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अ टबर-िदस बर 2022
foHkkse&Loj
1
संर क एवं
मुख संपादक
सुधा ओम ढ गरा
संपादक
पंकज सुबीर
क़ानूनी सलाहकार
शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट)
तकनीक सहयोग
पा ल िसंह, सनी गो वामी
िडज़ायिनंग
सुनील सूयवंशी, िशवम गो वामी
संपादक य एवं यव थापक य कायालय
पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7
स ाट कॉ लै स बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001
दूरभाष : +91-7562405545
मोबाइल : +91-9806162184
ईमेल : vibhomswar@gmail.com
ऑनलाइन 'िवभोम- वर'
http://www.vibhom.com/vibhomswar.html
फसबुक पर 'िवभोम वर’
https://www.facebook.com/vibhomswar
एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)
सद यता शु क
3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)
11000 पये (आजीवन सद यता)
बक खाते का िववरण-
Name: Vibhom Swar
Bank Name: Bank Of Baroda,
Branch: Sehore (M.P.)
Account Number: 30010200000312
IFSC Code: BARB0SEHORE
संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यवसाियक।
पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक
तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म
कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर
होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत
होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा।
Dhingra Family Foundation
101 Guymon Court, Morrisville
NC-27560, USA
Ph. +1-919-801-0672
Email: sudhadrishti@gmail.com
वै क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का
वष : 7, अंक : 27, ैमािसक : अ टबर-िदस बर 2022
RNI NUMBER : MPHIN/2016/70609
ISSN NUMBER : 2455-9814
आवरण िच
पंकज सुबीर
बािलका शी जो जहाज़ महल मा डव
क बाहर छोटी सी दुकान लगाती ह।
अ टबर-िदस बर 2022
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2
संपादक य 3
िम नामा 5
कथा कहानी
लडी कोठी
िद या माथुर 8
हािकम का पाजामा
नीरज नीर 13
िनणय सही था
अचना िम 16
बूढ़ा हो गया आ पौधा
सतीश सरदाना 22
सुख िवदाई का
शेफािलका िस हा 27
अगोचर
ह र काश राठी 30
तुम आओगे न
स दीप तोमर 33
मजबूर
डॉ. चु मन साद ीवा तव 38
भाषांतर
दूसरा हादसा
उदू कहानी
मूल लेखक : ता रक छतारी
अनुवादकः पंकज पराशर 43
अजनबी
मलयालम कहानी
मूल कथाकार: अ हाम मै यू
अनुवादक : डॉ.षीना ई पन 46
लिलत िनबंध
राम कौन?
डॉ. वंदना मुकश 49
शहर क ह
नीलांजल मॉरीशस
चौधरी मदन मोहन "समर" 53
यं य
गूगल बाबा क जय
डॉ. दलजीत कौर 58
प नी और धमप नी
ललन चतुवदी 60
लघुकथा
आवाज़
सुभाष चं लखेड़ा 12
ािलटी टाइम
डॉ. मधु संधु 21
राख से पहले
यो सना िसंह 61
िविश किव
वसंत सकरगाए 62
किवताएँ
'मीनू' मीना िस हा 64
रखा भािटया 65
हम त शमा 66
लाल देवे कमार ीवा तव 67
ितभा चौहान 68
गीत
कलाश मनहर 69
ग़ज़ल
डॉ. आरती कमारी 70
जय च वत 71
आिख़री प ा 72
िवभोम- वर सद यता प
यिद आप िवभोम- वर क सद यता लेना चाहते ह, तो सद यता शु क इस कार ह : 3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)
11000 पये (आजीवन सद यता)। सद यता शु क आप चैक / ा ट ारा िवभोम वर (VIBHOM SWAR) क नाम से भेज
सकते ह। आप सद यता शु क को िवभोम- वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरण-
Name of Account : Vibhom Swar, Account Number : 30010200000312, Type : Current Account, Bank :
Bank Of Baroda, Branch : Sehore (M.P.), IFSC Code : BARB0SEHORE (Fifth Character is “Zero”)
(िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा कर टर अं ेज़ी का अ र 'ओ' नह ह ब क अंक 'ज़ीरो' ह।)
सद यता शु क क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पि का भेजी जा सकः
1- नाम, 2- डाक का पता, 3- सद यता शु क, 4- चैक/ ा ट नंबर, 5- ांज़े शन कोड (यिद ऑनलाइन ां फ़र ह), 6-िदनांक
(यिद सद यता शु क बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।)
संपादक य एवं यव थापक य कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क
सामने, सीहोर, म. . 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com
इस अंक म
वष : 7, अंक : 27,
अ टबर-िदस बर 2022
अ टबर-िदस बर 2022
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3
सुधा ओम ढ गरा
101, गाईमन कोट, मो र वल
नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए.
मोबाइल- +1-919-801-0672
ईमेल- sudhadrishti@gmail.com
संपादक य
दोहरी मानिसकता मनु य को किठत कर जाती ह, इसका एहसास भी उसे नह होता। प
सोच ब त कम लोग क होती ह और दूरदश भी वे ही बन पाते ह। स 2009 म मने फ़सबुक
और टर का योग शु िकया था। उन िदन लेखक का एक गुट फ़सबुक पर अमे रका क
िख़लाफ़ िलख रहा था और यहाँ रह रह भारतीय यानी वासी भारतीय को भी अपनी पो स म
नीचा िदखा रह थे। तक़रीबन सभी वासी भारतीय ने, जो फ़सबुक पर थे, उनक िलखे को
नज़रअंदाज़ िकया। समझ गए थे िक किठत मन और िबना जानकारी क वे िलखी ग बात थ ।
कछ भी समझाने का अथ िववाद शु करवाना था।
वासी भारतीय भारत से ही तो आए ए ह, और इस मानिसकता को भी अ छी तरह से
समझते ह, िक रल क सामा य िड बे म बैठा या ी अमे रका क ेिज़डट जो बाइडन को देश को
कसे चलाना चािहए, क सीख देने से नह चूकता और वयं क वोट को छोट-मोट लालच म
ग़लत नेता को दे देता ह। दूसर को िश ा देनी तो ज मिस अिधकार समझा जाता ह।
गत िदन अमे रका क अलग-अलग शहर से आभासी दुिनया क कई लेखक िम क फ़ोन
कॉ स आए, जो अमे रका अपने ब से िमलने आए ए ह। उनम वे लेखक भी थे; िज ह ने
कभी अमे रका और यहाँ रह रह भारतीय क िख़लाफ़ िलखा था। उ ह लेखक ने जब अमे रका
क तारीफ़ क पुल बाँधने शु िकये और बड़ गव से कहा िक अब यह सैटल ह गे तो यूक क
एक लेखक क कही बात याद आ गई। ऐसे लोग दोहरी मानिसकता वाले, दोहर मापदंड क
होते ह, कहते कछ ह और करते कछ ह। दूसर क िलए अमे रका क बुराइयाँ बताई जाती ह,
अपने ब को अमे रका म थािपत करने क कोिशश क जाती ह, तब यह बेहतरीन देश हो
जाता ह। समाज और जनजीवन म यह मानिसकता ब त गहर घर कर चुक ह।
राजनीित म दोहरी मानिसकता हर देश म पाई जाती ह, स ा पाट क आलोचना तो िवरोधी
पाट करती ही ह, बेशक िलंग पाट देश और जनता क िहत क िलए काय कर रही हो। अपनी
स ा क समय िवरोधी पाट ने चाह िकतनी ही ग़लितयाँ य न क ह , उ ह भुला िदया जाता ह।
खैर पूर िव म राजनीित एक धंधा बन चुक ह। अंतर इतना ह अमे रका म दो पािटय क
तनातनी म देश का अिहत नह होने िदया जाता और आमजन का पूरा यान रखा जाता ह...
दोहरी मानिसकता
रा और समाज क
िलए अिहतकर ह
अ टबर-िदस बर 2022
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4
संपादक य
िजस कार आकाश पर इ धनुष िखंचता
ह उसी कार मन क आकाश पर भी
इ धनुष सात रग को समेट ए िखलता
ह। मगर उसक िलए मन म संघष क धूप
तथा आनंद क बरसात दोन का होना
ब त ज़ री ह। िकसी भी एक क
अनुप थित म सात रग भी अनुप थत हो
जाते ह।
इस दोहरी मानिसकता क चलते कई मु े तक अ प रह जाते ह। उदाहरण ी िवमश।
इस पर चचा ब त होती ह, िलखा भी ब त जाता ह, पर प रभाषा, व प, िदशा कछ भी
गोचर नह । िवदेश क ी िवमश से भािवत होकर ब त कछ कहा और रचा गया, जो देश
क य पर लागू ही नह होता। ी िवमश क अवधारणा देश, हालत, प र थितय क
अनुसार संगिठत होनी चािहए। पर इसक ओर यान देने का िकसी क पास समय नह ।
िह दी भाषा भी इस दोहर यवहार क ही िशकार हो रही ह। कोरोना ने वचुअल गो य क
भरमार ला दी। वह समय क ज़ रत थी। बड़-बड़ िवषय पर िव ान ने चचाएँ क , प रचचाएँ
, कई भाषा िवशेष ने व य िदए पर इससे िह दी भाषा को या लाभ आ ? िकसी ने यह
नह सोचा क भाषा क चार- सार और युवा पीढ़ी म इसे लोकि य बनाने क िलए ज़मीनी तर
पर काम करना होता ह। एक पूरी पीढ़ी िह दी से िवमुख हो चुक ह। सेिमनार, कांफिसज़ होनी
चािहए पर साथ ही साथ अ य िबंदु पर भी यान देना चािहए। िजन अं ेज़ी कल म च को
िह दी से अिधक मह व िदया जाता ह, वहाँ िह दी को भी उसी तर पर रखने क िलए काय करना
चािहए। अपनी भाषा का स मान ब देखगे तो उसक ओर आकिषत भी ह गे। जब ब क
सामने ही िह दी को दोयम दज पर रखा जाएगा तो वे उस भाषा को य सीखगे ? पहले समाज
और माँ-बाप को इस बात क मह व को समझना ज़ री ह िक चाह अं ेज़ी रोटी-रोज़ी क भाषा
ह, पर िह दी को भी कमतर नह मानना चािहए, तभी सही अथ म िह दी का िवकास होगा। ऐसे
म िह दी िदवस क भी आव यकता नह होगी।
समाज और य क दोहर मापदंड अिव सनीयता और उलझन का ऐसा वातावरण
िनिमत कर देते ह; िजससे प ता कभी नह आती, अगली पीिढ़याँ भी न क उ र तलाशती
अ प ही रहती ह, चाह धम हो या दशन, जीवन मू य हो या फलसफा अप रभािषत ही रह
जाते ह।
आज देश म जो असंतोष और अशांित का माहौल ह, सामािजक, आिथक, राजनीितक और
अ य अनेक कारण क साथ-साथ दोहरी मानिसकता और दोहर मापदंड भी कारक ह। समय
रहते सचेत होना अिनवाय ह।
उ सव का माहौल सज रहा ह। दशहरा, दीपावली, थ सिगिवंग और नववष क िवभोम-
वर और िशवना सािह यक टीम क ओर से आप सबको ब बधाई और ढर सारी
मंगलकामनाएँ !!!
आपक ,
सुधा ओम ढ गरा
अ टबर-िदस बर 2022
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जुलाई-िसत बर 2022 अंक म छपी
हसा दीप क कहानी 'टक-टक कलेजा'
पर खंडवा म सािह य संवाद तथा वीणा
संवाद ने चचा क । इस चचा क संयोजक
ी गोिव द शमा तथा सम वयक ी
शैले शरण थे।
यह मािमक, संवेदनशील कहानी
आधुिनक करण क इस दौर म र त क
बीच अब अजनबीपन बढ़ता ही जा रहा ह।
वाथ और संवेदनहीनता र त पर भारी पड़
रही ह। सहज मानवीय संबंध क ऊ णता
तेज़ी से उदासीनता म बदलती जा रही ह।
आपाधापी क इस माहौल म िनजता क चाह
और परायापन आज क जीवन क अिनवायता
सी बनती जा रही ह। जीवन क यह
अिनवायता आज पा रवा रक और सामािजक
जीवन म हर जगह घुलती जा रही ह। धीर-धीर
संवेदन शू यता और जड़ता बढ़ रही ह जो
'टक-टक कलेजा' कहानी म सहज ही
प रलि त हो रही ह। गभ म रखने से लेकर
खून से स च भिव य बनाने वाली माँ हो या
िपता आज क दौर म अपनी वाथिस ी क
िलए सब र ते हािशए पर ह। कहानी पढ़ मेरा
भी कलेजा टक-टक हो गया। मािमक,
संवेदनशील कहानी क िलए ब त-ब त
बधाई!
-उपमा शमा
000
टक-टक कलेजा
हसा दीप क छोटी सी कहानी 'टक-टक
कलेजा' मानवीय संवेदना से सराबोर कहानी
ह। एक घर क तीका मक मा यम से दो
पीिढ़य क अंतराल को रखांिकत करती ह।
आज क आपसी र त क पड़ताल पूण
तट थता क साथ करते ए कट स य को
उजागर िकया ह। माँ और बेट क कोमल,
संवेदनशील र त क ारा आज जीवन म
आए बदलाव, र त क खोखलेपन को प
िकया ह।
-मनोहर िसंह राठौड़
000
दय पश कहानी
कहानी 'टक-टक कलेजा' दय पश
कहानी ह जो हम िसखाती ह, क इसान व
मकान दोन एक समान ही होता ह जैसे ब े
क बालव था से बुढ़ापे तक का सफ़र, वैसे
ही मकान क न व डलने से जजर तक का
सफ़र एक समान ही होता ह, कहानी क
नाियका ारा अपने घर का ब त सु दर
िच ण िकया गया ह ट-प थर क मकान को
वह घर म त दील करती ह, मकान चाह
िकराये का हो या वयं का हम अपनी देख-
रख से उसे घर बनाते ह, गृह वेश क बाद
साफ सफाई से लेकर, उसक एक-एक
दीवार को सजाना, घर क कोने-कोने से हम
यार होता ह। नाियका भी 12 वष एक छोट से
घर म रहती ह, जहाँ का कण-कण उसक
दय म बसा ह, अपने ब को सुिवधा देने
क िलए वह बड़ मकान म आती ह, िजसे वह
बड़ यार व देखभाल से उसक साज-स ा
करती ह। पर समयानुसार ब े अपनी सुिवधा
को देखते ए,और बड़ा घर देखते ह और माँ
को छोड़ कर अपने-अपने घर बनाने लगते ह,
तब नाियका बड़ भावुक हो कर कहती ह -मने
िजनक िलए उस यार से घर को छोड़ा, वे
आज मुझे यहाँ छोड़ गए। बड़ा भावुक पल ह
पर समयानुसार बदलाव भी िन त ह।
-उमा चौर, इदौर
000
शीषक को साथक करती कहानी
कहानी 'टक-टक कलेजा' अपने नाम
को, शीषक को साथक करती ई तीत होती
ह। घर को इसान क भावनाएँ य करते
बताना, उसका मानवीकरण अ छा बन पड़ा
ह। लेखक ने आज क समाज क बड़ी
सम या ब को माता-िपता क िचंता न
होना, अपनी दुिनया म ही रहना, पालक का
एकाक पन बड़ी बी से दशाया ह। पाठक
एक बार म िबना क पढ़ जाता ह। सच म
नाियका का ब क परव रश जैसे घर क
देखभाल करना, छोट घर को छोड़ बड़ घर म
जाना िफर उसे सजाना उसक कला मक
िच को भी दशा रह ह, और माँ अपने ब
क परव रश एक कलाकार क तरह करती ह,
कह कोई कमी नह छोड़ती, पर ब े....?
-सं या पार साक े
000
वाह से भरी भाषा
कहानी 'टक-टक कलेजा' गृह थी को
सव प र समझने वाली और अंततः अकली
रह जाने वाली नाियका पर कि त ह। कहानी
क भाषा वाह से भरी और कसाव िलए ए
ह। कहानी क ारभ से, जीवन क अंितम
पड़ाव पर वयं का आ मावलोकन करती
नाियका, अपनी तुलना पीछ छट गए पुराने घर
से करती ह। जीवन म नए पड़ाव क आने पर
पुराना पीछ छट जाता ह यह एक सविविदत
त य ह िकतु एक समय म क म रहता इसान
जब हािशये पर धकल िदया जाता ह, तो ब धा
िवगत मृितय क धुँधलक म िवचरण करने
पर िववश हो जाता ह, और तब अवचेतन मन
म दबी कई बात उभर कर आती ह। ब क
सुिवधा क िलए छोट घर को छोड़ने का
अपराधबोध भी नाियका क मन म दबी ई
एक ऐसी ही अवचेतन म दज ई दुिवधा ह जो
सु िचपूण ढग से सजाए गए घर का सा य
नाियका वयं से अनुभूत करती ह।
-ग रमा चवर, रतलाम
000
मानवीय ेम पर आधा रत कहानी
कहानी 'टक-टक कलेजा' मानवीय ेम
पर आधा रत कहानी ह। ेम, मोह, लगाव,
अपन व कवल सजीव ािणय से ही नह
होता अिपतु मनु य क जीवन म शािमल सभी
सजीव, िनज व व तु से हो जाता ह। बारह
साल तक उस घर म रहने क बाद उसे छोड़ते
समय नाियका को घर म िबताए सभी पल
चलिच क तरह याद आते ह। ब क बड़
होने पर घर छोटा लगता ह पर उस िनज व घर
का िबछोह नाियका क मन को िवत कर देता
ह। कहानी पढ़कर मुझे 25 बरस पहले क
मेरी कॉलोनी क घटना याद आती ह जब एक
ग़रीब आदमी को क़ज़ भरने क िलए अपना
घर चालीस हज़ार म बेचना पड़ा था और उसी
कॉलोनी म िकराए से रहना पड़ा, पर जब-जब
वह आदमी अपने घर क सामने से गुज़रता था
घर को णाम करक कछ बड़बड़ाता आ
िम नामा
अ टबर-िदस बर 2022
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6
िनकल जाता था। पता नह या बोलता था पर
हम लोग इतना तो समझ सकते ह िक उसक
दय म िकतनी वेदना रही होगी उस समय।
कहानी म आगे बताया गया नए घर म माँ को
छोड़कर ब े अपने-अपने नए घर म चले
गए, मुझे लगता ह यहाँ लेिखका को थोड़ा
िव तार देना था। ख़र
ै जब द क ब े
नाियका को छोड़कर चले गए तब उ ह
अहसास आ िक वह भी उस िनज व मकान
क तरह हो गई, जो समय क साथ ख ताहाल
हो गया ह, कमज़ोर हो गया ह िकसी को अब
उसक ज़ रत नह ह। कहानी अ छी ह
कहानीकार हसा दीप को बधाई।
-सौरभ लाड़, इदौर
000
िदल को छ लेने वाली कहानी
'टक-टक कलेजा' कहानी िजस मकान म
कहानी क नाियका रहती ह, उस छोट मकान
को छोड़ने से मन म उपजे न और बेचैिनय
को उ ह ने ब त ही सू मता से िचि त िकया
ह। ट, सीमट, गारा, िम ी से बना मकान तो
मकान होता ह, िक तु उसम रहने वाल क
सु िचयाँ उस मकान को घर बना देती ह।
िजस मकान म दशक रहने से उसक हर ट,
दीवार, छत, फश, रग जो आपक िचय
और भावना का रग ही होता ह। वह थान
जहाँ मकान थत ह, उसका घर हो जाना, यह
सब आपक य व म समािहत हो जाता ह।
मनु य का मन ही ऐसा ह िक वष का साथ
बेजान सी लगने वाली चीज़ से भी उसक ित
आ मीयता और लगाव म त दील हो जाता ह।
इसी भावभूिम पर उ ह ने संवेदना क तर पर
िदल को छ लेने वाली कहानी रची ह। िव णु
खर क भी िद ी म बने बड़ अहात वाले
घर को लेकर एक उ दा किवता ह, िजसम
किव क नाकलता ह िक इन घर म रहने
वाल को आवाज़ देकर, पुकारा कसे जाए।
कहा भी जाता ह िक घर छोटा होता ह िक तु
उसम रहने वाल क िदल बड़ होते ह। हम
अपने पुराने बने पैतृक मकान से इसीिलए
लगाव हो जाता ह।
कहानी म एक वा य आता ह िक नई
तकनीक से बने घर म घर बोलते ह, इसान
नह । भौितक सुख सुिवध से लैस मकान,
अ याधुिनक जीवन शैली म जीवन जीते ब
को पसंद आते ह। उ ह पुराने घर म रचा-बसा
भावना का वह संसार जो िदन-रात आपसे
बितयाता ह, रास नह आता। इ ह ज़ रत क
चलते नाियका जब पुराना घर बदल कर
सामान सिहत नए घर म रहने लगती ह। उस
पुराने घर को छोड़ते समय वह घर मूक दशक
क तरह उसे देखता रहता ह, उसक पुरानी
दीवार से झड़ते ला टर क परत से वह
आहत हो जाती ह, उसे लगता ह, वह वयं
एक पुराने घर क तरह ह। यह भाव उसक
कलेजे को छ जाता ह। कहानी संवेदना क
तर पर दय को छ जाती ह, भाषा वाहमयी
ह।
-अ ण सातले
000
पाठक पर कहानी भाव छोड़ती ह
कहानी अ य त संवद
े नशील और भावुक
करने वाली ह। ेम िसफ़ सजीव से ही नह
अिपतु िनज व व तु से भी होता ह। अपनी
माटी, अपने ज म थान, अपनी व तु और
अपने घर से ेम हो जाना मानवीय वभाव
होता ह, उस पर यिद य , संवद
े नशील
सािह यकार ह तो इस ेम क कोई सीमा नह
होती।
तुत कहानी म मु य पा को अपना
पुराना घर छोड़ना पड़ता ह। अपने िलये नह ,
अपने ब क िलये। िजस घर म वो बारह वष
रही िजसे उसने अपने प र म और याग से
मकान से घर बनाया, सजाया, सँवारा, उसी
घर को छोड़ना पड़ा था, अपने ब क िलये।
िजस व तु से भावना मक जुड़ाव हो गया हो
उसे छोड़ना िकतना क दाई होता ह, इसे हर
संवेदनशील य समझ सकता ह।
"पुरानी तकनीक, आउट डटट" -इस
वा य क साथ कहानी पाठक को भावुक कर
देती ह। जब पा पुराने घर से अपनी तुलना
करते ए, अपने आप को पुराने घर क तरह
य य मान लेती ह। ब े उसे छोड़कर जा रह
ह। ठीक उसी तरह िजस तरह से उ ह ने पुराने
घर को छोड़ा था। ब े जा रह ह, अपनी माँ
को छोड़कर। बग़ैर माँ क ओर एक बार देखे।
बग़ैर हाथ िहलाये। कहानी ब त छोटी ह िक तु
पाठक पर बड़ा भाव छोड़ती ह। वाहमयी
कहानी लेखन हतु लेिखका को बधाई।
-वैभव कोठारी
000
अ यंत रोचक कहानी
'टक-टक कलेजा' कहानी एक अछते
िवषय पर िलखी अ ुत कहानी ह। िनज व
ट प थर क बने मकान भी सजीव हो जाते ह,
जब उनसे गहरा अपन व जुड़ जाता ह और
यह ायः हर मिहला क साथ होता ह। य िक
वह उस मकान को सजाने, सव
ँ ारने और
खुशहाल बनाने म अपना िवशेष योगदान देती
ह। िक तु वह मिहला भी साधारण मानव होने
क साथ एक माँ भी ह, िजस मकान से
अपन व जोड़कर बात करती थी। उसी मकान
को ब क कारण छोड़ना पड़ा। नए और
बड़ मकान म नए िसर से सजाने सव
ँ ारने म
पुराने मकान को भूल जाती ह। यह एक
सामा य मानवीय गुण ह। एक अंतराल क
बाद िफर वही समय आता ह, जब ब को
यह नया घर भी पुराना और छोटा लगने लगता
ह और वे अपने नए आिशयाने म चले जाते ह।
नाियका अपने टक-टक होते कलेजे को
लेकर दरवाज़े पर खड़ी उ ह जाते देखती
रहती ह। अब नाियका को पुराना मकान याद
आता ह, उससे जुड़ा अपनापन, मम व याद
आता ह, यहाँ नाियका क मनोभाव क साथ
पूरा याय करते ए हसा दीप ने ब त सही
िच ण कर िदया ह। उसक यथा को श द दे
िदए ह और कहानी मािमक हो गई। दुखांत
होते ए भी कहानी मन को छ लेती ह, सवथा
नवीन िवषय पर आधा रत इस कहानी म
नाियका क अलावा कोई पा य प से
नह आता। नाियका को भी कोई सं ा नह दी
गई ह, िफर भी कहानी अ यंत रोचक,
भावपूण, मािमक ह।
-शिश शमा, इदौर
000
मकान बोलता ह
कहानीकार हसा दीप इस कहानी क
मा यम से पाठक वग क दय म थान पाने म
सफल ई ह। िन त ही िजस पुराने मकान
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म हमार कई साल यतीत ए ह ,उसक एक
एक ट से हमारा जीवंत स पक हो जाता ह।
कहानीकार ने कथन क मा यम से पुराने
मकान क ित अथाह ेम य िकया ह।
कहानीकार को यह अहसास भी आ ह िक
मकान बोलता ह। नए मकान म जाते समय
पुराने मकान को अलिवदा कहना भी
मालिकन भूल गई, िजसे ब बी कथन क
मा यम से बताया ह। कहानीकार क
सफलता ह िक कहानी पढ़ने वाला यह
समझता ह िक यह मुझ पर ही िलखी गई ह।
ब का बगैर हाथ िहलाए क म सामान भर
क चल देने ही पूरी कहानी को ज म िदया ह।
यह सच भी ह िक नई तकनीक म घर बोलते ह
इसान नही।
-सुनील चौर "उपम यु", ख डवा
000
िम ी से जुड़ाव क कहानी
यह कहानी अपनी िम ी से जुड़ाव क
कहानी ह। जब कोई य अपने मन का
रशा-रशा जोड़कर घर बनाता ह। उसे उस घर
से अपन क तरह ही ेम हो जाता ह। इस मोह
म िलपटा वह उसम जीवंतता क अनुभूित
करता ह। कहानी क नाियका भी अपने घर से
एक जीवंत जुड़ाव महसूस करती ह। लेिकन
ब क बड़ होने क साथ ही उ ह वह घर
छोटा और पुराना लगने लगता ह। िजसम वे
पले, पढ़ और बड़ ए। अंततः नया बड़ा
मकान ले िलया जाता ह। कहानी क नाियका
भी जड़ को छोड़, जाने को तैयार हो जाती ह।
जाते समय घर अपना ला टर का टकड़ा
िगरा कर िबछड़ने क दुःख का इज़हार करते
ए उसे रोकने का असफल यास करता ह।
लेिकन वह समझ नह पाती। अब नए मकान
क अकलेपन म उसे वह सब याद आता ह िक
कसे उसने अपने हाथ से घर को सव
ँ ारा था।
लेिकन िनयित, प र थित और ब का
वाथ उसे अपने घर से दूर कर मकान म ला
पटकता ह। जहाँ अकलेपन से िनर तर लड़ने
क अित र और कछ नह बचा था। भले ही
मकान ब त बड़ा था लेिकन वह घर नह था।
कहानी भावना मक और आकषक िश प म
गूँथी गई ह। लेिकन कहानी थोड़ा सा और
िव तार माँगती ह और कहानी का अंत यादा
प ता क माँग करता ह। शेष सु दर कहानी
ह।
- याम सुंदर ितवारी, ख डवा
000
िनज व सामान म जान डाल दी
घर चाह बड़ा हो या छोटा घर िसफ घर
होता ह। लड़क जब घर म ब क प म
वेश करती ह तो सपन से सजा संसार सबसे
यारा होता ह। कहानी क शु आत भी इसी
भावना से ई ह। छोटा सा आिशयाना िजसम
आ मा का वास होता ह उससे िवलग होने का
दद सभी को नह होता। जो सहजता ह
सँवारता ह जो समय नह िबताता वण जीवन
जीता ह र त को पालता पो ता ह।
उस थान क क मत िसफ और िसफ
अनुभूितय से होती ह। लेिखका ने ट, दीवार,
छत, दरवाज़े और रखे ए िनज व सामान म
जान डाल दी। जीवंत र त क कहािनयाँ तो
ब त गढ़ी ग और पढ़ी ग ह। लेिकन घर म
एकि त िकया गया सामान कभी बेवफ़ा नह
हो सकता। आप उ ह समय दो, वह आपको
स मान देते ह। प रवार क िलए, व त क
आव यकता अनुसार थान प रवतन मजबूरी
बन जाना, लेिकन कित से दूर होने क पीड़ा
को हसा दीप ने द िजया ही होगा, िजसे
कहानी क मा यम से हम तक सं ेिषत करने
रचना मकता शंशनीय ह। ब त ही सुंदर
तरीक से एक िवचार, एक अनुभव, एक
प रवतन को भीतर तक गहर महसूस करना।
वाकई एक अ छा उदाहरण ह। अिधक
फलाव ना करते ए आ मकि त प रवतन को
टक-टक होते ए कलेजे का िवशेषण देते ए
अपने जुड़ाव को अिभ य करना अ छ
लेखन क ेणी म ह। ब का िनमूल
यवहार और जैसे ेम का या लगाव ना होना,
अचानक चले जाना। लेिखका का अकले रह
जाना, जैसे खाली मकान जो खड़ा तो ह
लेिकन िनज व सीमट क पपड़ी का िगर कर
आिलंगन दन
े ा जैसे पल सामा य न हो कर
िविश ता क ण बन गए ह। िकतु जाते
समय िवमुख होकर िनकल जाने जैसे यवहार
से आहत हो जाना अितसंवेदनशीलता का
उदाहरण ह।
-डॉ. र म दुधे
000
भावना धान शैली
सरसरी तौर पर ही म इस कहानी को पढ़ने
को उ सुक था लेिकन कछ पं याँ पढ़कर
मेरी उ सुकता बढ़ती गई और म बध
ँ सा गया।
िकसी कहानी क िच म थािपत हो जाना ही
कहानीकार का मु य उ े य होता ह और
िफर वही पाठक क मानस पटल पर अंिकत
हो जाता ह। हसा दीप क कहानी 'टक-टक
कलेजा' मानस पटल पर अंिकत िच सा
द तावेज़ ह। लगाव, मोह अपनेपन का भाव
मानव को िमली असाधारण भट ह जो न
कवल मानव को ब क सजीवता क
प रभाषा िलए हर ाणी म होती ह। 'टक-टक
कलेजा' भी भावना क समंदर क गहराई म
िछपे सीप सी ह। भावना धान शैली म िलखी
गई कहानी संवद
े ना को उकरने क कहानी
ह।
-स तोष चौर 'चुभन'
000
िवचार क सघनता
हसा दीप क इस कहानी 'टक-टक
कलेजा' को पढ़कर लगता ह- लेखन संवेदना
क माँग करता ह। यह संवेदना िवचार क
गहराई हो। आलंबन या िवषय से इतना
भावना मक लगाव हो िक वह सहजता से
पाठक को क णा तक ले आए। िश प,
क य, कथानक आपस म इस तरह जुड़ जाएँ
िक आप िवषय से हट न पाएँ।
इस कहानी को पढ़ते ए ऐसा भी लगा िक
िवषय ब त सामा य भी हो सकता ह,
साधारण भी, छोटा भी हो सकता ह, िबना
जीिवत च र क भी। वह वृ भी हो सकता ह
और घर भी। यानी मानव क साथ िश त से
जुड़ी कोई भी चीज़ कहानी रच सकने क िलए
काफ ह। शेष लेखक क मता, उसका
अ ययन, भावना मकता और िवचार क
सघनता रचना को रचना बना देती ह। कहानी
क त व तो अ यंत ज़ री ह ही।
-शैले शरण
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िद या माथुर
83 ए, डीकन रोड, लंदन एन ड लू-2 5
एन एन, यू.क.
ईमेल- vatayanpoetry@gmail.com
कथा-कहानी
‘चोर भी दो घर छोड़कर डाका डालता ह, म मी। ' बड़ बेट सुिमत क बात सुनकर मानसी
का िदल दहल गया; अपने ही छोट भाई क िलए यह या कह गया सुिमत? उसक पित अिभनव
क मृ यु को अभी एक ह ता ही तो आ था; ब े और संबंधी तो या, उसे लगा िक ह ते भर म
जैसे सारी दुिनया ही बदल गई थी।
'यह आप या कह रह ह?' सास क िदल पर लगी ठस को महसूस करते ए बड़ी ब
सानवी क नभरी पित क ओर उठी।
'तू ये अ छ-अ छ मुहावर कहाँ से सीख आया, सुिमत?' से म मानसी ने पूछा तो सुिमत
ने नज़र चुरा ली, मन ही मन वह भी पछता रहा था िक कम से कम माँ क सामने उसे ऐसा नह
कहना चािहए था।
'म मी जी, आप इनक बात को िदल से न लगाइए। ये इनक नह , चाची जी क श द ह।
चाचा-चाची क बात म आकर कह हम आपस क यार-मुह बत ही न खो बैठ, सुिमत।'
सानवी क बात खरी थी िकतु सुिमत िफर िचढ़ गया।
'चाचा-चाची ठीक ही तो कहते ह, अिमत और आ िष को म मी ने हद से यादा िसर पर
चढ़ा रखा ह।' ितरछी नज़र से देखती ई सानवी जैसे पित को बताना चाह रही थी िक कम से
कम उसे समय और थान देखकर बात करनी चािहए।
'अजीब बात ह; अिमत और आ िष कहते ह िक म तुम दोन को यादा चाहती ।' मानसी
एक ठडी साँस लेती ई बेट-ब क पास से उठ गई।
अपने को िकतना भा यशाली समझती आई थी मानसी िक उसका प रवार एक सुखी प रवार
था; िकसी क घर म कोई कमी नह थी, िकसी म लड़ाई-झगड़ा नह , कोई तेरी-मेरी नह । सुिमत
और सानवी यूयॉक म रहते थे और बेटी महक और उसका पित डिनयल ऑ िलया म। साल
म एक ही बार तो आना होता था उनका िकतु जब भी आते, तोहफ़ से लदे-फ़दे। बस एक ही
कमी रह गई थी; सुिमत और सानवी क अपनी कोई औलाद नह थी िकतु वे अिमत- आ िष क
ब अणव और अन या पर जान िछड़कते थे।
मानसी को समझ नह आ रहा था िक अिभनव क मरते ही घर ऐसे कसे िबखरने लगा। या
अिभनव क पास कोई जादू था या िफर उनक डर से कोई बोलता नह था। बेट ने तो अिभनव क
तेरहव का भी इतज़ार नह िकया और लड़ने लगे। सुिमत िद ी प चा तो तैश म था। वह
चाचा-चाची क कह म आकर तो अिमत ताऊ-ताई क बहकावे म आकर अपने ही घर क शांित
न करने पर तुले थे। ससुराल वाल को तो जैसे मौका ही िमल गया था मानसी क घर म
ह त ेप करने का और उ ह ने घर को क े का मैदान बनाने म कोई कसर नह छोड़ी थी।
या मानसी क ही आँख ब द थ जो वह देख नह पाई िक उसक बेट-ब को प ी पढ़ाई
जा रही थी? वह जानती थी िक अिमत-आ िष ताऊ-ताई क साथ ब त िहल-िमल गए थे िकतु
लडी कोठी
िद या माथुर
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उसने इसे अ यथा नह िलया था।
अभी हाल ही म तो चाचा-चाची पूरा एक
महीना अमे रका म सुिमत और सानवी क
साथ रहकर लौट थे; उनक पाँव ज़मीन पर
नह पड़ रह थे। सुिमत-सानवी क महल जैसे
घर और उसम सजे आधुिनक उपकरण क
बार म जब वे अिमत-आ िष को बढ़ा-चढ़ा
कर बताते तो उ ह लगता िक वे यहाँ कवल
झक मार रह थे। जानते ए भी िक देवर-
देवरानी उसक प रवार म मन-मुटाव पैदा
करने का य न कर रह थे, मानसी ने उनसे
कभी यह भी जानने का य न नह िकया िक
वे अमे रका म सुिमत को या पाठ पढ़ा कर
आए थे; य िक वह जानती थी िक सानवी
चाचा-चाची क बात म आने वाल म से नह
थी। िकतु यहाँ तो उसका अपना बेटा ही बहक
गया था। अिभनव क होते ए उसने कभी
िकसी क परवाह ही नह क थी और न ही
कभी िकसी क िह मत ई िक कोई चूँ भी कर
जाए।
'शांित-पाठ क िलए म दर बुक कर िदया
था न तूने अिमत?' मानसी ने तय िकया िक
वह तेरहव क स प हो जाने तक अपने
ऊपर अंकश रखेगी।
'हाँ म मी, पंिडत जी कह रह थे िक हम
तीन बजे तक हॉल ख़ाली कर देना होगा।'
अिमत ने ख़े वर म जवाब िदया।
'आ िष, सुबह तुम िबज़ी थ , हलवाई
आया था। ज़रा उसे फ़ोन पर मे यू बता देना।'
मानसी ने कहा।
'मने उसे दोपहर को ही फ़ोन पर बता
िदया था।' आ िष भी मुँह सुजाए बोली।
'कर-धर सब हम और भै या-भाभी चले
आते ह अपना हक़ जमाने।' अिमत फट पड़ा।
'कसी बात कर रहा ह तू अिमत?'
चाहकर भी मानसी चुप न रह सक । मन ही
मन सोचने लगी िक बड़ िमयाँ तो बड़ िमयाँ,
छोट िमयाँ सुभान अ ाह!
'ठीक ही तो कह रह ह ये, म म । कभी
इले िशयन को बुलाओ तो कभी गैस वाले
को, कभी टॉयले स ब द तो कभी छत टपकने
लगी। इस लडी कोठी को सँभालने क िलए
अिमत ही को तो भागते रहना पड़ता ह। तब
कहाँ होते ह आपक यार बेटा-ब ?' अिमत
से िचपक कर खड़ी आ िष ने सास को
उलाहना िदया तो मानसी क से का पारावार
न रहा।
'आ िष, तु ही लोग रहते हो इस लडी
कोठी म तो इसे ठीक कराने या कोई और
आएगा?'
'साल म एक बार भैया और महक आते ह
और सब उनक गुण गाते नह थकते। कभी
उ ह ने पूछा हमसे िक घर क अपक प कसे
करते ह हम?' अिमत बोला।
'सुिमत या महक क जायज़ाद को िकराए
पर उठाने से पहले तुमने तो उनसे झूठ को भी
नह पूछा िक उ ह कोई एतराज़ तो नह या िक
जो िकराया आ रहा ह, कह उ ह उसक
ज़ रत तो नह ।'
'जब वे यहाँ रहते ही नह तो उ ह या
ऑबजै शन हो सकता ह? ख़ाली पड़-पड़
कोठी का जो हाल होता...' आ िष ने दलील
पेश करनी चाही।
'उनक जायदाद से न बे हज़ार पये
महीना िकराया आ रहा था अब तक। इसी
लडी कोठी क िकराए क वजह से मज़े
उड़ाते रह हो तुम सब।' मानसी बोलती ही
चली गई, 'अणव और अन या क ऊपर िश ट
हो जाने क बाद भी तु ह चालीस हज़ार तो
िमल ही रह ह। नीचे वाली मंिज़ल क
रीफ़िबशमट क बाद स र-अ सी हज़ार और
िमलने लगगे। इस लडी कोठी म मज़े
उड़ाओ तुम और इसक अपक प कर िवदेश
म बसे तु हार भाई-बहन, भई वाह!' माँ को
से म देखकर वे दोन चुप लगा गए। उ ह
अ देशा नह था िक मानसी उ ह यूँ लताड़ भी
सकती थी।
घर म एक ख़ौफ़नाक स ाटा छा गया,
िजसम अणव और अन या क आवाज़
आसमान म िघर काले बादल म कभी-कभी
िबजली क सी क ध छोड़ जात । बजाय पित
का शोक मनाती, मानवी ब क झगड़
सुलझाने म लगी थी। अिभनव िज़ंदा होते तो
मजाल थी िकसी क िक वे मानसी से इस
ब तमीज़ी से पेश आते!
अिभनव क आक मक मृ यु को मानसी
क िलए झेलना ही ब त किठन था, उस पर
ब क यह तू-तू म-म। उसने कभी सपने म
भी नह सोचा था िक कोई ऐसे अचानक
उठकर चला जाएगा। िपछले रिववार क शाम
क ही तो बात ह। रोज़ क तरह, ह क भोजन
क बाद अिभनव सामने ही बाग म टहल रह थे
िक उनक सीने म जलन होने लगी; लौटकर
वह लेट गए। मानसी ने क ा दूध पीने को
िदया, िफर पुदीनहर क दो गोिलयाँ भी द
िकतु जलन थी िक बढ़ती ही चली गई। द तर
से अिमत लौटा तो वह िपता को अ पताल ले
चलने क िज़द करने लगा।
'डॉ टर से मज़ाक उड़वाना ह तो चलो।'
मानसी और अिमत उ ह ज़बरद ती कार म
बैठाकर ेटर कलाश थत एक ाइवेट
अ पताल क ओर चल िदए।
अभी पाँच िमनट भी नह ए थे िक
अचानक अिभनव क तबीयत िबगड़ने लगी;
वे सीधे एमजसी म प चे। डा टर ने बताया
िक उ ह िदल का दौरा पड़ा था। जब मानसी
और अिमत को उनसे िमलने िदया गया तो वह
ब त कमज़ोर लग रह थे िकतु ख़तरा टल गया
था। रात क बारह बजे क क़रीब अिभनव ने
अिमत से घबराई ई मानसी को घर ले जाने
को कहा, जो वहाँ से टस से मस होने को तैयार
नह थी। डॉ टर क इस आ ासन पर िक
अिभनव अब ख़तर से बाहर थे और उ ह
आराम क आव य ा थी, वे दोन ही घर
लौट आए।
रात क क़रीब डढ़ बजे फ़ोन पर सूचना दी
गई िक अिभनव को िदल का एक भारी दौरा
पड़ा और इस बार वे उ ह बचा नह सक।
पड़ौिसय और अिभनव क िम ने ि या-
कम संबंधी सब काम सँभाल िलए थे।
मानसी, अिमत-आ िष एवं अणव-अन या
सभी एक सकते क सी हालत म थे। सुबह-
सुबह िनगम बोध घाट पर अिभनव का अंितम
सं कार कर िदया गया।
मानसी को घर ऐसा ख़ाली लग रहा था
िक जैसे वहाँ से कवल अिभनव ही नह , ब त
सार लोग अचानक चले गए थे। सुिमत-
सानवी कह जाकर तीसर िदन ही प च पाए
थे। उनक रहने क यव था ऊपर अणव और
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अन या क कमर म क गई थी, पोता-पोती
नीचे दादी क कमर म वािपस आकर आ त
थे। समय क ना कता को देखते ए
िकराएदार साहनीज़ अपना बाथ म-टॉयलेट
शेयर करने िक िलए राज़ी हो गए थे।
'िदस लडी कोठी इज़ आवस एंड वी हव
ट शेयर टॉयले स!' सुिमत िफर भड़क उठा
था, साहनीज़ अपना सा मुँह लेकर रह गए।
'कोई बात नह बेटा, कछ ही िदन क तो
बात ह। हम पता होता िक ऐसा होगा तो...'
अशांत मानसी ने सुिमत को शांत करना चाहा।
'आपको तो कछ नह पता था मॉम, डड
इतने िदन से बीमार थे, आपने हम बताया तक
नह , अिमत हम एक फ़ोन ही कर देता...'
सुिमत भाव-िव ल हो उठा।
'वी वर र ंग लाइक हडलैस िचकस,
डम इट...' अिमत को भी सा आ गया।
'मोबाइ स क ज़माने म भागते-दौड़ते भी
फ़ोन िकया जा सकता ह, अिमत, पर तुम तो
चाहते ही नह थे िक हम लोग समय पर प च
पाते।'
'वाट ड यू मीन?' मेज़ पर घूँसा मारते ए
अिमत बोला।
'मदस डािलग, यू वेरी वेल नो वाट आई
मीन। '
'चुप हो जाओ, ब त हो गया, अभी
तु हार डड क तेरहव भी नह ई ह और तुम
दोन भाई चूह-िब ी क तरह लड़ रह हो।'
मानसी का िदमाग़ भ ा रहा था। कह वह बुरा
सपना तो नह देख रही थी?
'मुझे तो बस आप यह बता दीिजए, म मी,
िक हम डड क डथ क बाद ही ख़बर य दी
गई?'
'सब इतना अचानक आ, सुिमत, िक.?'
'एक लडी कोठी क िलए ये लोग इतना
िगर गए िक आिख़री व हम डड से िमल भी
न सक।' माँ क सीने से लगा सुिमत सुबकने
लगा तो मानसी घबरा गई िक कह अिमत यह
न सोचे िक वह सुिमत क तरफ़दारी ले रही
थी।
'वाट िद हल इज़ ही टौिकग एबाउट,
मॉम?' कहता आ अिमत भाई क ओर
लपका तो आ िष उसे ज़बरद ती घसीटती
ई नीचे ले गई।
अणव और अन या अवाक खड़ थे;
ताऊ-ताई जी पहले जब भी अमे रका से आते
थे, इस ितमंज़ली कोठी म िशय का गदर
मच जाता था, िजसे जीवन भर क कमाई
लगाकर अिभनव और मानसी ने बड़ यार से
बनवाया था अपने तीन ब क िलए। बीच
क खन म अिभनव-मानसी क साथ अिमत-
आ िष और अणव-अन या रहते थे। सुिमत
क िलए नीचे वाला लैट था। महक को दूसरी
मंिज़ल ही पस द थी, िजसक छत पर एक
पो स- म भी था। िववाह क बाद, महक
वाले लैट को भी िकराए पर चढ़ा िदया गया
था। अिमत क तन वाह पूरी क पूरी बक म
जमा हो जाती थी; आ िष एक महारानी क
तरह रहती और ख़च करती थी। घर म दो
नौकरािनय क अलावा उसने झा -प छ और
कपड़ धोने-इ ी करने वाली अलग लगा
रखी थ । माली और ाइवर तो थे ही। मानसी
को यह समझ नह आ रहा था िक अिमत और
आ िष को और या चािहए?
अणव-अन या जब पाँच और छह वष क
ए तो आ िष ने ऊपर क मंिज़ल पर बने दो
शयन-क उनक िलए और ख़ाली करवा
िलए। बाक़ क बचे दो शयन-क , बैठक,
रसोईघर और बाथ म-टॉयलेट अब भी
िकराए पर चढ़ थे। सुिमत ने कोठी म कोई
िदलच पी नह िदखाई थी और करोड़पित माँ-
बाप क इकलौती बेटी सानवी को भी पैसे क
कोई कमी नह थी; िकतु चाचा और चाची ने
अपने अमे रका-वास क दौरान सुिमत को न
जाने या प ी पढ़ाई िक वह बात-बात म
भड़कने रहा था।
'हमने तो सुना ह िक तु हार िह से म
आ िष अपना बुटीक खोलने जा रही ह।'
यूयॉक प चते ही चाची ने सुिमत और सानवी
को एक नई ख़बर सुनाई।
'घर िकराए पर उठाने से यह बेहतर रहगा,
ह न सुिमत?' सानवी ने पित को सावधान
करना चाहा िक घर क मामले म वह चाचा-
चाची क बात न ही सुने तो अ छा था।
'सानवी, तुम तो ब त ही गिलबल हो। '
चाचा बोले थे।
'सचमुच सानवी, आ िष धीर-धीर पूरी
कोठी पर अिधकार कर लेगी और तु ह कछ
पता भी नह चलेगा, ऊपर क मंिज़ल तो
उसने पहले ही हिथया ली ह।' चाची ने हमदद
िदखाते ए कहा।
'चाची जी, हम तो िद ी लौटना नह ह,
आ िष को करने द जो वह करना चाहती ह,
य सुिमत?'
'सानवी क माँ-बाप ने तो अपनी सारा
धन-जायदाद उसक नाम कर दी ह। तु हारा
अपना या ह?' सानवी को डर लगा िक
मंथरा सी चाची का जादू कह सुिमत पर चल
ही न जाए।
'घर-जंवाई बनकर न रह जाना, सुिमत।
भैया ने कछ सोच समझकर ही ाउड लोर
तु हार नाम िकया होगा, ह क न ?' चाचा ने
बड़ भाई का हवाला िदया तो सुिमत को लगा
िक एक कवल चाचा-चाची थे, िज ह उसक
सचमुच परवाह थी।
इस िवषय को लेकर सुिमत और सानवी
म जब तब बहस िछड़ने लगी। अिभनव क
मौत का तो नह िकतु कोठी क हर िह से म
मातम हो रहा था।
मानसी को िफ़ ही नह ख़ौफ़ था िक इन
हालात म उसक पित क तेरहव कवल एक
तमाशा न बन कर रह जाए।
अगली ही सुबह बेटी महक और डिनयल
भी आ प चे, िज ह हवाईअ से िलवाने क
िलए कनाल मामा और जय ी मामी प चे थे,
जो हाल ही म ऑ िलया म उनक मेहमान रह
चुक थे। कम से कम डिनयल क तो वे
िव ास-पा बन ही चुक थे।
'अर, तुम दोन िकतनी मेहनत करते हो,
घर क सफ़ाई से लेकर बतन माँजने तक,
कपड़ धोने और इ ी करने से लेकर भोजन
पकाने तक सार काम द करते हो और वहाँ
देखो अिमत और आ िष क या ठाठ ह। दो-
दो ल टाइम नौकरािनय क अलावा माली,
ाइवर और दो पाट-टाइमस ह उनक पास।
यह सब तु हार लैट क िकराए क बल पर ही
तो हो रहा ह।' महक क तो नह िकतु डिनयल
क कान अव य खड़ हो गए थे।
महक और डिनयल क रहने क यव था
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ाउड- लोर पर क गई थी, जहाँ इन िदन
िलपाई-पुताई का काम चल रहा था।
'अपना िह सा लेकर चाह तुम िकसी
िभखारी को दे दो पर ऐस क िलए य छोड़ो
जो अपने ही बड़ भाई और बहन का िह सा
हड़पने क सोच रह ह । '
कनाल मामा उ ह समझा रह थे।
'हाँ, तु हार िह से म अणव और अन या
को सैटल करने से पहले उ ह तुमसे कम से
कम पूछ तो लेना चािहए था।' मामी ने आग म
घी डाला। महक ने उनक बात अनसुनी
करनी चाह िकतु डिनयल उनक बात को
बड़ यान से सुन रहा था।
'बट दे शुड हव ऐट ली ट इफ़ौ ड अस,
डािलग।' डिनयल ने महक से कहा। महक क
िदमाग़ म आया िक उसक िनजी मामले म
डिनयल य टाग
ँ अड़ा रहा था? िपछले चार
साल म डिनयल एक बार भी अपनी मज़ से
िद ी आने को राज़ी नह आ था। ससुर क
अक मा मृ यु का समाचार सुनकर वह
झटपट िद ी चलने को तैयार हो गया था;
या उसे अपनी प नी क िह से क जायदाद म
सचमुच िदलच पी थी? महक को यह बात
अ छी नह लगी।
'डिनयल, वाए ड वी नीड पापाज़ हड-
आउ स?' महक ने उससे पूछ ही िलया।
'वाए नौट? यू वर िहज़ डािलग डौटर, ही
हज़ लै ट इट फ़ौर यू. अवर िक स िवल बी
सो ाउड औफ़ देयर इ ह रटस वन ड, हनी।'
डिनयल का तक सुनकर महक को लगा िक
शायद वह ठीक ही कह रहा था।
कोठी म अब सचमुच मातम मनाया जा
रहा था - ऊपर क मंिज़ल पर सुमीत-सानवी
क साथ चाचा-चाची, पहली मंिज़ल पर
अिमत-आ िष क साथ ताऊ-ताई जी और
ाउड लोर पर महक-डिनयल क साथ
मामा-मामी, सब क सब लडी कोठी और
िकराए को लेकर परशान थे।
तन और मन से थक ई िवधवा मानसी
को तीन-मंिज़ला कोठी म एक कोना भी नह
नसीब नह आ जहाँ वह पित का शोक ठीक
से मना सकती।
'अिमत ने तु ह समय पर ख़बर कर दी
होती तो कम से कम तुम अपने िपता से
आिख़री बार िमल तो लेते।' चाची ने अपनी
बात िफर दोहराई।
' या जाने अिमत और आ िष का लैन
सफ़ल हो ही गया हो। उनक कहने म आकर
शायद तु ह जायदाद से बेदखल कर िदया
हो।' चाचा बोले।
'जो भी हो, हम नह चािहए इस कोठी का
एक भी कमरा। चलो सुिमत, हम लोग होटल
म जाकर रहते ह।' तंग आकर सानवी बोली।
'नह नह , अिमत-आ षी यही तो चाहते
ह िक तुम से म उठकर चल दो तािक
मानसी तु ह िध कार। होटल चले जाओगे तो
लोग भी यही कहगे न िक बाप क तेरहव तक
भी नह क सक। ' चाची घबराई िक कह
उनका बना बनाया खेल न िबगड़ जाए।
'तु ह िकसका डर ह सुिमत? यह तु हारी
कोठी ह, कम से कम जब तक भैया क िवल
नह पढ़ी जाती तब तक को।' चाचा ने कहा।
उधर माँ िबखर ए अिमत को सँभाल रही
थ , जो आ िष पर अपनी झ ाहट उतार रहा
था।
'ऊपर नीचे सब जगह पाँव फलाकर तुमने
ही उन सबको बोलने का मौका िदया ह,
आ िष। भैया और महक दोन मुझे ही दोषी
ठहरा रह ह।'
'अिमत, तुम अपना सारा सा मुझ पर
उतारना चाहते हो तो ठीक ह। माँ ने तुमसे कहा
था न िक भैया और महक को फ़ोन पर बता दो
िक डड को अ पताल ले जा रह ह।'
'मने सचमुच नह सोचा था िक डड...'
अिमत क लाई छट गई।
'सुबह ही तो फ़ोन कर िदया था अिमत ने।
कछ घंट क देरी क िलए सुिमत न जाने य
इतना शोर मचा रहा ह।'
'चाचा-चाची ने उ ह न जाने या- या
बताया ह िक वे हमसे इतने ख़फ़ा ह।' आ िष
बोली।
'जो भी हो, अभी तो शांित रखो। लोग क
आँख-कान इन िदन हमारी कोठी पर ही लगे
ह,' मानवी ने उनसे चुप हो जाने क ाथना
क ।
' लडी कोठी, मुझे अपना िह सा भी नह
चािहए, मॉम। जैसे ही पापा क तेरहव हो
जाएगी, हम दुबई चले जाएँगे। आ िष क
म मी-पापा हम कब से वहाँ सै ल होने क
िलए कह रह ह।'
नीचे डिनयल और महक को समझाया जा
रहा था िक इस दुिनया म नादान बनकर नह
िजया जा सकता। यह कोई छोटी मोटी बात
नह थी, इस समय कोठी क क़ मत कम से
कम बीस करोड़ तो होगी ही। वैसे बात पैस
क नह , उसूल क थी।
'अिमत-आ िष ने तेरा एक बाल भी
बाँका िकया न महक, तो म उनक ऐसी क
तैसी कर दूँगा।' गोल-मटोल मामा अपने फले
ए गाल बजाते इधर से उधर लुढ़कने लगे।
'डो ट वरी, वी आर िवद यू, 24/7।'
जय ी मामी क इशार पर कनाल डिनयल क
गले म हाथ डाले बाहर िनकल गया तािक वह
महक से अकले म बात कर सक।
पीछ वाली बिगया म एक ह ते क िलए
हलवाई बैठा िदए गया था; इतने बड़ प रवार
का चाय-ना ता, दोपहर और रात का भोजन
घर क दो नौकरािनयाँ तो अकले सँभाल नह
पात । घर क सभी सद य ब त य त थे;
बेचार को नहाने-धोने का भी होश नह था।
दोपहर क भोजन क िलए प रवारजन
बिगया म इक ए। थािलय म कते-सूत से
चेहर को िनहारते ए लोग एक दूसर से नज़र
िमलाने को भी तैयार न थे। हाथ म छरी-काँट
न ए तीर-तलवार हो गए; सबक आँख म
गोला बा द भरा था। मानसी को लगा िक
जैसे अिभनव का ि य बगीचा क े म
बदल गया हो। सफ़द साड़ी म िलपटी मानसी
भगवा से मन ही मन पूछ रही थी िक अिभनव
क जीवन भर क कमाई और उसक जी-तोड़
मेहनत का या यही िसला िमलना था उसे?
यकायक वह फट-फट क रोने लगी।
'दादी, या आ? आप रो य रही हो?'
अन या आकर दादी से िचपट गई।
‘आप सभी दादी का िदल दुखा रह ह।'
से म सबक ओर देखता आ अणव
बोला। पोता-पोती दादी को लेकर बैठक म
चले गए।
देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी और भाई-
अ टबर-िदस बर 2022
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12
भाभी ने बारी-बारी आकर मानसी क क धे
थपथपाए िक वह अपने को नह सँभालेगी तो
कसे चलेगा? घर लौटने से पहले सभी ने एक
दूसर से बचे ए भोजन क पैक स ले जाने का
आ ह िकया और िफर पैक स उठाए वे सब
अपने अपने घर लौट गए; खेल ख़ म हो चुका
था।
ज दी ही मानसी का पूरा प रवार बैठक म
उसक इद-िगद इक ा हो गया; सब अवसाद
से भर थे। जादग
ू र क चुटक बजाते ही जैसे
बेहोश को होश आ जाए, कछ ऐसी ही हालत
थी उन सबक ।
'सौरी म मी, पापा क डथ ने मुझे पागल
कर िदया था।' सुिमत और कछ न कह सका।
उसने माँ को सीने से िचपटा िलया, जो
िहचिकयाँ ले लेकर एक बार िफर रोने लग
िक जैसे उनका िदल चूर-चूर हो जाएगा।
'दे िडड नौट नो हाउ ट ए स ैस देयर
ीफ़।' सानवी ने अपना फ़लसफ़ा झाड़ा,
िजससे सब सहमत थे।
'म मी, मेर नाम तो बस आप अपना यार
कर दीिजए। िज़ंदगी भर आपने मुझे कोई कमी
नह होने दी। मने जो कछ भी एचीव िकया ह,
आपक वजह से ही तो िकया।' महक भी माँ
से आ िचपक ।
'महक ठीक कह रही ह। वादा क िजए
िक हमार जीते जी अब आप कभी नह
रोएँगी।' अिमत बोला।
'आप नाहक रो रही ह, आपक तीन-तीन
कमाऊ ब े ह, दो यार- यार पोता-पोती
और ...' सानवी ने कहा।
'और यह लडी कोठी।' दीवार और छत
पर नज़र दौड़ाती ई मानसी बोली।
'नह , हमारी यह यारी- यारी कोठी, जो
हर साल हम पनाह देती ह।' सुिमत ने कहा।
'यह न होती तो हम सालाना पंछी कहाँ
आकर बैठगे?' महक बोली।
कछ ही देर म सबने अपने-अपने िगले-
िशकवे दूर कर िलए थे, एक दूसर से 'सॉरी'
कहते ए सब क सब सुबक रह थे और
मानसी एक बार िफर उ ह ढाढस बध
ँ ाने म
जुटी थी।
000
आवाज़
सुभाष चं लखेड़ा
लघुकथा
दु यंत बाबू आजकल अ व थ चल रह ह - यह ख़बर मुझे एक िम से िमली। इससे
पहले िक म आपको आगे कछ बताऊ, यह बताना उिचत होगा िक दु यंत बाबू स 2007 म
िनदेशक क पद से सेवा-िनवृ ए थे। मुझे भी कछ वष उनक साथ काय करने का मौक़ा
िमला था लेिकन बाद म म िकसी दूसर सं थान म ांसफर हो गया था।
ख़ैर, उनक यहाँ मेरा तीज- यौहार पर आना-जाना होता रहा। हाँ, िपछले सवा दो साल क
कोरोना काल म उनक यहाँ म कभी नह गया। इधर जब से क़ोरोना क सं मण दर म िगरावट
ई ह और सरकारी पाबंिदयाँ हटी ह, म भी लोग से िमलने-जुलने लगा ।
बहरहाल, िम ने जैसे ही मुझे दु यंत बाबू क अ व थ होने क ख़बर बताई, मने तय कर
िलया िक म उनक हालचाल पूछने ज़ र जाऊगा।
कल मौक़ा िमला और म उनसे िमलने चला गया। उनका िनवास थान मेर लैट से
लगभग डढ़ िकलोमीटर दूर यह ारका, िद ी म ह। उनका बेटा िववािहत ह और वह
आजकल अपने प रवार क साथ गु ाम म रहता ह। हाँ, दु यंत बाबू क साथ आजकल उनक
प नी क अलावा उनक तीसर भाई का बेटा रहता ह जो आईएएस क तैयारी कर रहा ह।
उनक यहाँ जाने से पहले मने उ ह फ़ोन कर िदया था। म प चा तो वे दरवाज़ा खोले मेरा
इतज़ार कर रह थे। मने उ ह णाम िकया और िफर उनका इशारा िमलने पर उनक सामने क
सोफ पर बैठ गया।
मने जैसे ही उनसे उनक तबीयत क बार म पूछा, वे बोले, "मामूली बुख़ार या बदन दद
होना इस उ म वाभािवक ह लेिकन मेरी तो आवाज़ ही चली गई ?"
उनसे यह सुनते ही म उ ह अचरज से देखने लगा। अ छी भली आवाज़ ह उनक और वे
कह रह ह िक मेरी आवाज़ चली गई। मेर चेहर पर उपजे सवाल को समझते ए वे गंभीर वर
म बोले, "पवन ! तुमने तो वह व ब देखा ह जब मेरी आवाज़ को सुनते ही घर या बाहर,
सभी जगह लोग भागते ए आते थे। सेवा-िनवृ होने क बाद सब कछ बदल गया और अब
तो ऊची आवाज़ म बोलने पर भी मेरी कोई नह सुनता।"
000
सुभाष चं लखेड़ा
सी-180, िस ाथ कज, से टर-7, लाट नंबर-17, ारका, नई िद ी- 110075
ईमेल- subhash.surendra@gmail.com
अ टबर-िदस बर 2022
foHkkse&Loj
13
हािकम का पाजामा
नीरज नीर
नीरज नीर
आशीवाद, बु िवहार,
पो ऑ अशोक नगर, राँची – 834002,
झारखंड
मोबाइल- 8789263238
ईमेल- neerajcex@gmail.com
कथा-कहानी
वह एक ब त ही गरम सुबह थी। िबजली घर म कोयले क कमी क कारण िबजली क
आपूित कम हो रही थी, इसिलए उस उमस भरी सुबह म िबजली नदारद थी। घर क भीतर से
अकलाया आ, ठडी हवा क िलए म बाहर बरामदे म आकर बैठ गया और या रय म लगे
फल को िनहारने लगा। पौधे क हलाए ए िदख रह थे। उ ह पानी क स त ज़ रत थी। लेिकन
जब तक िबजली न आ जाए, पानी खच करना समझदारी नह थी। िबजली का कोई भरोसा नह
था। जब से कोयले क आपूित कम ई थी, िबजली लंबे समय तक ग़ायब रहती थी। पीने और
खाना बनाने क िलए पानी क यादा ज़ रत थी। यही सोचकर पौध म पानी देना मने मु तवी
कर िदया।
सहसा मने देखा िक फल क या रय क बीच एक सफद चमक ली चीज़ पड़ी ह। म
लपक कर वहाँ गया और उसे उठा लाया। मेर आ य का कोई िठकाना नह रहा। वह एक
रशमी पाजामा था, उसम बेल-बूट जड़ थे। इतना सुंदर पाजामा िकसका होगा और यह मेर
अहाते म कसे आ गया? पाजामा देखने से ब त क मती लग रहा था। मने उसे सहलाया, वह
ब त ही मुलायम था। उतना सुंदर और मुलायम रशमी कपड़ा मने अपनी िज़ंदगी म कभी नह
देखा। वह आ यजनक प से आम कपड़ क तुलना म ठडा भी था। मुझे उसे पहनने क
बड़ी ही ती इ छा ई। म फौरन ही भीतर गया और उसे पहन िलया। मुझे ठडक महसूस ई।
अहा!
अगर ऐसा ही ऊपर का कता भी रहता तो िकतना अ छा होता! थोड़ी देर म इधर-उधर
बरामदे म ही टहलता रहा िफर ऊपर एक पुरानी कमीज़ डालकर घर क बाहर सड़क पर िनकल
आया। उस पाजामे को पहनकर मेरी चाल म एक अजीब सी अकड़ आ गई थी, म ऊट क तरह
गदन ऊची करक चल रहा था। म अपने भीतर एक बदलाव अनुभव करने लगा था। म आ म
िव ास से भरा आ था। राह चलते कछ लोग मेर पाजामे को गौर से देख रह थे। उनका इस
तरह देखना मुझे अ छा लग रहा था। जो लोग मुझे नह देख रह थे, उ ह म बेवकफ़ और
अ टबर-िदस बर 2022
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14
बदमाश समझ रहा था। जब कछ लोग ने मुझे
सलाम भी िकया तो मुझे बड़ा अ छा लगा।
थोड़ी देर बाद जब म घर लौटा तब तक
अख़बार आ गया था। अख़बार वाला रोज़ क
तरह अख़बार को रोल करक बरामदे म फक
कर चला गया था। मेरी चाय पीने क इ छा
ई। लेिकन िफर सोचा पहले अख़बार पढ़
िलया जाए। म वह लगी कस पर बैठकर
अख़बार पढ़ने लगा। मने रोज़ क तरह
अख़बार म सबसे पहले खेल क ख़बर देखी
और िफर सूडोक बनाने लगा। उसक बाद
जब मने मु य समाचार क िलए मु य पृ
देखा तो च क पड़ा।
अख़बार म जो पहले ही प े पर सबसे
मह वपूण ख़बर थी, वह यह िक बड़ हािकम
का पाजामा चोरी हो गया ह एवं बड़ हािकम
क िसपाही उस पाजामे को ढढ़ रह ह और चोर
को पकड़ते ही फास
ँ ी पर लटका िदया जाने
का म आ ह। यह पढ़ते ही मुझे करट सा
लगा। कह यही तो हािकम का पाजामा नह
ह? मने अपने पैर क ओर देखा। पाजामा मेर
पैर म ब फ़ब रहा था। ऐसा लगता था िक
दज़ ने मेरी ही नाप से इसे िसला था। शायद
हािकम का शरीर मेर ही बराबर हो। आिख़र
हािकम भी तो आदमी ही ह। ऐसा मने सोचा।
मने हािकम को कभी नह देखा था। लेिकन
हािकम का पाजामा मने पहना आ ह, यह
सोचकर ही मेर देह म भय से झुरझुरी होने लगी
थी। कह मुझे ही चोर न समझ िलया जाए!
पहले तो म वह पर पाजामा खोलने का य न
करने लगा िफर मुझे एहसास आ िक मने
पाजामा क भीतर कछ नह पहना ह। सड़क
िकनार खुले बरामदे म यूँ नंगा होना उिचत नह
ह, कोई देख ले तो पागल समझेगा, यही
सोचकर म दौड़कर भीतर गया और पाजामा
खोल िदया।
मने पड़ोस क घर म झाँककर देखा,
उनक घर म अभी तक कोई चहल-पहल नह
थी। वे लोग शायद अभी सोकर नह उठ थे।
मेरा पड़ोसी भी अजीब आदमी था। वह शराबी
था और अ सर शराब पीकर देर से घर आता
था। घर आने क बाद देर तक उनक घर म
आपस म लड़ाइयाँ होती थी, इसी िलए वे लोग
देर से ही सोकर उठते थे। मुझे वे लोग ज़रा भी
पसंद नह थे। मने उ ह कई बार समझाया था
िक इस तरह से देर रात झगड़ा करना और देर
से सुबह उठना अ छी बात नह ह, पर उ ह ने
मेरी बात पर कभी यान नह िदया, उ ट उ ह
मेरी बात अ छी नह लगती थी और मुझे
सबक िसखाने क धमक देते थे। एक बार तो
उनक झगड़ और शोर-शराबे से ऊबकर मने
पुिलस भी बुला ली थी। लेिकन पुिलस भी या
करती, आपस म पित -प नी का मामला था।
पुिलस क आने क बाद प नी भी पित क प म
बोलने लगी और उलट मुझ पर ही परशान
करने का आरोप लगा िदया था।
ख़ैर, यह समय उनक बार म सोचने का
नह था। अभी इस पाजामे क बार म सोचने
का समय था, िजसक बार म अब तक मुझे
पूरा यक न हो गया था िक यह पाजामा हािकम
का ही था। पाजामे म लगा रशम, उसक
अ छी िसलाई और उसपर लगे चमक ले
बेल-बूट, इस बात क बराबर तसदीक कर
रह थे िक यह कोई मामूली पाजामा नह था।
मुझे पहले ही समझ जाना चािहए था लेिकन
मने इतनी दूर क बात नह सोची थी। हािकम
का पाजामा भी हािकम क तरह िविश था।
मने इधर-उधर देखा और उस पाजामे को
पड़ोसी क अहाते म फक िदया। िफर िन ंत
होकर म घर क भीतर चला गया। घर क भीतर
जाकर मने चाय बनाई, चाय पी और कमर म
लेटकर टीवी देखने लगा। पाजामे का रशमी
एहसास अभी तक मेर शरीर को सहला रहा
था। साथ ही एक सुकन भी था िक गले पड़ी
मुसीबत से ज दी ही छटकारा िमल गया था।
कछ घ ट क बाद जब िबजली आई तो मने
सोचा िक पौध को पानी दे दूँ। मुझे यह भी
उ सुकता थी िक पड़ोसी ने आिख़रकार उस
पाजामे को देखा या नह और देखा तो या
िकया। म िन ंत था िक चूँिक पड़ोसी क घर
म अख़बार नह आता ह तो उसे इस पाजामे क
पीछ क कहानी पता नह चलेगी।
लेिकन बाहर आकर म यह देखकर
आ य म पड़ गया िक वह पाजामा मेर ही
बरामदे म, मेरी आराम कस पर पड़ा था। यह
मेर िलए बड़ी हरत क बात थी। मेरी आँख
फटी क फटी रह ग । यह कसे आ? मने
पड़ोसी क घर म झाँक कर देखा, वहाँ कोई
नह था, न कोई हलचल थी। वे लोग शायद
अभी तक सो कर नह उठ थे। िफर इस
पाजामे का या जादू ह? यह बार-बार मेर ही
घर म य आ जा रहा ह? म परशान होकर
इधर-उधर टहलने लगा।
तभी मने देखा िक रा ते से दो िसपाही
गुज़र रह ह और सभी घर क भीतर उचक-
उचक कर देख रह ह। वे शायद हािकम क
पाजामे को खोज रह थे। वे मेर घर क सामने
आते, उससे पहले ही पाजामे को उठाकर म
घर क भीतर तेज़ी से भाग गया। अब तो मेरी
टाँगे काँप रही थी। मुझे लगा मने पाजामा नह
ब क कोई जहरीला साँप पकड़ा आ ह। मने
पाजामे को द से दूर फक िदया।
अगर िसपाही घर क भीतर आ गए तो या
होगा? म तो इसे पहनकर सड़क पर घूम भी
आया । कई लोग ने मुझे देखा भी ह। मेरा
िसर चकराने लगा। िबजली िफर से चली गई
थी। घर क भीतर घुटन और उमस महसूस हो
रही थी। इसिलए म ताज़ा हवा लेने क िलए
घर से बाहर बरामदे म आ गया। बाहर आकर
मने देखा मेरा पड़ोसी अपने आँगन म पौध
क छटाई कर रहा ह। मेर आने क आहट होते
ही, ककर उसने कमर सीधी क , मेरी ओर
गौर से देखा और धीमे से मु करा िदया। मुझे
उसक मु कान अजीब लगी।
ओह! तो या उसे मालूम हो गया था िक
यह हािकम का पाजामा ह और उसे मने उसक
आँगन म रखा था? या पता, हो सकता ह उस
समय वह जगा आ हो और कह से मुझे देख
रहा हो। हो सकता ह उसने कल रात शराब
नह पी और सबेर ज दी उठ गया हो। म ही तो
उसे सबेर ज दी उठने क िलए कहता था। हो
सकता ह, उसे पहले से ही मालूम हो िक
हािकम का पायजामा चोरी गया ह।
कस पर रखे अख़बार पर िफर से मेरी
नज़र पड़ी। पाजामा चुराने वाले क िलए मोट
अ र म फास
ँ ी क बात िलखी ई थी।
हािकम क िलए फास
ँ ी आम बात थी। वह
िजसे चाह फास
ँ ी दे सकता था। मुझे अपने गले
पर दबाव सा महसूस होने लगा। फास
ँ ी क
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  • 1.
  • 2.
  • 3. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 1 संर क एवं मुख संपादक सुधा ओम ढ गरा संपादक पंकज सुबीर क़ानूनी सलाहकार शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट) तकनीक सहयोग पा ल िसंह, सनी गो वामी िडज़ायिनंग सुनील सूयवंशी, िशवम गो वामी संपादक य एवं यव थापक य कायालय पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7 स ाट कॉ लै स बेसमट बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001 दूरभाष : +91-7562405545 मोबाइल : +91-9806162184 ईमेल : vibhomswar@gmail.com ऑनलाइन 'िवभोम- वर' http://www.vibhom.com/vibhomswar.html फसबुक पर 'िवभोम वर’ https://www.facebook.com/vibhomswar एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5) सद यता शु क 3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष) 11000 पये (आजीवन सद यता) बक खाते का िववरण- Name: Vibhom Swar Bank Name: Bank Of Baroda, Branch: Sehore (M.P.) Account Number: 30010200000312 IFSC Code: BARB0SEHORE संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यवसाियक। पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा। Dhingra Family Foundation 101 Guymon Court, Morrisville NC-27560, USA Ph. +1-919-801-0672 Email: sudhadrishti@gmail.com वै क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का वष : 7, अंक : 27, ैमािसक : अ टबर-िदस बर 2022 RNI NUMBER : MPHIN/2016/70609 ISSN NUMBER : 2455-9814 आवरण िच पंकज सुबीर बािलका शी जो जहाज़ महल मा डव क बाहर छोटी सी दुकान लगाती ह।
  • 4. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 2 संपादक य 3 िम नामा 5 कथा कहानी लडी कोठी िद या माथुर 8 हािकम का पाजामा नीरज नीर 13 िनणय सही था अचना िम 16 बूढ़ा हो गया आ पौधा सतीश सरदाना 22 सुख िवदाई का शेफािलका िस हा 27 अगोचर ह र काश राठी 30 तुम आओगे न स दीप तोमर 33 मजबूर डॉ. चु मन साद ीवा तव 38 भाषांतर दूसरा हादसा उदू कहानी मूल लेखक : ता रक छतारी अनुवादकः पंकज पराशर 43 अजनबी मलयालम कहानी मूल कथाकार: अ हाम मै यू अनुवादक : डॉ.षीना ई पन 46 लिलत िनबंध राम कौन? डॉ. वंदना मुकश 49 शहर क ह नीलांजल मॉरीशस चौधरी मदन मोहन "समर" 53 यं य गूगल बाबा क जय डॉ. दलजीत कौर 58 प नी और धमप नी ललन चतुवदी 60 लघुकथा आवाज़ सुभाष चं लखेड़ा 12 ािलटी टाइम डॉ. मधु संधु 21 राख से पहले यो सना िसंह 61 िविश किव वसंत सकरगाए 62 किवताएँ 'मीनू' मीना िस हा 64 रखा भािटया 65 हम त शमा 66 लाल देवे कमार ीवा तव 67 ितभा चौहान 68 गीत कलाश मनहर 69 ग़ज़ल डॉ. आरती कमारी 70 जय च वत 71 आिख़री प ा 72 िवभोम- वर सद यता प यिद आप िवभोम- वर क सद यता लेना चाहते ह, तो सद यता शु क इस कार ह : 3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष) 11000 पये (आजीवन सद यता)। सद यता शु क आप चैक / ा ट ारा िवभोम वर (VIBHOM SWAR) क नाम से भेज सकते ह। आप सद यता शु क को िवभोम- वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरण- Name of Account : Vibhom Swar, Account Number : 30010200000312, Type : Current Account, Bank : Bank Of Baroda, Branch : Sehore (M.P.), IFSC Code : BARB0SEHORE (Fifth Character is “Zero”) (िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा कर टर अं ेज़ी का अ र 'ओ' नह ह ब क अंक 'ज़ीरो' ह।) सद यता शु क क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पि का भेजी जा सकः 1- नाम, 2- डाक का पता, 3- सद यता शु क, 4- चैक/ ा ट नंबर, 5- ांज़े शन कोड (यिद ऑनलाइन ां फ़र ह), 6-िदनांक (यिद सद यता शु क बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।) संपादक य एवं यव थापक य कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com इस अंक म वष : 7, अंक : 27, अ टबर-िदस बर 2022
  • 5. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 3 सुधा ओम ढ गरा 101, गाईमन कोट, मो र वल नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए. मोबाइल- +1-919-801-0672 ईमेल- sudhadrishti@gmail.com संपादक य दोहरी मानिसकता मनु य को किठत कर जाती ह, इसका एहसास भी उसे नह होता। प सोच ब त कम लोग क होती ह और दूरदश भी वे ही बन पाते ह। स 2009 म मने फ़सबुक और टर का योग शु िकया था। उन िदन लेखक का एक गुट फ़सबुक पर अमे रका क िख़लाफ़ िलख रहा था और यहाँ रह रह भारतीय यानी वासी भारतीय को भी अपनी पो स म नीचा िदखा रह थे। तक़रीबन सभी वासी भारतीय ने, जो फ़सबुक पर थे, उनक िलखे को नज़रअंदाज़ िकया। समझ गए थे िक किठत मन और िबना जानकारी क वे िलखी ग बात थ । कछ भी समझाने का अथ िववाद शु करवाना था। वासी भारतीय भारत से ही तो आए ए ह, और इस मानिसकता को भी अ छी तरह से समझते ह, िक रल क सामा य िड बे म बैठा या ी अमे रका क ेिज़डट जो बाइडन को देश को कसे चलाना चािहए, क सीख देने से नह चूकता और वयं क वोट को छोट-मोट लालच म ग़लत नेता को दे देता ह। दूसर को िश ा देनी तो ज मिस अिधकार समझा जाता ह। गत िदन अमे रका क अलग-अलग शहर से आभासी दुिनया क कई लेखक िम क फ़ोन कॉ स आए, जो अमे रका अपने ब से िमलने आए ए ह। उनम वे लेखक भी थे; िज ह ने कभी अमे रका और यहाँ रह रह भारतीय क िख़लाफ़ िलखा था। उ ह लेखक ने जब अमे रका क तारीफ़ क पुल बाँधने शु िकये और बड़ गव से कहा िक अब यह सैटल ह गे तो यूक क एक लेखक क कही बात याद आ गई। ऐसे लोग दोहरी मानिसकता वाले, दोहर मापदंड क होते ह, कहते कछ ह और करते कछ ह। दूसर क िलए अमे रका क बुराइयाँ बताई जाती ह, अपने ब को अमे रका म थािपत करने क कोिशश क जाती ह, तब यह बेहतरीन देश हो जाता ह। समाज और जनजीवन म यह मानिसकता ब त गहर घर कर चुक ह। राजनीित म दोहरी मानिसकता हर देश म पाई जाती ह, स ा पाट क आलोचना तो िवरोधी पाट करती ही ह, बेशक िलंग पाट देश और जनता क िहत क िलए काय कर रही हो। अपनी स ा क समय िवरोधी पाट ने चाह िकतनी ही ग़लितयाँ य न क ह , उ ह भुला िदया जाता ह। खैर पूर िव म राजनीित एक धंधा बन चुक ह। अंतर इतना ह अमे रका म दो पािटय क तनातनी म देश का अिहत नह होने िदया जाता और आमजन का पूरा यान रखा जाता ह... दोहरी मानिसकता रा और समाज क िलए अिहतकर ह
  • 6. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 4 संपादक य िजस कार आकाश पर इ धनुष िखंचता ह उसी कार मन क आकाश पर भी इ धनुष सात रग को समेट ए िखलता ह। मगर उसक िलए मन म संघष क धूप तथा आनंद क बरसात दोन का होना ब त ज़ री ह। िकसी भी एक क अनुप थित म सात रग भी अनुप थत हो जाते ह। इस दोहरी मानिसकता क चलते कई मु े तक अ प रह जाते ह। उदाहरण ी िवमश। इस पर चचा ब त होती ह, िलखा भी ब त जाता ह, पर प रभाषा, व प, िदशा कछ भी गोचर नह । िवदेश क ी िवमश से भािवत होकर ब त कछ कहा और रचा गया, जो देश क य पर लागू ही नह होता। ी िवमश क अवधारणा देश, हालत, प र थितय क अनुसार संगिठत होनी चािहए। पर इसक ओर यान देने का िकसी क पास समय नह । िह दी भाषा भी इस दोहर यवहार क ही िशकार हो रही ह। कोरोना ने वचुअल गो य क भरमार ला दी। वह समय क ज़ रत थी। बड़-बड़ िवषय पर िव ान ने चचाएँ क , प रचचाएँ , कई भाषा िवशेष ने व य िदए पर इससे िह दी भाषा को या लाभ आ ? िकसी ने यह नह सोचा क भाषा क चार- सार और युवा पीढ़ी म इसे लोकि य बनाने क िलए ज़मीनी तर पर काम करना होता ह। एक पूरी पीढ़ी िह दी से िवमुख हो चुक ह। सेिमनार, कांफिसज़ होनी चािहए पर साथ ही साथ अ य िबंदु पर भी यान देना चािहए। िजन अं ेज़ी कल म च को िह दी से अिधक मह व िदया जाता ह, वहाँ िह दी को भी उसी तर पर रखने क िलए काय करना चािहए। अपनी भाषा का स मान ब देखगे तो उसक ओर आकिषत भी ह गे। जब ब क सामने ही िह दी को दोयम दज पर रखा जाएगा तो वे उस भाषा को य सीखगे ? पहले समाज और माँ-बाप को इस बात क मह व को समझना ज़ री ह िक चाह अं ेज़ी रोटी-रोज़ी क भाषा ह, पर िह दी को भी कमतर नह मानना चािहए, तभी सही अथ म िह दी का िवकास होगा। ऐसे म िह दी िदवस क भी आव यकता नह होगी। समाज और य क दोहर मापदंड अिव सनीयता और उलझन का ऐसा वातावरण िनिमत कर देते ह; िजससे प ता कभी नह आती, अगली पीिढ़याँ भी न क उ र तलाशती अ प ही रहती ह, चाह धम हो या दशन, जीवन मू य हो या फलसफा अप रभािषत ही रह जाते ह। आज देश म जो असंतोष और अशांित का माहौल ह, सामािजक, आिथक, राजनीितक और अ य अनेक कारण क साथ-साथ दोहरी मानिसकता और दोहर मापदंड भी कारक ह। समय रहते सचेत होना अिनवाय ह। उ सव का माहौल सज रहा ह। दशहरा, दीपावली, थ सिगिवंग और नववष क िवभोम- वर और िशवना सािह यक टीम क ओर से आप सबको ब बधाई और ढर सारी मंगलकामनाएँ !!! आपक , सुधा ओम ढ गरा
  • 7. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 5 जुलाई-िसत बर 2022 अंक म छपी हसा दीप क कहानी 'टक-टक कलेजा' पर खंडवा म सािह य संवाद तथा वीणा संवाद ने चचा क । इस चचा क संयोजक ी गोिव द शमा तथा सम वयक ी शैले शरण थे। यह मािमक, संवेदनशील कहानी आधुिनक करण क इस दौर म र त क बीच अब अजनबीपन बढ़ता ही जा रहा ह। वाथ और संवेदनहीनता र त पर भारी पड़ रही ह। सहज मानवीय संबंध क ऊ णता तेज़ी से उदासीनता म बदलती जा रही ह। आपाधापी क इस माहौल म िनजता क चाह और परायापन आज क जीवन क अिनवायता सी बनती जा रही ह। जीवन क यह अिनवायता आज पा रवा रक और सामािजक जीवन म हर जगह घुलती जा रही ह। धीर-धीर संवेदन शू यता और जड़ता बढ़ रही ह जो 'टक-टक कलेजा' कहानी म सहज ही प रलि त हो रही ह। गभ म रखने से लेकर खून से स च भिव य बनाने वाली माँ हो या िपता आज क दौर म अपनी वाथिस ी क िलए सब र ते हािशए पर ह। कहानी पढ़ मेरा भी कलेजा टक-टक हो गया। मािमक, संवेदनशील कहानी क िलए ब त-ब त बधाई! -उपमा शमा 000 टक-टक कलेजा हसा दीप क छोटी सी कहानी 'टक-टक कलेजा' मानवीय संवेदना से सराबोर कहानी ह। एक घर क तीका मक मा यम से दो पीिढ़य क अंतराल को रखांिकत करती ह। आज क आपसी र त क पड़ताल पूण तट थता क साथ करते ए कट स य को उजागर िकया ह। माँ और बेट क कोमल, संवेदनशील र त क ारा आज जीवन म आए बदलाव, र त क खोखलेपन को प िकया ह। -मनोहर िसंह राठौड़ 000 दय पश कहानी कहानी 'टक-टक कलेजा' दय पश कहानी ह जो हम िसखाती ह, क इसान व मकान दोन एक समान ही होता ह जैसे ब े क बालव था से बुढ़ापे तक का सफ़र, वैसे ही मकान क न व डलने से जजर तक का सफ़र एक समान ही होता ह, कहानी क नाियका ारा अपने घर का ब त सु दर िच ण िकया गया ह ट-प थर क मकान को वह घर म त दील करती ह, मकान चाह िकराये का हो या वयं का हम अपनी देख- रख से उसे घर बनाते ह, गृह वेश क बाद साफ सफाई से लेकर, उसक एक-एक दीवार को सजाना, घर क कोने-कोने से हम यार होता ह। नाियका भी 12 वष एक छोट से घर म रहती ह, जहाँ का कण-कण उसक दय म बसा ह, अपने ब को सुिवधा देने क िलए वह बड़ मकान म आती ह, िजसे वह बड़ यार व देखभाल से उसक साज-स ा करती ह। पर समयानुसार ब े अपनी सुिवधा को देखते ए,और बड़ा घर देखते ह और माँ को छोड़ कर अपने-अपने घर बनाने लगते ह, तब नाियका बड़ भावुक हो कर कहती ह -मने िजनक िलए उस यार से घर को छोड़ा, वे आज मुझे यहाँ छोड़ गए। बड़ा भावुक पल ह पर समयानुसार बदलाव भी िन त ह। -उमा चौर, इदौर 000 शीषक को साथक करती कहानी कहानी 'टक-टक कलेजा' अपने नाम को, शीषक को साथक करती ई तीत होती ह। घर को इसान क भावनाएँ य करते बताना, उसका मानवीकरण अ छा बन पड़ा ह। लेखक ने आज क समाज क बड़ी सम या ब को माता-िपता क िचंता न होना, अपनी दुिनया म ही रहना, पालक का एकाक पन बड़ी बी से दशाया ह। पाठक एक बार म िबना क पढ़ जाता ह। सच म नाियका का ब क परव रश जैसे घर क देखभाल करना, छोट घर को छोड़ बड़ घर म जाना िफर उसे सजाना उसक कला मक िच को भी दशा रह ह, और माँ अपने ब क परव रश एक कलाकार क तरह करती ह, कह कोई कमी नह छोड़ती, पर ब े....? -सं या पार साक े 000 वाह से भरी भाषा कहानी 'टक-टक कलेजा' गृह थी को सव प र समझने वाली और अंततः अकली रह जाने वाली नाियका पर कि त ह। कहानी क भाषा वाह से भरी और कसाव िलए ए ह। कहानी क ारभ से, जीवन क अंितम पड़ाव पर वयं का आ मावलोकन करती नाियका, अपनी तुलना पीछ छट गए पुराने घर से करती ह। जीवन म नए पड़ाव क आने पर पुराना पीछ छट जाता ह यह एक सविविदत त य ह िकतु एक समय म क म रहता इसान जब हािशये पर धकल िदया जाता ह, तो ब धा िवगत मृितय क धुँधलक म िवचरण करने पर िववश हो जाता ह, और तब अवचेतन मन म दबी कई बात उभर कर आती ह। ब क सुिवधा क िलए छोट घर को छोड़ने का अपराधबोध भी नाियका क मन म दबी ई एक ऐसी ही अवचेतन म दज ई दुिवधा ह जो सु िचपूण ढग से सजाए गए घर का सा य नाियका वयं से अनुभूत करती ह। -ग रमा चवर, रतलाम 000 मानवीय ेम पर आधा रत कहानी कहानी 'टक-टक कलेजा' मानवीय ेम पर आधा रत कहानी ह। ेम, मोह, लगाव, अपन व कवल सजीव ािणय से ही नह होता अिपतु मनु य क जीवन म शािमल सभी सजीव, िनज व व तु से हो जाता ह। बारह साल तक उस घर म रहने क बाद उसे छोड़ते समय नाियका को घर म िबताए सभी पल चलिच क तरह याद आते ह। ब क बड़ होने पर घर छोटा लगता ह पर उस िनज व घर का िबछोह नाियका क मन को िवत कर देता ह। कहानी पढ़कर मुझे 25 बरस पहले क मेरी कॉलोनी क घटना याद आती ह जब एक ग़रीब आदमी को क़ज़ भरने क िलए अपना घर चालीस हज़ार म बेचना पड़ा था और उसी कॉलोनी म िकराए से रहना पड़ा, पर जब-जब वह आदमी अपने घर क सामने से गुज़रता था घर को णाम करक कछ बड़बड़ाता आ िम नामा
  • 8. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 6 िनकल जाता था। पता नह या बोलता था पर हम लोग इतना तो समझ सकते ह िक उसक दय म िकतनी वेदना रही होगी उस समय। कहानी म आगे बताया गया नए घर म माँ को छोड़कर ब े अपने-अपने नए घर म चले गए, मुझे लगता ह यहाँ लेिखका को थोड़ा िव तार देना था। ख़र ै जब द क ब े नाियका को छोड़कर चले गए तब उ ह अहसास आ िक वह भी उस िनज व मकान क तरह हो गई, जो समय क साथ ख ताहाल हो गया ह, कमज़ोर हो गया ह िकसी को अब उसक ज़ रत नह ह। कहानी अ छी ह कहानीकार हसा दीप को बधाई। -सौरभ लाड़, इदौर 000 िदल को छ लेने वाली कहानी 'टक-टक कलेजा' कहानी िजस मकान म कहानी क नाियका रहती ह, उस छोट मकान को छोड़ने से मन म उपजे न और बेचैिनय को उ ह ने ब त ही सू मता से िचि त िकया ह। ट, सीमट, गारा, िम ी से बना मकान तो मकान होता ह, िक तु उसम रहने वाल क सु िचयाँ उस मकान को घर बना देती ह। िजस मकान म दशक रहने से उसक हर ट, दीवार, छत, फश, रग जो आपक िचय और भावना का रग ही होता ह। वह थान जहाँ मकान थत ह, उसका घर हो जाना, यह सब आपक य व म समािहत हो जाता ह। मनु य का मन ही ऐसा ह िक वष का साथ बेजान सी लगने वाली चीज़ से भी उसक ित आ मीयता और लगाव म त दील हो जाता ह। इसी भावभूिम पर उ ह ने संवेदना क तर पर िदल को छ लेने वाली कहानी रची ह। िव णु खर क भी िद ी म बने बड़ अहात वाले घर को लेकर एक उ दा किवता ह, िजसम किव क नाकलता ह िक इन घर म रहने वाल को आवाज़ देकर, पुकारा कसे जाए। कहा भी जाता ह िक घर छोटा होता ह िक तु उसम रहने वाल क िदल बड़ होते ह। हम अपने पुराने बने पैतृक मकान से इसीिलए लगाव हो जाता ह। कहानी म एक वा य आता ह िक नई तकनीक से बने घर म घर बोलते ह, इसान नह । भौितक सुख सुिवध से लैस मकान, अ याधुिनक जीवन शैली म जीवन जीते ब को पसंद आते ह। उ ह पुराने घर म रचा-बसा भावना का वह संसार जो िदन-रात आपसे बितयाता ह, रास नह आता। इ ह ज़ रत क चलते नाियका जब पुराना घर बदल कर सामान सिहत नए घर म रहने लगती ह। उस पुराने घर को छोड़ते समय वह घर मूक दशक क तरह उसे देखता रहता ह, उसक पुरानी दीवार से झड़ते ला टर क परत से वह आहत हो जाती ह, उसे लगता ह, वह वयं एक पुराने घर क तरह ह। यह भाव उसक कलेजे को छ जाता ह। कहानी संवेदना क तर पर दय को छ जाती ह, भाषा वाहमयी ह। -अ ण सातले 000 पाठक पर कहानी भाव छोड़ती ह कहानी अ य त संवद े नशील और भावुक करने वाली ह। ेम िसफ़ सजीव से ही नह अिपतु िनज व व तु से भी होता ह। अपनी माटी, अपने ज म थान, अपनी व तु और अपने घर से ेम हो जाना मानवीय वभाव होता ह, उस पर यिद य , संवद े नशील सािह यकार ह तो इस ेम क कोई सीमा नह होती। तुत कहानी म मु य पा को अपना पुराना घर छोड़ना पड़ता ह। अपने िलये नह , अपने ब क िलये। िजस घर म वो बारह वष रही िजसे उसने अपने प र म और याग से मकान से घर बनाया, सजाया, सँवारा, उसी घर को छोड़ना पड़ा था, अपने ब क िलये। िजस व तु से भावना मक जुड़ाव हो गया हो उसे छोड़ना िकतना क दाई होता ह, इसे हर संवेदनशील य समझ सकता ह। "पुरानी तकनीक, आउट डटट" -इस वा य क साथ कहानी पाठक को भावुक कर देती ह। जब पा पुराने घर से अपनी तुलना करते ए, अपने आप को पुराने घर क तरह य य मान लेती ह। ब े उसे छोड़कर जा रह ह। ठीक उसी तरह िजस तरह से उ ह ने पुराने घर को छोड़ा था। ब े जा रह ह, अपनी माँ को छोड़कर। बग़ैर माँ क ओर एक बार देखे। बग़ैर हाथ िहलाये। कहानी ब त छोटी ह िक तु पाठक पर बड़ा भाव छोड़ती ह। वाहमयी कहानी लेखन हतु लेिखका को बधाई। -वैभव कोठारी 000 अ यंत रोचक कहानी 'टक-टक कलेजा' कहानी एक अछते िवषय पर िलखी अ ुत कहानी ह। िनज व ट प थर क बने मकान भी सजीव हो जाते ह, जब उनसे गहरा अपन व जुड़ जाता ह और यह ायः हर मिहला क साथ होता ह। य िक वह उस मकान को सजाने, सव ँ ारने और खुशहाल बनाने म अपना िवशेष योगदान देती ह। िक तु वह मिहला भी साधारण मानव होने क साथ एक माँ भी ह, िजस मकान से अपन व जोड़कर बात करती थी। उसी मकान को ब क कारण छोड़ना पड़ा। नए और बड़ मकान म नए िसर से सजाने सव ँ ारने म पुराने मकान को भूल जाती ह। यह एक सामा य मानवीय गुण ह। एक अंतराल क बाद िफर वही समय आता ह, जब ब को यह नया घर भी पुराना और छोटा लगने लगता ह और वे अपने नए आिशयाने म चले जाते ह। नाियका अपने टक-टक होते कलेजे को लेकर दरवाज़े पर खड़ी उ ह जाते देखती रहती ह। अब नाियका को पुराना मकान याद आता ह, उससे जुड़ा अपनापन, मम व याद आता ह, यहाँ नाियका क मनोभाव क साथ पूरा याय करते ए हसा दीप ने ब त सही िच ण कर िदया ह। उसक यथा को श द दे िदए ह और कहानी मािमक हो गई। दुखांत होते ए भी कहानी मन को छ लेती ह, सवथा नवीन िवषय पर आधा रत इस कहानी म नाियका क अलावा कोई पा य प से नह आता। नाियका को भी कोई सं ा नह दी गई ह, िफर भी कहानी अ यंत रोचक, भावपूण, मािमक ह। -शिश शमा, इदौर 000 मकान बोलता ह कहानीकार हसा दीप इस कहानी क मा यम से पाठक वग क दय म थान पाने म सफल ई ह। िन त ही िजस पुराने मकान
  • 9. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 7 म हमार कई साल यतीत ए ह ,उसक एक एक ट से हमारा जीवंत स पक हो जाता ह। कहानीकार ने कथन क मा यम से पुराने मकान क ित अथाह ेम य िकया ह। कहानीकार को यह अहसास भी आ ह िक मकान बोलता ह। नए मकान म जाते समय पुराने मकान को अलिवदा कहना भी मालिकन भूल गई, िजसे ब बी कथन क मा यम से बताया ह। कहानीकार क सफलता ह िक कहानी पढ़ने वाला यह समझता ह िक यह मुझ पर ही िलखी गई ह। ब का बगैर हाथ िहलाए क म सामान भर क चल देने ही पूरी कहानी को ज म िदया ह। यह सच भी ह िक नई तकनीक म घर बोलते ह इसान नही। -सुनील चौर "उपम यु", ख डवा 000 िम ी से जुड़ाव क कहानी यह कहानी अपनी िम ी से जुड़ाव क कहानी ह। जब कोई य अपने मन का रशा-रशा जोड़कर घर बनाता ह। उसे उस घर से अपन क तरह ही ेम हो जाता ह। इस मोह म िलपटा वह उसम जीवंतता क अनुभूित करता ह। कहानी क नाियका भी अपने घर से एक जीवंत जुड़ाव महसूस करती ह। लेिकन ब क बड़ होने क साथ ही उ ह वह घर छोटा और पुराना लगने लगता ह। िजसम वे पले, पढ़ और बड़ ए। अंततः नया बड़ा मकान ले िलया जाता ह। कहानी क नाियका भी जड़ को छोड़, जाने को तैयार हो जाती ह। जाते समय घर अपना ला टर का टकड़ा िगरा कर िबछड़ने क दुःख का इज़हार करते ए उसे रोकने का असफल यास करता ह। लेिकन वह समझ नह पाती। अब नए मकान क अकलेपन म उसे वह सब याद आता ह िक कसे उसने अपने हाथ से घर को सव ँ ारा था। लेिकन िनयित, प र थित और ब का वाथ उसे अपने घर से दूर कर मकान म ला पटकता ह। जहाँ अकलेपन से िनर तर लड़ने क अित र और कछ नह बचा था। भले ही मकान ब त बड़ा था लेिकन वह घर नह था। कहानी भावना मक और आकषक िश प म गूँथी गई ह। लेिकन कहानी थोड़ा सा और िव तार माँगती ह और कहानी का अंत यादा प ता क माँग करता ह। शेष सु दर कहानी ह। - याम सुंदर ितवारी, ख डवा 000 िनज व सामान म जान डाल दी घर चाह बड़ा हो या छोटा घर िसफ घर होता ह। लड़क जब घर म ब क प म वेश करती ह तो सपन से सजा संसार सबसे यारा होता ह। कहानी क शु आत भी इसी भावना से ई ह। छोटा सा आिशयाना िजसम आ मा का वास होता ह उससे िवलग होने का दद सभी को नह होता। जो सहजता ह सँवारता ह जो समय नह िबताता वण जीवन जीता ह र त को पालता पो ता ह। उस थान क क मत िसफ और िसफ अनुभूितय से होती ह। लेिखका ने ट, दीवार, छत, दरवाज़े और रखे ए िनज व सामान म जान डाल दी। जीवंत र त क कहािनयाँ तो ब त गढ़ी ग और पढ़ी ग ह। लेिकन घर म एकि त िकया गया सामान कभी बेवफ़ा नह हो सकता। आप उ ह समय दो, वह आपको स मान देते ह। प रवार क िलए, व त क आव यकता अनुसार थान प रवतन मजबूरी बन जाना, लेिकन कित से दूर होने क पीड़ा को हसा दीप ने द िजया ही होगा, िजसे कहानी क मा यम से हम तक सं ेिषत करने रचना मकता शंशनीय ह। ब त ही सुंदर तरीक से एक िवचार, एक अनुभव, एक प रवतन को भीतर तक गहर महसूस करना। वाकई एक अ छा उदाहरण ह। अिधक फलाव ना करते ए आ मकि त प रवतन को टक-टक होते ए कलेजे का िवशेषण देते ए अपने जुड़ाव को अिभ य करना अ छ लेखन क ेणी म ह। ब का िनमूल यवहार और जैसे ेम का या लगाव ना होना, अचानक चले जाना। लेिखका का अकले रह जाना, जैसे खाली मकान जो खड़ा तो ह लेिकन िनज व सीमट क पपड़ी का िगर कर आिलंगन दन े ा जैसे पल सामा य न हो कर िविश ता क ण बन गए ह। िकतु जाते समय िवमुख होकर िनकल जाने जैसे यवहार से आहत हो जाना अितसंवेदनशीलता का उदाहरण ह। -डॉ. र म दुधे 000 भावना धान शैली सरसरी तौर पर ही म इस कहानी को पढ़ने को उ सुक था लेिकन कछ पं याँ पढ़कर मेरी उ सुकता बढ़ती गई और म बध ँ सा गया। िकसी कहानी क िच म थािपत हो जाना ही कहानीकार का मु य उ े य होता ह और िफर वही पाठक क मानस पटल पर अंिकत हो जाता ह। हसा दीप क कहानी 'टक-टक कलेजा' मानस पटल पर अंिकत िच सा द तावेज़ ह। लगाव, मोह अपनेपन का भाव मानव को िमली असाधारण भट ह जो न कवल मानव को ब क सजीवता क प रभाषा िलए हर ाणी म होती ह। 'टक-टक कलेजा' भी भावना क समंदर क गहराई म िछपे सीप सी ह। भावना धान शैली म िलखी गई कहानी संवद े ना को उकरने क कहानी ह। -स तोष चौर 'चुभन' 000 िवचार क सघनता हसा दीप क इस कहानी 'टक-टक कलेजा' को पढ़कर लगता ह- लेखन संवेदना क माँग करता ह। यह संवेदना िवचार क गहराई हो। आलंबन या िवषय से इतना भावना मक लगाव हो िक वह सहजता से पाठक को क णा तक ले आए। िश प, क य, कथानक आपस म इस तरह जुड़ जाएँ िक आप िवषय से हट न पाएँ। इस कहानी को पढ़ते ए ऐसा भी लगा िक िवषय ब त सामा य भी हो सकता ह, साधारण भी, छोटा भी हो सकता ह, िबना जीिवत च र क भी। वह वृ भी हो सकता ह और घर भी। यानी मानव क साथ िश त से जुड़ी कोई भी चीज़ कहानी रच सकने क िलए काफ ह। शेष लेखक क मता, उसका अ ययन, भावना मकता और िवचार क सघनता रचना को रचना बना देती ह। कहानी क त व तो अ यंत ज़ री ह ही। -शैले शरण 000
  • 10. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 8 िद या माथुर 83 ए, डीकन रोड, लंदन एन ड लू-2 5 एन एन, यू.क. ईमेल- vatayanpoetry@gmail.com कथा-कहानी ‘चोर भी दो घर छोड़कर डाका डालता ह, म मी। ' बड़ बेट सुिमत क बात सुनकर मानसी का िदल दहल गया; अपने ही छोट भाई क िलए यह या कह गया सुिमत? उसक पित अिभनव क मृ यु को अभी एक ह ता ही तो आ था; ब े और संबंधी तो या, उसे लगा िक ह ते भर म जैसे सारी दुिनया ही बदल गई थी। 'यह आप या कह रह ह?' सास क िदल पर लगी ठस को महसूस करते ए बड़ी ब सानवी क नभरी पित क ओर उठी। 'तू ये अ छ-अ छ मुहावर कहाँ से सीख आया, सुिमत?' से म मानसी ने पूछा तो सुिमत ने नज़र चुरा ली, मन ही मन वह भी पछता रहा था िक कम से कम माँ क सामने उसे ऐसा नह कहना चािहए था। 'म मी जी, आप इनक बात को िदल से न लगाइए। ये इनक नह , चाची जी क श द ह। चाचा-चाची क बात म आकर कह हम आपस क यार-मुह बत ही न खो बैठ, सुिमत।' सानवी क बात खरी थी िकतु सुिमत िफर िचढ़ गया। 'चाचा-चाची ठीक ही तो कहते ह, अिमत और आ िष को म मी ने हद से यादा िसर पर चढ़ा रखा ह।' ितरछी नज़र से देखती ई सानवी जैसे पित को बताना चाह रही थी िक कम से कम उसे समय और थान देखकर बात करनी चािहए। 'अजीब बात ह; अिमत और आ िष कहते ह िक म तुम दोन को यादा चाहती ।' मानसी एक ठडी साँस लेती ई बेट-ब क पास से उठ गई। अपने को िकतना भा यशाली समझती आई थी मानसी िक उसका प रवार एक सुखी प रवार था; िकसी क घर म कोई कमी नह थी, िकसी म लड़ाई-झगड़ा नह , कोई तेरी-मेरी नह । सुिमत और सानवी यूयॉक म रहते थे और बेटी महक और उसका पित डिनयल ऑ िलया म। साल म एक ही बार तो आना होता था उनका िकतु जब भी आते, तोहफ़ से लदे-फ़दे। बस एक ही कमी रह गई थी; सुिमत और सानवी क अपनी कोई औलाद नह थी िकतु वे अिमत- आ िष क ब अणव और अन या पर जान िछड़कते थे। मानसी को समझ नह आ रहा था िक अिभनव क मरते ही घर ऐसे कसे िबखरने लगा। या अिभनव क पास कोई जादू था या िफर उनक डर से कोई बोलता नह था। बेट ने तो अिभनव क तेरहव का भी इतज़ार नह िकया और लड़ने लगे। सुिमत िद ी प चा तो तैश म था। वह चाचा-चाची क कह म आकर तो अिमत ताऊ-ताई क बहकावे म आकर अपने ही घर क शांित न करने पर तुले थे। ससुराल वाल को तो जैसे मौका ही िमल गया था मानसी क घर म ह त ेप करने का और उ ह ने घर को क े का मैदान बनाने म कोई कसर नह छोड़ी थी। या मानसी क ही आँख ब द थ जो वह देख नह पाई िक उसक बेट-ब को प ी पढ़ाई जा रही थी? वह जानती थी िक अिमत-आ िष ताऊ-ताई क साथ ब त िहल-िमल गए थे िकतु लडी कोठी िद या माथुर
  • 11. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 9 उसने इसे अ यथा नह िलया था। अभी हाल ही म तो चाचा-चाची पूरा एक महीना अमे रका म सुिमत और सानवी क साथ रहकर लौट थे; उनक पाँव ज़मीन पर नह पड़ रह थे। सुिमत-सानवी क महल जैसे घर और उसम सजे आधुिनक उपकरण क बार म जब वे अिमत-आ िष को बढ़ा-चढ़ा कर बताते तो उ ह लगता िक वे यहाँ कवल झक मार रह थे। जानते ए भी िक देवर- देवरानी उसक प रवार म मन-मुटाव पैदा करने का य न कर रह थे, मानसी ने उनसे कभी यह भी जानने का य न नह िकया िक वे अमे रका म सुिमत को या पाठ पढ़ा कर आए थे; य िक वह जानती थी िक सानवी चाचा-चाची क बात म आने वाल म से नह थी। िकतु यहाँ तो उसका अपना बेटा ही बहक गया था। अिभनव क होते ए उसने कभी िकसी क परवाह ही नह क थी और न ही कभी िकसी क िह मत ई िक कोई चूँ भी कर जाए। 'शांित-पाठ क िलए म दर बुक कर िदया था न तूने अिमत?' मानसी ने तय िकया िक वह तेरहव क स प हो जाने तक अपने ऊपर अंकश रखेगी। 'हाँ म मी, पंिडत जी कह रह थे िक हम तीन बजे तक हॉल ख़ाली कर देना होगा।' अिमत ने ख़े वर म जवाब िदया। 'आ िष, सुबह तुम िबज़ी थ , हलवाई आया था। ज़रा उसे फ़ोन पर मे यू बता देना।' मानसी ने कहा। 'मने उसे दोपहर को ही फ़ोन पर बता िदया था।' आ िष भी मुँह सुजाए बोली। 'कर-धर सब हम और भै या-भाभी चले आते ह अपना हक़ जमाने।' अिमत फट पड़ा। 'कसी बात कर रहा ह तू अिमत?' चाहकर भी मानसी चुप न रह सक । मन ही मन सोचने लगी िक बड़ िमयाँ तो बड़ िमयाँ, छोट िमयाँ सुभान अ ाह! 'ठीक ही तो कह रह ह ये, म म । कभी इले िशयन को बुलाओ तो कभी गैस वाले को, कभी टॉयले स ब द तो कभी छत टपकने लगी। इस लडी कोठी को सँभालने क िलए अिमत ही को तो भागते रहना पड़ता ह। तब कहाँ होते ह आपक यार बेटा-ब ?' अिमत से िचपक कर खड़ी आ िष ने सास को उलाहना िदया तो मानसी क से का पारावार न रहा। 'आ िष, तु ही लोग रहते हो इस लडी कोठी म तो इसे ठीक कराने या कोई और आएगा?' 'साल म एक बार भैया और महक आते ह और सब उनक गुण गाते नह थकते। कभी उ ह ने पूछा हमसे िक घर क अपक प कसे करते ह हम?' अिमत बोला। 'सुिमत या महक क जायज़ाद को िकराए पर उठाने से पहले तुमने तो उनसे झूठ को भी नह पूछा िक उ ह कोई एतराज़ तो नह या िक जो िकराया आ रहा ह, कह उ ह उसक ज़ रत तो नह ।' 'जब वे यहाँ रहते ही नह तो उ ह या ऑबजै शन हो सकता ह? ख़ाली पड़-पड़ कोठी का जो हाल होता...' आ िष ने दलील पेश करनी चाही। 'उनक जायदाद से न बे हज़ार पये महीना िकराया आ रहा था अब तक। इसी लडी कोठी क िकराए क वजह से मज़े उड़ाते रह हो तुम सब।' मानसी बोलती ही चली गई, 'अणव और अन या क ऊपर िश ट हो जाने क बाद भी तु ह चालीस हज़ार तो िमल ही रह ह। नीचे वाली मंिज़ल क रीफ़िबशमट क बाद स र-अ सी हज़ार और िमलने लगगे। इस लडी कोठी म मज़े उड़ाओ तुम और इसक अपक प कर िवदेश म बसे तु हार भाई-बहन, भई वाह!' माँ को से म देखकर वे दोन चुप लगा गए। उ ह अ देशा नह था िक मानसी उ ह यूँ लताड़ भी सकती थी। घर म एक ख़ौफ़नाक स ाटा छा गया, िजसम अणव और अन या क आवाज़ आसमान म िघर काले बादल म कभी-कभी िबजली क सी क ध छोड़ जात । बजाय पित का शोक मनाती, मानवी ब क झगड़ सुलझाने म लगी थी। अिभनव िज़ंदा होते तो मजाल थी िकसी क िक वे मानसी से इस ब तमीज़ी से पेश आते! अिभनव क आक मक मृ यु को मानसी क िलए झेलना ही ब त किठन था, उस पर ब क यह तू-तू म-म। उसने कभी सपने म भी नह सोचा था िक कोई ऐसे अचानक उठकर चला जाएगा। िपछले रिववार क शाम क ही तो बात ह। रोज़ क तरह, ह क भोजन क बाद अिभनव सामने ही बाग म टहल रह थे िक उनक सीने म जलन होने लगी; लौटकर वह लेट गए। मानसी ने क ा दूध पीने को िदया, िफर पुदीनहर क दो गोिलयाँ भी द िकतु जलन थी िक बढ़ती ही चली गई। द तर से अिमत लौटा तो वह िपता को अ पताल ले चलने क िज़द करने लगा। 'डॉ टर से मज़ाक उड़वाना ह तो चलो।' मानसी और अिमत उ ह ज़बरद ती कार म बैठाकर ेटर कलाश थत एक ाइवेट अ पताल क ओर चल िदए। अभी पाँच िमनट भी नह ए थे िक अचानक अिभनव क तबीयत िबगड़ने लगी; वे सीधे एमजसी म प चे। डा टर ने बताया िक उ ह िदल का दौरा पड़ा था। जब मानसी और अिमत को उनसे िमलने िदया गया तो वह ब त कमज़ोर लग रह थे िकतु ख़तरा टल गया था। रात क बारह बजे क क़रीब अिभनव ने अिमत से घबराई ई मानसी को घर ले जाने को कहा, जो वहाँ से टस से मस होने को तैयार नह थी। डॉ टर क इस आ ासन पर िक अिभनव अब ख़तर से बाहर थे और उ ह आराम क आव य ा थी, वे दोन ही घर लौट आए। रात क क़रीब डढ़ बजे फ़ोन पर सूचना दी गई िक अिभनव को िदल का एक भारी दौरा पड़ा और इस बार वे उ ह बचा नह सक। पड़ौिसय और अिभनव क िम ने ि या- कम संबंधी सब काम सँभाल िलए थे। मानसी, अिमत-आ िष एवं अणव-अन या सभी एक सकते क सी हालत म थे। सुबह- सुबह िनगम बोध घाट पर अिभनव का अंितम सं कार कर िदया गया। मानसी को घर ऐसा ख़ाली लग रहा था िक जैसे वहाँ से कवल अिभनव ही नह , ब त सार लोग अचानक चले गए थे। सुिमत- सानवी कह जाकर तीसर िदन ही प च पाए थे। उनक रहने क यव था ऊपर अणव और
  • 12. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 10 अन या क कमर म क गई थी, पोता-पोती नीचे दादी क कमर म वािपस आकर आ त थे। समय क ना कता को देखते ए िकराएदार साहनीज़ अपना बाथ म-टॉयलेट शेयर करने िक िलए राज़ी हो गए थे। 'िदस लडी कोठी इज़ आवस एंड वी हव ट शेयर टॉयले स!' सुिमत िफर भड़क उठा था, साहनीज़ अपना सा मुँह लेकर रह गए। 'कोई बात नह बेटा, कछ ही िदन क तो बात ह। हम पता होता िक ऐसा होगा तो...' अशांत मानसी ने सुिमत को शांत करना चाहा। 'आपको तो कछ नह पता था मॉम, डड इतने िदन से बीमार थे, आपने हम बताया तक नह , अिमत हम एक फ़ोन ही कर देता...' सुिमत भाव-िव ल हो उठा। 'वी वर र ंग लाइक हडलैस िचकस, डम इट...' अिमत को भी सा आ गया। 'मोबाइ स क ज़माने म भागते-दौड़ते भी फ़ोन िकया जा सकता ह, अिमत, पर तुम तो चाहते ही नह थे िक हम लोग समय पर प च पाते।' 'वाट ड यू मीन?' मेज़ पर घूँसा मारते ए अिमत बोला। 'मदस डािलग, यू वेरी वेल नो वाट आई मीन। ' 'चुप हो जाओ, ब त हो गया, अभी तु हार डड क तेरहव भी नह ई ह और तुम दोन भाई चूह-िब ी क तरह लड़ रह हो।' मानसी का िदमाग़ भ ा रहा था। कह वह बुरा सपना तो नह देख रही थी? 'मुझे तो बस आप यह बता दीिजए, म मी, िक हम डड क डथ क बाद ही ख़बर य दी गई?' 'सब इतना अचानक आ, सुिमत, िक.?' 'एक लडी कोठी क िलए ये लोग इतना िगर गए िक आिख़री व हम डड से िमल भी न सक।' माँ क सीने से लगा सुिमत सुबकने लगा तो मानसी घबरा गई िक कह अिमत यह न सोचे िक वह सुिमत क तरफ़दारी ले रही थी। 'वाट िद हल इज़ ही टौिकग एबाउट, मॉम?' कहता आ अिमत भाई क ओर लपका तो आ िष उसे ज़बरद ती घसीटती ई नीचे ले गई। अणव और अन या अवाक खड़ थे; ताऊ-ताई जी पहले जब भी अमे रका से आते थे, इस ितमंज़ली कोठी म िशय का गदर मच जाता था, िजसे जीवन भर क कमाई लगाकर अिभनव और मानसी ने बड़ यार से बनवाया था अपने तीन ब क िलए। बीच क खन म अिभनव-मानसी क साथ अिमत- आ िष और अणव-अन या रहते थे। सुिमत क िलए नीचे वाला लैट था। महक को दूसरी मंिज़ल ही पस द थी, िजसक छत पर एक पो स- म भी था। िववाह क बाद, महक वाले लैट को भी िकराए पर चढ़ा िदया गया था। अिमत क तन वाह पूरी क पूरी बक म जमा हो जाती थी; आ िष एक महारानी क तरह रहती और ख़च करती थी। घर म दो नौकरािनय क अलावा उसने झा -प छ और कपड़ धोने-इ ी करने वाली अलग लगा रखी थ । माली और ाइवर तो थे ही। मानसी को यह समझ नह आ रहा था िक अिमत और आ िष को और या चािहए? अणव-अन या जब पाँच और छह वष क ए तो आ िष ने ऊपर क मंिज़ल पर बने दो शयन-क उनक िलए और ख़ाली करवा िलए। बाक़ क बचे दो शयन-क , बैठक, रसोईघर और बाथ म-टॉयलेट अब भी िकराए पर चढ़ थे। सुिमत ने कोठी म कोई िदलच पी नह िदखाई थी और करोड़पित माँ- बाप क इकलौती बेटी सानवी को भी पैसे क कोई कमी नह थी; िकतु चाचा और चाची ने अपने अमे रका-वास क दौरान सुिमत को न जाने या प ी पढ़ाई िक वह बात-बात म भड़कने रहा था। 'हमने तो सुना ह िक तु हार िह से म आ िष अपना बुटीक खोलने जा रही ह।' यूयॉक प चते ही चाची ने सुिमत और सानवी को एक नई ख़बर सुनाई। 'घर िकराए पर उठाने से यह बेहतर रहगा, ह न सुिमत?' सानवी ने पित को सावधान करना चाहा िक घर क मामले म वह चाचा- चाची क बात न ही सुने तो अ छा था। 'सानवी, तुम तो ब त ही गिलबल हो। ' चाचा बोले थे। 'सचमुच सानवी, आ िष धीर-धीर पूरी कोठी पर अिधकार कर लेगी और तु ह कछ पता भी नह चलेगा, ऊपर क मंिज़ल तो उसने पहले ही हिथया ली ह।' चाची ने हमदद िदखाते ए कहा। 'चाची जी, हम तो िद ी लौटना नह ह, आ िष को करने द जो वह करना चाहती ह, य सुिमत?' 'सानवी क माँ-बाप ने तो अपनी सारा धन-जायदाद उसक नाम कर दी ह। तु हारा अपना या ह?' सानवी को डर लगा िक मंथरा सी चाची का जादू कह सुिमत पर चल ही न जाए। 'घर-जंवाई बनकर न रह जाना, सुिमत। भैया ने कछ सोच समझकर ही ाउड लोर तु हार नाम िकया होगा, ह क न ?' चाचा ने बड़ भाई का हवाला िदया तो सुिमत को लगा िक एक कवल चाचा-चाची थे, िज ह उसक सचमुच परवाह थी। इस िवषय को लेकर सुिमत और सानवी म जब तब बहस िछड़ने लगी। अिभनव क मौत का तो नह िकतु कोठी क हर िह से म मातम हो रहा था। मानसी को िफ़ ही नह ख़ौफ़ था िक इन हालात म उसक पित क तेरहव कवल एक तमाशा न बन कर रह जाए। अगली ही सुबह बेटी महक और डिनयल भी आ प चे, िज ह हवाईअ से िलवाने क िलए कनाल मामा और जय ी मामी प चे थे, जो हाल ही म ऑ िलया म उनक मेहमान रह चुक थे। कम से कम डिनयल क तो वे िव ास-पा बन ही चुक थे। 'अर, तुम दोन िकतनी मेहनत करते हो, घर क सफ़ाई से लेकर बतन माँजने तक, कपड़ धोने और इ ी करने से लेकर भोजन पकाने तक सार काम द करते हो और वहाँ देखो अिमत और आ िष क या ठाठ ह। दो- दो ल टाइम नौकरािनय क अलावा माली, ाइवर और दो पाट-टाइमस ह उनक पास। यह सब तु हार लैट क िकराए क बल पर ही तो हो रहा ह।' महक क तो नह िकतु डिनयल क कान अव य खड़ हो गए थे। महक और डिनयल क रहने क यव था
  • 13. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 11 ाउड- लोर पर क गई थी, जहाँ इन िदन िलपाई-पुताई का काम चल रहा था। 'अपना िह सा लेकर चाह तुम िकसी िभखारी को दे दो पर ऐस क िलए य छोड़ो जो अपने ही बड़ भाई और बहन का िह सा हड़पने क सोच रह ह । ' कनाल मामा उ ह समझा रह थे। 'हाँ, तु हार िह से म अणव और अन या को सैटल करने से पहले उ ह तुमसे कम से कम पूछ तो लेना चािहए था।' मामी ने आग म घी डाला। महक ने उनक बात अनसुनी करनी चाह िकतु डिनयल उनक बात को बड़ यान से सुन रहा था। 'बट दे शुड हव ऐट ली ट इफ़ौ ड अस, डािलग।' डिनयल ने महक से कहा। महक क िदमाग़ म आया िक उसक िनजी मामले म डिनयल य टाग ँ अड़ा रहा था? िपछले चार साल म डिनयल एक बार भी अपनी मज़ से िद ी आने को राज़ी नह आ था। ससुर क अक मा मृ यु का समाचार सुनकर वह झटपट िद ी चलने को तैयार हो गया था; या उसे अपनी प नी क िह से क जायदाद म सचमुच िदलच पी थी? महक को यह बात अ छी नह लगी। 'डिनयल, वाए ड वी नीड पापाज़ हड- आउ स?' महक ने उससे पूछ ही िलया। 'वाए नौट? यू वर िहज़ डािलग डौटर, ही हज़ लै ट इट फ़ौर यू. अवर िक स िवल बी सो ाउड औफ़ देयर इ ह रटस वन ड, हनी।' डिनयल का तक सुनकर महक को लगा िक शायद वह ठीक ही कह रहा था। कोठी म अब सचमुच मातम मनाया जा रहा था - ऊपर क मंिज़ल पर सुमीत-सानवी क साथ चाचा-चाची, पहली मंिज़ल पर अिमत-आ िष क साथ ताऊ-ताई जी और ाउड लोर पर महक-डिनयल क साथ मामा-मामी, सब क सब लडी कोठी और िकराए को लेकर परशान थे। तन और मन से थक ई िवधवा मानसी को तीन-मंिज़ला कोठी म एक कोना भी नह नसीब नह आ जहाँ वह पित का शोक ठीक से मना सकती। 'अिमत ने तु ह समय पर ख़बर कर दी होती तो कम से कम तुम अपने िपता से आिख़री बार िमल तो लेते।' चाची ने अपनी बात िफर दोहराई। ' या जाने अिमत और आ िष का लैन सफ़ल हो ही गया हो। उनक कहने म आकर शायद तु ह जायदाद से बेदखल कर िदया हो।' चाचा बोले। 'जो भी हो, हम नह चािहए इस कोठी का एक भी कमरा। चलो सुिमत, हम लोग होटल म जाकर रहते ह।' तंग आकर सानवी बोली। 'नह नह , अिमत-आ षी यही तो चाहते ह िक तुम से म उठकर चल दो तािक मानसी तु ह िध कार। होटल चले जाओगे तो लोग भी यही कहगे न िक बाप क तेरहव तक भी नह क सक। ' चाची घबराई िक कह उनका बना बनाया खेल न िबगड़ जाए। 'तु ह िकसका डर ह सुिमत? यह तु हारी कोठी ह, कम से कम जब तक भैया क िवल नह पढ़ी जाती तब तक को।' चाचा ने कहा। उधर माँ िबखर ए अिमत को सँभाल रही थ , जो आ िष पर अपनी झ ाहट उतार रहा था। 'ऊपर नीचे सब जगह पाँव फलाकर तुमने ही उन सबको बोलने का मौका िदया ह, आ िष। भैया और महक दोन मुझे ही दोषी ठहरा रह ह।' 'अिमत, तुम अपना सारा सा मुझ पर उतारना चाहते हो तो ठीक ह। माँ ने तुमसे कहा था न िक भैया और महक को फ़ोन पर बता दो िक डड को अ पताल ले जा रह ह।' 'मने सचमुच नह सोचा था िक डड...' अिमत क लाई छट गई। 'सुबह ही तो फ़ोन कर िदया था अिमत ने। कछ घंट क देरी क िलए सुिमत न जाने य इतना शोर मचा रहा ह।' 'चाचा-चाची ने उ ह न जाने या- या बताया ह िक वे हमसे इतने ख़फ़ा ह।' आ िष बोली। 'जो भी हो, अभी तो शांित रखो। लोग क आँख-कान इन िदन हमारी कोठी पर ही लगे ह,' मानवी ने उनसे चुप हो जाने क ाथना क । ' लडी कोठी, मुझे अपना िह सा भी नह चािहए, मॉम। जैसे ही पापा क तेरहव हो जाएगी, हम दुबई चले जाएँगे। आ िष क म मी-पापा हम कब से वहाँ सै ल होने क िलए कह रह ह।' नीचे डिनयल और महक को समझाया जा रहा था िक इस दुिनया म नादान बनकर नह िजया जा सकता। यह कोई छोटी मोटी बात नह थी, इस समय कोठी क क़ मत कम से कम बीस करोड़ तो होगी ही। वैसे बात पैस क नह , उसूल क थी। 'अिमत-आ िष ने तेरा एक बाल भी बाँका िकया न महक, तो म उनक ऐसी क तैसी कर दूँगा।' गोल-मटोल मामा अपने फले ए गाल बजाते इधर से उधर लुढ़कने लगे। 'डो ट वरी, वी आर िवद यू, 24/7।' जय ी मामी क इशार पर कनाल डिनयल क गले म हाथ डाले बाहर िनकल गया तािक वह महक से अकले म बात कर सक। पीछ वाली बिगया म एक ह ते क िलए हलवाई बैठा िदए गया था; इतने बड़ प रवार का चाय-ना ता, दोपहर और रात का भोजन घर क दो नौकरािनयाँ तो अकले सँभाल नह पात । घर क सभी सद य ब त य त थे; बेचार को नहाने-धोने का भी होश नह था। दोपहर क भोजन क िलए प रवारजन बिगया म इक ए। थािलय म कते-सूत से चेहर को िनहारते ए लोग एक दूसर से नज़र िमलाने को भी तैयार न थे। हाथ म छरी-काँट न ए तीर-तलवार हो गए; सबक आँख म गोला बा द भरा था। मानसी को लगा िक जैसे अिभनव का ि य बगीचा क े म बदल गया हो। सफ़द साड़ी म िलपटी मानसी भगवा से मन ही मन पूछ रही थी िक अिभनव क जीवन भर क कमाई और उसक जी-तोड़ मेहनत का या यही िसला िमलना था उसे? यकायक वह फट-फट क रोने लगी। 'दादी, या आ? आप रो य रही हो?' अन या आकर दादी से िचपट गई। ‘आप सभी दादी का िदल दुखा रह ह।' से म सबक ओर देखता आ अणव बोला। पोता-पोती दादी को लेकर बैठक म चले गए। देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी और भाई-
  • 14. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 12 भाभी ने बारी-बारी आकर मानसी क क धे थपथपाए िक वह अपने को नह सँभालेगी तो कसे चलेगा? घर लौटने से पहले सभी ने एक दूसर से बचे ए भोजन क पैक स ले जाने का आ ह िकया और िफर पैक स उठाए वे सब अपने अपने घर लौट गए; खेल ख़ म हो चुका था। ज दी ही मानसी का पूरा प रवार बैठक म उसक इद-िगद इक ा हो गया; सब अवसाद से भर थे। जादग ू र क चुटक बजाते ही जैसे बेहोश को होश आ जाए, कछ ऐसी ही हालत थी उन सबक । 'सौरी म मी, पापा क डथ ने मुझे पागल कर िदया था।' सुिमत और कछ न कह सका। उसने माँ को सीने से िचपटा िलया, जो िहचिकयाँ ले लेकर एक बार िफर रोने लग िक जैसे उनका िदल चूर-चूर हो जाएगा। 'दे िडड नौट नो हाउ ट ए स ैस देयर ीफ़।' सानवी ने अपना फ़लसफ़ा झाड़ा, िजससे सब सहमत थे। 'म मी, मेर नाम तो बस आप अपना यार कर दीिजए। िज़ंदगी भर आपने मुझे कोई कमी नह होने दी। मने जो कछ भी एचीव िकया ह, आपक वजह से ही तो िकया।' महक भी माँ से आ िचपक । 'महक ठीक कह रही ह। वादा क िजए िक हमार जीते जी अब आप कभी नह रोएँगी।' अिमत बोला। 'आप नाहक रो रही ह, आपक तीन-तीन कमाऊ ब े ह, दो यार- यार पोता-पोती और ...' सानवी ने कहा। 'और यह लडी कोठी।' दीवार और छत पर नज़र दौड़ाती ई मानसी बोली। 'नह , हमारी यह यारी- यारी कोठी, जो हर साल हम पनाह देती ह।' सुिमत ने कहा। 'यह न होती तो हम सालाना पंछी कहाँ आकर बैठगे?' महक बोली। कछ ही देर म सबने अपने-अपने िगले- िशकवे दूर कर िलए थे, एक दूसर से 'सॉरी' कहते ए सब क सब सुबक रह थे और मानसी एक बार िफर उ ह ढाढस बध ँ ाने म जुटी थी। 000 आवाज़ सुभाष चं लखेड़ा लघुकथा दु यंत बाबू आजकल अ व थ चल रह ह - यह ख़बर मुझे एक िम से िमली। इससे पहले िक म आपको आगे कछ बताऊ, यह बताना उिचत होगा िक दु यंत बाबू स 2007 म िनदेशक क पद से सेवा-िनवृ ए थे। मुझे भी कछ वष उनक साथ काय करने का मौक़ा िमला था लेिकन बाद म म िकसी दूसर सं थान म ांसफर हो गया था। ख़ैर, उनक यहाँ मेरा तीज- यौहार पर आना-जाना होता रहा। हाँ, िपछले सवा दो साल क कोरोना काल म उनक यहाँ म कभी नह गया। इधर जब से क़ोरोना क सं मण दर म िगरावट ई ह और सरकारी पाबंिदयाँ हटी ह, म भी लोग से िमलने-जुलने लगा । बहरहाल, िम ने जैसे ही मुझे दु यंत बाबू क अ व थ होने क ख़बर बताई, मने तय कर िलया िक म उनक हालचाल पूछने ज़ र जाऊगा। कल मौक़ा िमला और म उनसे िमलने चला गया। उनका िनवास थान मेर लैट से लगभग डढ़ िकलोमीटर दूर यह ारका, िद ी म ह। उनका बेटा िववािहत ह और वह आजकल अपने प रवार क साथ गु ाम म रहता ह। हाँ, दु यंत बाबू क साथ आजकल उनक प नी क अलावा उनक तीसर भाई का बेटा रहता ह जो आईएएस क तैयारी कर रहा ह। उनक यहाँ जाने से पहले मने उ ह फ़ोन कर िदया था। म प चा तो वे दरवाज़ा खोले मेरा इतज़ार कर रह थे। मने उ ह णाम िकया और िफर उनका इशारा िमलने पर उनक सामने क सोफ पर बैठ गया। मने जैसे ही उनसे उनक तबीयत क बार म पूछा, वे बोले, "मामूली बुख़ार या बदन दद होना इस उ म वाभािवक ह लेिकन मेरी तो आवाज़ ही चली गई ?" उनसे यह सुनते ही म उ ह अचरज से देखने लगा। अ छी भली आवाज़ ह उनक और वे कह रह ह िक मेरी आवाज़ चली गई। मेर चेहर पर उपजे सवाल को समझते ए वे गंभीर वर म बोले, "पवन ! तुमने तो वह व ब देखा ह जब मेरी आवाज़ को सुनते ही घर या बाहर, सभी जगह लोग भागते ए आते थे। सेवा-िनवृ होने क बाद सब कछ बदल गया और अब तो ऊची आवाज़ म बोलने पर भी मेरी कोई नह सुनता।" 000 सुभाष चं लखेड़ा सी-180, िस ाथ कज, से टर-7, लाट नंबर-17, ारका, नई िद ी- 110075 ईमेल- subhash.surendra@gmail.com
  • 15. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 13 हािकम का पाजामा नीरज नीर नीरज नीर आशीवाद, बु िवहार, पो ऑ अशोक नगर, राँची – 834002, झारखंड मोबाइल- 8789263238 ईमेल- neerajcex@gmail.com कथा-कहानी वह एक ब त ही गरम सुबह थी। िबजली घर म कोयले क कमी क कारण िबजली क आपूित कम हो रही थी, इसिलए उस उमस भरी सुबह म िबजली नदारद थी। घर क भीतर से अकलाया आ, ठडी हवा क िलए म बाहर बरामदे म आकर बैठ गया और या रय म लगे फल को िनहारने लगा। पौधे क हलाए ए िदख रह थे। उ ह पानी क स त ज़ रत थी। लेिकन जब तक िबजली न आ जाए, पानी खच करना समझदारी नह थी। िबजली का कोई भरोसा नह था। जब से कोयले क आपूित कम ई थी, िबजली लंबे समय तक ग़ायब रहती थी। पीने और खाना बनाने क िलए पानी क यादा ज़ रत थी। यही सोचकर पौध म पानी देना मने मु तवी कर िदया। सहसा मने देखा िक फल क या रय क बीच एक सफद चमक ली चीज़ पड़ी ह। म लपक कर वहाँ गया और उसे उठा लाया। मेर आ य का कोई िठकाना नह रहा। वह एक रशमी पाजामा था, उसम बेल-बूट जड़ थे। इतना सुंदर पाजामा िकसका होगा और यह मेर अहाते म कसे आ गया? पाजामा देखने से ब त क मती लग रहा था। मने उसे सहलाया, वह ब त ही मुलायम था। उतना सुंदर और मुलायम रशमी कपड़ा मने अपनी िज़ंदगी म कभी नह देखा। वह आ यजनक प से आम कपड़ क तुलना म ठडा भी था। मुझे उसे पहनने क बड़ी ही ती इ छा ई। म फौरन ही भीतर गया और उसे पहन िलया। मुझे ठडक महसूस ई। अहा! अगर ऐसा ही ऊपर का कता भी रहता तो िकतना अ छा होता! थोड़ी देर म इधर-उधर बरामदे म ही टहलता रहा िफर ऊपर एक पुरानी कमीज़ डालकर घर क बाहर सड़क पर िनकल आया। उस पाजामे को पहनकर मेरी चाल म एक अजीब सी अकड़ आ गई थी, म ऊट क तरह गदन ऊची करक चल रहा था। म अपने भीतर एक बदलाव अनुभव करने लगा था। म आ म िव ास से भरा आ था। राह चलते कछ लोग मेर पाजामे को गौर से देख रह थे। उनका इस तरह देखना मुझे अ छा लग रहा था। जो लोग मुझे नह देख रह थे, उ ह म बेवकफ़ और
  • 16. अ टबर-िदस बर 2022 foHkkse&Loj 14 बदमाश समझ रहा था। जब कछ लोग ने मुझे सलाम भी िकया तो मुझे बड़ा अ छा लगा। थोड़ी देर बाद जब म घर लौटा तब तक अख़बार आ गया था। अख़बार वाला रोज़ क तरह अख़बार को रोल करक बरामदे म फक कर चला गया था। मेरी चाय पीने क इ छा ई। लेिकन िफर सोचा पहले अख़बार पढ़ िलया जाए। म वह लगी कस पर बैठकर अख़बार पढ़ने लगा। मने रोज़ क तरह अख़बार म सबसे पहले खेल क ख़बर देखी और िफर सूडोक बनाने लगा। उसक बाद जब मने मु य समाचार क िलए मु य पृ देखा तो च क पड़ा। अख़बार म जो पहले ही प े पर सबसे मह वपूण ख़बर थी, वह यह िक बड़ हािकम का पाजामा चोरी हो गया ह एवं बड़ हािकम क िसपाही उस पाजामे को ढढ़ रह ह और चोर को पकड़ते ही फास ँ ी पर लटका िदया जाने का म आ ह। यह पढ़ते ही मुझे करट सा लगा। कह यही तो हािकम का पाजामा नह ह? मने अपने पैर क ओर देखा। पाजामा मेर पैर म ब फ़ब रहा था। ऐसा लगता था िक दज़ ने मेरी ही नाप से इसे िसला था। शायद हािकम का शरीर मेर ही बराबर हो। आिख़र हािकम भी तो आदमी ही ह। ऐसा मने सोचा। मने हािकम को कभी नह देखा था। लेिकन हािकम का पाजामा मने पहना आ ह, यह सोचकर ही मेर देह म भय से झुरझुरी होने लगी थी। कह मुझे ही चोर न समझ िलया जाए! पहले तो म वह पर पाजामा खोलने का य न करने लगा िफर मुझे एहसास आ िक मने पाजामा क भीतर कछ नह पहना ह। सड़क िकनार खुले बरामदे म यूँ नंगा होना उिचत नह ह, कोई देख ले तो पागल समझेगा, यही सोचकर म दौड़कर भीतर गया और पाजामा खोल िदया। मने पड़ोस क घर म झाँककर देखा, उनक घर म अभी तक कोई चहल-पहल नह थी। वे लोग शायद अभी सोकर नह उठ थे। मेरा पड़ोसी भी अजीब आदमी था। वह शराबी था और अ सर शराब पीकर देर से घर आता था। घर आने क बाद देर तक उनक घर म आपस म लड़ाइयाँ होती थी, इसी िलए वे लोग देर से ही सोकर उठते थे। मुझे वे लोग ज़रा भी पसंद नह थे। मने उ ह कई बार समझाया था िक इस तरह से देर रात झगड़ा करना और देर से सुबह उठना अ छी बात नह ह, पर उ ह ने मेरी बात पर कभी यान नह िदया, उ ट उ ह मेरी बात अ छी नह लगती थी और मुझे सबक िसखाने क धमक देते थे। एक बार तो उनक झगड़ और शोर-शराबे से ऊबकर मने पुिलस भी बुला ली थी। लेिकन पुिलस भी या करती, आपस म पित -प नी का मामला था। पुिलस क आने क बाद प नी भी पित क प म बोलने लगी और उलट मुझ पर ही परशान करने का आरोप लगा िदया था। ख़ैर, यह समय उनक बार म सोचने का नह था। अभी इस पाजामे क बार म सोचने का समय था, िजसक बार म अब तक मुझे पूरा यक न हो गया था िक यह पाजामा हािकम का ही था। पाजामे म लगा रशम, उसक अ छी िसलाई और उसपर लगे चमक ले बेल-बूट, इस बात क बराबर तसदीक कर रह थे िक यह कोई मामूली पाजामा नह था। मुझे पहले ही समझ जाना चािहए था लेिकन मने इतनी दूर क बात नह सोची थी। हािकम का पाजामा भी हािकम क तरह िविश था। मने इधर-उधर देखा और उस पाजामे को पड़ोसी क अहाते म फक िदया। िफर िन ंत होकर म घर क भीतर चला गया। घर क भीतर जाकर मने चाय बनाई, चाय पी और कमर म लेटकर टीवी देखने लगा। पाजामे का रशमी एहसास अभी तक मेर शरीर को सहला रहा था। साथ ही एक सुकन भी था िक गले पड़ी मुसीबत से ज दी ही छटकारा िमल गया था। कछ घ ट क बाद जब िबजली आई तो मने सोचा िक पौध को पानी दे दूँ। मुझे यह भी उ सुकता थी िक पड़ोसी ने आिख़रकार उस पाजामे को देखा या नह और देखा तो या िकया। म िन ंत था िक चूँिक पड़ोसी क घर म अख़बार नह आता ह तो उसे इस पाजामे क पीछ क कहानी पता नह चलेगी। लेिकन बाहर आकर म यह देखकर आ य म पड़ गया िक वह पाजामा मेर ही बरामदे म, मेरी आराम कस पर पड़ा था। यह मेर िलए बड़ी हरत क बात थी। मेरी आँख फटी क फटी रह ग । यह कसे आ? मने पड़ोसी क घर म झाँक कर देखा, वहाँ कोई नह था, न कोई हलचल थी। वे लोग शायद अभी तक सो कर नह उठ थे। िफर इस पाजामे का या जादू ह? यह बार-बार मेर ही घर म य आ जा रहा ह? म परशान होकर इधर-उधर टहलने लगा। तभी मने देखा िक रा ते से दो िसपाही गुज़र रह ह और सभी घर क भीतर उचक- उचक कर देख रह ह। वे शायद हािकम क पाजामे को खोज रह थे। वे मेर घर क सामने आते, उससे पहले ही पाजामे को उठाकर म घर क भीतर तेज़ी से भाग गया। अब तो मेरी टाँगे काँप रही थी। मुझे लगा मने पाजामा नह ब क कोई जहरीला साँप पकड़ा आ ह। मने पाजामे को द से दूर फक िदया। अगर िसपाही घर क भीतर आ गए तो या होगा? म तो इसे पहनकर सड़क पर घूम भी आया । कई लोग ने मुझे देखा भी ह। मेरा िसर चकराने लगा। िबजली िफर से चली गई थी। घर क भीतर घुटन और उमस महसूस हो रही थी। इसिलए म ताज़ा हवा लेने क िलए घर से बाहर बरामदे म आ गया। बाहर आकर मने देखा मेरा पड़ोसी अपने आँगन म पौध क छटाई कर रहा ह। मेर आने क आहट होते ही, ककर उसने कमर सीधी क , मेरी ओर गौर से देखा और धीमे से मु करा िदया। मुझे उसक मु कान अजीब लगी। ओह! तो या उसे मालूम हो गया था िक यह हािकम का पाजामा ह और उसे मने उसक आँगन म रखा था? या पता, हो सकता ह उस समय वह जगा आ हो और कह से मुझे देख रहा हो। हो सकता ह उसने कल रात शराब नह पी और सबेर ज दी उठ गया हो। म ही तो उसे सबेर ज दी उठने क िलए कहता था। हो सकता ह, उसे पहले से ही मालूम हो िक हािकम का पायजामा चोरी गया ह। कस पर रखे अख़बार पर िफर से मेरी नज़र पड़ी। पाजामा चुराने वाले क िलए मोट अ र म फास ँ ी क बात िलखी ई थी। हािकम क िलए फास ँ ी आम बात थी। वह िजसे चाह फास ँ ी दे सकता था। मुझे अपने गले पर दबाव सा महसूस होने लगा। फास ँ ी क