कम कर रह
थे। समय लग रहा था- म अमे रका म अकली
थी- िनतांत अकली। अ पताल म मुझसे
िमलने मेर सहयोगी अवध िकशोर नारायण
आए थे, साथ म प नी, पाँच ब क माँ-
‘'आप सब इतना अकले कसे झेल रही ह। ''
ीमती नारायण ने कहा, ''न कोई संगी न साथ
!'' तो नारायण जी ने यं य से कहा, ''
आिख़रकार िश बन लाल क बहन ह ना !''
बात खट से सीने म जाकर लगी, सच ही तो ह
न ! म मु करा दी- '' आप सही कह रह ह।-''
000
दादा का काय े हम, प रवार को मालूम
था, महराजगंज गोरखपुर- वह कहाँ रहते थे,
कसे खाते-पीते थे, यह सब वह िद ी क
पा रवा रक जीवन से अलग रखते थे। िद ी
म मेरी माँ थ , छोट िवधुर भाई होरी लाल और
उनक छोटी -छोटी तीन बेिटयाँ- सिवता,
सबसे बड़ी िजसका नामकरण माँ ने िकया
था, बीच क रखा- माता-िपता का िदया नाम,
िजसम मने 'सु' जोड़ िदया था, और सबसे
छोटी छाया, िजसक ज म क दो घंट बाद ही
उसक माँ क र - ाव से मृ यु हो गई थी,
और िजसे मेरी माँ ने दय से लगाकर ब त
यार, दुलार और मम व से पाला था। जब
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दादा पािलयामट क सद य होते तब प रवार
िफ़रोज़शाह रोड क बंगले म रहता और जब
दादा इले शन हार जाते तो इधर-उधर,
भटकता रहता, कभी िकसी िम , या संबंधी क
घर िटक जाता या िफर रामनगर या पटल नगर
जैसे मोह म िकराये क घर म- म
इलाहाबाद म पढ़ रही थी और हर छ ी घर
आती थी, शाम को जनता ए स ेस क
लकड़ी क बच पर कभी बैठकर, कभी सोते
ए। जब रल जमना क पुल से गुज़रती तो मेरा
पूरा शरीर पुलक उठता; य िक ेिहल भाई
और ममतामयी माँ क साथ समय िबताने क
िवचार से! भतीिजयाँ भी मुझे ब त यार करती
थ , अपनी तरह से। िफ़रोज़शाह रोड क वह
वष सुखद होते।
जब िवभाजन क बाद पािक तान से आए
शरणािथय को भूिम िमल रही थी, पड़ोसी ने
दादा से लॉट ख़रीदने को कहा था- दादा ने
साफ़ मना कर िदया, िक वह भूिम शरणािथय
क िलए ह, उसे ख़रीदना अनैितक होगा। माँ ने
हलक से कहा भी, िक िद ी म लॉट लेकर
घर बना ल- तो भी दादा ने हसकर कहा, ''
लॉट, िकस क िलए? मेर न बीवी ह, न बाल-
ब े-''
माँ हमेशा क तरह चुप रह ग ।
1981 म वह ऐसी घटना ई िजस का कम
से कम मुझे मान गुमान तक न था, पाँच बार
लोक सभा क िलए सद य िनवािचत िश बन
लाल अपने ही काय े म चुनाव हार गए थे।
जब म िद ी प च तो वह िफ़रोज़ शाह रोड
क ांगण म अकले बैठ ए थे, उनक चार
ओर कागज़ और प का अ बार था-
''दादा'' म और कछ न कह सक । वर
अव हो गया। दादा ने मुझे ख उठाकर
देखा- ''गीता क वचन भूल गई। थत
य सुखदुख म एक समान रहता ह''- दादा
ने जेल क एकांत कारावास म गीता, उपिनषद
आिद का गहन अ ययन िकया था।
आपि काल म, न जाने य गीता क
बु वचन मेरी याद से िफसल कर लोप हो
जाते ह।
घर का न शा यह था, दादा, छोट भाई
होरी लाल और उनक तीन बेिटय क ित
अपना क य िनभा चुक थे- तीन िववािहत,
पित ेम म आकठ िल , बाल ब े वाली
थ , घर म बचे, बूढ़ी मेरी माँ और भाई होरी
लाल- और दादा वयं।
बड़ी पोती क पित महाराजगंज क एक
कॉलेज क ि ंिसपल थे, मगर उ ह उस ामीण
वातावरण क बजाए िद ी म िफ़रोज़शाह
रोड पर सबसे बड़ दामाद क तरह रहना
अ छा लगता था। और उनका वैसा स मान
भी था। सबक राय से सिवता ने ग़ािज़याबाद
म ज़मीन लेकर बड़ा सा घर बनवाया था,
िजसम दादा ने साम ी और रािश दोन से
पया मा ा म सहायता क थी, यह मानी ई
बात थी िक वृ ाव था म ताऊ, िपता और
दादी एक खंड म रहगे-जो तब िकराये पर
चढ़ा आ था। घर का सामान बटोरा जाने
लगा, तभी सिवता का संदेशा आया िक उसक
पित वृ दादी को साथ रखने क िलए तैयार
नह ह! उसक पित सामने से यवहार कशल
और िमठ बोले थे, ऊपर से माँ क ित आदर,
न िनरादर, मगर उनक मन म या चल रहा था
ये कौन जानता! शायद वह तीन वृ संबंिधय
को अपनी छत क नीचे रखने को तैयार नह
थे, िज ह ने उनक प नी को पाल पोस कर
बड़ा िकया था और घर क बड़ पौ दामाद
होने क कारण महीन उनक ख़ाितरदारी क
जा चुक थी और उ ह ने काफ़ बचत भी क
थी। घर म यह परपरा थी, समथ य दूसर
क ित अपनी पूरी िज़ मेदारी िनबाहता था,
उदाहरण सामने था, अपनी प नी और ब े न
होते ए भी दादा िश बन लाल ने अपने मामा
को उनक मृ यु काल म िदया वचन जीवन
पय त िनबाहा था, मेरी माँ और हम तीन बहन
क पूरी िज़ मेदारी सँभाली थी और छोट भाई
होरी लाल क बेिटय को पढ़ा-िलखाकर
उनक इ छा अनुसार सजातीय िववाह िकये
थे। मेरी बड़ी बहन कमला क पित यदुपित
सहाय ने भी, अपनी ले रर क तन वाह म
कमला क छोटी बहन को बरस साथ
रखकर पढ़ाया िलखाया था इसिलए यह
अपे ा करना जो िवशाल ह िश बन लाल
क सहायता से बना ह, उसम प रवार क तीन
व र संबंधी रहगे सिवता क अपने िपता,
दादी, िज ह ने छह वष क आयु से पाला पोसा
था, और ताऊ, िजनक पु षाथ से सार प रवार
को य िमला था।
सिवता पित क अंधभ थी, उसने तोते
क भाँित पित का संदेश सुना िदया। माँ
गािज़याबाद जाकर रहने क िलए उ सािहत
नह थ , पर िसर पर एक छत तो होती। मने
सुना वह कई िदन तक रोती रह , - चुपचाप,
जैसी उनक िज़ंदगी भर आदत रही, अंततः
घर िबखर गया, िपता होरी लाल को भी उस
घर म जगह नह िमली, गािज़याबाद म एक
िकराये क घर म रहने लगे, अ सी साल क
आयु म माँ एक बार िफर बेघर हो गई, जैसे
बरस पहले होरी लाल क प नी ारा
िन कािसत कर दी गई थी, उसी तरह सिवता
और सतीश ारा मने माँ को अपने पास
बुलाना चाहा, पर उ ह ने मना कर िदया। वह
प रवार, बेिटय , उनक ब और छाया से
इतना जुड़ी ई थ िक अकले मेर साथ,
अनजान, ठड देश म, जहाँ क भाषा से वह
सहज नह थ , न िवदेशी जमाता क उप थित
से, जीवन क अंितम िदन िबताना उ ह ा
नह आ।
मने तभी माँ, दादा और भैया क रहने क
िलए िद ी म लैट ख़रीदा पर जब तक वह
बनकर तैयार आ तब तक उसम रहने क
िलए तीन म से कोई जीिवत नह बचा था। माँ
से दादा से कहा-''आप रोती य ह, म
गोरखपुर म घर लेकर आपको बुला लूँगा।''
अंततः माँ अपनी मँझली बेटी कािमनी क
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पास बड़ौदा चली ग । छट गई उनसे िद ी,
संबंधी और िबछड़ गई छाया, िजससे उनक
ाण जुड़ ए थे।
इस कार हम सबक जीवन का एक लंबा
अ याय समा हो गया।
000
दादा आँधी क तरह िद ी आते थे, हम
सुबह चाय पी रह होते थे तो बरामदे क
सीिढ़य पर उनक चढ़ने से उनक फट जूत
क फटफट आवाज़ से माँ समझ जाती थ िक
िश बन लाल आ गए ह।
दादा क िबखर ए बाल, धूल भरा चेहरा,
मटमैला, कभी-कभी जेब िवहीन खादी का
कता और गाँव म धुली धोती, पर चेहर पर
ध आभा और व सल 'मु कान'।
''आ गई आप?'' मुझसे कहत!
े
वह अपने कमर म चले जाते थे जहाँ
पािलयामट क आए हर िलफ़ाफ और
काग़ज़ का अ बार लगा रहता था, अख़बार,
िकताब, प --
माँ झटपट उनक पसंद का भोजन बनाने
म लग जाती थ , उनक धुले, महीन खादी क
कपड़ िनकालती थी और वह नए जूते भी- यह
कपड़ उनक िद ी म पहनने वाले थे।
पािलयामट म जाने क िलए वह हमेशा ऑटो
र शा म पािलयामट जाते थे। वे दो तीन िदन
से अिधक िद ी म नह रहते थे, उनका मन
तो महराजगंज म अटका रहता था- बस दो
तीन िदन बाद वह जाने को तैयार होते थे तो
अपने िद ी वाले सफ़द, साफ़ सुथर कपड़
कमर म छोड़ जाते थे, माँ उ ह धुलवाकर
ब से म रख देती थी- घर म स ाटा हो जाता
था, म माँ क कमर म खाट पर बैठ कर पढ़ती-
िलखती थी।
दादा क साथ हमेशा दो एक य रहते
थे। वही, हसते-हसते खाने क मेज़ पर साथ
बैठकर बताते थे -'' न म स सेना जी क जेब
कट गई, '' या िफर मुझ से -''बिहनी, आपने
जो अमे रका वाला वेटर ला कर िदया था,
कछ घंट ही पहना, इटावा टशन पर एक
िभखारी को ठड म िठठरते देखा तो उतार कर
दे िदया- ''
दादा सुनते रहते थे, मु कराते रहते थे,
कछ बोलते नह थे- उनका वभाव था, जहाँ
भी िजसक जो मदद कर सकते थे, वह कर
देते थे-- उनका िकतना मान था यह मने वयं
देखा था, जब इिदरा गाँधी अपने बरामदे म
िनकल कर उनका वागत करती थ ; जब
रा पित भवन क समारोह म जवाहर लाल
नेह उनको देखकर मु करा देते थे, '' कसे
हो िश बन लाल ?'' वतं ता सं ाम क बड़-
बड़ नाम, 1947 क बाद हमार घर जो वा तव
म दादा का था, िफ़रोज़शाह रोड पर आते-
जाते रहते थे।
पर दादा म कह अिभमान नह था, हमेशा
एक मु कराता आ चेहरा और ऐसी
क णामय धता जो बरस बाद मने दलाई
लामा क मुख पर ही देखी।
अ य सद य क तरह िद ी म रहकर
उ ह ने कभी पैसे नह बटोर। पालते रह
प रवार को, भाई- भतीिजय , भाभी और हम
सब को- अपनी प नी और ब े न होते ए भी
वे सब से जुड़ थे, अपने िपता क प रवार से,
अपने निनहाल से और िफर उनक काय े म
जो उनक साथी रह ह गे--
उनसे ही मने ''वसुधैव कट बक '' का
पहला पाठ सीखा- देख तो अब मेरा कोई भी
नह ह, माँ, भाई, बहन सब िदवंगत हो चुक
ह, यहाँ से िवभाग म भी, शहर क भी सब संगी
साथी, िफर भी जुड़ी - तीसरी चौथी पीढ़ी से,
पुराने िव ािथय से, पाठक, पािठका से-
और अब सोशल मीिडया क ारा नए लेखक,
लेिखका से- किवय और कलाकार से --
''प प इवं भसा -''
यह तो मने दादा से ही सीखा।
दादा क मृ यु क ख़बर मुझे कई िदन बाद
िमली, तब फ़ोन िवदेश क िलए बुक िकये
जाते थे। कई िदन कने शन िमलने म लग जाते
थे, दादा क सािथय ने प रवार को उनक
बीमारी क कोई सूचना नह दी। माँ हमेशा
टीवी पर शाम क ख़बर सुनती थ , उसी पर
उ ह सूचना िमली िक पाँच बार िनवािचत
लोक सभा क सद य, िश बन लाल क मृ यु
हो गई ह- वह तड़प कर रह ग , बड़ोदरा से
या ा करक महराजगंज जाना संभव नह था।
बाद म भारत जाने पर मने दादा क मृ यु
क बार म कथाएँ सुनी, िक कसे वह लखनऊ
क अ पताल म अकले पड़ रहते थे, कसे उस
अध अचेताव था म उनक आस-पास क
लोग ने कोर काग़ज़ पर उनक द तख़त
करवा िलए थे, यहाँ तक िक िकसी ने उनक
हाथ क घड़ी और पु पाथ क ी स य सा
बाबा ारा दान क गई ा क माला भी
उतार ली थी -
000
िवदेश म रहकर मुझे प रवार क सद य
क मृ यु क सूचना ऐसे ही िमलती थी,
अंतररा ीय िलफ़ाफ़ पर भाई होरी लाल का
िलखा प , िजसम बड़ी बहन क पित यदुपित
सहाय क मृ यु क ख़बर थी, या सूचना
पो टकाड, िजसम सिवता क तेरहव क , या
बॉ टन से मेर पित का फ़ोन -''तुम तुरत भारत
क िलए िनकलो, तु हारी माँ मरणास ह- ''
फ़ोन कने शन उ ह िमल गया था, मुझे नह ।
पर तु अब फ़ोन क सुिवधा ह- मुंबई से
सुबिकयाँ लेती अलका का - ''क मन मौसी
चली ग ''--या िफर ''अ माँ चली ग ''- और
अभी कछ ही समय पहले, यारह बजे रात
को, '' रीता चली गई--''
अकले घर म रोना पीटना ?
नह होता, बस कड़वे िवष क तरह सारा
संताप, सारी यथा, संपूण दुःख घूँट लेना-
िश बन लाल क बहन न-
रोती नह --
000
मशः (अगले अंक म जारी)
जुलाई-िसत बर 2021
foHkkse&Loj
12
ा पा डय
467, 11 एवे य,
ू गौर िसटी -2, िनयर
िकसान चौक, ेटर नोएडा -201301
मोबाइल- 6394419003
ईमेल- pandepragya30@gmail.com
कथा-कहानी
एक सुनसान सड़क पर बीस-बाईस साल का एक लड़का साइिकल चलाता चला जा रहा
था, वह रा ता सुनसान था। उतरती जनवरी क दोपहर म भी ब त िनचाट था जबिक सड़क
िचकनी और साफ़ थी। लड़क क जेब म एक मोबाइल फ़ोन था िजससे उसक पुरानी, फटी
और खाली जेब क क मत ब त बढ़ गई थी। उस िबयाबान स ाट म साइिकल चलाते ए
लड़क क छाती चौड़ी हो रही थी। तभी उसक सामने से आते एक मोटरसाइिकल सवार ने
उसक बगल म आकर र तार धीमी क अपनी िफर मोटरसाइिकल रोक ली। नकाब पहने एक
लड़क पीछ बैठी ई थी। वह भी नई उ क थी। मोटरसाइिकल चलाने वाला लड़का भी
लगभग उसी क उ का था।
पदानशीन लड़क ब त धीमी, कछ उदास सी आवाज़ म बोली –"मेरी बहन हॉ पटल म
ह। ब त बीमार ह। बस एक नंबर िमला दीिजये, बड़ी मेहरबानी होगी।"
साइिकल वाले लड़क ने तुरत अपनी जेब से एकदम नया ए ोएड फ़ोन िनकाला और
त परता से नंबर पूछकर कछ गव से भरता आ फ़ोन िमलाकर उस नाज़नीन क हाथ म दे िदया।
वह भूल गया िक फ़ोन िकतनी मश क़त क बाद उसक हाथ म ह और उसे इस तरह िकसी राह
चलते क हाथ नह दे देना चािहए। अचानक उसको कछ भी समझ म नह आया य िक
मोटरसाइिकल क र तार अचानक बढ़ गई और बढ़ती ही चली गई। फ़ोन लेकर वह
पदानशीन, नाज़नीन यह जा और वह जा हो गई।
एक बार लड़क ने सोचा िक मोटरसाइिकल का पीछा कर। साइिकल, मोटरसाइिकल क
पीछ नह दौड़ सकती सोचकर भी वह कछ दूर भागता रहा िफर ह का-ब का होकर खड़ा रह
जूठा सेब
ा पा डय
जुलाई-िसत बर 2021
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गया। खड़-खड़ ही अपनी जगह पर नाच सा
गया। उसने एक ट का अ ा उठाकर गु से
म अपनी ही साइिकल पर दे मारा। साइिकल
क हालत पहले से ही ख़राब थी और ख़राब
हो गई। चुप रह जाने क अित र और कछ
नह कर सकता वह। उसने ज़बान िसल लेना
ही ठीक समझा।
एक छोटी सी फ ी म काम करने वाली
सुपरवाइज़र का बेटा हरीश, उस हसीना क
नकाब से ढक खूबसूरत चेहर को याद कर
उसम उलझता रहा। फ़ोन और चेहरा दोन
एक दूसर म गडमड होते रह। उसक हसरत
उसक आँख म उतर आई थी इस बात पर
उसने यान ही न िदया था। शायद नाज़नीना
क आँख ब त खूबसूरत थ । उसक आँख
म काजल था। उन आँख क उसक पास अब
एक ऐसी याद थी जो उसको रह-रहकर
कचोटती थी। य पड़ गया उस हसीना क
च कर म, मगर अब तो तोते उड़ गए थे।
िकतने ही िदन से ए ोएड का एक फ़ोन
उसक सपन म चाँद सा था और वह उसे
उतार लाना चाहता था। अपनी चाहत म रग
भरना चाहता था।
हसरत पालना अपराध नह तो उनका पूरा
होना ही कसे आ। यह फ़ोन तो चाँद क पास
रहने वाले ने ही उसक झोली म डाल िदया
था। उसक दो त क पास एक से एक फ़ोन
थे। एक साधारण फ़ोन तो वह ले ही सकता
था। बड़ी मु कल से एक छोटा सा फ़ोन
उसने ढाई सौ पये म िलया था। उससे वह
एक त वीर भी नह ले सकता था। िकसी काम
का नह था। ए ोएड का नाम िकसी दो त
क ज़बान से सुना था उसने और उसक बाद
टीवी पर उसका िव ापन देखा था। वह
िव ापन उसक मन म आधे खाए सेब क तरह
सेब क महक बनकर समा गया था। सेब
उसने यू ूब पर कई बार देखा था। उसक
क मत भी मालूम क थी लेिकन वह ब त
महगा था। सच क सेब क क मत पूछकर भी
वह कई बार लौट आया था।
जूठ सेब क उस त वीर क ित उसक
मन म एक गहरी लालसा पैठ गई थी। रस
छोड़कर वह उसक प और गंध से बाव ता
था। चाँद उसक सपने म था, चाँद पर बने
ग नह । जूठा सेब भले ही न िमला। कछ तो
िमला, ए ोएड ही सही।
िमसेज़ शािलनी तनेजा, फ ी क
मालिकन का फ़ोन आज से एक महीने पहले
गायब आ था और सुपरवाइज़र क बेट का
एक महीने बाद। मालिकन ने सुना तो बेबी से
पूछा- "वह फ़ोन तु हार बेट क पास कहाँ से
आया?"
"मैडम, एक उसका दो त ह उसी ने
उसको लाकर िदया था।”
"कहाँ से लाया?" िमसेज़ तनेजा कछ
स त होकर पूछ रह थ ।
"यह तो मालूम नह मैडम, लेिकन
उसका फ़ोन चार सौ का था। मने ही उसका
पैसा िदया था मैडम।"
िमसेज़ तनेजा क मन म सच जानने क
छटपटाहट समा गई थी।
िमसेज़ तनेजा ने अपने ज़ री खच रोक
कर ए ोएड का वह फ़ोन खरीदा था और
जब पैसे कछ कम पड़ थे तब िम टर तनेजा ने
बड़ी िम त क बाद उसे कछ पैसे िदए थे
और वह फ़ोन खरीद सक थी।
िमसेज़ तनेजा को जब यह खबर ई थी
िक उसक सुपर वाइज़र बेबी क बेट ने कोई
फ़ोन खरीदा ह तब उसने बेबी से कहा िक वह
उसक बेट का फ़ोन एक बार देखना चाहती
ह।
बेबी ने झट से कहा-मैडम, वह तो बहन
क घर चला गया ह एक ह ते बाद लौटगा
और जब लौटा तो इस घटना क साथ िक कोई
नाज़नीन उसका फ़ोन ले उड़ी ह।
उसक फ़ोन क गुमशुदगी उसक िलए
िकसी रह य से कम नह थी। परद क महगी
दुकान म बैठी िमसेज़ तनेजा क हाथ म नया
चमचमाता आ ए ोएड फ़ोन ह िजसे हाथ
म लेकर उसने अपना पुराना फ़ोन भुला िदया
ह। िकतने ही रग-िबरगे, याह और सफ़द
परदे उसक चार ओर ह।
िमसेज़ तनेजा ख़याल क ऊबड़-खाबड़
रा त पर चल पड़ -अ सर लोग क पास
कोई ऑ शन ही नह होता। जैसे वह
पदानशीन। िन त प से उसक पास कोई
िवक प नह रहा होगा..तभी तो वह वहाँ
क , नह तो उस सुनसान सड़क पर भरी
दोपहर म उसको आने क या ज़ रत भी।
हाथ म परदे को देखते-देखते िमसेज़
तनेजा क िनगाह अपनी सोच पर अटक गई।
वह ब त सद िदन था। िमसेज़ तनेजा
या ा से लौट आई थी। उस क िदमाग म
सुराजी क जवान ब घूम रही थी। सुबह
अपनी फ ी प चते ही िमसेज़ तनेजा ने
सुराजी को अपने ऑिफ़स म तलब िकया।
बुिढ़या जानती थी िक उसक ऊपर गाज िगरने
वाली ह। िमसेज़ तनेजा क पास आती उसक
चाल म कभी न िमटने वाली थकान थी।
िमसेज़ तनेजा उसी िदन से, जब से फ़ोन
खोया था, आँख लाल िकए उसे घूर रही थी।
सुराजी दोन हाथ जोड़ काँपती ई उसक पाव
ँ
पर िगर पड़ी थी। उसक ठड हाथ िमसेज़
तनेजा क पाव
ँ से टकराए। िमसेज़ तनेजा का
गम और मुलायम, कोट म िलपटा कोमल
शरीर थरा गया लेिकन उस गमाहट से बूढ़ी
सुराजी को शायद सुख िमल रहा था।
वह िमसेज़ तनेजा क पाँव पर देर तक
हाथ रखे रही। िमसेज़ तनेजा ने अजीब िनगाह
से उसको देखा और अपने पैर ख च िलये।
वह िमसेज़ तनेजा क फ ी म ब त िदन से
थी लेिकन िमसेज़ तनेजा ने आज पहली बार
उसक चेहर को गौर से देखा था। झु रय से भर
चेहर पर, ठढ से वचा फटने क कारण पपड़ी
सी जमी थी। उसका गहरा साँवला चेहरा,
लालिमच क तरह सूखा था। उसक आँख म
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जाने कसा पानी था। आँसू थे या ओस, िमसेज़
तनेजा समझ न पाई। अब तक तो वह उसे
इतना ही देखती थी िक उसक िकतनी
छ याँ कटगी और पगार कह उसक
औक़ात से अिधक तो नह बन गई। इसक
अलावा उसक ित अब तक तट थ िमसेज़
तनेजा को आज उस पर सा आया था।
वह गुराई-"तुम अब यहाँ से िनकलो।"
बूढ़ी सुराजी ने िमसेज़ तनेजा क पाँव ज़ोर
से िफर पकड़ िलए -ऐसा न करो िबिटया।
उसने उसे पहली बार िबिटया कहा
था....इसक पहले तो वह मालिकन कहती
रही होगी या शायद िमसेज़ तनेजा ने कभी
उसक आवाज़ ही न सुनी थी, उसे याद नह ।
वह कहती जा रही थी–"िबिटया, तुम ही माई
बाप हो अब। तुम जो पगार देती हो, उससे
हमर आदमी कर दवाई का इतजाम इ जाता
ह..न िनकारो, ..हम कहवां जाबे?" िमसेज़
तनेजा को जाने या आ ..थोड़ी देर क िलए
वह मालिकन न होकर िबिटया बन गई,
लेिकन अगले ही पल उसको अपना खोया
आ फ़ोन िफर याद आ गया.. उसे यह
एहसास आ िक वह िगड़िगड़ाती ई इस ी
क झाँसे म नह आएगी। इस एहसास क आते
ही िमसेज़ तनेजा चीख पड़ी- "तु हारी इतनी
िह मत िक तुम मुझे आकर यह सब
समझाओ? कल मेरा फ़ोन मेर सामने होना
चािहए। नह तो!" सुराजी क साँस क गई
.. या बोलगी मालिकन-उसने दम साध
िलया- म तु ह जेल िभजवाऊगी। इस बार वह
मालिकन न कहकर- माई-बाप, हमार
भगवा और जाने या- या कहती रोने लगी।
वह िमसेज़ तनेजा क पाव
ँ को ज़ोर से
पकड़ कर बैठ गई। ऐसा न करना िबिटया!
उसक भीतर एक दया जागी लेिकन तभी बेबी
ने इशार से कहा िक यह सब जानती ह।
िमसेज़ तनेजा ने अपना चेहरा िफर स त कर
िलया।
बेबी ने मौका देख कर बाद म कहा-
"मैडम, इसम अपनी ब क करतूत बताने
क िह मत नह ह। इसक बेटा-ब इसे ध क
मार कर घर से िनकाल दगे.. ब बदमाश ह।
िमसेज़ तनेजा ने सोच िलया िक वह िकसी
क मत पर नह िपघलेगी लेिकन उसका बार-
बार िबिटया कहना उसे भीतर तक छ रहा था।
ब त िदन हो गए थे उसे खुद क िलए यह
संबोधन सुने। हवाई जहाज़ से क गई अनेक
या ा क दौरान, उन या ा म कई बार
बड़-बड़ होटल म कने क और कपनी ारा
आयोिजत बड़ी-बड़ी पािटय म भी जहाँ इतनी
आवभगत होती ह, जहाँ बेयर दुहर हो-होकर
सलाम करते ह वहाँ भी िकसी ने उसे कभी
िबिटया नह कहा था। िबिटया तो उसको
उसक माँ कहत थ जो बरस ए गुज़र चुक
थ । आज अचानक िमसेज़ तनेजा को अपना
बचपन याद आने लगा। वह ब त िदन क
बाद भोली सी, छोटी सी ब ी बन गई।
िमसेज़ तनेजा सबसे अिधक भरोसा बेबी
क बात पर ही करती थी। बेबी माट और
कछ नखरीली थी जो ब त कम समय म
िमसेज़ तनेजा क िलए ख़ास हो गई थी। िफर
भी बार-बार सुराजी को िनशाना बनाती बेबी
उस क शक क घेर म कब आ गई यह िमसेज़
तनेजा भी न जान पाई।- या बात ह जो यह
बेसहारा सुराजी को िकसी भी तरह नौकरी से
हटा देना चाहती ह। उसका शक पु ता होने
लगा। ताला-चाभी, उसक बाद फ ी पर पूरा
क जा रखने वाली उसक सुपरवाइज़र क
हिसयत से काम करने वाली यह आिख़र इतनी
ई यालु य हो रही ह। वह सचेत हो गई थी।
उसको लगा िक उसे इस तरह भी सोच
लेना चािहए। उसको शायद सुराजी पर दया
आई थी जब उसने अपने सद हाथ से उसक
पाँव पकड़ थे। वह उसक बफ ले हाथ क
छअन से िसहर गई थी। उसक पाँव गम थे
और सुराजी क हाथ बफ ले ठड थे। या
उसको उसक गम पाव
ँ को छकर गरमी िमली
होगी! िजस तरह िबिटया यह संबोधन उसक
मन म समा गया था। माँ ने तो उसका नाम ही
िबिटया रख छोड़ा था, उसे याद आया िक जब
भी वह उसे िबिटया बुलाती थी वह दौड़कर माँ
क पास जाती थी।
उस िदन उसका फ़ोन या खोया था िक
उसक छोटी सी फ ी क याले म तूफ़ान ही
आ गया था। वह बार-बार यही कहती चीख़
रही थी– मेरी ही ज़मीन पर पलने वाले तुम
लोग? मेर नौकर और चाकर! मेरी ही फ ी
से मेरा फ़ोन चोरी कसे हो गया? यह िहमाक़त
िकसने क ? उस ने आपा खो िदया था और
चीख-चीख कर देर तक लाप करती रही
थी। मुझे फ़ोन चािहए नह तो म पुिलस को
खबर क गी। माकिटग क लड़क को तो
फ ी म पाँव रखने क ही अनुमित नह थी।
वे भी िमसेज़ तनेजा क आवाज़ सुनकर काँप
गए थे। उसक चहारदीवारी पर हाथ रख देना
ही बड़ी बात ह िफर िकस क िह मत ह?
िमसेज़ तनेजा को फ़ोन क खोने का संताप तो
आ ही था उससे भी बड़ा उसका ोध था,
उसक ही आि त ने यह िकया कसे? इतनी
िहमाकत कसे ?
िमसेज़ तनेजा ने ब त पैसे खच कर क
अपनी एक बड़ी हसरत पूरी क थी। उसका
वष का सपना था वह-फ़ोन। तब उसका
काम इतना अ छा नह था िक वह अिधक
पए ख़च कर दे लेिकन इ छा का या
करती।
िमसेज़ तनेजा फ ी से दुखी हो लौट
आई। उसी िदन िमसेज़ तनेजा क िद ी क
िलए लाइट थी। उसको एक ज़ री मीिटग
म जाना था इसिलए उसक िलए संभव नह था
िक वह वहाँ कती और फ़ोन को खोजती,
उसने यह काम बेबी को स पा और समय से
एअरपोट क िलए िनकल गई। सुराजी िजसको
झुक कमर को सीधा करने म समय लगता
था, वह कसे ऐसा कर सकत थी? फ़ोन का
न ऑन होते ही पासवड डालने का
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  • 1.
  • 2.
  • 3. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 1 संर क एवं मुख संपादक सुधा ओम ढ गरा संपादक पंकज सुबीर क़ानूनी सलाहकार शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट) तकनीक सहयोग पा ल िसंह, सनी गो वामी िडज़ायिनंग सुनील सूयवंशी, िशवम गो वामी संपादक य एवं यव थापक य कायालय पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7 स ाट कॉ लै स बेसमट बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001 दूरभाष : +91-7562405545 मोबाइल : +91-9806162184 ईमेल : vibhomswar@gmail.com ऑनलाइन 'िवभोम- वर' http://www.vibhom.com/vibhomswar.html फसबुक पर 'िवभोम वर’ https://www.facebook.com/vibhomswar एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5) सद यता शु क 1500 पये (पाँच वष), 3000 पये (आजीवन) बक खाते का िववरण- Name: Vibhom Swar Bank Name: Bank Of Baroda, Branch: Sehore (M.P.) Account Number: 30010200000312 IFSC Code: BARB0SEHORE संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यवसाियक। पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा। Dhingra Family Foundation 101 Guymon Court, Morrisville NC-27560, USA Ph. +1-919-801-0672 Email: sudhadrishti@gmail.com वै क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का वष : 6, अंक : 22, ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2021 RNI NUMBER : MPHIN/2016/70609 ISSN NUMBER : 2455-9814 आवरण िच राजे शमा रखािच मािटन जॉन
  • 4. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 2 संपादक य 3 िम नामा 5 िव मृित क ार िश बन लाल क बहन, रोती नह उषा ि य वदा 6 कथा कहानी जूठा सेब ा पा डय 12 उसक मौत िवकश िनझावन 17 अँधेर क बीच अ णा स बरवाल 20 कौन सुने ? काद बरी मेहरा 26 िमशन - एन.पी.ए. डॉ. रमेश यादव 30 सेहर का सगुन कामे र 34 वािभमान सेवक नैयर 39 देवता अ ण अणव खर 45 स ाटा छाया ीवा तव 48 भाषांतर यथाथ क र च (मलयालम कहानी) लेिखका - कमला दास अनुवादक - अनािमका अनु 52 शंख घोष क किवताएँ अनुवादक - रोिहत साद पिथक 85 यं य लोकापण ीकांत आ ट 54 सं मरण हम भी कमीने, तुम भी कमीने ज़ेबा अ वी 56 रामरतन अव थी जी मेर पहले सािह यक गु वीर जैन 64 याद क झरोखे से रिडयो का देशी इलाज करते िपता गोिव द सेन 66 ज मा मी शोभा र तोगी 69 समाचार िव णु भाकर रा ीय ो साहन स मान 68 पहली कहानी आिख़री ख़त अिदित िसंह भदौ रया 72 लघुकथा खेती डॉ. वीर कमार भार ाज 74 िल यांतरण ग़ािलब अंड गोएट मूल रचना – हाजी लक़ लक़ अनुवाद – अखतर अली 75 किवताएँ खेमकरण 'सोमन' 77 एकता कानूनगो ब ी 78 काश मनु 79 ितभा चौहान 80 चंचला ि यदिशनी 82 दीपक शमा 'दीप' 83 ग़ज़ल दौलतराम जापित 85 धम गु 86 सुभाष पाठक 'िज़या' 87 आिख़री प ा 88 िवभोम- वर सद यता प यिद आप िवभोम- वर क सद यता लेना चाहते ह, तो सद यता शु क इस कार ह : 1500 पये (पाँच वष), 3000 पये (आजीवन)। सद यता शु क आप चैक / ा ट ारा िवभोम वर (VIBHOM SWAR) क नाम से भेज सकते ह। आप सद यता शु क को िवभोम- वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरण- Name of Account : Vibhom Swar, Account Number : 30010200000312, Type : Current Account, Bank : Bank Of Baroda, Branch : Sehore (M.P.), IFSC Code : BARB0SEHORE (Fifth Character is “Zero”) (िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा कर टर अं ेज़ी का अ र 'ओ' नह ह ब क अंक 'ज़ीरो' ह।) सद यता शु क क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पि का भेजी जा सकः 1- नाम, 2- डाक का पता, 3- सद यता शु क, 4- चैक/ ा ट नंबर, 5- ांज़े शन कोड (यिद ऑनलाइन ां फ़र ह), 6-िदनांक (यिद सद यता शु क बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।) संपादक य एवं यव थापक य कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com इस अंक म वै क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का वष : 6, अंक : 22, ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2021
  • 5. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 3 सुधा ओम ढ गरा 101, गाईमन कोट, मो र वल नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए. मोबाइल- +1-919-801-0672 ईमेल- sudhadrishti@gmail.com संपादक य अ य श ु कोिवड-19 से जूझते ए, आिथक संकट का सामना करते ए, अमे रका तेज़ी से इन चुनौितय और आपि य से उभर आया ह। अब हालत यह ह िक नौ िमिलयन नौक रयाँ उपल ध ह, और उ मीदवार नह िमल रह। ये नौक रयाँ सरकार ने नह िनकाल । यह सब ग़ैर- सरकारी े क देन ह। सरकार इतनी नौक रयाँ िनकाल भी नह सकती। हर काम ऑन लाइन होने से सरकारी े म नौक रयाँ कम हो गई ह। अमे रका सबसे बड़ा लोकतांि क देश ह। इसे पूँजीवादी कह कर भड़ास िनकाली जा सकती ह, पर इसक काय- णाली उदाहरण ह, िवचारणीय ह। यहाँ ाइवेट कपिनय और िनजी े को बढ़ावा िदया जाता ह तािक देश को सुचा प से चलाया जा सक। साठ साल पहले नासा ने अंत र म उड़ान भरी थी। 11 जुलाई 2021 म एक उ ोगपित रचड ेनसन ने स ह वष क प र म क बाद अंत र पयटन क शु आत क ह। पहली उड़ान म एक भारतीय मिहला इजीिनयर ीशा भी थी। छह सौ पचास लोग ने अंत र म जाने क िलए अि म बुिकग भी करवा ली ह। सामा य जीवन जीने का य न िकया जा रहा ह... कोिवड-19 क पहली लहर क दौरान पूरा िव यही समझता था, िक इसक समा होते ही जन जीवन िफर से सामा य हो जाएगा। सामा य तो हो रहा ह, लेिकन अलग तरीक से। पहली लहर क नुक़सान क बाद दूसरी लहर जो ित प चा रही ह, िव अभी उसका सामना कर रहा ह, तीसरी लहर का डर बना आ ह। ऐसे म कोिवड से पहले जैसी थित होनी संभव नह ह। जान-माल क जो हािन ई ह, उसक पूित तो कभी संभव ही नह । यह माना जा रहा ह, कोिवड वायरस हर साल लू क तरह कट होगा। जहाँ अिधकतर लोग ने वै सीन लगवा ली होगी, वहाँ इसे मैनेज करना आसान होगा। जीवन जीने क एक िभ शैली सामने आने वाली ह
  • 6. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 4 संपादक य ब क अंदर क िन छलता क कारण ही जानवर उनक ब त ज दी िम बन जाते ह। जैसे-जैसे हम बड़ होते ह, वैसे- वैसे यह िन छलता हमार अंदर से समा होती जाती ह। मासूिमयत को भी कित पहचानती ह और रता को भी। कित क पास बने रहने क िलए आव यक ह अंदर से ब ा बने रहना। हाँ, लोग ने अब इस श ु क साथ जीना सीख िलया ह, पर इसका व प पहले से ब त अलग होगा। हर े म आक मक प रवतन आए ह, िजनसे सामंज य थािपत करने म समय लग रहा ह। तकनीक और बड़ी-छोटी िजन कपिनय ने अमे रका म अपने कमचा रय को घर से यानी ऑनलाइन क यूटर पर काम करने का िवक प दे कर े रत िकया ह, वे कमचारी महगे शहर म रहने क बजाए अब गाँव, छोट शहर या क ब क ओर मुड़ रह ह। जहाँ रहन-सहन स ता ह और वातावरण व छ। ाकितक थान म लोग थानांत रत हो रह ह। कभी-कभार मीिटग क िलए हवाई या ा कर िलया करगे। पर काम घर से हो रह ह, इसिलए या ाएँ कम हो गई ह। कल और कॉलेज क िश ा म भी ब त अंतर आ गया ह। ऑनलाइन िश ा िदए जाने से कल और कॉलेज शु होने क बावजूद भी कछ िवषय ऑनलाइन पढ़ाए जाएँगे। ल बे लॉकडाउन म कई िव िव ालय ने अलग-अलग े म ऑनलाइन कोसज़, ऑनलाइन िड ी क िलए दािखला देकर पढ़ाना शु कर िदया था; य िक वे समझ गए ह िक कोरोना जैसे अ य श ु अब पैदा होते रहगे और जीवन पहले जैसा कभी भी नह हो पाएगा। ऑनलाइन िश ा का चलन ब त बढ़ गया ह। घर बैठ कई मिहला-पु ष ने ऑनलाइन यावसाियक िश ण लेकर अपने काम शु कर िदए ह। अनिगनत घरलू मिहला ने इस समय का सदुपयोग िकया ह, और अपने छोट-छोट धंधे शु कर िलए ह; िजनक िब ऑनलाइन ही होती ह। ब क कल और अब कॉलेज खुलने क बाद ही पता चलेगा िक लोग का जीवन िकस िदशा क ओर मुड़ता ह; य िक पूरी सावधािनयाँ बरती जाएँगी, पूर ोटोकॉल फॉलो िकए जाएँगे पर अभी भी कोरोना का डर तो ह, देखते ह ऊट िकस करवट बदलता ह...िजन लोग ने वै सीन नह ली, वे यहाँ ड टा न क िशकार हो रह ह। मृ यु दर क आँकड़ बढ़ रह ह। जीवन जीने क एक िभ शैली सामने आने वाली ह। तकनीक और ऑनलाइन सिवसेज़ जीवन म एक अ यािशत प रवतन लाने वाली ह। खेती-बाड़ी और किषकम ोन से संप करवाए जाएँगे। पयावरण म घनघोर प रवतन आएगा, य िक आवाजाही कम हो जाएगी। बैटरी से चलने वाली कार और वचािलत कार को बनाने क होड़ लगी ई ह, तािक पयावरण क र ा क जा सक। पयावरण क बार म नह सोचा जाएगा तो कित बार-बार सबक िसखाएगी। कोरोना ने एक बात प कर दी ह, िव क हर य को तरह-तरह क चुनौितय क िलए तैयार रहना पड़गा। भिव य म कोरोना जैसे कई श ु आ मण कर सकते ह। अगर देश और जनता तैयार नह ह गे तो इससे भी अिधक किठनाइय का सामना करना पड़ सकता ह। िवभोम- वर और िशवना सािह यक प रवार क ओर से सािह यकार रमेश उपा याय, नर कोहली, रामरतन अव थी, मुशरफ़ आलम जौक़ , ज़हीर करशी, शंख घोष, मं र एहतेशाम, याम मुंशी, मह गगन, कवर बेचैन, भु जोशी, चंडीद शु , युगेश शमा, िदवाकर भ , राजेश झरपुर, राजकमार कसरवानी को भावभीनी ांजिल!! आपक , सुधा ओम ढ गरा
  • 7. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 5 जून क धूप म शीतल हवा 'िवभोम- वर' जून क धूप म शीतल हवा ह जो मुझ मानुष मन को ब त सकन दान करती ह। कभी लगता ह िक आप पेड़ क भाँित चुपक-चुपक अपना काय कर रह ह या नदी बन, बहते ए अपने मुकाम पर प चने- प चाने क तैयारी म ह। आपक सबसे अ छी बात यह ह िक आप नए लेखक को छापते ब त ह। इस मानिसकता क पि काएँ ब त कम होती ह। बहरहाल... जनवरी-माच 2021 अंक िमला। एक साथ ब त कहािनयाँ और नए लेखक को पढ़ने का अवसर पा रहा । व थ जीवन क शुभकामनाएँ और लाख-लाख दुआ क साथ। -खेमकरण 'सोमन', ारा बुलक साहनी, थम कज, अ बका िवहार, भूरारानी, वाड- 3 2 , पुर, िजला- ऊधम िसंह नगर, उ राख ड-263153, मोबाइल: 09045022156 000 िदलकश सं मरण अफ़रोज़ ताज का 'च मे क खोज' लेख पढ़ा। िदल बाग-बाग हो गया। बेहद खूबसूरत अंदाज़े-बयाँ। च मा छीनकर अ मी गायब हो गई, वे िकताब पढ़कर नह दुिनयावाल को देखकर िलखते थे, इस बंदे ने दो श द क अथ ही बदल डाले। पहला 'बकवास' और दूसरा 'समझदार', प पर चूरन रखकर खा चुक ह गे। सबसे आिख़र म िकताब का िमलना। ऐसा िदलकश सं मरण कम ही देखने म आता ह। मुबारकबाद ! - ीकांत आ ट, जी-1/81, गुलमोहर कालोनी, भोपाल, 462039 000 ब त पठनीय सं मरण अफ़रोज़ ताज का िलखा सं मरण 'च मे क खोज' िवभोम- वर पि का म आज ही पढ़ा। आपने च मे क बहाने अपनी अ मी को तो अंतरमन से याद िकया ही लेिकन च मे क िकतने, कसे-कसे योग होते ह, आलेख क बहाने उनका भी रोचक अनुसंधान आपने तुत िकया ह। आपक लेखन म हा य यं य का भी अ छा खासा पुट ह जो इसे ब त पठनीय बनाता ह। िलखते समय आपने अ मी को अपनी याद म कछ ऐसे िज़ंदा िकया, जैसे च मा िकताब नह , आपको आपक अ मी ही िमल गई। सच क तो आपक इस भाषाई योग ने माँ को याद करते ए मेरी आँख से भी आँसु क कछ बूँद िनकाली, कछ धाराएँ बहा । -रितभान ि पाठी, लखनऊ 7905252032/9415225285 000 अगले अंक का इतज़ार यह तो जानती थी िक उषा ि य वदा अमे रका म ही कह रहती ह, पर उ ह ढढ़ने क कोिशश नह क , हालाँिक उनक लेखन क शंसक । पचपन ख भे लाल दीवार, कोगी नह रािधका, अंतवशी उप यास और वािपसी कहानी कौन भूल सकता ह। िवभोम- वर का अ ैल-जून 2021 अंक खोला और खोलते ही संपादक य क बाद अपनी ि य लेिखका को देख कर हरान रह गई। िव मृितय क ार पढ़ कर उषा जी क बार म ब त कछ जानने को िमला। अंत म जब मशः(अगले अंक म जारी रहगा) पढ़ा, तो िदल ब य उछला। अब अगले अंक का इतज़ार ह.... -सरोज ीवा तव, 1105 Sunset Hits,Columbus,Ohio43202 000 उषा ि य वदा का सं मरण बोनस िवभोम- वर का अ ैल-जून 2021 अंक िमला। कहािनयाँ एक से बढ़कर एक। उषा ि य वदा का सं मरण ऐसा बोनस िनकला, िजसक उ मीद शायद िकसी पाठक को नह थी। इसक पहले से कोई प लिसटी भी नह क गई थी। नई पीढ़ी जो पुराने लेखक को भूलती जा रही ह, ऐसे िसलिसले से उ ह नए लेखक क साथ पुराने लेखक का भी पता रहगा। अगले अंक क ती ा ह... - ती ा माथुर, िवकासपुरी, िद ी 000 'आिख़री प ा' पढ़ कर िदल श महोदय, 'िवभोम- वर' का अ ैल-जून २१ अंक िमला। आपका 'आिख़री प ा' पढ़ कर िदल श आ। आभारी िक आपने मेर ही नह , मेर जैसे अनेक लेखक क मन क बात कह दी। धमयुग, सा ािहक िह दु तान, सा रका आिद पि काएँ बंद , समाचार प ने भी सािह य से जी चुराना शु कर िदया। अब तो काद बनी और नया ानोदय भी बंद हो गए। ि ंट मीिडया ने तो सािह य को लंगड़ा घोड़ा समझ ताँग म जुतने को छोड़ िदया। कभी सािह यकार, संपादक बनते थे, अब एम.बी.ए. मैनेजर या प कार। आपने सही कहा- "यही तो म पूछ रहा िक जो िलख नह रहा, उसका यहाँ या काम ? मगर काम को तो छोिड़ये वह तो यहाँ सवसवा बना बैठा ह।" संभवतः आप पहले थािपत लेखक ह, िजसने इस कट स य को इस कार उजागर िकया ह। अंक का संपादक य ानवधक ह। और 'धीर र खुले िकवाड़' रोचक था। ' म', 'मा टरनी का जादूमंतर' और 'िच ा वीदू' कहािनयाँ ी िवमश से अिभ े रत तीत होती ह। 'छतरी', 'अनछआ' और 'क ज़े का मकान' सामािजक िवसंगितय को वर दान करती ह। 'पानी क परत' िकशोर मन और 'फटा आ ब ता' बालमन क कोमल भावना क मम पश कहािनयाँ ह। लघुकथाएँ और किवताएँ गागर म सागर समान ह। कल िमलाकर अंक सराहनीय व सं हणीय था। सादर -योगे शमा, 86, खि यान, िबजनौर उ 246701, मोबाइल 989741032 000 िम नामा
  • 8. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 6 उषा ि य वदा 1219 शोर वुड बुलेवाड, मैिडसन , िव कॉ सन, 53705, यू एस ए मोबाइल-608-238-3681 ईमेल- unilsson@facstaff.wisc.edu िव मृित क ार उ ीस सौ सतालीस म दादा भी अ य राजनीितक क़िदय क तरह जेल से छट- पाँच साल, फाँसी क सज़ा, िफर उसे बदल कर आज म क़द पर उसम सैिलटरी क फ़ाइनमट; या- या नह झेला होगा पर शायद उन साल ने और क यिन और कमठ बना िदया। जेल से छटकर कानपुर आए, िश बन लाल का वागत करने क िलए हज़ार क भीड़ उमड़ी। मने साल से दादा को देखा भी न था, उनक मुखाकित भी मृित म धुँधली पड़ गई थी। घर म उ साह का माहौल था- माँ ने चू ह पर दादा क िलए खीर बनाई और जाली क अलमारी म ठडी होने क िलए रख दी। मने भी अपनी खादी क सािड़य म सबसे पसंदीदा फालसई रग क साड़ी पहन ली, िजस पर पहला बॉडर था। माँ ने थाली सजा ली और छोटी दादी ने िनणय सुना िदया, िश बन लाल जब ऊपर क खंड म आएँगे तब म उनका रोली अ त से टीका क गी, बाद म अ य लड़िकयाँ और याँ। छोटी दादी का यह ताव भी सवस मित से पास हो गया और इस अवसर क मह ा समझते ए इ दो बुआ भी अपने स प नगर क बंगले से हमार घर परड आ ग । शायद दोपहर क तीन बज गए थे, सारा प रवार िबना खाए-िपये दादा क ती ा कर रहा था। तभी छोट चाचा, जो दादा क घर प चने क सूचना देने क िलए अि म ूटी पर तैनात िकए गए थे -बदहवास से घर म घुसे-और ब त नाटक य ढग से अनाउस करते ए बोले- ''िश बन लाल ने गोिवंद को गले लगा कर भट िलया....'' यह सुनकर घर क सभी याँ त ध रह ग । चाचा ने आगे बताया, ''जब िश बन लाल रल गाड़ी से उतर तो हम सब ने उ ह मालाएँ पहना । उनक गोिवंद और बनवारी पर पड़ी जो सबसे अलग, दूर माला िलये खड़ थे। वह आगे बढ़ और गोिवंद को गले लगा िलया, वह तो फट- फट कर रोने लगा। बनवारी तो भाग खड़ा आ िक कह उसे भी गले न लगा ल- बनवारी और उसका प रवार हमार घर का िश बन लाल क बहन, रोती नह उषा ि य वदा
  • 9. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 7 शौचालय साफ़ करता था। इस सूचना म अंतिनिहत संकत था िक ह रजन गोिवंद को गले लगा कर दादा अपिव हो गए थे। यह महा मा गाँधी क िनयम का पालन करने वाले दादा से कौन कहगा िक पहले नहाओ िफर घर म घुसो- छोटी दादी ब त पसो पेश म थ , बाक़ सार लोग मौन और त ध थे। तभी दादा घर म घुसे और बेिझझक हमार आगे आकर खड़ हो गए। मने थाली उठा ली, िफर दादी को देखा-वह अभी असमंजस म ही थ - मने माँ क ओर डाली उ ह ने आँख क इशार से कहा िक टीका करो। मने कई साल क र ा बंधन और भाई दूज क कसर िनकालते ए उनक श त ललाट पर रोली का ल बा सा टीका लगाया लगा िदया- िफर उसक ऊपर चावल िछड़क। दादा, चाचा क साथ चारपाई पर बैठ गए, मालाएँ उतार कर अलग रख द और ध से ि यजन का मुआयना िकया। मुंशी चाचा क ब े माला क िलए आपस म ख चतानी करने लगे- माँ ने जाली क अलमारी से ही खीर का कटोरा िनकालकर उ ह पकड़ा िदया, और उस ण म बरस से चली आई छआछत, जूठी, सकरी, क ी- प क रसोई और ऊच- नीच, ह रजन और सवण पर परा ढह गई। मुझे महसूस हो रहा था िक अब हम सारी देह रय को पार कर एक नए समय म वेश कर रह ह, हमने नई, िव तृत, खुली ई दुिनया म क़दम रख िदया ह। 000 उस छह साल, नह साढ़ पाँच साल क लड़क को कोई य बताएगा िक यह सब या हो रहा ह। ढाई साल पहले पापा मर चुक ह, अब घर ख़ाली करना पड़ रहा ह। बड़-बड़ त त, िजस पर िपता क मुव कल आकर बैठते थे, पड़ोस क वक ल जगदीश माथुर उठवा कर ले जा रह ह। उनक लॉ क िकताब भी, िजनक लाल, एक सार िज द थ , शायद उ ह क घर जा रही ह। नीचे वाला कमरा ब त बड़ा ह, िजसम शीशे क ऊची-ऊची शीशम क आलमा रयाँ ह, एक म आदमक़द शीशा ह। पास ही ऊपर जाने क सीिढ़याँ ह, िजन पर वह अँधेर से डरती ई लड़क साँस रोक कर ऊपर चढ़ने लगती ह। चार ओर िवघटन ह, पर उसे या मालूम, उसे कोई कछ य बताएगा। ब को ये बात नह बताई जात । पर वह देख रही ह क़तार क क़तार लोग कछ न कछ उठाकर ले ही जा रह ह, यहाँ तक िक वह नया चमचमाता सूटकस, जो उसका था, जो उसे लॉटरी क िटकट पर िमला था। बड़ मकान क इ दो बुआ का मुँह लगा नौकर बंसी कधे पर उठाकर ले जाता िदखाई देता ह- िखलौन वाला कमरा सब वैसे ही छोड़ िदया जाता ह। परड क रामलीला क दशहर क िदन एक चाँदी क पये म ख़रीदा िम ी का चू हा- च क , तवा, करछी- और िसर पर मटक िलये लाल लहगे और हरी चुनरी वाली गुज रया, कधे पर काँवर उठाए ए वण कमार और दो डिलय म दो पुतले- उसक बाद क़तार क क़तार िम ी क गणेश, ल मी; िपछली कई िदवािलय क- यह सब उसने, उस पाँच, साढ़ पाँच साल क लड़क , ने सहज कर रखा ह, वह घंट उस छोट से, कोने वाले कमर म अपने इ ह िखलौन से खेलती रहती ह। कभी-कभी रमेश आ जाता ह, पड़ोस क बुिटयर बाबू का बेटा, उससे कई वष बड़ा, पर छोटी बहन ारा नीचे धकल िदए जाने क कारण वह थायी प से िदमाग़ी चोट से त ह, पर उसक मु कान िकतनी सरल ह, वह जब भी आता ह तो कमर क आगे खड़ा होकर उसका नाम लेता ह, िझझकती आवाज़ म, असमंजस म-- और जब उसक पुकार सुनकर लड़क बाहर िनकलती ह, तो रमेश का चेहरा उसे पहचान कर एक मीठी, ध मु कान से भर उठता ह- ऊऽऽऽ षाऽऽऽ वह िझझकते ए कहता ह जैसे अपने को िव ास िदलाना चाहता हो िक वह सही जगह ह और यह लड़क वही ह जो उसक खेल क सािथन ह। वह घंट उन िम ी क िखलौन से खेलते ह। रमेश को चू हा-च क पसंद ह। वह चू ह म क पत आग जलाता ह, बटलोई रखता ह, िफर तवा, िफर त तरी म खाना परोस कर कहता ह-- लो -- िबलकल वैसे ही जैसे वह रोज़ अपनी माँ को देखता ह-- लड़क चुप रहती ह, उसने शंसा करना या अिधक बात करना नह सीखा ह। दोन अलग-अलग त त रय म झूठमूठ का भोजन करते ह, बतन धोते ह और वापस रख देते ह। उसे कब, कहाँ, िकसक साथ खाना िमलता था, यह सब याद नह ह। ऊपर क खंड म न बैठक थी, न डाइिनंग म, बस एक क़तार म चार कमर थे, और सामने बरामदा, िफर खुला आँगन, उसक बाद घर का दूसरा दरवाज़ा, िजससे नौकर चाकर और बनवारी या उसक ब सफ़ाई करने आती थी, उस दरवाज़े से उतरो तो सामने खुला आ गैरज था िजसम ट पर पापा क हर रग क फ़ोड मोटर खड़ी रहती थी- उनक मरने क कई बरस बाद भी- सबसे पहले जो कमरा था वह सबसे बड़ी बहन कमला का था, उसक बाद क दो कमर म माँ, म और मेरी मझली बहन क मन, चौथा कमरा सबसे बड़ा था, रसोई क पास, उसम दादी रहती थ , अपनी िदवंगत बेटी क सौत क साथ- उसक बाद रसोई थी और उसम भी एक दरवाज़ा पड़ोसी जगदीश बाबू क छत पर खुलता था- उसी दरवाज़े से हम ब े उन खुली -खुली छत पर खेलने जाते थे। उसी से पड़ोस क याँ अंदर आती थ -उसी दरवाज़े क चौखट पर िगरने से मेरा िसर फटा था और उसी दरवाज़े से माँ ने मरी ई महरािजन का भूत कमर म लु होते देखा था पर तब घर म िकसी को मालूम नह था िक
  • 10. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 8 गाँव गई ई महरािजन मर चुक ह। उस घर म िसफ़ माँ को ही भूत ेत िदखाई देते थे, कभी छत पर, कभी अपने कमर म घुसते ए जो तुरत बड़- बड़ काले क म बदल जाते थे। अगर सामने से आना चाहो, उस दरवाज़े से मद ही आते थे, सीिढ़याँ चढ़कर छ े से गुज़र कर दरवाज़े क अंदर! और मद भी कौन? मामा जी या उनक बेट काश या ल ू, िजनसे र ता या था उस लड़क को ब त बरस तक पता नह चला, या खु ख या भैया होरीलाल, दादा, िश बन लाल कभी कभार; य िक वह वतं ता सेनानी होने क कारण अिधकतर जेल म रहते थे। बस, उसे वह िदन याद ह जबिक यामलाल क हाते म भयंकर सफ़ाई ई थी, त त बाहर िनकाले गए थे, यह जगदीश माथुर क घर जाने से पहले क बात रही होगी, िछड़काव आ था- लड़क को ख र क छ टदार नई ॉक पहनाई गई थी और कहा गया था िक जवाहर-लाल नेह को झुककर नम ते करना और तब माला पहनाना। ख र क उस मोटी खुरदुरी, छ टदार ॉक क मृित कभी उसक वचा से अलग नह ई- कभी भी। रल क पिहय क खटर-खटर से वह जाग गई। हाथ म पैसा था- रल कानपुर छोड़कर गंगा क पुल से गुज़र रही थी। उसने हाथ से पैसा उछाल कर गंगा जी म फक िदया। उसे मालूम नह था िक यह उसक जीवन या ा का पहला चरण था और घर से बेघर होने का भी। 000 लखनऊ म हीबेट रोड, लाटश रोड, सुंदर बाग़ क घर बार-बार बदलने क बाद अब हम पाक रोड म थे, घर नए बने ए थे- सामने क सड़क अभी ठीक से बनी नह थी, क ी प क ग वाली- बरसात म घर क आगे काफ़ पानी भर जाता था और मुह े क ब े उसने कदते-फाँदते रहते थे, िसंह साहब क तीन लड़िकयाँ डज़ी, पै ज़ी और िडिलया- उसक साथ प ा, िजसे दूसर ब े िचढ़ाने क िलए प कह कर पुकारते थे। हमार घर क आगे लोह का जँगला था, उसक बाद एक लंबी चौड़ी बारादरी, जँगले क साथ या रयाँ थ िजनम हरिसंगार और मधुमालती समय-समय पर फलती रहती थ - उन िदन बड़ भाई िश बन लाल जेल से छटकर घर पर थे और चीनी िमल पर रपोट िलख रह थे। वह इलाहाबाद से एम.ए करक गोरखपुर ोफ़सर हो गए थे; वह उनक भट महा मा गाँधी से ई और उ ह ने दादा को महाराजगंज क िपछले इलाक़ और वहाँ चीनी िमल म काम करने वाले मज़दूर क दुखद थित को सुधारने का आदेश िदया। दादा उसी काम म लीन हो गए, वतं ता सं ाम म एक दम समिपत। घर म जो बात होती थ - हम ब े सुनते थे और जान गए थे िक हम पराधीन ह - अं ेज़ हमार शासक और शोषक ह- हम पड़ोस क िसंह साहब या प ा क ठकदार िपता क तरह उनक चाकरी नह करनी चािहए- हम छ टदार खादी क ॉक म ही स रहना चािहए, डज़ी या पै ज़ी क तरह मुलायम नरम मख़मल म नह । दादा ायः बाहर बरामदे क आगे खुली ज़मीन पर बैठ-बैठ रपोट िलखने म लीन रहते थे। कभी-कभी हरिसंगार क फल िगरकर उनक बाल म उलझ जाते थे पर उ ह पता ही नह चलता। तप यारत एक साधक क तरह। हम ब े चुप रहते थे, शोर नह मचाते थे, न हम, न हमार साथी। दादा का य व ही ऐसा था, उनक पूरी भावमु ा ब त सहज और ेिहल होती थी, उनक ने म मेधा और एक वैचा रक य क आँख म होने वाला तेज रहता था-- कभी-कभी वह िलखना रोक कर, सर उठाकर सड़क पर खेलते हम ब को देखने लगते; तब उनक चेहर पर एक ब त ेिहल मु कान आ जाती थी। पाक रोड क घर म जो बात मुझे ब त अ छी लगती थी, वह थी उसक लखनऊ क िनकटता। िदन-रात समय- असमय हम हािथय क िचंघाड़ और शेर क दहाड़ सुनाई देती रहती थ । शायद उसी समय से मुझे पशु- पि य से लगाव ारभ हो गया। िश बन लाल से छोट भाई होरी लाल, िज ह हम तीन बहन 'भैया' कहती थी, रोज़ सुबह हम क सैर कराने ले जाते थे हम- यानी मुझे, और मँझली बहन क मन। हम लोग िजस पगडडी से घुसते उसक समा होते ही पि य का घेरा आता था, सबसे पहले मोर, िजनम एक सफ़द मोर हमेशा पंख फलाए नाचता िमलता था, म देर तक वह क ई उसे देखती रहती थी, िजस व तु को न पा सको पर यार करते रहो, ऐसा ही कछ संबंध मेर और सफ़द मोर म बन गया था- वह हमार पास आते ही और घेर क बाहर खड़ होते ही पूर पंख फलाकर नाचने लगता था- और मुझे लगता था िक इतने आने वाल म शायद िविश - तभी तो मेर पास आते ही वह नाचने लगता ह। मोर क बाद रग िबरगे काकातुआ, तोते और तरह-तरह क प ी कलरव िकया करते थे, उसक बाद लकड़ब घे और ऊदिबलाव। इतना सब पार करने क बाद वह घेरा आता था जहाँ राजसी मु ा म बबर शेर बैठा रहता था, पास म दो शेरिनयाँ और उछलते कदते उनक ब े। शेर कभी-कभी मुँह खोल कर दहाड़ देता था- तब हमारा पूरा शरीर दहल जाता था और हम उस दहाड़ क ती ा करते रहते थे। आस-पास हर उ ान थे, मोर पंखी क झाड़ और रग िबरगे फल, जब कभी हमारी छोटी मौसी सौभा यवती, जो लखनऊ म ही रहती थ , ब सिहत माँ क पास आत तो हमारा जाना अिनवाय होता था। उनक बड़ बेट सुधीर से जो मुझसे तीन साल छोटा था, मेरी ब त पटती थी, जब तक घास पर चादर और बैड कवर िबछते, िटिफ़न क रयर से
  • 11. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 9 पू रयाँ, आलू क कचौिड़याँ और तरकारी िनकलती हम दोन मोर पंख क झुरमुट क आस-पास दौड़ते, भागते, खेलते, हसते, िखलिखलाते रहते। कभी-कभी ब त बड़ पन से सुधीर का हाथ पकड़ कर हम शेर क बाड़ क ओर चले जाते। बाड़ क चार ओर ब गहरी और चौड़ी नहर थी, उसक बाद जंगले; यानी दशक सुरि त रहते थे- हम लोग खड़- खड़ उस प रवार को देखते रहते जहाँ शेर क ब े उछलते, कदते- भागते, दौड़ते िदखाई देते थे। कभी-कभी शेर धूप से उठकर अपने कटघर क ओर चल देता तो हम उसक मंथर, शाही चाल को िबना पलक झपकाए देखते रहते- ब त वष बाद, डिनश लेिखका, इसाक डिनसन क 'आउट ऑफ़ अ का' पढ़ते ए मुझे अपने बचपन क उस बबर शेर क याद आ गई और जब मने उनका बंदूक लेकर अपने घोड़ क बाड़ म आए अ का क शेर को मारना पढ़ा तो मुझे ब त दुःख लगा पर जब उ ह ने अपने ेमी क क़ पर दो शेर को िनयिमत प से आते-जाते और रहते देखा, तो उस समय उ ह ने जो महसूस िकया, िबलकल वैसा ही उनक श द पढ़ते ए मने अनुभव करते पाया, यह उनक लेखनी का जादू था -इसी वष, िकतने वष बाद लखनऊ जाने का अवसर िमला- मेरी िसफ़ दो वािहश थ , पाक रोड का घर देखना और जाना। िजस िदन हम जाना था उस िदन बंद था और तुषार क िववाह समारोह क यव था म अगले िदन कोई साथी नह िमला -पाक रोड क उस घर क तलाश म हम इधर-उधर च कर लगाते रह पर वह सड़क नह िमली और पता मुझे याद नह था। पर पाक रोड क उस घर म िबताया बचपन कभी नह भुला पाई -और भुलाना भी नह , य िक वह तो -तारा भाभी ने मुझे वह महामं िदया था, िजसे संजोये मने पूरा जीवन काट िदया। तारा भाभी यार लाल अ वाल क दूसरी प नी थ , गोरी, हसमुख, वातालाप वीण! यार लाल अ वाल, मेर भाइय क िम थे, और कानपुर क कां ेस पाट क से टरी- तारा भाभी ायः लखनऊ आती रहती थ और उनक ारा भी हमार बा यजीवन म िकतनी नई-नई िखड़िकयाँ खुलती रहत , उनक क मीर म अमरनाथ या ा, दि ण म कां ेस पाट का अिधवेशन मगर सबसे रोचक वृ ा त होता था चं शेखर आज़ाद को पुिलस छापे से बचाने क साहसपूण रोमांचक कहानी, िजसे बार-बार सुनने पर भी हमारा जी नह भरता था- िकस कार इस नाट क़द क , एक दम गोरी, ी ने अं ेज़ क पुिलस को चकमा िदया- वह कहानी कभी बाद म-- तो तारा भाभी हमार यहाँ लखनऊ आई ई थ - उस िदन शायद रिववार था- कल क छ ी थी, सार ब े िमल कर सड़क पर खेल रह थे, भाग-दौड़, ध का-मु क , शोरगुल करते ए- मने उस िदन एक नई ॉक पहनी थी, जो न जाने य खादी क नह थी, ॉक पर हर रग क नाव म छपी ई थ , आड़ी- ितरछी,उ टी-सीधी -उस कपड़ का नम-नम िचकनापन मेरा शरीर सहला रहा था -तभी िकसी ने मुझे ध का िदया और म सड़क पर िगर पड़ी -मेर घुटने िछल गए और तेज़ दद आ, उठकर खड़ होते ए मने देखा, मेरी ाक फट गई थी, उसम ए छद क पीछ से मेरा खून बहता घुटना िदखाई दे रहा था -मने दुख भरी चीख मारी, मेरी फ़वरट ॉक फट गई, घुटन म दद था वह अलग, उसक ऊपर से मेरा रोना सुन कर भाई होरी लाल हाथ म िटचर आयोडीन क शीशी और फरहरी लेकर आते िदखाई िदए -िटचर क छरछराहट और दद का यान आते ही मेरी चीख और बढ़ ग - उनक पीछ-पीछ तारा भाभी भ - पास आकर उ ह ने शांत वर म, मेरा हाथ पकड़कर कहा ‘'िश बन लाल क बहन रोती नह ---'' मेरा रोना बंद होने म कछ समय लगा, य िक भाई तो ज़ मी घुटन पर िटचर लगाने लगे थे, मेरी आवाज़ बंद हो गई थी, मगर िहचिकयाँ आ रही थ - तारा भाभी ने इस बार पुचकारते ए कहा, '' ांितका रय क घर क लड़िकयाँ रोती नह ।'' मने ह ठ भ च िलए, ा तकारी च शेखर आज़ाद - वतं ता सेनानी, िश बन लाल! 000 फा ट फॉरवड -बरस -बरस बाद, म अ पताल म , मृ यु और जीवन क बीच झूलती ई, मेर दय क िझ ी म पानी भर गया ह, िकसी समय हाट अटक हो सकता ह, दय धड़कना बंद कर सकता ह। तब ओपन हाट सजरी ने इतनी गित नह क थी-काफ़ र क थी, डॉ टर पानी धीर-धीर कम कर रह थे। समय लग रहा था- म अमे रका म अकली थी- िनतांत अकली। अ पताल म मुझसे िमलने मेर सहयोगी अवध िकशोर नारायण आए थे, साथ म प नी, पाँच ब क माँ- ‘'आप सब इतना अकले कसे झेल रही ह। '' ीमती नारायण ने कहा, ''न कोई संगी न साथ !'' तो नारायण जी ने यं य से कहा, '' आिख़रकार िश बन लाल क बहन ह ना !'' बात खट से सीने म जाकर लगी, सच ही तो ह न ! म मु करा दी- '' आप सही कह रह ह।-'' 000 दादा का काय े हम, प रवार को मालूम था, महराजगंज गोरखपुर- वह कहाँ रहते थे, कसे खाते-पीते थे, यह सब वह िद ी क पा रवा रक जीवन से अलग रखते थे। िद ी म मेरी माँ थ , छोट िवधुर भाई होरी लाल और उनक छोटी -छोटी तीन बेिटयाँ- सिवता, सबसे बड़ी िजसका नामकरण माँ ने िकया था, बीच क रखा- माता-िपता का िदया नाम, िजसम मने 'सु' जोड़ िदया था, और सबसे छोटी छाया, िजसक ज म क दो घंट बाद ही उसक माँ क र - ाव से मृ यु हो गई थी, और िजसे मेरी माँ ने दय से लगाकर ब त यार, दुलार और मम व से पाला था। जब
  • 12. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 10 दादा पािलयामट क सद य होते तब प रवार िफ़रोज़शाह रोड क बंगले म रहता और जब दादा इले शन हार जाते तो इधर-उधर, भटकता रहता, कभी िकसी िम , या संबंधी क घर िटक जाता या िफर रामनगर या पटल नगर जैसे मोह म िकराये क घर म- म इलाहाबाद म पढ़ रही थी और हर छ ी घर आती थी, शाम को जनता ए स ेस क लकड़ी क बच पर कभी बैठकर, कभी सोते ए। जब रल जमना क पुल से गुज़रती तो मेरा पूरा शरीर पुलक उठता; य िक ेिहल भाई और ममतामयी माँ क साथ समय िबताने क िवचार से! भतीिजयाँ भी मुझे ब त यार करती थ , अपनी तरह से। िफ़रोज़शाह रोड क वह वष सुखद होते। जब िवभाजन क बाद पािक तान से आए शरणािथय को भूिम िमल रही थी, पड़ोसी ने दादा से लॉट ख़रीदने को कहा था- दादा ने साफ़ मना कर िदया, िक वह भूिम शरणािथय क िलए ह, उसे ख़रीदना अनैितक होगा। माँ ने हलक से कहा भी, िक िद ी म लॉट लेकर घर बना ल- तो भी दादा ने हसकर कहा, '' लॉट, िकस क िलए? मेर न बीवी ह, न बाल- ब े-'' माँ हमेशा क तरह चुप रह ग । 1981 म वह ऐसी घटना ई िजस का कम से कम मुझे मान गुमान तक न था, पाँच बार लोक सभा क िलए सद य िनवािचत िश बन लाल अपने ही काय े म चुनाव हार गए थे। जब म िद ी प च तो वह िफ़रोज़ शाह रोड क ांगण म अकले बैठ ए थे, उनक चार ओर कागज़ और प का अ बार था- ''दादा'' म और कछ न कह सक । वर अव हो गया। दादा ने मुझे ख उठाकर देखा- ''गीता क वचन भूल गई। थत य सुखदुख म एक समान रहता ह''- दादा ने जेल क एकांत कारावास म गीता, उपिनषद आिद का गहन अ ययन िकया था। आपि काल म, न जाने य गीता क बु वचन मेरी याद से िफसल कर लोप हो जाते ह। घर का न शा यह था, दादा, छोट भाई होरी लाल और उनक तीन बेिटय क ित अपना क य िनभा चुक थे- तीन िववािहत, पित ेम म आकठ िल , बाल ब े वाली थ , घर म बचे, बूढ़ी मेरी माँ और भाई होरी लाल- और दादा वयं। बड़ी पोती क पित महाराजगंज क एक कॉलेज क ि ंिसपल थे, मगर उ ह उस ामीण वातावरण क बजाए िद ी म िफ़रोज़शाह रोड पर सबसे बड़ दामाद क तरह रहना अ छा लगता था। और उनका वैसा स मान भी था। सबक राय से सिवता ने ग़ािज़याबाद म ज़मीन लेकर बड़ा सा घर बनवाया था, िजसम दादा ने साम ी और रािश दोन से पया मा ा म सहायता क थी, यह मानी ई बात थी िक वृ ाव था म ताऊ, िपता और दादी एक खंड म रहगे-जो तब िकराये पर चढ़ा आ था। घर का सामान बटोरा जाने लगा, तभी सिवता का संदेशा आया िक उसक पित वृ दादी को साथ रखने क िलए तैयार नह ह! उसक पित सामने से यवहार कशल और िमठ बोले थे, ऊपर से माँ क ित आदर, न िनरादर, मगर उनक मन म या चल रहा था ये कौन जानता! शायद वह तीन वृ संबंिधय को अपनी छत क नीचे रखने को तैयार नह थे, िज ह ने उनक प नी को पाल पोस कर बड़ा िकया था और घर क बड़ पौ दामाद होने क कारण महीन उनक ख़ाितरदारी क जा चुक थी और उ ह ने काफ़ बचत भी क थी। घर म यह परपरा थी, समथ य दूसर क ित अपनी पूरी िज़ मेदारी िनबाहता था, उदाहरण सामने था, अपनी प नी और ब े न होते ए भी दादा िश बन लाल ने अपने मामा को उनक मृ यु काल म िदया वचन जीवन पय त िनबाहा था, मेरी माँ और हम तीन बहन क पूरी िज़ मेदारी सँभाली थी और छोट भाई होरी लाल क बेिटय को पढ़ा-िलखाकर उनक इ छा अनुसार सजातीय िववाह िकये थे। मेरी बड़ी बहन कमला क पित यदुपित सहाय ने भी, अपनी ले रर क तन वाह म कमला क छोटी बहन को बरस साथ रखकर पढ़ाया िलखाया था इसिलए यह अपे ा करना जो िवशाल ह िश बन लाल क सहायता से बना ह, उसम प रवार क तीन व र संबंधी रहगे सिवता क अपने िपता, दादी, िज ह ने छह वष क आयु से पाला पोसा था, और ताऊ, िजनक पु षाथ से सार प रवार को य िमला था। सिवता पित क अंधभ थी, उसने तोते क भाँित पित का संदेश सुना िदया। माँ गािज़याबाद जाकर रहने क िलए उ सािहत नह थ , पर िसर पर एक छत तो होती। मने सुना वह कई िदन तक रोती रह , - चुपचाप, जैसी उनक िज़ंदगी भर आदत रही, अंततः घर िबखर गया, िपता होरी लाल को भी उस घर म जगह नह िमली, गािज़याबाद म एक िकराये क घर म रहने लगे, अ सी साल क आयु म माँ एक बार िफर बेघर हो गई, जैसे बरस पहले होरी लाल क प नी ारा िन कािसत कर दी गई थी, उसी तरह सिवता और सतीश ारा मने माँ को अपने पास बुलाना चाहा, पर उ ह ने मना कर िदया। वह प रवार, बेिटय , उनक ब और छाया से इतना जुड़ी ई थ िक अकले मेर साथ, अनजान, ठड देश म, जहाँ क भाषा से वह सहज नह थ , न िवदेशी जमाता क उप थित से, जीवन क अंितम िदन िबताना उ ह ा नह आ। मने तभी माँ, दादा और भैया क रहने क िलए िद ी म लैट ख़रीदा पर जब तक वह बनकर तैयार आ तब तक उसम रहने क िलए तीन म से कोई जीिवत नह बचा था। माँ से दादा से कहा-''आप रोती य ह, म गोरखपुर म घर लेकर आपको बुला लूँगा।'' अंततः माँ अपनी मँझली बेटी कािमनी क
  • 13. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 11 पास बड़ौदा चली ग । छट गई उनसे िद ी, संबंधी और िबछड़ गई छाया, िजससे उनक ाण जुड़ ए थे। इस कार हम सबक जीवन का एक लंबा अ याय समा हो गया। 000 दादा आँधी क तरह िद ी आते थे, हम सुबह चाय पी रह होते थे तो बरामदे क सीिढ़य पर उनक चढ़ने से उनक फट जूत क फटफट आवाज़ से माँ समझ जाती थ िक िश बन लाल आ गए ह। दादा क िबखर ए बाल, धूल भरा चेहरा, मटमैला, कभी-कभी जेब िवहीन खादी का कता और गाँव म धुली धोती, पर चेहर पर ध आभा और व सल 'मु कान'। ''आ गई आप?'' मुझसे कहत! े वह अपने कमर म चले जाते थे जहाँ पािलयामट क आए हर िलफ़ाफ और काग़ज़ का अ बार लगा रहता था, अख़बार, िकताब, प -- माँ झटपट उनक पसंद का भोजन बनाने म लग जाती थ , उनक धुले, महीन खादी क कपड़ िनकालती थी और वह नए जूते भी- यह कपड़ उनक िद ी म पहनने वाले थे। पािलयामट म जाने क िलए वह हमेशा ऑटो र शा म पािलयामट जाते थे। वे दो तीन िदन से अिधक िद ी म नह रहते थे, उनका मन तो महराजगंज म अटका रहता था- बस दो तीन िदन बाद वह जाने को तैयार होते थे तो अपने िद ी वाले सफ़द, साफ़ सुथर कपड़ कमर म छोड़ जाते थे, माँ उ ह धुलवाकर ब से म रख देती थी- घर म स ाटा हो जाता था, म माँ क कमर म खाट पर बैठ कर पढ़ती- िलखती थी। दादा क साथ हमेशा दो एक य रहते थे। वही, हसते-हसते खाने क मेज़ पर साथ बैठकर बताते थे -'' न म स सेना जी क जेब कट गई, '' या िफर मुझ से -''बिहनी, आपने जो अमे रका वाला वेटर ला कर िदया था, कछ घंट ही पहना, इटावा टशन पर एक िभखारी को ठड म िठठरते देखा तो उतार कर दे िदया- '' दादा सुनते रहते थे, मु कराते रहते थे, कछ बोलते नह थे- उनका वभाव था, जहाँ भी िजसक जो मदद कर सकते थे, वह कर देते थे-- उनका िकतना मान था यह मने वयं देखा था, जब इिदरा गाँधी अपने बरामदे म िनकल कर उनका वागत करती थ ; जब रा पित भवन क समारोह म जवाहर लाल नेह उनको देखकर मु करा देते थे, '' कसे हो िश बन लाल ?'' वतं ता सं ाम क बड़- बड़ नाम, 1947 क बाद हमार घर जो वा तव म दादा का था, िफ़रोज़शाह रोड पर आते- जाते रहते थे। पर दादा म कह अिभमान नह था, हमेशा एक मु कराता आ चेहरा और ऐसी क णामय धता जो बरस बाद मने दलाई लामा क मुख पर ही देखी। अ य सद य क तरह िद ी म रहकर उ ह ने कभी पैसे नह बटोर। पालते रह प रवार को, भाई- भतीिजय , भाभी और हम सब को- अपनी प नी और ब े न होते ए भी वे सब से जुड़ थे, अपने िपता क प रवार से, अपने निनहाल से और िफर उनक काय े म जो उनक साथी रह ह गे-- उनसे ही मने ''वसुधैव कट बक '' का पहला पाठ सीखा- देख तो अब मेरा कोई भी नह ह, माँ, भाई, बहन सब िदवंगत हो चुक ह, यहाँ से िवभाग म भी, शहर क भी सब संगी साथी, िफर भी जुड़ी - तीसरी चौथी पीढ़ी से, पुराने िव ािथय से, पाठक, पािठका से- और अब सोशल मीिडया क ारा नए लेखक, लेिखका से- किवय और कलाकार से -- ''प प इवं भसा -'' यह तो मने दादा से ही सीखा। दादा क मृ यु क ख़बर मुझे कई िदन बाद िमली, तब फ़ोन िवदेश क िलए बुक िकये जाते थे। कई िदन कने शन िमलने म लग जाते थे, दादा क सािथय ने प रवार को उनक बीमारी क कोई सूचना नह दी। माँ हमेशा टीवी पर शाम क ख़बर सुनती थ , उसी पर उ ह सूचना िमली िक पाँच बार िनवािचत लोक सभा क सद य, िश बन लाल क मृ यु हो गई ह- वह तड़प कर रह ग , बड़ोदरा से या ा करक महराजगंज जाना संभव नह था। बाद म भारत जाने पर मने दादा क मृ यु क बार म कथाएँ सुनी, िक कसे वह लखनऊ क अ पताल म अकले पड़ रहते थे, कसे उस अध अचेताव था म उनक आस-पास क लोग ने कोर काग़ज़ पर उनक द तख़त करवा िलए थे, यहाँ तक िक िकसी ने उनक हाथ क घड़ी और पु पाथ क ी स य सा बाबा ारा दान क गई ा क माला भी उतार ली थी - 000 िवदेश म रहकर मुझे प रवार क सद य क मृ यु क सूचना ऐसे ही िमलती थी, अंतररा ीय िलफ़ाफ़ पर भाई होरी लाल का िलखा प , िजसम बड़ी बहन क पित यदुपित सहाय क मृ यु क ख़बर थी, या सूचना पो टकाड, िजसम सिवता क तेरहव क , या बॉ टन से मेर पित का फ़ोन -''तुम तुरत भारत क िलए िनकलो, तु हारी माँ मरणास ह- '' फ़ोन कने शन उ ह िमल गया था, मुझे नह । पर तु अब फ़ोन क सुिवधा ह- मुंबई से सुबिकयाँ लेती अलका का - ''क मन मौसी चली ग ''--या िफर ''अ माँ चली ग ''- और अभी कछ ही समय पहले, यारह बजे रात को, '' रीता चली गई--'' अकले घर म रोना पीटना ? नह होता, बस कड़वे िवष क तरह सारा संताप, सारी यथा, संपूण दुःख घूँट लेना- िश बन लाल क बहन न- रोती नह -- 000 मशः (अगले अंक म जारी)
  • 14. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 12 ा पा डय 467, 11 एवे य, ू गौर िसटी -2, िनयर िकसान चौक, ेटर नोएडा -201301 मोबाइल- 6394419003 ईमेल- pandepragya30@gmail.com कथा-कहानी एक सुनसान सड़क पर बीस-बाईस साल का एक लड़का साइिकल चलाता चला जा रहा था, वह रा ता सुनसान था। उतरती जनवरी क दोपहर म भी ब त िनचाट था जबिक सड़क िचकनी और साफ़ थी। लड़क क जेब म एक मोबाइल फ़ोन था िजससे उसक पुरानी, फटी और खाली जेब क क मत ब त बढ़ गई थी। उस िबयाबान स ाट म साइिकल चलाते ए लड़क क छाती चौड़ी हो रही थी। तभी उसक सामने से आते एक मोटरसाइिकल सवार ने उसक बगल म आकर र तार धीमी क अपनी िफर मोटरसाइिकल रोक ली। नकाब पहने एक लड़क पीछ बैठी ई थी। वह भी नई उ क थी। मोटरसाइिकल चलाने वाला लड़का भी लगभग उसी क उ का था। पदानशीन लड़क ब त धीमी, कछ उदास सी आवाज़ म बोली –"मेरी बहन हॉ पटल म ह। ब त बीमार ह। बस एक नंबर िमला दीिजये, बड़ी मेहरबानी होगी।" साइिकल वाले लड़क ने तुरत अपनी जेब से एकदम नया ए ोएड फ़ोन िनकाला और त परता से नंबर पूछकर कछ गव से भरता आ फ़ोन िमलाकर उस नाज़नीन क हाथ म दे िदया। वह भूल गया िक फ़ोन िकतनी मश क़त क बाद उसक हाथ म ह और उसे इस तरह िकसी राह चलते क हाथ नह दे देना चािहए। अचानक उसको कछ भी समझ म नह आया य िक मोटरसाइिकल क र तार अचानक बढ़ गई और बढ़ती ही चली गई। फ़ोन लेकर वह पदानशीन, नाज़नीन यह जा और वह जा हो गई। एक बार लड़क ने सोचा िक मोटरसाइिकल का पीछा कर। साइिकल, मोटरसाइिकल क पीछ नह दौड़ सकती सोचकर भी वह कछ दूर भागता रहा िफर ह का-ब का होकर खड़ा रह जूठा सेब ा पा डय
  • 15. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 13 गया। खड़-खड़ ही अपनी जगह पर नाच सा गया। उसने एक ट का अ ा उठाकर गु से म अपनी ही साइिकल पर दे मारा। साइिकल क हालत पहले से ही ख़राब थी और ख़राब हो गई। चुप रह जाने क अित र और कछ नह कर सकता वह। उसने ज़बान िसल लेना ही ठीक समझा। एक छोटी सी फ ी म काम करने वाली सुपरवाइज़र का बेटा हरीश, उस हसीना क नकाब से ढक खूबसूरत चेहर को याद कर उसम उलझता रहा। फ़ोन और चेहरा दोन एक दूसर म गडमड होते रह। उसक हसरत उसक आँख म उतर आई थी इस बात पर उसने यान ही न िदया था। शायद नाज़नीना क आँख ब त खूबसूरत थ । उसक आँख म काजल था। उन आँख क उसक पास अब एक ऐसी याद थी जो उसको रह-रहकर कचोटती थी। य पड़ गया उस हसीना क च कर म, मगर अब तो तोते उड़ गए थे। िकतने ही िदन से ए ोएड का एक फ़ोन उसक सपन म चाँद सा था और वह उसे उतार लाना चाहता था। अपनी चाहत म रग भरना चाहता था। हसरत पालना अपराध नह तो उनका पूरा होना ही कसे आ। यह फ़ोन तो चाँद क पास रहने वाले ने ही उसक झोली म डाल िदया था। उसक दो त क पास एक से एक फ़ोन थे। एक साधारण फ़ोन तो वह ले ही सकता था। बड़ी मु कल से एक छोटा सा फ़ोन उसने ढाई सौ पये म िलया था। उससे वह एक त वीर भी नह ले सकता था। िकसी काम का नह था। ए ोएड का नाम िकसी दो त क ज़बान से सुना था उसने और उसक बाद टीवी पर उसका िव ापन देखा था। वह िव ापन उसक मन म आधे खाए सेब क तरह सेब क महक बनकर समा गया था। सेब उसने यू ूब पर कई बार देखा था। उसक क मत भी मालूम क थी लेिकन वह ब त महगा था। सच क सेब क क मत पूछकर भी वह कई बार लौट आया था। जूठ सेब क उस त वीर क ित उसक मन म एक गहरी लालसा पैठ गई थी। रस छोड़कर वह उसक प और गंध से बाव ता था। चाँद उसक सपने म था, चाँद पर बने ग नह । जूठा सेब भले ही न िमला। कछ तो िमला, ए ोएड ही सही। िमसेज़ शािलनी तनेजा, फ ी क मालिकन का फ़ोन आज से एक महीने पहले गायब आ था और सुपरवाइज़र क बेट का एक महीने बाद। मालिकन ने सुना तो बेबी से पूछा- "वह फ़ोन तु हार बेट क पास कहाँ से आया?" "मैडम, एक उसका दो त ह उसी ने उसको लाकर िदया था।” "कहाँ से लाया?" िमसेज़ तनेजा कछ स त होकर पूछ रह थ । "यह तो मालूम नह मैडम, लेिकन उसका फ़ोन चार सौ का था। मने ही उसका पैसा िदया था मैडम।" िमसेज़ तनेजा क मन म सच जानने क छटपटाहट समा गई थी। िमसेज़ तनेजा ने अपने ज़ री खच रोक कर ए ोएड का वह फ़ोन खरीदा था और जब पैसे कछ कम पड़ थे तब िम टर तनेजा ने बड़ी िम त क बाद उसे कछ पैसे िदए थे और वह फ़ोन खरीद सक थी। िमसेज़ तनेजा को जब यह खबर ई थी िक उसक सुपर वाइज़र बेबी क बेट ने कोई फ़ोन खरीदा ह तब उसने बेबी से कहा िक वह उसक बेट का फ़ोन एक बार देखना चाहती ह। बेबी ने झट से कहा-मैडम, वह तो बहन क घर चला गया ह एक ह ते बाद लौटगा और जब लौटा तो इस घटना क साथ िक कोई नाज़नीन उसका फ़ोन ले उड़ी ह। उसक फ़ोन क गुमशुदगी उसक िलए िकसी रह य से कम नह थी। परद क महगी दुकान म बैठी िमसेज़ तनेजा क हाथ म नया चमचमाता आ ए ोएड फ़ोन ह िजसे हाथ म लेकर उसने अपना पुराना फ़ोन भुला िदया ह। िकतने ही रग-िबरगे, याह और सफ़द परदे उसक चार ओर ह। िमसेज़ तनेजा ख़याल क ऊबड़-खाबड़ रा त पर चल पड़ -अ सर लोग क पास कोई ऑ शन ही नह होता। जैसे वह पदानशीन। िन त प से उसक पास कोई िवक प नह रहा होगा..तभी तो वह वहाँ क , नह तो उस सुनसान सड़क पर भरी दोपहर म उसको आने क या ज़ रत भी। हाथ म परदे को देखते-देखते िमसेज़ तनेजा क िनगाह अपनी सोच पर अटक गई। वह ब त सद िदन था। िमसेज़ तनेजा या ा से लौट आई थी। उस क िदमाग म सुराजी क जवान ब घूम रही थी। सुबह अपनी फ ी प चते ही िमसेज़ तनेजा ने सुराजी को अपने ऑिफ़स म तलब िकया। बुिढ़या जानती थी िक उसक ऊपर गाज िगरने वाली ह। िमसेज़ तनेजा क पास आती उसक चाल म कभी न िमटने वाली थकान थी। िमसेज़ तनेजा उसी िदन से, जब से फ़ोन खोया था, आँख लाल िकए उसे घूर रही थी। सुराजी दोन हाथ जोड़ काँपती ई उसक पाव ँ पर िगर पड़ी थी। उसक ठड हाथ िमसेज़ तनेजा क पाव ँ से टकराए। िमसेज़ तनेजा का गम और मुलायम, कोट म िलपटा कोमल शरीर थरा गया लेिकन उस गमाहट से बूढ़ी सुराजी को शायद सुख िमल रहा था। वह िमसेज़ तनेजा क पाँव पर देर तक हाथ रखे रही। िमसेज़ तनेजा ने अजीब िनगाह से उसको देखा और अपने पैर ख च िलये। वह िमसेज़ तनेजा क फ ी म ब त िदन से थी लेिकन िमसेज़ तनेजा ने आज पहली बार उसक चेहर को गौर से देखा था। झु रय से भर चेहर पर, ठढ से वचा फटने क कारण पपड़ी सी जमी थी। उसका गहरा साँवला चेहरा, लालिमच क तरह सूखा था। उसक आँख म
  • 16. जुलाई-िसत बर 2021 foHkkse&Loj 14 जाने कसा पानी था। आँसू थे या ओस, िमसेज़ तनेजा समझ न पाई। अब तक तो वह उसे इतना ही देखती थी िक उसक िकतनी छ याँ कटगी और पगार कह उसक औक़ात से अिधक तो नह बन गई। इसक अलावा उसक ित अब तक तट थ िमसेज़ तनेजा को आज उस पर सा आया था। वह गुराई-"तुम अब यहाँ से िनकलो।" बूढ़ी सुराजी ने िमसेज़ तनेजा क पाँव ज़ोर से िफर पकड़ िलए -ऐसा न करो िबिटया। उसने उसे पहली बार िबिटया कहा था....इसक पहले तो वह मालिकन कहती रही होगी या शायद िमसेज़ तनेजा ने कभी उसक आवाज़ ही न सुनी थी, उसे याद नह । वह कहती जा रही थी–"िबिटया, तुम ही माई बाप हो अब। तुम जो पगार देती हो, उससे हमर आदमी कर दवाई का इतजाम इ जाता ह..न िनकारो, ..हम कहवां जाबे?" िमसेज़ तनेजा को जाने या आ ..थोड़ी देर क िलए वह मालिकन न होकर िबिटया बन गई, लेिकन अगले ही पल उसको अपना खोया आ फ़ोन िफर याद आ गया.. उसे यह एहसास आ िक वह िगड़िगड़ाती ई इस ी क झाँसे म नह आएगी। इस एहसास क आते ही िमसेज़ तनेजा चीख पड़ी- "तु हारी इतनी िह मत िक तुम मुझे आकर यह सब समझाओ? कल मेरा फ़ोन मेर सामने होना चािहए। नह तो!" सुराजी क साँस क गई .. या बोलगी मालिकन-उसने दम साध िलया- म तु ह जेल िभजवाऊगी। इस बार वह मालिकन न कहकर- माई-बाप, हमार भगवा और जाने या- या कहती रोने लगी। वह िमसेज़ तनेजा क पाव ँ को ज़ोर से पकड़ कर बैठ गई। ऐसा न करना िबिटया! उसक भीतर एक दया जागी लेिकन तभी बेबी ने इशार से कहा िक यह सब जानती ह। िमसेज़ तनेजा ने अपना चेहरा िफर स त कर िलया। बेबी ने मौका देख कर बाद म कहा- "मैडम, इसम अपनी ब क करतूत बताने क िह मत नह ह। इसक बेटा-ब इसे ध क मार कर घर से िनकाल दगे.. ब बदमाश ह। िमसेज़ तनेजा ने सोच िलया िक वह िकसी क मत पर नह िपघलेगी लेिकन उसका बार- बार िबिटया कहना उसे भीतर तक छ रहा था। ब त िदन हो गए थे उसे खुद क िलए यह संबोधन सुने। हवाई जहाज़ से क गई अनेक या ा क दौरान, उन या ा म कई बार बड़-बड़ होटल म कने क और कपनी ारा आयोिजत बड़ी-बड़ी पािटय म भी जहाँ इतनी आवभगत होती ह, जहाँ बेयर दुहर हो-होकर सलाम करते ह वहाँ भी िकसी ने उसे कभी िबिटया नह कहा था। िबिटया तो उसको उसक माँ कहत थ जो बरस ए गुज़र चुक थ । आज अचानक िमसेज़ तनेजा को अपना बचपन याद आने लगा। वह ब त िदन क बाद भोली सी, छोटी सी ब ी बन गई। िमसेज़ तनेजा सबसे अिधक भरोसा बेबी क बात पर ही करती थी। बेबी माट और कछ नखरीली थी जो ब त कम समय म िमसेज़ तनेजा क िलए ख़ास हो गई थी। िफर भी बार-बार सुराजी को िनशाना बनाती बेबी उस क शक क घेर म कब आ गई यह िमसेज़ तनेजा भी न जान पाई।- या बात ह जो यह बेसहारा सुराजी को िकसी भी तरह नौकरी से हटा देना चाहती ह। उसका शक पु ता होने लगा। ताला-चाभी, उसक बाद फ ी पर पूरा क जा रखने वाली उसक सुपरवाइज़र क हिसयत से काम करने वाली यह आिख़र इतनी ई यालु य हो रही ह। वह सचेत हो गई थी। उसको लगा िक उसे इस तरह भी सोच लेना चािहए। उसको शायद सुराजी पर दया आई थी जब उसने अपने सद हाथ से उसक पाँव पकड़ थे। वह उसक बफ ले हाथ क छअन से िसहर गई थी। उसक पाँव गम थे और सुराजी क हाथ बफ ले ठड थे। या उसको उसक गम पाव ँ को छकर गरमी िमली होगी! िजस तरह िबिटया यह संबोधन उसक मन म समा गया था। माँ ने तो उसका नाम ही िबिटया रख छोड़ा था, उसे याद आया िक जब भी वह उसे िबिटया बुलाती थी वह दौड़कर माँ क पास जाती थी। उस िदन उसका फ़ोन या खोया था िक उसक छोटी सी फ ी क याले म तूफ़ान ही आ गया था। वह बार-बार यही कहती चीख़ रही थी– मेरी ही ज़मीन पर पलने वाले तुम लोग? मेर नौकर और चाकर! मेरी ही फ ी से मेरा फ़ोन चोरी कसे हो गया? यह िहमाक़त िकसने क ? उस ने आपा खो िदया था और चीख-चीख कर देर तक लाप करती रही थी। मुझे फ़ोन चािहए नह तो म पुिलस को खबर क गी। माकिटग क लड़क को तो फ ी म पाँव रखने क ही अनुमित नह थी। वे भी िमसेज़ तनेजा क आवाज़ सुनकर काँप गए थे। उसक चहारदीवारी पर हाथ रख देना ही बड़ी बात ह िफर िकस क िह मत ह? िमसेज़ तनेजा को फ़ोन क खोने का संताप तो आ ही था उससे भी बड़ा उसका ोध था, उसक ही आि त ने यह िकया कसे? इतनी िहमाकत कसे ? िमसेज़ तनेजा ने ब त पैसे खच कर क अपनी एक बड़ी हसरत पूरी क थी। उसका वष का सपना था वह-फ़ोन। तब उसका काम इतना अ छा नह था िक वह अिधक पए ख़च कर दे लेिकन इ छा का या करती। िमसेज़ तनेजा फ ी से दुखी हो लौट आई। उसी िदन िमसेज़ तनेजा क िद ी क िलए लाइट थी। उसको एक ज़ री मीिटग म जाना था इसिलए उसक िलए संभव नह था िक वह वहाँ कती और फ़ोन को खोजती, उसने यह काम बेबी को स पा और समय से एअरपोट क िलए िनकल गई। सुराजी िजसको झुक कमर को सीधा करने म समय लगता था, वह कसे ऐसा कर सकत थी? फ़ोन का न ऑन होते ही पासवड डालने का